न्याय से आप क्या समझते हैं न्याय के विभिन्न प्रकार बताइए? - nyaay se aap kya samajhate hain nyaay ke vibhinn prakaar bataie?

विषयसूची

  • 1 न्याय कितने प्रकार के होते हैं नाम बताइए?
  • 2 न्याय से आप क्या समझते हैं न्याय के विभिन्न प्रकार क्या है?
  • 3 अधिकार क्या है अधिकार के विभिन्न सिद्धांत?
  • 4 न्याय का क्या तात्पर्य है?
  • 5 प्लेटो के सिद्धांत क्या है?
  • 6 न्याय क्या है वर्णन करें?

न्याय कितने प्रकार के होते हैं नाम बताइए?

इसे सुनेंरोकेंAnswer. Answer: अरस्तू ने न्याय के कितने प्रकार बताये हैं? वितरणात्मक व राजनीतिक न्याय, सुधारात्मक न्याय।।

न्याय से आप क्या समझते हैं न्याय के विभिन्न प्रकार क्या है?

इसे सुनेंरोकेंनैतिक न्याय इस धारणा पर आधारित है कि विश्व में कुछ सर्वव्यापक, अपरिवर्तनीय तथा अन्तिम प्राकृतिक नियम हैं, जो कि व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को ठीक प्रकार से संचालित करते हैं। इन प्राकृतिक नियमों और | प्राकृतिक अधिकारों पर आधारित जीवन व्यतीत करना ही नैतिक न्याय है।

न्याय से आप क्या समझते है?

इसे सुनेंरोकेंन्याय द्विमुख है, जो एक साथ अलग-अलग चेहरे दिखलाता है। वह वैधिक भी है और नैतिक भी। उसका संबंध सामाजिक व्यवस्था से है और उसका सरोकार जितना व्यक्तिगत अधिकारों से है उतना ही समाज के अधिकारों से भी है।… वह रूढ़िवादी (अतीत की ओर अभिमुख) है, लेकिन साथ ही सुधारवादी (भविष्य की ओर अभिमुख) भी है।

अधिकार क्या है अधिकार के विभिन्न सिद्धांत?

इसे सुनेंरोकेंअधिकार व्यक्ति द्वारा अपने विकासार्थ समाज और राज्य से ऐसी मांग है जिससे अन्य व्यक्तियों का अहित ना हो। अधिकारों की सृष्टि समाज द्वारा होती है, राज्य इन्हें केवल मान्यता प्रदान करता है। अधिकारों के मार्क्सवादी सिद्धांत के अनुसार अधिकारों को पूर्णतया सामाजिक संबंधों के संदर्भ में देखा जाता है।

न्याय का क्या तात्पर्य है?

समानुपाती न्याय क्या है?

इसे सुनेंरोकेंसमानुपातिक न्याय: समानुपातिक न्याय, न्याय का एक अन्य महत्वपूर्ण सिद्धांत है। कभी-कभी कुछ ऐसी परिस्थितियाँ हो सकती हैं जिसमें सभी के साथ समान बरताव अपने आप में अन्याय साबित होगा।

प्लेटो के सिद्धांत क्या है?

इसे सुनेंरोकेंप्लेटो के प्रत्यय सिद्धांत के अनुसार, ‘प्रत्यय या विचार (idia) ही चरम सत्य है, वह शाश्वत और अखंड है तथा ईश्वर उसका सर्जक (Creator) है। इसके अनुसार यह वस्तु जगत प्रत्यय जगत का अनुकरण है तथा कला जगत वस्तु जगत का, इस प्रकार कला जगत अनुकरण का अनुकरण है।

न्याय क्या है वर्णन करें?

Iv न्याय के प्रकार कौन कौन है?

न्याय के प्रकार (nyay ke prakar)

  1. सामाजिक न्याय सरल शब्दों में सामाजिक न्याय का तात्पर्य है समाज में व्यक्ति का सम्मान व्यक्ति होने के नाते होना है।
  2. राजनीतिक न्याय राजनीतिक न्याय से आशय है सभी को राजनीतिक सहभागिता का समान अवसर प्राप्त होना।
  3. आर्थिक न्याय
  4. कानूनी औपचारिक न्याय और प्राकृतिक न्याय
  5. प्राकृतिक न्याय

न्याय से आप क्या समझते हैं न्याय के विभिन्न प्रकार बताइए? - nyaay se aap kya samajhate hain nyaay ke vibhinn prakaar bataie?
न्याय के प्रकार | TYPES OF JUSTICE IN HINDI

  • न्याय के प्रकार | TYPES OF JUSTICE IN HINDI
    • 1. नैतिक न्याय–
    • 2. कानूनी न्याय या न्याय का कानूनी पक्ष-
    • 3. राजनीतिक न्याय का राजनीतिक पक्ष-
    • 4. आर्थिक न्याय या न्याय का आर्थिक पक्ष-
    • 5. सामाजिक न्याय या न्याय का सामाजिक पक्ष : लोकतन्त्र और सामाजिक न्याय-
  • Disclaimer

न्याय के प्रकार | TYPES OF JUSTICE IN HINDI

पुराने समय न्याय की दो धारणाएँ प्रचलित रही हैं- नैतिक और कानूनी। लेकिन आज की स्थिति में न्याय ने बहुत अधिक व्यापकता प्राप्त कर ली है। आज तो कानूनी या राजनीतिक न्याय की अपेक्षा भी सामाजिक और आर्थिक न्याय अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। न्याय धारणा के इन विविध रूपों का उल्लेख निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

1. नैतिक न्याय–

परम्परागत रूप में न्याय की धारणा को नैतिक न्याय के रूप में ही अपनाया जाता रहा है। इसके अनुसार प्राकृतिक नियमों और प्राकृतिक अधिकारों के आधार पर जीवन व्यतीत करना ही नैतिक न्याय है।

नैतिक न्याय के अन्तर्गत जिन बातों को शामिल किया जा सकता है, उनमें से कुछ हैं सत्य बोलना, प्राणी मात्र के प्रति दया का बर्ताव करना, वचन का पालन करना, उदारता का परिचय देना, आदि।

2. कानूनी न्याय या न्याय का कानूनी पक्ष-

कानून और न्याय एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। न्याय की व्यवस्था राज्य द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर होती है। सामान्यतया जब हम न्याय की बात करते हैं तो हमारा आशय न्यायलयों द्वारा कानूनों के आधार पर प्रदान किए गए न्याय सेही होती है। यह न्याय ‘औपचारिक कानूनी आयाम’ है।

3. राजनीतिक न्याय का राजनीतिक पक्ष-

राज व्यवस्था का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रभाव पड़ता है। अतः सभी व्यक्तियों को ऐसे अवसर प्राप्त होने चाहिए कि वे राज व्यवस्था को समान रूप से प्रभावित कर सके। यही राजनीतिक न्याय है और इसकी प्राप्ति एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत ही की जा सकती है, पर केवल लोकतन्त्र की स्थापना से ही राजनीतिक न्याय की प्राप्ति नहीं हो जाती, इसके लिए लोकतान्त्रिक व्यवस्था में निम्न स्थितियों को अपनाना होता है। (i) सार्वलौकिक व्यस्क मताधिकार और गुप्त मतदान, (ii) संविधान द्वारा निर्धारित आवश्यक योग्यताओं को पूरा करने पर सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के राजनीतिक पदों पर निर्वाचित होने का अधिकार, (iii) सभी व्यक्तियों को विचार, भाषण, सम्मेलन और संगठन, आदि की नागरिक स्वतन्त्रताएँ, इसमें शासन की आलोचना करने का अधिकार सम्मिलित है, (iv) प्रेस, रेडियो और दूरदर्शन, आदि जन-संचार के साधनों की स्वतन्त्रता, (v) निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनावों की व्यवस्था, (vi) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता, (vii) बिना किसी भेदभाव के सभी व्यक्तियों को ‘सार्वजनिक पद’ (सरकारी नौकरियां) प्राप्त होना, आदि। राजनीतिक न्याय की धारणा में यह बात निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होता, परन्तु राजनीति न्याय में यह स्वीकार किया जाता है कि समाज के पीड़ित, शोषित एवं उपेक्षित वर्ग को उनके विकास के लिए राजनीतिक, शैक्षणिक, आर्थिक एवं सेवाओं के क्षेत्र में कुछ विशेष सुविधाएँ दी जा सकती हैं। ये सुविधाएँ कुछ विशेष अवधि के लिए हो सकती हैं या विधानमण्डल जैसे नियम बनाए उसके अनुसार व्यवस्था की जा सकती है। इस दृष्टि से भारत में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्ग की दी गई सुविधाएँ राजनीतिक न्याय के अन्तर्गत आती है।

4. आर्थिक न्याय या न्याय का आर्थिक पक्ष-

परम्परागत रूप में न्याय की धारणा को कानूनी और राजनीतिक न्याय तक सीमित समझा जाता था, लेकिन अब इस बात को लगभग सभी पक्षों द्वारा स्वीकार कर लिया गया है कि आर्थिक और सामाजिक न्याय के बिना कानूनी और राजनीतिक न्याय का कोई मूल्य नहीं है। आर्थिक न्याय का आसय ‘पूर्ण आर्थिक समानता’ या सबके लिए समान वेतन जैसी किसी कल्पनात्मक स्थिति से नहीं है। वरन् इसका अर्थ यह है कि आर्थिक विकास के अवसर सबको समान रूप से प्राप्त होने चाहिए तथा राज्य ऐसे कार्यों हेतु सबको समान सुविधाएँ देगा।

5. सामाजिक न्याय या न्याय का सामाजिक पक्ष : लोकतन्त्र और सामाजिक न्याय-

लोकतंत्र एक व्यक्ति, एक बाट के सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए राजनीतिक समानता की स्थापना का प्रयत्न करता है, लेकिन व्यावहारिक अनुभव से यह बात स्पष्ट हो गयी है कि राजनीति समानता की घोषणा मात्र करने से लोकतन्त्र के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। इसी तरह समानता की घोषणा कर देने मात्र व्यवहार में सभी व्यक्ति समान नहीं हो जाते हैं। जब तक सामाजिक क्षेत्र में सभी व्यक्तियों को समान महत्व प्राप्त न हो, राजनीतिक समानता एक भ्रम बनकर रह जाती है। लोकतन्त्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना करना आवश्यक हो जाता है जहाँ जाति, रंग, लिंग, सम्पत्ति और धर्म के भेद का कोई अर्थ नहीं है।

इस प्रकार लोकतन्त्र के लक्ष्य की प्राप्ति तभी सम्भव है जबकि सामाजिक व्यवस्था समानता के सिद्धान्त पर आधारित हो और आर्थिक क्षेत्र में अधिकतम सम्भव सीमा तक समानता की स्थिति हो। ‘सामाजिक न्याय’ का आशय ‘सामाजिक समानता’ और अधिकतम सम्भव सीमा तक आर्थिक समानता की इस स्थिति से ही है। इस दृष्टि से सामाजिक न्याय लोकतन्त्र के लिए एक अपरिहार्य स्थिति है। यदि लोकतन्त्र की स्थापना के साथ हम सामाजिक न्याय की दिशा में आगे बढ़ते हैं, तब तो लोकतन्त्र अपने लक्ष्य को प्राप्त कर पाता है। अन्यथा लोकतान्त्रिक व्यवस्था का मूल आधार कमजोर ही बना रहता है और इस बात की आशंका बनी रहती है कि समस्त लोकतान्त्रिक व्यवस्था चरमराकर टूट जायेगी। ‘सामाजिक न्याय लोकतन्त्र के लिए एक अपरिहार्य स्थिति है’ यह बात न केवल सैद्धान्तिक दृष्टि से सत्य है, वरन् लोकतान्त्रिक व्यवस्था प्रसंग में लगभग दो सदी के व्यावहारिक अनुभव ने भी इस बात की पुष्टि की हैं।

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न्याय से आप क्या समझते हैं न्याय के प्रकार बताइए?

मैरियम के अनुसार," न्याय उन मान्यताओं और प्रक्रियाओं का योग हैं, जिनके माध्यम से प्रत्येक मनुष्य को वे सभी अधिकार व सुविधायें जुटाई जाती हैं जिन्हें समाज उचित मानता हैं।" रफल महोदय के अनुसार, "न्याय उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा व्यक्तिगत अधिकार की रक्षा होती है और समाज की मर्यादा भी बनी रहती है।"

न्याय से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताएं?

न्याय ऐसे सद्गुण की भाँति है जो एक सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को कानूनी रूप में स्पष्ट रूप से परिभाषित स्थान प्राप्त है। कानूनों की व्यवस्था समग्र रूप से विविध दृष्टिकोण से न्याय की व्यवस्था कहलाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि कानून व्यवस्था का सम्बन्ध अधिकारों की सुरक्षा से होता है।

सामाजिक न्याय कितने प्रकार के होते हैं?

सामाजिक न्याय के प्रमुख दे दो लक्ष्य होते हैं उदारतावादी मानकीय राजनीतिक सिद्धांत में उदारतावादी-समतावाद से आगे बढ़ते हुए सामाजिक न्याय के सिद्धांतीकरण में कई आयाम जुड़ते गये हैं। मसलन, अल्पसंख्यक अधिकार, बहुसंस्कृतिवाद, मूल निवासियों के अधिकार आदि।