नाग पंचमी का मेला कहां लगता है - naag panchamee ka mela kahaan lagata hai

बिहार का वो इलाका, जहां नाग पंचमी पर लगता है सांपों का मेला

फीचर डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: नवनीत राठौर Updated Sat, 25 Jul 2020 11:06 AM IST

समस्तीपुर में हर साल नागपंचमी के मौके पर सांपों का मेला लगता है। खासतौर पर समस्तीपुर के सिंघिया, नरहन, डुमरिया, खदियाही, बेसरी, चकहबीब, मुस्तफापुर सहित पूरे इलाके में ये मेला छोटे या बड़े स्तर पर लगता है। मेला लगने से एक महीने पहले ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। स्थानीय लोग सांप पकड़कर घरों में रखना शुरू कर देते हैं और नागपंचमी के दिन वो सांप लेकर हजारों की संख्या में झुंड बनाकर अहले सुबह नदी के घाट पर जाते हैं। 60 साल के महेन्द्र पासवान बीते 45 साल से भी अधिक समय से बेला भगवती स्थान का काम संभाल रहे हैं। स्थानीय लोग इन्हें 'भगत' कहते हैं।

महेन्द्र को ये विरासत अपने पिता और दादा लखन पासवान से मिली है। महेन्द्र बताते हैं कि फिलहाल केरल में एक टाइल्स फैक्ट्री में काम करने वाले उनका बड़ा बेटा उनके बाद ये 'खानदानी' काम संभालेगा। महेन्द्र बताते हैं, "नागपंचमी से एक दिन पहले रात भर जागरण होता है। सभी लोग सांप, नाग लेकर जुटते है और रात भर की पूजा अर्चना के बाद हम लोग सुबह जुलूस निकालते हुए नदी जाते हैं और स्नान करके सांप या नाग को दूध लावा खिलाकर जंगल में छोड़ देते है।"

वैसे वैज्ञानिक तौर पर सांपों के दूध पीने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन सांपों के सामने दूध रखने का चलन काफी पुराना है। नागपंचमी के दिन ये लोग विषैले सांप और नाग हाथ में उठाकर ढोल-नगाड़ों के के साथ जुलूस निकालते हैं। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, सभी के हाथ में सांप खिलौने जैसा लगता है। महेन्द्र भगत कहते हैं कि सांप का विष नहीं निकाला जाता है, लेकिन स्थानीय महिलाएं बबिता देवी और प्रतिमा देवी कहती है कि सांप और नाग का 'ऑपरेशन' होता है। खुद नरहन पंचायत में रहने वाले अरविन्द 'भगत' बताते हैं, "विष निकाल लिया जाता है। बाकी सांप को पकड़ना कोई टेक्निक नहीं है बस दिल की हिम्मत चाहिए। हम लोग तो चलते फिरते सांप पकड़ लेते है।"

मेले में प्रशासन की भूमिका सिर्फ कानून व्यवस्था, जहां से जुलूस निकले वहां पड़ने वाली रेलवे लाइन में रेल परिचालन की व्यवस्था और अस्पतालों में एंटी वेनम की उपलब्धता देखना है।

दिलचस्प है कि स्थानीय लोगों की भागीदारी, चंदे और जातीय भेदभाव से परे आयोजित होने वाला ये मेला कितना पुराना है इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। महेन्द्र भगत कहते है, "हमने अपने बाप दादा को ये करते देखा है, अब हम ये कर रहे है और हमारा बाल बच्चा भी करेगा।" वहीं सिंघिया घाट की एक बुजुर्ग महिला कहती हैं, "मेला 100 साल से लग रहा है। मेला देखने आसपास के इलाके के, दूर दूर से लोग आते है। इतना आदमी यहां कभी और देखने को नहीं मिलता। पूरी सड़क पर सिर्फ आदमी की सिर और सांप दिखाई देता है।"

स्थानीय पत्रकार चंदन राय मेले को ऐतिहासिक बताते है। बकौल चंदन, "1600 ई. में यहां राजा हुए राय गंगा राम, जिनकी रक्षा नाग ने की थी जिसके बाद से ही ये मेला नाग और सांप के सम्मान में ये मेला होने लगा।" विषहर मेला या नागपंचमी के बारे में लोगों की धार्मिक मान्यता है कि ये सभी तरह के दुखों से 'पब्लिक की रक्षा' के लिए है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता संजीव के मुताबिक, "धार्मिक मान्यताओं से इतर भी ये मेला प्रकृति और हमारा संबंध मजबूत करने वाला है।"

नाग मेला बड़ों के लिए धार्मिक मान्यता है, युवाओं और बच्चों के लिए रोमांच है लेकिन अंशु को ये मेला अच्छा नहीं लगता। अंशु कहती हैं, "मेला तो अच्छा है, लेकिन जब सांप को परेशान कीजिएगा तो हमारा वायुमंडल भी तो खराब होगा।"

बिहार के बेगूसराय में एक ऐसा गांव है जहां नाग पंचमी (Nag Panchami 2022 ) के दिन जहरीले सांपों को पकड़ा जाता है और मेला (Snake Fair In Agapur Village Bihar ) लगाया जाता है. सुनने में यह जितना डरावना लगता है देखने में उतना ही रोचक होता है. दरअसल यहां सदियों से यह परंपरा निभायी जा रही है. पढ़ें पूरी खबर..

बेगूसराय: नाग पंचमी को नाग देवता को खुश करने का दिन माना जाता है. मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा और कालसर्प योग से मुक्ति के लिए विशेष अनुष्ठान संपन्न कराए जाते हैं. वहीं श्रावण मास की पंचमी तिथि (Nag Panchami In Agapur Village Begusarai) को बेगूसराय के मंसूरचक प्रखंड (Mansurchak Block) के आगापुर गांव (Snake Fair In Agapur Village Begusarai) में विशेष रूप से नाग पंचमी मनायी जाती है. इस दौरान जहरीले सांपों का मेला लगाया जाता है. लोगों के हाथों और गले में जहरीले सांप नजर आते हैं, जिसे देख किसी के भी होश उड़ जाएं.

पढ़ें- क्या वजह है कि बिहार के इस गांव में प्याज-लहसुन खाने पर लगी है पाबंदी?

बेगूसराय में जहरीले सांपों का मेला: आगापुर गांव में आज भी इस परंपरा को जीवंत रखा गया है जो अद्भुत ही नहीं बेहद साहसिक भी है. नाग पंचमी के दिन ताल तलैया नदी पोखर से सैकड़ों की संख्या में विषैले सांप पकड़ने की यह परंपरा बेहद ही खतरनाक और आकर्षक भी है, सांपों के मेले को देखने के लिए दूर दराज से लोग आते हैं. इस अवसर पर आयोजित मेला जिला ही नहीं बल्कि पूरे बिहार का एक खास मेला होता है.

आगापुर गांव में सदियों से निभायी जा रही परंपरा: इस संबंध में बताया जाता है की मंसूरचक प्रखंड के आगापुर गांव में हर साल सांपों का मेला लगता है. आगापुर गांव में आयोजित इस 'सांपों के मेले' में मौजूद लोग जहरीले सांपों से जरा भी नहीं डरते हैं और उनके साथ साथ खिलौने की तरह खेलते हैं.बताया जाता है की धार्मिक आस्था से जुड़ा सांपो को पकड़ने का ये करतब कई पुश्तों से चला आ रहा है, जिसकी तैयारी दो महीने पहले से की जाती है.

यह है मान्यता: इस दौरान पोखर से पुजारी सैकड़ों सांपों को पानी से निकालते हैं और इन विषैले सांपो को हाथों में लेकर प्रदर्शन करते हैं. जिसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं. गांव के लोग बताते हैं कि कई पीढ़ियों पहले यहां भगवती स्थान की स्थापना की गई थी, जिसके बाद से गांव में अमन और शांति कायम हुई. कभी भी कोई अनहोनी नहीं हुई. इसी दौरान नाग पंचमी के दिन गांव के भगत के द्वारा सांप पकड़ने की परंपरा की शुरुआत भी हुई थी.

अनहोनी की बनी रहती है आशंका: धीरे-धीरे ये परम्परा आगे बढ़ती गई और बाद में ये इलाके का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बन गया. बताया जाता है कि विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद भगत गांव में स्थित पोखर में आते हैं और पोखर से सैकड़ों विषैले सांपों को निकालने का काम करते हैं. जैसे सांप न हो बल्कि कोई खिलौना हो. सांप को देखते और नाम सुनते ही जहां लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वहीं सांपों को पकड़ने उनके साथ खेलने की यह परंपरा चमत्कार है या फिर कुछ और यह जांच का विषय है. हालांकि इतने बरसों से लगने वाले इस मेले की सच्चाई का पता आज तक लोगों को नहीं लग पाया है. लोग बस इसे धार्मिक आस्था से जोड़कर देखते हैं. सांपों के इस मेले के कारण किसी अनहोनी की आशंका भी हमेशा बनी रहती है लेकिन आस्था के आगे डर की हार होती है और लोग उत्साह के साथ नाग पंचमी हर साल इसी तरह से मनाते हैं.

"यह मेला हमारे पूर्वजों के समय से चला आ रहा है. नाग को पोखर नहर से निकाला जाता है. इसकी तैयारी काफी दिनों पहले से की जाती है. भगवती माता हर इच्छा पूरी करती हैं."- हरेराम, भगत

नाग पंचमी का मेला कब और कहां लगता है?

ये मंदिर उत्तर प्रदेश के प्रयाग राज में संगम तट पर दारागंज क्षेत्र में स्थित है. वासुकि भगवान शिव के गले के नाग हैं. नाग पंचमी के दौरान यहां बहुत ही बड़ा मेला लगता है.

नाग पंचमी मेला कब है 2022 में?

अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार सावन महीने की पंचमी तिथि 2 अगस्त 2022 को मंगलवार की सुबह 05 बजकर 14 मिनट से शुरू हो जाएगी और 3 अगस्त 2022 को बुधवार की सुबह 05 बजकर 42 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा. इस तरह से नाग पंचमी का पर्व साल 2022 में 2 अगस्त को मंगलवार के दिन देश भर में मनाया जाएगा.

राजस्थान में नाग पंचमी का मेला कब लगता है?

राजस्थान में नागपंचमी या नागपूजा का पर्व श्रावण मास की कृष्ण पंचमी के दिन मनाया जाता है।

नाग पंचमी की शुरुआत कैसे हुई?

नागपंचमी मनाने हेतु एक मत यह भी है कि अभिमन्यु के बेटे राजा परीक्षित ने तपस्या में लीन मैन ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया था। इस पर ऋषि के शिष्य श्रृंगी ऋषि ने क्रोधित होकर शाप दिया कि यही सर्प सात दिनों के पश्चात तुम्हें जीवित होकर डस लेगा। ठीक सात दिनों के पश्चात उसी तक्षक सर्प ने जीवित होकर राजा को डसा।