मानव संसाधन प्रबंधन की अवधारणा प्रबंधन के क्षेत्र की एक नूतन अवधारणा है और यह आज सर्वाधिक प्रचलित अवधारणा के रूप में देखी जाती है। आरम्भ में यह अवधारणा रोजगार प्रबंधन, कार्मिक प्रबंधन, औद्योगिक सम्बन्ध, श्रम कल्याण प्रबंधन, श्रम अधिकारी, श्रम प्रबंधक के रूप में थी और 1960 और उसके बाद में मुख्य शब्द कार्मिक प्रबंधक ही था। जिसमें कर्मचारियों के सामान्य कार्यक्रमों के प्रति उत्तरदायित्व सम्मिलित है। शब्दों के विकास का यह स्वरूप इस बात का संकेत है कि ‘कार्मिक प्रबंध’ प्रबंध की एक शाखा के रूप में विकसित हो रहा है और अभी तक इसका स्वरूप सर्वमान्य एक रूप में नहीं बन सका है। Show
विद्धानों ने इसे जन एवं समुदाय सम्बन्ध के रूप में देखने का प्रयास कर रहे है। यह विचारणीय है कि इसके स्वरूप को भले विभिन्न नामों से जाने, किन्तु उनके कार्य क्षेत्र पर विचार करें तो सभी का बल संगठन में लगे मानव संसाधन के विकास तथा अधिकतम उत्पादन एवं लाभ पर केन्द्रित है। किसी भी प्रतिष्ठान के निर्माण एवं विकास में पूंजी, श्रम, संगठन और साहस ही प्रमुख है और इनमें भी श्रम या मानव शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह मानव शक्ति से ही पूंजी,संगठन और उद्यमी को उर्जा मिलती है। मनुष्य चेतन प्राणी है। यह अलग-अलग सोच रखता है, इसमें नया कुछ करने का साहस होता है और ये संगठित होकर सामूहिक नैतिकता बोध से दलीय भावना से कार्य करता है तो संगठन अपने लक्ष्यों को सहजता से प्राप्त करता है अन्यथा संगठन अपने उद्देश्य प्राप्ति में विफल हो जाता है। यही कारण है कि मानव संसाधन प्रबंधन आज प्रबंधन के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता है। मानव संसाधन प्रबंधन की अवधारणाऔद्योगिकीकरण की प्रारम्भिक अवस्था में इसका महत्व गौण था। यह समझा जाता था कि सामान्य प्रबंधक ही मानव संसाधन प्रबंधन के लिये भी समर्थ है। प्रबंधन कौशल दैवीय शक्ति है जो सामान्य प्रबंध का उत्तरदायी है, वह मानव संसाधन प्रबंधन के लिये भी उत्तरदायी है किन्तु जब उद्योगीकरण तीव्र गति से होने लगा तो श्रमिकों की अनेक समस्याएँ उभरने लगी और सामान्य प्रबंधक भी उन चुनौतियों का सामना करने में अपने को असहाय पाने लगा और इसी बीच सामाजिक विज्ञानों का भी महत्व बढ़ने लगा और यह पाया गया कि औद्योगिक समाजों की अनेक समस्याओं के निराकरण एवं उनके निर्मूलन में मनोविज्ञान, नृशस्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र की अच्छी बिधायी भूमिका है। अत: यह सिद्ध हो गया कि मानव संसाधन प्रबंधन एक विशिष्ट व्यावसायिक विषय है। अतएव इसके प्रबंधन का उत्तरदायित्व एक प्रशिक्षित सामाजिक अभियंता का ही है और यही कारण है कि मानव संसाधन के प्रबंधन में सामाजिक विज्ञानवेत्ता तथा प्रशिक्षित व्यक्ति ही नियुक्त हो रहे हैं। प्रबंधन के विभिन्न आयामों से जो परिचित है और मानव व्यवहार की गत्यात्मकता तथा प्रबंधन-कौशल में पूर्ण निपुण हैं। ऐसे ही व्यक्ति को मानव संसाधन प्रबंधन का उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिये। मानव संसाधन प्रबंधन के अन्तर्गत प्रमुख कार्य अधोलिखित तीन भागों में विभक्त किये गये हैं : -
मानव संसाधन प्रबंधन के कार्य
इस प्रकार योडर ने आठ प्रमुख कार्यों को माना है जबकि नार्थ कोट ने मानव संसाधन प्रबंधक के कार्यो को तीन दृष्टियों से देखने का प्रयास किया है :-
इस प्रकार मानव संसाधन प्रबंधन के द्वारा ही उपरोक्त दृष्टिकोण रखते हुये श्रमिक के शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं सुरक्षा के क्षेत्र में विधि सम्मत तथा अन्य जनहितकारी कायोर्ं को करना चाहिये तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही कर्मियों का चयन, प्रशिक्षण, उचित पारिश्रमिक/मजदूरी, बोनस, वेतन वृद्धि तथा अन्य धार्मिक लाभ जिनसे उनमें कार्य मे लगे रहने की इच्छा, अधिकतम उत्पादन हेतु श्रम करने तथा भूमिका का निर्वाह करना तथा औद्योगिक सम्बन्ध दृष्टिकोण से उद्योग में शांति बनाये रखना तथा किसी असंतोष या विवाद की स्थिति में शीघ्रता से समाधान कराना तथा श्रम संघों से विचार विमर्श करते रहना और उनकी सहमति से निपटारा कराना। यदि औद्योगिक अशांति परस्पर सहमति से न बन पा रही हो तो संसाधन मशीनरी एवं ट्रिव्यूनल कोर्ट के माध्यम से समाधान निकालना। ए0 एफ0 किंडाल के मानव संसाधन प्रबंधन के अन्तर्गत अधोलिखित कार्यो को माना है :-
इसी प्रकार एच0 एच0 कैरी ने मानव संसाधन प्रबंधन के ये कार्य बताये हैं :-
उपरोक्त मानव संसाधन प्रबंधन कार्यो को समेटते हुये इसे अधोलिखित प्रमुख दो रूपों में देख सकते हैं :- मानव संसाधन प्रबंधन के प्रबंधकीय कार्य
मानव संसाधन प्रबंधन के क्रियात्मक कार्यमानव संसाधन के प्रबंधन कार्य का दूसरा भाग उसका क्रियात्मक प्रबंध कार्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यह क्रियात्मक प्रबंधकीय भी अधोलिखित रूप में देखा जा सकता है:-
मानव संसाधन की प्रमुख विशेषताएँयह मानव संसाधन का प्रबंध है।यह एक विभागीय उत्तरदायित्व है जो कार्मिक प्रबंध के अधीन कार्य करता है।यह मानव शक्ति का चयन, नियोजन संगठन व नियंत्रण करता है।इसका उद्देश्य कर्मियों में सर्वोत्तम फल प्राप्त करना है।इससे कर्मचारियों में अधिकतम कार्यक्षमता बढ़ाने का कार्य होता है।कर्मचारियों की योग्यता विकास में सहायक है।कर्मचारियों में सहकारी विकास भाव पैदा करता है।यह मानवीय सम्बन्ध सत्यापित कर उन्हें बनाये रखने का प्रयास करता है।यह उच्च प्रबंध को महत्त्वपूर्ण सुझाव देता है।कार्मिक प्रबंध निश्चित सिद्धान्तों एवं व्यवहारों का पालन करता है।यह एक प्रबंध दर्शन है।मानव संसाधन प्रबंधन के उद्देश्य मानव संसाधन का उद्देश्य संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है। ये लक्ष्य समय काल एव परिवेश से बदलता रहता है। यद्यपि अधिकांश संगठनों का लक्ष्य अभिकर्मियों में विकास एवं प्रतिष्ठान में अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है तथापि आज इसका संगठन, सरकारी नीतियों एवं सामाजिक न्याय तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने में भी भूमिका का निर्वाह लक्ष्य के तहत स्वीकार किया गया
है। कतिपय व़िद्वानों में मानव संसाधन प्रबंधन को सामाजिक संगठनात्मक, क्रियात्मक उद्देश्यों तथा वैयक्तिक उद्देश्यों के संदर्भ में भी स्वीकार किया है।
आर0 सी0 डेविस ने प्रबंधन के उद्देश्यों को अधोलिखित दो रूपों में माना है:-
(1) मूल उद्देश्य -मूल उद्देश्यों के तहत मानव संसाधन विभाग उत्पादन, विक्रय एवं वित्त विभाग के लिये उपयुक्त कर्मचारियों के चयन एवं उनकी नियुक्ति में सहयोग प्रदान करता है। संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये ऐसे कार्य संगठन का निर्माण करता है जिसमें कार्य की चुनौतियों का मुकाबला करते हुये अपनी संतुष्टि के साथ अधिकतम उत्पादन से सहभागी बनता है। यह अभिकर्मी की प्रेरणा का प्रतिफल है। अत: अभिकर्मियों में विधायी अभिपेर्र णा बनाये रखने के लिये ही उसे मौदिक्र पेर्र णा तथा अमौदिक्र पेर्र णा दी जाती है। यही कारण है कि अभिकर्मियों की मजदूरी, वेतन, भत्ते तथा अंशधारियों के लाभ में वृद्धि की जाती है और साथ ही साथ उनके अच्छें कार्यो के लिये, संगठन की प्रतिष्ठा बढ़ाने में सहभागिता, सेवाभाव रखने तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के लिये उन्हें सम्मानित किया जाता है। (2) गौण उद्देश्य -गौण उद्देश्यका लक्ष्य मूल्य उद्देश्यों की प्राप्ति कम लागत पर कुशलतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से करना है। किन्तु यह तभी सम्भव है जबकि अभिकर्मियों की कार्यक्षमता में वृद्धि की जाय, कार्य ही पूजा है, का भाव विकसित किया जाय। साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाय तथा समस्त कर्मचारियों में कार्य में दलीय भावना पैदा की जाय। कर्मचारियों में भार्इ-चारा का भाव विकसित किया जाय। उनके नैतिक बल पर ध्यान दिया जाय तथा प्रतिष्ठान में मानवीय सम्बन्ध और अच्छे अनुशासन का वातावरण बनाया जाय तथा मानवीय व्यवहार को प्रभावित करने के लिये उचित अभिप्रेरणा प्रणाली तथा उचित संदेश वाहन प्रक्रिया का प्रतिष्ठान में उपयोग किया जाय। मानव संसाधन प्रबंधक के गुणप्रबंधकीय कौशल से अभिप्राय होता है वह गुण, समझ एवं कार्यदक्षता जिससे प्रबंधक अपने उत्तरदायित्व का सहजता से निर्वाह करता है और संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहता है। इस प्रकार इसके अन्तर्गत प्रबंधक की अधोलिखित योग्यताएँ मानी जाती है यथा :-
मानव संसाधन प्रबंधक उपरोक्त गुणों के कारण ही अपने प्रबंध कौशल से अपनी इस भूमिकाओं के निर्वाह में सफल होता
है :- 1. परामर्शदाता के रूप में - समस्याग्रस्त अभिकर्मियों को प्रसन्न और संतुष्ट रखने के लिये मानव संसाधन प्रबंधक बतौर परामर्शदाता उसे सलाह देता है और अनुकूल परामर्श से उसे समस्यामुक्त होने की युक्ति में सहायक होता है। 2. मध्यस्थ के रूप में - मानव संसाधन प्रबंधक अभिकर्मियों - सेवायोजक तथा उच्च प्रबंधकों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में भी भूमिका का निर्वाह करता है। अभिकर्मियों की माँगों, आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के प्रति ऊपर के अधिकारियों
तक पहुँचाकर उसके संदर्भ में नीति निर्माण एवं निर्णय लेने में उच्च पदस्थ अधिकारियों का जहाँ सहयोग करता है वहीं दूसरी ओर प्रशासन की अपेक्षाओं और माँगों के प्रति कर्मचारियों को जानकारी देकर संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उन्हें भी प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रकार वह इन दोनों के बीच सेतु का काम करता है। 3. विशेषज्ञ के रूप में - मानव संसाधन प्रबंधक किसी भी प्रतिष्ठान में एक विशेषज्ञ के रूप में भी अपनी भूमिका का निर्वाह करता है। यह वह प्रबंधक है जो अपने विशिष्ट ज्ञान के ही बदौलत समग्र संगठन के लिये सर्वाधिक महत्व रखता है। समग्र संगठन की विभिन्न इकाइयों में समन्वय सहयोग एवं भ्रातृत्व भाव पैदा करने और नैतिक बल बनाये रखने में प्रेरणा प्रदान करता है। इतना ही नहीं वह सहायता स्त्रोत, परिवर्तन कारक तथा एक नियंत्रक के रूप में विशेषज्ञ जैसी सेवाएँ देता है। मानव संसाधन प्रबंधक के उत्तरदायित्व के संदर्भ में अनेक विद्वानों ने अपने भिन्न मत व्यक्त किये है किन्तु प्रसिद्ध दो विद्वानों के विचार सर्वाधिक मान्य स्वीकार किये गये है जिनके विचार अधोलिखित रूप में है
:- ब्राउन के अनुसार -
जार्ज डव्ल्यू हेनन के अनुसार -मानव संसाधन विकास प्रबंधक के उत्तरदायित्व अधोलिखित रूप में माना है :-
मानव संसाधन प्रबंधन से आप क्या समझते हैं?सामान्य अर्थ में HRM का मतलब लोगों को रोजगार देना, उनके संसाधनों का विकास करना, उपयोग करना, उनकी सेवाओं को काम और प्रतिष्टान की आवश्यकता के अनुरूप बनाये रखना और बदले में (भरण-पोषण) मुआवजा देते रहना है।
मानव संसाधन प्रबंधन से आप क्या समझते हैं मानव संसाधन प्रबंधन की विशेषताओं को संक्षेप में बताएं?मानव संसाधन इन्हीं नए गैर वित्तीय प्राचलकों में से एक है जो मूल्यांकन की उपयोगिता के लिए चुनौती है, निगम की सफलता को एकमात्र पारंपरिक मापन के आधार पर करती है। मानव संसाधन, किसी भी संगठन के कर्मचारी जो सामूहिक कौशल, नवाचार नेतृत्व, उद्यम एवं प्रबंधन कौशल संपन्न हैं, को प्रदर्शित करती है।
मानव संसाधन से आप क्या समझते हैं?मानव संसाधन (human resources) वह अवधारणा है जो जनसंख्या को अर्थव्यवस्था पर दायित्व से अधिक परिसंपत्ति के रूप में देखती है। शिक्षा प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश के परिणाम स्वरूप जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में बदल जाती है। मानव संसाधन उत्पादन में प्रयुक्त हो सकने वाली पूँजी है।
मानव संसाधन प्रबंधन का क्या महत्व है वर्णन कीजिए?मानव संसाधन प्रबंधन का समाज के लिए बहुत महत्व है। (i) लोगों और उन लोगों के लिए उपलब्ध नौकरी के बीच संतुलन बनाए रखना जो योग्यता, आवश्यकता और योग्यता के संदर्भ में रुचि रखते हैं। (ii) मानवीय क्षमताओं का प्रभावी और कुशलता से उपयोग करना। (iii) उपयुक्त रोजगार के अवसर प्रदान करना जो लोगों को संतुष्टि प्रदान करे।
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