प्रिंट मीडिया से क्या आशय है उसके विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए? - print meediya se kya aashay hai usake vibhinn prakaaron ka ullekh keejie?

प्रिंट मीडिया क्या हैं? भारत में प्रिंट मीडिया की उत्पत्ति, विकास, प्रमुख अधिनियम (Print media in Hindi) 

प्रिंट मीडिया से क्या आशय है उसके विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए? - print meediya se kya aashay hai usake vibhinn prakaaron ka ullekh keejie?

Contents

  • 1 प्रिंट मीडिया क्या हैं?
  • 2 भारत में प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र (प्रिंट मीडिया), शीर्ष 10 हिंदी दैनिक
  • 3  प्रिंट मीडिया की उत्पत्ति
  • 4 प्रिंट मीडिया का विकास
  • 5 भारत में मीडिया का विकास के चरण
  • 6 प्रिंट मीडिया में इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का आगमन
  • 7 क्या प्रिंट मीडिया का धीरे-धीरे पतन हो रहा है
  • 8 प्रिंट मीडिया से संबंधित प्रमुख अधिनियम
  • 9 मीडिया और समाजशास्त्र के बीच रिश्ते
  • 10 समाजशास्त्र, यह समाज और मानवीय व्यवहार का एक अध्ययन है इसलिए समाज में गहराई से संचार होता है।

प्रिंट मीडिया क्या हैं?

प्रिंट मीडिया का अर्थ है – यदि किसी सूचना या संदेश को लिखित माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने मे प्रिंट मीडिया का बहुत ही बड़ा योगदान है। प्रिंट मीडिया के माध्यम समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ है।

प्रिंट मीडिया, मीडिया का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसने इतिहास के सभी पहलुओं को दर्शाने में मदद की है। जर्मनी के गुटेनबर्ग में खुले पहले छापाखाना ने संचार के क्षेत्र में क्रांति ला दी। जब तक लोगों का परिचय इंटरनेट से नहीं हुआ था, तब तक प्रिंट मीडिया ही संचार का सर्वोत्तम माध्यम था। मैग्जीन, जर्नल, दैनिक अखबार को प्रिंट मीडिया के अंतर्गत रखा जाता है।

भारत में प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र (प्रिंट मीडिया), शीर्ष 10 हिंदी दैनिक

  1. दैनिक जागरण
  2. हिंदुस्तान
  3. दैनिक भास्कर
  4. राजस्थान पत्रिका
  5. अमर उजाला
  6. पत्रिका
  7. प्रभात खबर
  8. नव भारत टाइम्स
  9. हरि भूमि
  10. पंजाब केसरी

 प्रिंट मीडिया की उत्पत्ति

ऐतिहासिक रूप से प्रिंट मीडिया का जन्म राजाओं द्वारा लिखित घोषणा के प्रचार और प्रसार के साथ हुआ है, परंतु व्यवस्थित तौर पर प्रिंट मीडिया की उत्पत्ति छापाखाने के आविष्कार के साथ मानी जाती हैहालांकि पहले भी मीडिया की उपस्थिति थी, लेकिन पांडुलिपियों के साथ अधिक लोगों तक सूचना का प्रसार संभव नहीं था और लिखित सूचनाओं को मौखिक रूप से पढ़कर जनसमूह को सुनाने का प्रचलन था। प्राचीन काल में साधु-संतों धर्मप्रचारकों और राजाओं के जूतों का जगह जगह पर जाकर सूचनाएं प्रदान करना और प्राप्त करना इसी श्रेणी के अंतर्गत आता था।

विश्व में प्रिंट मीडिया की उत्पत्ति का श्रेय जर्मनी को है। जर्मनी के आसवर्ग टाउन में 1909 में प्रथम मुद्रित समाचार पत्र अविशरिलेशन आर्डर जीटुंग छपने के साथ ही प्रिंट मीडिया यानी समाचार पत्र प्रचलन शुरू हो गया।

प्रिंट मीडिया का विकास

1980 तक केवल जर्मनी के बरलिन शहर से ही 55 से अधिक समाचार पत्रों का प्रकाशन होने लगा। अमेरिका में भले ही प्रिंट मीडिया का अस्तित्व देर से आया हो, लगभग 17 से 4 ईसवी में, लेकिन वहां इसका विकास बहुत तेजी से हुआ था। 1830 में अमेरिका में छपने वाले समाचार पत्र और पत्रिकाओं की संख्या 12:00 सौ से 300 थी । प्रिंट मीडिया के तेजी से विकास का एक कारण विश्वयुद्ध का माहौल भी था, जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए और दूसरे देशों को प्रभावित करने के लिए विभिन्न देशों की सरकारें प्रिंट मीडिया का सहारा ले रही थी।

1984 ई. में अमेरिकी फिल्म ‘घोस्टबस्टर्स’ में एक सेक्रेटरी पात्र जब वैज्ञानिक से पूछती है कि ‘क्या वे पढना पसंद करते हैं? तब वैज्ञानिक पात्र कहता है ‘प्रिंट इज डेड’। इस पात्र का यह कहना उस समय हास्य का विषय था परंतु वर्तमान परिदृश्य में प्रिंट मीडिया के भविष्य पर सवाल खड़ा किया जा रहा है। 2008 ई. में जेफ्फ़ गोमेज़ ने ‘प्रिंट इज डेड’ पुस्तक लिखकर प्रिंट मीडिया के विलुप्तप्राय होने की अवधारणा को जन्म दिया तो रोस डावसन ने तो समाचारपत्रों के विलुप्त होने की समयावधि चार्ट ही बना डाला। इसके अनुसार 2017ई. में संयुक्त राज अमेरिका से लेकर 2040 ई. तक विश्व से समाचारपत्रों के प्रिंट संस्करण विलुप्त हो जाएंगे।

भारत में मीडिया का विकास के चरण

भारत में मीडिया का विकास तीन चरणों में हुआ। पहले दौर की नींव उन्नीसवीं सदी में उस समय पड़ी जब औपनिवेशिक आधुनिकता के संसर्ग और औपनिवेशिक हुकूमत के ख़िलाफ़ असंतोष की अंतर्विरोधी छाया में हमारे सार्वजनिक जीवन की रूपरेखा बन रही थी। इस प्रक्रिया के तहत मीडिया दो ध्रुवों में बँट गया। उसका एक हिस्सा औपनिवेशिक शासन का समर्थक निकला, और दूसरे हिस्से ने स्वतंत्रता का झण्डा बुलंद करने वालों का साथ दिया।

भारत समेत विश्वभर में क्रांतियों, आंदोलनों और अभियानों आदि में प्रिंट मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में पहला अखबार 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिक्की ने ‘बंगाल गजट’ के नाम से प्रकाशित किया था। इसके बाद तो भारत में संचार के क्षेत्र में क्रांति-सी आ गई और एक के बाद एक कई अखबार प्रकाशित हुए।

प्रिंट मीडिया में इंटरनेट और टेक्नोलॉजी का आगमन

इंटरनेट के परिचय से पूर्व लोगों के लिए अखबार ही जानकारी के स्रोत थे। 1826 में हिन्दी का पहला अखबार ‘उदंत मार्तंड’ आया। आजादी से पूर्व जितने भी अखबारों का प्रकाशन शुरू हुआ, उन सभी में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने की बात कही जाती थी। लोगों को ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के बारे में बताया जाता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अखबारों का पैटर्न बदला और अब अखबारों में सभी क्षेत्रों की खबरों को महत्व दिया जाने लगा। अखबार अब टू एजुकेट, टू इंटरटेन, टू इंफॉर्म के सिद्धांत पर चलने लगे।

2017 में अखबारों की विश्वसनीयता के पीछे सबसे बड़ा कारण है कि अखबारों ने टेक्नोलॉजी को अपना लिया। ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) ने 10 साल (2006-2016) तक की गणना करके आंकड़े जारी किए। आंकड़ों के अनुसार प्रिंट मीडिया का सर्कुलेशन 2006 में 3.91 करोड़ प्रतियां था, जो 2016 में बढ़कर 6.28 करोड़ प्रतियां हो गया यानी 2.37 करोड़ प्रतियां बढ़ीं। प्रिंट मीडिया के सर्कुलेशन की दर 37 प्रतिशत थी और लगभग 5,000 करोड़ का निवेश हुआ। अखबारों में सबसे ज्यादा वृद्धि उत्तरी क्षेत्र में 7.83 प्रतिशत के साथ देखने को मिली वहीं सबसे कम वृद्धि पूर्वी क्षेत्रों में 2.63 प्रतिशत के साथ देखने को मिली। सभी भाषाओं के अखबारों में हिन्दी भाषा में सर्वाधिक वृद्धि हुई।

क्या प्रिंट मीडिया का धीरे-धीरे पतन हो रहा है

आंकड़ों को देखने के बाद यह कोई भी नहीं कह सकता कि अखबारों का पतन हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक, वेब, सोशल, पैरालल आदि मीडिया उपलब्ध होने के बाद भी प्रिंट मीडिया के इतना पॉपुलर होने के पीछे कई कारण हैं जिनमें लोगों का शिक्षित होना सबसे बड़ा कारण है। जहां विकसित देशों में अखबारों के प्रति लोगों का रुझान घट रहा है वहीं भारत में इसके विपरीत प्रिंट मीडिया का प्रसार बढ़ रहा है।

2011 की जनगणना के अनुसार पता चलता है कि भारत में साक्षरता दर बढ़ी है 2001 की तुलना में। भारत में लोग शिक्षित हो रहे हैं, साथ ही साथ उनमें पढ़ने और जानने की उत्सुकता बढ़ रही है जिसके कारण भारत में प्रिंट मीडिया का प्रसार बढ़ रहा है।

निष्कर्ष: इस तरह यह कहा जा सकता है कि भारत में रोव डावसन की विलुप्तप्राय होने के समयकाल से डरने की जरुरत नहीं है. प्रिंट मीडिया का भविष्य अभी बेहतर है और इस मीडिया का भविष्य हिन्दी और क्षेत्रीय भाषाई पत्रकारिता पर निर्भर लगती है। आज भी लोग किसी भी खबर की सत्यता को जानने, विस्तृत जानकारी प्राप्त करने और जागरूकता बढ़ाने में अखबार का सहारा लेते हैं। प्रिंट मीडिया भले ही बहुत ही धीमा माध्यम हो, परंतु यह आज के कम्प्यूटर के युग में यह प्रगति कर रहा है। इन सब बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि प्रिंट मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है।

प्रिंट मीडिया से संबंधित प्रमुख अधिनियम

देश की आजादी को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक परिभाषित किया गया हैपरंतु अनुच्छेद 19(2) दो में प्रेस की आजादी को निम्न वर्गों के अंतर्गत परिसीमित किया गया है:-

  1. भारत की संप्रभुता, अखंडता, राज्यों की सुरक्षा और लोक कल्याण से संबंधित प्रेस अधिनियम।
  2. न्यायालय की अवमानना और मानहानि से संबंधित प्रेस को प्रभावित करने वाले अधिनियम।
  3. शिष्टाचार और सदाचार के हित में प्रेस को प्रभावित करने वाले अधिनियम।
  4. प्रेस सेवा संबंधी अधिनियम।
  5. प्रेस को संचालित करने वाले अधिनियम।
  6. प्रेस पर नियंत्रण रखने वाले अधिनियम।

निष्कर्ष: इस प्रकार भारतीय प्रिंट मीडिया को उसके प्रकाशन से लेकर वितरण और मूल्य निर्धारण तक अनेक अधिनियम ओ को ध्यान में रखना पड़ता है प्रकाशन सामग्री पर इतना अधिक ध्यान दिया जाता है कि कई बार सही बातों को भी छापने से पहले अखबारों को सोचना पड़ता है कि यह किसी अधिनियम का उल्लंघन तो नहीं है।

प्रिंट मीडिया के प्रकार:

  1. समाचार पत्र (Newspapers)
  2. समाचार पत्रिका (Newsletter)
  3. पत्रिका (Magazines)
  4. बैनर (Banners)
  5. बिलबोर्ड (Billboard and Posters)
  6. किताबें (Open books)
  7. विवरणिका (Brochure)
  8. फ़्लायर और लीफ़लेट (Flyers and leaflets)
  9. पत्र और पोस्टकार्ड (Letters and Postcards)

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मीडिया और समाजशास्त्र के बीच रिश्ते

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से संबंधित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, अनुभवजन्य विवेचन और विवेचनात्मक विश्लेषण की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है, अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है। समाजशास्त्र की विषयवस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले संपर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है।

सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। 20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया। इसके विपरीत, हाल के दशकों ने नये गणितीय रूप से कठोर पद्धतियों का उदय देखा है, जैसे सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण.

अपने संदेश को कुशलता से व्यक्त करने के लिए आपको पहले समाज को समझने की ज़रूरत है? अलग-अलग समुदायों का कार्य कैसे होता है? कैसे और क्यों लोग प्रतिक्रिया और कुछ चीजों को समाज में अलग तरीके से व्यवहार करते हैं? समाजशास्त्र के माध्यम से, हम इन सभी उत्तरों को जानते हैं और लोगों के साथ बेहतर संबंध बनाते हैं। समाजशास्त्र और संचार किसके लिए संदेश का मतलब है, किस सामग्री को बाहर रखा जाना चाहिए, किस माध्यम से संदेश दिया जाना चाहिए और समाज की प्रतिक्रिया या अन्य शब्दों में समाज का जवाब देने का प्रयास “कौन कहता है” किस चैनल के माध्यम से और किस प्रभाव के साथ?”

समाजशास्त्र, यह समाज और मानवीय व्यवहार का एक अध्ययन है इसलिए समाज में गहराई से संचार होता है।

लोगों पर प्रभाव डालने के लिए जन संचार किया जाता है इसमें लोगों को पढ़ने, समझने और प्रतिक्रिया करने के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं यह लोगों के लिए एक दूसरे के साथ और परिस्थितियों के साथ समाज में बातचीत करने के लिए बुनियादी ज्ञान निर्धारित करता है। समाज के कार्यों और ढांचे के ज्ञान पाने में सफल होने के बाद समाजशास्त्र लोगों की मनोवैज्ञानिकता को समझने में मदद करता है, आप समाज में आदर्श या उपयुक्त संदेश देने के लिए सक्षम होंगे। संचार की सामग्री को डिजाइन करने से लोगों के साथ संवाद करने के बाद संचार के परिदृश्य को समाजशास्त्र का विषय माना जाता है।

मीडिया की सोच अब महत्वपूर्ण सोच और गुणात्मक पद्धति के आधार पर विकसित की जा रही है। संचार को चेतना के मध्य भाग के साथ ही मानव गतिविधि के तत्व के रूप में देखा जा रहा है। साथ ही, यह समझने के लिए संचार का सामाजिक विश्लेषण आवश्यक है कि क्या मास मीडिया का सामाजिक ढांचा पर कोई प्रभाव है।

स्कूल से कार्यस्थल तक घर से कॉलेज तक हम दूसरों के साथ संवाद करने के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के अलग-अलग सामाजिक स्थिति, मानसिकता और सामाजिक कौशल होते हैं। इसलिए मीडिया समाज में काम आता है। जब आप घर पर होते हैं, तो आप अपने परिवार के सदस्य से बात करते हैं। जब आप काम पर होते हैं तो आप अधिक सावधान और औपचारिक और सामाजिक शिष्टाचार रहते हैं ताकि आप परेशानी में न पड़ जाएं।

आज के समय में, मास मीडिया लोगों के मानसिक जीवन पर ज़ोर देता है। इसलिए समाज के बारे में और अधिक जानने के लिए समाज के बीच तीव्र जिज्ञासा पैदा होती है और समाज पर इसका असर होता है। पूर्व में हमने अलग-अलग उदाहरण देखा है, जहां लोगों ने अपने संदेशों को व्यक्त करने और समाज में प्रचार स्थापित करने के लिए असमान रणनीति का इस्तेमाल किये थे।

सांस्कृतिक अध्ययन के समान ही, मीडिया अध्ययन एक अलग विषय है, जो समाजशास्त्र और अन्य सामाजिक-विज्ञान तथा मानविकी, विशेष रूप से साहित्यिक आलोचना और विवेचनात्मक सिद्धांत का सम्मिलन चाहता है। हालांकि उत्पादन प्रक्रिया या सुरूचिपूर्ण स्वरूपों की आलोचना की छूट समाजशास्त्रियों को नहीं है, अर्थात् सामाजिक घटकों का विश्लेषण, जैसे कि वैचारिक प्रभाव और दर्शकों की प्रतिक्रिया, सामाजिक सिद्धांत और पद्धति से ही पनपे हैं। इस प्रकार मीडिया का समाजशास्त्रस्वतः एक उप-विषय नहीं है, बल्कि मीडिया एक सामान्य और अक्सर अति-आवश्यक विषय है।

इस प्रकार, बेहतर संचार के लिए हर एक को समाज और मानव व्यवहार को समझना चाहिए क्योंकि मीडिया और समाजशास्त्र एक दूसरे के पूरक हैं।

मीडिया क्या है मीडिया का मानव जीवन और समाज में प्रभाव, करियर और रोजगार 

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Radio प्रिंट मीडिया से क्या आशय है उसके विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए?

महत्त्व वैश्वीकरण और उदारीकरण के युग में जनसंचार माध्यम महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाज में संचार माध्यमों की भूमिका मूल रूप से वह प्रकार्य है जो यह बताता है कि समाज संचार माध्यमों का उपयोग किस उद्देश्य के लिए करता है। समाज का संचार माध्यमों से संबंध सर्वसमावेशी आत्मवाचक (स्वआश्रित) और परिवर्ती दोनों प्रकार का है

प्रिंट मीडिया का क्या आशय है *?

प्रिंट मीडिया का अर्थ है – यदि किसी सूचना या संदेश को लिखित माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने मे प्रिंट मीडिया का बहुत ही बड़ा योगदान है। प्रिंट मीडिया के माध्यम समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ है। प्रिंट मीडिया, मीडिया का एक महत्वपूर्ण भाग है जिसने इतिहास के सभी पहलुओं को दर्शाने में मदद की है।

प्रिंट मीडिया कितने प्रकार के होते हैं?

प्रिंट मीडिया के प्रकार नीचे दिए गए हैं:.
समाचार पत्र (Newspapers).
समाचार पत्रिका (Newsletter).
पत्रिका (Magazines).
बैनर (Banners).
बिलबोर्ड (Billboard and Posters).
किताबें (Open books).
विवरणिका (Brochure).
फ़्लायर और लीफ़लेट (Flyers and leaflets).

प्रिंट मीडिया की क्या विशेषता है?

3.7 शब्दावली प्रिंट मीडिया आधुनिक जनसंचार में अनुवाद की भूमिका तकनीकी लेखन : प्रिंट मीडिया ऐसी तकनीकों का एक समूह है जिनका उपयोग प्रिंटेड ( मुद्रित ) रूप में सूचनाओं के प्रसारण और संकलन के लिए किया जाता है ।