महासागरों को तापमान की प्राप्ति कैसे होती? - mahaasaagaron ko taapamaan kee praapti kaise hotee?

सामान्य रूप से सागरीय जल के भार व उसमें घुले हुए पदार्थों के भार के अनुपात को सागरीय लवणता कहते हैं। डिटमार( Dittmar ) महोदय के अनुसार समुद्र ( महासागरीय लवणता Archived 2021-03-13 at the Wayback Machine ) के जल में 47 विभिन्न प्रकार के लवन है.

महासागरीय जल में उपस्थित लवणता के कारण समुद्र का जल खारा होता है. एक 1 किलोमीटर समुद्री जल में 4.10 करोड़ टन लवण होता है. इस आधार पर यदि सारे जलमंडल के नमक को समतल रूप से बिछाया जाए तो संपूर्ण पृथ्वी पर 150 मीटर मोटी नमक की परत हो जाएगी.

गणितीय रूप से सागरीय लवणता को प्रति 1000 ग्राम जल में उपस्थित लवण कि कुल मात्रा (प्रति हजार) में व्यक्त किया जाता है. समुद्री की लवणता लगभग 35 प्रति हजार समुद्र है तो 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम लवण होता है. महासागरीय लवणता का मुख्य स्रोत पृथ्वी है. मुख्य रूप से लवण इकट्ठा करने के साधनों में नदियां, समुद्र की लहरें, हवाएं, ज्वालामुखी विस्फोट आदि है|

सागरीय जल में लवण की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है तो भी लवणों का सापेक्षिक अनुपात लगभग एक सा ही रहता है.

समलवणता रेखाएं[संपादित करें]

महासागरीय क्षेत्रों में समान लवणता वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएं समलवणता रेखाएं कहलाती है.

खुले महासागरों में लवणता का वितरण - अयनरेखीये क्षेत्रों में लवणता की मात्रा सर्वाधिक 36 प्रति हजार पाई जाती है. उच्च तापमान, प्रचलित उष्ण व शुष्क पवनें, वर्षा का अभाव एवं स्वच्छ जल की कम आपूर्ति के कारण इस क्षेत्र में लवणता अधिक पाई जाती है. अयनरेखीय क्षेत्रों से दोनों और अर्थात भूमध्य रेखा एवं ध्रुवों की ओर लवणता कम होती जाती है. किंतु लवणता की मात्रा भूमध्य रेखा क्षेत्रों की अपेक्षा ध्रुवीय क्षेत्रों में कम पाई जाती है. इसका कारण यह है कि ध्रुवीय प्रदेशों में हिम पिघले हुए जल की आपूर्ति अधिक एवं वाष्पीकरण कम होता है. भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में स्वच्छ जल की आपूर्ति एवं वाष्पीकरण दोनों ही अधिक रहते हैं. महासागर के तटीय क्षेत्र में लवणता के वितरण में भी स्थानीय भिन्नता मिलती है. उदाहरण के लिए अमेज,कांगो, नाइज़र व सिंध आदि नदियों के मुहानो पर स्वच्छ जल की आपूर्ति होते रहने के कारण लवणता कम पाई जाती है.

उत्तरी अटलांटिक महासागर के सारगोसे क्षेत्र में लवणता 38 प्रति हजार मिलती है. इस उच्च लवणता का कारण यह है कि यहां महासागरीय धाराओं के चक्रीय प्रवाह से मध्यवर्ती जल का मिश्रण अन्य क्षेत्रों के जल से नहीं हो पाता.

आंशिक रूप से घिरे सागर में लवणता का वितरण[संपादित करें]

आंशिक रूप से घिरे सागर में लवणता का वितरण स्थानिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है. भूमध्य सागर में लवणता का वितरण काफी भिन्न पाया जाता है. इसके उत्तर पूर्वी भाग में लवणता 39 प्रति हजार एवं दक्षिण पूर्व में 41 प्रतिशत पाई जाती है. लाल सागर के उत्तरी भाग में 41 प्रति हजार एवं दक्षिणी भाग में 36 प्रति हजार लवणता की मात्रा मिलती है. फारस की खाड़ी में लवणता की मात्रा 48 प्रति हजार पाई जाती है.

वर्षा का अभाव, स्वच्छ जल की कम आपूर्ति, वास्पीकरण की अधिकता,उच्च तापमान आदि कारणों से यह लवणता अधिक रहती है.

नदियों द्वारा प्रचुर स्वच्छ जल की आपूर्ति,हिम से पिघले जल की आपूर्ति, निम्न तापमान,निम्न वास्पीकरण दर आदि कारणों से काला सागर में लवणता की मात्रा 18 प्रति हजार, बाल्टिक सागर में 15 प्रति हजार और फिनलैंड की खाड़ी में केवल 2 प्रति हजार ही पाई जाती है.

आंतरिक सागरो में लवणता का वितरण[संपादित करें]

आंतरिक सागर एवं झील पूर्णतया स्थल से घिरे रहते हैं. अत्यधिक गर्म एवं शुष्क पवने, वर्षा का अभाव,उच्च तापमान व वाष्पीकरण कि अधिकता के कारण मृत सागर में लवणता की मात्रा 238 प्रति हजार पाई जाती है. कैस्पियन सागर के दक्षिणी भाग में लवणता की मात्रा 170 प्रति हजार एवं उत्तरी भाग में केवल 14 प्रति हजार पाई जाती है. कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में युराल, वोल्गा आदि नदियां स्वच्छ जल की आपूर्ति करती है. विश्व में सर्वाधिक लवणता टर्की कि वॉन झील में 330 प्रति हजार मिलती है.

महासागरीय जल में लवणता का ऊध्र्वाधर वितरण[संपादित करें]

गहराई की ओर लवणता की वितरण में कोई निश्चित प्रवृत्ति देखने को नहीं मिलती. फिर भी लवणता की गहराई के साथ परिवर्तन की कुछ प्रवृतियों उभरकर आती है. 1. ध्रुवीय क्षेत्रों में सतह पर लवणता कम तथा गहराई की ओर बढ़ती है. हिम के पिघले स्वच्छ जल की आपूर्ति होते रहने से लवणता सतह पर कम रहती है.

2. मध्य अक्षांशो में 400 मीटर की गहराई तक लवणता बढ़ती है. ततपश्चात गहराई के साथ इसकी मात्रा कम होती जाती है. सतह पर स्वच्छ जल की आपूर्ति कम व वाष्पीकरण अधिक होने से ऐसा होता है.

3. भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में सतह पर लवणता कम 1000 मीटर तक वृद्धि तत्पश्चात पुनः कम होती जाती है.

उपरोक्त प्रवर्तियाँ सामान्य है. वैसे विभिन्न महासागरों में भिन्न भिन्न प्रवर्तियाँ देखने को मिलती है. उदाहरण के लिए दक्षिणी अटलांटिक महासागर में सतही लवणता 33 प्रति हजार है. 400 मीटर गहराई पर 34.5 प्रति हजार,1200 मीटर पर 34.8 प्रति हजार. किन्तु 20° दक्षिणी अक्षांश के निकट सतह पर 37 तथा तली पर 35 प्रति हजार है. भूमध्यरेखीय भाग में सतह पर 34 एवं तली पर 35 प्रति हजार है. उत्तरी अटलांटिक महासागर में सतह पर 35.5 व तली पर 34% लवणता रहती है. आंशिक रूप से घिरे सागरों में लवणता के वितरण में काफी विभिन्नताएं मिलती है.

महासागर के जल के सतत एवं निर्देष्ट दिशा वाले प्रवाह को महासागरीय धारा कहते हैं। वस्तुतः महासागरीय धाराएं, महासागरों के अन्दर बहने वाली उष्ण या शीतल नदियाँ हैं। प्रायः ये भ्रांति होती है कि महासागरों में जल स्थिर रहता है, किन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता है। महासागर का जल निरंतर एक नियमित गति से बहता रहता है और इन धाराओं के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं। प्राकृतिक धारा में प्रमुख अपवहन धारा (ड्रिफ्ट करंट) एवं स्ट्रीम करंट होती हैं।[1] एक स्ट्रीम करंट की कुछ सीमाएं होती हैं, जबकि अपवहन धारा करंट के बहाव की कोई विशिष्ट सीमा नहीं होती। पृथ्वी पर रेगिस्तानों का निर्माण जलवायु के परिवर्तन के कारण होता है। उच्च दाब के क्षेत्र एवं ठंडी महासागरीय जल धाराएं ही वे प्राकृतिक घटनाएं हैं, जिनकी क्रियाओं के फलस्वरूप सैकड़ों वर्षों के बाद रेगिस्तान बनते हैं।[2]

उत्पत्ति

महासागरीय धारा बनने के मुख्यत: तीन कारण होते हैं - प्रथम तो जल में लवण की मात्रा एक स्थान की अपेक्षा दूसरे स्थान पर बदलती है, इसलिए सागरीय जल के घनत्व में भी स्थान के साथ-साथ परिवर्तन आता है। द्रव्यों की प्राकृतिक प्रवृत्ति जिसमें वे अधिक घनत्व वाले क्षेत्र की ओर अग्रसर होते हैं, के कारण धाराएं बनती हैं। दूसरे कारण में सूर्य की किरणें जल की सतह पर एक समान नहीं पड़तीं।[1] इस कारण जल के तापमान में असमानता आ जाती है। इसके कारण संवहन धारा (कन्वेक्शन करंट) पैदा होते हैं। तीसरा कारण सागर की सतह के ऊपर बहने वाली तेज हवाएं होती हैं। उनमें भी जल में तरंगें पैदा करने की क्षमता होती है। ये तरंगें पृथ्वी की परिक्रमा से भी बनती हैं। इस घूर्णन के कारण पृथ्वी के उत्तरी हिस्से में घड़ी की दिशा में धाराएं बनती हैं। इस प्रकार मुख्य कारणों में निम्न आते हैं:

  • धरती का घूर्णन
  • पवन
  • विभिन्न स्थानों के तापमान का अन्तर
  • विभिन्न स्थानों के जल के खारापन का अन्तर
  • चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण

पृथ्वी पर अनेक धाराएं बहती हैं। इन सब में गल्फ स्ट्रीम सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। इस स्ट्रीम में जल नीला एवं उष्ण हो जाता है। इसका बहाव मेक्सिको की खाड़ी के उत्तर से कनाडा तक होता है। यही कारण है कि लंदन एवं पेरिस कम ठंडे रहते हैं जबकि नॉर्वे के तटीय इलाके पूरे वर्ष बर्फ रहित रहते हैं। इसके अलावा, ब्राजील करंट, जापान, उत्तर भूमध्य रेखा, उत्तर प्रशांत महासागरीय तरंग आदि विश्व की प्रमुख सागरी धाराओं में गिने जाते हैं।

प्रमुख धाराएं

महत्त्व

विश्व की महासागरीय धाराओं का १९४३ का मानचित्र

महासागरीय धाराएं सागरीय जीवन के लिए अत्यावश्यक होती हैं। ये सागरीय जीव-जंतुओं के लिए आहार का मुख्य स्रोत होती हैं। सागर तरंगों से गर्म जल शीतल जल वाले क्षेत्रों तक जाता है। इसके विपरीत सागरीय तरंगों का असर भू-तापमान पर भी पड़ता है। सतही सागरीय धाराओं का ज्ञान पोत-परिवहन पर होने वाले व्यय को काफ़ी हद तक नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। इनके कारण ही ईंधन की खपत पर बड़ा प्रभाव पड़ता है, जो व्यय और यात्रा समय में काफी कमी लाता है। पुराने समय में तो सागरीय धाराओं व वायु दिशा ज्ञान और भी महत्त्वपूर्ण हुआ करता था। इसका एक अच्छा उदाहरण अगुल्हास धारा है, जिसने कारण पुर्तगाली नाविकों व अन्वेषकों को काफ़ी समय तक भारत आने से रोके रखा। आज भी संसार भर के नौवहन प्रतियोगी सागरीय धाराओं का लाभ उठाते हैं। महासागरीय धाराएं सागरीय जीवन के लिये भी महत्त्वपूर्ण होती हैं। इसका एक उदाहरण ईल मछली है।

सागरीय धाराओं का ज्ञान सागरीय कर्कट के अध्ययन में भी सहायक होता है। इसका उलट भी सत्य है। ये धाराएं विश्वपर्यन्त तापमान निश्चित करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जो धाराएं उत्तरी अंधमहासागर का उष्ण जल उत्तर-पश्चिमी यूरोप तक लाती हैं, वहां के तटीय क्षेत्रों में बर्फ जमने नहीं देतीं। इस कारण वहां के पत्तनों में जलपोतों की आवाजाही बाधित नहीं होती।

हाल ही में वैज्ञानिकों ने दक्षिणी महासागर के हिंद महासागर के क्षेत्र में एक शक्तिशाली जल प्रवाह कि खोज की है। ये उस तंत्रजाल का एक महत्वपूर्ण भाग है जो जलवायु परिवर्तनों को प्रभावित करता है। इस सागरीय प्रवाह की मात्रा लगभग चालीस अमेजन नदियों के जल की मात्रा के बराबर है। यह स्थान ऑस्ट्रेलिया की राजधानी, पर्थ से ४२०० किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।[4] उनके अनुसार महासागर की सतह से तीन किलोमीटर की गहराई पर उपस्थित यह जल प्रवाह उन महासागरीय धाराओं के वैश्विक जाळ में एक महत्वपूर्ण पथ है जो जलवायु परिवर्तनों को प्रभावित करते हैं।