Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in
class 12 board exams. प्रश्न 1. संसार
अपने व्यंग्य-बाणों तथा शासन-प्रशासन से उसे चाहे कितने ही कष्ट एवं पीड़ाएं। क्यों न दे, पर मनुष्य इस जगह से अलग नहीं रह सकता। ये दुनिया ही उसकी पहचान है। जहाँ पर वह अपना परिचय देते हुए इस संसार से द्विविधात्मक एवं वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता हुआ जीवन जीता है। इस दुनिया में मनुष्य का जीवन द्वंद्व प्रश्न 2. मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, काव्य-सौंदर्य प्रश्न 3. प्रश्न 4. काव्य-सौंदर्य प्रश्न 5. प्रश्न 6. कवि का मंतव्य है कि यह संसार उससे बिल्कुल भिन्न है। उसके विचार, उसकी भावनाएँ इस क्रूर संसार से समन्वय स्थापित नहीं कर सकतीं। इसका दृष्टिकोण उससे बिल्कुल अलग है अत: इस संसार के साथ उसका कोई संबंध नहीं हो सकता। यह संसार तो केबल एक परिपाटी पर अपना जीवनयापन कर रहा है, जबकि वह प्रतिदिन ऐसे अनेक लोक बनाकर उन्हें नष्ट कर देता है। काव्य-सौंदर्य प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न
13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न
24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43. प्रश्न 44. लेकिन दूसरी ओर कवि का यह कहना है कि जीवन इस जग को देकर नहीं जीता क्योंकि वह इसे हृदयहीन और स्वार्थी मानता है। वह तो केवल संसार के वैभव से अलग अपनी मस्ती में मस्त होकर जीवन जीना चाहता है। इसलिए वह कहता है कि मैं कभी भी जग का ध्यान नहीं करता। सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, शब्दार्थ : जग-जीवन-संसार का जीवन, सांसारिक जीवन । छूकर-स्पर्श करके। झंकृत-बजाना। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘आत्म परिचय’ नामक कविता से अवतरित है जिसके रचयिता ‘हरिवंशराय बच्चन’ हैं। इसमें कवि ने आत्म-परिचय का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि बच्चन अपने जीवन का बोध कराते हुए कहते हैं कि मैं इस सांसारिक जीवन के भार को निरंतर वहन करता हुआ आज मैं उनकी यादों के रूप में अपने साँसों के दो तार लिए जी रहा हूँ। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि एक प्रिया का मेरे जीवन में आगमन हुआ था। उसने मुझे प्यार से छुआ था लेकिन उसका साथ नहीं रहा। बस यादों के रूप में उसके कोमल हाथों से झंकृत साँसों के तार लिए जीवन जी रहा हूँ। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
2. मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, शब्दार्थ : स्नेह-सुरा-स्नेह रूपी मदिरा, प्रेम रूपी शराब। गान-बखान, कहना। जग-संसार। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित है। इसमें कवि ने आत्म-परिचय का बोध कराया है। व्याख्या : कवि कहता है कि मैं प्रेम रूपी मदिरा को पीने वाला हूँ। मैं इसी प्रेम रूपी मदिरा को पीकर इसी की मस्ती में डूबा रहता हूँ। मैं केवल अपने में मग्न रहता हूँ। मैं कभी भी संसार का ध्यान नहीं करता। कवि कहता है कि यह संसार स्वार्थी है। यह केवल उसको पूछता है, जो इसका बखान करते हैं और उसके अनुकूल कार्य करते हैं। अपने प्रतिकूल कार्य करने वालों को यह संसार कभी नहीं पूछता। कवि कहता है कि मैं तो अपनी मस्ती में डूबकर अपने मन का बखान करता हूँ, अपने मन की भावनाओं तथा संवेदनाओं को सुनाता रहता हूँ। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
3. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ, (C.B.S.E. Delhi 2013, Set-II, Set-III, A.I.C.B.S.E, 2014) शब्दार्थ : निज-अपना। भाता-अच्छा लगना। उद्गार-भाव, अधीरता। प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित आत्म-परिचय नामक कविता से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस काव्यांश में कवि ने अपने हृदय के उद्गार व्यक्त किए हैं। व्याख्या : कवि कहता है कि मैं अपने हृदय के भाव तथा उपहार लिए जीवन-यापन कर रहा हूँ। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि मैंने अपने हदय में अनेक भाव उपहार स्वरूप सँजो रखे हैं। इन्हीं भावों तथा उपहारों को लिए विचरण कर रहा हूँ। कवि कहता है कि यह संसार तो अपूर्ण है इसलिए इसकी अपूर्णता मेरे हृदय को अच्छी नहीं लगती। मैं तो इस संसार की उपेक्षा करके अपने ही सपनों का संसार लेकर जी रहा हूँ। मैं तो अपने ही स्वप्निल संसार में डूबा रहता हूँ। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
4. मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ, शब्दार्थ : अग्नि-आग। जग-संसार। नाव-किश्ती। दहा-जला। भव-सागर-संसार रूपी सागर। मौजों पर-तरंगों पर, हिलोरों या लहरों पर। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने आत्म-परिचय का चित्रण करते हुए सुख-दुखावस्था में एक समान रहने की प्रेरणा दी है। व्याख्या : कवि कहता है कि मैंने अपने हृदय में वियोग रूपी अग्नि को जला रखा है जिसमें मैं निरंतर जलता रहता हूँ। मैं सुख और दुःख दोनों अवस्थाओं में मग्न रहता हूँ। मैं न तो सुख आने पर अत्यधिक खुश होता हूँ और न ही दुःख की प्रतिकूल परिस्थितियों में अधिक दुखी। दोनों भावों को अपने जीवन में एकसमान ग्रहण करता हूँ। कवि संसार को संबोधन करते हुए कहता है कि अन्य लोग इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए भले ही नाव का निर्माण करे, पर मेरी संसार रूपी सागर को पार करने की कोई इच्छा नहीं है। मैं तो इस संसार की लहरों पर ही मस्ती में बहना चाहता हूँ। कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार रूपी सागर को पार करने अर्थात मोक्ष की कामना हेतु भले ही औरों को किसी अन्य सहारे रूपी नाव की आवश्यकता हो, पर उसे किसी अन्य की कोई आवश्यकता नहीं और न ही मोक्ष प्राप्ति की कोई कामना है। वह तो इसी संसार की लहरों पर बहना चाहता है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
5. मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता
हूँ, शब्दार्थ: यौवन-जवानी। अवसाद-दुख, पीड़ा। भीतर-आंतरिक रूप। उन्माद-जोश, मस्ती। बाहर-बाह्य रूप। प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है, जिसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। ये हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने अपने जीवन की आंतरिक पीड़ा का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि कहता है कि मैं तो अपनी जवानी का जोश लिए जी रहा हूँ। मेरे हृदय में आज भी वह जवानी की मस्ती और जोश है जिसमें मस्त होकर मैं जीवन-यापन कर रहा हूँ। इसी जवानी के पागलपन में अनेक दुख समाए हुए हैं। कवि कहता है कि मैंने जवानी में किसी से प्रेम करके उसकी यादों को अपने हृदय में संजोया था। आज उसी की यादों को अपने हृदय में सजाकर फिर रहा हूँ। ये । यादें मुझे बाह्य रूप से हँसा देती हैं लेकिन आंतरिक रूप से रुलाती हैं। मैं अपनी प्रिया की यादों को लेकर जीवन जी रहा हूँ। इस जहाँ को मैं बाहर से भले ही हँसता हुआ दिखाई दूं, लेकिन मैं हृदय से रोता रहता हूँ। उसकी यादें आज भी मुझे सताती रहती हैं। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
6. कर
यल मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ? शब्दार्थ : यल – प्रयास। दाना – अक्लमंद, समझदार। जग = संसार। नादान – नासमझ। मूढ़ – मूर्ख। प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2′ में संकलित कवि श्री हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने ‘शाश्वत सत्य’ का वर्णन किया है। व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए पूछता है कि इस संसार में बड़े-बड़े महापुरुषों ने सत्य को जानने का प्रयास किया, लेकिन आज तक कोई भी सत्य को नहीं जान पाया। सत्य (ब्रह्म) की खोज करते-करते सब समाप्त हो गए, फिर भी उसे नहीं जान पाए। कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार में आज तक कोई भी सत्य को पहचान नहीं सका। वह कहता है कि समाज में जहाँ पर अक्लमंद या समझदार लोग रहते हैं, वहीं पर नासमझ या मूर्ख भी निवास करते हैं। संसार को संबोधन कर कवि कहता है कि यह बात जानकर भी यह संसार मूर्ख है जो इसके बावजूद भी सीखना चाहता है। मैं तो भूले हुए ज्ञान को सीखने का प्रयास कर रहा हूँ। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
7. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता, शब्दार्थ : वैभव-धन, ऐश्वर्य। प्रति-पग-प्रत्येक चरण। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी का पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि ‘श्री हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने बताया है कि उसका इस संसार से कोई नाता नहीं है। कवि कहता है कि मेरा इस संसार के साथ कोई संबंध नहीं है। मेरी और संसार की प्रकृति में बहुत अंतर है। मेरा स्वभाव कुछ और है तथा संसार का कुछ और। मेरी कोई और मंजिल है तथा इस स्वार्थी संसार की कोई और। व्याख्या : कवि कहता है कि मैं तो प्रतिदिन ऐसे अनेक संसार बना-बना कर खत्म कर देता हूँ। मैं हर दिन ऐसे अनेक संसार की कल्पना करता हूँ और फिर उसे मिटा देता हूँ। ये संसार धन-ऐश्वर्य से प्रेरित होकर जिस पृथ्वी पर धन-ऐश्वर्य तथा शान-ओ-शौकत जोड़ता है, मैं उससे तनिक भी प्रभावित नहीं होता। ऐसी शान-ओ-शौकत को मैं पग-पग पर ठुकराता चलता हूँ। जिस पृथ्वी पर यह संसार झूठे धन-ऐश्वर्य खड़ा करता है मैं ऐसी ऐश्वर्य से परिपूर्ण पृथ्वी को पग-पग पर ठुकरा देता हूँ। ये धन-वैभव मुझे बिल्कुल भी विचलित नहीं कर सकते। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
8. मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ, शब्दार्थ : निज-अपना। भूपों के राजाओं के। निछावर-अर्पण, न्योछावर। भाग-अंश। रोदन-रोना, दुख। प्रासाद-महल। खंडहर-टूटा-फूटा महल। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि ‘श्री हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने आत्मीय पीड़ा का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि कहता है कि मैं अपने आँसुओं में भी प्रेम-भरा गीत छिपाए फिरता हूँ। जिसे संसार मेरा रोदन समझता है, उसमें मेरे अनेक गीत छिपे हुए हैं। मैं अपनी अश्रुओं की धारा के माध्यम से अपने प्रेमगीतों का बखान करता चलता हूँ। मेरे हृदय में वाणी अत्यंत शीतल और कोमल है लेकिन मैं इस शीतलता में भी क्रोध रूपी आग छिपाए हूँ। कवि जग को संबोधित करते हुए कहता है कि मैं उस खंडहर का अंश लिए हूँ जिस पर महान प्रतापी राजा अपने महलों को न्योछावर कर देते हैं। मेरे पास उस खंडहर का अंशमात्र है जिसके सामने बड़े-बड़े राजाओं के आलीशान महलों का भी कोई मूल्य नहीं है अर्थात कवि का प्रिया से वियोग होने पर हृदय विच्छिन हो गया, जो खंडहर की भाँति पड़ा है लेकिन फिर भी उसका मूल्य अनमोल है। वह इतना सुंदर है कि उसकी शोभा के समक्ष बड़े से बड़े राजा का आलीशान महल भी नगण्य है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
9. मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना, शब्दार्थ : फूट पड़ा-जोर से रोया। दीवाना-प्रेम करने वाला, आसक्त। छंद बनाना-कविता लिखना या कहना। प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित तथा कवि ‘हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित कविता व्याख्या : कवि संसार को संबोधन करते हुए कहता है कि मैं दुख में अत्यंत दुखी होकर रोया था लेकिन तुम मेरे रोने को भी गीत समझ रहे हो। हृदय में अपार वेदना के कारण मैं तो जोर-जोर से रोया लेकिन इसे भी तुम कविता कहना समझते रहे। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि यह संसार तो बिल्कुल अजीब है। यह किसी की आंतरिक भावनाओं को नहीं समझ सकता। मैं जब साधारण रूप से रोया था तो उसे यह मेरा गीत गाना समझ रहे थे, लेकिन जब असीम पीड़ा के कारण मेरा हृदय जोर-जोर से चिल्लाकर रोने लगा तो उसे इसने मेरा कविता करना मान लिया। इस प्रकार यह हृदयहीन संसार मेरी आंतरिक पीड़ा को नहीं समझ रहा है। कवि पुनः इस जग को संबोधित करते हुए कहता है कि यह संसार मुझे एक कवि मानकर क्यों अपनाना चाहता है। मैं एक कवि नहीं हूँ बल्कि मैं तो इस जहाँ का एक नया प्रेमी हूँ। एक नया दीवाना हूँ जो अपनी प्रेमवाणी का बखान कर अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
10. मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ, शब्दार्थ : दीवानों का-प्रेम में पागल व्यक्तियों का, प्रेमियों का। मादकता-नशा, उन्माद । वेश-पहनावा, रूप। निःशेष-बिल्कुल थोड़ा-सा, समाप्त। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित तथा श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने संसार को प्रेम और मस्ती का संदेश दिया है जिसमें यह संसार झूम उठे तथा लहराने लगे। व्याख्या : कवि का कथन है कि मैं इस संसार में प्रेम में पागल प्रेमियों का रूप लेकर जीवनयापन कर रहा हूँ अर्थात मैंने अपने हृदय में एक प्रेमी को बिठाकर उसी का वेश धारण कर लिया है। मेरे हृदय में अभी भी थोड़ी-सी मादकता का नशा बाकी है और उसी मादकता में डूबकर मैं जी रहा हूँ। कवि कहता है कि मैं इस हृदयहीन और दुखी संसार को एक ऐसा मस्ती का संदेश देना चाहता हूँ, जिसको सुनकर यह संपूर्ण दुखी संसार झूम उठे और मस्ती में डूब कर लहराने लगे तथा इस मस्ती के आगे झुक जाएं। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
11. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! शब्दार्थ : ढलता है-अस्त होता है। मंजिल-लक्ष्य, जहाँ पहुँचना है। पथ-रास्ता। दिन का पंथी-सूर्य। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘एक गीत’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने समय के व्यतीत होने के साथ-साथ पथिक के मंजिल पर पहुँचने तथा उसे प्राप्त करने के जज्बे का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि का कथन है कि समय परिवर्तनशील है जो निरंतर चलायमान अवस्था में रहता है। वह कभी भी नहीं रुकता। समय के इसी परिवर्तन और अभाव को देखकर दिन में चलने वाला पथिक अर्थात सूर्य भी यह सोचकर अत्यंत शीघ्रता से चलता है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए, जबकि उसकी मंजिल भी अधिक दूर नहीं है। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि मानव जीवन क्षणभंगुर है। अतः समय बहुत कम है जो अत्यंत तेजी से गुजरता हुआ चलता है। मनुष्य रूपी यात्री को यह चिंता रहती है कि कहीं उसके लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले ही उसके रास्ते में रात न हो जाए। यह सोच वह अत्यंत शीघ्रता से चलता है। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत होता है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
12. बच्चे प्रत्याशा में होंगे, शब्दार्थ : प्रत्याशा-आशा। झाँकना-देखना। नीड़ों से-घोंसलों से। परों में-पंखों में। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘एक गीत’ नामक कविता से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता ‘श्री हरिवंश राय बच्चन’ जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने दाने की खोज में गए पक्षियों (प्राणियों) का अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि का कथन है कि लौटते पक्षियों को जब यह महसूस होता है कि उनके बच्चे घोंसलों में उनकी राह देख रहे होंगे और उनके आने की आशा मन में लिए घोंसलों से झाँक रहे होंगे। यह ध्यान उन चिड़ियों के पंखों में न जाने कितनी चंचलता भर देता है अर्थात जब भी चिड़ियों को अपने बच्चों की याद आती है तो उनके पंखों में अपने बच्चों की वात्सल्य भाव के कारण और अधिक स्फूर्ति छा जाती है। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
13. मुझसे मिलने को कौन विकल? शब्दार्थ : विकल-याकुल। शिथिल करना-सुस्त करना, मंद करना। विह्वलता-व्याकुलता। हित-के लिए। उर-हृदय। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘एक गीत’ से अवतरित है जिसके रचयिता हरिवंश राय बच्चन हैं। इस काव्यांश में कवि ने प्राणी की व्याकुलता का चित्रण किया है। व्याख्या : कवि का कथन है कि अपने जीवन रूपी पथ पर चलता हुआ प्राणी चिंतन करता है। वह अपने मन ही मन में सोच रहा है कि इस जीवन मार्ग में अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ते हुए मुझसे मिलने के लिए कौन व्याकुल हो रहा है तथा मैं भी किसके लिए दुखी हो रहा हूँ। कवि कहता है कि जब-जब पथिक के हृदय में यह प्रश्न उठता है तो यह प्रश्न उसके पाँवों को कमजोर कर देता है, उन्हें सुस्त बना देता है तथा राही के हृदय में अपार व्याकुलता भर देता है अर्थात जीवन रूपी मार्ग पर अग्रसर होते हुए जब भी पथिक को किसी का ध्यान आता है तो वह उसके पैरों को सुस्त कर उसके हृदय में व्याकुलता भर देता है क्योंकि उसे लगता है कि ऐसा कोई भी नहीं है जो उससे मिलने को व्याकुल हो। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है। समय शीघ्र गुजर रहा है। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
कवि स्नेह सूरा का पान क्यों करता है?कवि स्नेह-सुरा का पान कैसे करता है ? उत्तर: जिस प्रकार एक मनुष्य सुरा ;शराबद्ध के नशे में मस्त होकर पागल हो जाता है उसी प्रकार प्रेम का नशा होता है। मनुष्य जब प्रेम के जाल में फँस जाता है तो उसे कुछ भी सुहावना नहीं लगता, उसी प्रकार कवि प्रेम की मादकता, उसके पागलपन को हर पल महसूस करता रहता है।
स्नेह सुरा से क्या अर्थ है?(ख) 'स्नेह-सुरा' से आशय है - प्रेम की मादकता और उसका पागलपन, जिसे कवि हर क्षण महसूस करता है और उसका मन झंकृत होता रहता है।
कवि को संसार अच्छा क्यों नहीं लगता?(ग) कवि को संसार इसलिए अच्छा नहीं लगता क्योंकि उसके दृष्टिकोण के अनुसार संसार अधूरा है। उसमें प्रेम नहीं है। वह बनावटी व झूठा है। मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ, जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर, मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ !
सपनों के संसार से कवि का क्या अर्थ है?कवि अपने मन की इच्छानुसार चलता है, अर्थात वह वही करता है जो उसका मन कहता है। 2. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ।
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