निराला की कविता तोड़ती पत्थर का प्रतिपाद्य निम्नलिखित में से क्या है? - niraala kee kavita todatee patthar ka pratipaady nimnalikhit mein se kya hai?

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तोड़ती पत्थर

कवि-परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ छायावाद के प्रतिनिधि कवि थे। हिन्दी साहित्य- जगत में छायावाद को उन्नति के शिखर पर ले जाने वाले तीन श्रेष्ठ कवियों में ‘प्रसाद’, और ‘पंत’ के साथ ‘निराला’ का नाम भी श्रद्धा के साथ लिया जाता है। हिन्दी काव्य-जगत में इनके निराले व्यक्तित्व के कारण ही इन्हें ‘निराला’ की उपाधि से विभूषित किया गया है। इनकी भाषा में भावानुरूप कोमलता और पौरुष दोनों का सुन्दर समन्वय है। भाषा के इतिहास में ऐसे साहित्यकार कभी-कभी ही देखने को मिलते हैं। निराला जी व्यक्तित्व की विशिष्टता के जीते-जागते तस्वीर थे।

‘निराला’ का जन्म सन् 1896 में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के अन्तर्गत महिबादल नामक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था। इनके पिता एक सामान्य कर्मचारी थे। निराला की औपचारिक शिक्षा महिषादल के स्थानीय स्कूल में केवल नौवीं कक्षा तक हुई। इसके बाद उन्होंने घर पर ही स्वाध्याय के माध्यम से अंग्रेजी, संस्कृत और बांग्ला भाषा का ज्ञान अर्जित किया। उनकी संगीत और दर्शनशास्त्र में भी गहरी रुचि थी। उनका विवाह चौदह वर्ष की अल्पायु में हो गया था। उनकी पत्नी का नाम मनोहरा देवी था। निराला जी को साहित्य सृजन की प्रेरणा अपनी पत्नी से मिली। इनका देहावसान सन् 1961 में हुआ था।

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निराला जी के साहित्यिक जीवन की शुरुआत सन् 1920 में ‘समन्वय’ नामक पत्रिका के संपादन से हुई। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं यथा ‘कविता’, ‘निबंध’, ‘कहानी’, ‘उपन्यास’, ‘जीवनी’ आदि में अपनी लेखनी का चमत्कार दिखाया है। हिन्दी काव्य-जगत में परंपरागत तुकांत छंदों के साथ ही नवीन अतुकान्त छंदों के प्रयोग के क्रान्तिकारी परिवर्तन का श्रेय निराला जी को दिया जाता है। ‘अनामिका’ (दो भाग), ‘परिमल’, ‘गीतिका’, ‘तुलसीदास’, ‘कुकुरमुत्ता’, ‘अनिमा’, ‘नए पत्ते’, ‘बेला’, ‘अर्चना, ‘आराधना’, ‘गीतगुंज’, ‘सांध्यकाकली’ आदि उनकी प्रमुख काव्यकृतियाँ हैं। उनकी उपन्यास रचनाओं में ‘अप्सरा’, ‘अलका’, ‘निरुपमा’, ‘प्रभावती’, ‘काले कारनामें’, ‘चोटी की पकड़’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

उनकी कहानियों में ‘लिली’, ‘सखी’, ‘सुकुल की बीबी’, ‘देवी’ आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। उनके द्वारा रचित रेखाचित्रों में ‘कुल्लीभाट्’, ‘बिल्लेसुर’,

‘बकरिहा’, ‘चतुरी चमार’ आदि तथा निबंध रचनाओं और आलोचनाओं में प्रबंध पद्म प्रबंध प्रतिमा’, ‘चाबुक’ आदि प्रमुख हैं। उन्होंने ‘भक्त ध्रुव’, ‘भक्त प्रह्लाद’, ‘भीष्म, ‘महाराणा प्रताप’ आदि महापुरुषों की जीवनी भी लिखी है। उनकी रचनाओं की भाषा में संस्कृत के समासप्रधान शब्दावली के साथ-साथ सरल एवं व्यावहारिक शब्दावली का समावेश दिखाई देता है। उन्होंने ‘समन्वय’ के अतिरिक्त ‘मतवाला’ और ‘माधुरी’ नामक पत्रिकाओं का भी संपादन किया था।

सारांश

प्रस्तुत कविता ‘तोड़ती पत्थर’ में कवि ने सड़क के किनारे दोपहरी की चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती हुई एक युवा मजदूरिन के कठिन पुरुषार्थ और संकेतों का यथार्थ चित्रण किया है।

वह मजदूरिन जहाँ काम कर रही है, वहाँ कोई छायादार वृक्ष नहीं है। वह साँवले रंग की सुंदर युवती है, जो आँखें झुकाए मन से अपने पत्थर तोड़ने के काम में लीन है। उसके सामने चहारदीवारी के अन्दर बहुमंजिली इमारतों के पास पेड़ों की लम्बी कतारें हैं। गर्मी की दोपहरी में सूरज आग उगल रहा है। गर्म हवाएँ उसके शरीर को झुलसा रही हैं, उसके पैरों तले धरती जलती हुई रुई के समान तप रही है, धूलकण चिंगारी की तरह उसके अंगों से चिपक रहे हैं और वह इस असह्य गर्मी को झेलती हुई निरन्तर पत्थर तोड़ने के कार्य में लगी हुई है।

पत्थर तोड़ने के क्रम में अनायास ही वह मजदूरिन कवि को अपनी ओर देखते हुए देखती है तो उसकी निरन्तरता भंग हो जाती है और वह सामने भवन की ओर देखने लगती है। कवि को उसकी दृष्टि में दर्द का वह राग सुनाई पड़ता है, जो पहले उसने कभी नहीं सुना था। उससे नजर मिलने के एक क्षण बाद वह मजदूरिन काँपने लगती है और उसका पूरा शरीर पसीना पसीना हो जाता है। वह अपनी विवश जिन्दगी की वास्तविकता को स्वीकार करते हुए फिर से पत्थर तोड़ने के कार्य में व्यस्त हो जाती है।

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पाठ्यपुस्तक संबंधित प्रश्न एवं उत्तर

■ बोध एवं विचार

1.सही विकल्प का चयन कीजिए:

(क) कवि ने पत्थर तोड़नेवाली को देखा था

(i) इलाहाबाद के पथ पर 

(ii) बनारस के पथ पर

(iii) ऊँची पहाड़ी पर

(iv) छायादार पेड़ के नीचे

उत्तर: (i) इलाहाबाद के पथ पर

( ख ) स्त्री पत्थर किस समय तोड़ रही थी

(i)सुबह              (ii) शाम

(iii) दोपहर          (iv) रात

उत्तर: (i) दोपहर

2.निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए:

( क ) पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय कवि ने किस तरह दिया है ?

उत्तर: पत्थर तोड़नेवाली स्त्री का परिचय देते हुए कवि कहते हैं कि वह साँवले रंग की सुंदर युवती थी जो आँखें झुकाए मन से पत्थर तोड़ने के काम में लीन थी।

( ख ) पत्थर तोड़नेवाली स्त्री कहाँ बैठकर काम कर रही थी और वहाँ किस चीज की कमी थी ? 

उत्तर: पत्थर तोड़नेवाली स्त्री इलाहाबाद में सड़क के किनारे बैठकर काम कर रही थी और वहाँ छायादार वृक्ष की कमी थी।

(ग) कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर क्यों देखने लगी ?

उत्तरः कवि को अपनी ओर देखते हुए देखकर स्त्री सामने खड़े भवन की ओर इसलिए देखने लगी, क्योंकि वह सामाजिक वैषम्य (विषमता) की ओर उसका (कवि का) ध्यान आकृष्ट कराना चाहती थी।

(घ) ‘छिन्नतार’ शब्द का क्या अर्थ है ?

उत्तर: ‘छिन्नतार’ शब्द का अर्थ ‘टूटी निरन्तरता’ या ‘क्रम भंग होना’ है।

(ङ) ‘तोड़ती पत्थर’ कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।

उत्तरः प्रस्तुत कविता में दोपहर की चिलचिलाती धूप में पत्थर तोड़ती हुई एक युवा मजदूरिन के माध्यम से समाज का यथार्थ चित्रण किया गया है। सामाजिक विषमता को मारी निम्न वर्ग की यह सुन्दर मजदूरिन शरीर को झुलसा देनेवाली तपती धूप में पत्थर तोड़ने को मजबूर है। समाज में व्याप्त सामाजिक एवं आर्थिक विषमता तथा जीवन की कठिनाइयों के विरुद्ध संघर्ष को उजागर करना ही इस कविता का प्रतिपाद्य है।

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3.निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए:

(क) श्याम तन, भर बँधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन,

उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि वह मजदूरिन साँवले रंग की सुंदर युवती थी, लेकिन जीवन की विवशता के कारण उसकी आँखें झुकी हुई थीं। परन्तु वह अपने वर्तमान जीवन से निराश नहीं थी बल्कि अपने क्रांतिकारी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए तपती धूप में थौड़ा लेकर पूरी तन्मयता के साथ पत्थरों से लड़ रही थी।

(ख) सजा सहज सितार, सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार;

उत्तरः प्रस्तुत पंक्तियों का भाव यह है कि उस युवा मजदूरिन की सहज दृष्टि के सितार पर दर्द का जो राग था, वह कवि ने पहली बार सुना था। अर्थात् इस तरह किसी सुन्दर युवती के विवश और मजबूर जीवन की पीड़ा का अनुभव उन्हें आज तक नहीं हुआ था।

निराला की कविता तोड़ती पत्थर का प्रतिपाद्य क्या है?

मजदूर वर्ग की दयनीय दशा को उभारने वाली एक मार्मिक कविता है। कवि कहता है कि उसने इलाहाबाद के मार्ग पर एक मजदूरनी को पत्थर तोड़ते देखा। वह जिस पेड़ के नीचे बैठकर पत्थर तोड़ रही थी वह छायादार भी नहीं था, फिर भी विवशतावश वह वहीं बैठे पत्थर तोड़ रही थी। उसका शरीर श्यामवर्ण का था, तथा वह पूर्णत: युवा थी।

वह तोड़ती पत्थर कविता का उद्देश्य क्या है?

इस कविता में कवि 'निराला' जी ने एक पत्थर तोड़ने वाली मजदूरी के माध्यम से शोषित समाज के जीवन की विषमता का वर्णन किया है। कविता का भाव सौंदर्य की दृष्टि से बहुत ही अद्भुत है। सड़क पर पत्थर तोड़ती एक मजदूर महिला का वर्णन कवि ने अत्यंत सरल शब्दों में किया है। वो तपती दोपहरी में बैठी हुई पत्थर तोड़ रही है।

वह तोड़ती पत्थर कविता में निराला क्या संदेश दे रहे हैं स्पष्ट कीजिए?

'वह तोड़ती पत्थर' कविता में भी श्रमिक नारी के जीवन और उसके प्रति समाज की हृदयहीनता का अंकन किया गया है । निराला का अपना जीवन भी कष्ट भोगते हुए बीता । उसमें सुख-आनंद की लहरें कुछ ही दिनों के लिए आईं, जिनकी स्मृति के सहारे ही उन्होंने शेष जीवन बिताया। 'मौन' कविता में कवि अपने प्रिय के साथ कुछ समय चुपचाप बिताना चाहता है ।

वह तोड़ती पत्थर में कवि ने मुख्यतः किसका वर्णन किया है?

कवि इलाहाबाद के किसी रास्ते पर उस महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखते है। वह एक ऐसे पेड़ के नीचे बैठी है, जहा छाया नहीं मिल रही आस पास भी कोई छायादार जगह नहीं हैं। इस प्रकार कवि शोषित समाज की विषमता का वर्णन करते है। ओर बताते है की मजदूर वर्ग अपना काम पूरी लग्न के साथ करते है।