कवि श्री कृष्ण की लकुटी और कंबल के लिए क्या त्याग देना चाहता है? - kavi shree krshn kee lakutee aur kambal ke lie kya tyaag dena chaahata hai?

Gujarat Board GSEB Hindi Textbook Std 9 Solutions Kshitij Chapter 11 सवैये Textbook Exercise Important Questions and Answers, Notes Pdf.

Std 9 GSEB Hindi Solutions सवैये Textbook Questions and Answers

प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
ब्रजभूमि के प्रति कवि का प्रेम किन-किन रूपों में अभिव्यक्त हुआ है ?
उत्तर :
कवि को ब्रजभूमि के प्रति गहरा प्रेम है । ये ब्रज के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करते हुए कहते हैं कि मैं अगले जन्म में ब्रज के ग्वाल-बालों के बीच रहना चाहता हूँ । यदि पशु रूप में जन्म मिलता है तो नंद बाबा की गायों के बीच चरना चाहता हूँ । निर्जीव रूप में जन्म होने पर मैं गोवर्धन पर्वत का हिस्सा बनना चाहता हूँ, जिसे श्रीकृष्ण ने अपनी उँगली पर उठाया था । यदि पक्षी के रूप में जन्म हो, तो मैं कदंब के पेड़ पर बसेरा बनाना चाहता हूँ । इस तरह मैं हमेशा ब्रज के वन, बाग और तालाब का सौंदर्य देखते रहना चाहता हूँ ।

कवि श्री कृष्ण की लकुटी और कंबल के लिए क्या त्याग देना चाहता है? - kavi shree krshn kee lakutee aur kambal ke lie kya tyaag dena chaahata hai?

प्रश्न 2.
कवि का चन, बाग और तालाब को निहारने के पीछे क्या कारण है ?
उत्तर :
कवि को ब्रज की हर चीज से प्रेम है । वहाँ के वन, बाग और तालाब के साथ श्रीकृष्ण की यादें जुड़ी हुई हैं । उसी चन बाग में श्रीकृष्ण कभी गायें चराया करते थे, रास रचाया करते थे । वहाँ के तालाब के किनारे बैठा करते थे । उनसे कवि श्रीकृष्ण का जुड़ाव महसूस करता है । इसलिए कवि उन्हें देखकर खुश हो जाता है ।

प्रश्न 3.
एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को क्यों तैयार है ?
उत्तर :
कवि रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं । वे श्रीकृष्ण से जुड़ी हर वस्तु से प्रेम करते हैं । श्रीकृष्ण जब ब्रज में गायें चराते थे तो हाथ में लकड़ी लिए हुए और कंधे पर कंबल डाले हुए एक ग्वाले के रूप में सुशोभित होते थे । वह लकड़ी और कंबल उनसे जुड़कर
अत्यंत मूल्यवान हो गया है । इसीलिए उस एक लकुटी और कामरिया पर कवि सब कुछ न्योछावर करने को तैयार है ।

प्रश्न 4.
सनी ने गोपी से श्रीकृष्ण का कैसा रूप धारण करने का आग्रह किया था ? अपने शब्दों में वर्णन कीजिए ।
उत्तर :
सखी ने गोपी से श्रीकृष्ण का पीतांबरधारी वास्तविक रूप धारण करने का आग्रह किया । गोपी कहती है कि वह श्रीकृष्ण की तरह सिर पर मोर पंखों का मुकुट धारण करे । गले में गुंओं से बनी माला पहने, तन पर पीले वस्त्र धारण करे और हाथों में लाठी थामे गायों के साथ वन-वन विचरण करे ।

प्रश्न 5.
आपके विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सांनिध्य क्यों प्राप्त करना चाहता है ?
उत्तर :
मेरे विचार से कवि पशु, पक्षी और पहाड़ के रूप में भी कृष्ण का सांनिध्य इसलिए प्राप्त करना चाहता है कि वह श्रीकृष्ण का अनन्य भक्त है । श्रीकृष्ण के सांनिध्य से उसकी भक्तिभावना तृप्त होती है ।।

प्रश्न 6.
चौथे सवैये के अनुसार गोपियाँ अपने आपको क्यों विवश पाती हैं ?
उत्तर :
चौथे सवैये के अनुसार श्रीकृष्ण का रूप अत्यंत मोहक है और उनकी मुरली की धुन अत्यंत मधुर, मादक तथा आकर्षक है । गोपियाँ श्रीकृष्ण की सुंदरता और उनकी मुरली की मधुरता के प्रति आसक्त है । अतः वे श्रीकृष्ण के सम्मुख अपने आपको विवश पाती हैं ।

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प्रश्न 7.
भाव स्पष्ट कीजिए :
क. कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं ।
उत्तर :
भाव : कवि रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं । श्रीकृष्ण से सम्बद्ध हर वस्तु से उन्हें बेहद लगाव है । ब्रज की काँटेदार करील की झाड़ियों की छाँव में कृष्ण गोपबालाओं के साथ रासलीला किए करते थे इसलिए ये करील के कुंज कवि के लिए और भी महत्त्वपूर्ण हैं । वह उन पर सोने के महलों का सुख न्योछावर कर देना चाहते हैं ।

ख. माई री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै ।
उत्तर :
भाव : भाव यह है कि गोपबाला श्रीकृष्ण की मोहक मुस्कान को देखते ही होश खो बैठती है, वह मुस्कान के सम्मुख स्वयं को विवश पाती है । अतः बार-बार कहती है कि वह मुस्कान संभाली नहीं जाएगी, नहीं जाएगी, नहीं जाएगी ।

प्रश्न 8.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है; अतः यहाँ अनुप्रास अलंकार है ।

प्रश्न 9.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ।
या मुरली मुरली धर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी ।
उत्तर :
काव्य-सौंदर्य : गोपी सखी के कहने पर श्रीकृष्ण जैसा सारा शृंगार करने को तो तैयार हो जाती है । किन्तु कृष्ण की मुरली को अपने होठों पर रखने को तैयार नहीं होती है । वह मुरली को अपनी सौत मानती है । वह मुरली हमेशा कृष्ण के होठों से लगी रहती है जिसके कारण उन्हें कृष्ण का सांनिध्य नहीं प्राप्त होता है । यहाँ मुरली के प्रति गोपी के मन में ईष्याभाव है। यह काव्यांश सवैया छंद में लिखा गया है । छंद ब्रजभाषा में है । अनुप्रास के अलावा, अधरान और अधराँन में रूपक अलंकार हे ।

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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 10.
प्रस्तुत सवैयों में जिस प्रकार ब्रजभूमि के प्रति प्रेम अभिव्यक्त हुआ है, उसी तरह आप अपनी मातृभूमि के प्रति अपने मनोभावों को अभिव्यक्त कीजिए ।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें । (‘स्वदेश प्रेम’ निबंध देखें)

प्रश्न 11.
रसखान के इन सवैयों का शिक्षक की सहायता से कक्षा में आदर्शवाचन कीजिए । साथ ही किन्हीं दो सबैयों को कंठस्थ कीजिए ।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें ।

GSEB Solutions Class 9 Hindi सवैये Important Questions and Answers

अतिरिक्त प्रश्न

प्रश्न 1.
रसखान हर रूप में ब्रजभूमि में ही क्यों जन्म लेना चाहते हैं ?
उत्तर :
रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त हैं। श्रीकृष्ण ने ब्रज में तरह-तरह की लीलाएँ की थीं। उन लीलाओं से जुड़ी हर वस्तु से वे सांनिध्य चाहते हैं इसीलिए वे चाहते हैं कि उनका जन्म किसी भी रूप में परन्तु हर बार ब्रजभूमि में ही हो।

प्रश्न 2.
गोपी श्रीकृष्ण द्वारा अपनायी गई वस्तुओं को क्यों धारण करना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण से प्रेम करती है। वह श्रीकृष्ण की वस्तुओं को धारण करके कृष्णमय हो जाना चाहती है इसीलिए कृष्ण द्वारा अपनायी गई वस्तुओं को धारण करना चाहती है।

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प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण की मोहक मुस्कान का गोपियों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण की मुरली की मधुर तान तो गोपियों को विवश करती ही है, इसके अलावा मोहक सौन्दर्यवाले श्रीकृष्ण जब मुस्कराते हैं तो उसके अचूक प्रभाव से गोपियाँ स्वयं को बचा नहीं पाती हैं। वे बड़े सहज रूप से श्रीकृष्ण की तरफ खिचती चली जाती हैं।

भावार्थ और अर्थबोधन संबंधी प्रश्न

1. मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मँझारन।।
पाहन हों तो वही गिरि को जो कियो हरिछन पुरंदर धारन।
जौ खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कुल कदंब की डारन।।

भावार्थ : कवि रसखान कहते हैं कि यदि मुझे मनुष्य का जन्म मिले तो मैं वही मनुष्य बनूँ, जिसे गोकुल गाँव के ग्वालों के साथ रहने का अवसर मिले। यदि मेरा जन्म पशु योनि में हो तो मैं उसी गाँव में जन्म लूँ, जहाँ मुझे नित्य नन्द की गायों के मध्य में विहार करने का सौभाग्य प्राप्त हो। यदि पत्थर के रूप में जन्म हो तो मैं उसी पर्वत का पत्थर बनें, जिसे श्रीकृष्ण ने इन्द्र का गर्व नष्ट करने के लिए उँगली पर धारण किया था। यदि मैं पक्षी योनि में जन्म लूँ तो मैं यमुना के किनारे स्थित कदंब की डाल पर बसेरा करूँ। यानी हर हाल में वह श्रीकृष्ण से जुड़ी यादों के समीप रहना चाहता है।

प्रश्न 1.
मनुष्य के रूप में रसखान कहाँ जन्म लेना चाहते हैं ?
उत्तर :
मनुष्य के रूप में रसखान ब्रज के ही गाँव में जन्म लेना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
कवि किस पर्वत का पत्थर बनना चाहता है ?
उत्तर :
कवि उस गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनना चाहता है जिसे श्रीकृष्ण ने अपने हाथ पर उठाया था।

प्रश्न 3.
पशु बनकर रसखान कहाँ रहना चाहते हैं ?
उत्तर :
पश बनकर रसखान नंद की गायों के बीच रहना चाहते हैं।

प्रश्न 4.
पक्षी बनने पर रसखान कहाँ बसेरा करना चाहते हैं और क्यों ?
उत्तर :
पक्षी बनने पर रसखान यमुना किनारे कदंब की डाल पर बसेरा बनाना चाहते हैं, क्योंकि श्रीकृष्ण वहाँ अपने बालसखाओं के साथ कदंब की डाल पर क्रीडाएँ करते थे। उस वृक्ष के नीचे बैठकर श्रीकृष्ण बंशी बजाया करते थे। उस वृक्ष से उनकी यादें जुड़ी हुई हैं।

प्रश्न 5.
निर्जीव रूप में रसखान ने क्या इच्छा प्रकट की है ?।
उत्तर :
निर्जीव रूप में पुनर्जन्म होने पर कवि चाहता है कि वह उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बने, जिसे श्रीकृष्ण ने अपने हाथ पर उठाया था।

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प्रश्न 6.
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है, इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

2. या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौ निधि के सुख नंद की गाइ चराइ बिसारौं।।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।।

भावार्थ : रसखान कृष्ण से जुड़ी चीजों के प्रति अपना प्रेम प्रकट करते हुए कहते हैं कि यदि श्रीकृष्ण की लाठी और कम्बल के लिए अगर उन्हें तीनों लोको का राज छोड़ना पड़े तो वे छोड़ने के लिए तैयार हूँ। मैं नंद की गायों को चराने के बदले आठों सिद्धियों और नौ निधियों का सुख भी भूल सकता हूँ। अपनी आँखों से ब्रज के वन, बागों और तालाब को जीवनभर देनते रहना चाहता है। मैं इन करील की काँटेदार झाड़ियों में रहने के बदले हजारों सोने-चाँदी के महलों का सुख्य त्यागने को तैयार हूँ।

प्रश्न 1.
कवि तीनों लोकों का राज किसके बदले छोड़ने को तैयार है ?
उत्तर :
कवि तीनों लोकों का राज श्रीकृष्ण की लाठी और कम्बल के बदले छोड़ने को तैयार है।

प्रश्न 2.
कवि रसखान नंद की गायें चराने के बदले किसका सुख छोड़ देना चाहते हैं ?
उत्तर :
कवि रसखान नंद की गायें चराने के बदले आठों सिद्धियों और नौ निधियों का सुख्न छोड़ देना चाहते हैं।

प्रश्न 3.
हजारों सोने-चाँदी के महलों का सुख कवि किस पर न्योछावर कर देने को तैयार है ?
उत्तर :
हजारों सोने-चाँदी के महलों का सुख कवि करील की काँटेदार झाड़ियों के घर पर न्योछावर कर देने को तैयार है।

प्रश्न 4.
‘ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं’ से कवि का क्या अभिप्राय है ?।
उत्तर :
कवि रसखान को कृष्ण और उनसे जुड़ी सभी वस्तुओं से बेहद लगाव है। जहाँ श्रीकृष्ण ने नाना प्रकार की लीलाएँ की हैं, वहाँ की हर चीज छूने और देखने से भी कवि को आनंद की अनुभूति होती है इसलिए उन्होंने कहा कि ‘ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं’ अर्थात् ब्रज के बाग-बगीचे और तालाब को देखते रहना चाहता हूँ।

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प्रश्न 5.
प्रस्तुत सवैया से अनुप्रास अलंकार का उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
‘कोटिक ए कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं’ – इस पंक्ति में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

3. मोरपना सिर पर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढ़ि पितांबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।

भावार्थ : कृष्ण के सौन्दर्य पर मोहित एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी ! मैं सिर के ऊपर मोरपंख्य रसुंगी, गुंजों की माला पहनूँगी। मैं पीले वस्त्र धारण करके गायों के पीछे लाठी लेकर ग्वालों के संग वन में भ्रमण करूँगी। श्रीकृष्ण को जो भी अच्छा लगता है तुम्हारे कहने से मैं वह सब कुछ करने को तैयार हूँ, किन्तु मुरलीधर के होठों से लगी बांसुरी को अपने होठों से नहीं लगाऊँगी।

प्रश्न 1.
गोपी श्रीकृष्ण का रूप बनाने के लिए क्या-क्या करने को तैयार है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण का रूप बनाने के लिए सिर पर मोर पंख का मुकुट, गले में गुंजों की माला और शरीर पर पीला वस्त्र धारण करने को तैयार है। वह श्रीकृष्ण की तरह गायों को चरानेवाली लाठी भी हाथ में रखना चाहती है।

प्रश्न 2.
गोपी किसे अच्छा लगनेवाला शृंगार करना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण को अच्छा लगनेवाला शृंगार करना चाहती है।

प्रश्न 3.
गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं लगाना चाहती ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण को मुरली बहुत प्रिय है। वे गोपियों को छोड़ मुरली को हमेशा अपने होठों से लगाए रहते हैं, जिससे गोपियों को श्रीकृष्ण की मुरली जितनी निकटता नहीं मिल पाती है इसी ईर्ष्याभाव के कारण गोपी मुरली को अपने होठों पर नहीं रखना चाहती है।

प्रश्न 4.
गोपी श्रीकृष्ण का शृंगार क्यों करना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती है। वह श्रीकृष्ण का रूप धारण करके कृष्णमय हो जाना चाहती है इसीलिए वह स्थांग में श्रीकृष्ण की तरह पूरा शृंगार करना चाहती है।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत सवैये से अनुप्रास अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर :
‘या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी’ में ‘म’ ‘अ’ और ‘ध’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

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प्रश्न 6.
सवैये की अंतिम पंक्ति में अनुप्रास के अतिरिक्त अन्य कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
सवैये की अंतिम पंक्ति में अनुप्रास के अतिरिक्त यमक अलंकार है। ‘अधरान’ शब्द दो बार आया है, जिसमें पहले ‘अधरान’ का अर्थ ‘होठ पर’ और दूसरे ‘अधरा न’ का ‘होठ पर नहीं है।

प्रश्न 7.
‘पीतांबर’ में कौन-सा समास है ?।
उत्तर :
पीताम्बर – पीला है जो वस्त्र – कर्मधारय समास |

4. काननि दै अँगुरी रहिवो जबहीं मुरली धुनि मंद बजैहै।
मोहनी तानन सों रसखानि अटा चढ़ि गोधन गैहै तौ गैहै।।
टेरि कहाँ सिगरे ब्रजलोगनि काल्हि कोऊ कितनो समुहै।
माइ री वा मुख की मुसकानि सम्हारी न जैहै, न जैहै, न जैहै।।

भावार्थ : श्रीकृष्ण की मुरली की धुन पस्-मोहित एक गोपी कहती है कि जब श्रीकृष्ण मीठे स्वर में मुरली बजाएँगे तब यह अपने कानों में अंगुली डाल लेगी। ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं पर चढ़कर श्रीकृष्ण मोहक तान में गोधन गाते हैं तो गाते रहें, मैं उस तरफ ध्यान नहीं दूंगी। वे ब्रज के लोगों को बता देना चाहती हैं कि जब श्रीकृष्ण की मुरली बजेगी तो उसकी धुन सुनकर श्रीकृष्ण की एक मुस्कान पर ये अपने को संभाल नहीं पाएँगी।

प्रश्न 1.
गोपी कानों में उँगली क्यों डालना चाहती है ?
उत्तर :
गोपी कानों में उँगली इसलिए डालना चाहती है कि जब श्रीकृष्ण मुरली की मधुर ध्वनि छेड़े, ऊँची-ऊँची अटारियों पर चढ़कर गोधन गाएँ तो श्रीकृष्ण का मधुर स्वर उनके कानों में न पड़े। वह मुरली की मधुर धुन सुनकर श्रीकृष्ण के वश में नहीं होना चाहती है।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण की मुस्कान गोपी पर क्या असर डालती है ?
उत्तर :
श्रीकृष्ण की मुस्कान आकर्षक और प्रभावशाली है। उनकी मुस्कान के प्रभाव से गोपी अपने वश में नहीं रहती, वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंचती चली जाती है।

प्रश्न 3.
गोपी श्रीकृष्ण की मुस्कान को कैसा बताती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण की मुस्कान को आकर्षक और प्रभावशाली बताती है।

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प्रश्न 4.
गोपी क्या देखकर स्वयं को नहीं संभाल पाती है ?
उत्तर :
गोपी श्रीकृष्ण की मोहक मुस्कान को देखकर स्वयं को नहीं संभाल पाती है।

प्रश्न 5.
‘काल्हि कोऊ कितनो समुझैहै’ मैं कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘काल्हि कोऊ कितनो समुहै’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है।

कविता

क्या हार में, क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत मैं,
संघर्ष-पथ पर जो मिले,
यह भी सही, वह भी सही,
वरदान माँगूंगा नहीं।

लघुता न मेरी अब छुओ,
तुम हो महान बने रहो,
अपने हृदय की वेदना,
मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं,
वरदान माँगूंगा नहीं।

चाहे हृदय को ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से,
किंतु भागूंगा नहीं,
वरदान माँगूंगा नहीं।

– शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

उपर्युक्त कविता के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कवि ने जीवन को क्या माना है ?
उत्तर :
कवि ने जीवन को संघर्ष-पथ माना है।

प्रश्न 2.
सुमन जी भयभीत क्यों नहीं हैं ?
उत्तर :
सुमन जी हार-जीत की परवाह नहीं करते है इसलिए ये भयभीत नहीं हैं।

प्रश्न 3.
कवि किन परिस्थितियों में कर्तव्य-पथ से नहीं भागना चाहता है ?
उत्तर :
कवि कहता है कि चाहे मुझे पीड़ा पहुँचाओ, अभिशाप दो या कुछ भी करो, मैं हर स्थिति में कर्तव्य-पथ पर डटा रहूँगा।

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प्रश्न 4.
कवि किसे व्यर्थ मानता है ?
उत्तर :
कवि अपने हृदय की वेदना के त्याग को व्यर्थ मानता है।

प्रश्न 5.
‘संघर्ष-पथ पर जो मिले’ में कौन-सा अलंकार है ?
उत्तर :
‘संघर्ष-पथ’ अर्थात् संघर्ष रूपी पथ रूपक अलंकार है।

सवैये Summary in Hindi

कृष्णभक्त कवि रसखान का पूरा नाम सैयद इब्राहिम पटान है । ये दिल्ली के निकट रहते थे । कहा जाता है कि इन्होंने गोस्वामी विठ्ठलदासजी से दीक्षा ग्रहण कर ब्रजभूमि में कृष्ण-भक्तिमय जीवन व्यतीत किया । कृष्ण-प्रेम में पले इस मुसलमान कवि की केवल कृष्ण के प्रति ही नहीं, ब्रजभूमि के प्रति भी अनन्य अनुरक्ति अपने आप में एक सुखद अनुभूति है । इनकी कविता में कृष्ण की रूपमाधुरी, ब्रज माधुरी एवं राधा-कृष्ण की प्रेम-लीला का भावपूर्ण वर्णन हुआ है । इनमें भक्ति और शृंगार का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है ।

रसखान ने दोहे, कवित्त, सवैये अधिक लिखे हैं जो कोमलकांत पदाबली की दृष्टि से अपने आप में अपूर्य हैं । ब्रजभाषा का जैसा सरल-तरल, सरस-स्वच्छ रूप इस कवि की कविता में प्राप्त होता है उसे देखकर भारतेन्दु की यह उक्ति ‘इन मुसलमान हरिजनन पे कोटिक हिन्दू वारिये’ एकदम सार्थक प्रतीत होती है । ‘सुजान रसखान’ इनकी प्रमुख कृति हैं । इनकी रचनाएँ ‘रसखान रचनावली’ के नाम से भी संगृहित हैं।

कविता-परिचय :

रसखान के पहले और दूसरे सवैये में उनका ब्रजभूमि के प्रति अनुपम प्रेम का भाव व्यक्त हुआ है । उनकी इच्छा है कि अगले जन्म में श्रीकृष्ण के संपर्क में रहनेवाले पदार्थ या प्राणी के रूप में जन्म लें । थे श्रीकृष्ण के काले कंबल पर तीनों लोकों का सुख त्यागने को तैयार हैं । तीसरे सवैये में श्रीकृष्ण के रूप सौन्दर्य के प्रति गोपियों की मुग्धता का चित्रण है । जिसमें गोपियाँ स्वयं श्रीकृष्ण का रूप धारण करना चाहती हैं । चौथे सवैये में श्रीकृष्ण की मुरली की धुन और उनकी मुस्कान के प्रभाव तथा गोपियों की विवशता का चित्रण है ।

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शब्दार्थ – टिप्पण :

  • मानुष – मनुष्य
  • हौं – मैं
  • बसौं – बसू, निवास करूँ
  • चरौं – चरें
  • नित – नित्य, सदा
  • धेनु – गाय
  • मैंझारन – मध्य में, बीच में
  • पाहन – पत्थर
  • गिरि – पहाड़
  • छत्र – छाता
  • पुरंदर – इन्द्र
  • धारन – धारण किया
  • खग – पक्षी
  • बसेरो – निवास करूँ
  • कालिंदी – यमुना
  • कूल – किनारा
  • कदंब – कदंब का वृक्ष
  • डारन – डालियाँ
  • लकुटी – लाठी
  • कामरिया – कंबल
  • तिहूँ – तीनों
  • पुर – लोक
  • तजि – छोड़
  • डारौं – दूं
  • नवौ निधि – नौ निधियाँ
  • कबौं – जब से
  • सौं – से
  • तड़ाग – तालाब
  • कोटिक – करोड़ों
  • कलधीत के धाम – सोने-चाँदी के महल
  • करील – काँटेदार झाड़ी
  • वारौं – न्योछावर करना
  • गुंज – गुंजा एक फली का बीज है । इसे धुंघची भी कहते हैं । मटर के दाने जैसे इस फल से माला बनती है
  • गरें में – गले में
  • ओढ़ि – ओढ़कर
  • पितंबर – पीताम्बर, पीला वस्त्र
  • संग – साथ
  • फिरौंगी – घूमूंगी
  • भावतो – अच्छा लगना
  • स्वाँग – रूप धारण करना
  • अधरा – होंठ
  • धरौंगी – रबूँगी
  • काननि – कान, अंगुरीउँगली
  • मंद – मधुर स्वर
  • मोहनी – मोहनेवाली
  • अटा – अटारी, कोठा, अट्टालिका
  • गोधन – ब्रज में गाया जानेवाला लोकगीत
  • टेरि – पुकार
  • सिगरे – सारे
  • माइ री – हे माँ

कवि कृष्ण की लकड़ी और कंबल पर क्या त्याग देना चाहता है?

Answer: वे तीन लोक का राज्य त्याग देना चाहते थे। Explanation: कवि रसखान जी कृष्ण की लाठी और कंबल के बदले तीन लोक का राज्य त्याग देना चाहते थे।

कृष्ण की लकुटी और कामरिया पर कवि क्या त्यागने के लिए तैयार है?

वे लकुटी और कंबल के बदले तीनों लोकों का राज्य, उनकी गाएँ चराने के बदले आठों सिधियाँ और नवों निधियों का सुख छोड़ने को तैयार हैं। श्रीकृष्ण जिन करील के कुंजों की छाया में मुरली बजाते हुए विश्राम किया करते थे उन कुंजों की छाया पाने के लिए कवि सोने के सैकड़ों महलों का सुख छोड़ने को तैयार है। प्रश्न 2.

कृष्ण की लकुटी और कंबल का सुख पाने के लिए कवि कौन सा सुख छोड़ने के लिए तैयार है?

उत्तर : नंद की गाय चराने के लिए कवि आठों सिद्धियों और नवों निधियों का सुख त्यागने के लिए तैयार हैं। गाय को चराने के समय मिलने वाली छड़ी और कंबल पर वे तीनों लोकों का राज छोड़ने को तैयार हैं।

कवि श्री कृष्ण की लकुटी और कंबल पर कौन सा राज्य न्योछावर करने को तैयार हैं?

कवि के हृदय में उस 'लकुटी' और 'कामरिया' के प्रति अनन्य समर्पण भाव है जिस कारण वह उन पर सब कुछ निछावर करने को तैयार है। वह कहते हैं कि मैं इस लाठी और उनके द्वारा ओढ़े जाने वाले कमरिया के बदले तीनों लोकों का राज्य त्याग दो। आशा है कि यह उत्तर आपकी मदद करेगा।।।