पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए? - poorn pratiyogita baajaar kya hai isakee pramukh visheshataen likhie?

पूर्ण प्रतियोगिता की कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

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पूर्ण प्रतियोगिता के लिए अनेक स्थितियों का होना आवश्यक है।

i. कई खरीदार और विक्रेता होने चाहिए। ऐसी स्थिति में, एक भी खरीदार या आपूर्तिकर्ता कीमत को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

यदि एक फर्म अपने उत्पादन में वृद्धि करती है, तो वह उद्योग की आपूर्ति में जो परिवर्तन करेगी, वह कीमत पर कोई प्रभाव डालने के लिए पर्याप्त नहीं होगा। इसी तरह, अगर एक खरीदार ने उत्पाद खरीदना बंद कर दिया, तो उत्पाद की कीमत पर असर डालने के लिए मांग में गिरावट बहुत कम होगी। वास्तव में कीमत बाजार की मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती है और एक व्यक्तिगत फर्म एक कीमत लेने वाली होती है, जो कीमत को प्रभावित करने में असमर्थ होती है।

ii. बाजार संकेंद्रण का स्तर कम होना चाहिए। इसका मतलब है कि प्रत्येक फर्म के पास बाजार का एक छोटा हिस्सा होता है। यह पिछली स्थिति से चलता है, क्योंकि यदि उद्योग में कई फर्म हैं, तो हर एक कुल बाजार आपूर्ति में केवल एक छोटी राशि का योगदान करेगी।

iii. बाजार में प्रवेश और निकास मुक्त होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए जिससे फर्मों के लिए उस उद्योग में प्रवेश करना या छोड़ना मुश्किल हो जो उत्पाद का उत्पादन शुरू करना या बंद करना है।

iv. उत्पाद सजातीय होना चाहिए, जो समान है। कोई ब्रांडिंग या विज्ञापन नहीं है। प्रस्ताव पर समान उत्पादों के साथ, उपभोक्ताओं को उत्पाद के स्रोत के बारे में चिंता नहीं होगी

v. खरीदारों और विक्रेताओं को पूरी तरह से सूचित किया जाना चाहिए। खरीदारों को पता चल जाएगा कि आपूर्तिकर्ता कहां हैं और उनके उत्पादों के बारे में। विक्रेताओं को प्रतिद्वंद्वी की उत्पादन तकनीकों की गतिविधियों, संसाधनों की उपलब्धता और कीमत के बारे में जानकारी होगी।


vi.उपभोक्ताओं को बाजार के बारे में पूरी जानकारी होती है और वे बाजार में होने वाले किसी भी बदलाव से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं। उपभोक्ता तर्कसंगत निर्णय लेने में लिप्त हैं।vii.उत्पादन के सभी कारक, अर्थात। श्रम, पूंजी, आदि की बाजार में पूर्ण गतिशीलता होती है और ये किसी भी बाजार कारक या बाजार की ताकतों द्वारा बाधित नहीं होते हैं।viii.प्रत्येक फर्म सामान्य लाभ कमाती है और कोई भी फर्म सुपर-सामान्य लाभ अर्जित नहीं कर सकती है।ix.प्रत्येक फर्म कीमत लेने वाली होती है। यह मांग और आपूर्ति की ताकतों द्वारा तय की गई कीमत लेता है। कोई भी फर्म उत्पाद की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती है।

निष्कर्ष

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 आदर्श रूप से, पूर्ण प्रतियोगिता एक काल्पनिक स्थिति है जो संभवतः एक बाजार में मौजूद नहीं हो सकती है। हालांकि, बाजार संरचना के अन्य रूपों के साथ तुलना करने के लिए सही प्रतिस्पर्धा का उपयोग आधार के रूप में किया जाता है। भारत में कोई भी उद्योग पूर्ण प्रतिस्पर्धा प्रदर्शित नहीं करता है।पूर्ण प्रतियोगिता एक बाजार संरचना का वर्णन करती है जहां प्रतिस्पर्धा अपने सबसे बड़े संभव स्तर पर होती है। इसे और अधिक स्पष्ट करने के लिए, एक बाजार जो अपनी संरचना में निम्नलिखित विशेषताओं को प्रदर्शित करता है, उसे पूर्ण प्रतिस्पर्धा दिखाने के लिए कहा जाता है।

प्रश्न 47 : पूर्ण प्रतियोगिता क्या है? पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में वस्तु का मूल्य किस प्रकार से निर्धारित होता है?

उत्तर: पूर्ण प्रतियोगिता का आशय

अर्थ एवं परिभाषा- पूर्ण प्रतियोगिता वह बाजार है, जिसमें क्रेता व विक्रेता के बीच वस्तुओं का क्रय-विक्रय प्रतियोगिता के आधार पर होता है । इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत रूप से कोई भी फर्म या व्यक्ति वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता है। पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुओं का मूल्य प्रत्येक स्थान पर एक समान रहता है।

विशेषताएं

(1) क्रेता एवं विक्रेताओं की अधिक संख्या का होना, (2) वस्तुएं रूप-रंग, गुण एवं वचन में एक समान होना, (3) बाजार का पूर्ण ज्ञान, (4) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश तथा बहिगर्मन, (5) उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिशीलता, (6) मूल्य नियन्त्रण की अनुपस्थिति, (7) औसत तथा सीमान्त भाव का बराबर होना, (8) दीर्घकालीन स्थिति में एक मूल्य।

पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में मूल्य निर्धारण

पूर्ण-प्रतियोगिता में एक फर्म का साम्य- फर्म के साम्य का अर्थ है, उत्पादन की मांत्रा में कोई परिवर्तन न होना, प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करना चाहती है, जब तक उसको अधिकतम लाभ प्राप्त नहीं होता, वह उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन करती रहती है, जहाँ उसको अधिकतम लाभ प्राप्त होता है, उसी बिन्दु पर वह अपने उत्पादन की मात्रा को निश्चित कर देती है, अर्थात् यह फर्म साम्य की दशा कहलाती है। पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(I) अल्पकाल में मूल्य निर्धारण

पूर्ण प्रतियोगिता की दशा में प्रत्येक फर्म अपना लाभ अधिकतम करने का प्रयास अवश्य करती है, किन्तु अल्पकाल में इतना कम समय होता है कि फर्म को वस्तुओं की माँग के अनुसार उसकी पूर्ति करने के लिए साधनों की मात्रा में वृद्धि कर उत्पादन बढ़ाने का समय नहीं मिलता। अतः फर्म को उद्योग द्वारा निर्धारित मूल्य पर अल्पकाल में सामान्य लाभ, अधिकतम लाभ अथवा हानि भी हो सकती है। फर्म साम्य की दशा में तब होती है जबकि सीमान्त लागत और सीमान्त आगम दोनों बराबर होते हैं अर्थात MR = MC

(1) अधिकतम लाभ- जब बाजार में माँग, पूर्ति की तुलना में अधिक होती है, तो फर्म को अधिक लाभ प्राप्त होता है। उपरोक्त चित्र में E बिन्दु साम्य का बिन्दु है अतः इस बिन्दु पर फर्म को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है । इस बिन्दु पर उत्पादन की मात्रा OQ, कीमत OP तथा लागत OM के बराबर है। इस प्रकार कुल लाभ की मात्रा MPER है।

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए? - poorn pratiyogita baajaar kya hai isakee pramukh visheshataen likhie?

यहाँ पर जब बाजार में वस्तु की कीमत OP है तो उत्पादन की मात्रा OQ के E बिन्दु पर हैं । इस बिन्दु पर MR = MC है । इस मूल्य पर AC (औसत लागत) AR से (औसत आय) कम है। अतः फर्म को प्रति इकाई ER लाभ प्राप्त होता हैं ।

(2) सामान्य लाभ- जब बाजार में माँग और पूर्ति दोनों आपस में बराबर होते हैं तो फर्म को सामान्य लाभ प्राप्त होता हैं ।

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए? - poorn pratiyogita baajaar kya hai isakee pramukh visheshataen likhie?

उपरोक्त चित्र में OP कीमत पर MC और MR दोनों E बिन्दु पर मिलते हैं, यहाँ उत्पादन मात्रा OQ है, इस उत्पादन पर फर्म की कीमत OP = AR = MR = MC= AC अतः फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त हो रहा है ।

(3) हानि की दशा- जब बाजार में वस्तु की माँग, पूर्ति की तुलना में कम होती है, तो फर्म को हानि होती है ।

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए? - poorn pratiyogita baajaar kya hai isakee pramukh visheshataen likhie?

उपर्युक्त चित्र में औसत आय (AC) औसत् लागत (AC) की तुलना में कम है। अत: फर्म को हानि होगी । यहाँ पर फर्म को MPRE के बराबर कुल हानि होती है।

AR - AC = Profit

AC - AR = Loss

AR = AC = सामान्य लाभ

(II) दीर्घकाल में मूल्य निर्धारण

दीर्घकालीन अवस्था इतनी अधिक समय अवधि है, जिसमें माँग के अनुरूप पूर्ति को समायोजित किया जा सकता है । फर्मों के स्वतंत्र प्रवेश एवं बर्हिगमन के कारण नई फर्मं आ सकती हैं। फर्म या उद्योग इस स्थिति में केवल सामान्य लाभ की दशा में कार्यरत रहता है । यदि अल्पकाल में फर्म या उद्योग को अधिकतम लाभ हो रहा है तो ऐसी दशा में नई फर्ने उद्योग में आने लगेंगी जिससे पूर्ति बढ़ जायेगी और मूल्य कम हो जाने से लाभ भी कम हो जायेगा, यदि अल्पकाल में फर्म हानि पर भी कार्य कर रही है, तो वह दीर्घकाल तक हानि की दशा में नहीं रहेगी, अर्थात दीर्घकाल की प्रवृत्ति सामान्य लाभ की होती है ।

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं लिखिए? - poorn pratiyogita baajaar kya hai isakee pramukh visheshataen likhie?

दीर्घकाल में पर्याप्त समय होता है अतः वस्तु की माँग और पूर्ति दोनों आपस में बराबर होती हैं। अत: फर्म को यहाँ पर केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है। इससे प्रस्तुत रेखाचित्र के द्वारा दिखाया जा सकता है।

पीछे अंकित चित्र में माँग रेखा DD एवं पूर्ति रेखा SS दोनों एक दूसरे को जिस बिन्दु पर काट रही हैं वहाँ पर वस्तु का 5 रु. निर्धारित हो रहा है । यदि माँग बढ़ती है तो कीमत भी बढ़ जायेगी।

पूर्ण प्रतियोगिता क्या है पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं बताएं?

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार के उस रूप का नाम है जिसमें विक्रेताओं की संख्या की कोई सीमा नहीं होती। फ़लतः कोई भी एक उत्पादक (विक्रेता) बाजार में वस्तु की कीमत पर प्रभाव नहीं डाल सकता। अर्थशास्त्र में बाजार को मुख्त्यः दो रूपों में बांटा जाता है : पूर्ण प्रतियोगिता और अपूर्ण प्रतियोगिता

पूर्ण प्रतियोगिता बाजार क्या होता है?

पूर्ण प्रतियोगिता एक बाजार का रूप है, जिसमें क्रेता तथा विक्रेताओं की एक बड़ी संख्या होती है, जो समरूप या एक जैसी वस्तुओं का उद्योग द्वारा निर्धारित कीमतों पर क्रय-विक्रय करते हैं। यहां उद्योग ऐसी फर्मों का समूह है, जो एक समान वस्तुओं का उत्पादन करती हैं।

पूर्ण बाजार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए?

प्रोफेसर बोल्डिंग के अनुसार "पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति है जिसमें प्रचुर संख्या में क्रेता और विक्रेता बिल्कुल एक ही प्रकार की वस्तु के क्रय विक्रय में लगे रहते हैं , तथा जो एक दूसरे के अत्यधिक निकट संपर्क में आकर आपस में स्वतंत्रता पूर्वक वस्तु का क्रय करते हैं ।

पूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं पूर्ण प्रतियोगिता में किस प्रकार मूल्य निर्धारण होता है समझाइए?

पूर्ण प्रतियोगिता, बाजार की वह दशा होती है जिसमें क्रेताओं और विक्रेताओं की संख्या अधिक होती है। इसमें कोई भी एक क्रेता अथवा विक्रेता व्यक्तिगत रूप से वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। समस्त बाजार में वस्तु का एक ही मूल्य होता है।