मानव संसाधन प्रबन्धन से आप क्या समझते हैं मानव संसाधन प्रबन्धन के कार्यों की चर्चा कीजिए? - maanav sansaadhan prabandhan se aap kya samajhate hain maanav sansaadhan prabandhan ke kaaryon kee charcha keejie?

मानव संसाधन प्रबंधन की अवधारणा प्रबंधन के क्षेत्र की एक नूतन अवधारणा है और यह आज सर्वाधिक प्रचलित अवधारणा के रूप में देखी जाती है। आरम्भ में यह अवधारणा रोजगार प्रबंधन, कार्मिक प्रबंधन, औद्योगिक सम्बन्ध, श्रम कल्याण प्रबंधन, श्रम अधिकारी, श्रम प्रबंधक के रूप में थी और 1960 और उसके बाद में मुख्य शब्द कार्मिक प्रबंधक ही था। जिसमें कर्मचारियों के सामान्य कार्यक्रमों के प्रति उत्तरदायित्व सम्मिलित है। शब्दों के विकास का यह स्वरूप इस बात का संकेत है कि ‘कार्मिक प्रबंध’ प्रबंध की एक शाखा के रूप में विकसित हो रहा है और अभी तक इसका स्वरूप सर्वमान्य एक रूप में नहीं बन सका है। 

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विद्धानों ने इसे जन एवं समुदाय सम्बन्ध के रूप में देखने का प्रयास कर रहे है। यह विचारणीय है कि इसके स्वरूप को भले विभिन्न नामों से जाने, किन्तु उनके कार्य क्षेत्र पर विचार करें तो सभी का बल संगठन में लगे मानव संसाधन के विकास तथा अधिकतम उत्पादन एवं लाभ पर केन्द्रित है। किसी भी प्रतिष्ठान के निर्माण एवं विकास में पूंजी, श्रम, संगठन और साहस ही प्रमुख है और इनमें भी श्रम या मानव शक्ति सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यह मानव शक्ति से ही पूंजी,संगठन और उद्यमी को उर्जा मिलती है।

मनुष्य चेतन प्राणी है। यह अलग-अलग सोच रखता है, इसमें नया कुछ करने का साहस होता है और ये संगठित होकर सामूहिक नैतिकता बोध से दलीय भावना से कार्य करता है तो संगठन अपने लक्ष्यों को सहजता से प्राप्त करता है अन्यथा संगठन अपने उद्देश्य प्राप्ति में विफल हो जाता है। यही कारण है कि मानव संसाधन प्रबंधन आज प्रबंधन के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता है।

मानव संसाधन प्रबंधन की अवधारणा 

औद्योगिकीकरण की प्रारम्भिक अवस्था में इसका महत्व गौण था। यह समझा जाता था कि सामान्य प्रबंधक ही मानव संसाधन प्रबंधन के लिये भी समर्थ है। प्रबंधन कौशल दैवीय शक्ति है जो सामान्य प्रबंध का उत्तरदायी है, वह मानव संसाधन प्रबंधन के लिये भी उत्तरदायी है किन्तु जब उद्योगीकरण तीव्र गति से होने लगा तो श्रमिकों की अनेक समस्याएँ उभरने लगी और सामान्य प्रबंधक भी उन चुनौतियों का सामना करने में अपने को असहाय पाने लगा और इसी बीच सामाजिक विज्ञानों का भी महत्व बढ़ने लगा और यह पाया गया कि औद्योगिक समाजों की अनेक समस्याओं के निराकरण एवं उनके निर्मूलन में मनोविज्ञान, नृशस्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र की अच्छी बिधायी भूमिका है। 

अत: यह सिद्ध हो गया कि मानव संसाधन प्रबंधन एक विशिष्ट व्यावसायिक विषय है। अतएव इसके प्रबंधन का उत्तरदायित्व एक प्रशिक्षित सामाजिक अभियंता का ही है और यही कारण है कि मानव संसाधन के प्रबंधन में सामाजिक विज्ञानवेत्ता तथा प्रशिक्षित व्यक्ति ही नियुक्त हो रहे हैं। प्रबंधन के विभिन्न आयामों से जो परिचित है और मानव व्यवहार की गत्यात्मकता तथा प्रबंधन-कौशल में पूर्ण निपुण हैं। ऐसे ही व्यक्ति को मानव संसाधन प्रबंधन का उत्तरदायित्व दिया जाना चाहिये।  मानव संसाधन प्रबंधन के अन्तर्गत प्रमुख कार्य अधोलिखित तीन भागों में विभक्त किये गये हैं : -

  1. श्रम पक्ष - जिसमें चयन, नियुक्तियाँ, स्थापना, स्थानान्तरण, पदोन्नति, छुट्टी प्रशिक्षण तथा विकास एवं अभिपेर्र णा मजदूरी, वेतन प्रशासन आदि विषय हैं।
  2. कल्याणकारी पक्ष - इसमें कार्य की दशायें सुविधाएँ, सुरक्षा स्वास्थ्य सम्बन्धी बातें सम्मिलित की जाती हैं।
  3. औद्योगिक सम्बन्ध पक्ष - इसमें श्रम संघों द्वारा विचारों का आदान-प्रदान, सामूहिक सौदेबाजी, विवादों का निपटारा, संयुक्त प्रबंध समितियाँ तथा सामाजिक सुरक्षा, वेतन, भत्ते आदि सम्मिलित किये जाते हैं। इसके अतिरिक्त चिकित्सा लाभ, बीमारी की छुट्टी, परिवार नियोजन तथा मनोरंजनात्मक तथा शिक्षात्मक कार्यक्रम की बातें भी समाहित हैं।

    मानव संसाधन प्रबंधन के कार्य 

    1. कर्मचारियों में मधुर सम्बन्ध बनाये रखने की दृष्टि से अनुकूल नीतियों का निर्माण करना।
    2. नेतृत्व विकास के लिये समुचित कार्य करना।
    3. सामूहिक सौदेबाजी, समझौता, संविदा प्रशासन तथा परिवाद निवारण करना।
    4. श्रम श्रोतों की जानकारी रखना तथा कार्य के अनुरूप उपयुक्त व्यक्ति का चयन करना।
    5. विकास हेतु उपयुक्त अवसरों को श्रमिकों हेतु सुलभ कराना तथा उनकी योग्यता प्रदर्शन के लिये अवसर प्रदान करना।
    6. कर्मचारियों में कार्य के प्रति उत्साह बनाये रखना तथा प्रोत्साहन देते रहना।
    7. संगठन में मानव संसाधन का मूल्यांकन करते रहना।
    8. मानव संसाधन के क्षेत्र में शोध की व्यवस्था बनाये रखना तथा शोध के निष्कर्षों का नीति निर्माण में उपयोग करना।

    इस प्रकार योडर ने आठ प्रमुख कार्यों को माना है जबकि नार्थ कोट ने मानव संसाधन प्रबंधक के कार्यो को तीन दृष्टियों से देखने का प्रयास किया है :-

    1. जन कल्याण दृष्टिकोण। 
    2. वैज्ञानिक प्रबंध दृष्टिकोण। 
    3. औद्योगिक सम्बन्ध दृष्टिकोण। 

    इस प्रकार मानव संसाधन प्रबंधन के द्वारा ही उपरोक्त दृष्टिकोण रखते हुये श्रमिक के शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं सुरक्षा के क्षेत्र में विधि सम्मत तथा अन्य जनहितकारी कायोर्ं को करना चाहिये तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही कर्मियों का चयन, प्रशिक्षण, उचित पारिश्रमिक/मजदूरी, बोनस, वेतन वृद्धि तथा अन्य धार्मिक लाभ जिनसे उनमें कार्य मे लगे रहने की इच्छा, अधिकतम उत्पादन हेतु श्रम करने तथा भूमिका का निर्वाह करना तथा औद्योगिक सम्बन्ध दृष्टिकोण से उद्योग में शांति बनाये रखना तथा किसी असंतोष या विवाद की स्थिति में शीघ्रता से समाधान कराना तथा श्रम संघों से विचार विमर्श करते रहना और उनकी सहमति से निपटारा कराना। यदि औद्योगिक अशांति परस्पर सहमति से न बन पा रही हो तो संसाधन मशीनरी एवं ट्रिव्यूनल कोर्ट के माध्यम से समाधान निकालना।

    ए0 एफ0 किंडाल के मानव संसाधन प्रबंधन के अन्तर्गत अधोलिखित कार्यो को माना है :-

    1. उपक्रम के उद्देश्य के अनुरूप नीतियों का निर्माण एवं कार्य प्रणालियों का विकास करना, नियंत्रण करना तथा संचार प्रणाली को विकसित करना। 
    2. संगठन के सभी स्तर पर पर्यवेक्षण, नेतृत्व तथा प्रोत्साहन प्रदान करना। 
    3. प्रशासन के समस्त आयामों में सहयोग तथा आवश्यक सुझाव प्रस्तुत करना। 
    4. नीतियों को सुनियोजित ढंग से क्रियान्वित करना। 
    5. कार्यान्वयन हेतु निरंतर सचेष्ट रहना। 
    6. श्रम आंदोलनों पर ध्यान देना और उनके समाधान में सक्रिय रहना। 
    7. नीतियों का श्रमिकों में व्यापक प्रचार और समझ पैदा करना तथा श्रमिकों या उनके संगठनों के सुझावों को उच्च स्तरीय प्रशासकों तक पहँचाना कार्य हैं। 

    इसी प्रकार एच0 एच0 कैरी ने मानव संसाधन प्रबंधन के ये कार्य बताये हैं :-

    1. कार्मिक प्रशासन का गठन - जिसके अन्तर्गत प्रशासकों एवं कर्मचारियों के दायित्व का निर्धारण करना, नीति निर्माण के लिये समितियों का गठन प्रशासकों एवं कर्मचारियों में सद्भावना स्थापित करना, तथा व्यक्तियों का मूल्यांकन करना।
    2. प्रशासन तथा पर्यवेक्षण - प्रशासनिक अधिकारियों तथा पर्यवेक्षकों के कर्त्तव्य एवं दायित्व का निर्धारण करना, परिवाद निवारण हेतु उपयुक्त श्रंख्ृ ाला का निर्माण करना, बहुउद्देश्यीय प्रबंध योजनाएँ बनाना, पर्यवेक्षणीय योजनायें निर्धारित करना। दिशा-निर्देशन कार्य हैं।
    3. श्रम नियोजन - कर्मचारियों की आवश्यकताओं को प्रतिष्ठान के अनुरूप पूर्वानुमान, श्रमिक भर्ती की नीति निर्धारण, कार्य विवरण निर्धानित करना, मजदूरी दर निर्धारित करना, भर्ती-चयन का निर्धारण, श्रमिकों के बारे में जानकारी रखना तथा कार्य के प्रति उन्हें जागरूक करना, श्रमिकों की योग्यतानुरूप कार्य सौंपना, उनसे सम्बन्धित अभिलेख तैयार करना तथा श्रम बाजार की जानकारी रखना।
    4. प्रशिक्षण तथा श्रम विकास - इसके अन्तर्गत अन्तर्विभागीय कार्य विवरण तथा कर्मचारियों के मध्य सम्बन्ध ज्ञात करना, कर्मचारियों का प्रशिक्षण, अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों के हेतु विकास कार्यक्रम तैयार करना, श्रमिकों के पठन-पाठन की सुविधा उपलब्ध कराना, शिक्षा एवं व्यवसायिक मार्ग दर्शन की व्यवस्था करना तथा कर्मचारियों मूल्यांकन करना कार्य हैं।
    5. मजदूरी तथा वेतन प्रशासन - कर्मचारी कुशलता मूल्यांकन तथा वेतन/मजदूरी निर्धारित करना, कार्य हेतु प्रोत्साहन-मौद्रिक या अन्य विधियों का उपयोग करना, श्रमिकों को पेर्र णा प्रदान करना, कार्य निष्पादन एवं मूल्यांकन सम्बन्धी कार्य करना, श्रमिकों को सहयोगी एवं नियमित करने की चेष्टा में लगे रहना, छुट्टी, अनुपस्थिति सम्बन्धी नीतियों का नियमों का निर्माण करना कार्य हैं।
    6. शक्ति संतुलन -कार्यभार निर्धारित करना, पदोन्नति, पदच्युति, स्थानान्तरण, कार्य मुक्ति से उत्पन्न समस्याओं का प्रबंध करना, श्रमिकों सम्बन्धी सूचनाएँ एकत्र करना तथा मूल्यांकन योजनाएँ बनाना, वरिष्ठता तथा अनुशासन सम्बन्धी विवरण रखना तथा चयन विधियों का निर्धारण करना।
    7. कर्मचारियों तथा प्रबंधन के बीच सम्बन्ध- कर्मचारियों से व्यक्तिगत सम्बन्ध रखना, श्रमसंघों से तालमेल बनाये रखना, सामूहिक सौदेबाजी, परिवाद निवारण प्रणाली, पंचनिर्णय तथा नियोगी-नियोक्ता समितियाँ बनाना।
    8. कार्य के घंटे एवं दशाओं के निर्धारण तथा विश्रामकाल एवं मनोरंजन की व्यवस्था करना।
    9. स्वास्थ्य एवं सुरक्षा- श्रमिकों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की दृष्टि से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना, मशीनरी की जाँच व्यवस्था करना एवं दुर्घटनाएँ क्षतिपूर्ति योजनाएँ सुलभ कराना।
    10. कर्मचारियों के साथ सम्प्रेषण आरै उनसे सम्बन्धित शोध की व्यवस्था बनाना ताकि शोध के निष्कर्षो से सम्प्रेषण तथा मानव संसाधन-प्रबंधन में नये ज्ञान का लाभ प्राप्त किया जा सके।

    उपरोक्त मानव संसाधन प्रबंधन कार्यो को समेटते हुये इसे अधोलिखित प्रमुख दो रूपों में देख सकते हैं :-

    मानव संसाधन प्रबंधन के प्रबंधकीय कार्य 

    1. नियोजन :जिसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये मानव संसाधन का नियोजन, उसकी आवश्यकता, उसकी भर्ती, चयन और प्रशिक्षण है और इसकी ओर मानव संसाधन की आवश्यकता, उसके मूल्य, मनोवृत्ति तथा उसका व्यवहार जो संगठन पर प्रभावी हैं, कार्य किया जाता है।
    2. संगठन : दूसरे उसका प्रबंधकीय कार्य संगठन को सक्षम बनाना किसी भी उद्योग के लिये अपने लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु सबल और सक्षम संगठन का आवश्यकता होती है। संगठन ही लक्ष्य का साधन है। संगठन में अनेक लोग होते है। विशिष्ट कुशल प्रशासक से लेकर सामान्य कर्मचारी तक की सहभागिता सफलता की सिद्धि के लिये आवश्यक है। लक्ष्य प्राप्ति हेतु सभी की भूमिका महत्वपूर्ण है। अत: इन सभी के मध्य सहकारिता, सहयोग और समंजन का होना जरूरी है। प्रतिष्ठान के उद्देश्यों की सफलता संगठन के कर्मियों तथा अधिकारियों के समन्वय एवं दलीय अभिगम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
    3. दिशा निर्देशन -मानव संसाधन (कार्मिक प्रबंधन) में दिशा निर्देशन का कार्य बहुत ही प्रभावी होता है। लक्ष्य प्राप्ति के लिये यदि समुचित दिशा निर्देशन नहीं मिलता है तो अच्छे नियोजन और संगठन के बावजूद भी कठिनार्इ होती है। दिशा निर्देशन से ही कार्यान्वयन होता है। इसी की सहायता से अभिकर्मियों को प्रेरणा दी जाती है जिससे उसकी क्षमता का अधिकतम उपयोग प्राप्त किया जाता है और प्रतिष्ठान लक्ष्यों को सहजता से प्राप्त करता है।
    4. नियंत्रण करना : मानव संसाधन प्रबंधन कें नियंत्रण बनाये रखने का कार्य अति महत्वपूर्ण होता है। संगठन का नियोजन, उसका प्रारूप और दिशा निर्देशन में समरूपता होनी चाहिये। यह समरूपता उन्हें नियंत्रित करके ही प्राप्त किया जा सकता है। यह नियंत्रण लेखा परीक्षण, प्रशिक्षण आयोजन, मानव संसाधन में नैतिक बल वृद्धि तथा अन्य विधायी उपायों से संगठन में नियंत्रण बनाये रखने का कार्य हो सकता है।

    मानव संसाधन प्रबंधन के क्रियात्मक कार्य 

    मानव संसाधन के प्रबंधन कार्य का दूसरा भाग उसका क्रियात्मक प्रबंध कार्य के रूप में स्वीकार किया गया है। यह क्रियात्मक प्रबंधकीय भी अधोलिखित रूप में देखा जा सकता है:-

    1. रोजगार : मानव संसाधन के प्रबंधन कार्य के क्रियात्मक रूप में रोजगार के अनुरूप मानव संसाधन को प्राप्त करना जिसे कार्य विश्लेषण, मानव संसाधन का नियोजन, भर्ती, चुनाव एवं उनकी गतिशीलता का ध्यान रखते हुये प्रतिष्ठान में मानव संसाधन की सहभागिता स्थिर करना। इस प्रकार कार्य की चुनौतियों के अनुरूप मानव संसाधन को कार्य उत्तरदायित्व सांपैना।
    2. मानव संसाधन विकास - वर्तमान कार्य एवं भविष्य में कार्यो के लिये मानव संसाधन को विकसित करने हेतु उसके कौशल विकास, ज्ञान, रचनात्मक प्रतिभा, अभिवृत्ति, मूल्य और समर्पण भाव में निरंतर विधायी परिवर्तन लाना आवश्यक है और यह कार्य मानव संसाधन प्रबंधन का ही है। इसी के अन्तर्गत मानव उपलब्धि मूल्यांकन, उसका प्रशिक्षण, प्रबंधकीय विकास, अभिकर्मी के निजी विकास का आयोजन, संगठन के उध्र्वगामी एवं क्षैतिज आयाम में भविष्य देखना, उसका स्थानान्तरण, प्रोन्नति तथा पदावनति की स्थिति देखना है। इसी की तहत नियोक्ता प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति प्राप्त करने हेतु अक्षम व्यक्ति की छॅटनी भी करता है और संगठन में असंतुलन की स्थिति में संगठनात्मक विकास भी करता है और संगठन में व्यवहारवादी विज्ञानों का प्रयोग करते हुये मानव संसाधन का विकास करता हैं।
    3. क्षतिपूर्ति -मानव संसाधन के प्रबंधकीय उत्तरदायित्व में क्षतिपूर्ति लाभ देना है। यह वह प्रक्रिया है जिससे पर्याप्त एवं उचित पुरस्कार मानव संसाधन को सुलभ कराया जाता है। इसी क े तहत कार्य मूल्यांकन मजदूरी एवं वेतन प्रशासन, पेर्र क धनराशि, बोनस, कंटै ीन, आवागमन सुि वधा, मनोरंजन सुविधा, मातृत्व कल्याणकारी सुविधायें, प्राविडेंड फंड, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा एवं अनुग्रह धनराशि की सुविधा दी जाती है।
    4. मानव सम्बन्ध - मानव संसाधन प्रबंधकीय कार्य के अंतर्गत ही संगठन के विभिन्न इकार्इयों तथा र्इकार्इ विशेष में कार्यरत व्यक्तियों में विधायी अन्त:सम्बन्धों का निर्माण करना भी प्रबंधक का ही उत्तरदायित्व है। इस प्रकार एक अभिकर्मी में तथा प्रबंधन में अच्छा सम्बन्ध बनाने की दृष्टि से ही तथा श्रम संगठनों एवं प्रबंधकों में परस्पर विश्वास पैदा करने का प्रयास किया जाता है। मानव संसाधन की नीतियाँ, कार्यक्रम, रोजगार, प्रशिक्षण, क्षतिपूर्ति की सुविधा आदि कार्यक्रमों से मानव संसाधन में और प्रबंधन में एक विधायी सम्बन्ध बनाने की ही दिशा में कार्य किया जाता है और इस प्रकार उनके व्यक्तित्व विकास, सीखने का कौशल, अन्तवर्ैयक्तिक सम्बन्ध स्थापन और अन्त:समूह सम्बन्ध स्थापन से मानवीय सम्बन्ध स्थापन की दिशा में कार्य किया जाता है। इसके अतिरिक्त सम्बन्ध स्थापन के लिये ही अभिकर्मियों को प्रेरक सेवाएँ तथा उनके नैतिक बल निर्माण की दिशा में कार्य किया जाता है। संप्रेषण कौशल विकास, नेतृत्व विकास शीघ्रता से परिवेदना निवारण, परिवदेना मशीनरी का उपयोग, अनुशासन की कार्यवाही, परामर्श सेवाएँ, आरामदायक कार्य परिस्थितियाँ, कार्य संस्कृति का विकास तथा अन्य सुविधायें दी जाती हैं।
    5. औद्योगिक सम्बन्ध - इसके अन्तर्गत नियुक्त और नियोक्ता के मध्य, सरकार एवं श्रम संघों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को ही औद्योगिक सम्बन्ध माना जाता है। इसी के तहत भारतीय श्रम बाजार, श्रम संगठनों की भूमिका, सामूहिक सौदेबाजी, औद्योगिक द्वंद, प्रबंधन में श्रमिक की सहभागिता तथा वृत्त की गुणात्मकता का अध्ययन किया जाता है।
    6. मानव संसाधन प्रबंधन की आधुनिक प्रवृत्ति - आज मानव संसाधन एक वृत्तिक अनुशासन के रूप में द्रुत गति से अपने स्वरूप में परिवर्तनकरता हुआ प्रगति के पथ पर है। आज इसके अन्तर्गत कार्य जीवन के गुण, मानव संसाधन की समग्र गुणवत्ता, उसका लेखा, परीक्षण, शोध एवं मानव संसाधन प्रबंधन की आधुनिक तकनीकों का अध्ययन किया जाता है।

    मानव संसाधन की प्रमुख विशेषताएँ 

    यह मानव संसाधन का प्रबंध है।यह एक विभागीय उत्तरदायित्व है जो कार्मिक प्रबंध के अधीन कार्य करता है।यह मानव शक्ति का चयन, नियोजन संगठन व नियंत्रण करता है।इसका उद्देश्य कर्मियों में सर्वोत्तम फल प्राप्त करना है।इससे कर्मचारियों में अधिकतम कार्यक्षमता बढ़ाने का कार्य होता है।कर्मचारियों की योग्यता विकास में सहायक है।कर्मचारियों में सहकारी विकास भाव पैदा करता है।यह मानवीय सम्बन्ध सत्यापित कर उन्हें बनाये रखने का प्रयास करता है।यह उच्च प्रबंध को महत्त्वपूर्ण सुझाव देता है।कार्मिक प्रबंध निश्चित सिद्धान्तों एवं व्यवहारों का पालन करता है।यह एक प्रबंध दर्शन है।

    मानव संसाधन प्रबंधन के उद्देश्य 

    मानव संसाधन का उद्देश्य संगठन के लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है। ये लक्ष्य समय काल एव परिवेश से बदलता रहता है। यद्यपि अधिकांश संगठनों का लक्ष्य अभिकर्मियों में विकास एवं प्रतिष्ठान में अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है तथापि आज इसका संगठन, सरकारी नीतियों एवं सामाजिक न्याय तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था बनाने में भी भूमिका का निर्वाह लक्ष्य के तहत स्वीकार किया गया है। कतिपय व़िद्वानों में मानव संसाधन प्रबंधन को सामाजिक संगठनात्मक, क्रियात्मक उद्देश्यों तथा वैयक्तिक उद्देश्यों के संदर्भ में भी स्वीकार किया है।

    ‘बिप्रो’ में उद्देश्य अधोलिखित रूपों में माना गया है :-

    1. मनुष्य को संगठन के लिये सबसे अधिक महत्वपूर्ण सम्पत्ति के रूप में माना है। 
    2. उच्च मानक एवं समन्वय के साथ व्यक्ति एवं प्रतिष्ठान में सम्बन्ध बनाये रखना।
    3. अभिकर्मियों के माध्यम से ग्राहक या उपभोक्ता के साथ गहरा सम्बन्ध स्थापित करना।
    4. मानव संसाधन प्रबंधन में नेतृत्व प्रदान करना तथा उसे बनाये रखना। 

    आर0 सी0 डेविस ने प्रबंधन के उद्देश्यों को अधोलिखित दो रूपों में माना है:-

    1. मूल उद्देश्य 
    2. गौण उद्देश्य 

    (1) मूल उद्देश्य -

    मूल उद्देश्यों के तहत मानव संसाधन विभाग उत्पादन, विक्रय एवं वित्त विभाग के लिये उपयुक्त कर्मचारियों के चयन एवं उनकी नियुक्ति में सहयोग प्रदान करता है। संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये ऐसे कार्य संगठन का निर्माण करता है जिसमें कार्य की चुनौतियों का मुकाबला करते हुये अपनी संतुष्टि के साथ अधिकतम उत्पादन से सहभागी बनता है। यह अभिकर्मी की प्रेरणा का प्रतिफल है। अत: अभिकर्मियों में विधायी अभिपेर्र णा बनाये रखने के लिये ही उसे मौदिक्र पेर्र णा तथा अमौदिक्र पेर्र णा दी जाती है। यही कारण है कि अभिकर्मियों की मजदूरी, वेतन, भत्ते तथा अंशधारियों के लाभ में वृद्धि की जाती है और साथ ही साथ उनके अच्छें कार्यो के लिये, संगठन की प्रतिष्ठा बढ़ाने में सहभागिता, सेवाभाव रखने तथा सामाजिक उत्तरदायित्व के लिये उन्हें सम्मानित किया जाता है।

    (2) गौण उद्देश्य -

    गौण उद्देश्यका लक्ष्य मूल्य उद्देश्यों की प्राप्ति कम लागत पर कुशलतापूर्वक एवं प्रभावी ढंग से करना है। किन्तु यह तभी सम्भव है जबकि अभिकर्मियों की कार्यक्षमता में वृद्धि की जाय, कार्य ही पूजा है, का भाव विकसित किया जाय। साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाय तथा समस्त कर्मचारियों में कार्य में दलीय भावना पैदा की जाय। कर्मचारियों में भार्इ-चारा का भाव विकसित किया जाय। उनके नैतिक बल पर ध्यान दिया जाय तथा प्रतिष्ठान में मानवीय सम्बन्ध और अच्छे अनुशासन का वातावरण बनाया जाय तथा मानवीय व्यवहार को प्रभावित करने के लिये उचित अभिप्रेरणा प्रणाली तथा उचित संदेश वाहन प्रक्रिया का प्रतिष्ठान में उपयोग किया जाय।

    मानव संसाधन प्रबंधक के गुण 

    प्रबंधकीय कौशल से अभिप्राय होता है वह गुण, समझ एवं कार्यदक्षता जिससे प्रबंधक अपने उत्तरदायित्व का सहजता से निर्वाह करता है और संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहता है। इस प्रकार इसके अन्तर्गत प्रबंधक की अधोलिखित योग्यताएँ मानी जाती है यथा :-

    1. पर्याप्त शैक्षिक योग्यता। 
    2. श्रम सम्बन्धों की जानकारी। 
    3. व्यवसाय की नीतियों एवं प्रबंध की समस्याओं का ज्ञान। 
    4. समाज विज्ञानों का ज्ञान 
    5. कर्मचारियों के प्रति विश्वसनीय व्यवहार। 
    6. सृजनात्मक सम्बन्ध 
    7. स्वस्थ व्यक्तित्व 
    8. सद्चरित्र 
    9. वाक् चातुर्य 
    10. सेवाभाव 
    11. उदार विचार वाला 
    12. आशावादी होना। 

    मानव संसाधन प्रबंधक उपरोक्त गुणों के कारण ही अपने प्रबंध कौशल से अपनी इस भूमिकाओं के निर्वाह में सफल होता है :-

    1. परामर्शदाता के रूप में - समस्याग्रस्त अभिकर्मियों को प्रसन्न और संतुष्ट रखने के लिये मानव संसाधन प्रबंधक बतौर परामर्शदाता उसे सलाह देता है और अनुकूल परामर्श से उसे समस्यामुक्त होने की युक्ति में सहायक होता है।

    2. मध्यस्थ के रूप में - मानव संसाधन प्रबंधक अभिकर्मियों - सेवायोजक तथा उच्च प्रबंधकों के बीच एक मध्यस्थ के रूप में भी भूमिका का निर्वाह करता है। अभिकर्मियों की माँगों, आवश्यकताओं तथा क्षमताओं के प्रति ऊपर के अधिकारियों तक पहुँचाकर उसके संदर्भ में नीति निर्माण एवं निर्णय लेने में उच्च पदस्थ अधिकारियों का जहाँ सहयोग करता है वहीं दूसरी ओर प्रशासन की अपेक्षाओं और माँगों के प्रति कर्मचारियों को जानकारी देकर संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु उन्हें भी प्रेरणा प्रदान करता है। इस प्रकार वह इन दोनों के बीच सेतु का काम करता है।

    3. विशेषज्ञ के रूप में - मानव संसाधन प्रबंधक किसी भी प्रतिष्ठान में एक विशेषज्ञ के रूप में भी अपनी भूमिका का निर्वाह करता है। यह वह प्रबंधक है जो अपने विशिष्ट ज्ञान के ही बदौलत समग्र संगठन के लिये सर्वाधिक महत्व रखता है। समग्र संगठन की विभिन्न इकाइयों में समन्वय सहयोग एवं भ्रातृत्व भाव पैदा करने और नैतिक बल बनाये रखने में प्रेरणा प्रदान करता है। इतना ही नहीं वह सहायता स्त्रोत, परिवर्तन कारक तथा एक नियंत्रक के रूप में विशेषज्ञ जैसी सेवाएँ देता है। 

    मानव संसाधन प्रबंधक के उत्तरदायित्व के संदर्भ में अनेक विद्वानों ने अपने भिन्न मत व्यक्त किये है किन्तु प्रसिद्ध दो विद्वानों के विचार सर्वाधिक मान्य स्वीकार किये गये है जिनके विचार अधोलिखित रूप में है :-

    ब्राउन के अनुसार - 

    1. कार्मिक नीतियों, पद्धतियों और कार्यक्रमों को निर्धारित करने और उनके कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करना। 
    2. प्रबंधकीय क्षेत्र में मानवशक्ति की आवश्यकता को ज्ञात करना तथा उनका नियोजन करना।
    3. मानव संसाधन से सम्बन्धित समस्त समस्याओं के समाधान एवं निवारण में अधिकारियों एवं पर्यवेक्षकों को सलाह देना। 
    4. प्रशासन सम्बन्धी कार्यक्रमों का मूल्यांकन तथा सत्यापन करते रहना। 
    5. श्रमिकों की मजदूरी/वेतन के औचित्य पर विचार करना तथा आवश्यक परामर्श सेवायोजक एवं उच्च पदाधिकारी को देना। 
    6. रोजगार की स्थितियों का भी आकलन करना तथा ऐच्छिक सेवानिवृत्ति पर भी ध्यान देना। 
    7. संगठन की पूर्ण जानकारी रखना और आवश्यकतानुसार सहायता करना। 
    8. विभाग के विकास हेतु शोध कार्य भी करते रहना चाहिये ताकि प्राप्त नये ज्ञान के आलोक में संगठन को सुदृढ़ किया जा सके। 

      जार्ज डव्ल्यू हेनन के अनुसार -मानव संसाधन विकास प्रबंधक के उत्तरदायित्व अधोलिखित रूप में माना है :-

      1. कार्य के अनुरूप कुशल अभिकर्मियों को संगठन हेतु नियुक्त करना। 
      2. नियुक्ति में कार्य की चुनौतियों के अनुरूपं सक्षम यक्तियों को प्राप्त करना।
      3. अभिकर्मियों हेतु प्रशिक्षण की सुविधा प्रदान करना।
      4. वेतन प्रशासन पर ध्यान देना। 
      5. भौतिक एवं वित्तीय साधनों के प्रति ध्यान देना।
      6. सलाहकार के रूप में दायित्व। 
      7. सुरक्षा सम्बन्धी दायित्व मानना।
      8. लागत-व्यय नियंत्रण पर दृष्टि रखना।
      9. विभागीय आलेखन ताकि सभी मानव संसाधन सम्बन्धी सूचना दी जा सके और उसके आलोक में नये कार्यक्रमों का आयोजन हो सके। 

        मानव संसाधन प्रबंधन से आप क्या समझते हैं?

        सामान्य अर्थ में HRM का मतलब लोगों को रोजगार देना, उनके संसाधनों का विकास करना, उपयोग करना, उनकी सेवाओं को काम और प्रतिष्टान की आवश्यकता के अनुरूप बनाये रखना और बदले में (भरण-पोषण) मुआवजा देते रहना है।

        मानव संसाधन प्रबंधन से आप क्या समझते हैं मानव संसाधन प्रबंधन की विशेषताओं को संक्षेप में बताएं?

        मानव संसाधन इन्हीं नए गैर वित्तीय प्राचलकों में से एक है जो मूल्यांकन की उपयोगिता के लिए चुनौती है, निगम की सफलता को एकमात्र पारंपरिक मापन के आधार पर करती है। मानव संसाधन, किसी भी संगठन के कर्मचारी जो सामूहिक कौशल, नवाचार नेतृत्व, उद्यम एवं प्रबंधन कौशल संपन्न हैं, को प्रदर्शित करती है।

        मानव संसाधन से आप क्या समझते हैं?

        मानव संसाधन (human resources) वह अवधारणा है जो जनसंख्या को अर्थव्यवस्था पर दायित्व से अधिक परिसंपत्ति के रूप में देखती है। शिक्षा प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश के परिणाम स्वरूप जनसंख्या मानव संसाधन के रूप में बदल जाती है। मानव संसाधन उत्पादन में प्रयुक्त हो सकने वाली पूँजी है।

        मानव संसाधन प्रबंधन का क्या महत्व है वर्णन कीजिए?

        मानव संसाधन प्रबंधन का समाज के लिए बहुत महत्व है। (i) लोगों और उन लोगों के लिए उपलब्ध नौकरी के बीच संतुलन बनाए रखना जो योग्यता, आवश्यकता और योग्यता के संदर्भ में रुचि रखते हैं। (ii) मानवीय क्षमताओं का प्रभावी और कुशलता से उपयोग करना। (iii) उपयुक्त रोजगार के अवसर प्रदान करना जो लोगों को संतुष्टि प्रदान करे।