Show मौद्रिक नीति का अर्थ | मौद्रिक नीति की परिभाषा | मौद्रिक नीति के प्रमुख उद्देश्य मौद्रिक नीति का अर्थ तथा परिभाषा-प्रो0 हैरी जी0 जॉनसन के अनुसार- मौद्रिक नीति का अर्थ एक ऐसी केन्द्रीय बैंक की नीति से है जिसके द्वारा केन्द्रीय बैंक सामान्य आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मुद्रा की पूर्ति को नियंत्रित करती है। उचित परिभाषा-“मुद्रा प्रणाली को प्रभावित करने वाले सभी तत्वों को सम्मिलित करके मौद्रिक नियमन व नियंत्रण करना ही मौद्रिक नीति है।” ध्यान रहे मुद्रा की पूर्ति चार प्रकार से प्रभावित होती है- (1) मुद्रा की मात्रा में परिवर्तन, (2) मुद्रा की गति में परिवर्तन, (3) मुद्रा की उपलब्धता में परिवर्तन, (4) मुद्रा की लागत में परिवर्तन। मौद्रिक नीति के उद्देश्य-मौद्रिक नीति के कुछ प्रमुख उद्देश्य होते हैं, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में विशेष परिवर्तन होते हैं। अतः मौद्रिक नीति में उद्देश्यों का चुनाव प्राथमिकता के आधार पर होता है, ताकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन वृद्धि हो सके, जिससे कीमत व आय में उच्चावचन समाप्त हों और आर्थिक समृद्धि का पथ प्रशस्त हो सके। इस प्रकार मौद्रिक नीति एक ऐसा साधन है जो आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए घोषित होती है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न होते हैं-
प्राचीन समय में जब वणिकवाद प्रचलित था, उस समय स्वतंत्र व्यापार नीति के अनुसार निर्यात में वृद्धि से धनार्जन प्रमुख लक्ष्य था। चूँकि स्वर्ण के सिक्के चलन में थे, अतः विनिमय दर की कोई समस्या न थी। क्योंकि वणिकवादियों का उद्देश्य था कि व्यापार के माध्यम से आर्थिक समृद्धि प्राप्त हो, उनका नारा था- ‘अधिक सोना, अधिक धन, अधिक शक्ति अर्जित करो।’ स्वर्णमान के पतन के बाद देशों ने अपरिवर्तनीय पत्र मुद्रा को अपनाया। उस समय संरक्षण व्यापार नीति के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्पन्न करने के लिए विनिमय दरों का निर्धारण क्रय शक्ति समता के आधार पर किया गया। लेकिन विनिमय दरों में स्थिरता की पुरजोर कोशिश की गई। फिर भी अर्थव्यवस्था में विविधता के कारण अलग समस्यायें उत्पन्न होने पर मुद्रा की मात्रा में कमी होती गई, जिससे 1930 ई0 के महान्दी का अनुभव हुआ। फलतः अर्थशास्त्री विनिमय दर स्थिरता के विपक्ष में होकर कीमत स्थायित्व पर बल देने लगे। शनैः-शनैः विश्व के छोटे- छोटे देश जैसे- जापान, नार्वे, स्वीडन, न्यूजीलैंड व इंग्लैंड आदि देश राष्ट्रीय विकास व आर्थिक समृद्धि के पक्षधर घरेलू माँग बढ़ाने के उद्देश्य से विदेशी व्यापार पर आश्रित हो गये जिससे विदेशी विनिमय दर स्थिरता का महत्व पुनः बढ़ गया। विनिमय दर स्थिरता के अन्तर्गत भुगतान संतुलन अनुकूल दशा में हो, इसकी अनेक रीतियाँ हैं- (i) विनिमय दर कम करके (ii) विनिमय नियंत्रण (iii) ब्याज की दर में वृद्धि करके (iv) आर्थिक विकास
संक्षेप में, कीमत स्थायित्व एक आर्थिक दर्शन है जो अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनुसार परिवर्तित होना चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में कीमत स्तर में तनिक सी वृद्धि तत्पश्चात कीमत स्तर में थोड़ी-थोड़ी कमी का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, क्योंकि विकासशील व विकसित देशों का उद्देश्य आर्थिक समृद्धि व पूर्ण रोजगार देना है। लेकिन पूर्ण रोजगार का अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ऊँचे कीमत स्तर का सामना करना पड़ेगा, अतः लोगों की आय में वृद्धि का राष्ट्र को पक्षधर नहीं होना चाहिए। इसलिए कीमत स्थिरता के लिए तलवार की धार पर चलने के समान है।
इस प्रकार तटस्थ मुद्रा नीति भी मौद्रिक नीति का एक उपयोगी उपकरण सिद्ध हो सकता है। शर्त यह है कि बैंक व सरकार मुद्रा के प्रति सजग प्रहरी की भाँति कार्य करें।
प्राचीन काल में आर्थिक विकास के लिए मौद्रिक नीति का निर्माण नहीं किया जाता था। लेकिन वर्तमान समय में आर्थिक नियोजन के माध्यम से प्रजातांत्रिक सरकारें प्राचीन दृष्टिकोण पर नहीं चल सकती हैं, क्योंकि चुनाव में जनता से विकास सम्बन्धी वायदा करने के बाद सरकार को आर्थिक विकास के प्रति उदारतापूर्ण कार्य करना एक आवश्यक अंग बन गया है। अतः विकासशील देशों में मौद्रिक नीति बनाते समय इस तथ्य की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। यही कारण है कि मौद्रिक नीति में ‘पूँजी निर्माण की दर’ को विशेष प्रोत्साहन दिये जाते हैं। ऐसे देशों में उदार मौद्रिक नीति के अन्तर्गत ब्याज की दरों’ पर विशेष ध्यान दिया जाता है क्योंकि ब्याज की दरें ही पूँजी निर्माण को प्रोत्साहित एवं हतोत्साहित करती हैं। यदि ब्याज की दरें ऊँची निर्धारित होती हैं, तो बचतें प्रोत्साहित होंगी। किन्तु आर्थिक विकास के लिए विनियोग का स्थान न्यून हो जायेगा। इस दशा में यदि विनियोग होता है तो लागत ऊँची हो जायेगी जिससे कीमत स्तर ऊंचा करके असंतुलन उत्पन्न कर देगा। इसलिये ऊँची ब्याज की दरें उत्पादन पर विपरीत प्रभाव डालती हैं। यद्यपि अर्थशास्त्रियों ने अर्द्धविकसित देशों में ब्याज की दरें ऊँची करने का समर्थन किया है, क्योंकि पूँजी के अभाव को दूर करने के लिए ब्याज दरें ऊँची होना आवश्यक हैं। इससे मुद्रा प्रसार नियंत्रित होता है, बचतें बढ़ती हैं, किन्तु विनियोग दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीत ब्याज की दरें नीची करने पर विनियोग में वृद्धि की सम्भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं, लेकिन बैंकों के पास धन का अभाव रहता है। अतः विनियोग व बचत दर में साम्य स्थापित रहे इसके लिए बैंकों की ब्याज दरों में क्रमशः वृद्धि व कमी की मौद्रिक नीति अपनानी चाहिए। इससे आर्थिक विकास निरन्तर पोषित होता है अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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मौद्रिक नीति से आप क्या समझते हैं इसकी उपयोगिता का वर्णन करें?मौद्रिक नीति सरकार एवं केन्द्रीय बैंक द्वारा सोच समझकर उपयोग में लायी गई मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि या कमी लाने की शक्ति है। यह शक्ति सरकार की आर्थिक नीति के उद्देश्यों की विस्तृत रूपरेखा को ध्यान में रखकर निवेश, आय व रोजगार को प्रभावित करने और कीमतों में स्थिरता लाने के लिये प्रयोग की जाती है।
मौद्रिक नीति क्या है मौद्रिक नीति के प्रकार?जिस नीति के अनुसार किसी देश का मुद्रा प्राधिकारी मुद्रा की आपूर्ति का नियमन करता है उसे मौद्रिक नीति कहते हैं। इसका उद्देश्य राज्य का आर्थिक विकास एवं आर्थिक स्थायित्व सुनिश्चित करना होता है।
मौद्रिक नीति क्या है इसके विभिन्न उपकरणों को स्पष्ट कीजिए?मौद्रिक नीति से अभिप्राय किसी भी राष्ट्र के केंद्रीय बैंक द्वारा विभिन्न उपकरणों जैसे कैश रिजर्व रेश्यो (CRR), वैधानिक तरलता अनुपात(SLR-Statutory liquidity ratio), बैंक दर, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर आदि के उपयोग से मुद्रा और ऋण की उपलब्धता पर नियंत्रण स्थापित करना है।
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