कवि ने इस कविता का शीर्षक यह दंतुरित मुस्कान क्यों दिया होगा अपने शब्दों में लिखें? - kavi ne is kavita ka sheershak yah danturit muskaan kyon diya hoga apane shabdon mein likhen?

यह दंतुरित मुसकान

नागार्जुन

यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण

इस कविता में कवि एक ऐसे बच्चे की सुंदरता का बखान करता है जिसके अभी एक-दो दाँत ही निकले हैं; अर्थात बच्चा छ: से आठ महीने का है। जब ऐसा बच्चा अपनी मुसकान बिखेरता है तो इससे मुर्दे में भी जान आ जाती है। बच्चे के गाल धू‌ल से सने हुए ऐसे लग रहे हैं जैसे तालाब को छोड़कर कमल का फूल उस झोंपड़ी में खिल गया हो। कवि को लगता है कि बच्चे के स्पर्श को पाकर ही सख्त पत्थर भी पिघलकर पानी बन गया है।


Chapter List

  • सूरदास
  • तुलसीदास
  • देव
  • जयशंकर प्रसाद
  • सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
  • नागार्जुन
  • गिरिजाकुमार माथुर
  • ऋतुराज
  • मंगलेश डबराल
  • नेताजी का चश्मा
  • बालगोबिन भगत
  • लखनवी अंदाज
  • मानवीय करुणा की दिव्य चमक
  • एक कहानी यह भी
  • स्त्री शिक्षा के विरोधी कुतर्कों का खंडन
  • नौबतखाने में इबादत
  • संस्कृति

छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?

कवि को ऐसा लगता है कि उस बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं। बच्चा कवि को पहचान नहीं पा रहा है और उसे अपलक देख रहा है। कवि उस बच्चे से कहता है कि यदि वह बच्चा इस तरह अपलक देखते-देखते थक गया हो तो उसकी सुविधा के लिए कवि उससे आँखें फेर लेगा।


क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न पाता जान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क

कवि को इस बात का जरा भी अफसोस नहीं है कि बच्चे से पहली बार में उसकी जान पहचान नहीं हो पाई है। लेकिन वह इस बात के लिए उस बच्चे और उसकी माँ का शुक्रिया अदा करना चाहता है कि उनके कारण ही कवि को भी उस बच्चे के सौंदर्य का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। कवि तो उस बच्चे के लिए एक अजनबी है, परदेसी है इसलिए वह खूब समझता है कि उससे उस बच्चे की कोई जान पहचान नहीं है।

उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!

बच्चा अपनी माँ की उँगली चूस रहा है तो ऐसा लगता है कि उसकी माँ उसे अमृत का पान करा रही है। इस बीच वह बच्चा कनखियों से कवि को देखता है। जब दोनों की आँखें आमने सामने होती हैं तो कवि को उस बच्चे की सुंदर मुसकान की सुंदरता के दर्शन हो जाते हैं।


अभ्यास

प्रश्न 1: बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: कवि उस बच्चे की दंतुरित मुसकान से अंदर तक आह्लादित हो जाता है। उसे लगता है उस मुसकान ने कवि में एक नए जीवन का संचार कर दिया है। उसे लगता है कि वह उस बच्चे की सुंदरता को देखकर धन्य हो गया है।

प्रश्न 2: बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?

उत्तर: बच्चे की मुसकान हमेशा निश्छल होती है। बड़ों की मुसकान में कई अर्थ छिपे हो सकते हैं। कभी-कभी यह मुसकान कुटिल हो सकती है, तो कभी किसी उम्मीद से भरी हो सकती है। ऐसा बहुत कम होता है कि किसी वयस्क की मुसकान उतनी निश्छल हो जितनी कि किसी बच्चे की।

प्रश्न 3: कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?

उत्तर: कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को व्यक्त करने के लिए प्राणदायी, कमल के फूल, इत्यादि बिंबों का प्रयोग किया है।

प्रश्न 4: भाव स्पष्ट कीजिए:

  1. छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।

    उत्तर: बच्चे के धूल धूसरित गालों को देखकर कवि को लगता है कि तालाब को छोड़कर कमल का फूल उस झोंपड़ी में खिल गया हो।

  2. छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
    बाँस था कि बबूल?

    उत्तर: कवि को ऐसा लगता है कि उस बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं।


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यह दंतुरित मुस्कान कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?

यह दंतुरित मुसकान कविता में छोटे बच्चे की मनोहारी मुसकान देखकर कवि के मन में जो भाव उमड़ते हैं उन्हें कविता में अनेक बिंबों के माध्यम से प्रकट किया गया है। कवि का मानना है कि इस सुंदरता में ही जीवन का संदेश है। इस सुंदरता की व्याप्ति ऐसी है कि कठोर से कठोर मन भी पिघल जाए।

क्यों शीर्षक कविता के कवि कौन है?

रघुवीर सहाय पेशे से पत्रकार थे।

यह दंतुरित मुसकान कविता में कवि ने किसका भावपूर्ण चित्रण किया है?

प्रस्तुत कवितायह दंतुरित मुसकान ” के कवि नागार्जुन जी हैं। यह दंतुरित मुस्कान कविता में कवि ने एक बच्चे की मुस्कान का बड़ा ही मनमोहक चित्रण किया है। कवि के अनुसार एक बच्चे की मुस्कान को देखकर , हम अपने सब दुःख भूल जाते हैं और हमारा अंतर्मन प्रसन्न हो जाता है।

दंतुरित मुस्कान का अर्थ क्या है?

यह दंतुरित मुसकान कविता की व्याख्या भावार्थ : इस कविता में कवि एक ऐसे बच्चे की सुंदरता का बखान करता है जिसके अभी एक-दो दाँत ही निकले हैं; अर्थात बच्चा छ: से आठ महीने का है। जब ऐसा बच्चा अपनी मुसकान बिखेरता है तो इससे मुर्दे में भी जान आ जाती है।