जसोदा हरि पालने झुलावे किसकी रचना है? - jasoda hari paalane jhulaave kisakee rachana hai?

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

राग धनाश्री

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।
हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥
मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै।
तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥
कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥
इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥

भावार्थ: श्रीयशोदा जी श्याम को पलने में झुला रही हैं। कभी झुलाती हैं, कभी प्यार करके पुचकारती हैं और चाहे जो कुछ गाती जा रही हैं। (वे गाते हुए कहती हैं-) निद्रा! तू मेरे लाल के पास आ! तू क्यों आकर इसे सुलाती नहीं है। तू झटपट क्यों नहीं आती? तुझे कन्हाई बुला रहा है।' श्यामसुन्दर कभी पलकें बंद कर लेते हैं, कभी अधर फड़काने लगते हैं। उन्हें सोते समझकर माता चुप हो रहती हैं और (दूसरी गोपियों को भी) संकेत करके समझाती हैं (कि यह सो रहा है, तुम सब भी चुप रहो)। इसी बीच में श्याम आकुल होकर जग जाते हैं, श्रीयशोदा जी फिर मधुर स्वर से गाने लगती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख देवताओं तथा मुनियों के लिये भी दुर्लभ है, वही (श्याम को बालरूप में पाकर लालन-पालन तथा प्यार करने का) सुख श्रीनन्दपत्नी प्राप्त कर रही हैं।

जसोदा हरि पालनैं झुलावै

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।

हलरावै, दुलरावै मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥

मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं आनि सुवावै।

तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥

कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।

सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥

इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै।

जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नंद-भामिनि पावै॥

यशोदा नन्हे कृष्ण को पालने में झुला रही हैं। कभी झुलाती हैं, कभी प्यार करके पुचकारती हैं और चाहे जो कुछ गाती जा रही हैं। वे गाते हुए कहती हैं, “निद्रा! तू मेरे लाल के पास आ। तू क्यों आकर इसे सुलाती नहीं है। तू झटपट क्यों नहीं आती? तुझे कन्हैया बुला रहा है।” श्रीकृष्ण कभी पलकें बंद कर लेते हैं, कभी अधर फड़काने लगते हैं। उन्हें सोते हुए समझकर माता चुप हो जाती हैं और दूसरी गोपियों को भी संकेत करके समझाती हैं कि यह सो रहा है, तुम सब भी चुप रहो। इसी बीच में कृष्ण आकुल होकर जग जाते हैं। यशोदा फिर मधुर स्वर में गाने लगती हैं। सूरदास जी कहते हैं कि जो सुख देवताओं और मुनियों के लिए भी दुर्लभ है, वही कृष्ण को बालरूप में पाकर लालन-पालन और प्यार करने का सुख श्रीनंद की पत्नी प्राप्त कर रही हैं।

स्रोत :

  • पुस्तक : सूर दोहावली (पृष्ठ 23)
  • रचनाकार : आबिद रिज़वी
  • प्रकाशन : रजत प्रकाशन

यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

Don’t remind me again

OKAY

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

Don’t remind me again

OKAY

जसोदा हरि पालने झूले किसका कथा है?

कबहुँ पलक हरि मूंदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै । सोवत जानि मौन ह्वै ह्वै रही करि करि सैन बतावै । इहि अंतर अकुलाय उठै हरि जसुमति मधुर गावै । जो सुख सूर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनी पावै ।

जसोदा हरि पालने झुलावै हलरावै दुलराय मल्हावै जोइ कछु गावै इन पंक्तियों में कौन सा रस है?

हलरावै दुलराय मल्हावै जोई सोई कुछ गावै।।

कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं कबहुँ अधर फरकावै?

कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै। सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि, करि-करि सैन बतावै॥ इहिं अंतर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरैं गावै। जो सुख सूर अमर-मुनि दुरलभ, सो नँद-भामिनि पावै॥