कन्यादान कविता में कौन सा काव्य गुण विद्यमान है? - kanyaadaan kavita mein kaun sa kaavy gun vidyamaan hai?

(क) उक्त पंक्ति में यह संदेश दिया गया है कि ससुराल में बहुएँ घर गृहस्थी में फँसकर, अत्याचारों को सहते हुए स्वयं को नुकसान न पहुचाएँ और न ही दूसरों के द्वारा किए गए जुल्मों को सहन करें। वे अपनी कमजोरियों के प्रति सचेत रहें एवं मजबूर बनें। क्योंकि आज भी नारियों पर जुल्म किए जाते हैं और उन्हें जलाया जाता है।

(ख) कवि अपने मन को ‘छाया मत छूना’ कहकर समझाना चाहता है कि ‘अतीत की सुखद यादों को याद न करना’। बीती यादों को स्मरण करने से वर्तमान के यथार्थ का सामना करना मुश्किल हो सकता है और दुखः अधिक प्रबल हो सकता है। विमत-सुख को याद कर वर्तमान के दुख को ओर बढ़ाना तर्कसंगत नहीं है।

(ग) उक्त पंक्ति में कवि नागार्जुन ने यह भाव दर्शाया है कि शिशु का प्रेम रूपी स्पर्श इतना कोमल और हृदयस्पर्शी होता है कि बांस और बबूल जैसे कठोर और कांटेदार पेड़ों से भी शेफालिका के फूल बरसने लगे अर्थात् कठोर व्यक्ति का हृदय कोमल हो जाये।

(घ) स्मृति को पाथेय बनाने से जयशंकर प्रसाद का आशय यह है कि वह जीवन भर मुश्किलों से घिरा हुआ रहा है उसकी स्थिति थके हुए पथिक की तरह कष्टदायक है और स्मृति में कई सुखों के क्षण सजे हुए हैं जो जीने का आधार है। वह इन्हीं स्मृतियों के सहारे जीवन की निराशाजनक स्थितियों का सामना करना चाहता है।

(ङ) लक्ष्मण ने परशुराम को वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा कि शूरवीर रणक्षेत्र में शत्रु के समक्ष पराक्रम दिखाते हैं न कि अपनी वीरता का बखान करते हैं। शूरवीर ब्राह्मण, देवता, गाय और हरिभक्त पर भी अपनी वीरता नहीं दिखाते हैं। क्योंकि इन्हें मारने पर पाप लगता है।

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Class 10 – काव्य : कन्यादान -ऋतुराज

Class 10 – काव्य : कन्यादान -ऋतुराज

कन्यादान

-ऋतुराज

‘कन्यादान’ कविता द्वारा कवि ऋतुराज ने माँ के संचित अनुभवों की पीड़ा की प्रमाणिक अभिव्यक्ति की है। इस कविता में संवेदनशीलता का भाव भी व्यक्त हुआ। बेटी को विदा करते समय माँ को दुख होता है और उसे किसी और को सौंप कर ऐसा लगता है जैसे कि अपनी अंतिम पूंजी गवा दी हो। बेटी माँ के सबसे निकट और सुख-दुख की साथी होती है।इसी कारण उसे अंतिम पूंजी कहा गया है। जिस प्रकार किसी को अंतिम पूंजी से लगाव और प्रेम होता है उसी प्रकार माँ भी बेटी को अपनी अंतिम पूंजी मानती है और उसे दान देते वक्त उसे बहुत दुख होता है। लड़की अभी सयानी नहीं थी। उसे सुखों का आभास था (महसूस करना आता था) परंतु दुखों से अपरिचित थी। बच्चों पर मानसिक दवाब नही डालने के लिए, माता-पिता उनसे कुछ बाते छुपाते है। वे चाहते है कि उनका बच्चा तंद्रुस्त और स्वस्थ हो और उस पर किसी प्रकार का दबाव न हो। वह बच्ची सुखों को महसूस कर सकती थी परंतु दुखों को नही पहचानती थी क्योंकि उनके माता-पिता उन्हें दुखों से अवगत नहीं करना चाहते।

बच्ची का दुखों से परिचय नहीं हुआ। इतना तो समझती है कि किसी प्रकार की परेशानी तो है। (परंतु उम्र के साथ-साथ ही हमें हर चीज सीचने को मिलती है और उनकी गहराई तक पहुँचते है)। ऐसा लगता है मानो कविता तो उसने पढ़ ली हो परंतु उसके भावों तक और उसकी व्यंजना को नहीं समझ पाई हो। अर्थों को गंभीर रूप से नहीं पहचानती।

माँ अपनी बच्ची को सलह देती है कि खुबसुरती पर कभी घमंड नहीं करना, यदि हो भी तो समझना मत। यहाँ तक पानी में भी मत रीझना। उन्होने कहा कि इन आभूषणो और खूबसुरती के आकर्षण में मत डूबना, किसी भ्रम में मत जीना क्योंकि ये चीजे घुमराह करने वाली है। परेशानी और कमजोरी का कारण भी है। यह ध्यान में रखना कि तुम्हारे भ्रम में रहने के कारण तुम्हारा फायदा न उठा लिया जाए। अपने अधिकारों के प्रति सतर्क रहना। इन धनो में मत बंधकर रहना और न ही किसी लालच में।

अपने आप में स्त्री होने के गुण तो रखना परंतु स्त्री जैसे दिखाई न देना। सहायता, करूणा, कर्तव्य का पालन करना – ये सब भाव तो होने चाहिए पर लड़की जैसी कोमल मत दिखना। यह ध्यान रखना कि तुम्हारी कोमलता को तुम्हारी कमजोरी समझ कोई फायदा न उठाए। शारीरिक कोमलता को कभी कमजोरी मत बनाना।

प्रश्न 1.: आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना।

उत्तर: माँ ने ऐसा कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी दिखाई मत देना क्योंकि वह यह कहना चाहती है कि तुम लड़की होने के सारे गुणों से परिपूर्ण रहना परंतु यह ध्यान रखना कि तुम्हारी शारीरिक कोमलता को कोई कमजोरी समझकर फायदा न उठाए। इसलिए लड़की जैसी तो रहना परंतु लड़की जैसे दिखाई मत देना।

प्रश्न 2.: ‘आग रोटियाँ सेकने के लिए है, जलने के लिए नहीं’

(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री को किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर: इन पंक्तियों में समाज में स्त्री के प्रति बरती जा रही कटुता की ओर संकेत किया गया है। स्त्रियों पर शोषण किया जाता है ताकि वे दहेज ला सके। उन्हें कुछ नहीं माना जाता और उनकी कोमलता को कमजोरी समझ फायदा उठा लिया जाता है। इन सबसें बड़ा कारण है कि औरतें अपने कर्तव्यों और अपने अधिकारों से अवगत नहीं है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?

उत्तर: हर माँ के लिए उसकी बेटी अंतिम पूंजी के समान होती है और उसकी खुशी अपनी बेटी के सुखद जीवन को देखकर मिलती है। माँ चाहती है कि उसकी बेटी अपने कार्यो और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे, ताकि कोई उसका शोषण न कर सके (फायदा न उठा सके)। इसलिए माँ ने अपनी बेटी को सचेत करना जरूरी समझा।

प्रश्न 3.: ‘पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की, कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’

इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवी आपके सामने उमडकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर: इन पंक्तियों द्वारा कवि कहना चाहते है कि उस बच्ची को समाज की कटुता स्पष्ट नहीं है। अपने उत्तरदायित्व, मर्यादाओं , कर्तव्यों का ज्ञान है परंतु कटुता का आभाव नहीं है। जिस प्रकार उसके कविता पढ़ने पर भाव स्पष्ट हो जाते है पर व्यंजना नहीं। उसी प्रकार उसे समाज की कटुता का आभास नहीं।

प्रश्न 4.: माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?

उत्तर: एक बेटी ही अपनी माँ की सुख-दुख में भागीदार होती है और माँ के सबसे करीब होती है। इसलिए माँ ने अपनी बेटी को अंतिम पूंजी कहा है क्योंकि वह उससे अत्यंत प्रेम करती है। जिस प्रकार किसी को अंतिम पूंजी से लगाव और प्रेम होता है उसी प्रकार माँ के लिए उसकी बेटी अंतिम पूंजी के समान लगती जिससे दूर होने पर बहुत दुख होता है।

प्रश्न 5.: आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?

उत्तर: कन्या के साथ दान की बात कर केवल प्राचीन परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है। आधुनिक समय में यह शब्द उपयुक्त नहीं लगता। गृहस्थ जीवन को सुखी बनाने की चाहत और परंपराओं के निर्वाह, प्राचीन आदर्शों का पालन कन्यादान शब्द का प्रयोग किया गया है अन्यथा आज के समय में यह शब्द प्रयोग करना सटीक नहीं है।

प्रश्न 6.: माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

उत्तर: माँ ने बेटी को निम्न सीखें दी –

1.माँ ने उसे अपने कर्तव्यों के पालन करने के साथ-साथ अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहने की सीख दी है।

2.लड़की के सभी गुणों से परीपूर्ण रहना परंतु अपनी कोमलता को अपनी कमजोरी का कारण मत बनने देना।

3.वस्त्रों और आभूषणों के भ्रम में मत जीना क्योंकि यह परेशानी का सबसे बड़ा कारण है।

4.पानी में भी मत झाँक कर रीझना, और अपनी खुबसुरती को अपना घमंड मत बनने देना।

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कन्यादान कविता में कौन सा काव्य गुण विद्यमान है? - kanyaadaan kavita mein kaun sa kaavy gun vidyamaan hai?

Kalpana Dubey is a Passionate teacher of Hindi Literature for the last 20 years. She is dedicated to sharing the richness of hindi language and Indian culture to ignite young minds with potent knowledge and perspectives. She has written 3 books on Hindi Grammar used in the CBSE curriculum, and published 2 collections of short stories Kushboo; and Jarokha. Those who know her would agree that, to listen to her, is to experience a spell.

कन्यादान कविता में कौन सा काव्य गुण है?

इस कविता का 'कन्यादान' कविता से सीधा संबंध तो नहीं है पर स्त्री की जागरुकता और सजगता की दृष्टि से साम्य अवश्य है। स्त्री कहती है एक युगों से चली आने वाली सामाजिक रूढ़ियों को तोड़कर उसने घर से बाहर कदम निकालने सीख लिए हैं। वह उन कष्टों और पीड़ाओं से अब परिचित है जिसे आततायियों ने उसके बच्चों, पति और भाइयों को दी थी।

कन्यादान कविता में कौन से छंद का प्रयोग हुआ है?

(ii) यह कविता मुक्तक छंद में लिखित है ।

कन्यादान कविता का वर्ण्य विषय क्या है?

'कन्यादान' कविता में माँ द्वारा बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर सीख दी गई है। कवि का मानना है। कि सामाजिक-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श होकर भी बंधन होते हैं। कोमलता' में कमजोरी का उपहास, लड़की जैसा न दिखाई देने में आदर्श का प्रतिकार है।

कन्यादान कविता में लड़की को किसका आभास होता था?

'उसे सुख का आभास तो होता था, लेकिन दुःख बाँचना नहीं आता था', 'कन्यादान' कविता के आधार पर भावार्थ स्पष्ट कीजिए। उत्तर: जीवन के प्रति लड़की की समझ सीमित थी। वह जीवन के सिर्फ सुखद पक्ष से ही परिचित थी, दुःखद पक्ष से नहीं।