Show प्राण अंतर में लिए, पागल जवानी ! चल रहीं घड़ियाँ, पहन ले नर-मुंड-माला, द्वार बलि का खोल रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी! वह कली के गर्भ से, फल- फल दिए ? या सिर दिए ? तरु की कहानी - श्वान के सिर हो - तुम न खोलो ग्राम-सिंहों से भवानी ! ये न मग हैं, तव प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल
रानी, टूटता-जुड़ता समय चढ़ा दे स्वातंत्र्य-प्रभु पर अमर पानी। लाल चेहरा है नहीं - वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी, विश्व है असि का? - खून हो जाए न तेरा देख, पानी,
प्राण अन्तर में लिये, पागल जवानी! चल रहीं घड़ियाँ, पहन ले नर - मुंड - माला, द्वार बलि का खोल रक्त है? या है नसों में क्षुद्र पानी! वह कली के गर्भ से, फल- फल दिये? या सिर दिये? उस की कहानी- श्वान के सिर हो- तुम न खोलो ग्राम - सिंहों मे भवानी! ये न मग हैं, तव प्राण-रेखा खींच दे, उठ बोल रानी, टूटता-जुड़ता समय चढ़ा दे स्वातन्त्रय-प्रभु पर अमर पानी। लाल चेहरा है नहीं- वेद की वाणी कि हो आकाश-वाणी, विश्व है असि का?- खून हो जाये न तेरा देख, पानी, These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 माखनलाल चतुर्वेदी (काव्य-खण्ड). कवि-परिचय प्रश्न 1. जीवन-परिचय–श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म सन् 1889 ई० में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के ‘बाबई’ नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पं० नन्दलाल चतुर्वेदी था, जो पेशे से अध्यापक थे। प्राथमिक शिक्षा विद्यालय में प्राप्त करने के पश्चात् इन्होंने घर पर ही संस्कृत, बांग्ला, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। कुछ दिनों तक अध्यापन करने के अनन्तर आपने ‘प्रभा’ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया। ये खण्डवा से प्रकाशित ‘कर्मवीर’ पत्र का 30 वर्ष तक सम्पादन और प्रकाशन करते रहे। श्री गणेशशंकर विद्यार्थी की प्रेरणा और सम्पर्क से इन्होंने राष्ट्रीय आन्दोलनों में भाग लिया और अनेक बार जेल-यात्रा भी की। कारावास के समय भी इनकी कलम नहीं रुकी और कलम के सिपाही के रूप में ये देश की स्वाधीनता के लिए लड़ते रहे। सन् 1943 ई० में आप हिन्दी-साहित्य सम्मेलन के सभापति निर्वाचित किये गये। इनकी हिन्दी-सेवाओं के लिए सागर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी० लिट्० की उपाधि तथा भारत सरकार ने पद्मविभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। अपनी कविताओं द्वारा नव-जागरण और क्रान्ति का शंख फेंकने वाला कलम का यह सिपाही 30 जनवरी, सन् 1968 ई० को दिवंगत हो गया। कृतियाँ-चतुर्वेदी जी एक पत्रकार, समर्थ निबन्धकार, प्रसिद्ध कवि और सिद्धहस्त सम्पादक थे, | परन्तु कवि के रूप में ही इनकी प्रसिद्धि अधिक है। इनके कविता-संग्रह हैं—(1) हिमकिरीटिनी, (2) हिमतरंगिनी, (3) माता, (4) युगचरण, (5) समर्पण, (6) वेणु लो गॅजे धरा। इनकी ‘हिमतरंगिनी साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत रचना है। इनकी अन्य प्रमुख कृतियाँ हैं ‘साहित्य देवता’ चतुर्वेदी जी के भावात्मक निबन्धों का संग्रह है। ‘रामनवमी’ में प्रभु-प्रेम और देश-प्रेम को एक साथ चित्रित किया गया है। ‘सन्तोष’ और ‘बन्धन सुख’ नामक रचनाओं में श्री गणेशशंकर विद्यार्थी की मधुर स्मृतियाँ सँजोयी गयी हैं। इनकी कहानियों (UPBoardSolutions.com) का संग्रह कला का अनुवाद’ नाम से प्रकाशित हुआ। ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ नामक रचना में पौराणिक कथानक को भारतीय नाट्य-परम्परा के अनुसार प्रस्तुत किया गया है। साहित्य में स्थान–श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी की रचनाएँ हिन्दी-साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। आपने ओजपूर्ण भावात्मक शैली में रचनाएँ कर युवकों में जो ओज और प्रेरणा का भाव भरा है, उसका राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में बहुत बड़ा योगदान है। राष्ट्रीय चेतना के कवियों में आपका मूर्धन्य स्थान है। हिन्दी साहित्य जगत् में आप अपनी हिन्दी-साहित्य सेवा के लिए सदैव याद किये जाएँगे। पद्यांशों की सन्दर्भ व्याख्या पुष्प की अभिलाषा सन्दर्भ-प्रस्तुत कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित और माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता से अवतरित है। यह कविता चतुर्वेदी जी के ‘युगचरण’ नामक काव्य-संग्रह से संगृहीत है। प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने पुष्प के माध्यम से देश पर (UPBoardSolutions.com) बलिदान होने की प्रेरणा दी है। व्याख्या-कवि अपनी देशप्रेम की भावना को पुष्प की अभिलाषा के रूप में व्यक्त करते हुए कहता है कि मेरी इच्छा किसी देवबाला के आभूषणों में गूंथे जाने की नहीं है। मेरी इच्छा यह भी नहीं है कि मैं प्रेमियों को प्रसन्न करने के लिए प्रेमी द्वारा बनायी गयी माला में पिरोया जाऊँ और प्रेमिका के मन को आकर्षित करूं। हे प्रभु! न ही मेरी यह इच्छा है कि मैं बड़े-बड़े राजाओं के शवों पर चढ़कर सम्मान प्राप्त करूं। मेरी यह कामना भी (UPBoardSolutions.com) नहीं है कि मैं देवताओं के सिर पर चढ़कर अपने भाग्य पर अभिमान करूं। भाव यह है कि इस प्रकार के किसी भी सम्मान को पुष्प अपने लिए निरर्थक समझता है। पुष्प उपवन के माली से प्रार्थना करता है कि हे माली ! तुम मुझे तोड़कर उस मार्ग में डाल देना, जिस मार्ग से होकर अनेक राष्ट्र-भक्त वीर, मातृभूमि पर अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए जा रहे हों। फूल उन वीरों की चरण-रज का स्पर्श पाकर भी अपने को धन्य मानेगा; क्योंकि उनके चरणों पर चढ़ना ही देश के बलिदानी वीरों के लिए उसकी सच्ची श्रद्धांजलि है। काव्यगत सौन्दर्य-
जवानी [ विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले समस्त पद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।] प्रसंग-इस पद्य में देश की युवा-शक्ति में उत्साह का संचार करते हुए उसे देशोत्थान के कार्यों में प्रवृत्त होने का आह्वान किया गया है। कवि युवाओं को सम्बोधित करता हुआ कहता है व्याख्या–अरी युवकों की पागल जवानी! तू अपने भीतर उत्साह एवं शक्तिरूपी प्राणों को समेटे है। यह कौन कहता है कि तूने अपना पानी (तेज) रूपी पति खो दिया है और तू विधवा होकर निस्तेज हो गयी है ? मैं आज जिधर भी दृष्टिपात करता हूँ, उधर गति-ही-गति देखता हूँ। घड़ियाँ अर्थात् समय निरन्तर चल रहा है। आसमान के सितारे भी गतिमान हैं। नदियाँ निरन्तर प्रवहमान हैं और पहाड़ों पर बर्फ के टुकड़े सरक-सरककर अपनी गति का प्रदर्शन कर रहे हैं। प्राणिमात्र की साँसें भी निरन्तर चल रही हैं। इस सर्वत्र गतिशील वातावरण में ऐसा कैसे सम्भव हो सकता है कि तू ठहर जाये ? इस गतिमान समय में (UPBoardSolutions.com) यदि तू ठहर गयी और तुझमें गति का ज्वार-भाटा न आया तो तू दो शताब्दी पिछड़ जाएगी। समय बीत जाने पर जब तुझमें तरंगें उठेगी तो उन तरंगों में दो शताब्दी पीछे वाली गति होगी; अर्थात् जवानी के अलसा जाने पर देश की प्रगति दो शताब्दी पिछड़ जाएगी। हे नवयुवकों की जवानी! तू उठ और दुर्गा की भाँति मनुष्यों के मुण्डों की माला पहन ले। नरमुण्डों की इस माला में तू अपने सिर को सुमेरु बना, अर्थात् बलिदान के क्षेत्र में तू सर्वोपरि बन। यदि आज समर्पण की आवश्यकता पड़े तो तू उससे पीछे मत हट। जिस प्रकार लहलहाते हुए धानों की हरियाली में धरती का जीवन झलकता है, ऐसे ही हे जवानी, तू भी उत्साह में भरकर धानी चूनर ओढ़ ले। प्राण-तत्त्व तेरे साथ है; अतः हे युवकों की जवानी! तू आलस्य को त्यागकर उठ खड़ी हो और सर्वत्र क्रान्ति ला दे। काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न 2. प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से चतुर्वेदी जी (UPBoardSolutions.com) देश के युवा वर्ग को उत्साहित कर रहे हैं कि वह देश की वर्तमान परिस्थिति को बदल दें।। व्याख्या-चतुर्वेदी जी युवकों का आह्वान करते हुए कहते हैं कि हे युवको! तुम अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने की परम्परा का द्वार खोलकर इस धरती को कम्पायमान कर दो और हिमालय के एक-एक कण के लिए एक-एक सिर समर्पित कर दो।। हे नौजवानो! तुम्हारे संकल्प बहुत ऊँचे हैं जिन्हें पूर्ण करने के लिए तुम्हारे पास दो हथेलियाँ हैं। अपनी उन हथेलियों को अपने ऊँचे संकल्पों के समान उठाकर तुम पृथ्वी को गोल कर सकते हो; अर्थात् बड़ी-सेबड़ी बाधा को हटा सकते हो। हे वीरो! तुम अपनी युवावस्था की परख अपने शीश देकर कर सकते हो। इस बलिदानी परीक्षण से तुम्हें यह भी ज्ञात हो जाएगा कि तुम्हारी धमनियों में शक्तिशाली रक्त दौड़ रहा है अथवा उनमें केवल शक्तिहीन पानी ही भरा हुआ है। काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न 3. प्रसंग-कवि ने अपनी ओजस्वी वाणी में वृक्ष और (UPBoardSolutions.com) उसके फलों के माध्यम से युवकों में देश के लिए बलिदान होने की प्रेरणा प्रदान की है। व्याख्या-हे युवाओ! फल के भार से लदे हुए वृक्षों की ओर देखो। वे पृथ्वी की ओर अपना मस्तक झुकाये हुए हैं। कली के भीतर से झाँकते फल कली के संकल्पों (अरमानों) को बता रहे हैं। ‘तुम्हारे हृदय से भी इसी प्रकार बलिदान हो जाने का संकल्प प्रकट होना चाहिए। यह तो बहुत ही प्यारा संकल्प है, इसीलिए पुष्प-कली गर्व से सिर उठाये हुए हैं। जब फल पक गये, तब डालियों ने पृथ्वी की ओर सिर झुका दिया है। अब ये फल दूसरों के लिए अपना बलिदान करेंगे। हे मित्र नौजवानो! वृक्षों की ये शाखाएँ तुम्हें संकेत दे रही हैं कि औरों के लिए मर-मिटने को तैयार हो जाओ। वृक्षों ने फल के रूप में अपने सिर बलिदान हेतु दिये हैं। तुम भी अपना सिर देकर वृक्षों की इस बलिदान-परम्परा को अपने जीवन में उतारो, आचरण में ढालो और युग की आवश्यकतानुसार स्वयं को उसकी प्रगतिरूपी माला में गूंथते हुए आगे बढ़ते रहो। काव्यगत सौन्दर्य-
प्रश्न 4. प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि ने स्वाभिमान के महत्त्व पर (UPBoardSolutions.com) प्रकाश डालते हुए युवकों से उसे किसी भी कीमत पर न खोने का आह्वान किया है। व्याख्या-कवि कहता है कि कहने को सिर तो कुत्ते का भी होता है, पर उसमें स्वाभिमान तो नहीं होता । वह तो अपनी क्षुधापूर्ति के लिए दूसरों की चाटुकारी करता फिरता है और उनके पैरों को चाटता रहता है। इसलिए स्वाभिमान के अभाव में उसकी वाणी में कोई शक्ति नहीं रह जाती। कुत्ता चाहे कितना ही जोर से भौंक ले, किन्तु उसमें इतना साहस ही नहीं होता कि उसके भौंकने से सिंह डर जाए; क्योंकि दूसरे की रोटियाँ खाते ही उसका स्वाभिमान नष्ट हो जाता है। उसमें साहस नहीं रह जाता। इस प्रकार जीवित होने पर भी वह मरे हुए के समान हो जाता है; अतः हे देश के शक्तिस्वरूप नवयुवको! तुम्हें अपने स्वाभिमान की रक्षा करनी है और पराधीन नहीं रहना है। कुत्तों की भाँति रोटी के टुकड़ों के लिए अपने स्वाभिमान को नहीं खोना है। तुम्हें अपनी प्रचण्ड दुर्गा जैसी असीम शक्ति को आपसी झगड़ों (UPBoardSolutions.com) में नष्ट नहीं करना है, अपितु उसे देश के दुश्मनों के संहार में लगाना है। तुम्हारी ऐसी मस्तानी जवानी का सारी दुनिया लोहा मानती है। काव्यगत सौन्दर्य-
जिसमें न निज गौरव तथा निज जाति का अभिमान है। प्रश्न 5. प्रसंग-इन पंक्तियों में कवि नवयुवकों को अपने महान् और बलिदानी पूर्वजों के बनाये और दिखाये गये मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है। | व्याख्या—मेरे देश के नवयुवको! जिस मार्ग पर तुम चलते हो, वह कोई साधारण मार्ग नहीं है, अपितु तुम्हारे पूर्वजों द्वारा चरणों की रेखाओं से निर्मित आदर्श मार्ग है। जिन आदर्शों के आधार पर हम अपने जीवन का निर्माण करते हैं, वे सभी आदर्श तुम्हारे सदृश (UPBoardSolutions.com) युवा-पुरुषों के द्वारा निर्मित हैं। यह मार्ग बलिदान का आदर्श मार्ग है, जिसको देखकर युगों-युगों तक लोग स्वयं ही बलिदान के लिए प्रेरित होते रहेंगे। कवि कहता है कि इन बलिदान-पथों का निर्माण उत्साही नवयुवकों ने किया है। कर्मशील युवकों ने अपने सत्कार्यरूपी पदों से इन विश्व-मोर्गों का निर्माण किया है; अत: ये कर्मशील युवकों के कर्म के लेख हैं, जो बलिदान के मार्ग पर चलने वाले युवकों का मार्गदर्शन करते हैं। ये बलिदान के मार्ग संसार के तीर्थों की दिशा बताने वाली कील (दिशासूचक) हैं। युवक जिन स्थानों पर अपना बलिदान करते हैं, वे स्थान पृथ्वी पर बलिदान के तीर्थ (पवित्र स्थान) समझे जाते हैं। कवि अन्त में कहता है कि हे उत्साहपूर्ण जवानीरूपी रानी! आज तू अपने प्राणों का बलिदान देकर विश्व के युवकों के लिए बलिदान की नयी रेखा खींच दे अर्थात् एक नया प्रतिमान बना दे। हे युवको ! तुम । उठो और संसार को बता दो कि जवानी की महत्ता देश के लिए मर-मिटने में ही है। काव्यगत सौन्दर्य–
नर-जीवन के स्वार्थ सकल प्रश्न 6. प्रसंग-कवि ने युवकों को देश के गौरव की रक्षा के लिए, देश में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने के लिए उन्हें प्रेरित और प्रोत्साहित किया है। व्याख्या-चतुर्वेदी जी कहते हैं कि हे युवको! समय का भूगोल हमेशा एक जैसा नहीं रहा। तुमने जब-जब क्रान्ति की है, तब-तब यह टूटा है और जुड़ा है अर्थात् नये-नये राष्ट्र बने हैं। तुम्हारी क्रान्ति का सत्कार करने के लिए ही यह ब्रह्माण्ड अनेक रंग-बिरंगे तारारूपी मणियों को अपनी गोद में लेकर प्रकट हुआ है। अतः तुम्हारा स्वभाव इतना ओजस्वी होना चाहिए, जिससे कि विश्व का मानचित्र और इतिहास बदला जा सके। (UPBoardSolutions.com) हे युवको! तुम्हें चाहिए कि तुम अपने जीवन की जगमगाहट से देश के गौरव को प्रकाशित करो, किन्तु जिनके हृदय बर्फ की तरह ठण्डे पड़ गये हैं, वे उसी प्रकार क्रान्ति नहीं कर सकते, जिस प्रकार कि ठण्डा बारूद नहीं जल सकता। हे युवको! तुम यदि प्रलय की भाँति पराधीनता और अन्याय के प्रति क्रान्ति नहीं कर सकते तो तुम्हारी जवानी व्यर्थ है। तुम चाहो तो पृथ्वी को भी तरबूज की तरह चीर सकते हो। हे देश के युवकों की जवानी! तू यदि देश की आजादी के लिए अपना रक्तरूपी अमर पानी दे दे तो तू अमर हो जाएगी और संसार में तेरा उदाहरण देकर तुझे सराहा जाएगा। काव्यगत सौन्दर्य-
उस कालकूट पीने वाले के, नयन याद कर लाल-लाल।। प्रश्न 7. प्रसंग–प्रस्तुत पद में कवि ने युवकों को प्रेरणा देते हुए उन्हें वीर पुरुष के लक्षण समझाये हैं। व्याख्या-हे युवको! यदि तुम्हारे खून में लाली नहीं है अथवा तुम्हारा चेहरा ओज गुण से लाल नहीं है अर्थात् देश के गौरव की रक्षा के लिए यदि तुममें बलिदान होने का उत्साह नहीं है तो तुम्हें भारतमाता का लाल नहीं कहा जा सकता। (UPBoardSolutions.com) तुम्हारे रक्त में यदि लालिमा नहीं है अर्थात् उष्णतारूपी जोश नहीं है तो तुम्हारा अस्थि-पंजर देश के किस काम आएगा ? यदि देश पर बलिदान होने की तुम्हारी प्रेरणा सो गयी है तो तुम्हारे ये शरीर शत्रु के लिए आटा-दाल के रूप में भोज्य-पदार्थमात्र बनकर रह जाएँगे। तुम्हारे सिर की शोभा धार्मिक क्रिया-काण्डों के छापा-तिलक लगाने से या माला धारण करने से नहीं बढ़ेगी, वरन् देश पर बलिदान होने से बढ़ेगी। तात्पर्य यह है कि इन धार्मिक प्रतीकों का तब तक कोई मूल्य नहीं है जब तक मातृ-भूमि पर शीश चढ़ाने का भाव हृदय में न पैदा हो। कवि पुनः कहता है कि जिस कविता से युवकों में उत्साह न जगाया जा सके, वह कविता भी निरर्थक है। भले ही वह पवित्र वेदों से उधृत हो अथवा स्वयं देवताओं के मुख से निकली आकाशवाणी हो। – काव्यगत सौन्दर्य-
त्याग
बिना निष्प्राण प्रेम है, प्रश्न 8. प्रसंग-इन पंक्तियों में युवा-शक्ति को क्रान्ति का अग्रदूत मानते हुए युवकों को आत्म-बलिदान की प्रेरणा दी गयी है। व्याख्या-कवि नवयुवकों को क्रान्ति के लिए उत्तेजित करते हुए कहता है कि क्या यह संसार तलवार का है ? क्या संसार को तलवार की धार या शस्त्र-बल से ही जीता जा सकता है ? नहीं, यह बात नहीं है। यह संसार दृढ़ निश्चय वाले व्यक्तियों का है। इसे (UPBoardSolutions.com) उन्हीं के द्वारा ही जीता जा सकता है। प्रत्येक प्रलय का उद्देश्य संसार के अन्दर पूर्ण परिवर्तन (क्रान्ति) ला देना होता है। हे युवाओ! यदि तुम निश्चय करके नव-निर्माण के लिए अग्रसर हो जाओ तो तुम समाज व व्यवस्था में प्रलय की तरह पूर्ण परिवर्तन कर सकते हो; अतः तुम्हें दृढ़ संकल्प के द्वारा नयी क्रान्ति के लिए अग्रसर होना चाहिए। जब व्यक्ति के अन्दर दृढ़ संकल्पों की कमी होती है तो उसका पतन हो जाता है। वायु के हल्के झोंके से ही फूल नीचे गिर जाते हैं और उनकी सुन्दरता नष्ट हो जाती है, लेकिन काँटे आँधी और तूफान में भी गर्व से अपना सिर उठाये खड़े रहते हैं। हे युवको! दृढ़ संकल्प से मर-मिटने की भावना उत्पन्न होती है और ऐसे व्यक्ति कभी अपने इरादे से विचलित नहीं होते। काँटे फूलों की कोमलता और सरसता के अभिमान को अपनी दृढ़ संकल्प-शक्ति से चकनाचूर कर देते हैं। कवि जवानी को सम्बोधित करते हुए कहता है कि हे जवानी! देख तेरी नसों के रक्त में जो उत्साहरूपी उष्णता है, उस उत्साह के नष्ट हो जाने से तेरा रक्त शीतल होकर कहीं पानी के रूप में परिवर्तित न हो जाये; अर्थात् तेरा जोश ठण्डा न पड़ जाये। जीवन में जवानी उसी का नाम है, जो मृत्यु को उत्सव और उल्लासपूर्ण क्षण समझे। जीवन में बलिदान का दिन ही जवानी का सबसे आनन्दमय दिन होता है। | काव्यगत सौन्दर्य-
काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. We hope the UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 माखनलाल चतुर्वेदी (काव्य-खण्ड) help you. If you have any query regarding UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 8 माखनलाल चतुर्वेदी (काव्य-खण्ड), drop a comment below and we will get back to you at the earliest. जवानी कविता के कवि कौन है?जवानी / माखनलाल चतुर्वेदी - कविता कोश
तब तो है फिर से जवानी किसकी रचना है?तुम अपना यौवन लो, मैं अब वानप्रस्थ आश्रम में रहकर तपस्या करूँगा।
जवानी कविता में कवि जवानों को किसकी उपमा देते है?कविता / पाठ का नाम
13. 14. 15.
माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता कौन सी है?दीप से दीप जले ( Famous Makhanlal Chaturvedi poems )
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।। राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।। तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।। सुलग-सुलग री जोत!
|