प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं चाहे वह हास्य पद ही क्यों न हो? - pratishtha ke anek roop hote hain chaahe vah haasy pad hee kyon na ho?

Show

Question

आशय स्पष्ट कीजिए -(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

Solution

(क) आज का समाज उपभोक्तावादी समाज है जो विज्ञापन से प्रभावित हो रहा है। आज लोग केवल अपनी सुख-सुविधा के लिए उत्पाद नहीं खरीदते बल्कि उत्पाद खरीदने के पीछे उनका मकसद समाज में अपनी हैसियत और प्रतिष्ठा को कायम रखना है। उदाहरण के लिए पहले केवल तेल-साबुन तथा क्रीम से हमारा काम चल जाता था लेकिन आज प्रतिष्ठित बनने की होड़ में लोग सबसे कीमती साबुन, फेस-वॉश का इस्तेमाल कर रहे हैं।(ख) उपभोक्तावाद के बढ़ते प्रभाव ने मनुष्य को सुविधाभोगी बना दिया। परन्तु आज सुख-सुविधा का दायरा बढ़कर, समाज में प्रतिष्ठिता बढ़ाने का साधन बन गया है। स्वयं को समाज में प्रतिष्ठित बनाने के लिए लोग कभी-कभी हँसी के पात्र बन जाते हैं। यूरोप के कुछ देशों में मरने से पहले लोग अपनी कब्र के आस-पास सदा हरी घास, मन चाहे फूल लगवाने के लिए पैसे देते हैं। भारत में भी यह संभव हो सकता है। ऐसी उपभोक्तावादी इच्छा हास्यापद ही है।

Q1.

लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?

View Answer Page No : 38

Q2.

आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

View Answer Page No : 38

Q3.

लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?

View Answer Page No : 38

Q4.

आशय स्पष्ट कीजिए- (क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं। (ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

View Answer Page No : 39

प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो ।

← Prev Question Next Question →

0 votes

146 views

asked Sep 12 in Hindi by rahmann45689 (82.2k points)
closed Sep 13 by rahmann45689

आशय स्पष्ट कीजिए ।

प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो ।

  • उपभोक्तावाद की संस्कृति
  • class-9

Share It On

1 Answer

+1 vote

answered Sep 12 by sanyasingh3247 (86.0k points)
selected Sep 13 by rahmann45689

Best answer

लोग समाज में अपनी हैसियत व प्रतिष्ठा दिखाने के लिए महँगी से महँगी वस्तुएँ भी खरीद लेते हैं । ये यह देखते नहीं कि खरीदी हुई वस्तु उन पर अँच रही है या नहीं । इस कारण कई बार वे उपहास का कारण भी बनते हैं । पश्चिम के लोग मरने से पूर्व अपने अंतिम संस्कार का प्रबंध कर लेते है जो एकदम हास्यास्पद बात है।

← Prev Question Next Question →

Find MCQs & Mock Test

  1. Free JEE Main Mock Test
  2. Free NEET Mock Test
  3. Class 12 Chapterwise MCQ Test
  4. Class 11 Chapterwise Practice Test
  5. Class 10 Chapterwise MCQ Test
  6. Class 9 Chapterwise MCQ Test
  7. Class 8 Chapterwise MCQ Test
  8. Class 7 Chapterwise MCQ Test

0 votes

1 answer

1. साबुन के विज्ञापन में गंगाजल शब्द को क्यों जोड़ा गया है ? 2. सामाजिक प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए संभ्रांत महिलाएँ क्या करती हैं ?

asked Sep 12 in Hindi by rahmann45689 (82.2k points)

  • उपभोक्तावाद की संस्कृति
  • class-9

0 votes

1 answer

उपभोक्तावादी संस्कृति के अनुसार प्रतिष्ठा चिल्ल क्या हैं ?

asked Sep 12 in Hindi by rahmann45689 (82.2k points)

  • उपभोक्तावाद की संस्कृति
  • class-9

0 votes

1 answer

कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित

asked Sep 12 in Hindi by rahmann45689 (82.2k points)

  • उपभोक्तावाद की संस्कृति
  • class-9

0 votes

1 answer

हम जाने-अनजाने उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।

asked Sep 12 in Hindi by rahmann45689 (82.2k points)

  • उपभोक्तावाद की संस्कृति
  • class-9

0 votes

1 answer

जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं ।

asked Sep 12 in Hindi by rahmann45689 (82.2k points)

  • उपभोक्तावाद की संस्कृति
  • class-9

Welcome to Sarthaks eConnect: A unique platform where students can interact with teachers/experts/students to get solutions to their queries. Students (upto class 10+2) preparing for All Government Exams, CBSE Board Exam, ICSE Board Exam, State Board Exam, JEE (Mains+Advance) and NEET can ask questions from any subject and get quick answers by subject teachers/ experts/mentors/students.

Categories

  • All categories
  • JEE (28.1k)
  • NEET (8.5k)
  • Science (743k)
  • Mathematics (241k)
  • Statistics (2.8k)
  • Environmental Science (3.6k)
  • Biotechnology (539)
  • Social Science (110k)
  • Commerce (62.2k)
  • Electronics (3.7k)
  • Computer (15.8k)
  • Artificial Intelligence (AI) (1.4k)
  • Information Technology (13.2k)
  • Programming (8.7k)
  • Political Science (6.4k)
  • Home Science (4.5k)
  • Psychology (3.3k)
  • Sociology (5.5k)
  • English (57.8k)
  • Hindi (22.4k)
  • Aptitude (23.7k)
  • Reasoning (14.6k)
  • GK (25.7k)
  • Olympiad (527)
  • Skill Tips (73)
  • CBSE (712)
  • RBSE (49.1k)
  • General (57.8k)
  • MSBSHSE (1.8k)
  • Tamilnadu Board (59.3k)
  • Kerala Board (24.5k)

...

प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो class 9?

परन्तु आज सुख-सुविधा का दायरा बढ़कर, समाज में प्रतिष्ठिता बढ़ाने का साधन बन गया है। स्वयं को समाज में प्रतिष्ठित बनाने के लिए लोग कभी-कभी हँसी के पात्र बन जाते हैं। यूरोप के कुछ देशों में मरने से पहले लोग अपनी कब्र के आस-पास सदा हरी घास, मन चाहे फूल लगवाने के लिए पैसे देते हैं। भारत में भी यह संभव हो सकता है।

प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो रचना और अभिव्यक्ति?

आशय स्पष्ट कीजिए- (क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं। (ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो। 5. कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.

लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा गया है?

गाँधी जी चाहते थे कि हम भारतीय अपनी बुनियाद पर कायम रहें, अर्थात् अपनी संस्कृति को न त्यागें। परंतु आज उपभोक्तावादी संस्कृति के नाम पर हम अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी मिटाते जा रहे हैं। इसलिए उन्होंने उपभोक्तावादी संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है।

लेखक के अनुसार जीवन में सुख से क्या अभिप्राय है?

लेखक के अनुसार, जीवन में 'सुख' का अभिप्राय केवल उपभोग-सुख नहीं है। परन्तु आजकल लोग केवल उपभोग के साधनों को भोगने को ही 'सुख' कहने लगे है। विभिन्न प्रकार के मानसिक, शारीरिक तथा सूक्ष्म आराम भी 'सुख' कहलाते हैं।