मानव विकास के मूल सिद्धांत क्या है? - maanav vikaas ke mool siddhaant kya hai?

मानव विकास की अवधारणा महबूब-उल-हक और अमर्त्य सेन द्वारा पेश की गई थी। महबूब-उल-हक के अनुसार, मानव विकास वह विकास है जिसमे लोगों की विकल्पों को बढ़ा कर उनके जीवनस्तर को बेहतर बनाते हैं। इसके लिए , सामाजिक आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी आबादी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं और लोगों तक उपलब्ध संशाधनों की पहुंच बढ़ाते है। इसलिए मानव विकास एक जन-केंद्रित विकास है।


लोग देश के वास्तविक संसाधन होते हैं क्योंकि वे देश के अन्य संसाधनों का उपयोग करते हैं। एक देश अपने लोगों के लिए जाना जाता है, न कि सोने जैसे संसाधनों के लिए। मानव संसाधन की गुणवत्ता ही राष्ट्र को महान और मजबूत बनाती है। लोगों की ना ही जीवनस्तर अच्छी होती है ना ही उनके पास कुछ करने के ज्यादा विकल्प होते है अगर वे स्वस्थ और शिक्षित नहीं हैं। उदाहरण के लिए एक अनपढ़ व्यक्ति डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बन सकता है। 

मानव विकास न केवल लोगों को सशक्त बनाता है और उनकी आजीविका को सभ्य बनाता है बल्कि राष्ट्र को सशक्त बनाता है और राष्ट्र को मजबूत और स्थिर बनाता है।

मानव विकास के लिए तीन प्रमुख क्षेत्र और चार प्रमुख घटक हैं।

  • मानव विकास के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं शिक्षा तक पहुंच, स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और देश में उपलब्ध संसाधनों तक पहुंच।
  • मानव विकास के चार घटक समानता, स्थिरता, उत्पादकता और सशक्तिकरण हैं।

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा हर साल प्रकाशित होने वाले मानव विकास सूचकांक (HDI) के आधार पर दुनिया के देशों को चार श्रेणियों (बहुत उच्च, उच्च, मध्यम और निम्न) में वर्गीकृत किया गया है। 

यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों ने मानव विकास में अच्छा प्रदर्शन किया क्योंकि इस क्षेत्र की सरकार ने लोक कल्याण में अधिक निवेश किया जबकि एशिया और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों ने मानव विकास में खराब प्रदर्शन किया क्योंकि इस क्षेत्र की सरकार ने विभिन्न कारणों ( सरकार की कम आय, भ्रष्टाचार, रक्षा व्यय, राजनीतिक अस्थिरता आदि) से लोक कल्याण में ज्यादा निवेश नहीं किया है। 

विकास के सिद्धांत (Principles of Development) को समझने से उपरांत यह समझना अति आवश्यक है, कि विकास क्या हैं? विकास के अर्थ को हम सामान्यतः एक बदलाव के रूप में देखते हैं, अर्थात किसी भी स्थिति में जो एक चरण से दूसरे चरण में जाता हैं, अर्थात उसकी स्थिति में जो भी बदलाव आता है हम उसे विकास कहते हैं।

विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया हैं, क्योंकि बदलाव दिन-प्रतिदिन आते हैं। विकास की कोई सीमा नही होती। विकास जन्म से मृत्यु तक निरंतर चलते रहता हैं। तो दोस्तों, आइए अब जानते है कि विकास के सिद्धांत (Principles of Development) क्या हैं?

विकास के सिद्धांत Principles of Development in Hindi

मानव विकास के मूल सिद्धांत क्या है? - maanav vikaas ke mool siddhaant kya hai?
मानव विकास के मूल सिद्धांत क्या है? - maanav vikaas ke mool siddhaant kya hai?

क्या आप जानते हैं कि सिद्धांत कहते किसे हैं? सिद्धान्त को प्रायः एक ऐतिहासिक धारणाओं एवं विचारों के रूप में स्वीकार किया जाता हैं। सिद्धांत एक मानक होता हैं। जिसके आधार पर किसी भी वस्तु की व्याख्या की जाती हैं। इसमें किसी निश्चित सिद्धांत के आधार पर ही किसी वस्तु को परिभाषित किया जाता हैं।

इसी तरह विकास के भी अपने कुछ मानक हैं, जिसके आधार पर चलकर विकास की व्याख्या की जाती हैं। इन्ही विकास के सिद्धांतो principles of development के अनुरूप हम विकास के अर्थ,कार्य,प्रक्रिया एवं सीमा का निर्धारण सुनिश्चित करते हैं। विकास के निम्न सिद्धांत हैं-

1) विकास की दिशा का सिद्धांत (Principle of development direction

2) निरंतर विकास का सिद्धांत (Principle of continuous development)

3) व्यक्तिगत भिन्नता का सिद्धांत (Principle of individual differences)

4) विकास क्रम का सिद्धांत (Theory of evolution)

5) परस्पर संबंध का सिद्धांत (Reciprocal principle)

6) समान प्रतिमान का सिद्धांत (Principle of common pattern)

7) वंशानुक्रम सिद्धांत (Inheritance principle)

8) पर्यावरणीय सिद्धांत ( Environmental principles)

1- विकास की दिशा का सिद्धांत – इस सिद्धांत का यह मानना हैं कि बालकों के विकास सिर से पैर की तरफ होता हैं,मनोविज्ञान में इस सिद्धांत को सिरापुछिय दिशा कहा जाता हैं। जिसके अनुसार पहले बालको के सिर का उसके बाद उसके नींचे वाले अंगों का विकास होता हैं।

2- निरंतर विकास का सिद्धांत – यह सिद्धांत मानता हैं कि विकास अचानक नहीं होता बल्कि विकास की प्रक्रिया धीरे-धीरे पहले से ही चलते रहती हैं परंतु इसकी गति में बदलाव आते रहता हैं,अर्थात कभी विकास तीव्र गति से होता हैं तो कभी निम्न गति से।

3- व्यक्तिगत भिन्नता का विकास – इस सिद्धांत के अनुसार विकास प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न तरीको से होता हैं। दो व्यक्तियों में एक समान विकास प्रक्रिया नहीं देखी जा सकती। जो व्यक्ति जन्म के समय लंबा होता है, तो वह आगे जाकर भी लंबा व्यक्ति ही बनेगा। एक ही उम्र के दो बालकों में शारीरिक,मानसिक एवं सामाजिक विकास में भिन्नताएँ स्प्ष्ट देखी जा सकती हैं।

4- विकास क्रम का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का विकास निश्चित क्रम के अनुसार ही होता हैं, अर्थात बालक बोलने से पूर्व अन्य व्यक्ति के इशारों को समझकर अपनी प्रतिक्रिया करता हैं। उदाहरण- बालक पहले स्मृति स्तर में सीखता हैं फिर बोध स्तर फिर अंत में क्रिया करके।

5- परस्पर संबंध का सिद्धांत – बालक के शारीरिक, मानसिक,संवेगात्मक पक्ष के विकास में एक प्रकार का संबंध होता हैं,अर्थात शारीरिक विकास के साथ-साथ उसके मानसिक विकास में भी वृद्धि होती हैं और जैसे-जैसे उसका मानसिक विकास होते रहता हैं वैसे-वैसे वह उस मानसिक विकास को क्रिया रूप में परिवर्तन करते रहता हैं।

6- समान प्रतिमान का सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का विकास किसी विशेष जाति के आधार पर होता हैं। जैसे व्यक्ति या पशुओं का विकास अपनी-अपनी कुछ विशेषताओं के अनुसार होता हैं।

7- वंशानुक्रम सिद्धांत – इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति का विकास उसके वंश के अनुरूप होता हैं, अर्थात जो गुण बालक के पिता,दादा में होते है,वही गुण उनके शिशुओं को मिलते हैं। जैसे अगर उनके वंश में सभी की लंबाई ज्यादा होती हैं तो होने वाला बच्चा भी लंबा ही होता हैं।

8- पर्यावरणीय सिद्धांत – यह सिद्धांत वंशानुक्रम सिद्धांत के अनुरूप हैं। यह मानता हैं कि व्यक्ति का विकास उसके आस-पास के वातावरण पर निर्भर करता हैं, अर्थात पर्यावरण जिस प्रकार का होगा व्यक्ति का विकास भी उसी दिशा की ओर होगा।

तो दोस्तों, आज आपने जाना कि विकास के सिद्धांत (Principles of Development in Hindi) क्या-क्या हैं। अगर आपको हमारा यह लेख पसंद आया हो तो इसे अपने मित्रों के साथ भी अवश्य शेयर करें। अन्य किसी प्रकरण में जानकारी पाने हेतु हमारी सभी पोस्टों को ध्यानपूर्वक पढ़े।

संबंधित पोस्ट – विकास और अभिवृद्धि में अंतर

  • TAGS
  • principles of development in hindi
  • vikas ke siddhant
  • विकास के सिद्धांत

Share

Facebook

Twitter

Pinterest

WhatsApp

Previous articleसामाजिक विज्ञान (Social Science) क्या हैं, अर्थ,परिभाषा एवं उपयोगिता

Next articleआधुनिकीकरण का अर्थ,परिभाषा एवं विशेषता | Modernization

Pankaj Paliwal

https://sstmaster.com/

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम पंकज पालीवाल है, और मैं इस ब्लॉग का फाउंडर हूँ. मैंने एम.ए. राजनीति विज्ञान से किया हुआ है, एवं साथ मे बी.एड. भी किया है. अर्थात मुझे S.St. (Social Studies) से जुड़े तथ्यों का काफी ज्ञान है, और इस ज्ञान को पोस्ट के माध्य्म से आप लोगों के साथ साझा करना मुझे बहुत पसंद है. अगर आप S.St. से जुड़े प्रकरणों में रूचि रखते हैं, तो हमसे जुड़ने के लिए आप हमें सोशल मीडिया पर फॉलो कर सकते हैं।

मानव विकास के तीन मूलभूत सिद्धांत कौन से हैं?

मानव विकास के तीन महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं:- (1) दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन, (2) शिक्षा का प्रसार, (3) संसाधनों तक पहुँच । उपरोक्त तीनों पक्ष मानव विकास के केंद्र बिंदु हैं

मानव विकास का मूल उद्देश्य क्या है?

विकास का मूल उद्देश्य ऐसी दशाओं को उत्पन्न करना है जिसमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। समता - इसका आशय प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है। उत्पादकता - उत्पादकता का अर्थ मानव श्रम उत्पादकता अथवा मानव कार्य केसंदर्भ में उत्पादकता है।

मानव विकास के सिद्धांत क्या है?

विकास के सिद्धांत | Principles of Development.
1.1 निरन्तरता का नियम.
1.2 वृद्धि और विकास की गति की दर एक सी.नहीं रहती.
1.3 वैयक्तिक अन्तर का नियम.
1.4 विकास क्रम की एकरूपता.
1.5 सामान्य से विशिष्ट क्रियाओं का नियम.
1.6 एकीकरण का नियम.
1.7 परस्पर संबंध का नियम.
1.8 विकास की भविष्यवाणी की जा सकती है.

मानव विकास के 4 प्रकार कौन से हैं?

उत्तर-मानव विकास के चार प्रमुख घटक हैं- (1)समता (2)सतत पोषणीयता (3)उत्पादकता और(4) सशक्तिकरण। इन्हें मानव विकास के चार स्तंभ भी कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार किसी इमारत को स्तंभों का सहारा होता है, उसी प्रकार यह चारों मानव विकास के लिए महत्वपूर्ण है।