वाटसन ( Watson) के अनुसार , मनोविज्ञान प्राकृतिक विज्ञान की शुद्ध वस्तुनिष्ठ एवं प्रयोगात्मक शाखा है। इसका सैद्धांतिक उद्देश्य व्यवहार का अनुमान लगाना तथा उसका नियंत्रण करना है। इस प्रकार मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान न होकर व्यवहार का विज्ञान है " । साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए। Show बी . एफ . स्किनर ( B.F Skinner) के अनुसार , " अधिगम प्रतिशील व्यवहार अनुकूलन की एक प्रक्रिया है। व्यवहारवादी अथवा सहचार्यवादी सिद्धांत की विचारधारा के अंतर्गत उद्दीपन एक अभिकारण या शक्ति है जो ग्रहिता (Receptor) के बाहर एक वस्तु है तथा जो उपयुक्त ग्रहिता में अनुक्रियां उत्तेजित करने में समर्थ है। व्यवहार केवल उद्दीपन का ही परिणाम है , चाहे उत्तेजक उद्दीपन बाहा हो या आंतरिक।" Safalta App पर फ्री मॉक-टेस्ट Join Now के साथ किसी भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करें। जे . एस . स्टीफंस ( Stephens) के अनुसर , " जब व्यवहारवाद सफलतापूर्वक प्रचलित था, यह संबंधवाद की एक पराकाष्टा का प्रतिनिधित्व करता था। पुराने गौरवमय संबंदवादी प्राय: संबंधों अथवा बंधनों की चर्चा करते थे। वे अपने S - R ( उद्दीपन - अनुक्रीय) सूत्र को बिना किसी
भेद के दोनों प्रकार की मानसिक और शारीरिक घटनाओं पर लगाते थे । Source: NA बी . वाटसन ( 1878 - 1958) ने सन 1912 में की । वे अमरीका के दक्षिणी केरोलिना प्रांत में पैदा हुए थे। वाटसन की सबसे पहली रचना ( Behaviour : An introduction to comparative Psychology ) नामक पुस्तक का प्रकाशन 1914 में हुआ । इस पुस्तक के माध्यम से वाटसन ने व्यवहारवाद की व्याख्या की थी। इस पुस्तक की विषय - सामग्री ने नई पीढ़ी के मनोवैज्ञानिकों को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने 'व्यवहारवाद ' की स्थापना कर डाली। 1919 में वाटसन का दूसरा ग्रंथ प्रकाशित हुआ। इसका नाम था " paychology from the
stand point of a behaviourist "। इस पुस्तक में तुलनात्मक मनोविज्ञान ( Comparative Psychology) के आधार पर मानव - व्यवहार का वर्णन किया गया था। इसी ग्रंथ में उन्होंने उद्दीपन ( Stmulus) तथा अनुक्रिया ( Respnse) की विवेचना की। 1925 में उनकी तीसरी पुस्तक " Behaviourism" प्रकाशित हुई और 1930 में इसका संशोधित संस्करण प्रकाशित हुआ।
व्यवहारवाद क्या है? इसके प्रधान तथ्य क्या हैं?द्वितीय विश्व युद्ध के बाद राजनीति के अध्यन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।
आधुनिक युग में राजनीति के अध्ययन के लिए परंपरागत पद्धतियाँ (Traditional Methods) दोषपूर्ण एवं अवैज्ञानिक समझी गई और उसके स्थान पर अनेक नये उपागमों (New Approaches) का विकास हुआ। आधुनिक विद्वानों ने राजनीति के अध्ययन के लिए अनेक उपागमों को विकसित किया। उनमें सबसे प्रमुख स्थान System Analysis (व्यवस्था विश्लेषण) का है जो वास्तविक राजनीतिक जीवन का अध्ययन अथवा विश्लेषण वैज्ञानिक विधि से करता है। राजनीति के अध्ययन में इस विश्लेषण को प्रविष्ट करने वालों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान डेविड ईस्टन का
है। डेविड ईस्टनने इसे राजनीतिक व्यवस्था (Political System) की संज्ञा दी। डेविड ईस्टन ने 1965 में अपनी पुस्तक ‘Aframe work for Political Analysis’ में इस उपागम का विस्तारपूर्वक वर्णन किया । व्यवहारवाद की परिभाषाव्यवहारवाद की परिभाषा देना कठिन कार्य है। साधारण अर्थ में विभिन्न राजनीतिक परिस्थितियों में मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन करना ही व्यवहारवाद है। परन्तु, इससे व्यवहारवाद का सही अर्थ स्पष्ट नहीं होता। स्पष्ट है कि मानव-व्यवहार का विभिन्न दृष्टिकोण तथा विभिन्न पद्धतियों के प्रयोग द्वारा अध्ययन राजनीतिशास्त्र का मुख्य विषय बन गया है। इसे ही व्यवहारवाद की संज्ञा दी गई है, जिसे विभिन्न लेखकों ने अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है। कुछ परिभाषाएँ अग्रलिखित हैं- रॉबर्ट डॉल के शब्दों में,“व्यवहारवाद विषय के आनुभविक तत्वों को वैज्ञानिक बनाने का, जिस अर्थ में उसकी गणना हम आनुभविक विज्ञानों में करते हैं, एक प्रयत्न मात्र है।” जोसेफ डनर के शब्दों में, “यह (व्यवहारवाद) सामाजिक घटना का पूर्वाभिमुखीकरण है, जो मुख्यतः अनुभव, तार्किक प्रत्यक्षवाद और आनुशासनिक स्वार्थों से सम्बद्ध रहता है।” डेविड टूमेन ने भी व्यवहार का अर्थ स्पष्ट करने की चेष्टा की है। उसका कहना है कि राजनीतिक व्यवहार को समाजशास्त्र अथवा राजनीतिशास्त्र का विशिष्ट क्षेत्र नहीं माना जाना चाहिए। उसी के शब्दों में-“राजनीतिक व्यवहार एक विशिष्टता नहीं है और न उसे ऐसा माना ही जाना चाहिए, क्योंकि वह तो केवल एक ऐसी अभिवृत्ति अथवा ऐसे दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका उद्देश्य शासन की सभी घटनाओं को मनुष्यों के प्रेक्षित और प्रेक्षणयोग्य व्यवहार के संदर्भ में समझना है।” इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर उन्होंने व्यवहारवाद की परिभाषा देते हुए लिखा है कि “उसमें (व्यवहारवाद में) मनुष्यों और समूहों की वे सभी क्रियाएँ और अन्तः-क्रियाएँ जिनका सम्बन्ध प्रशासन की प्रक्रिया से है, समाविष्ट हैं।” व्यवहारवाद के अर्थ को हेज यूलाऊ ने ठीक ढंग से समझाने का प्रयास किया है। यूलाऊ का विचार है, “यह व्यवहारवाद अपने सैद्धान्तिक तथा अनुभववादी विश्लेषणों में राजनीतिक घटनाओं, संरचनाओं, संस्थाओं तथा विचारधाराओं को अपनी इकाई या लक्ष्य नहीं मानता, बल्कि यह व्यक्तियों या सामाजिक समूहों के व्यवहारों को अपने विश्लेषण की इकाई या लक्ष नहीं मानता बल्कि यह व्यक्तियों या सामाजिक संबंधों के व्यवहारों को अपने विश्लेषण की इकाई तथा लक्ष्य मानता है|” इसी विचार को ध्यान में रखकर यूलाऊ ने व्यवहारवाद की परिभाषा इस प्रकार दी है- “राजनीतिक व्यवहारवाद वस्तुत: अनुभववाद है, जिसका मूल उद्देश्य मनुष्य के राजनीतिक व्यवहारों की परिस्थितियों, शर्तों तथा परिणामों का पता लगाना है।” व्यवहारवाद की उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट होता है कि व्यवहारवाद अनुभववाद का ही दूसरा नाम है । इस शब्दावली से ही एक विशेष प्रकार के शोध का बोध होता है। इससे यह संकेत मिलता है कि शोधकर्ता प्राप्त आंकड़ों और तथ्यों के आधार पर राजनीतिक व्यवस्था में हिस्सेदार लोगों के व्यवहार का अध्ययन कर सही राजनीतिक निष्कर्ष निकालने का प्रयास करता है। डेविड ईस्टन के शब्दों में-“व्यवहारवादी शोध हाड़-मांस के बने इंसान को ऊंचा उठाकर उन पर हमारी दृष्टि को केन्द्रित करता है। इसकी मूल प्रस्थापना यह है कि परंपरावादी लेखकों ने संस्थाओं की पूजा की है और उन्हें ऐसी इकाइयाँ माना है, जो मानों उन इंसानों से न बनी हों, जो उन्हें बनाते हैं । शोधकर्ताओं ने “राजनीतिक व्यवहार” शब्दावली को प्राय: यह बताने के लिए प्रयुक्त किया है कि वे एक राजनीतिक प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे हैं और उस प्रक्रिया के मनुष्य को उत्प्रेरणाओं और व्यक्तित्वों का मानवीय भावनाओं के साथ गहरा संबंध ढूंढा जा सकता है”। विभिन्न विचारकों की परिभाषाओं पर विचार करने के बाद कहा जा सकता है कि व्यवहारवाद राजनीतिशास्त्र के अध्ययन में नवीन दृष्टिकोण, नवीन प्रणालियों तथा वैज्ञानिक उपकर। एवं तकनीकों पर बल देकर राजनीतिशास्त्र को परिपक्व बनाना चाहता है। अन्य सामाजिक शास्त्रों की मान्यताओं, अध्ययन पद्धतियों एवं शोध-संबंधी प्रयासों को आवश्यक मानकर उनके साथ सहयोग करता है। यही कारण है कि व्यवहारवाद का उद्देश्य राजनीतिशास्त्र के अध्ययन को अंतर्विषय बनाना है। डेविड ईस्टन व्यवहारवाद के अधिकृत विद्वान हैं । उसने अपने लेख में व्यवहार के आधार एवं लक्ष्यों को इस प्रकार प्रस्तुत किया है- 1. नियमन (Regularisation)-व्यवहारवादी यह कहते हैं कि राज्य व्यवहार में सामान्य उठ सकते हैं और उन्हें राजनीतिक व्यवहार के सिद्धान्तों के रूप व्यक्त किया जा सकता है तथा उनके आधार पर मानवीय व्यवहार की व्याख्या एवं भविष्य की सम्भावनायें व्यक्त की जा सकती हैं। 2. सत्यापन (Verification)-मानवीय व्यवहार के सम्बन्ध में एकत्र सामग्री की दुबारा जाँच करने और उसके पश्चात् इस प्रक्रिया को सत्यापन कहा जाता है। व्यवहारवादी अध्ययन पद्धति के अन्तर्गत एकत्र सामग्री का सत्यापन किया जाता है। 3. तकनीकी प्रयोग (Use of Technique)-व्यवहारवादियों के अनुसार मानव व्यवहार का परिवेक्षण करना, उसका विश्लेषण करना और परिणामों को अंकित करने हेतु कठोर, सुदृढ़ सिद्धान्तों को बनाया जाना चाहिए। इसके लिए विभिन्न तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। 4. परिणामीकरण (Qualification)–उपलब्ध कुछ विवरण एवं आधार सामग्री को लिपिबद्ध करने एवं स्पष्टता लाने के लिए वापस एवं प्रमाणीकरण किया जाना चाहिए| मूल्य निर्धारण (Value Determination) एवं आदर्श निर्माण-व्यवहारवाद को मूल्य की दृष्टि से सामान्य रूप से तटस्थ रखना चाहिए किन्तु नैतिक मूल्यांकन के हेतु कुछ मूल्यों एवं आदर्शों का प्रतिपादन एवं प्रयोग आवश्यक है। इन मूल्यों एवं आदर्शों के अध्ययनकर्ता के के आदर्शों से अलग रखना चाहिए। व्यवस्था बद्धीकरण (Systematization)-आवश्यक रूप से अनुसंधान क्रमबद्ध होन चाहिए अथवा साधन एवं अनुसंधान का संबंध एवं क्रमबद्ध ज्ञान के दो ऐसे भाग समाज के होने चाहिए जो परस्पर खिचे हों। विशुद्ध विज्ञान (Pure Science) राजनीतिक व्यवहार के ज्ञान का प्रयोग वैज्ञानिक उद्यम के रूप में किया जाना चाहिए। समग्रता (Integrity)-व्यवहारवादी यह मानते हैं कि समाज मानव व्यवहार एक ही पूर्ण इकाई है और उनका अध्ययन खण्डों में नहीं किया जाना चाहिए बल्कि समग्र रूप से होना चाहिए। व्यवहारवाद की आलोचना एवं दुर्बलताएँ-व्यवहारवाद की अपनी उपयोगिता परन्तु अपनी दुर्बलताएँ भी हैं। उनका उल्लेख यहाँ संक्षेप में किया जा रहा है- 1. व्यवहारवाद की सबसे बड़ी कमजोरी मूल्यों की निरपेक्षता है मूल्यों के अभाव में लोकतंत्र में तानाशाही सभी व्यवस्थाएँ समान हो जायेंगी और अध्ययन की विषम स्थिति उत्पन्न हो जायेगी बिना किसी उद्देश्य के किया गया कोई कार्य राजनीतिक कैसे हो सकता है। मूल्यों से बचने का प्रयास मूल्यहीनता को खुली छूट देना है 2. व्यवहारवादी हमारे सम्मुख मर्यादित और अहंकारी दोनों ही रूप में आते हैं एक ओर वह अपने निष्कर्ष और मान्यताओं को सापेक्ष मानते हैं और इस दृष्टि से वह मर्यादित हैं तथा दूसरी ओर वह किसी भी ऐसे तत्व को स्थायित्व नहीं प्रदान करते हैं जिससे वे अहंकारी प्रतीत होते हैं। 3. व्यवहारवादी अब तक मानव विज्ञान और व्यवहार प्रस्तुत नहीं कर सके हैं यद्यपि इस हेतु करोड़ों डालर खर्च किये जा चुके हैं । इस प्रकार यह अब तक मृग-मरीचिका बना हुआ है। 4. व्यवहारवादी इस तथ्य को भूल जाते हैं कि प्राकृतिक विज्ञानों और राजविज्ञानों के लक्ष्यों में बड़ा गहन अन्तर है। इन दोनों तत्वों की तुलना करना अत्यन्त जटिल कार्य है। 5. व्यवहारवादियों की एक प्रकार की कमजोरी उनके द्वारा पद्धतियों पर अधिक बल देना है। ऐबरी लीसन ने लिखा है, “यह महत्वपूर्ण को छोड़कर महत्वपूर्ण विषयों के सम्बन्ध में तथ्य एवं जानकारी एकत्र करने में लगे रहते हैं।” 6. व्यवहारवादी विज्ञान की स्थापना की धुन का परिणाम राजनीति से पृथक् रखने के रूप में निकला है। एल्फ्रेड काबन ने लिखा है कि व्यवहारवाद राजनीति के खतरनाक चंगुल से बचने के लिए विश्वविद्यालय शिक्षकों के द्वारा आविष्कृत विज्ञान है। 7. व्यवहारवादियों की स्थिति इस दृष्टि से भी संगतपूर्ण है कि एक ओर वे अपने को मूल्य निरपेक्षतावादी कहते हैं और दूसरी ओर कोई भी ऐसा व्यवहारवादी नहीं है जो उदार लोकतन्त्र में विश्वास न करता हो। ऐसी स्थिति में वह रूढ़िवादी बन जाते हैं। निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट है कि व्यवहारवाद की जहाँ अपनी कुछ उपयोगिता है वहीं उसकी अनेक दुर्बलताएँ हैं । इन दुर्बलताओं के कारण ही उत्तर-व्यवहारवाद का जन्म हुआ। 1960 ई० में डेविड ईस्टन ने ही व्यवहारवादं पर प्रहार किया और कहा कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में स्थिति और अध्ययन के क्षेत्र में प्राकृतिक वैज्ञानिकों की पद्धतियों को अपनाकर राजनीति विज्ञान को कठोर वैज्ञानिक रूप प्रदान करने का प्रयास किया गया परन्तु इसमें असफलता ही साथ लगी। उत्तर-व्यवहारवाद में इस तत्व पर पहले दिया गया कि राजनीतिक स्थिति जीवन की समस्याओं से आधारित होनी चाहिए। हमारा लक्ष्य सामाजिक सुदृढ़ता नहीं बल्कि बाहरी होनी चाहिए और मूल्यों के समस्त अध्ययन को केन्द्रीय स्थान प्रदान किया जाना चाहिए। उत्तर- व्यवहारवादियों का मत है कि बौद्धिक प्रकार के समाज में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है और ज्ञान का उपयोग जनता के लिए किया जाना चाहिए। 1970 ई० के बाद व्यवहारवादियों एवं उत्तर-व्यवहारवादियों का पारस्परिक विरोध समाप्त हो गया और व्यवहारवादियों ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है कि राजनीति विज्ञान में अधिकाधिक मात्रा में अनुभवात्मक अध्ययन और विशुद्ध परिणाम देने वाली पद्धतियों को बनाते हुए ही वास्तविक स्थिति में इस विज्ञान में स्थायित्व प्रदान करने का प्रयास किया जाना चाहिए। वे यह मानते हैं कि राजनीति का ज्ञान वास्तविक राजनीतिक नवीन की समस्याओं एवं जटिलताओं से अलग रहकर नहीं किया जा सकता तथा समस्त राजनीतिक अध्ययन में मूल्यों को केन्द्रीय स्थिति प्रदान की जानी चाहिए। लोकसभा की शक्तियां विस्तार में (Functions and Powers of the Lok Sabha in Hindi) PDF अधिनायक तंत्र किसे कहते हैं? संसदीय शासन प्रणाली के गुण एवं दोष संसदीय शासन प्रणाली के लक्षण अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षण एकात्मक सरकार का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, गुण एवं दोष संघात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? उसकी प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? संघ एवं परिसंघ में अन्तर एकात्मक एवं संघात्मक शासन में क्या अन्तर है? बेंथम के विचारों की आलोचना। Criticism of Bentham In Hindi व्यवहारवाद से आप क्या समझते हैं इसके नियमों और सिद्धांतों की व्याख्या करें?व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) के अनुसार मनोविज्ञान केवल तभी सच्ची वैज्ञानिकता का वाहक हो सकता है जब वह अपने अध्ययन का आधार व्यक्ति की मांसपेशीय और ग्रंथिमूलक अनुक्रियाओं को बनाये। मनोविज्ञान में व्यवहारवाद (बिहेवियरिज़म) की शुरुआत बीसवीं सदी के पहले दशक में जे. बी.
व्यवहारवाद से आप क्या समझते हैं इसकी मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए?व्यवहारवाद की विशेषताएं (vyavharvad ki visheshta) व्यवहारवादियों की मान्यता हैं कि मनुष्य के कई व्यवहार एक जैसे होते हैं। इसी आधार पर व्यक्तियों के व्यवहारों में सरलता से समानताओं को खोजा जा सकता हैं। इन समान व्यवहारों का सामान्यीकरण किया जा सकता है और इस आधार पर व्यक्ति के व्यवहारों का नियमन किया जा सकता हैं।
व्यवहारवाद का सिद्धांत किसका है?अधिगम के इस महत्वपूर्ण व्यवहारगत उपागम का प्रतिपादन बी. एफ. स्किनर द्धारा किया गया हैं । व्यवहारवादी व्यवहार के वस्तुगत अध्ययन में विश्वास रखते हैं चाहे व्यवहार का सम्बन्ध जन्तुओं से हो अथवा मानव से । ठस विचारधारा का मुख्य बल वातावरण पर है ।
व्यवहार क्या है इसकी प्रमुख विशेषताएं बताइए?शारीरिक व्यवहार का सरलतम रूप "सहज क्रिया" (रिफ्लेक्स ऐक्शन) में मिलता है। यदि आँख पर प्रकाशपुंज फेंकी जाए, तो पुतली तत्काल सिकुड़ने लगती है। यह एक जन्मजात, प्राकृतिक अनायास क्रिया है। इस क्रिया का न तो कोई पूर्वगामी अथवा सहचारी चेतन अनुभव होता है और न ही यह व्यक्ति की इच्छा के बस में रहती है।
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