Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf. Std 9 GSEB Hindi Solutions सवैये Textbook Questions and Answers प्रश्न-अभ्यास प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. ख. माई री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै । प्रश्न 8. प्रश्न 9. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न
10. प्रश्न 11. GSEB Solutions Class 9 Hindi सवैये Important Questions and Answers अतिरिक्त प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न 1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन। भावार्थ : कवि रसखान कहते हैं कि यदि मुझे मनुष्य का जन्म मिले तो मैं वही मनुष्य बनूँ, जिसे गोकुल गाँव के ग्वालों के साथ रहने का अवसर मिले। यदि मेरा जन्म पशु योनि में हो तो मैं उसी गाँव में जन्म लूँ, जहाँ मुझे नित्य नन्द की गायों के मध्य में विहार करने का सौभाग्य प्राप्त हो। यदि पत्थर के रूप में जन्म हो तो मैं उसी पर्वत का पत्थर बनें, जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र का गर्व नष्ट करने के लिए उँगली पर धारण किया था। यदि मैं पक्षी योनि में जन्म लूँ तो मैं यमुना के किनारे स्थित कदंब की डाल पर बसेरा करूँ। यानी हर हाल में वह श्रीकृष्ण से जुड़ी यादों के समीप रहना चाहता है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. 2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि
डारौं। भावार्थ : रसखान कृष्ण से जुड़ी चीजों के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि श्रीकृष्ण की लाठी और कम्बल के लिए अगर उन्हें तीनों लोको का राज छोड़ना पड़े तो वे छोड़ने के लिए तैयार हूँ। मैं नंद की गायों को चराने के बदले आठों सिद्धियों और नौ निधियों का सुख भी भूल सकता हूँ। अपनी आँखों से ब्रज के वन, बागों और तालाब को जीवनभर देनते रहना चाहता है। मैं इन करील की काँटेदार झाड़ियों में रहने के बदले हजारों सोने-चाँदी के महलों का सुख्य त्यागने को तैयार हूँ। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. 3. मोरपना सिर पर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी। भावार्थ : कृष्ण के सौन्दर्य पर मोहित एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी ! मैं सिर के ऊपर मोरपंख्य रसुंगी, गुंजों की माला पहनूँगी। मैं पीले वस्त्र धारण करके गायों के पीछे लाठी लेकर ग्वालों के संग वन में भ्रमण करूँगी। श्रीकृष्ण को जो भी अच्छा लगता है तुम्हारे कहने से मैं वह सब कुछ करने को तैयार हूँ, किन्तु मुरलीधर के होठों से लगी बांसुरी को अपने होठों से नहीं लगाऊँगी। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. 4. काननि दै अँगुरी रहिवो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै। भावार्थ : श्रीकृष्ण की मुरली की धुन पस्-मोहित एक गोपी कहती है कि जब श्रीकृष्ण मीठे स्वर में मुरली बजाएँगे तब यह अपने कानों में अंगुली डाल लेगी। ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं पर चढ़कर श्रीकृष्ण मोहक तान में गोधन गाते हैं तो गाते रहें, मैं उस तरफ ध्यान नहीं दूंगी। वे ब्रज के लोगों को बता देना चाहती हैं कि जब श्रीकृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी धुन सुनकर श्रीकृष्ण की एक मुस्कान पर ये अपने को संभाल नहीं पाएँगी। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. कविता क्या हार में, क्या जीत में, लघुता न मेरी अब छुओ, चाहे हृदय को ताप दो, – शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ उपर्युक्त कविता के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. सवैये Summary in Hindiकृष्णभक्त कवि रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहिम पटान है । ये दिल्ली के निकट रहते थे । कहा जाता है कि इन्होंने गोस्वामी विठ्ठलदासजी से दीक्षा ग्रहण कर ब्रजभूमि में कृष्ण-भक्तिमय जीवन व्यतीत किया । कृष्ण-प्रेम में पले इस मुसलमान कवि की केवल कृष्ण के प्रति ही नहीं, ब्रजभूमि के प्रति भी अनन्य अनुरक्ति अपने आप में एक सुखद अनुभूति है । इनकी कविता में कृष्ण की रूपमाधुरी, ब्रज माधुरी एवं राधा-कृष्ण की प्रेम-लीला का भावपूर्ण वर्णन हुआ है । इनमें भक्ति और शृंगार का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है । रसखान ने दोहे, कवित्त, सवैये अधिक लिखे हैं जो कोमलकांत पदाबली की दृष्टि से अपने आप में अपूर्य हैं । ब्रजभाषा का जैसा सरल-तरल, सरस-स्वच्छ रूप इस कवि की कविता में प्राप्त होता है उसे देखकर भारतेन्दु की यह उक्ति ‘इन मुसलमान हरिजनन पे कोटिक हिन्दू वारिये’ एकदम सार्थक प्रतीत होती है । ‘सुजान रसखान’ इनकी प्रमुख कृति हैं । इनकी रचनाएँ ‘रसखान रचनावली’ के नाम से भी संगृहित हैं। कविता-परिचय : रसखान के पहले और दूसरे सवैये में उनका ब्रजभूमि के प्रति अनुपम प्रेम का भाव व्यक्त हुआ है । उनकी इच्छा है कि अगले जन्म में श्रीकृष्ण के संपर्क में रहनेवाले पदार्थ या प्राणी के रूप में जन्म लें । थे श्रीकृष्ण के काले कंबल पर तीनों लोकों का सुख त्यागने को तैयार हैं । तीसरे सवैये में श्रीकृष्ण के रूप सौन्दर्य के प्रति गोपियों की मुग्धता का चित्रण है । जिसमें गोपियाँ स्वयं श्रीकृष्ण का रूप धारण करना चाहती हैं । चौथे सवैये में श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी मुस्कान के प्रभाव तथा गोपियों की विवशता का चित्रण है । शब्दार्थ – टिप्पण :
कवि कृष्ण की लकड़ी और कंबल पर क्या त्याग देना चाहता है?Answer: वे तीन लोक का राज्य त्याग देना चाहते थे। Explanation: कवि रसखान जी कृष्ण की लाठी और कंबल के बदले तीन लोक का राज्य त्याग देना चाहते थे।
कृष्ण की लकुटी और कामरिया पर कवि क्या त्यागने के लिए तैयार है?वे लकुटी और कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य, उनकी गाएँ चराने के बदले आठों सिधियाँ और नवों निधियों का सुख छोड़ने को तैयार हैं। श्रीकृष्ण जिन करील के कुंजों की छाया में मुरली बजाते हुए विश्राम किया करते थे उन कुंजों की छाया पाने के लिए कवि सोने के सैकड़ों महलों का सुख छोड़ने को तैयार है। प्रश्न 2.
कृष्ण की लकुटी और कंबल का सुख पाने के लिए कवि कौन सा सुख छोड़ने के लिए तैयार है?उत्तर : नंद की गाय चराने के लिए कवि आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख त्यागने के लिए तैयार हैं। गाय को चराने के समय मिलने वाली छड़ी और कंबल पर वे तीनों लोकों का राज छोड़ने को तैयार हैं।
कवि श्री कृष्ण की लकुटी और कंबल पर कौन सा राज्य न्योछावर करने को तैयार हैं?कवि के हृदय में उस 'लकुटी' और 'कामरिया' के प्रति अनन्य समर्पण भाव है जिस कारण वह उन पर सब कुछ निछावर करने को तैयार है। वह कहते हैं कि मैं इस लाठी और उनके द्वारा ओढ़े जाने वाले कमरिया के बदले तीनों लोकों का राज्य त्याग दो। आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।
|