जन्म सूतक में पूजा क्यों नहीं करनी चाहिए? - janm sootak mein pooja kyon nahin karanee chaahie?

भारतीय हिंदू धर्म में जन्म और मरण और ग्रहण के समय सूतक को माना जाता है, एवं पुराने अनुभवों के अनुसार घर के बुजुर्ग जैसा कहते हैं, वैसा ही सभी करने लगते हैं । लेकिन बहुत कम लोग ही जान पाते हैं कि सूतक और पातक क्या होते हैं और उनका जीवन पर क्या असर पडता है । सूतक का सम्बन्ध जन्म के कारण हुई अशुद्धि से है । जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित स्वरुप सूतक माना जाता है । पातक का सम्बन्ध मरण के निम्मित से हुई अशुद्धि से है । मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित स्वरुप पातक माना जाता है ।

किसी व्यक्ति के मरने के 13वें दिन क्रिया कराई जाती है। जिसके बाद अपने क्षमतानुसार ब्राह्मणों को बुलाकर उनको भोजन कराने के साथ-साथ उन्हे दक्षिणा दी जाती है। इसके बाद घर को अच्छी तरह से शुद्ध किया जाता है। और उस मृत व्यक्ति से जुड़ी चीजें जैसे कि कपड़े और उसका समान किसी जरुरतमंद को दे दिया जाता है।

आपने देखा होगा कि किसी व्यक्ति का अंतिन संस्कार करने के बाद वही तट पर सभी लोग स्नान भी करते है। माना जाता है कि इससे मृत व्यक्ति की आत्मा आपके साथ नहीं जाएगी। उसका आपसे लगाव हट जाएगा, लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है।

इसके अनुसार माना जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो वह किस तरह मरा यह सबसे बड़ी बात होती है। जिसके कारण उससे आपको संक्रमण हो सकता है। इस संक्रमण से बचने के लिए हम स्नान करते है। जिससे कि हामरे साथ वहां पर मौजूद कोई भी किटाणु आप के साथ आपके घर न जाएं। जिससे कि आपके बीच कोई संक्रमण फैले।

13वें दिन आपने देखा होगा कि घर में पूजा-पाठ और हवन का आयोजन किया जाता है। इसे पीछे मान्यता है कि इससे मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है। वही इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। इसके अनुसार घर में पूजा-पाठ और हवन से हामरे घर का वातावरण ठीक हो जाता है साथ ही शुद्ध हो जाता है। जिससे हमारे घर में मौजूद सभी बैक्टेरिया भी मर जाते है। इसके साथ ही सूतक की समाप्ति हो जाती है।

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क्या होता है सूतक और पातक : सूतक का संबंध जन्म-मरण के कारण हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो नाल काटा जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया के दौरान जो हिंसा होती है, उसमें लगने वाला दोष या पाप प्रायश्‍चित के रूप में पातक माना जाता है। इस तरह मरण से फैली अशुद्धि से सूतक और दाह संस्कार से हुई हिंसा के दोष या पाप से प्रायश्‍चित स्वरूप पातक माना जाता है।

जिस तरह घर में बच्चे के जन्म के बाद सूतक लगता है उसी तरह गरुड़ पुराण के अनुसार परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर लगने वाले सूतक को 'पातक' कहते हैं। सूतक और पातक की परीभाषा इससे अलग भी है। जैसे व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचित्व और अशुद्धि प्राप्त होता है, उसे सूतक कहते हैं। अशुचित्व अर्थात अमंगल और शुद्ध का विपरित अशुद्धि होता है।

कब-कब लगता है सूतक : जन्म काल, ग्रहण काल, स्त्री के मासिक धर्म का काल और मरण काल में सूतक और पातक का विचार किया जाता है। सभी के काल में सूतक के दिन और समय का निर्धारण अलग-अलग होता है।

1. मृत व्यक्ति के परिजनों को 10 दिन तथा अंत्यक्रिया करने वाले को 12 से 13 दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक पालन कड़ाई से करना होता है। मूलत: यह सूतक काल सवा माह तक चलता है। सवा माह तक कोई किसी के घर नहीं जाता है। सवा माह अर्थात 37 से 40 दिन। 40 दिन में नक्षत्र का एक काल पूर्ण हो जाता है। घर में कोई सूतक (बच्चा जन्म हो) या पातक (कोई मर जाय) हो जाय 40 तक का सूतक या पातक लग जाता है।

2. ऐसा भी कहा जाता है कि सात पीढ़ियों पश्चात 3 दिन का सूतक माना जाता है, लेकिन यह निर्धारित करना कठिन है। मृतक के अन्य परिजन (मामा, भतीजा, बुआ इत्यादि परिजन) कितने दिनों तक सूतक का पालन करें, यह संबंधों पर निर्भर है तथा उसकी जानकारी पंचांग व धर्मशास्त्रों में दी जाती है। लेकिन जिसका संबंध रक्त से है उसे उपर बताए नियमों अनुसार ही चलना होता है।

3. जन्म के बाद नवजात पीढ़ियों को हुई अशुचिता 3 पीढ़ी तक 10 दिन, 4 पीढ़ी तक 10 दिन, 5 पीढ़ी तक 6 दिन गिनी जाती है। एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती है। वहां पूरा 10 दिन तक का सूतक होता है। प्रसूति नवजात की मां को 45 दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह अशुद्ध माना जाता है। इसीलिए कई लोग अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। पुत्री का पीहर में बच्चे का जन्म में 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है।

4. मरण के अवसर पर दाह संस्कार में इत्यादि में हिंसा होती है। इसमें लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित के स्वरूप पातक माना जाता है। जिस दिन दाह संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है। न कि मृत्यु के दिन से। अगर किसी घर का सदस्य बाहर है तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है उस दिन तक उसके पातक लगता ही है। अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान मात्र से शुद्धि हो जाती है।

5. अगर परिवार की किसी स्त्री का गर्भपात हुआ है तो जितने माह का हुआ है उतने दिन का ही पातक माना जाएगा। घर का कोई सदस्य मुनि, साध्वी है उसे जन्म मरण का सूतक नहीं लगता है। किंतु उसका ही मरण हो जाने पर उसका एक दिन का पातक लगता है।

6. किसी की शवयात्रा में जाने को एक दिन, मुर्दा छूने को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है। घर में कोई आत्मघात करले तो 6 माह का पातक माना जाता है। छह माह तक वहां भोजन और जल ग्रहण नहीं किया जा सकता। वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर में चढ़ाया जाता है।

7. इसी तरह घर के पालतू गाय, भैंस, घोड़ी, बकरी इत्यादि को घर में बच्चा होने पर 1 दिन का सूतक परंतु घर से दूर-बाहर जन्म होने पर कोई सूतक नहीं रहता। बच्चा देने वाली गाय, भैंस और बकरी का दूध, क्रमशः 15 दिन, 10 दिन और 8 दिन तक अशुद्ध रहता है।

1. सूतक और पातक में अन्य व्यक्तियों को स्पर्श न करें।

2. कोई भी धर्मकृत्य अथवा मांगलिक कार्य न करें तथा सामाजिक कार्य में भी सहभागी न हों।

3. अन्यों की पंगत में भोजन न करें।

4. किसी के घर न जाएं और ना ही किसी भी प्रकार का भ्रमण करें। घर में ही रहकर नियमों का पालन करें।

5. किसी का जन्म हुआ है तो शुद्धि का ध्यान रखते हुए भगवान का भजन करें और यदि कोई मर गया है तो गरुढ़ पुराण सुनकर समय गुजारें।

6. सूतक या पातक काल समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) सेवन कर शुद्ध हो जाएं।

7. सूतक पातक की अवधि में देव शास्त्र गुरु, पूजन प्राक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती है।

8. जिस व्यक्ति या परिवार के घर में सूतक-पातक रहता है, उस व्यक्ति और परिवार के सभी सदस्यों को कोई छूता भी नहीं है। वहां का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करता है। वह परिवार भी मंदिर सहित किसी के घर नहीं जाता है और सूतक-पातक के नियमों का पालन करते हुए उतने दिनों तक अपने घर में ही रहता है। परिवार के सदस्यों को सार्वजनिक स्थलों से दूर रहने को बोला जाता है।

क्या जन्म सूतक में पूजा करनी चाहिए?

घर में नए सदस्य के आगमन अर्थात शिशु के जन्म होने के बाद कुछ दिनों के लिए सूतक होता है. इस दौरान घर पर कोई धार्मिक कार्य जैसे पूजा-पाठ करना, मंदिर जाना, किसी धार्मिक स्थानों पर जाना आदि वर्जित माने जाते हैं. शास्त्रों में घर पर नवजात के जन्म की इस अवधि को सूतक कहा गया है.

बच्चे के जन्म पर सूतक कितने दिन का होता है?

प्रसूति नवजात की मां को 45 दिन का सूतक रहता है। प्रसूति स्थान 1 माह अशुद्ध माना जाता है। इसीलिए कई लोग अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं। पुत्री का पीहर में बच्चे का जन्म में 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है।

सूतक में मंदिर जा सकते हैं क्या?

घर में मृत्यु सूतक लगने पर घर के मंदिर की पूजा करें या नहीं? - Quora. हमारे ऊपर आ रहे कष्टो का एक कारण सूतक के नियमो का पालन नहीं करना भी हो सकता है। सूतक का सम्बन्ध “जन्म एवं मृत्यु के” निम्मित से हुई अशुद्धि से है। जन्म के अवसर पर जो ""नाल काटा"" जाता है और जन्म होने की प्रक्रिया में अन्य प्रकार की जो हिंसा होती है।

सूतक में पूजा करने से क्या होता है?

किसी के जन्म होने पर परिवार के लोगों पर १० दिन के लिए सूतक लग जाता है। इस दौरान परिवार का कोई भी सदस्य धार्मिक कार्य नहीं करता है। जैसे मंदिर नहीं जाना, पूजा-पाठ नहीं करना। इसके अलावा बच्चे को जन्म देने वाली स्त्री का रसोईघर में जाना या घर का कोई काम करना वर्जित होता है।