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Show परिचयगंगा के दक्षिणी तट पर स्थित पटना, बिहार राज्य की राजधानी है। भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक, पटना पहले पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। पटना शहर कई भारतीय साम्राज्यों की राजधानी रह चुका है। यूनानी लेखों में पाटलिपुत्र के प्राचीन शहर की तुलना फ़ारसी शहरों के वैभव से की गई है। वह स्थापत्यकला, मूर्तिकला, साहित्य, चित्रकला, व्यवसाय, धर्म एवं शिक्षा के क्षेत्रों में उत्कृष्ट था। इतिहासगंगा, सोन और पुनपुन नदियों के बीच बसे पटना के सामरिक स्थान ने शहर के राजनैतिक आधिपत्य को मज़बूत किया और उसे नदी व्यापार में सहायता दी । यह शहर शिशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग, कुषाण और गुप्त राजवंशों की राजधानी रहा । इन सब ने पटना पर अपनी छाप छोड़ी । राजनीति से दूर जाने के बाद भी पटना व्यवसाय का केंद्र बना रहा। मध्यकालीन और औपनिवेशिक काल के दौरान उसने पुन: राजनैतिक महत्त्व
प्राप्त किया । भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में भी पटना का सक्रिय योगदान रहा। अन्वेषण करें >> पटना का इतिहास
शहर के किस्सेपटना कई कथाओं से घिरा हुआ है । ये कथाएँ शहर के नाम और उसके प्राचीन उद्भव से संबंधित हैं। पटना कहानियों का एक खज़ाना है। पटना आए यात्रियों ने अपने लेखों में शहर के बारे में कई मनोहर बातें लिखीं हैं।
शहर की पुरातत्विक परतों में पाए गए सिक्के, मूर्तियाँ, मिट्टी के पात्र, मुद्राएँ और संरचनाएँ शहर के मनोहारी इतिहास के बारे में बताते हैं । शहर की कहानियाँपटना, गंगा नदी के दक्षिणी तट पर बसा है - वही विशाल नदी जिसने इस ऐतिहासिक शहर को नदीय व्यापार केंद्र का दर्जा दिया। नक्शे पर एक नज़र डालें, और उस आप कम्पास के चिह्न को देखेंगे जो इंगित करता है कि इस नक्शे को उत्तर-दक्षिण अभिविन्यास में पुन: व्यवस्थित किया गया है। आपको गुप्त-काल के लाल मिट्टी के कुछ बर्तन मिले हैं! यह शायद पानी रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता था, या तो रोजमर्रा के उपयोग के लिए, या पवित्र अनुष्ठानों के लिए। वैसे तो यह बर्तन सदियों पुराना है लेकिन आज भी कई भारतीय घरों में मिट्टी, पीतल, तांबे और यहाँ तक कि स्टील से बने ऐसे ही बर्तन मिलते हैं। यह लोटा अच्छे डिज़ाइन के महत्व का एक अच्छा अनुस्मारक है । यह बताता है कि जब तक कोई भी बर्तन उपयोगकर्ता के लिए अनुकूल है, और जब तक उसकी बनावट सटीक है तब तक यह समय की तीव्र लहरों को भी झेल सकता है। क्या आपने इस लोटे के लाल से रंग पर ध्यान दिया? पुरातत्वविद ऐसे मिट्टी के बर्तनों को लाल मिट्टी के बर्तन (रेड वेयर) कहते हैं। आपने प्राचीन मुद्रा खोद निकाली है! इन सिक्कों को धातु को पिघलाकर उसे एक पतले पत्र में पीटकर बनाया जाता था। फिर उस पत्र को सही वज़न और आकार के टुकड़ों में काटकर उन पर अलग-अलग आकृतियों की मुहर लगाई जाती थी। एक बार पूरा होने के बाद इसे पूरे साम्राज्य में मुद्रा के रूप में परिचालित कर किया जाता था। सिक्के बनाने की यह तकनीक, भारत में प्रसिद्ध एक अनूठी तकनीक है। आपने एक विश्व प्रसिद्ध बलुआ पत्थर की मूर्ति को खोज निकाला है! इस मूर्ति के साथ एक रोमांचक कहानी जुड़ी हुई है। 1917 में पटना के दीदारगंज के ग्रामीण निवासी एक साँप के बिल की तलाश में मिट्टी के एक टीले के आसपास जमा हुए थे। उन्हें साँप तो नहीं मिला पर उसकी जगह उन्होंने इस मूर्ति के आधार को खोज निकाला। थोड़ी और खुदाई की तो धीरे-धीरे इस मूर्ति का शरीर और सिर भी दिखने लगा और अंततः यह खूबसूरत मूर्ति दुनिया के सामने फिर से आई। क्या आपने ऐसे ही चमकने वाली अन्य मूर्तियाँ देखी हैं? यह चमक मौर्य काल की मूर्तियों की पहचान करने का एक अच्छा तरीका है! आपको पकी मिट्टी (टेराकोटा) की एक मुहर मिली है! इसका कारण इसके निचले आधे भाग पर लिखा हुआ यह अभिलेख है। यह संस्कृत में लिखा गया है- 'श्री-आरोग्यविहारे-भिसू-सम्घस्य' जिसका अर्थ है - आरोग्याश्रम मठ के मठवासी समुदाय की मुहर। इस मुहर ने पुरातत्वविदों को यह साबित करने में मदद की, कि पाटलिपुत्र में एक विशेष मठ था, जो एक आरोग्याश्रम के रूप में कार्य करता था जहाँ मरीज़ आराम करने और ठीक होने के लिए आ सकते थे। मुहर के ऊपर के आधे हिस्से में एक बोधि वृक्ष है (बौद्ध धर्म का एक महत्वपूर्ण प्रतीक), जो उस पेड़ को दर्शाता है जिसके नीचे गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। अन्वेषण करें >> अन्वेषण करें >> कुंजीशहर को नेविगेट करने के लिए पिनों पर क्लिक करें निर्मित विरासत गलियाँ और बाज़ार जीवित परंपराएँ प्राकृतिक धरोहर लोग, शख़्सियतें, संस्थान इस ऐतिहासिक इमारत में खान बहादुर खुदा बख्श के संग्रह मौजूद हैं।
खुदा बख्श पुस्तकालय दुर्लभ पुस्तकों और पांडुलिपियों का एक बहुमूल्य
खज़ाना है जो दुनिया भर से आगंतुकों को आकर्षित करता है। 1891 में यह पुस्तकालय खान बहादुर खुदा बख्श द्वारा जनता के लिए खोला गया था । यह पुस्तकालय 4,000 पांडुलिपियों के संग्रह के साथ शुरू हुआ, जिनमें से 1,400 खुदा बख्श को अपने पिता मौलवी मोहम्मद बख्श से विरासत में मिली थीं। बीसवीं शताब्दी की यह ऐतिहासिक ईमारत बिहार का शासन केंद्र है।
1917 में जोसेफ़ मुन्निंग्स द्वारा इंडो-सारासेनिक शैली में निर्मित और मार्टिन बर्न द्वारा निर्मित पुराना सचिवालय आज बिहार
सरकार का प्रशासनिक मुख्यालय है। इस ईमारत की ख़ास विशेषताएँ घंटा घर और बिहार के पहले मुख्यमंत्री, श्री कृष्ण सिन्हा की कांसे की मूर्ति हैं। यह कांस्य स्मारक स्वतंत्रता आंदोलन में पटना के महत्वपूर्ण योगदान की याद दिलाता है।
शहीद स्मारक कांस्य से बनाया गया एक आदमकद स्मारक है जो सन् 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पटना में
हुई घटनाओं का साक्षी है। पटना कभी भारत के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद से संबंधित था।
विवरण- 1921 में उन्होंने वकालत छोड़ दी और पटना के पास एक नेशनल कॉलेज खोला। महात्मा गांधी का अनुसरण करते हुए उन्होंने बिहार क्षेत्र में
विभिन्न आंदोलनों का नेतृत्व किया। उन्होंने बिहार में असहयोग आंदोलन के साथ-साथ 1930 में नमक सत्याग्रह भी शुरू किया। 1939 में सुभाष चंद्र बोस के इस्तीफ़े के बाद, उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। गंगा किनारे स्थित यह आश्रम एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय व्यक्ति का घर था।
पटना का सदाकत आश्रम भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र
प्रसाद का निवास स्थान था। इस आश्रम के परिसर में राजेंद्र प्रसाद स्मृति संग्रहालय और बिहार विद्यापीठ स्थित हैं।
राजेंद्र
स्मृति संग्रहालय भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद को समर्पित है। यह संग्रहालय बिहार विद्यापीठ के परिसर में स्थित है और इसमें दो अलग-अलग भवन हैं जिनकी संख्या 1 और 2 है। तथापि,
उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा कारणों से एक और इमारत का निर्माण किया गया था, जिसे अब संग्रहालय 2 के नाम से जाना जाता है। डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसी इमारत में 28 फरवरी 1963 को अपनी अंतिम साँस ली थी। इस स्वतंत्रता सेनानी और जनता पार्टी के संस्थापक ने अपने अंतिम कुछ वर्ष पटना में बिताए थे।
11 अक्टूबर 1902 को सीताब दियारा में जन्मे जयप्रकाश नारायण एक
गांधीवादी और समाजवादी नेता थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। जेपी के रूप में प्रसिद्ध, 1932 में उन्हें सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान नासिक के जेल में कैद किया गया था। दस साल बाद उन्हें भारत छोड़ो आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी के लिए हज़ारीबाग सेंट्रल जेल में डाल दिया गया। नारायण को पाँच अन्य कैदियों के साथ हज़ारीबाग जेल की दीवार फांदकर सफलता से भागने के लिए जाना जाता है। इस स्वतंत्रता सेनानी और मुस्लिम लीग के संस्थापक सदस्य ने पटना के कई प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों की स्थापना की और उनको संरक्षण भी दिया। मौलाना मज़हरुल हक एक
राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद् और वकील थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में, विशेष रूप से बिहार में, एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह मुस्लिम लीग के संस्थापक सचिव और होमरूल आंदोलन की बिहार इकाई के अध्यक्ष थे। पटना में रहते हुए मौलाना हक ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने के प्रयास किए और सांप्रदायिक दंगों के दौरान बिहार का दौरा करते हुए शांति का संदेश फैलाया। उनकी एक प्रसिद्ध कहावत है- "हम हिंदू हों या मुसलमान, एक ही कश्ती के
मुसाफ़िर हैं, डूबेंगे तो साथ, उतरेंगे तो साथ"। पटना ने अठारहवीं शताब्दी में चित्रकला की अपनी एक विशिष्ट शैली को विकसित किया।
चित्रकला की यह स्थानीय शैली 18 वीं शताब्दी के मध्य में विकसित हुई थी। ऐसा कहा जाता है कि
मुग़लों के अत्याचार के डर से कुछ चित्रकार 17 वीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली से मुर्शिदाबाद चले गए। उनके वंशज आगे पटना चले गए। पटना में बसे इन अप्रवासी कलाकारों ने पटना कलम के नाम से प्रसिद्ध पटना चित्रकला शैली (पटना स्कूल ऑफ़ पेंटिंग) की स्थापना की। इसे मुग़ल लघु चित्रकला की शैली का विस्तार भी माना जाता है लेकिन स्थानीय परंपरा द्वारा इसे महत्वपूर्ण रूप से विकसित किया गया है। 19वीं शताब्दी में, यह चित्रकला परंपरा समकालीन, यूरोपीय शैली से प्रभावित थी क्योंकि स्थानीय कलाकारों को स्थानीय रूप से बसे यूरोपीय ग्राहकों का संरक्षण प्राप्त हुआ था। इसलिए इसे कंपनी पेंटिंग भी कहा जाता है। पटना की एक प्रमुख शख़्सियत के लिए बनाया गया यह विशाल निवास 10 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।
20वीं शताब्दी का यह गुंबददार महल प्रतिष्ठित वकील और बाद में न्यायाधीश बने, सर सुल्तान अहमद का आधिकारिक निवास था। सन् 1922 में 10 एकड़ ज़मीन पर निर्मित, यह
सुंदर लाल और सफ़ेद इमारत मेहराब, मीनारों और छतरियों से सुसज्जित है। इस भव्य इमारत का निर्माण 3 लाख रुपये की लागत से किया गया था। विशाल संग्रहों वाले इस संग्रहालय का एक बहुत ही उपयुक्त स्थानीय उपनाम है।
शहर का एक महत्वपूर्ण स्थल, पटना संग्रहालय स्थानीय रूप से जादू घर के नाम से जाना जाता है। कई प्राचीन वस्तुओं के संग्रहों से युक्त इस सुंदर इमारत
को मुग़ल और राजपूत वास्तुकला के तत्वों को मिश्रित करके इंडो-सारासेनिक शैली में निर्मित किया गया है। यह विशिष्ट, स्तूप जैसी संरचना वास्तव में बहुत ही उपयोगी थी।
गोलघर- एक ऊँची और भव्य संरचना है जो पटना में ब्रिटिश प्रशासन के समय का अवशेष है। कप्तान जॉन गार्स्टिन द्वारा अभिकल्पित और निर्मित किया गया गोलघर, सन् 1786 में तत्कालीन गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्स द्वारा अधिकृत किया गया था। गोलघर एक अन्न भंडार था, जिसे विशेष रूप से अनाज जमा करने के लिए बनाया गया था, इस उम्मीद में कि
इससे सन् 1770 में पटना में पड़े अकाल जैसी स्थितियों को रोका जा सकेगा। पटना के कलेक्ट्रेट से तीन विभिन्न सत्ताओं ने प्रशासन किया।
ऊँची छतों एवं लटकते रौशनदानों से सजे हुए पटना कलेक्ट्रेट का निर्माण वेरीनिगडे ओसिंदीसके कपग्ने (वीओसी), या ‘डच ईस्ट इंडिया कंपनी’ द्वारा किया गया। डच लोगों ने इसका उपयोग व्यापार के लिए गोदाम के रूप में और एक अपील न्यायालय के रूप में किया। नदी के किनारे स्थित यह महल, जो किसी समय में शाही परिवार का निवास हुआ करता था, आज किसी और कार्य के लिए प्रयोग किया जाता है।
दरभंगा हाउस, जिसे नवलखा महल के नाम से भी जाना जाता है, दरभंगा राजवंश के कई महलों में से एक है। गंगा नदी के तट पर स्थित यह महल दो हिस्सों में बंटा हुआ है—रानी का भवनसमूह एवं राजा का भवनसमूह । परिसर के बीच में काली माता को समर्पित एक मंदिर है, जिसके इर्द-गिर्द ईमारत का निर्माण किया गया है। यह ऐतिहासिक इमारत हमेशा से एक शैक्षणिक संस्थान नहीं थी। इस भव्य इमारत की कई स्थापत्य विशेषताएँ हैं।
राज भवन, जो वर्तमान में बिहार के राज्यपाल
का आधिकारिक आवास है, इतिहास में कई उच्च पदाधिकारियों का आवास रह चुका है। प्राचीन यूनानी यात्री मेगस्थनीज़ ने वास्तुशिल्प की एक विशेषता के बारे में विस्तार से लिखा था जो बाद में बुलंदी बाग में खुदाई के दौरान मिली थी।
कुम्रहार के पास स्थित एक और पुरातात्विक स्थल है जो पटना के ऐतिहासिक अतीत को बयां करता है। बीसवीं शताब्दी
की शुरुआत में खुदाई में मिले इस स्थल ने चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की लकड़ी की किलाबंदी की उपस्थिति का खुलासा किया। दिलचस्प बात यह है कि चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज़ ने अपनी पुस्तक 'इंडिका' में किलाबंद पाटलिपुत्र के बारे में लिखा है। सर्वप्रथम भारतीय साम्राज्यों में से एक के संस्थापक ने पाटलिपुत्र में अपना दरबार आयोजित किया।
चंद्रगुप्त मौर्य ने 321 ईसा पूर्व में चाणक्य की मदद से पाटलिपुत्र में स्थित मगध साम्राज्य के शक्तिशाली नंद शासकों को हराकर मौर्य वंश की
स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत को यूनानियों से मुक्त कराने के लिए यूनानी क्षत्रप, सेल्यूकस से भी युद्ध किया। पटना, प्रसिद्ध सम्राट अशोक की राजधानी थी।
मौर्य वंश के सम्राट अशोक को प्राचीन भारत का सबसे शक्तिशाली सम्राट माना जाता है । उन्हें लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को जीतने वाला पहला सम्राट भी माना जाता है। उन्होंने पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) को अपनी राजधानी बनाकर, वहाँ से साठ वर्षों तक शासन किया। अपने राज्याभिषेक के बाद पहले तेरह
वर्षों के लिए उन्होंने बहुत बेरहमी के साथ अपने साम्राज्य का विस्तार किया लेकिन कलिंग युद्ध उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपनाने और उसका प्रचार करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। कहा जाता है कि उन्होंने साँची और सारनाथ सहित कई बौद्ध स्तूपों का निर्माण किया था। उन्होंने सार्वजनिक कार्यों और सामाजिक कल्याण की भी शुरुआत की जिसमें वृक्षारोपण, चिकित्सा उपचार और जानवरों को सुरक्षा प्रदान करना शामिल था। कहा जाता है कि अशोक ने पाटलिपुत्र में दुनिया के पहले पशु चिकित्सालय की स्थापना की थी। अशोक के शासनकाल के दौरान पाटलिपुत्र का दौरा करने वाले चीनी यात्री फ़ा शिएन ऐसे पशु चिकित्सालयों के बारे में लिखते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि भारत में पिंजरापोल नामक सामान्य रूप से पाए जाने वाले पशु आश्रय इन अस्पतालों से ही उत्पन्न हुए हैं। दुनियाभर के गणित और खगोल विज्ञान के सबसे महान विद्वानों में से एक, आर्यभट्ट पटना से थे। गुप्त शासनकाल के सबसे लोकप्रिय गणितज्ञ और खगोलशास्त्री, आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवी में कुसुमपुर (वर्तमान पटना) में हुआ था। उन्होंने प्राचीन मठ संस्थान नालंदा में शिक्षा प्राप्त करी और 23 साल की कम उम्र में ही उन्होंने खगोल विज्ञान पर, विश्व स्तर पर प्रशंसित ग्रंथ- 'आर्यभटिया' की रचना की। आर्य सिद्धांत एक और ऐसा कार्य है जो उनकी प्रतिभा को
दर्शाता है। शहर के बीचों-बीच स्थित यह हरा-भरा इलाका भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध साम्राज्यों में से एक से जुड़ा है।
कुम्रहार खुदाई में मिला
एक पुरातात्विक स्थल है जहां प्राचीन शहर पाटलिपुत्र के अवशेष पाए गए हैं। इस स्थल पर सबसे महत्वपूर्ण संरचना मौर्य काल में निर्मित अस्सी-स्तंभों वाला सभामंडप है। ऐसा माना जाता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक के राज्य में पाटलिपुत्र में आयोजित तीसरे बौद्ध परिषद का सम्मेलन इसी सभामंडप में हुआ था। इस ऐतिहासिक संरचना से बहुत सी कहानियाँ जुड़ी हैं।
अगम कुआँ- पटना के गुलज़ारबाग़ इलाके में स्थित एक प्राचीन कुएँ
को दिया गया नाम है। 'अगम कुआँ' का शाब्दिक अर्थ है असीम कुआँ। इसका यह नाम इसलिए रखा गया क्योंकि स्थानीय लोगों का मानना था कि यह कुआँ पाताल या नर्क तक पहुँचता है और इसे कभी मापा नहीं जा सकता। यह लगभग 20 फीट व्यास वाला एक गोलाकार कुआँ है, जो नियमित अंतराल पर आठ मेहराबों वाली 10 फीट ऊँची ईंट की दीवार से घिरा है। इस कुएँ के असीम होने की स्थानीय मान्यता के विपरीत इसको घेरने वाली ईंट की दीवार 44 फीट की गहराई पर समाप्त हो जाती है और कहा जाता है कि इससे आगे इसकी लगभग 20 फ़ीट गहराई है। इस मस्जिद का नाम उस सामग्री को संदर्भित करता है जिससे इसका निर्माण किया गया है।
इस मस्जिद का नाम इसके निर्माण में प्रयुक्त सामग्री यानी पत्थर के कारण पड़ा है। सुल्तानगंज क्षेत्र में स्थित यह मस्जिद मुख्य रूप से पत्थर से बनी है और कहा जाता है कि इसे परवेज़ शाह के एक सेनापति महाबत खान ने बनवाया था। कहा जाता है कि सत्रहवीं शताब्दी की शुरुआत में शहर पर शासन करने वाले मुग़ल सम्राट जहाँगीर के पुत्र परवेज़ शाह ने 1626 में इस मस्जिद के निर्माण द्वारा अपने शासन का कीर्तिगान किया था। पटना पवित्र गंगा नदी और उसकी दो सहायक नदियों के तट पर स्थित है।
पटना शहर की उत्तर दिशा की ओर
गंगा नदी बहती है। शहर से कुछ ही दूरी पर गंगा की सहायक नदियाँ जैसे सोन और गंडक उससे मिल जाती हैं। नदी के किनारे बसे पटना की सामरिक स्थिति इसे भारत के प्रमुख शहरों में से एक बनाती है। यह पवित्र नदी गंगा, पटना की जीवन रेखा है क्योंकि यह शहर और इसके निवासियों के लिए पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है। गंगा नदी पर बना यह पुल भारत का तीसरा सबसे लंबा पुल है। पटना का आकर्षक गांधी सेतु लगभग छह किलोमीटर लंबा है, जो इसे असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ने वाले भूपेन हज़ारिका पुल और अरुणाचल प्रदेश के सिसेरी पुल के बाद देश का तीसरा सबसे लंबा पुल बनाता है। पटना ने एक सदियों पुरानी, ऐसी जटिल कला की परंपरा का संरक्षण किया है जिसके बारे में शायद कोई नहीं जानता।
टिकुली कला की उत्पत्ति करीब आठ सौ साल पहले पटना शहर में हुई थी। इसके कलाकार मुख्य रूप से गुरहट्टा, नून का चौराहा और मछरहट्टा जैसे मोहल्लों
में रहते थे। यह 'हाउस ऑफ़ द फादर' एक महत्वपूर्ण ईसाई धर्मस्थल है, जिसका उपनाम एक रोमन पादरी के नाम पर रखा गया है। 16वीं सदी की इस मस्जिद का नाम अप्रत्याशित है।
यह मस्जिद अशोक राजपथ रोड पर स्थित है और शायद पटना की दूसरी सबसे पुरानी धार्मिक संरचना है जो आज भी उपयोग में है। शहर की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक,
बेगू हज्जाम की मस्जिद का निर्माण अलाउद्दीन शाह (गौर के सुल्तान) के एक अधिकारी खान-ए-आज़म मुअज़्ज़म नासिर खान द्वारा 1510 ई. में किया था। लेकिन बाद में इस मस्जिद को एक नाई - बेगू हज्जाम के नाम से जाना जाने लगा, जिसने 1646 ई. में इसकी मरम्मत की थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अभिकर्ता द्वारा निर्मित, उन्नीसवीं सदी की इस मस्जिद का आधुनिक समय में एक असामान्य उपनाम है।
पटना शहर के शिकारपुर इलाके में स्थित इस खूबसूरत मस्जिद को मीर अशरफ़ ने 1773 में बनवाया था। मीर अशरफ़ ईस्ट इंडिया कंपनी के
भारतीय अभिकर्ता अर्थात गुमाश्ता थे। यह गुरुद्वारा सिक्ख समुदाय के सदस्यों के लिए सबसे पूजनीय तीर्थस्थलों में से एक है।
पटना शहर के झाऊगंज क्षेत्र में स्थित, हरमंदिर साहिब बिहार में सिक्खों का सबसे पवित्र स्थल और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के बाद सबसे पूजनीय तीर्थस्थलों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर पहले एक हवेली हुआ करती थी, जिसके मालिक ने गुरु नानक साहिब के आदेश पर सिक्ख धर्म अपना लिया और इसे एक धर्मशाला में बदल दिया, जहाँ से उन्होंने सिक्ख धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वही स्थान है जहाँ 1666 में सिक्खों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ था। वर्तमान गुरुद्वारा और उसका प्रवेश द्वार संगमरमर से बना है। गुरुद्वारे की बेशकीमती संपत्ति गुरु ग्रंथ साहिब या बड़े साहिब और छबि साहिब हैं जो
कि युवा गुरु गोबिंद सिंह जी की एक तैलीय रंगों से रचित चित्रकला है। गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु गोबिंद सिंह जी के हस्ताक्षर हैं, जो एक तीर के सिरे से किए गए हैं। इस तीर्थ स्थल के साथ एक दिलचस्प पौराणिक कथा जुड़ी हुई है।
पटना का पटन देवी मंदिर भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित 51 शक्तिपीठों में से एक है। मूल रूप से इसे माँ सर्वानंद कारी पटनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है । इस मंदिर को पाटन नाम से देवी दुर्गा का निवास माना जाता है। कई लोग यह भी मानते हैं कि पटना का नाम इसी मंदिर से पड़ा है। इस मंदिर की स्थापना के बारे में बहुत सी कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब देवी सती के पिता ने उनके पति का अपमान किया, तो वह अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में कूद गईं। क्रोधित होकर, भगवान शिव ने देवी के शव को अपने हाथ में लेकर तांडव करना शुरू कर दिया। भगवान शिव को शांत करने के लिए, भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिस स्थान पर
उनकी दाहिनी जांघ गिरी, वहीं पटन देवी मंदिर की स्थापना की गई। मौर्य सम्राट के नाम पर बनी यह मुख्य सड़क पटना के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों को एक दूसरे से जोड़ती है। पटना की प्रमुख सड़कों में से एक- अशोक राजपथ का नाम मौर्य सम्राट अशोक के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने प्राचीन शहर पाटलिपुत्र पर शासन किया था। गंगा के किनारे चलने वाली यह सड़क गोलघर से शुरू होती है और दीदारगंज पर समाप्त होती है, जो एक बड़े क्षेत्र को समाविष्ट करती है। शैक्षणिक, ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों और किनारों पर बाजारों के साथ, अशोक राजपथ पटना की सबसे महत्वपूर्ण सड़कों में से एक
है। यह मध्यकालीन मस्जिद पटना के अफ़गान राजवंश के संबंधों की याद दिलाती है।
शेर शाह सूरी मस्जिद पटना के सबसे पुराने इस्लामिक पवित्र स्थलों में से एक है, जिसे भारतीय-अफ़गान वास्तुकला की शैली में बनाया गया
है। हाज़ीगंज क्षेत्र में पूर्वी दरवाज़े के निकट स्थित यह मस्जिद शेर शाह सूरी द्वारा बनाई गई थी, जिन्होंने 1541 ई. में प्रांतीय राजधानी को बिहारशरीफ़ से पटना स्थानांतरित कर दिया था। ईंट और पलस्तर से बनी इस मस्जिद में एक बड़ा केंद्रीय सभामंडप है जो चारों तरफ से गलियारों से घिरा है । केंद्रीय सभामंडप के ऊपर एक अर्ध-गोलाकार का गुंबद है और दोनों तरफ उसी आकार के थोड़े छोटे गुंबद निर्मित हैं। बाहरी हिस्सा कई छोटे आलों से अलंकृत है। सिटी कैप्सूलपटना की झलकेंपटना शहर में कौन सी नदी बहती है?पटना गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर अवस्थित है जहां पर गंगा घाघरा, सोन और गंडक जैसी सहायक नदियों से मिलती है। पटना गंगा के दक्षिणी तथा पुनपुन के उत्तरी तट पर स्थित है।
पटना का सबसे बड़ा नदी कौन सा है?Notes: गंगा बिहार की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। बिहार की राजधानी पटना गंगा नदी के किनारे है।
बिहार का सबसे बड़ा शहर कौन सा है?राज्य की ताजा औपबंधिक जनगणना रिपोर्ट 2011- पेपर टू के अनुसार राजधानी पटना राज्य का सबसे बड़ा शहर है और यहां राज्य में सबसे अधिक शहरी आबादी बसती है। राजधानी पटना की आबादी आबादी 25,10,093 लाख हो गई है और शिवहर सबसे कम शहरी आबादी वाला जिला है। राज्य के समस्तीपुर जिले में सबसे बड़ी ग्रामीण आबादी निवास करती है।
बिहार के प्रमुख नदी का क्या नाम है?बिहार राज्य में गंगा नदी की प्रमुख नदियाँ घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, सोन नदी, पुनपुन, महानंदा एवं कर्मनासा है।
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