लिस्टर इंजन धुआं क्यों देता है? - listar injan dhuaan kyon deta hai?

इन दिनों कीमत बढ़ने के मामले में डीजल ने पेट्रोल को भी पीछे छोड़ दिया है। अब डीजल पेट्रोल से महंगा हो गया है। कई जगहों पर तो दोनों के बीच का अंतर 5 रुपये/लीटर तक चला गया है। इससे हर कोई परेशान है। फिर वह नौकरीपेशा लोग हों, व्यवसायी वर्ग या फिर किसान वर्ग। अब जहां परेशानी है, वहां उसका हल भी होता है।

एक शख्स ने महंगे डीजल के खर्चे को कम करने के लिए अनोखा जुगाड़ बनाया है। यह किसानों के काफी काम आ सकता है। शख्स ने LPG सिलिंडर से लिस्टर इंजन चलने का जुगाड़ बना दिया। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर काफी देखा जा रहा है। सिलिंडर के रेग्युलेटर को कम और अधिक करके इंजन की स्पीड भी कम या तेज की जा सकती है। पहले आप वीडियो देखिए...


वीडियो में दिख रहा है कि लिस्टर इंजन सिलिंडर से चल रहा है। एक शख्स इसके पास जाकर उसकी स्पीड को कम और तेज करके भी दिखाता है। देखा जाए तो एक फुल सिलिंडर में यह इंजन 30 घंटे तक चलता है। हालांकि कई लोग पहले भी ऐसा कर चुके हैं लेकिन इन दिनों डीजल की कीमतें बढ़ने के कारण यह जुगाड़ चर्चा में आ गया।

यह जुगाड़ किसानों के काफी काम आ सकता है। खेतों में फसल को पानी देने के लिए लिस्टर इंजन को काम में लिया जाता है। ऐसे में जब डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं तो इस जुगाड़ से किसान 'सस्ती' कीमत पर अपना काम कर सकते हैं। हमें तो यह जुगाड़ पसंद आया। इस पर आपकी क्या राय है, हमें कॉमेंट में बताएं...

ये तस्वीरें हैं धांसू, देखकर आएंगे हंसी के आंसू

लिस्टर इंजन धुआं क्यों देता है? - listar injan dhuaan kyon deta hai?


डीज़ल ईंजन एक अंतर्दहन इंजन है जो बन्द स्थान में वायु को संपीडित करने से उत्पन्न ऊष्मा का उपयोग करके ईंधन में ज्वलन (इग्नीशन) उत्पन्न करता है। इस प्रकार यह यह स्पार्क-ज्वलन इंजनों से भिन्न है क्योंकि उनमें वायु और ईंधन के मिश्रण को प्रज्वलित करने के लिए स्पार्क-प्लग का उपयोग किया जाता है। इसे संपीडन-ज्वलन इंजन (compression-ignition engine) भी कहते हैं। इससे प्राप्त यांत्रिक ऊर्जा (गतिज ऊर्जा) का उपयोग वाहन, जेनरेटर तथा अन्य कई कार्यों में लाया जाता है। इसकी ख़ोज 1892 में पेरिस में जन्मे जर्मन मूल के अभियंता रूडोल्फ़ डीज़ल ने की थी। अन्य रसायनों के अलावा यह नाइट्रोजन तथा कालिख के कण दहन के उत्पाद के रूप में छोड़ता है जो प्रदूषण का ख़तरा उत्पन्न करते हैं।

इस इंजन में वायु को प्रथमतया दबाया जाता है जिसकी वजह से इसका तापमान बढ़ता है। इसके बाद इसमें जैसे ही डीज़ल उड़ेला जाता है यह गरमी की वजह से जलने लगता है जिसकी वजह से और गर्मी पैदा होती है और यह अपने ऊपर लगे पिस्टन को धकेलता है। इस कारण से गति प्राप्त होती है जिसको कई गियरों तथा रेलों के सहारे इच्छित काम करने में लगाया जाता है।

जब तक ट्रकों, बसों और रेल इंजनों में डीज़ल का प्रयोग नहीं शुरू हुआ तब तक यह सर्वसाधरण के लिये अज्ञात ही था। इसके अन्य उपयोग भी इतने ही महत्वपूर्ण थे, पर ऐसे जान नहीं पड़ते थे। आज डीज़ल इंजन जहाजों, जनित्रों (generators), पंपो, संपीड़कों, चक्कियों, चट्टान दलित्रों, मिट्टी हटाने की मशीनों, ट्रैक्टरों आदि में काम आ रहा है। भिन्न भिन्न कार्यों के लिये डीज़ल इंजन का अकार तथा आकृति भित्र होती है।

डीज़ल इंजन का जब जन्य इंजनों, जैसे भाप टरबाइन, गैस टरबाइन अथवा भाप इंजन से तुलना करते हैं तब डीज़ल इंजन की उत्कृष्टता का पता लगता है। संपीड़न प्रज्वलन होने के कारण इंजन की बनावट में सरलता होती है। इँधन जलाने के लिये इंजन में अलग से उपकरण जोड़ने की झंझट नहीं रहती। इससे ऐसे इंजनों की उष्मा दक्षता 36 प्रतिशत रहती है, जबकि गैसोलिन इंजन की उष्मा दक्षता केवल 25 प्रतिशत, गैस टरबाइन की केवल 20 प्रतिशत तथा पश्चाग्र भाप इंजन की केवल 12 प्रतिशत होती है। ये आँकड़े पूरे बोझ की उष्मादक्षता के औसत मान है। जब बोझ (load) bdfhbकम होता है तो उपर्युक्त इंजनों में किसी इंजन की उष्मा दक्षता बढ़ जाती है और किसी की कम हो जाती है।

सन् 1897 में तैयार डीजल का मूल इंजन म्युनिख के संग्रहालय में रखा हुआ है।

सन्‌ 1892 में रुडोल्फ डीज़ल (Rudolf Diesel) ने आंतरिक दहन इंजन का पेटेंट कराया और इन्हीं के नाम पर इसका नाम डीज़ल इंजन पड़ा, यद्यपि प्रथम वास्तविक इंजन का निर्माण 1895 ई0 में हुआ। इस इंजन का स्वतंत्र परीक्षण शोज़ोटर (Schozoter) ने 1897 ई0 में ऑगवर्ग में किया और डीज़ल इंजनों का आम प्रदर्शन म्युनिख प्रदर्शनी में 1898 ई0 में हुआ।

सन्‌ 1900 में डीज़ल ने पैरिस कांग्रेस के संमुख यह घोषणा की कि काफी प्रयोग के बाद परिचालन चक्र का जो अंतिम रूप उसने ग्रहण किया, वह चार स्ट्रोक के किस्म का एक ही आघात के अनुक्रम से चूषण, दबाव, विस्तार और विकासवाला था। पहले के डीज़ल इंजन वायु-अंत:क्षेप इंजन थे और इंजन के सिलिंडर में ईंधन देने के लिए बहुत ही ऊँचा दबाव प्रयोग में लाया जाता था। सन्‌ 1910 में जेम्स मैक्केचनिक (James Mckechnic) ने ठोस इंजेक्शन प्रणाली का विकास किया, जिसमें सरल, ऊँचे दबाववाला ईंधन-तेल पंप इंजेक्शन के काम में प्रयुक्त हुआ।

डीज़ल और गैसोलिन इंजन में भेद[संपादित करें]

स्फुलिंग-प्रज्वलन-गैसोलिन (Spark ignition gasoline) और संपीडन-प्रज्वलन-तेल (Compression ignition oil) इंजनों में अंतर ईंधन की प्रकृति में है। स्फुलिंग प्रज्वलन इंजन के कार्बूरेटर (Carburettor) में गैसोलिन और हवा बिल्कुल मिला दी जाती है और इंजन के सिलिंडर में, यह समरूप मिश्रण, भार चाहे जितना हो, दिए हुए अनुपात से पहुँचाया जाता है। हवा का ईंधन से अनुपात, जो वायु-ईंधन-अनुपात कहलाता है, गैसोलिन इंजन में 14.5 : 1 स्थिर रहता है। चूँकि डीज़ल में हवा और ईंधनवाले तेल के मिलाने का कोई अतिरिक्त कक्ष नहीं होता, इसलिए मिलाने का काम सिलिंडर में ही पूरा करना पड़ता है। डीज़ल सदैव हवा की निश्चित मात्रा को ही संपीड़ित करता है, पर बोझ के अनुसार अंत:क्षिप्त ईंधन की मात्रा में अंतर रह सकता है। यदि बोझ पूरा है तो वायुईंधन का अनुपात 22 : 1 रहता है। यदि इंजन कोई काम नहीं करता तो अनुपात 85 : 1 रहता है। डीज़ल इंजन को गैसोलिन इंजन की तुलना में अधिक मात्रा में हवा की आवश्यकता होती है। वायु-ईंधन-अनुपात के तथा संपीड़न के ऊँचा रहने से डीज़ल इंजन में कम ईंधन खर्च होता है। जितने ईंधन से गैसोलिन मोटर गाड़ी कोई काम करती है, उतने ही ईंधन में डीज़ल मोटर गाड़ी दुगुना काम करेगी। डीज़ल इंजन में एक अन्य लाभ यह है कि इसमें सस्ता ईंधन जल सकता है और ईंधन में आग लगने की संभावना कम रहती है।

डीजल इंजनों की डिज़ाइन (design) और आकार न तो यूरोप में और न संयुक्त राज्य अमरीका, में ही 20वीं शताब्दी की मध्य तक मानकित हुए थे। डीज़ल निर्माताओं ने अपनी-अपनी रूचि और विचारों के अनुसार भिन्न भिन्न प्रकार के डीज़ल इंजन तैयार किए। इस प्रकार कई आकारो, आकृतियों और कई चालों के इंजन बने हैं। सिलिंडर की व्यवस्था पंक्तियों में अरीय (Radial) आकृति अर्थात्‌ V की आकृति की, प्रतिद्वंद्वी पिसटनों वाली, या सामान्य एक क्रिया वाली, या दो क्रियावाली होती है। दो या चार चक्रवाले इंजनों में सिंलंडर और स्तभं अलग अलग, या एक ही खंड में बने रहते हैं। ईंधन द्वार और वाल्वव्यवस्था के कारण वायु के बहाव में अंतर रहता है। डीज़ल का पिस्टन ट्रंक (Trunk) या क्रॉस हेड (Crosshead) प्रकार का अधिभारित तथा अंत:शीतित, या इससे रहित, हो सकता है। ईंधन के रूप में विभिन्न गैसें, जैसे प्राकृतिक गैस, प्रदीपन गैस, उत्पादक गैस, धमन भट्टी गैस, या मल नाली गैस, विभिन्न प्रकार के ईंधन तेल, भरी कच्चे तेल, हल्के कच्चे तेल, हल्के आसुत तेल, या गैस और तेल दोनों प्रयुक्त हो सकते हैं। विभिन्न इंजनों में प्रक्षुब्ध या पूर्वहनकक्ष, वायु या ऊर्जा सेल (cells) प्रयुक्त होते हैं, या वे खुले कक्ष किस्म के होते हैं। मध्य मार्ग के रूप में ही विभिन्न आकृतियों का विकास हुआ और प्रत्येक निर्माणकर्ता ने विस्तृत क्षेत्र में उपयोग के दृष्टिकोण से डीज़ल का निर्माण किया।

डीज़ल इंजनों का वर्गीकरण कई ढंग से आया है, पर सामानय वर्गीकरण उनकी चाल पर आधारित है। जो इंजन प्रति मिनट 1,200 या इससे अधिक परिक्रमण करता है उसे उच्च चाल इंजन, जो प्रति मिनट 500 या इससे कम परिक्रमण करता है उसे निम्न चाल इंजन और इन दोनों के बीच की चाल वाले इंजन को मध्य चाल इंजन कहते हैं।

उच्च चाल इंजन छोटे बोरे (bore), अर्थात्‌ 6 इंच या इससे भी कम माप, के होते हैं, ताकि वे आकार और शक्ति उत्पादन में गैसोलिन इंजन के साथ प्रतियोगिता कर सकें। सिलिंडर की व्यवस्था सामान्यत: पक्तियों में या V आकृति की रहती है। उसके सहायक अंग विद्युत स्टार्टर, तैल पंप, जल पंप और शीतलन तंत्र हैं, जो इंजन के अभिन्न अंग ही होते हैं। इंजन में शायद ही प्रत्यक्ष पतिवर्ती एकक होता हो। यदि प्रतिवर्तन की आवश्यकता हो तो प्रतिवर्ती गियर अलग से जोड़ दिया जाता है। दहन की सुविधा के लिये उच्च चालवाले इंजन में बहुधा क्षोभनकक्ष (turbulence chamber) वायु या ऊर्जा सेल रहते हैं। पिस्टन को ठंढा करने के सहायक अंग की कदाचित्‌ ही कोई व्यवस्था रहती है। इस प्रकार के इंजन में प्रति सिलिंडर अधिक से अधिक लगभग 30 अश्वशक्ति विकसित होती है और इसमें ईंधन के रूप में हलके वर्ग का डीज़ल तेल प्रयुक्त होता है।

परिचालन चक्र (Operation cycle)[संपादित करें]

लिस्टर इंजन धुआं क्यों देता है? - listar injan dhuaan kyon deta hai?

आदर्श डीजल चक्र का p-V आरेख

डीज़ल इंजन चार स्ट्रोक, या दो स्ट्रोक चक्र, पर परिचालित होते हैं। इसका आशय यह है कि चार स्ट्रोक चक्र इंजन में पिस्टन के पूरे चार स्ट्रोक, या क्रैंक शाफ्ट के दो परिक्रमण, की आवश्यकता पड़ती है, जबकि दो स्ट्रोक चक्र इंजन में केवल दो स्ट्रोका, या क्रैंक शाफ्ट के केवल एक परिक्रमण, की आवश्यकता पड़ती है।

चार स्ट्रोक चक्र इंजन के निम्नलिखित कार्य हैं :

(1) अंतर्ग्रहण(suction stroke) - प्रवेश वाला वाल्व खुलता है और अवरोही पिस्टन सिलिंडर में नई हवा खींचता है।

(2) संपीड़न(compression stroke) - प्रवेश वाला वाल्व बंद होता है और आरोही पिस्टन सिलिंडर में ही हवा को 500 पाउंड प्रति वर्ग इंच के दबाव से दबाता है।

(3) शक्ति(power stroke) - संपीडन के आघात के अंत में ईंधन का अंत:क्षेप होता है। यह तुरंत स्वत: प्रज्वलित हो जाता है और तब फैलता है। फैलने से शक्ति उत्पन्न होकर पिस्टन को फैंक देती है।

(4) 'निकास'(Exhaust Stroke) - अब निकास वाल्व खुल जाता है और आरोही पिस्टन जली हुई गैसों को सिलिंडर के बाहर निकाल देता है। यह चक्र बार-बार चलता है।

दो चक्र मूका-संमार्जन (port-scavenged) इंजन के परिचालन के क्रम में भी अंतर्ग्रहण, संपीड़न, शक्ति और निकास कार्य होते हैं। अवरोही पिस्टन प्रवेशद्वार और निकासमूकाओं (ports) को खोलता है। इससे अपमार्जक वायु प्रवेशमूका से सिलिंडर में प्रवेश करती है और सिलिंडर को प्रक्षालित (flushes) कर निकासमूका से निकल जाती है। आरोही पिस्टन प्रवेश और निकासमूकाओं को आच्छादित कर देता है, तथा सिलिंडर में वायु को संपीड़न कर, दबाव बढ़ाकर, लगभग 500 पाउंड प्रति वर्ग इंच कर देता है। अतितप्त वायु में अब ईधंन का अंत:क्षेप होता है। ईधंन स्वत: जल उठता और प्रसारित होता है, जिससे पिस्टन पर आघात पड़ता है और वह बलपूर्वक नीचे आ जाता है। अवरोही पिस्टन अब प्रवेश और निकासद्वारों को खोल देता है, जिससे अपमार्जक संपीड़ित वायु को प्रवेश द्वार से प्रवेश करती और जली हुई गैसों को सिलिंडर से निकासद्वार द्वारा निकाल देती है। इस प्रकार चक्र पूरा हो जाता है।

यदि दो चक्र इंजन आदर्श हो तो एक ही विस्तार और चाल के चार चक्र इंजन से दुगुनी शक्ति प्राप्त होगी, पर वास्तव में ऐसा आदर्श इंजन नहीं प्राप्त होता। सिलिंडर में ही द्वारा होने के कारण दो चक्र ईजंन के आघात (stroke) वस्तुत: कम प्रभावशाली होते हैं चार चक्र इंजन की तुलना में दो चक्र इंजन से लाभ यह है कि एक ही शक्ति उत्पादन के लिये दो चक्र इंजन हल्का होता है, इसमें पुर्जे कम होते है और बनावट अधिक सरल होती है। इसका परिणाम यह हुआ कि बड़े इंजन साधारणतया दो चक्रवाले और छोटे छोटे इंजन चार चक्रवाले बनाए जाते हैं। पर इस नियम का पालन सदा नहीं होता। सुविधानुसार उच्च कोटि के इंजन दोनों ही किस्म के बनते है।

इंजन सफेद धुआं क्यों देता है?

तेल का लीक होना इसलिए अगर कंबशन चेम्बर एमन इंजन ऑयल किसी कारण लीक हो जाता है तो यह ईंधन के साथ मिलकर सफेद धुआं बनाता है।

कार काला धुआं क्यों छोड़ती है?

क्या होता है आपकी कार की टेलपाइप में से निकलने वाला काला धुआं? डीजल इंजन कंप्रेशन इग्निशन सिद्धांत पर काम करता हैं और जो डीजल सिलिंडर में जाता है, दहन के लिए वह खुद जिम्मेदार होता है। जब इंजन वेल मेंटेन्ड नहीं होगा तब डीजल पूरी तरीके से दहन नहीं होता है और यह काले धुएं के रूप में बाहर आता है।