प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली में व्याप्त अनियमितताएँ
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में देश में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की असफलता और इसके कारणों के साथ संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं। Show
संदर्भ:भारत में सर्दियों की शुरुआत के साथ ही राजधानी दिल्ली सहित देश के अन्य कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या कई गुना बढ़ जाती है। प्रदूषण में होने वाली इस वृद्धि के कारण हर वर्ष लाखों लोग श्वास संबंधी गंभीर बीमारियों के साथ मधुमेह और कैंसर के शिकार होते हैं। हाल के वर्षों में प्रदूषण में होने वाली वृद्धि के प्रति लोगों में जागरूकता बड़ी है और इससे निपटने के लिये सरकार तथा निजी क्षेत्र द्वारा कई बड़े प्रयास भी किये गए है। हालाँकि इस मामले में अधिकांशतः लोगों का ध्यान पराली जलाने की चुनौती तक सीमित रहता है, जबकि यह संकट एक अत्यधिक जटिल, बहु-अनुशासनात्मक मुद्दा है जिसमें उद्योग, बिजली उत्पादन, निर्माण, पराली जलाना और परिवहन सहित कई बड़े कारक शामिल हैं। इस समस्या से निपटने के लिये भारत में कई बड़े नियम, कानून और विशिष्ट एजेंसियाँ सक्रिय हैं, जो सैधांतिक रूप से बहुत प्रभावशाली लगते हैं परंतु ये प्रदूषण की समस्या से निपटने में उतने सफल नहीं दिखाई देते। यह ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक है कि प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रयासों का परिणाम इसके लिये बनाए गए नियमों के कार्यान्वयन पर निर्भर करता है। प्रदूषण की समस्या:
प्रदूषण से निपटने हेतु प्रमुख निकाय और प्रयास:
समस्याएँ:
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) की चुनौतियाँ:राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रमुख चुनौतियों को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है: 1. कर्मचारियों और संसाधनों की कमी: देश के अधिकांश राज्यों के ‘राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों’ में कर्मचारियों की भारी कमी देखी गई है। उदाहरण के लिये हरियाणा राज्य प्रदूषण बोर्ड में कर्मचारियों की कमी 70% तक पहुँच गई है, जिसका अर्थ है कि एक अधिकारी को किसी तकनीकी कर्मचारी के सहयोग के बिना ही पूरे एक ज़िले (कई मौकों पर दो ज़िले भी) में प्रदूषण नियंत्रण की ज़िम्मेदारी सौंप दी गई है। राज्य में NGT के निर्देश पर बने विशेष पर्यावरण निगरानी कार्य बल के लिये सिर्फ एक अधिकारी की नियुक्ति की गई है जिसे कई अन्य कार्यों की ज़िम्मेदारी भी दी गई है। इसी प्रकार हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास पूरे राज्य के लिये केवल चार प्रयोगशालाएँ हैं। 2. विशेषज्ञता का अभाव: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में नियुक्ति के बाद वैज्ञानिकों को किसी विशेष क्षेत्र (जैव चिकित्सा अपशिष्ट या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आदि) में विशेषज्ञता प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया जाता है। साथ ही उन्हें इसके लिये प्रोत्साहित किया जाता है और इसी आधार पर उनकी पदोन्नति होती है। जबकि SPCBs में एक ही अधिकारी को प्रदूषण की सभी श्रेणियों की ज़िम्मेदारी दे दी गई है, जिससे उनके लिये किसी एक क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करना बहुत ही कठिन हो जाता है।
3. विधिक कौशल का अभाव: अधिकांश SPCBs में प्रदूषण के आरोप में पकड़े गए लोगों या संस्थाओं पर मामले चलाने के लिये विधिक कौशल की भारी कमी देखी गई है। हालाँकि अधिकांश SPCBs के प्रधान कार्यालयों में एक कानूनी सेल होता है परंतु उनमें पूर्णकालिक सरकारी वकीलों की संख्या बहुत ही कम होती है। 4. वित्तीय चुनौतियाँ: देश के अधिकांश राज्यों में SPCBs के सामने व्यवस्थित वित्तीय प्रबंधन का अभाव एक बड़ी चुनौती बन गया है। उदाहरण के लिये हरियाणा के साथ ही देश के कई अन्य राज्यों में SPCBs की आय का एक बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा बजटीय आवंटन की बजाय बोर्ड द्वारा औद्योगिक परियोजनाओं के लिये जारी किये जाने वाले ‘अनापत्ति प्रमाणपत्र’ और ‘संचालित करने की सहमति’ के प्रमाणपत्र से प्राप्त शुल्क से आता है। 5. अतिरिक्त उत्तरदायित्व: राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों में से एक औद्योगिक क्षेत्रों में नियमित रूप से प्रदूषण का ऑनसाइट निरीक्षण करना है। आमतौर पर देखा गया है कि SPCBs के क्षेत्रीय कार्यालयों पर इस कार्य की ज़िम्मेदारी के अतिरिक्त कई अन्य उत्तरदायित्वों का भार डाल दिया जाता है जिनका प्रदूषण नियंत्रण से कोई संबंध नहीं है। उदाहरण के लिये हरियाणा राज्य प्रदूषण बोर्ड के दायरे में पोल्ट्री फार्म भी हैं।
6. समन्वय की कमी: राज्यों में विभिन्न विभागों के बीच समन्वय की कमी के कारण SPCBs की भूमिका मात्र एक सलाहकारी निकाय के रूप में रह जाती है, SPCBs द्वारा संबंधित विभागों को प्रदूषण नियंत्रण के संदर्भ में आवश्यक सुधार हेतु जानकारी देने के बावजूद इनका पालन नहीं होता है। प्रभाव:
आगे की राह:
निष्कर्ष:राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित देश के विभिन्न शहरों में प्रदूषण का बढ़ना, यहाँ रह रहे लोगों की जीवन-शैली, परिवहन, उद्योग, भौगोलिक स्थिति और कृषि से होने वाले प्रदूषण जैसे कई अनेक कारकों का एक जटिल मिश्रण है। प्रदूषण के कारण प्रतिवर्ष बीमारियों, प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण आदि के रूप में भारी क्षति होती है। प्रदूषण नियंत्रण के लिये हमारी दैनिक जीवन-शैली में बदलाव के साथ लक्षित योजनाओं का निर्माण और उनका प्रभावी क्रियान्वयन बहुत ही आवश्यक है। हालाँकि वर्तमान में वित्तीय चुनौतियों, अतिरिक्त कार्य का दबाव और अकुशल नेतृत्त्व वाले SPCBs के माध्यम से इन लक्ष्यों को प्राप्त करना अत्यंत कठिन होगा, ऐसे में SPCBs को सशक्त बनाने के लिये इनमें मानव संसाधन, विशेषज्ञ, आवश्यक तकनीकी उपकरणों आदि की कमियों को दूर किया जाना चाहिये। अभ्यास प्रश्न: देश में बढ़ते वायु प्रदूषण के प्रमुख कारकों और इनके दुष्प्रभावों का संक्षिप्त विवरण दीजिये। इसके साथ ही पिछले दो दशकों के विभिन्न प्रयासों के बावजूद वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में सरकार की असफलता के प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिये। प्रदूषण की रोकथाम में मानव की भूमिका क्या है?प्रदूषण की रोकथाम में सामान्य व्यक्ति की भूमिका निम्न प्रकार से हो सकती है- 1. अपने को प्रकृति का अभिन्न अंग समझकर जीवन के आधारभूत तत्वो जैसे भूमि, जल तथा वायु की पवित्रता बनाए रखकर। 2.
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए एक व्यक्ति के रूप में आप क्या करेंगे?बिजली या बैटरी से चालित वाहनों के प्रयोग पर बल देंगे। उद्योगों की चिमनी हवा में काफी ऊपर हो एवं इसमें फिल्टर लगा होना चाहिए, इस सन्दर्भ में लोगों के माध्यम से प्रयास करेंगे। उद्योगों एवं परिष्करणशालाओं को आबादी से दूर स्थापित करवाने का प्रयास करेंगे। वनरोपण के प्रति लोगों को जागरूक एवं प्रोत्साहित करेंगे।
पर्यावरण प्रदूषण से बचने के लिए व्यक्ति की क्या भूमिका है?पर्यावरण प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए सर्वप्रथम जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगानी होगी, ताकि आवास के लिए वनों की कटाई न हो। खाद्य पदार्थों के उत्पादन में वृद्धि हो, इसके लिए रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के स्थान पर जैविक खाद का इस्तेमाल करना होगा।
पर्यावरण में प्रदूषण को कैसे रोक सकते हैं अपने विचार?संबंधित लेख: पर्यावरण प्रदूषण : आपबीती. मानव जनसंख्या वृद्धि को रोकने का प्रयास करना चाहिए।. नागरिकों या आम जनता को वायु प्रदूषण के कुप्रभावों का ज्ञान कराना चाहिए।. धुम्रपान पर नियंत्रण लगा देना चाहिए।. कारखानों के चिमनियों की ऊंचाई अधिक रखना चाहिए।. कारखानों के चिमनियों में फिल्टरों का उपयोग करना चाहिए।. |