नीति शतक के अनुसार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कौन है? - neeti shatak ke anusaar manushy ka sabase bada shatru kaun hai?

आचार्य चाणक्य द्वारा रचित महान ग्रंथों में से एक है चाणक्य नीति. इस ग्रंथ में आचार्य ने मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए तमाम गूढ़ बातें कही हैं. जिन्हें यदि व्यक्ति अपना ले तो तमाम बड़े कष्टों से आसानी से उबर सकता है, मुश्किलों में समाधान ढूंढ सकता है और अनेक परेशानियों को आने से पहले ही रोक सकता है. एक श्लोक में आचार्य ने इंसान को बताया है कि उसका सबसे सच्चा मित्र, सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा रोग कौन सा है. यदि व्यक्ति इसे समझ ले तो जीवन को काफी बेहतर बना सकता है.

1. आचार्य का मानना था कि ज्ञान से बड़ा व्यक्ति का कोई मित्र नहीं है. ज्ञानी व्यक्ति संसार में आने के उद्देश्य को अच्छी तरह समझता है और अपने कर्म को बेहतर तरीके से करता है. वो कभी सांसारिक बातों में नहीं पड़ता. मुश्किल समय में उसका ज्ञान ही उसे सही मार्ग दिखाता है. ऐसा व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है.

2. वहीं मोह इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है. ये मोह ही है, जो व्यक्ति को पक्षपाती बना देता है. सांसारिक चीजों में फंसा कर रखता है. उसे जीवन का मूल उद्देश्य नहीं समझने देता. ऐसा व्यक्ति दूसरों से उम्मीदें रखता है और दुख पाता है. यदि जीवन को सार्थक करना है तो मोह से खुद को दूर रखें.

3. इंसान का सबसे बड़ा रोग काम वासना है. ऐसा व्यक्ति किसी काम में अपना मन नहीं लगा पाता. उसे हर वक्त इसी चीज का खयाल रहता है. काम वासना व्यक्ति को दिमागी रूप से बीमार बनाती है और उसके सोचने समझने की शक्ति को हर लेती है.

4. क्रोध से भयंकर कोई आग नहीं है. क्रोध ऐसी अग्नि है जो व्यक्ति को अंदर ही अंदर जलाकर खोखला कर देती है. उसकी बुद्धि को हर लेती है. क्रोध में व्यक्ति अक्सर गलत निर्णय ले लेता है, जिसके लिए बाद में उसे पछताना पड़ता है.

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प्रश्नानुवाद - मनुष्यों की देह का शत्रु कौन है ? (नीति शतक के अनुसार) 

स्पष्टीकरण - नीति शतक के अनुसार मनुष्य की देह का शत्रु आलस्य है। नीति शतक ग्रन्थ में इससे सम्बन्धित श्लोक है। इस ग्रन्थ के रचयिता भर्तृहरि हैं।-

श्लोक -

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति॥

अर्थात् आलस्य मनुष्य के शरीर में रहने वाला सबसे बड़ा शत्रु है और मेहनत (उद्यम) जैसा कोई बन्धु नहीं है, जिसे (मेहनत को) करके मनुष्य (कभी भी) दुखी नहीं होता है।

अतः स्पष्ट है कि नीति शतक के अनुसार मनुष्य की देह का शत्रु आलस्य है।

Last updated on Sep 22, 2022

The Uttar Pradesh Secondary Education Service Selection Board (UPSESSB) has decided to extend the last date to submit online applications to conduct recruitment for the post of UP TGT (Trained Graduate Teacher). Now the applicants can submit their online application up to 16th July 2022. In this year's recruitment cycle the total vacancy of 3539 has been released. Willing candidates having the required UP TGT Eligibility Criteria can apply for the exam. This is a golden opportunity for candidates who want to get into the teaching profession in the state of Uttar Pradesh.

चाणक्य नीति: क्या आप जानते हैं मनुष्य का सबसे बड़ा रोग, शत्रु और मित्र कौन है?

उज्जैन. आचार्य चाणक्य ने अपने जीवनकाल में कई ग्रंथों की रचना की। चाणक्य नीति भी उनमें से एक है। इस नीति शास्त्र में सुखी और सफल जीवन के लिए कई रहस्य बताए गए हैं। चाणक्य नीति में बताए गए लाइफ मैनेजमेंट के ये सूत्र आज के समय में भी हमें सही रास्ता दिखाते हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में बताया है कि मनुष्य का सबसे बड़ा रोग, शत्रु और मित्र कौन है। जानिए…

1. काम-वासना के समान दूसरा रोग नही
आचार्य चाणक्य के अनुसार, काम-वासना के समान कोई दूसरा रोग नहीं। जिस व्यक्ति के मन में काम-वासना की भावना हर समय रहती है, उसका मन किसी और कार्य में नहीं लगता और निरंतर सिर्फ वासना के बारे में ही सोचता रहता है। ऐसे लोग दिमागी रूप से बीमार होते हैं। शरीर के रोगों के इलाज संभव है, लेकिन काम-वासना से पीड़ित व्यक्ति का कोई इलाज नहीं है।

2. मोह के समान शत्रु नहीं
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मोह है, ऐसा आचार्य चाणक्य का कहना है। क्योंकि मोह ही सभी दुखों की मूल जड़ है। जब व्यक्ति किसी के मोह में फंस जाता है तो उसके दुखों से वह स्वयं भी दुखी होने लगता है। व्यक्ति दिन-रात जिस व्यक्ति या वस्तु से मोह है, उसी के बारे में सोचता रहता है।

3. क्रोध के समान आग नहीं
जिस व्यक्ति को छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आ जाता है, वह स्वयं का ही शत्रु होता है। क्रोध की अग्नि बहुत भयंकर होती है। क्रोधी व्यक्ति बिना कुछ सोचे-समझे कुछ भी कर बैठता है, जिसके लिए उसे बाद में पछताना भी पड़ता है। इसलिए कहा गया है क्रोध के समान आग नहीं है।

4. ज्ञान से बढ़कर सुख नहीं
जिस व्यक्ति के पास ज्ञान है, उससे सुखी मनुष्य दुनिया में और कोई नहीं। ज्ञान से ही हर दुख का निवारण हो सकता है। ज्ञानी मनुष्य दुनिया के कष्टों से परे होते हैं और निरंतर धर्म-कर्म में लगे रहते हैं। इसलिए आचार्य चाणक्य ने कहा है कि ज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं है।

मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए तमाम गूढ़ बातें कही हैं. जिन्हें यदि व्यक्ति अपना ले तो तमाम बड़े कष्टों से आसानी से उबर सकता है और आने वाली मुश्किलों को रोक सकता है.

आचार्य चाणक्य द्वारा रचित महान ग्रंथों में से एक है चाणक्य नीति. इस ग्रंथ में आचार्य ने मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए तमाम गूढ़ बातें कही हैं. जिन्हें यदि व्यक्ति अपना ले तो तमाम बड़े कष्टों से आसानी से उबर सकता है, मुश्किलों में समाधान ढूंढ सकता है और अनेक परेशानियों को आने से पहले ही रोक सकता है. एक श्लोक में आचार्य ने इंसान को बताया है कि उसका सबसे सच्चा मित्र, सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा रोग कौन सा है. यदि व्यक्ति इसे समझ ले तो जीवन को काफी बेहतर बना सकता है.

1.  आचार्य का मानना था कि ज्ञान से बड़ा व्यक्ति का कोई मित्र नहीं है. ज्ञानी व्यक्ति संसार में आने के उद्देश्य को अच्छी तरह समझता है और अपने कर्म को बेहतर तरीके से करता है. वो कभी सांसारिक बातों में नहीं पड़ता. मुश्किल समय में उसका ज्ञान ही उसे सही मार्ग दिखाता है. ऐसा व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है.

2.  वहीं मोह इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है. ये मोह ही है, जो व्यक्ति को पक्षपाती बना देता है. सांसारिक चीजों में फंसा कर रखता है. उसे जीवन का मूल उद्देश्य नहीं समझने देता. ऐसा व्यक्ति दूसरों से उम्मीदें रखता है और दुख पाता है. यदि जीवन को सार्थक करना है तो मोह से खुद को दूर रखें.

3.  इंसान का सबसे बड़ा रोग काम वासना है. ऐसा व्यक्ति किसी काम में अपना मन नहीं लगा पाता. उसे हर वक्त इसी चीज का खयाल रहता है. काम वासना व्यक्ति को दिमागी रूप से बीमार बनाती है और उसके सोचने समझने की शक्ति को हर लेती है.

4.  क्रोध से भयंकर कोई आग नहीं है. क्रोध ऐसी अग्नि है जो व्यक्ति को अंदर ही अंदर जलाकर खोखला कर देती है. उसकी बुद्धि को हर लेती है. क्रोध में व्यक्ति अक्सर गलत निर्णय ले लेता है, जिसके लिए बाद में उसे पछताना पड़ता है.

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मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु कौन है?

भय मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। विश्वास और विकास दोनों ही इससे कुंठित हो जाते हैं। भय मानसिक कमजोरी है। मन दुर्बल हो जाए तो शरीर भी दुर्बल हो जाता है

ज्ञान का सबसे बड़ा शत्रु कौन है?

उन्होंने कहा कि अज्ञान मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। उन्होंने कहा कि दु:ख, रोग, शोक और विपत्तियों का मुख्य व मूल कारण ही अज्ञान है। ज्ञान रूपी अग्नि संपूर्ण विकारों का शमन कर देती है।

इंसान का सबसे बड़ा मित्र कौन है?

एक श्लोक में आचार्य ने इंसान को बताया है कि उसका सबसे सच्चा मित्र, सबसे बड़ा शत्रु और सबसे बड़ा रोग कौन सा है.

भारत का सबसे बड़ा शत्रु कौन है?

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