नीलकंठ को कैसे वृक्ष भाते थे? - neelakanth ko kaise vrksh bhaate the?

एक दिन लेखिका अपने एक मेहमान को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थीं कि उन्हें चिड़ियों और खरगोशों की दुकान का ध्यान आ गया। थे बड़े मियाँ चिड़ियावाले की दुकान पर अभी पहुँची भी न थीं कि उन्होंने बीचोंबीच गाड़ी रुकवाकर लेखिका को मोर के दो बच्चों के बारे में बताना शुरू कर दिया। उसने कहा एक मोर है एक मोरनी। लेखिका ने मोर के बच्चे देखने चाहे। वे तीतरों की तरह पिंजरे में बंद थे लेखिका ने 35 रुपए देकर उन दोनों को खरीद लिया। जैसे ही पिंजरा कार में रखा वे छटपटाने लगे मानो पिंजरा ही सजीव और कहने योग्य हो गया हो। 

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महादेवी ने अपने घर के बड़े जालीघर में उन्हें दूसरे जीव-जंतुओं के डर से पास न रखा बल्कि अपने पढ़ने के कमरे में उन्हें स्थान दिया। इस कमरे में उनके पिंजरे का दरवाजा खोल दिया गया। दो कटोरियों में सत्तू की गोलियाँ व पानी रखा गया। वे कमरे में कभी मेज के नीचे व कभी अलमारी के पीछे घुस जाते। फिर वो रद्दी कागज की टोकरी में बैठने लगे। पूरे कमरे में घूमते, कभी मेज पर, कभी कुरसी पर, कभी महादेवी के पास। कमरे के दरवाजे एकदम बंद रहते कि कहीं बिल्ली अंदर न आ जाए। 


बड़ी कठिनाई से एक दिन महादेवी वर्मा ने इन पक्षियों को दूसरे जीवों के साथ बड़े जालीघर में पहुँचाया। दोनों नए मेहमानों का स्वागत वहाँ के सभी जीवों ने नववधू के समान किया। लक्का कबूतर नाचना छोड़कर, उनके चारों ओर गुटरगूँ-गुटरगूँ करने लगा, बड़े खरगोश सभ्य सांसदों की भांति क्रम से बैठकर गंभीर भाव से उनका निरीक्षण करने लगे, छोटे खरगोश उनके चारों ओर उछल-कूद मचाने लगे, तोते एक आँख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे मानो चिड़ियाघर में भूचाल आ गया। 


धीरे-धीरे मोर के बच्चे बढ़ने लगे। मोर के सिर पर कलगी सघन, ऊँची और चमकीली हो गई। चोंच टेढ़ी और तेज हो गई, गोल आँखें इंद्रमणि की नीली चमक की भाँति चमकने लगीं। लंबी हरी और नीली गर्दन व उसके हर भाव से धूप-छाँही की तरंगें उठतीं। लंबी पूँछ व पंखों में इंद्रधनुषी रंग दिखाई देने लगे। मोरनी का विकास मोर के समान चमत्कारिक तो नहीं हुआ-परंतु उसकी लंबी गर्दन, चंचल कलगी, कम मनभावन नहीं थी।


मोर की गर्दन नीली होने के कारण उसका नाम रखा गया 'नीलकंठ' व मोरनी के सदा उसके साथ-साथ चलने के कारण उसका नाम रखा गया 'राधा'। नीलकंठ की भाव-भंगिमगवाएँ लेखिका को आकर्षित करती उसका गर्दन टेड़ी करके देखना, विशेष भगिमा के साथ नीचे कर दाना चुगना, पानी पीना टेडी कर शब्द सुनना, लेखिका व मेहमानों के स्वागत हेतु अपने पंखों को मंडलाकार रूप देना, वर्षा ऋतु में नृत्य करना आदि मनमोहक लगता।


सभी जीव-जंतुओं ने नीलकंठ को अपना संरक्षक व सेनापति नियुक्त कर लिया। सबको दाना खिलाने आता, किसी के कुछ भी गड़बड़ी करने पर अपनी चोंच से उसे प्रहार करके दंड देता। वह अपने सघन पंख फैलाकर बैठ जाता और वे सब उसकी लंबी पूँछ और पंखों में छुआ-छुअउल का खेल खेलते। एक बार एक साँप न जाने कहाँ से जाली के भीतर आ गया और छोटा खरगोश उसकी पकड़ में आ गया तो नीलकंठ ने सांप पर वार करके खरगोश के बच्चे को बचाया। राधा ने जब तक दूसरे जीव-जंतुओं को सूचित किया तब तक तो नीलकंठ साँप के दो खंड कर चुका था।


वसंत ऋतु में जैसे ही आम के वृक्ष फूलों से लद जाते, अशोक के नए लाल पत्ते पल्लवित होते तो नीलकंठ जालीघर में बद न रह पाता उसे बाहर ही छोड़ना पड़ता।नीलकंठ और राधा की प्रिय ऋतु थी वर्षा। मेघों के आने से पहले ही हवा में सजल आहट पा लेते थे। वर्षा होते ही मोर का गोलाई में पंख फैलाकर नृत्य करना मनभावन होता था। मेघ के गर्जन के ताल पर ही तन्मय नृत्य आरंभ होता। राधा नीलकंठ के समान नाच नहीं सकती थी, परंतु उसकी गति में भी एक छंद रहता था। 


एक दिन किसी काम से लेखिका नखासकोने से निकली तो बड़े मियों ने कार को रोक लिया और उन्हें एक मोरनी दिखाई जिसके पंजों की उँगलियाँ टूटी हुई थीं। उसने बताया कि चिडिमार ने ऐसा किया है। महादेवी ने सात रुपए देकर बसे खरीद लिया। पंजों की मरहम पट्टी करने से एक महीने में वह अच्छी हो गई व थोड़ा डगमगाती हुई चलने लगी। उसे भी जालीघर पहुंचाया गया व उसका नाम रखा गया 'कुब्जा। कुब्जा बाकी जीव-जंतुओं की भाँति प्रेम-मिलाप वाली नहीं थी वह सदा नीलकंठ के साथ रहना चाहती। जब भी राधा को नीलकंठ के साथ देखती, तो उसे मारने दौड़ती। और एक बार राधा ने दो अंडे दिए जिन्हें वह पखों में छिपाए बैठी रहती लेकिन कुब्जा ने उन्हें भी तोड़ डाला। नीलकंठ उससे दूर भागता था परंतु वह किसी को भी नीलकंठ के समीप नहीं आने देती थी। 


राधा से अलग रहकर नौलकंठ अप्रसन्न रहने लगा। कई बार वह जाली भर से भाग भी गया। कई बार वह उदास होकर आम की शाखाओं में भूखा-प्यासा छिप जाता। एक बार खिड़की शैड पर छिपा रहा। अब नीलकंठ की चाल में थकावट व आँखों में शून्यता रहती। महादेवी सोचती रहीं कि समय रहते सब ठीक हो जाएगा। लेकिन एक दिन सुबह उन्होंने देखा कि नीलकंठ पूँछ व पंख फैलाए धरती पर बैठा था। लेखिका के पुकारने पर भी वह हिला-डुला नहीं। वास्तव में वह मर गया था।


महादेवी ने उसे अपने शाल में लपेटकर गंगा की लहरों में प्रवाहित कर दिया। राधा उसकी मृत्यु के बाद सदा उसके इंतजार में रहती कि वह आ जाएगा। उसे हर पल नीलकंठ के अपने साथ होने का अहसास था। आषाढ़ माह में जब बादल छाते तो वह कभी ऊँचे झूले पर चढ़कर, कभी अशोक की डाल पर अपनी तेज आवाज में नीलकंठ को बुलाती रहती।


कुब्जा भी नीलकंठ को ढूँढ़ती रही। जाली का दरवाजा खुलते ही बाहर भागती और आम, अशोक, कचनार आदि की शाखाओं में उसे ढूंढती। एक दिन आम की शाखा से उतरी कि अल्सेशियन कुतिया कजली उसके सामने आ गई। उसने कजली पर भी चोंच का प्रहार किया। कजली ने दो दाँत उसकी गरदन पर लगाए, जिससे उसकी भी जीवनलीला समाप्त हो गई।


नीलकंठ के प्रश्न उत्तर 

निबंध से

1. मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए? 

उत्तर-नीलाभ ग्रीवा अर्थात् नीली गर्दन के कारण मोर का नाम रखा गया नीलकंठ। मोरनी सदा उसकी छाया के समान उसके साथ-साथ ऐसे रहती जैसे राधा श्री कृष्ण के साथ रहती थी इसलिए उसका नाम राधा रखा गया। 

2. जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ? 

उत्तर-मोर और मोरनी को जब जाली के बड़े घर में पहुँचाया गया तो दोनों का स्वागत ऐसे किया गया जैसे नववधू के आगमन पर किया जाता है। लक्का कबूतर नाचना छोड़ उनके चारों ओर घूम-घूमकर गुटरगूँ-गुटरगूँ करने लगा, बड़े खरगोश गंभीर रूप से उनका निरीक्षण करने लगे, छोटे खरगोश उनके चारों ओर उछलकूद मचाने लगे, तोते एक आँख बंद करके उनका परीक्षण करने लगे।

3. लेखिका को नीलकंठ की कौन-कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?

उत्तर-नीलकंठ देखने में बहुत सुंदर था वैसे तो उसकी हर चेष्टा ही अपने आप में आकर्षक थी लेकिन महादेवी को निम्न चेष्टाएँ अत्यधिक भाती थीं।

1- गर्दन ऊँची करके देखना।

2- विशेष भगिमा के साथ गर्दन नीची कर दाना चुगना।

3-गर्दन को टेढ़ी करके शब्द सुनना।

4- इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर तन्मय नृत्य करना।

5- महादेवी के हाथों से हौले हौले चने उठाकर खाना। 

6- महादेवी के सामने पंख फैलाकर खड़े होना।

4. 'इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?

उत्तर- इस आनंदोत्सव को रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा' यह इस घटना की ओर संकेत करता है कि नीलकंठ और राधा सदा साथ-साथ रहते थे। घर के सभी जीव-जंतुओं का भी आपस में अनन्य प्रेम था। एक दिन महादेवी वर्मा 'नखासकोने' से निकली तो चिड़िया बेचने वाले बडे मियाँ ने उन्हें एक मोरनी के बारे में बताया जिसका पाँव घायल था। लेखिका उसे सात रुपए में खरीदकर घर ले आई और उसकी देखभाल की। वह कुछ ही दिनों में स्वस्थ हो गई। उसका नाम कुब्जा रखा गया। वह स्वभाव से मेल-मिलाप वाली न थी। वह नीलकंठ और राधा को साथ-साथ न देख पाती। 

5. वसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था? 

उत्तर- नीलकंठ को फलों के वृक्षों से भी अधिक पुष्प व पल्लवित वृक्ष भाते थे। इसीलिए जब वसंत में आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लद जाते और अशोक लाल पत्तों से ढ़क जाता तो नीलकंठ के लिए जालीघर में रहना असहनीय हो जाता। वह बार-बार बाहर जाने का प्रयास करता तब महादेवी को उसे बाहर छोड़ देना पड़ता।

6. जालीघर में रहनेवाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?

उत्तर-जालीघर में रहने वाले सभी जीव एक दूसरे के मित्र थे। कबूतर, खरगोश, तोते, मोर, मोरनी सभी मिलजुल कर रहते थे। लेकिन कुब्जा का स्वभाव मेल-मिलाप का नहीं था। वह हरदम सबसे झगड़ा करती थी और सभी को अपनी चोंच से नोच डालती थी। यही कारण था कि वह किसी की मित्र न बन सकी।

7. नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-एक बार एक साँप जालीघर के भीतर आ गया। सब जीव जंतु भागकर इधर उधर छिप गए, केवल एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। साँप ने उसे निगलना चाहा और उसका आधा पिछला शरीर मुँह में दबा लिया। नन्हा खरगोश धीरे-धीरे ची-चों कर रहा था। सोए हुए नीलकंठ ने दर्दभरी व्यथा सुनी तो वह अपने पंख समेटता हुआ आ गया। अब उसने बहुत सतर्क होकर साँप के फन के पास पंजों से दबाया और फिर अपनी चोंच से इतने प्रहार उस पर किए कि वह अधमरा हो गया और फन की पकड़ ढीली होते ही खरगोश का बच्चा मुख से निकल आया। इस प्रकार नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से बचाया।


इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की निम्न विशेषताएँ उभर कर आती हैं 


1. सतर्कता-जालीघर के ऊँचे झूले पर सोते हुए भी उसे खरगोश की कराह सुनकर यह शक हो गया कि कोई प्राणी कष्ट में है और वह झट से झूले से नीचे उतरा। 


2. वीरता-नीलकंठ वीर प्राणी है। अकेले ही उसने साँप से खरगोश के बच्चे को बचाया और साँप के दो खंड करके अपनी वीरता का परिचय दिया।


नीलकंठ पाठ के निबंध से आगे

1. यह पाठ एक 'रेखाचित्र' है रेखाचित्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं? जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए। 

उत्तर- रेखाचित्र एक सिधी कहानी न होकर जीवन के कुछ मुख्य अंश प्रस्तुत करने वाली रचना होती है इसमें संवेदना पर भावात्मकता होती है। यह अत्यंत स्वाभाविक और सरल होती हैं। इनमें बनावट लेशमात्र भी नहीं होता है। अन्य रेखाचित्र महादेवी के संग्रह से पढ़िए।

2. वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल घिर आते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे-धीरे मचलने लगता है यह मोहक दृश्य देखने का प्रयास कीजिए।

विद्यार्थी स्वयं करें। 

3. पुस्तकालय से ऐसी कहानियों, कविताओं या गीतों को खोजकर पढिए जो वर्षा ऋतु और मोर के नाचने से संबंधित हों।

उत्तर -

वर्षा ऋतु पर कविता 


काले-काले बादल आएँ 

पूरे नभ पर आ छा जाएँ 

उमड़-घुमड़कर गड़-गड़ करते 

झम-झम, झम-झम जल बरसाएँ 

नाचे मोर पपीहा बोले 

टर्र-टर्र मेंढक भी डोले

हरी हुई पेड़ों की डालें 

आओ इनपर झूला झूलें। 

घर आँगन में गली-गली में 

मिलकर हम सब खूब नहाएँ 

कागज़ की अपनी नौका को 

जल में तैरा, खुशी मनाएँ।


नीलकंठ पाठ का अनुमान और कल्पन

1. निबंध में आपने ये पंक्तियाँ पढ़ी है-'मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित-प्रतिबिंबित होकर गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।-इन पंक्तियों में एक भावचित्र है। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए कि मोरपंख की चंद्रिका और गंगा को लहरों में क्या-क्या समानताएँ लेखिका ने देखी होगी जिसके कारण गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर पंख के समान तरंगित हो उठा। 

उत्तर-गंगा और यमुना के श्वेत-श्याम जल का मिलन प्रातःकाल के सूर्य की किरणों से जब सतरंगी दिखाई देता है तो दूर-दूर तक किसी मयूर के नृत्य का दृश्य प्रस्तुत करता है। जो अत्यंत लुभावना व मनमोहक होता है। मानो महादेवी को अपने नीलकंठ का नृत्य स्मरण हो आया हो जो लहरों में सजीव हो उठा।

2. नीलकंठ की नृत्य-भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत करें।

उत्तर-मेघों के घिरते ही नीलकंठ के पाँव थिरकने लगते हैं। जैसे-जैसे वर्षा तीव्र से तीव्रतर होती उसके पाँवों में शक्ति आ जाती और नृत्य तेजी से होने लगता जो अत्यंत मनोहारी होता। नीलकंठ के पंख फैलाते ही इंद्रधनुष का दृश्य साकार उठता।


नीलकंठ पाठ के भाषा की बात

1. 'रूप' शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों में अन्य शब्द बनाइए।

गंध, रंग, फल, ज्ञान 

उत्तर - 

गंध- सुगंध, दुर्गंध

रंग- बेरंग, नौरंग

फल- सुफल, सफल

ज्ञान- अज्ञान, विज्ञान 



2. विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण हैं। ये सभी वर्ण-ध्वनियों में व्याप्त हैं व्यंजन बर्णों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे-क्+अ=क इत्यादि। अ की मात्रा के चिह्न (।) से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से आकार की मात्रा ही लगती है, जैसे-मंडल+आकार=मंडलाकार। मंडल और आकार की संधि करने पर मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के संधि-विग्रह कीजिए

उत्तर 

1- नील+आभ= नीलाभ

2- नव+आगंतुक= नवांगतुक 

3- सिंह+आसन= सिंहासन

4- मेघ+आछन्न= मेघाच्छन्न


नीलकंठ के अतिरिक्त प्रश्न उत्तर 

1- नीलकंठ की साहित्यिक विधा क्या है?

उत्तर- नीलकंठ की साहित्यिक विधा रेखाचित्र है।

2- नीलकंठ के लेखक कौन है?

उत्तर- नीलकंठ की लेखिका महादेवी वर्मा हैं। 

3- नीलकंठ पाठ का संदेश क्या है?

उत्तर-'नीलकंठ' पाठ से यह संदेश मिलता है कि हमें जीव-जंतुओं पर किसी प्रकार का अत्याचार न करके उनसे प्रेमभाव रखना चाहिए। यदि हम उनके प्रति अपना प्रेम प्रकट करें तो वे हमें कभी भी नुकसान नहीं पंहुचा सकते।

4. महादेवी मोर - मोरनी को कहाँ से लायी थी?

उत्तर- महादेवी मोर मोरनी को नखासकोने से लायी थी। उन्होंने इन्हें ₹35 में चिड़ीमार से खरीदा था।

5 . नीलकंठ पाठ का उद्देश्य क्या है?

उत्तर - नीलकंठ पाठ का उद्देश्य जनमानस में पशु पक्षियों के प्रति प्रेम भाव को संचारित करना है ।इस पाठ के माध्यम से लोग पक्षियों के महत्व को समझ सकेंगे। पर्यावरण संतुलन बनाने में पशु पक्षियों का विशेष योगदान होता है इस बात को भी लोग समझ सकेंगे।