भगवान मुझे ही दुख क्यों देते हैं? - bhagavaan mujhe hee dukh kyon dete hain?

😣😣क्या में ही मिला भगवान को !जो पूरी दुनिया को छोड़कर मुझे ही दुख देता है!मैंने कौन सा बड़ा पाप कर दिया जो भगवान इतना दुख देरहा है! हमारे मन मे यही प्रश्न बार बार आता है कि भगवान मुझे ही सबसे ज्यादा दुख क्यों  दे राहा है।

भगवान मुझे ही दुख क्यों देते हैं? - bhagavaan mujhe hee dukh kyon dete hain?


ऐसे ही बहुत सारे सवाल जब हमारे दिमाग मे आता है ,तब हम एकहि बात सोच ते है की ये दुनिया अच्छी नही है,ये दुनिया मेरे लिए नही बनि है सब स्वार्थी लोग भरे पड़े है। अब मुझे जीने की इच्छा नही है।

क्या भगवान का यही न्याय है? क्या इसी प्रकार से लोगों का इंसाफ करते है भगवान?

Bhagwaan aapko dukh kyu dete he | भगवान आपको दुःख क्यों देते है?

किसी भी प्रश्न का हल हमे तब तक नही मिलता जब तक हम चिन्ता करते है,दुखी होते है, दूसरों को कोसते है  तब तक हमे किसी भी प्रश्नों का उत्तर नही मिल सकता।अगर हमें किसी प्रश्न का उत्तर चाहिये तो सबसे पहले अपने आप को शांत करना होगा अपने दिमाग से सारी नकारात्मक सोच को बाहर निकलना होगा तब हमें सारी बाते समज में आएंगी।

रही बात भगवान के दुख देने की! तो इस प्रश्न का उत्तर कितना सरल है। जब हम सबसे ज्यादा खुश हुवा करते थे,जब हमारे जीवन में किसी चीज की कमी नही रहती है, हम औरो से ज्यादा सुखी रहते थे तब क्या आप ने किसी और को बुलाकर अपना सुख बाटा? 

तब क्या हमने किसी और को खुशी और सुख देने का प्रयास किया? नही हमने ऐसा नही किया जब हम सबसे ज्यादा सुखी थे तब हमने किसी के साथ अपनी खुशया नहीं बाटी। उस समय हमने भगवान को भी याद नही किया।

भगवान मुझे ही दुख क्यों देते हैं? - bhagavaan mujhe hee dukh kyon dete hain?

जब बारी दुख की आई तब हमने भगवान को याद किया उनसे शिकायत की! जब हमने ही सब कुछ किया है सुख भी हमने ही भोगा है सारी खुशियां भी हमने ही भोगा है तोआपका दुःख भोगने कोई दूसरा व्यक्ति कैसे आ सकता है !दुख भी आपको ही भोगना पड़ेगा न😁😁😁😁

इंन्सान का स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि सुख में किसी को याद नही करता ! और दुख में सबसे ज्यादा भगवान को याद करता है । हम चाहे जितने भी बड़े क्यों न बन जाये इंसान को अपना वास्तविक  स्वभाव नही भूल  चाहिये जो भगवान ने हर इंसान को दिया है। जब तक हमे दुःख का पता नही चलेगा तबतक हमे सुख का अनुभव नही हो सकता हम जान ही नही सकते सुख कैसा होता है।

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भक्तों, हम मे से सभी के मन में कभी न कभी तो यह प्रश्न आता ही है कि भगवान हमे दुख क्यों देता है? आखिर भगवान क्या चाहता है और मेरी मदद क्यों नहीं करते हैं? भगवान क्यूं नहीं सुनते? भगवान तो सब कुछ कर सकते हैं फिर वो एक चुटकी बजाकर मेरा जीवन क्यों नहीं संवार देते? भगवान किसकी मदद करता है? क्या भगवान सबकी सुनता है? जिंदगी में इतनी कठिनाइयां, इतने दुःख और इतनी परेशानियां हैं तो फिर क्यों नहीं भगवान आकाश में प्रकट होकर या अवतार लेकर मेरी जिन्दगी की समस्याओं का समाधान करते? इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानेंगे श्रीमदभागवत गीता के एक श्लोक से और इस श्लोक को समझने का प्रयास करते हैं एक कहानी की मदद से।

भगवान मुझे ही दुख क्यों देते हैं? - bhagavaan mujhe hee dukh kyon dete hain?

एक लड़के का जन्म एक रईस घराने में हुआ। ऐशो आराम की सभी सुविधाएं उसके पास थीं। उसको कुछ भी करने की आवश्यकता थी ही नहीं और वो यह करता भी था यानि वो कुछ भी नहीं करता था।

वह बहुत आलसी था। उसको बचपन से काम करने की आदत ही नहीं थी। उसके पिता ने उसको बहुत समझाया पर उसका मन सोने और खाने-पीने में ही था। एक दिन उसके पिता की मृत्यु हो गई। उसकी माँ पहले ही स्वर्ग सिधार चुकी थी।

उसके भाईयों ने उसे यह कहकर निकाल दिया कि वो कुछ नहीं करता और उसके भाई सारी उमर उसे खिला पिला नहीं सकते। वो मन से उदास और पूरी तरह से टूट चुका था।

पिता को खोने का दुख अभी समाप्त भी नहीं हुआ था कि उसके घर से उसे उसके भाईयों द्वारा जुदा कर दिया गया। वो निकल पड़ा बिना किसी मंजिल के। रास्ते में चलते चलते उसको बहुत भूख सतायी। वो एक आम के बगीचे में पहुंचा।

उसने देखा कि आसपास कोई भी मौजूद नहीं है। बगीचे की रखवाली करने वाला माली एक पेड़ के नीचे गहरी निद्रा में सो रहा था। तो उसने आम तोड़कर खाने शुरू कर दिए।

थी तो यह चोरी ही पर आलसी व्यक्ति को इसमें कुछ भी गलत नहीं लगा। अभी उसने दो आम चखे ही थे कि तभी बगीचे के माली ने उसे देख लिया। माली उसके पीछे डंडा लेकर भागने लगा और आलसी व्यक्ति ने माली के हाथ में छड़ी देखी और वो भाग निकला जंगल की ओर।

जंगल बहुत ही घना था। इतने बड़े जंगल में जंगली और खतरनाक जानवरों का होना स्वाभाविक था और आलसी व्यक्ति ने सुबह से केवल दो आम ही खाये थे। वो भूख से तड़प रहा था।

उसने देखा कि जंगल में कुत्ता है उसने देखा कि उस कुत्ते की दो टांगे है। वो कुत्ता धीरे धीरे दो टांगों पर चल पाता था। आलसी व्यक्ति उस कुत्ते को देखकर समझ नहीं पाया कि यह कुत्ता जंगली जानवरों के बीच जीवित कैसे रह गया क्योंकि वह तो बेचारा चल भी नहीं पाता था।

इस परिस्थिति में इस कुत्ते का जीवित रहना अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं था। आलसी व्यक्ति यह सब सोच ही रहा था कि उसने एक शेर की दहाड़ने की आवाज को सुना और आलसी व्यक्ति इस दहाड़ को सुनकर घबरा गया।

आलसी व्यक्ति ने आगे की ओर नजर डाली और देखा कि एक शेर उस आलसी व्यक्ति की ओर बढ़ा चला आ रहा है। यह देखकर आलसी व्यक्ति के होश उड़ गये। वह घबरा कर एक पेड़ के उपर चढ़ गया।

पेड़ के ऊपर से आलसी व्यक्ति ने देखा कि शेर बढ़ा चला आ रहा है कुत्ते की ओर। शेर के मुह में एक मांस का टुकड़ा था। शेर के डर से सभी जानवर भाग कर कहीं छुप गए।

पर वो दो टांग वाला कुत्ता सक्षम नहीं था भागने को। वो बेचारा तो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। भागना तो बहुत दूर की बात है। आलसी व्यक्ति ने भगवान् से प्रार्थना करनी शुरू कर दी, “हे, भगवान् इस मासूम जानवर को बचा लो। शेर इसे खा ना जाये।”

लेकिन जो अगले पल हुआ वो हैरान करने वाला था। शेर के मुह में जो मांस का टुकड़ा था उसको वह लंगड़े कुत्ते के पास छोडकर आगे चल दिया और आलसी व्यक्ति भगवान् के उस चमत्कार को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।

आलसी व्यक्ति ने मन ही मन सोचा कि किसी ने उससे कहा था कि भगवान् सब कुछ करते हैं। तो उसको तो कुछ भी करने की आवश्यकता ही नहीं। भगवान् ने उसको जन्म दिया है तो उसके बारे में कुछ तो सोचा ही होगा।

अब उसको लगा उसको बहुत बड़ा ज्ञान प्राप्त हो गया है। और वो जा बैठा पेड़ के नीचे इस प्रतीक्षा में कि भगवान् उसके लिए भोजन का इन्तेजाम करेंगे। कुछ घंटे बीत गये भगवान् ने किसी को नहीं भेजा।

आलसी व्यक्ति की नजर बार बार उस व्यक्ति को ढूंढ रही थी जिसको भगवान् ने भेजना था उसको खाना खिलाने के लिए। पर कोई नहीं आया। भगवान् ने किसी को भेजा ही नहीं।

पूरी रात बीत गई परन्तु कोई नहीं आया। अब वो कब तक इंतजार कर सकता था। उसके सब्र का बाँध टूट गया। उसने सोचा आखिर भगवान हमे दुख क्यों देता है? और वो लगा जोर जोर के चिल्लाने, “भगवान् मेरी किस्मत में ही इतना दुख क्यों? इतनी तकलीफ क्यों? क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा? आखिर किस बात का बदला ले रहे हो तुम मुझसे?”

इस आलसी व्यक्ति की बात सुन ली जंगल में साधना कर रहे एक साधु ने। वह साधु जा पहुंचे आलसी व्यक्ति के पास। आलसी व्यक्ति ने अपनी सारी बात उस साधु को सुनायी। पहले तो साधु महाराज ने आलसी व्यक्ति को भोजन कराया।

खाना खाने के बाद आलसी व्यक्ति ने भरी आवाज में साधु से पूछा, “भगवान् ने उस लंगड़े कुत्ते पर भी दया दिखायी परन्तु मुझ पर जरा दया नहीं दिखाई। आखिर क्या कारण है भगवान् की इस बेरुखी का? भगवान हमे दुख क्यों देता है?”

साधु ने उत्तर दिया, “यह सत्य है भगवान् ने हम सभी के लिए एक योजना तैयार की है और तुम भी उसकी योजना का हिस्सा हो। परन्तु तुम भगवान् के इशारे को नहीं समझे। भगवान् तुम्हें उस लंगड़े कुत्ते की तरह नहीं बनाना चाहता बल्कि भगवान् तो चाहते हैं कि तुम उस शेर की तरह बनो जिसने उस लंगड़े कुत्ते की मदद की। उसको खाना खिलाया। सच यही है कि भगवान् भी उसी की मदद करते हैं जो स्वयं की मदद करता है।”

श्री कृष्ण जी ने भागवत गीता के तीसरे अध्याय के आठवे श्लोक में कहा है,

“कर्म न करने से कर्म करना श्रेष्ठ है। यदि तू कर्म नहीं करेगा तो शरीर का रिवाह भी नहीं होगा।”

भगवान हमे दुख क्यों देता है? भक्तों, सच यही है कि अर्जुन को भी अपना युद्ध स्वयं लड़ना पड़ा था। हां, भगवान अपने भक्तों की मदद जरूर करते हैं। कर्म तो भक्त को ही करना होगा जैसे अर्जुन ने अपना कर्म स्वयं किया था।

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भगवान है तो दुख क्यों है?

और दुख में सबसे ज्यादा भगवान को याद करता है । हम चाहे जितने भी बड़े क्यों न बन जाये इंसान को अपना वास्तविक स्वभाव नही भूल चाहिये जो भगवान ने हर इंसान को दिया है। जब तक हमे दुःख का पता नही चलेगा तबतक हमे सुख का अनुभव नही हो सकता हम जान ही नही सकते सुख कैसा होता है।

कैसे पता करें कि भगवान हमारे साथ है या नहीं?

अगर आपको रात में नींद के दौरान बार-बार सपने आते हैं और सपनों में मंदिर, भगवान की मूर्ति या फोटो दिखाई देती हैं तो इसका मतलब है कि आप पर भगवान की कृपा बनी हुई है। कई बार ऐसा होता है कि आप किसी चीज को लेने के लिए आगे बढ़ते हैं, लेकिन लेते वक्त आपके मन में उसे लेकर कुछ संशय आ जाता है।

भगवान अपने भक्तों की परीक्षा क्यों लेते हैं?

भक्त की भावना से भगवान प्रसन्न होते हैं। कृपा के सागर जब भक्त पर कृपा दृष्टि डालते हैं तो इससे पहले उसका सब कुछ हरण कर लेते हैं। कृपा तो करते हैं, पर परीक्षा भी बहुत लेते, इस में भक्त को अपना धैर्य नहीं खोता। वह मन को तो संभालता लेता है, पर आंसुओं को नहीं रोक पाता।

भगवान हमारी प्रार्थना क्यों नहीं सुनते हैं?

प्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता है कि सिर्फ बैठकर कुछ मंत्रों का उच्चारण किया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि आप निर्मल, शांत और ध्यान अवस्था में हों। इसलिए वैदिक पद्धति में प्रार्थना के पहले ध्यान होता है और प्रार्थना के उपरांत भी ध्यान होता है।