पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिए - paryaavaran sanrakshan ke vibhinn upaayon ka varnan keejie

पर्यावरण से तात्पर्य किसी वस्तु के पास-पड़ोस से है; उदाहरण के लिए- पेड़-पौधों का पर्यावरण वे भौगोलिक परिस्थितियाँ हैं जो उनकी वृद्धि एवं विकास में सहायक होती हैं।

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पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले कारक

पर्यावरण को हानि पहुंचाने वाले अनेक कारक हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख घटकों का उल्लेख इस प्रकार है-

1. घरेलू अपमार्जकों का प्रयोग

आधुनिक युग में घर में प्रयोग किये जाने वाले बर्तन, कपड़ों, फर्नीचर आदि की सफाई के लिए विभिन्न प्रकार के पदार्थों का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त घर के जीव-जन्तुओं जैसे- मक्खी, मच्छर, खटमल, काॅकरोच, दीमक, चूहे, छिपकली आदि को नष्ट करने के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले पदार्थ- साबुन, सोडा, पेट्रोलियम उत्पाद, गैमेक्सीन, फिनायल आदि को उपयोग करने के बाद नालियों आदि के द्वारा नदियों, झीलों, तालाबों आदि के जल में मिला दिया जाता है जिससे जल में घुलित आक्सीजन विषाक्त हो जाता है फलतः अनेक जलीय जीव-जन्तु मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। जापान की घटना (1950) कि समुद्र तट में पारा (मरकरी) के रिसाव होने से वहाँ की मछलियाँ संक्रमित हो गयीं और जिसने इन मछलियों का भक्षण किया उनमें ‘मिनी माता’ रोग फैला। अतः यदि ये पदार्थ विघटित (नष्ट) नहीं होते तो खाद्य शृङ्खलाओं में मिल जाते हैं तथा विषाक्त रूप से पर्यावरण को क्षतिग्रस्त कर देते हैं।

2. कार्बन डाइ-आक्साइड की बढ़ती मात्रा

मुख्यतः वायुमण्डल में नाइट्रोजन, आक्सीजन तथा कार्बन डाइ-आक्साइड गैसें विद्यमान रहती हैं परन्तु मनुष्यों द्वारा कल-कारखानों, यातायात के साधनों तथा विभिन्न प्रकार के ईंधनों आदि के जलाने से वायुमण्डल में कार्बन डाइ-आक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है। वायुमण्डल में कार्बन डाइ-आक्साइड की वृद्धि से वायुमण्डल के तापमान में भी वृद्धि हो जाती है तथा आक्सीजन की कमी हो जाती है जिससे मनुष्य को शुद्ध वायु में साँस लेना कठिन होता जा रहा है। अतः कार्बन डाइ-आक्साइड की बढ़ती मात्रा पर्यावरण को क्षति पहुँचाने का मूलभूत कारण बनती जा रही है।

3. वायुमण्डल में विसर्जित होने वाले गैसीय पदार्थ

पर्यावरण को उद्योगों से बहुत ही क्षति होती है क्योंकि विभिन्न कल-कारखानों, मिलों, फैक्ट्रियों तथा अन्य औद्योगिक संस्थाओं से निकलने वाली राख, धुआँ, प्रवाहित होने वाले तरल पदार्थ, जल श्रोतों में छोड़े जाने वाले ठोस अपशिष्ट पदार्थ तथा वायुमण्डल में विसर्जित होने वाले गैसीय पदार्थ पर्यावरण को प्रदूषित कर जन-जीवन को प्रभावित कर देते हैं।

4. मल-मूत्र को नदियों में गिराया जाना

आधुनिक युग में प्रायः यह देखने को मिलता है कि बड़े-बड़े नगरों में, रिहायशी क्षेत्रों में मल-मूत्र को नालियों द्वारा बहाकर नदियों में गिरा दिया जाता है, जिससे उन नदियों का जल प्रदूषित हो जाता है। यही प्रदूषित जल अनेक बीमारियों का कारण बन जाता है तथा जल पीने योग्य नहीं रह जाता है। इस प्रकार जल का अत्यधिक मात्रा में प्रदूषित होना मनुष्यों, पशु-पक्षियों आदि के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

5. विषैली गैसे

पर्यावरण को क्षतिग्रस्त करने में परिवहन साधनों की अहम् भूमिका होती है क्योंकि परिवहन साधनों जैसे- मोटर-गाड़ी, रेलगाड़ी, जलयान, वायुयान आदि में कोयला, डीजल, पेट्रोल पदार्थों के जलने से अनेक प्रकार की विषैली गैसे निकलती हैं जो पर्यावरण में मिलती रहती हैं। उन गैसों में सल्फर-डाइ-आक्साइड, कार्बन डाइ-आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फ्यूरिक एसिड, कार्बन मोनो आक्साइड आदि गैसे मुख्य हैं जो पर्यावरण को इतना प्रदूषित कर रही हैं कि साँस लेना दुष्कर हो जाता है।

6. कीटाणुनाशक पदार्थों का प्रयोग

वर्तमान समय में घरों एवं कृषि क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के अवाञ्छनीय जीवों को नष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के रासायनिक पदार्थों को प्रयोग में लाया जाता है। उनमें से कुछ पदार्थों जैसे- मीथाक्सीक्लोर, फिनायल, पोटेशियम परमैगनेट, चूना, गन्धक चूर्ण, डी.डी.टी., सल्फर डाइ-आॅक्साइड, कपूर, टाॅक्साफीन, हेप्टाक्लोर आदि। इन पदार्थों को जिस प्रकार के कीटाणुओं को नष्ट करने के प्रयोग में लाया जाता है, उसी के आधार पर उनका नामकरण किया जाता है। कीटाणुओं को जो नष्ट करते हैं उन्हें कीटाणुनाशी, कवकों को नष्ट करने वाले पदार्थों को कवकनाशी तथा खर-पतवार को नष्ट करने वाले पदार्थों को अपतृणनाशी नाम से जाना जाता है। ये पदार्थ अवाञ्छित रूप से मिट्टी, वायु, जल आदि में एकत्र होकर उन स्थानों को प्रदूषित कर देते हैं। वहाँ से ये पौधों, फलों आदि द्वारा भोजन के रूप में जन्तुओं एवं मनुष्यों के शरीर में पहुँच जाते हैं जो अनेक बीमारियों का कारण बन जाते हैं। उपर्युक्त पदार्थों में जो देर से अपघटित होते हैं वे अधिक हानिकारक होते हैं। इन पदार्थों से कुछ ऐसे उपयोगी जन्तु नष्ट हो जाते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं जैसे-केंचुआ। इसे किसान मित्र कहा जाता है।

7. रेडियोधर्मी पदार्थ

परमाणु परीक्षणों एवं विस्फोटों से अनेक रेडियोधर्मी पदार्थ पर्यावरण में मिलकर उसको क्षति पहुँचाते हैं। उनका मानव स्वास्थ्य पर बड़ा ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इससे कैंसर एवं आनुवांशिक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। रेडियोधर्मी से जीन्स का उत्परिवर्तन हो जाने से सन्ततियाँ रोगग्रस्त या अपङ्ग पैदा होती हैं।

8. वनों की अन्धाधुन्ध कटाई 

वन प्रकृति द्वारा मनुष्यों को प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है कदाचित् ऋग्वेद में वनों को समस्त सुखों का स्रोत माना गया है किन्तु आज बढ़ती जनसङ्ख्या विविध आपूर्ति जैसे- खाद्यान्न, आवास, फर्नीचर तथा अन्य व्यावसायिक और व्यापारिक आपूर्ति के लिए मानव वनों की अन्धाधुन्ध कटाई करता जा रहा है। इस (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); प्रकार वनों के क्षेत्र में कमी आना तथा अनियमित कटाई को ही वन विनाश या वनोन्मूलन कहते हैं जो पर्यावरण को असन्तुलित करने अथवा उसके स्तर को गिराने का प्रमुख कारण है।

9. खनिज पदार्थों का खनन

खनिज खनन के अन्तर्गत बहुत बड़े क्षेत्र में भूमि को खोदा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप भूमि पर स्थित वन तो समाप्त होते ही हैं साथ में भूमि अनुपजाऊ होती है। भूस्खलनों में वृद्धि होती है तथा खनन से निकली धूल एवं गैस पर्यावरण को क्षतिग्रस्त कर देती है।

10. भूकम्प

भूकम्प एक प्राकृतिक घटना है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग में होने वाले उथल-पुथल, भूस्खलन, ज्वालामुखी की प्रक्रिया के कारण पृथ्वी कंपित होती है उसे भूकम्प कहते हैं। प्राकृतिक कारणों के अतिरिक्त मानवीय क्रियायें भी भूकम्प का कारण बनती हैं, जैसे- अत्यधिक उत्खनन, सुरंग, बाँध, निर्माण आदि अनेकों कार्यों में चट्टानों को तोड़ने में विस्फोटक सामग्री का उपयोग होने से भूकम्प आते हैं जो पर्यावरण को प्रदूषित कर देते हैं जिनका प्रभाव कई वर्षों तक चलता रहता है। (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});

11. बाढ़ एवं सूखा

यह देखने को मिलता है कि कभी अत्यधिक वर्षा के कारण नदियों में बाढ़ आ जाती है तो कभी बिना वर्षा के सूखा पड़ जाता है जिससे जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। सूखे की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब वर्षा सामान्य से (25 से 50 प्रतिशत) कम होती है। ऐसी दोनों स्थितियों में पृथ्वी पर अनेक ऐसे वायरस फैल जाते हैं जिससे पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है जिसके फलस्वरूप जीना दूभर हो जाता है।

12. पाॅलीथीन का बढ़ता प्रयोग

वर्तमान समय में पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले समस्त कारकों में पाॅलीथीन तथा प्लास्टिक का व्यापक उपयोग एक महत्त्वपूर्ण ज्वलन समस्या के रूप में उपस्थित हुआ है। अस्सी (80) के दशक तक हाट-बाजार में उपभोक्ता को वस्तुएँ कागज के लिफाफों अथवा हलके कपड़ों के थैलों में उपलब्ध हो जाती थीं लेकिन बढ़ती भौतिकता एवं शोखपन के कारण इनका स्थान पाॅलीथीन ने ले लिया। प्लास्टिक एवं पाॅलीथीन के प्रयोग के बाद इन्हें नाले-नालियों, नदियों, तालाबों, खुले स्थानों एवं उपजाऊ मृदा पर छोड़ दिया जाता है जिसके फलस्वरूप जल का बहाव रुक जाता है, जिससे गन्दगी फैलती है तथा अनेक प्रकार के हानिकारक जीवाणुओं की उत्पत्ति होती है। इस तरह पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है जो सम्पूर्ण जन्तुओं के लिए हानिकारक है।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय

पर्यावरण संरक्षण के उपाय (paryavaran sanrakshan ke upay) हम अपने पर्यावरण की सुरक्षा अग्रलिखित बिन्दुओं के माध्यम से कर सकते हैं -जैव विविधता को संरक्षण प्रदान करके जनता को जागरूक करना। जलीय संसाधनों की सुरक्षा के उपाय करके जनता को जागरूक करना। खनीज संसाधनों की सुरक्षा के उपाय करके जनता को जागरूक करना। वन विनाश की समस्या से निपटना, भूक्षरण, मरूस्थलीकरण तथा सूखे के बचावों के प्रस्तावों को जनता के समक्ष रखना। गरीबी की निवारण तथा पर्यावरणीय क्षति की रोकथाम करके जनता को जागरूक करना। विशाक्त धुआँ विसर्जित करने वाले वाहनों पर रोक लगाकर जनता को जागरूक करना। पर्यावरण ही सुरक्षा के विषय में जनता को मीटिंग करके बतलाया।समुद्र तथा सागरीय क्षेत्रों की रक्षा करना एवं जैवीकीय संसाधनों का उचित उपयोग एवं विकास के उपाय बताकर जनता को जागरूकता प्रदान करना। जैव तकनीकी तथा जहरीले अपशिष्टों के लिए पर्यावरण संतुलित प्रावधान की व्यवस्था करना। पर्यावरण जागरूकता को वैश्विक रूप से प्रदान करना। पर्यावरण से संबंधी आंदोलनों को मान्यता प्रदान करना। शिक्षा द्वारा जनचेतना पर बल देना। शिक्षा द्वारा पर्यावरण के अध्ययन की आवश्यकता पर बल देना। पर्यावरण जागरूकता सामाजिक और भौतिक विज्ञानों के अध्ययन पर विशेष बल देना। पर्यावरण सुरक्षा हेतु राज्य एवं केन्द्री स्तर पर विशेष प्रावधानों का निर्माण होना चाहिए। पर्यावरण सुरक्षा के संबंधित नियम कानूनों को सख्ती से लागू करना। समय-समय पर पर्यावरण सुरक्षा हेतु सेमिनार, कार्यशालाओं का आयोजन करना। पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित सूचना को सार्वजनिक जागरूकता के माध्यम से सामान्य जनता तक पहुंचाना। इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं के माध्यम से पर्यावरण की सुरक्षा की जा सकती है।

पर्यावरण संरक्षण के उपाय क्या है?

प्रकृति या पर्यावरण संरक्षण के सरल उपाय | Paryavaran ko Bachane ke upay.
घर की खाली जमीन, बालकनी, छत पर पौधे लगायें.
ऑर्गैनिक खाद, गोबर खाद या जैविक खाद का उपयोग करें.
कपड़े के बने झोले-थैले लेकर निकलें, पॉलिथीन-प्लास्टिक न लें.
खिड़की से पर्दे हटायें, दिन में सूरज की रोशनी से काम चलायें.

पर्यावरण संरक्षण से क्या आशय है पर्यावरण संरक्षण के उपाय बताइए?

पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें क्योंकि पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। अधिक जनसंख्या, जल साइंटिफिक इश्यूज, ओजोन डिप्लेशन, ग्लोबल वार्मिंग से लेकर वनों की कटाई, डिजर्टिफिकेशन और प्रदूषण तक, ये मानव जाति के लिए गंभीर खतरा हैं।

पर्यावरण संरक्षण क्या है इसे विस्तार से समझाइये?

“विज्ञान की वह शाखा जिसमें जीवों तथा उनके पर्यावरण के विभिन्न अवयवों अर्थात जैविक भौतक रसायनिक कारकों आदि के साथ जटिल पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।" "पर्यावरण किसी क्षेत्र विशेष की भौतिक व जैविक स्थिति या परिवेश जो किसी जीव या प्रजाति को प्रभावित करती हो । “

पर्यावरण के संरक्षण के लिए सबसे महत्वपूर्ण तरीके क्या हैं?

* घर-घर जाकर लोगों को पर्यावरण बचाने के प्रति जागरूक करना जिससे कि लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने से हमें प्रकृति की रक्षा करने में मदद मिलेगी। * 1,000 पौधे लगाने की बजाए 10 ही पौधे रोपकर उनकी विधिवत देखभाल करना। पौधारोपण करने की पहल करना, क्योंकि पौधे ही हमारे वातावरण को शुद्ध रख सकते हैं