करवा चौथ व्रत का इतिहास क्या है? - karava chauth vrat ka itihaas kya hai?

करवा चौथ का त्योहार हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इस साल ये तिथि 17 अक्टूबर को पड़ रही है. पति-पत्नी के प्यार को दर्शाता करवा चौथ का त्योहार सुहागिन महिलाओं के लिए काफी खास होता है. इस दिन महिलाए पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चांद निकलने के बाद पूजा छलनी से पति का चेहरा देखकर पति के हाथ से ही खाना खाती हैं. इसके बाद ही उनका ये व्रत पूरा माना जाता है. इस व्रत में शिव पार्वती, कार्तिक और करवाचौथ माता का पूजन किया जाता है.

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि करवा चौथ मनाने की परंपरा कब से और कैसे शुरू हुई. क्या है इस त्योहार का इतिहास, आइए जानते है-

करवाचौथ का इतिहास

1. प्राचीन कथाओं के अनुसार करवा चौथ की परम्परा देवताओं के समय से चली आ रही है. बताया जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया था और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी. इस हालत में देवताओं को कुछ सूझ नहीं रहा था और फिर वो अपनी इस समस्या के समाधान के लिए देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की. तब इस संकट से बचने के लिए ब्रह्मदेव ने कहा कि देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय के लिए प्रार्थना करनी चाहिए.

ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर निश्चित ही इस युद्ध में देवताओं की जीत होगी. ब्रहदेव के इस सुझाव को सभी देवताओं और उनकी पत्नियों ने खुशी-खुशी स्वीकार किया. ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों यानी देवताओं की विजय के लिए प्रार्थना की. उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई. इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया. उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था. माना जाता है कि इसी दिन से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई.

2.  मान्यता ये भी है कि श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ की यह कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से समस्त दुख दूर हो जाते हैं और जीवन में सुख-सौभाग्य और धन-धान्य की प्राप्ति होने लगती है. श्री कृष्ण भगवान की आज्ञा मानकर द्रौपदी ने भी करवा-चौथ का व्रत रखा था. इस व्रत के प्रभाव से ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की सेना को पराजित कर विजय हासिल की.

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करवाचौथ की कथा

एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी. सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया. विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी.

सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है. लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है.

वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है. दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है. फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो. बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ गई.

उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई. दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया. इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया.

उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ. करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं. एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की. देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा. इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा. उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया. इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा.

करवा चौथ विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है लेकिन अब पूरे देश में इस पर्व को सुहागिन स्त्रियां बड़े हर्षोलास के साथ मनाती हैं, लेकिन समय के साथ इस त्यौहार को मनाने के तरीके में भी परिवतर्न आया है अब पत्नियों के साथ पति भी करवा चौथ का व्रत रखते हैं

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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व करवा चौथ भारत में सौभाग्यवती महिलाआें का प्रमुख त्योहार है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पूर्व प्रात: 4 बजे प्रारंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद पूर्ण होता है। किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की स्त्री को इस व्रत को करने का अधिकार है। अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं । इस वर्ष ये पर्व शनिवार 27 अक्टूबर 2018 को पड़ रहा है। इस दिन श्री गणेश की पूजा विशेष रूप से की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टी या गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के बाद भोजन करने का विधान है।

करवा चौथ की महत्ता

करवा चौथ व्रत की विशेषता यह है कि केवल सौभाग्यवती स्त्रियों को ही यह व्रत करने का अधिकार है। हांलाकि अब कर्इ जगह अविवाहित कन्यंये भी योग्य वर की कामना से या विवाह सुनिश्चित होने के बाद होने वाले पति की शुभेच्छा के कारण ये व्रत करने लगी हैं। ये विश्वास किया जाता है कि करवाचौथ का व्रत करके उसकी कथा सुनने से विवाहित महिलाओं के सुहाग की रक्षा होती है, आैर परिवार में सुख, शांति एवम् समृद्धि आती है। महाभारत में श्री कृष्ण ने भी करवाचौथ के महात्म्य के बारे में बताया है। इस बारे में एक कथा भी सुनार्इ जाती है। इस कथा के अनुसार कृष्ण जी से करवाचौथ की महिमा को समझ कर द्रौपदी ने इस व्रत को रखा, जिसके फलरूप ही अर्जुन सहित पांचों पांडवों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों सेना को पराजित कर विजय हासिल की थी।

करवा चौथ का इतिहास 

एेसी मान्यता है कि करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। एक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों के युद्ध के दौरान देवों को पराजय से बजाने के लिए ब्रह्मा जी ने उनकी पत्नियों को व्रत रखने का सुझााव दिया। इसे स्वीकार करते हुए इंद्रांणी ने इंद्र के लिए आैर अन्य देवताआें की पत्नियों ने उनके लिए निरहार, निर्जल व्रत किया। परिणाम स्वरूप देव विजयी हुए आैर इसके बाद ही सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला। उस दिन कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी थी आैर आकाश में चांद निकल आया था। माना जाता है कि तभी से करवाचौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई। इसके अतिरिक्त बताते हैं कि शिव जी को प्राप्त करने के लिए देवी पार्वती ने भी इस व्रत को किया था। इसी तरह लक्ष्मी जी ने भी विष्णु जी के बलि के द्वारा बंदी बना लिए जाने के बाद इस व्रत को किया आैर उन्हें मक्ति दिलार्इ। महाभारत काल में इस व्रत का जिक्र आता है आैर पता चलता है कि गांधारी ने धृतराष्ट्र आैर कुंती ने पाण्डु के लिए इस व्रत को किया था।   

उत्तरी भारत में क्यों इतनी प्रचलित है करवा चौथ 

वैसे तो पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस पर्व का सबसे ज्यादा महत्व है। करवाचौथ व्रत के दिन शाम से पूजा का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। जहां पंजाब, हरियाणा में महिलायें समूह में बैठ कर करवे के गीत गाते हुए आपस में पूजा की थाली बदलती हैं, वहीं शेष उत्तर भारत में व्रत करने वाली स्त्रियां करवे आैर श्री गणेश की पूजा करती आैर कथा सुनती हैं। इसके बाद शाम ढलते ही सभी जगह चांद का दर्शन कर उसे अर्ध्य देने का इंतजार प्रारंभ हो जाता है। इस पर्व को मनाने वाले परिवारों में शाम से ही चांद निकलने के पहले ही बच्चे आैर बाकि सदस्य छतों आैर आंगन में चांद की एक झलक देखने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। चांद निकलने पर सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिये व्रत रखने के बाद महिलायें उसकी पूजा करके आैर अर्ध्य देने बाद अपना उपवास खोलती हैं। 

कब आैर कैसे मनाते हैं करवा चौथ 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी या करवा-चौथ व्रत करने का विधान है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें। बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की मूर्तियों की स्थापना करें। यदि मूर्ति ना हो तो सुपारी पर धागा बांध कर उसकी पूजा की जाती है। इसके पश्चात सुख सौभाग्य की कामना करते हुए इन देवों का स्मरण करें आैर करवे सहित बायने पर जल, चावल आैर गुड़ चढ़ायें। अब करवे पर तेरह बार रोली से टीका करें आैर रोली चावल छिडकें। इसके बाद इसके बाद हाथ में तेरह दाने गेहूं लेकर करवा चौथ की व्रत कथा का श्रवण करें।

करवा चौथ व्रत की उत्पत्ति कैसे हुई?

उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई। इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए। द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए। तभी से हिन्दू महिलाएँ अपने अखंड सुहाग के लिए करवा चौथ व्रत करती हैं।

करवा चौथ की असली कहानी क्या है?

करवा चौथ की कहानी है कि, देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के पास रहती थीं। एक दिन करवा के पति नदी में स्नान करने गए तो एक मगरमच्छ ने उनका पैर पकड़ लिया और नदी में खिंचने लगा। मृत्यु करीब देखकर करवा के पति करवा को पुकारने लगे। करवा दौड़कर नदी के पास पहुंचीं और पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते मगर को देखा।

करवा चौथ का व्रत का मतलब क्या होता है?

करवा शब्द का अर्थ मिट्टी का बर्तन होता है। चौथ का शाब्दिक अर्थ चतुर्थी है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी उम्र और सफलता की मनोकामना पूरी होने के लिए व्रत रखती हैं। वहीं, अविवाहित युवतियां सुयोग्य वर की कामना के लिए इस व्रत को धारण करती हैं।

करवा चौथ किसका त्यौहार है?

करवाचौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है। बहुत-सी प्राचीन कथाओं के अनुसार करवाचौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। माना जाता है कि एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार हो रही थी।