पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

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परिचय

गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित पटना,  बिहार राज्य की राजधानी है। भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक, पटना पहले पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। पटना शहर कई  भारतीय साम्राज्यों की राजधानी रह चुका है। यूनानी लेखों में  पाटलिपुत्र  के  प्राचीन  शहर  की  तुलना  फ़ारसी शहरों  के  वैभव से  की  गई  है। वह स्थापत्यकला, मूर्तिकला, साहित्य, चित्रकला, व्यवसाय, धर्म  एवं  शिक्षा  के  क्षेत्रों  में  उत्कृष्ट था।

पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

इतिहास

गंगा, सोन और पुनपुन नदियों के बीच बसे पटना के सामरिक स्थान ने शहर के राजनैतिक आधिपत्य को मज़बूत किया और उसे नदी व्यापार में सहायता दी । यह शहर शिशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त राजवंशों की राजधानी रहा । इन सब ने पटना पर अपनी छाप छोड़ी । राजनीति  से दूर जाने के बाद भी पटना व्यवसाय का केंद्र बना रहा। मध्यकालीन और औपनिवेशिक काल के दौरान उसने पुन: राजनैतिक महत्त्व प्राप्त किया । भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भी पटना का सक्रिय योगदान रहा।
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पटना का इतिहास

  1. 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व हरण्यक वंश के अजातशत्रु ने पाटली गाँव में एक किले का निर्माण किया। इस गाँव के चारों ओर मगध की राजधानी पाटलिपुत्र शहर बसता है।

  2. चौथी शताब्दी ईसा पूर्व चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र पर कब्ज़ा कर लिया और मौर्य वंश की स्थापना की। 303 ईसा पूर्व में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ ने चंद्रगुप्त के शाही दरबार का दौरा किया।

  3. तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व राजा अशोक सिंहासन पर बैठे और मौर्य साम्राज्य मद्रास तक विस्तृत हुआ। 232 ईसा पूर्व में राजा अशोक की मृत्यु हो गई और मौर्य वंश को शुंग शासकों ने परास्त कर दिया।

  4. दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व मगध का पतन शुरू हो गया।

  5. चौथी शताब्दी ईसवी पाटलिपुत्र ने गुप्त शासकों के अधीन प्रसिद्धि प्राप्त की। गुप्त वंश के चंद्र गुप्त प्रथम ने मगध की महिमा को पुनर्जीवित किया।

  6. 5वीं शताब्दी ईसवी चीनी यात्री फ़ा शिएन ने पाटलिपुत्र का दौरा किया और मगध की समृद्धि के बारे में लिखा।

  7. 7वीं शताब्दी ईसवी एक दूसरे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भारत का दौरा किया और पाटलिपुत्र को खंडहर में तब्दील पाया।

  8. 8वीं शताब्दी ईसवी – 12वीं शताब्दी ईसवी पाटलिपुत्र एक प्रमुख नदी बंदरगाह है।

  9. 16वीं शताब्दी ईसवी पाटलिपुत्र (अब पटना) शेर शाह सूरी के अधीन प्रांतीय राजधानी बन गया। शेर शाह सूरी ने एक किले के निर्माण का आदेश दिया। पटना व्यापार और वाणिज्य का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

  10. 17वीं शताब्दी ईसवी पटना यूरोपीय व्यापारियों को आकर्षित करता है। 1666 में सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना में हुआ।

  11. 18वीं शताब्दी ईसवी 1704 में मुगल राजकुमार अज़ीम-उस-शान ने शहर का नाम बदलकर अज़ीमाबाद कर दिया। 1763 में मीर क़ासिम (बंगाल के नवाब) और अंग्रेज़ों के बीच हुई लड़ाई ‘पटना नरसंहार’ की वजह बनती है।

  12. 19वीं शताब्दी ईसवी: पटना 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का साक्षी बनता है। "बिहार टाइम्स", "इंग्लिश क्रॉनिकल" और "बिहार हेराल्ड" जैसे अँग्रेज़ी साप्ताहिकों का प्रकाशन शुरू होता है।

  13. 1891 पटना में खुदा बख्श ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी जनता के लिए खुलती है।

  14. 1910 पटना से सच्चिदानंद सिन्हा ब्रिटिश शासन के विधान परिषद् (इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल) में बिहार का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने जाते हैं।

  15. 1911 12 दिसंबर को किंग जॉर्ज पंचम, बिहार और उड़ीसा के नए प्रांत के गठन की घोषणा करते हैं। इसकी राजधानी बनता है पटना।

  16. 1912 पटना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 27वें अधिवेशन की मेज़बानी की जाती है।

  17. 1913 वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पटना का दौरा करते हैं। उनके द्वारा पटना उच्च न्यायालय की आधारशिला रखी जाती है।

  18. 1916 पटना पर होमरूल आंदोलन का प्रभाव पड़ता है और पटना होम रूल लीग का गठन किया जाता है जिसके अध्यक्ष मौलाना मज़हरुल हक बनते हैं।

  19. 1917 पटना विश्वविद्यालय और पटना संग्रहालय की स्थापना होती है।

  20. 1920 पटना में जलियाँवाला बाग हत्याकांड का विरोध होता है।

  21. 1921 बिहार विद्यापीठ की स्थापना होती है।

  22. 1923 स्वराज पार्टी का गठन होता है। यह स्थानीय निकायों के चुनाव में भाग लेती है।

  23. 1928 साइमन कमीशन पटना पहुँचता है और बहिष्कार का सामना करता है।

  24. 1936 उड़ीसा से अलग होने के बाद पटना, बिहार प्रांत की राजधानी के रूप में बरकरार रहता है।

  25. 1937 प्रांतीय चुनाव होते हैं। राज्य स्तर पर सरकार बनती है।

  26. 1942 भारत छोड़ो आंदोलन के चलते पटना के सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का प्रयास करते हुए छात्र शहीद हो जाते हैं।

  27. 1947 स्वतंत्र भारत में पटना, बिहार राज्य की राजधानी ही रहता है।

  28. 1950 डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति बनते हैं।

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शहर के किस्से

पटना कई  कथाओं से घिरा हुआ है । ये कथाएँ शहर के नाम और उसके प्राचीन उद्भव से संबंधित हैं। पटना कहानियों का एक खज़ाना है। पटना आए यात्रियों ने अपने लेखों में शहर के बारे में कई  मनोहर बातें लिखीं हैं। शहर की पुरातत्विक परतों में पाए गए सिक्के, मूर्तियाँ, मिट्टी के पात्र, मुद्राएँ और संरचनाएँ शहर के मनोहारी इतिहास के बारे में बताते हैं ।
पटना के बारे में और जानने के लिए नीचे क्लिक करें।

शहर की कहानियाँ

पटना, गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा है - वही विशाल नदी जिसने इस ऐतिहासिक शहर को नदीय व्यापार केंद्र का दर्जा दिया। नक्शे  पर एक नज़र डालें, और उस आप कम्पास के चिह्न को देखेंगे जो इंगित करता है कि इस नक्शे को उत्तर-दक्षिण अभिविन्यास में पुन: व्यवस्थित किया गया है।

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आपको गुप्त-काल के लाल मिट्टी के कुछ बर्तन मिले हैं!

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यह लोटा पटना में गुलज़ारबाग इलाके की खुदाई के दौरान मिला था।
यह शायद पानी रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, या तो रोजमर्रा के उपयोग के लिए, या पवित्र अनुष्ठानों के लिए।
वैसे तो यह बर्तन सदियों पुराना है लेकिन आज भी कई भारतीय घरों में मिट्टी, पीतल, तांबे और यहाँ तक कि स्टील से बने ऐसे ही बर्तन मिलते हैं।
यह लोटा अच्छे डिज़ाइन के महत्व का एक अच्छा अनुस्मारक है । यह बताता है कि जब तक कोई भी बर्तन उपयोगकर्ता के लिए अनुकूल है, और जब तक उसकी बनावट सटीक है तब तक यह समय की तीव्र लहरों को भी झेल सकता है।
क्या आपने इस लोटे के लाल से रंग पर ध्यान दिया? पुरातत्वविद ऐसे मिट्टी के बर्तनों को लाल मिट्टी के बर्तन (रेड वेयर) कहते हैं।

आपने प्राचीन मुद्रा खोद निकाली है!

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पटना के मछुआटोली क्षेत्र की खुदाई में मगध-मौर्य युग का यह सिक्का सबसे पहले ज्ञात भारतीय सिक्कों में से एक है।
इन सिक्कों को धातु को पिघलाकर उसे एक पतले पत्र में पीटकर बनाया जाता था। फिर उस पत्र को सही वज़न और आकार के टुकड़ों में काटकर उन पर अलग-अलग आकृतियों की मुहर लगाई जाती थी। एक बार पूरा होने के बाद इसे पूरे साम्राज्य में मुद्रा के रूप में परिचालित कर किया जाता था।
सिक्के बनाने की यह तकनीक, भारत में प्रसिद्ध एक अनूठी तकनीक है।

आपने एक विश्व प्रसिद्ध बलुआ पत्थर की मूर्ति को खोज निकाला है!

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सुंदर कपड़े पहने इस यक्षी अर्थात पृथ्वी की आत्मा की यह आदमकद मूर्ति, मौर्य काल के दौरान पाटलिपुत्र में विकसित हुई मूर्तिकला शैली को दर्शाती है।
इस मूर्ति के साथ एक रोमांचक कहानी जुड़ी हुई है। 1917 में पटना के दीदारगंज के ग्रामीण निवासी एक साँप के बिल की तलाश में मिट्टी के एक टीले के आसपास जमा हुए थे। उन्हें साँप तो नहीं मिला पर उसकी जगह उन्होंने इस मूर्ति के आधार को खोज निकाला।
थोड़ी और खुदाई की तो धीरे-धीरे इस मूर्ति का शरीर और सिर भी दिखने लगा और अंततः यह खूबसूरत मूर्ति दुनिया के सामने फिर से आई।
क्या आपने ऐसे ही चमकने वाली अन्य मूर्तियाँ देखी हैं?
यह चमक मौर्य काल की मूर्तियों की पहचान करने का एक अच्छा तरीका है!

आपको पकी मिट्टी (टेराकोटा) की एक मुहर मिली है!

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गुप्त काल की इस छोटी लेकिन अनोखी मुहर को 'आरोग्य विहार' मुहर के नाम से जाना जाता है।
इसका कारण इसके निचले आधे भाग पर लिखा हुआ यह अभिलेख है। यह संस्कृत में लिखा गया है- 'श्री-आरोग्यविहारे-भिसू-सम्घस्य' जिसका अर्थ है - आरोग्याश्रम मठ के मठवासी समुदाय की मुहर।
इस मुहर ने पुरातत्वविदों को यह साबित करने में मदद की, कि पाटलिपुत्र में एक विशेष मठ था, जो एक आरोग्याश्रम के रूप में कार्य करता था जहाँ मरीज़ आराम करने और ठीक होने के लिए आ सकते थे।
मुहर के ऊपर के आधे हिस्से में एक बोधि वृक्ष है (बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण प्रतीक), जो उस पेड़ को दर्शाता है जिसके नीचे गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था।

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इस ऐतिहासिक इमारत में खान बहादुर खुदा बख्श के संग्रह मौजूद हैं।

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    खुदा बख्श पुस्तकालय दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों का एक बहुमूल्य खज़ाना है जो दुनिया भर से आगंतुकों को आकर्षित करता है। 1891 में यह पुस्तकालय खान बहादुर खुदा बख्श द्वारा जनता के लिए खोला गया था । यह पुस्तकालय 4,000 पांडुलिपियों के संग्रह के साथ शुरू हुआ, जिनमें से 1,400 खुदा बख्श को अपने पिता मौलवी मोहम्मद बख्श से विरासत में मिली थीं।
    यह विशाल पुस्तकालय भवन किसी समय में खुदा बख्श का निवास स्थान हुआ करता था, जिसे उन्होंने अपनी पांडुलिपियों के समृद्ध संग्रह के साथ पटना के लोगों को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया। इसमें 21,000 प्राच्य पांडुलिपियाँ  और 2.5 लाख मुद्रित पुस्तकें हैं। यह फारसी और अरबी पांडुलिपियों के संग्रह के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। इसमें फिरदौसी की शाहनामा, मुग़ल बादशाह जहाँगीर द्वारा हस्ताक्षरित दीवान-ए-हाफ़िज़, बादशाह अकबर के समय की तारीख़-ए-ख़ानदान-ए-तैमूरिया और कज़वीनी द्वारा लिखित पादशाहनामा जिसमें बादशाह शाहजहाँ के जीवन का विवरण दिया गया है, शामिल हैं। पुस्तकालय में सीरत-ए-फ़िरोज़ शाही का एकमात्र मौजूदा हस्तलेख होने का भी दावा है जो फ़िरोज़ शाह के शासनकाल की पहली छमाही की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करता है। 
    पुस्तकालय में लगभग 40 ताड़ के पत्तों पर संस्कृत में लिखी पांडुलिपियों, कुछ जर्मन, फ्रेंच, जापानी और रूसी किताबों और साथ ही साथ मुग़ल और राजपूत चित्रकारियों का एक समृद्ध संग्रह है।

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    बीसवीं शताब्दी की यह ऐतिहासिक ईमारत बिहार का शासन केंद्र है।

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      1917 में जोसेफ़ मुन्निंग्स द्वारा इंडो-सारासेनिक शैली में निर्मित और मार्टिन बर्न द्वारा निर्मित पुराना सचिवालय आज  बिहार सरकार का प्रशासनिक मुख्यालय है। इस  ईमारत  की  ख़ास  विशेषताएँ  घंटा  घर  और  बिहार  के  पहले  मुख्यमंत्री, श्री कृष्ण सिन्हा की  कांसे  की  मूर्ति हैं।
      घंटा  घर, इस परिसर  के  हरे-भरे उद्यानों को अलंकृत करता है। हालाँकि  जब यह बना था तब यह  198 फ़ुट  लम्बा  था, लेकिन 1934 के  एक  भूकंप  में  इसका  कुछ  हिस्सा  गिर  गया  और  इसकी ऊँचाई 184 फ़ुट रह गई। ऐसा माना जाता है कि, जब यहाँ  की  आबादी   एक  लाख  के  आस  पास   थी , तब  घड़ी  की  आवाज़  शहर  के  कोनों  तक  भी सुनाई देती थी।  
      इमारत  का निर्माण लाल टाइल वाली मैन्सर्ड छतों से किया गया है, जिनका  नाम  फ़्रांसीसी वास्तुकार एफ. मैंसार पर  रखा  गया था। केंद्रीय  मेहराबदार दो इमारतों से जुड़ा हुआ है और  इमारत  को  अंग्रेज़ी अक्षर ‘टी’ का आकार देता  है। पटना  सचिवालय  नाम से भी प्रसिद्ध, इसमें  राज्य  सरकार  के  कई  प्रशासनिक  विभाग स्थित हैं ।  
      पुराने  सचिवालय  के  पास  एक  शहीद  स्मारक  है  जो  भारत  छोड़ो  आंदोलन  के  दौरान  शहीद  हुए  7 छात्रों  को श्रद्धांजलि देता है। 

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      यह कांस्य स्मारक स्वतंत्रता आंदोलन में पटना के महत्वपूर्ण योगदान की याद दिलाता है।

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        शहीद स्मारक कांस्य से बनाया गया एक आदमकद स्मारक है जो सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पटना में हुई घटनाओं का साक्षी है।
        11 अगस्त, 1942 को पटना के छह हजार छात्रों ने ब्रिटिश सैन्य बलों के खिलाफ मोर्चा निकाला और विरोध दर्शाते हुए वर्तमान में पुराने सचिवालय के रूप में प्रसिद्ध इमारत पर धावा बोल दिया। उनका एक ही उद्देश्य था - सचिवालय के ऊपर भारत के राष्ट्रीय ध्वज को फहराना। इनमें से सात छात्र, जिसमें सबसे छोटे छात्र की आयु पंद्रह वर्ष थी, सफल होने से पहले ही शहीद हो गए। ऐसा कहा जाता है कि आठवें छात्र ने जो कि माली के वेश में था, उसने सचिवालय पर सफलतापूर्वक झंडा फहराकर, अपने साथियों के उद्देश्य को पूरा करा।
        इस स्मारक की आधारशिला 15 अगस्त, 1947 को रखी गई थी और वहां स्थापित की गई प्रतिमा देवीप्रसाद रायचौधरी द्वारा अभिकल्पित की गई थी।

        पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

        पटना कभी भारत के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद से संबंधित था।

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          विवरण-
          भारत के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद (1950 - 1962) का जन्म बिहार के सिवान जिले के ज़ीरादेई में हुआ था। वह एक कुशल वकील थे। उन्हें पटना विश्वविद्यालय के सीनेट एवं सिंडिकेट के प्रथम सदस्यों में से एक के रूप में नियुक्त किया गया था। 1911 में डॉ. प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और अपने गुरु महात्मा गांधी के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गए।

          1921 में उन्होंने वकालत छोड़ दी और पटना के पास एक नेशनल कॉलेज खोला। महात्मा गांधी का अनुसरण करते हुए उन्होंने बिहार क्षेत्र में विभिन्न आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने बिहार में असहयोग आंदोलन के साथ-साथ 1930 में नमक सत्याग्रह भी शुरू किया। 1939 में सुभाष चंद्र बोस के इस्तीफ़े के बाद, उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया।
          कहा जाता है कि रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें एक पत्र में लिखा था, "मैं इस बात से आश्वस्त हूँ कि आपका व्यक्तित्व पीड़ित आत्माओं को शांत करने और अविश्वास और अराजकता के माहौल में शांति और एकता लाने में मदद करेगा ..."
          1946 में भारत के संविधान को बनाने के लिए संविधान सभा की स्थापना की गई थी। दिसंबर 1946 में वह इस सभा के अध्यक्ष चुने गए। 1950 में जब भारत का संविधान लागू हुआ, तब वह भारत के पहले राष्ट्रपति चुने गए और बारह वर्षों तक इस पद पर कार्यरत रहे।

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          गंगा किनारे स्थित यह आश्रम एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व्यक्ति का घर था।

          • सदाकत आश्रम
          • राजेन्द्र स्मृति संग्रहालय

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          पटना का सदाकत आश्रम भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निवास स्थान था। इस आश्रम के परिसर में राजेंद्र प्रसाद स्मृति संग्रहालय और बिहार विद्यापीठ स्थित हैं।
          आश्रम की स्थापना महात्मा गांधी ने 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान की थी। भारतीय मुस्लिम लीग के संस्थापक सचिव मौलाना मज़हरुल हक़ ने गांधी जी की इस आश्रम की स्थापना करने में मदद की थी। मौलाना हक़ के करीबी दोस्त खैरुं मियां ने इस आश्रम के लिए अपनी ज़मीन दान में दी थी।
          सदाकत का अर्थ है 'सत्य' और आश्रम का अर्थ है 'घर', इस प्रकार इसका अर्थ हुआ 'सत्य का घर'। यह ध्यान देने वाली बात है कि सदाकत शब्द उर्दू में है और आश्रम शब्द संस्कृत से आया है, अतः यह आश्रम हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। दिलचस्प बात यह है कि आश्रम में मौलाना मज़हरुल हक़ की याद में निर्मित एक पुस्तकालय भी है।
          इन परिसरों में राष्ट्रीय आंदोलन की कई महत्वपूर्ण बैठकें हुईं थी। मज़हरुल हक़ ने यहाँ एक छापाखाना (प्रिंटिंग प्रेस) स्थापित किया और 1921 में यहाँ से एक साप्ताहिक अंग्रेज़ी समाचार पत्र - 'द मदरलैंड' छापना शुरू किया। इस अखबार ने असहयोग आंदोलन के बारे में प्रचार करने में मदद की। 1970 के दशक में, जयप्रकाश नारायण ने यहाँ से बिहार आंदोलन की शुरुआत की थी। कुछ समय पहले तक, इस आश्रम का प्रयोग बिहार कांग्रेस के मुख्यालय के रूप में किया जाता है।

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          राजेंद्र स्मृति संग्रहालय भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को समर्पित है। यह संग्रहालय बिहार विद्यापीठ के परिसर में स्थित है और इसमें दो अलग-अलग भवन हैं जिनकी संख्या 1 और 2 है।
          डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस विद्यापीठ के पहले प्राचार्य थे और संग्रहालय 1 मूल रूप से उनके निवास के रूप में निर्मित किया गया था। 1946 में दिल्ली स्थानांतरित होने तक वह इसी छोटे से घर में रहते थे। ऐसा कहा जाता है कि भारत के राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने के बाद, दिल्ली से लौटने पर वे इसी भवन में रहना चाहते थे।

          तथापि, उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा कारणों से एक और इमारत का निर्माण किया गया था, जिसे अब संग्रहालय 2 के नाम से जाना जाता है। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसी इमारत में 28 फरवरी 1963 को अपनी अंतिम साँस ली थी।
          राजेंद्र स्मृति संग्रहालय भारत के प्रथम राष्ट्रपति के जीवन में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। इस संग्रहालय में उनका भारत रत्न पदक, प्रमाण पत्र, कुंडली और अभिलेखीय तस्वीरों के साथ-साथ घरेलू बर्तन और अन्य कर्मकांड की वस्तुएँ मौजूद हैं। संग्रहालय में उपहारों का एक संग्रह भी है जो राजेंद्र प्रसाद को उनकी घरेलू और विदेशी यात्राओं के दौरान मिले थे।

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          इस स्वतंत्रता सेनानी और जनता पार्टी के संस्थापक  ने अपने अंतिम कुछ वर्ष पटना में बिताए थे।

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            पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

            11 अक्टूबर 1902 को सीताब दियारा में जन्मे जयप्रकाश नारायण एक गांधीवादी और समाजवादी नेता थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। जेपी के रूप में प्रसिद्ध, 1932 में उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नासिक के जेल में कैद किया गया था। दस साल बाद उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी के लिए हज़ारीबाग सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। नारायण को पाँच अन्य कैदियों के साथ हज़ारीबाग जेल की दीवार फांदकर सफलता से भागने के लिए जाना जाता है।
            उन्होंने महान समाज सुधारक विनोबा भावे के साथ सर्वोदय आंदोलन के लिए भी काम किया। स्वतंत्रता के बाद, जेपी ने राज्य सरकार के खिलाफ़ एक छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन धीरे-धीरे एक जन आंदोलन के रूप में विकसित हुआ जिसे बिहार आंदोलन का नाम मिला। 5 जून 1974 को पटना में एक रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। इससे उन्हें 'लोक नायक' की उपाधि मिली। कुछ साल बाद 1979 में जेपी का निधन हो गया।
            1965 में जयप्रकाश नारायण को लोक सेवा के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया और 1999 में उन्हें मरणोपरांत, भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।

            पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

            इस स्वतंत्रता सेनानी और मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य ने पटना के कई प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों की स्थापना की और उनको संरक्षण भी दिया।

              पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

              मौलाना मज़हरुल हक एक राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और वकील थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में, विशेष रूप से बिहार में, एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह मुस्लिम लीग के संस्थापक सचिव और होमरूल आंदोलन की बिहार इकाई के अध्यक्ष थे। पटना में रहते हुए मौलाना हक ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के प्रयास किए और सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिहार का दौरा करते हुए शांति का संदेश फैलाया। उनकी एक प्रसिद्ध कहावत है- "हम हिंदू हों या मुसलमान, एक ही कश्ती के मुसाफ़िर हैं, डूबेंगे तो साथ, उतरेंगे तो साथ"।
              मौलाना हक ने पटना में सदाकत आश्रम की स्थापना में भी गांधी जी की मदद करी थी। बाद में, जब गांधी जी ने बिहार में एक विद्यापीठ स्थापित करने का आह्वान किया तब मौलाना हक ने उसेs अपनी खुद की संपत्ति से बनवाया और उसके कुलपति के रूप में भी काम किया।
              हालाँकि मज़हरुल हक भारत को स्वतंत्र होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे लेकिन उनकी विरासत पटना में आज भी जिंदा है। उनकी स्मृति में 1998 में मौलाना मज़हरुल हक अरबी व  फारसी विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था और सदाकत आश्रम में उनके नाम पर एक पुस्तकालय भी है।

              पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

              पटना ने अठारहवीं शताब्दी में चित्रकला की अपनी एक विशिष्ट शैली को विकसित किया।

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                चित्रकला की यह स्थानीय शैली 18 वीं शताब्दी के मध्य में विकसित हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि मुग़लों के अत्याचार के डर से कुछ चित्रकार 17 वीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली से मुर्शिदाबाद चले गए। उनके वंशज आगे पटना चले गए। पटना में बसे इन अप्रवासी कलाकारों ने पटना कलम के नाम से प्रसिद्ध पटना चित्रकला शैली (पटना स्कूल ऑफ़ पेंटिंग) की स्थापना की। इसे मुग़ल लघु चित्रकला की शैली का विस्तार भी माना जाता है लेकिन स्थानीय परंपरा द्वारा इसे महत्वपूर्ण रूप से विकसित किया गया है।
                इस चित्रकला परंपरा की एक खास विशेषता है चिपकाने के लिए अरबी गोंद का उपयोग। मूल रंग स्वदेशी सामग्री जैसे नील, सिंदूर, जले हुए हाथीदाँत, जैसी चीज़ों से निकाले जाते हैं और सोने और चांदी के रंगद्रव्यों के साथ उपयोग किए जाते हैं। कलाकार जूट या बाँस के पौधों से खुद अपने कागज़ बनाते हैं। कभी-कभी चित्रों का निष्पादन अभ्रक (माइका) या हाथीदाँत पर भी किया जाता है। उनकी कूँचियाँ भी अनोखी किस्म की होती हैं, जो गिलहरी के पूँछ के बालों से बनती हैं। सामाजिक घटनाएँ, दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के दृश्य और अभिजात्य वर्ग के लोगों के रूपचित्र कुछ सामान्य चित्रण के विषयों मे आते हैं।

                19वीं शताब्दी में, यह चित्रकला परंपरा समकालीन, यूरोपीय शैली से प्रभावित थी क्योंकि स्थानीय कलाकारों को स्थानीय रूप से बसे यूरोपीय ग्राहकों का संरक्षण प्राप्त हुआ था। इसलिए इसे कंपनी पेंटिंग भी कहा जाता है।

                पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                पटना की एक प्रमुख शख़्सियत के लिए बनाया गया यह विशाल निवास 10 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।

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                  20वीं शताब्दी का यह गुंबददार महल प्रतिष्ठित वकील और बाद में न्यायाधीश बने, सर सुल्तान अहमद का आधिकारिक निवास था। सन् 1922 में 10 एकड़ ज़मीन पर निर्मित, यह सुंदर लाल और सफ़ेद इमारत मेहराब, मीनारों और छतरियों से सुसज्जित है। इस भव्य इमारत का निर्माण 3 लाख रुपये की लागत से किया गया था।
                  सुल्तान महल में महिलाओं के रहने के लिए एक अलग भाग या ज़नानखाना भी था। महल का सबसे दिलचस्प हिस्सा एक सुंदर और अलंकृत छत वाला बैठक का कमरा है जिसे सुनहरे पाउडर से रंगा गया है।

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                  विशाल संग्रहों वाले इस संग्रहालय का एक बहुत ही उपयुक्त स्थानीय उपनाम है।

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                    शहर का एक महत्वपूर्ण स्थल, पटना संग्रहालय स्थानीय रूप से जादू घर के नाम से जाना जाता है। कई प्राचीन वस्तुओं के संग्रहों से युक्त इस सुंदर इमारत को मुग़ल और राजपूत वास्तुकला के तत्वों को मिश्रित करके इंडो-सारासेनिक शैली में निर्मित किया गया है।
                    यह संग्रहालय 1917 में स्थापित किया गया था और शुरू में इसे पटना उच्च न्यायालय भवन के एक हिस्से से संचालित किया जाता था। 1928 में इसे बुद्ध मार्ग पर स्थित वर्तमान भवन में स्थानांतरित कर दिया गया था। संग्रहालय में रखे गए कुछ शुरुआती संग्रह बसारह (प्राचीन वैशाली), कुम्रहार, बुलंदी बाग और प्राचीन पाटलिपुत्र के अन्य स्थलों से प्राप्त पुरावशेषों से मिलकर बने थे। इस संग्रह में मथुरा और बक्सर की पकी मिट्टी (टेराकोटा) की मूर्तियाँ, ओडिशा में उदयगिरि और रत्नागिरी की मूर्तियाँ और कुर्किहार की कांस्य की मूर्तियाँ भी शामिल हैं।
                    पटना संग्रहालय भारत के सबसे पुराने और सबसे समृद्ध संग्रहालयों में से एक है। इस संग्रहालय में किसी समय दीदारगंज यक्षी, लोहानीपुर तीर्थंकर और वैशाली से बुद्ध के अवशेष जैसी अन्य प्रतिष्ठित वस्तुओं को रखा गया था। राज्य सरकार के हाल के निर्णय के अनुसार, सन् 1764 से पहले के सभी संग्रह, पटना में नवनिर्मित बिहार संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिए गए हैं। बुद्ध के अवशेषों को वैशाली में प्रस्तावित राज्य संग्रहालय में ले जाया जाएगा।

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                    यह विशिष्ट, स्तूप जैसी संरचना वास्तव में बहुत ही उपयोगी थी।

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                      गोलघर- एक ऊँची और भव्य संरचना है जो पटना में ब्रिटिश प्रशासन के समय का अवशेष है। कप्तान जॉन गार्स्टिन द्वारा अभिकल्पित और निर्मित किया गया गोलघर, सन् 1786 में तत्कालीन गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा अधिकृत किया गया था। गोलघर एक अन्न भंडार था, जिसे विशेष रूप से अनाज जमा करने के लिए बनाया गया था, इस उम्मीद में कि इससे सन् 1770 में पटना में पड़े अकाल जैसी स्थितियों को रोका जा सकेगा।
                      यद्यपि यह अन्न भंडार 18वीं शताब्दी में बनाया गया था, इसकी शंक्वाकार, स्तूप जैसी संरचना पुराने स्मारकों के समान है जो पटना के भूदृश्य को अलंकृत करते हैं। गोलघर में 145 सीढ़ियों वाली एक सर्पिल सीढ़ी इसके शीर्ष तक जाती है। शिखर पर एक सुराख है जिसके माध्यम से श्रमिक अन्न भंडार में अनाज जमा करते थे। वर्तमान में गोलघर के शिखर तक जाने से आपको पटना शहर का बहुत ही सुंदर और स्पष्ट दृश्य देखने  को मिलेगा।

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                      पटना के कलेक्ट्रेट से तीन विभिन्न सत्ताओं ने प्रशासन किया।

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                        पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                        ऊँची छतों एवं लटकते रौशनदानों से सजे हुए पटना कलेक्ट्रेट का निर्माण वेरीनिगडे ओसिंदीसके कपग्ने (वीओसी), या ‘डच ईस्ट इंडिया कंपनी’ द्वारा किया गया। डच लोगों ने इसका उपयोग व्यापार के लिए गोदाम के रूप में और एक अपील न्यायालय के रूप में किया। 
                        एक सामरिक बंदरगाह  होने   के   कारण   पटना  अफ़ीम और सज्जीखार (सॉल्ट पीटर)  के व्यापार का प्रमुख केंद्र बन  गया।  1666 में जब एक फ़्रांसीसी व्यापारी जौं बैपटिस्टे टैवर्नियर पटना आए तो उन्होंने एक डच  'घर' के बारे में बात की, जिसे जिसे डच व्यापारियों ने सज्जीखार, जो वहाँ स्थानीय रूप में उपलब्ध था, उसमें व्यापार करने के लिए स्थापित किया था । जिस इमारत  में आज पटना कलेक्ट्रेट स्थित है, वह परिसर भी किसी समय में डच लोगों की संपत्ति हुआ करता था । परंतु 1824 की ऐंग्लो डच संधि के तहत उसे ब्रिटिश लोगों को दे दिया गया था। 
                        1857 के बाद यह इमारत पटना शहर का कलेक्ट्रेट बन गई। ‘ग्रेट ट्रिग्नोमेट्रिकल सर्वे’ के दौरान यह सर्वेक्षण केंद्र के रूप में भी काम आई । डच और ब्रिटिश, दोनों ने इस परिसर में अपना योगदान दिया । परिसर की सबसे पुरानी इमारत है रिकॉर्ड रूम जो स्तंभावली युक्त अग्रभाग (कोलोनेड फसाड) और टस्कन स्तंभों से अलंकृत है । रिकॉर्ड रूम और ज़िला इंजीनियर का पुराना कार्यालय (ओल्ड डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर ऑफिस) डच काल की संरचनाएँ हैं। वहीं दूसरी ओर, ज़िला बोर्ड भवन ब्रिटिश काल के दौरान निर्मित किया गया था।

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                        नदी के किनारे स्थित यह महल, जो किसी समय में शाही परिवार का निवास हुआ करता था, आज किसी और कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है।

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                          दरभंगा हाउस, जिसे नवलखा महल के नाम से भी जाना जाता है, दरभंगा राजवंश के कई  महलों में से एक है। गंगा नदी के तट पर स्थित यह महल दो हिस्सों में बंटा हुआ है—रानी का भवनसमूह एवं राजा का भवनसमूह । परिसर के बीच में काली माता को समर्पित एक मंदिर है, जिसके इर्द-गिर्द ईमारत का निर्माण किया गया है।  
                          आज भी इमारत के कई हिस्सों में राजवंश का मछली का प्रतीक पाया जा सकता है। महाराजा रामेश्वर सिंह द्वारा यह महल पटना विश्वविद्यालय को दान किया गया था और आज इसका उपयोग कक्षाओं के लिए किया जाता है। इमारत में मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग स्थित हैं। यहाँ इतिहास, अर्थशास्त्र, दर्शनशास्र जैसे विभिन्न विषय एवं बंगाली और मराठी जैसी भाषाओँ को पढ़ाया जाता है।

                          पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                          यह ऐतिहासिक इमारत हमेशा से एक शैक्षणिक संस्थान नहीं थी।

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                          इस भव्य इमारत की कई  स्थापत्य विशेषताएँ हैं।

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                            राज भवन, जो  वर्तमान में  बिहार के राज्यपाल का आधिकारिक आवास  है, इतिहास में कई    उच्च पदाधिकारियों का आवास  रह चुका है। 
                            1911 के  दिल्ली  दरबार  के  बाद, बिहार  और  उड़ीसा  को एक अलग प्रदेश बनाया गया, जिसकी राजधानी पटना थी । राज  भवन  जैसी नवस्थापित इमारतें राजधानी  के  लिए  प्राधिकृत की  गईं। न्यूज़ीलैंड में जन्मे वास्तुकार जोसेफ़ फेयरिस मुन्निंग्स को राजभवन के निर्माण की ज़िम्मेदारी दी गई।
                            इसका  निर्माण  1912 में  शुरू  होकर 1917 में  समाप्त हुआ। 3 साल   तक   यह  बिहार और उड़ीसा के उपराज्यपाल का आधिकारिक आवास  रहा । परंतु  1920 से  1936 तक  इसे  बिहार  के  राज्यपाल का आवास  बना दिया गया।
                            राज  भवन  नवशास्त्रीय या नियोक्लास्सिकल शैली  में  बनी  हुई  तीन मंज़िला संरचना है। निचली मंजिल पर  कार्यालय और दरबार हॉल, पहली मंजिल पर स्वागत कक्ष और दूसरी मंजिल पर परिवार के सदस्यों के लिए कमरे हैं। यह  ईमारत  लिफ्ट , संगमरमर  की  चिमनी  तथा  विद्युत पंखों से  सज्जित  थी ।  उस समय बिजली से चलने वाले पंखे समृद्धि की निशानी माने जाते थे | राज  भवन  के  प्रमुख स्थापत्य आकर्षण निचली  मंज़िल  के लंबे ((आयोनिक) और  ऊपरी मंजिल के  कोरिंथियन खंभे हैं। मेहराबदार गलियारे तथा हवादार झरोखें इसे ठंडा रखने में मदद करते हैं।

                            पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                            प्राचीन यूनानी यात्री मेगस्थनीज़ ने वास्तुशिल्प की एक विशेषता के बारे में विस्तार से लिखा था जो बाद में बुलंदी बाग में खुदाई के दौरान मिली थी।

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                              कुम्रहार के पास स्थित एक और पुरातात्विक स्थल है जो पटना के ऐतिहासिक अतीत को बयां करता है। बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में खुदाई में मिले इस स्थल ने चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की लकड़ी की किलाबंदी की उपस्थिति का खुलासा किया। दिलचस्प बात यह है कि चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ ने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में किलाबंद पाटलिपुत्र के बारे में लिखा है।
                              यह अनावृत संरचना लकड़ी के तख्तों की दो समानांतर दीवारों से मिलकर बनी है जो लगभग बारह फीट की दूरी पर स्थित हैं। स्थल के निचले स्तर पर, क्षैतिज रूप से लगे साल की लकड़ी के लंबे तख्ते पाए गए हैं। उनके सिरे दीवार की सीधी धरनों (बीमों) पर लगे कोटरों (सॉकेट) से जुड़े हुए हैं। यह धरनें कंकड़ की 5 फीट गहरी नींव पर टिकी हुई हैं जो क्षैतिज बीमों के नीचे स्थित है। कटघरे के दोनों ओर नाले है। नाले की दीवारें भी लकड़ी की थीं और सबसे नीचे लकड़ी के तख्ते थे। लकड़ी के इस नाले की ऊँचाई छह फुट और चौड़ाई तीन फुट थी।
                              इस स्थल से मिले महत्वपूर्ण पुरावशेषों में पकी मिट्टी की मादा मूर्तियाँ हैं जिनके सर पर  दुर्लभ साफ़े और केशविन्यास देखे जा सकते हैं, और साथ ही साथ रथ का लकड़ी की तीलियों और धुरी वाला पहिया भी शामिल है। अन्य वस्तुएँ जैसे धातु की तलवारें, तीर के सिरे, चाकू, बालों के गहने, सिक्के और मिट्टी के बर्तन भी मिले हैं।

                              पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                              सर्वप्रथम भारतीय साम्राज्यों में से एक के संस्थापक ने पाटलिपुत्र में अपना दरबार आयोजित किया।

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                                पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                चंद्रगुप्त मौर्य ने 321 ईसा पूर्व में चाणक्य की मदद से पाटलिपुत्र में स्थित मगध साम्राज्य के शक्तिशाली नंद शासकों को हराकर मौर्य वंश की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत को यूनानियों से मुक्त कराने के लिए यूनानी क्षत्रप, सेल्यूकस से भी युद्ध किया।
                                चंद्रगुप्त मौर्य ने 297 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन किया। प्राचीन यूनानी लेखों में उन्हें सैंड्रोकोटस कहा जाता है। उन्होंने अफ़गानिस्तान से लेकर बिहार, ओडिशा, बंगाल और विंध्य क्षेत्र के परे, जैसे दक्कन पर विजय प्राप्त करके अपने साम्राज्य को मज़बूत किया। उन्होंने सत्ता के उच्च संकेंद्रण के साथ संरचित प्रशासन की एक विस्तृत प्रणाली की स्थापना की। मेगस्थनीज़ की पुस्तक 'इंडिका' और चाणक्य की 'अर्थशास्त्र' अपने समय के प्रशासन, समाज और अर्थव्यवस्था का वर्णन करती हैं।
                                कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य, जैन संत भद्रबाहु के साथ कर्नाटक गए थे। श्रवणबेलगोला की पहाड़ियों पर लिखी शिलालेखों में चंद्रगुप्त और भद्रबाहु के नामों का उल्लेख है। जैन कथा के अनुसार उनका निधन कर्नाटक में एक तपस्वी के रूप में हुआ।

                                पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                पटना, प्रसिद्ध सम्राट अशोक की राजधानी थी।

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                                  पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?
                                  पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                  मौर्य वंश के सम्राट अशोक को प्राचीन भारत का सबसे शक्तिशाली सम्राट माना जाता है । उन्हें लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को जीतने वाला पहला सम्राट भी माना जाता है। उन्होंने पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) को अपनी राजधानी बनाकर, वहाँ से साठ वर्षों तक शासन किया। अपने राज्याभिषेक के बाद पहले तेरह वर्षों के लिए उन्होंने बहुत बेरहमी के साथ अपने साम्राज्य का विस्तार किया लेकिन कलिंग युद्ध उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने और उसका प्रचार करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया।
                                  अशोक ने धम्म की शिक्षाओं के प्रसार के लिए शिलालेख जारी किए। ये शिलालेख, स्तंभों, गुफ़ाओं की दीवारों और, बड़े पत्थरों पर लिखे जाते थे जो शांति, अहिंसा और धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार करते थे।
                                  इन शिलालेखों में सबसे लोकप्रिय हैं अशोक स्तंभ। चुनार बलुआ पत्थर से बने ये एकाश्मक स्तंभ, जिनके शीर्ष पर पशुओं की आकृतियाँ होती थीं, अशोक द्वारा व्यापार मार्गों के महत्वपूर्ण स्थानों पर स्थापित किए गए थे।

                                  कहा जाता है कि उन्होंने साँची और सारनाथ सहित कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया था। उन्होंने सार्वजनिक कार्यों और सामाजिक कल्याण की भी शुरुआत की जिसमें वृक्षारोपण, चिकित्सा उपचार और जानवरों को सुरक्षा प्रदान करना शामिल था। कहा जाता है कि अशोक ने पाटलिपुत्र में दुनिया के पहले पशु चिकित्सालय की स्थापना की थी। अशोक के शासनकाल के दौरान पाटलिपुत्र का दौरा करने वाले चीनी यात्री फ़ा शिएन  ऐसे पशु चिकित्सालयों के बारे में लिखते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि भारत में पिंजरापोल नामक सामान्य रूप से पाए जाने वाले पशु आश्रय इन अस्पतालों से ही उत्पन्न हुए हैं।

                                  पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                  दुनियाभर के गणित और खगोल विज्ञान के सबसे महान विद्वानों में से एक, आर्यभट्ट पटना से थे। 

                                  पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                  गुप्त शासनकाल के सबसे लोकप्रिय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवी में कुसुमपुर (वर्तमान पटना) में हुआ था। उन्होंने प्राचीन मठ संस्थान नालंदा में शिक्षा प्राप्त करी और 23 साल की कम उम्र में ही उन्होंने खगोल विज्ञान पर, विश्व स्तर पर प्रशंसित ग्रंथ- 'आर्यभटिया' की रचना की। आर्य सिद्धांत एक और ऐसा कार्य है जो उनकी प्रतिभा को दर्शाता है।
                                  आर्यभट्ट ने इस सिद्धांत को प्रतिपादित किया कि पृथ्वी गोल है और अपनी धुरी पर घूमती है। उनकी सबसे प्रसिद्ध खोज है गणित में शून्य की। उन्होंने अपने कार्य आर्यभटिया में चंद्रमा और ग्रहों की चमक के बारे में भी लिखा है जो सूर्य की रौशनी से आती है। उन्हें ‘पाई’ (π) के अनुमानित मूल्य, स्थानीय मूल्य प्रणाली के निर्धारण और वर्ग और घनमूल प्राप्त करने के लिए नियमों की प्रणाली (एल्गोरिदम) के लिए भी श्रेय दिया जाता है।
                                  उनके द्वारा ये सभी वैज्ञानिक सिद्धांत प्रमुख आधुनिक उपकरणों की सहायता के बिना और पश्चिमी खगोलविदों और गणितज्ञों से बहुत पहले ही प्रतिपादित कर दिए गए थे।

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                                  शहर के बीचों-बीच स्थित यह हरा-भरा इलाका भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध साम्राज्यों में से एक से जुड़ा है।

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                                    कुम्रहार खुदाई में मिला एक पुरातात्विक स्थल है जहां प्राचीन शहर पाटलिपुत्र के अवशेष पाए गए हैं। इस स्थल पर सबसे महत्वपूर्ण संरचना मौर्य काल में निर्मित अस्सी-स्तंभों वाला सभामंडप है। ऐसा माना जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक के राज्य में पाटलिपुत्र में आयोजित तीसरे बौद्ध परिषद का सम्मेलन इसी सभामंडप में हुआ था।
                                    इस सभामंडप के स्तंभों को पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर दस समानांतर पंक्तियों में और उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर आठ समानांतर पंक्तियों के क्रम में निर्मित किया गया था। इसकी दक्षिण दिशा में स्तंभों वाला एक द्वारमंडप है। सभामंडप का फर्श और छत लकड़ी से बनाए गए थे और अखंड स्तंभ बादामी रंग के चुनार बलुआ पत्थरों से तराशे गए थे। इन स्तंभों को एक दूसरे से लगभग पंद्रह फुट के नियमित अंतराल पर बनाया गया है।
                                    स्तंभों वाले सभामंडप की दक्षिण-पश्चिम दिशा में गुप्त साम्राज्य काल की (चौथी-पाँचवी शताब्दी ई.) कुछ ईंट की संरचनाएं मिली हैं। यहां मिली मुहरों और मिट्टी के बर्तनों के आधार पर पुरातत्वविदों ने इस संरचना की पहचान ‘आरोग्य विहार’ - एक बौद्ध मठ-सह-अस्पताल के रूप में की है। इस मठ से प्राप्त प्राचीन वस्तुओं में तांबे के सिक्के, आभूषण, पत्थर, पकी मिट्टी के मोती, मुहरें और मुद्रण, पकी मिट्टी से बनी इंसानों और पशुओं की मूर्तियां और त्वचा को को रगड़ने की चीज़ें शामिल हैं।
                                    इन दो संरचनाओं के अतिरिक्त, अशोक के स्तंभों और बौद्ध रेलिंग जैसे शीर्षिका और अर्गला (क्रॉसबार) के टुकड़े भी इस स्थान पर पाए गए हैं।

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                                    इस ऐतिहासिक संरचना से बहुत सी कहानियाँ जुड़ी हैं।

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                                      अगम कुआँ- पटना के गुलज़ारबाग़ इलाके में स्थित एक प्राचीन कुएँ को दिया गया नाम है। 'अगम कुआँ' का शाब्दिक अर्थ है असीम कुआँ। इसका यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि स्थानीय लोगों का मानना था कि यह कुआँ पाताल या नर्क तक पहुँचता है और इसे कभी मापा नहीं जा सकता।
                                      यह कुआँ अक्सर अशोक के नर्क से जोड़ा जाता है जिसका उल्लेख ह्वेन-त्सांग ने अपने लेखों में किया है। ऐसा कहा जाता है कि इस कुएँ का उपयोग कैदियों को दण्डित करने के लिए किया जाता था और इसमें आग की कड़ाही तथा भट्टियाँ होती थीं। हालाँकि, वर्तमान में कुएँ का उपयोग किसी और कारण से किया जाता है और इसने एक पवित्र पहचान प्राप्त कर ली है। यह हिंदुओं द्वारा पवित्र माना जाता है जो इसमें धन और फूल चढ़ाते हैं और चेचक की बीमारी से सुरक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं। इस कुएँ के पास शीतला माता या शीतला देवी का मंदिर भी बनाया गया है। हालांकि यह कुआँ पूजनीय है, लेकिन इसके पानी का उपयोग पीने के लिए नहीं किया जाता है।

                                      यह लगभग 20 फीट व्यास वाला एक गोलाकार कुआँ है, जो नियमित अंतराल पर आठ मेहराबों वाली 10 फीट ऊँची ईंट की दीवार से घिरा है। इस कुएँ के असीम होने की स्थानीय मान्यता के विपरीत इसको घेरने वाली ईंट की दीवार 44 फीट की गहराई पर समाप्त हो जाती है और कहा जाता है कि इससे आगे इसकी लगभग 20 फ़ीट गहराई है।

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                                      इस मस्जिद का नाम उस सामग्री को संदर्भित करता है जिससे इसका निर्माण किया गया है।

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                                        इस मस्जिद का नाम इसके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री यानी पत्थर के कारण पड़ा है। सुल्तानगंज क्षेत्र में स्थित यह मस्जिद मुख्य रूप से पत्थर से बनी है और कहा जाता है कि इसे परवेज़ शाह के एक सेनापति महाबत खान ने बनवाया था। कहा जाता है कि सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में शहर पर शासन करने वाले मुग़ल सम्राट जहाँगीर के पुत्र परवेज़ शाह ने 1626 में इस मस्जिद के निर्माण द्वारा  अपने शासन का कीर्तिगान किया था।

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                                        पटना पवित्र गंगा नदी और उसकी दो सहायक नदियों के तट पर स्थित है।

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                                          पटना शहर की उत्तर दिशा की ओर गंगा नदी बहती है। शहर से कुछ ही दूरी पर  गंगा की सहायक नदियाँ जैसे सोन और गंडक उससे मिल जाती हैं। नदी के किनारे बसे पटना की सामरिक स्थिति इसे भारत के प्रमुख शहरों में से एक बनाती है।
                                          गंगा नदी, डॉल्फ़िन मछली की एक लुप्तप्राय प्रजाति का घर है - गंगा डॉल्फ़िन जिसे 2010 में भारत का राष्ट्रीय जलीय पशु घोषित किया गया था। इन डॉल्फ़िन मछलियों को स्थानीय रूप से 'सूंस' कहा जाता है, जिसका नाम उस ध्वनि पर आधारित है जो एक डॉल्फ़िन सांस लेने के वायुछिद्रों का इस्तेमाल करके सतह पर आने के दौरान निकालती है। गंगा नदी न केवल ऐसी डॉल्फ़िन बल्कि कई अन्य जलीय पक्षियों, मगरमच्छों और विभिन्न प्रकार की मछलियों का भी घर है।

                                          यह पवित्र नदी गंगा, पटना की जीवन रेखा है क्योंकि यह शहर और इसके निवासियों के लिए पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है।

                                          गंगा नदी पर बना यह पुल भारत का तीसरा सबसे लंबा पुल है।

                                          पटना का आकर्षक गांधी सेतु लगभग छह किलोमीटर लंबा है, जो इसे असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले भूपेन हज़ारिका पुल और अरुणाचल प्रदेश के सिसेरी पुल के बाद देश का तीसरा सबसे लंबा पुल बनाता है।
                                          इसका उद्घाटन 1982 में किया गया था। गंगा नदी पर बना यह पुल पटना शहर को तेज़ी से विकसित हो रहे शहर हाजीपुर से जोड़ता है, जो नदी के पार पटना से केवल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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                                          पटना ने एक सदियों पुरानी, ऐसी जटिल कला की परंपरा का संरक्षण किया है जिसके बारे में शायद कोई नहीं जानता।

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                                            टिकुली कला की उत्पत्ति करीब आठ सौ साल पहले पटना शहर में हुई थी। इसके कलाकार मुख्य रूप से गुरहट्टा, नून का चौराहा और मछरहट्टा जैसे मोहल्लों में रहते थे।
                                            टिकुली एक रंगीन बिंदी होती है जिसे अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए महिलाएँ अपनी भौंहों के बीच में लगाती हैं। ये बिंदियाँ व्यास में 1/8 से 2 इंच तक के आकार में आती हैं। वे विभिन्न सामग्रियों से बनती हैं और विविध डिज़ाइनों में आती हैं जो फैशन की प्रवृत्ति में बदलाव के अनुसार बदलते हैं। इन टिकुलियों का उपयोग टिकुली कला नामक एक अनूठी कला में किया जाता है।
                                            20वीं सदी के मध्य तक, टिकुली कला की रचना, सोने, चांदी और टूटे शीशे पर की जाती थी। लेकिन वर्तमान में इसे वांछित आकार में कटे हुए  मोटे गत्तों  के टुकड़ों पर बनाया जाता है। एक बार जब इन्हें घिस कर निखार दिया जाता है, तो उस पर पौराणिक कहानियाँ और नृत्य, महिलाओं और प्रकृति के चित्रणों को इस गत्ते पर उकेरा जाता है। इसके बाद  उन्हें तामचीनी (एनामेल) पेंट से चमकाया जाता है। आजकल टिकुली कला में प्लास्टिक का भी उपयोग किया जा रहा है क्योंकि वह ज़्यादा सस्ता पड़ता है, बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उपयुक्त होता है और कम समय लेता है। यद्यपि उत्पादन के पारंपरिक तरीकों को बढ़ावा देने और ऐसी कलाओं, जो वर्तमान में लुप्त होने की कगार पर हैं, उन्हें संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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                                            यह 'हाउस ऑफ़ द फादर' एक महत्वपूर्ण ईसाई धर्मस्थल है, जिसका उपनाम एक रोमन पादरी के नाम पर रखा गया है।

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                                            16वीं सदी की इस मस्जिद का नाम अप्रत्याशित है।

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                                              यह मस्जिद अशोक राजपथ रोड पर स्थित है और शायद पटना की दूसरी सबसे पुरानी धार्मिक संरचना है जो आज भी उपयोग में है। शहर की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक, बेगू हज्जाम की मस्जिद का निर्माण अलाउद्दीन शाह (गौर के सुल्तान) के एक अधिकारी खान-ए-आज़म मुअज़्ज़म नासिर खान द्वारा 1510 ई. में किया था। लेकिन बाद में इस मस्जिद को एक नाई - बेगू हज्जाम के नाम से जाना जाने लगा, जिसने 1646 ई. में इसकी मरम्मत की थी।
                                              मस्जिद के प्रांगण को मूल रूप से गौर से लाइ गई चमकती हुई टाइलों से बनाया गया था जो समय के साथ खराब हो गई हैं। इस मस्जिद की एक प्रमुख विशेषता मस्जिद के दक्षिण-पश्चिम की ओर सुंदर नक्काशीदार पत्थर का द्वार था जो आज टूटी-फूटी हालत में है।

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                                              ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अभिकर्ता द्वारा निर्मित, उन्नीसवीं सदी की इस मस्जिद का आधुनिक समय में एक असामान्य उपनाम है।

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                                                पटना शहर के शिकारपुर इलाके में स्थित इस खूबसूरत मस्जिद को मीर अशरफ़ ने 1773 में बनवाया था। मीर अशरफ़ ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय अभिकर्ता अर्थात गुमाश्ता थे।
                                                तीन गुंबद वाली यह मस्जिद चरम मुग़ल वास्तुकला का एक उदाहरण है। मस्जिद के प्रांगण के भीतर एक हौज़ और कुआँ है। हौज़ में घुमावदार दीवारों वाला एक विशिष्ट डिज़ाइन है, जो इसे एक फूल का आकार देता है। वर्तमान में यह हौज़ सूखा पड़ा है और वुज़ू के लिए पानी कुएँ से निकाला जाता है।
                                                आज इस मस्जिद में कबूतरों के बड़ी तादाद में आने के कारण इसे स्थानीय रूप से ‘कबूतरों का ढ़ेरा’ के नाम से जाना जाता है।
                                                मस्जिद के पास मीर अफ़ज़ल और मीर अशरफ़ की कब्रें हैं। उस समय के एक प्रमुख व्यापारी, मीर अफ़ज़ल को मीर अशरफ़ का पिता कहा जाता था जिनकी मृत्यु 1760 में हुई थी। 15 साल बाद, उनके बेटे को उनके बगल में दफ़ना दिया गया।

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                                                यह गुरुद्वारा सिक्ख समुदाय के सदस्यों के लिए सबसे पूजनीय तीर्थस्थलों में से एक है।

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                                                  पटना शहर के झाऊगंज क्षेत्र में स्थित, हरमंदिर साहिब बिहार में सिक्खों का सबसे पवित्र स्थल और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के बाद सबसे पूजनीय तीर्थस्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर पहले एक हवेली हुआ करती थी, जिसके मालिक ने गुरु नानक साहिब के आदेश पर सिक्ख धर्म अपना लिया और इसे एक धर्मशाला में बदल दिया, जहाँ से उन्होंने सिक्ख धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वही स्थान है जहाँ 1666 में सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था।

                                                  वर्तमान गुरुद्वारा और उसका प्रवेश द्वार संगमरमर से बना है। गुरुद्वारे की बेशकीमती संपत्ति गुरु ग्रंथ साहिब या बड़े साहिब और छबि साहिब हैं जो कि युवा गुरु गोबिंद सिंह जी की एक तैलीय रंगों से रचित चित्रकला है। गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी के हस्ताक्षर हैं, जो एक तीर के सिरे से किए गए हैं। 
                                                  अन्य संपत्तियों में गुरु का पालना, उनके हाथीदाँत से बने जूते, गुरु तेग बहादुर (गुरु गोबिंद सिंह जी के पिता) के चंदन की लकड़ी से बने जूते, बाग नखा खंजर, संत कबीर के लकड़ी के कताई करघे, और गुरु हरगोबिंद सिंह जी, गुरू तेग बहादुर जी, गुरु गोबिंद सिंह जी और कुछ अन्य गुरुओं के हुकुमनामों की एक किताब शामिल हैं।

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                                                  इस तीर्थ स्थल के साथ एक दिलचस्प पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।

                                                    पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?
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                                                    पटना का पटन देवी मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है। मूल रूप से इसे माँ सर्वानंद कारी पटनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है । इस मंदिर को पाटन नाम से देवी दुर्गा का निवास माना जाता है। कई लोग यह भी मानते हैं कि पटना का नाम इसी मंदिर से पड़ा है।

                                                    इस मंदिर की स्थापना के बारे में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब देवी सती के पिता ने उनके पति का अपमान किया, तो वह अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में कूद गईं। क्रोधित होकर, भगवान शिव ने देवी के शव को अपने हाथ में लेकर तांडव  करना शुरू कर दिया। भगवान शिव को शांत करने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिस स्थान पर उनकी दाहिनी जांघ गिरी, वहीं पटन देवी मंदिर की स्थापना की गई।
                                                    पटना में देवी को समर्पित दो मंदिर हैं, एक महाराजगंज क्षेत्र में जिसे बड़ी पटन देवी मंदिर कहा जाता है और दूसरा चौक क्षेत्र में जिसे छोटी पटन देवी मंदिर कहा जाता है।
                                                    कुछ लोगों का मानना है कि छोटी पटन देवी मंदिर बड़ी पटन देवी मंदिर से पहले का है। 1800 के दशक में पटना यात्रा पर आए वैज्ञानिक खोजकर्ता बुकानन ने बड़ी पटन देवी मंदिर की तुलना में छोटी पटन देवी मंदिर की लोकप्रियता के बारे में लिखा है। वर्तमान में ये दोनों मंदिर, विशेष रूप से नवरात्रि के महीने में बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करते हैं।

                                                    पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                                    मौर्य सम्राट के नाम पर बनी यह मुख्य सड़क पटना के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों को एक दूसरे से जोड़ती है।

                                                      पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                                      पटना की प्रमुख सड़कों में से एक- अशोक राजपथ का नाम मौर्य सम्राट अशोक के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने प्राचीन शहर पाटलिपुत्र पर शासन किया था। गंगा के किनारे चलने वाली यह सड़क गोलघर से शुरू होती है और दीदारगंज पर समाप्त होती है, जो एक बड़े क्षेत्र को समाविष्ट करती है। शैक्षणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों और किनारों पर बाजारों के साथ, अशोक राजपथ पटना की सबसे महत्वपूर्ण सड़कों में से एक है।
                                                      इस महत्वपूर्ण सड़क पर स्थित कुछ शैक्षणिक संस्थान, जैसे, पटना कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय, बिहार उर्दू अकादमी, पटना मेडिकल कॉलेज और अस्पताल, खुदा बख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी, बिहार यंग मेन्स इंस्टीट्यूट और बी. एन. कॉलेज स्थित हैं। सड़क पर स्थित अन्य ऐतिहासिक संरचनाओं में गोलघर, गांधी मैदान, सेंट जोसेफ कॉन्वेंट, पत्थर की मस्जिद और तख्त श्री हरमंदिर साहिब पटना शामिल हैं।

                                                      यह मध्यकालीन मस्जिद पटना के अफ़गान राजवंश के संबंधों की याद दिलाती है।

                                                        शेर शाह सूरी मस्जिद पटना के सबसे पुराने इस्लामिक पवित्र स्थलों में से एक है, जिसे भारतीय-अफ़गान वास्तुकला की शैली में बनाया गया है। हाज़ीगंज क्षेत्र में पूर्वी दरवाज़े के निकट स्थित यह मस्जिद  शेर शाह सूरी द्वारा बनाई गई थी, जिन्होंने 1541 ई. में प्रांतीय राजधानी को बिहारशरीफ़ से पटना स्थानांतरित कर दिया था। ईंट और पलस्तर से बनी इस मस्जिद में एक बड़ा केंद्रीय सभामंडप है जो चारों तरफ से गलियारों से घिरा है । केंद्रीय सभामंडप के ऊपर एक अर्ध-गोलाकार का गुंबद है और दोनों तरफ उसी आकार के थोड़े छोटे  गुंबद निर्मित हैं। बाहरी हिस्सा कई छोटे आलों से अलंकृत है।
                                                        मस्जिद के परिसर में मुहम्मद मुराद शहंशाह सूफ़ी की कब्र है, जिसकी तारीख  ए.एच. 99 है, जो 1543 ई. के बराबर है । यह तारीख स्थानीय मान्यता की पुष्टि करती है कि मस्जिद शेर शाह के शासनकाल (1540-45) में ही बनाई गई थी। मस्जिद के परिसर में कई अन्य मकबरे भी हैं जो बाद के समय में निर्मित हुए थे।

                                                        सिटी कैप्सूल

                                                        पटना की झलकें

                                                        पटना शहर में कौन सी नदी है? - patana shahar mein kaun see nadee hai?

                                                        पटना शहर में कौन सी नदी बहती है?

                                                        पटना गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। पटना गंगा के दक्षिणी तथा पुनपुन के उत्तरी तट पर स्थित है।

                                                        पटना का सबसे बड़ा नदी कौन सा है?

                                                        Notes: गंगा बिहार की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। बिहार की राजधानी पटना गंगा नदी के किनारे है।

                                                        बिहार का सबसे बड़ा शहर कौन सा है?

                                                        राज्य की ताजा औपबंधिक जनगणना रिपोर्ट 2011- पेपर टू के अनुसार राजधानी पटना राज्य का सबसे बड़ा शहर है और यहां राज्य में सबसे अधिक शहरी आबादी बसती है। राजधानी पटना की आबादी आबादी 25,10,093 लाख हो गई है और शिवहर सबसे कम शहरी आबादी वाला जिला है। राज्य के समस्तीपुर जिले में सबसे बड़ी ग्रामीण आबादी निवास करती है।

                                                        बिहार के प्रमुख नदी का क्या नाम है?

                                                        बिहार राज्य में गंगा नदी की प्रमुख नदियाँ घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, सोन नदी, पुनपुन, महानंदा एवं कर्मनासा है।