I ईश्वर के अनेकों नाम हैं - i eeshvar ke anekon naam hain

Disclaimer


We strive continuously to provide as precisely and as timely contents as possible, however, we do not guarantee the accuracy, completeness, correctness, timeliness, validity, non-obsolescence, non-infringement, non-omission, merchantability or fitness of the contents of this website for any particular purpose.

Notify us by email if we have published any copyrighted material or incorrect informations.

Disclaimer

The questions posted on the site are solely user generated, Doubtnut has no ownership or control over the nature and content of those questions. Doubtnut is not responsible for any discrepancies concerning the duplicity of content over those questions.

मनमोहन कुमार आर्य

I ईश्वर के अनेकों नाम हैं - i eeshvar ke anekon naam hain
             ईश्वर एक है परन्तु उसके नाम अनेक हैं। इसका कारण क्या है? वेदों के विद्वान तो इस रहस्य को जानते हैं परन्तु सामान्य मनुष्य इसे नहीं जानता। मत-मतान्तरों के अधिकांश व अनेक विद्वान भी इस विषय पर यथार्थ ज्ञान नहीं रखते। इस कारण उनके भक्तों व अनुयायियों में भी भ्रम वा असमंझस की स्थिति बनी रहती है। ईश्वर की बात तो हम बाद में करें यदि हम अपने नाम या नामों पर विचार करें तो पाते हैं कि परिवार व समाज में लोग हमें अनेक नामों से जानते व पुकारते हैं। हमारा एक मुख्य नाम होता है। कई लोगों के घर में माता-पिता द्वारा पुकारने के लिए एक छोटा दो चार अक्षरों वाला नाम भी रख देते हैं और उसी से पुकारते हैं। विद्यालय व सरकारी सेवाओं आदि का हमारा एक मुख्य नाम होता है जो घर पर पुकारे जाने वाले नाम से भिन्न होता है। इसी प्रकार से पुत्र व पुत्री को माता-पिता संबंधकारक नाम बेटा-बेटी अथवा पुत्र व पुत्री के नाम से भी पुकारते हैं। कोई हमें भांजा कहता है तो कोई भतीजा, कोई चाचा जी कहता है तो कोई ताऊ जी। कोई हमें मामा जी या मौसा जी भी कहता है। कोई हमें समधि या पिता जी, मित्र, बन्धु, आर्यजी व अन्य भी अनेक नामों से पुकारते हैं। यह हमारे अनेक नाम कुछ गुण वाचक, कुछ सम्बन्धवाचक और कुछ स्वभाव व स्वरूप से संबंधित होते हैं परन्तु हमारा मुख्य नाम वह होता है जो हमारे स्कूल के प्रमाणपत्र या सरकारी अभिलेखों में प्रविष्ट या दर्ज होता है। इसी प्रकार ईश्वर के अनन्त गुण, कर्म व स्वभाव होने से उसे भी उसके भक्त व अनुयायी अपनी अपनी श्रद्धा, भक्ति व भावना के अनुसार अनेक नामों से पुकारते हैं। जिस प्रकार से हमारा एक निज व मुख्य नाम होता है, जैसे कि मेरा नाम मनमोहन है, इसी प्रकार से ईश्वर का भी एक निज व मुख्य नाम ‘‘ओ३म्” है। अन्य नाम गौणिक, सम्बन्ध सूचक या स्वभाव को बताने व दर्शाने वाले हैं। हम आर्यसमाज के दूसरे नियम को लेते हैं जिसमें ईश्वर के अनेक नामों व गुणों की चर्चा है। नियम है कि ‘ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है। उसी (ईश्वर) की उपासना करनी योग्य है।’

ईश्वर के उपर्युक्त नामों पर विचार करें तो ईश्वर का एक नाम सच्चिदानन्द वा सच्चिदानन्दस्वरूप है। यह नाम इसलिये है कि ईश्वर सत्य, चित्त और आनन्दस्वरूप वाला है। इन गुणों, स्वभाव व स्वरूप के कारण ईश्वर को सच्चिदानन्दस्वरूप कहा जाता है। ईश्वर का यह सार्थक व सत्य अर्थों वाला नाम है। लेकिन इस नाम का प्रयोग करने का तात्पर्य यह नहीं है कि सच्चिदानन्द और ओ३म् मुख्य नाम से पृथक पृथक ईश्वर हैं। इसी प्रकार एक ही ईश्वर के अन्य नाम निराकार, सर्वशक्तिमान आदि हैं। निराकार उसका स्वरूप है। ईश्वर आकार रहित होने से निराकार कहलाता है। इसी प्रकार से मनुष्य अल्प शक्तिवाला होता है और वह अल्पशक्तिवाले कार्यो को ही कर सकता है। मनुष्य सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, रूप, शब्द आदि को उत्पन्न नहीं कर सकता। ईश्वर ने इन पदार्थों को सत् रज, तम गुणों वाली मूल प्रकृति से उत्पन्न किया है। इन पदार्थों की रचना अपौरूषेय अथवा सर्वशक्तिमान सत्ता अर्थात् ईश्वर द्वारा किये जाने वाले कार्य होते हैं। इस कारण से ओ३म् नाम वाले ईश्वर को ही निराकार व सर्वशक्तिमान कहा जाता है। इसी प्रकार से आर्यसमाज के उपर्युक्त नियम में कहे गये अन्य नाम भी एक ही ईश्वर के उसके गुणों व स्वरूप के कारण हैं जिनका होना इस लिये आवश्यक है कि उसका व्याख्यान करते हुए विद्वान अल्प विद्या वाले मनुष्यों को ईश्वर के सच्चे स्वरूप को बता सकें। इसका यह अर्थ भी है कि वेद व वैदिक साहित्य में ईश्वर के जितने नाम हैं और उन्हें देवता कह कर बताया गया है, उसका अभिप्राय ईश्वर के वह वह गुण, कर्म व स्वभाव सहित उसके द्वारा उन पदार्थों के बनाये जाने व उन पदार्थों से होने वाले लाभों के कारण उसे देवता कहा गया है व कहा जाता है।

पृथिवी, अग्नि, वायु, आकाश, जल आदि सभी देवता क्यों हैं। यह ईश्वर नहीं हैं अपितु जड़ पदार्थ हैं परन्तु ईश्वर ने मूल प्रकृति से इन पदार्थों को बनाकर इनमें दिव्य शक्तियों को उत्पन्न किया है और यह सभी पदार्थ हमें अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने में हमारे सहयोगी बने हुए हैं। पृथिवी, वायु व जल आदि की अनुपस्थिति में हम जीवित रहने की कल्पना ही नहीं कर सकते, सुखी व आनन्दमय जीवन जीने की तो बात ही दूर है। अतः हमारे ऊपर इन जड़ पदार्थों के जो उपकार हैं, इस कारण हम इन्हें देवता नाम से पुकारते हैं। देव का अर्थ सबको अपने गुणों का दान देना होता है। यह वायु देवता हमें प्राण वायु का दान दे रहे हैं। इनके प्रति हम कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने के कारण इन्हें देवता कहकर पुकारते हैं। इसी प्रकार पृथिवी से आश्रय मिलने के कारण हम ‘भूमि माता पुत्रों अहं पृथिव्या’ का भाव अपने भीतर लाकर कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। हमारे शरीर का 60 प्रतिशत व इससे कुछ अधिक भाग जल है। जल की इस महत्ता के कारण ही हम जल को देवता अर्थात् एक उपकारक पदार्थ मानकर उसके प्रति कृतज्ञता, उसके संरक्षण, उसकी स्वच्छता बनाये रखना, उसे प्रदुषण से बचाना व उससे जीवनयापन में सदुपयोग लेने का भाव रखते हैं।

यह भी जान लें कि देवता दो प्रकार के होते हैं। जड़ देवता व चेतन देवता। जड़ देवताओं में सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, आकाश, अन्न, ओषधि, वनस्पति आदि आते हैं वहीं चेतन देवताओं में माता, पिता, आचार्य, गो माता, अश्व, राजा, न्यायाधीश तथा हमें अन्याय आदि से बचाने व रक्षा करने वाले मनुष्य आदि व ऐसे उपकारक सभी प्राणि आते हैं। यह उपकारक जड़ व चेतन पदार्थ व प्राणी देवता होकर भी ईश्वर नहीं हैं। ईश्वर देव नहीं अपितु महादेव कहलाता है क्योंकि उससे मनुष्य आदि सभी प्राणियों को जो उपकार मिल रहा है, वह उसके बनाये अन्य किसी देवता से उतना नहीं मिलता है। अतः ईश्वर के अनेक नाम होने पर भी वह सर्वव्यापक, निराकार, सर्वज्ञ और सच्चिदानन्दस्वरूप सत्ता है और एक ही है। हमें उसके गुणों से उसकी स्तुति व अपने जीवन को सुखी व कल्यामय बनाने के लिए प्रार्थना करनी है। ईश्वर की उपासना अर्थात् उसकी संगति व गुणों का चिन्तन करना भी हमारे लिये आवश्यक एवं अनिवार्य हैं। ईश्वर की उपासना से हमारे दुष्ट व बुरे गुण, कर्म व स्वभाव सुधरते, ईश्वर के समान व उसके जैसे बनते हैं। हम सच्चे साधु, महात्माओं, विद्वानों व ऋषियों के जीवन पर दृष्टि डालें तो उनमें हमें ईश्वरीय गुणों के अनुरूप गुणों के दर्शन होते हैं। राम, कृष्ण, दयानन्द आदि में भी हमें ईश्वर के कुछ कुछ गुणों के दर्शन होते हैं। ईश्वर की उपासना से ही हमारे यह महान पुरूष महान बने थे। यह उपासना के कारण ही सम्भव होता है।

हमने इस लेख में एक ईश्वर के उसके गुण, कर्म, स्वभाव व सम्बन्धों के कारण अनेक नामों की चर्चा की है। हम आशा करते हैं कि हमारे कुछ पाठकों की इस विषयक जो भ्रान्तियां हैं वह दूर होंगी। लोगों को यह ज्ञात हो जायेगा कि अलग अलग नाम वाले शब्दों से अनेक ईश्वर नहीं कहे जाते अपितु उससे एक ही ईश्वर के अनेक गुणों, कर्मों व उपकारों का उल्लेख व प्रकाश होता है। ईश्वर एक है और उसकी वेद विहित शिक्षाओं को मानना ही समस्त पृथिवीवासी मनुष्यों का एकमात्र मुख्य धर्म है। वेद व वेदानुकूल जीवन ही धार्मिक जीवन होता है और इससे विपरीत जो जीवन होता है वह मनुष्य जीवन नहीं होता। इस बात को विचार करना चाहिये। यदि हम वेद के मार्ग पर चलेंगे तो हमारा बहुविधि व सर्वविध कल्याण होगा। यदि नहीं चलेंगे तो अपनी ही हानि करेंगे जिसकी पूर्ति जन्म-जन्मान्तरों में भी नहीं होगी। वेदमार्ग पर न चलने से हमारा यह जन्म तो बिगड़ेगा ही अपितु भावी परजन्म भी बिगड़ेंगे जिससे हमें पशु आदि नीच योनियों में जन्म लेकर अह्य पीड़ओं व दुःखों को सहन करना होगा।

ईश्वर के अनेक नाम क्या है?

नियम है कि 'ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनन्त, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है।

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए I ईश्वर के अनेकों नाम हैं?

शुद्ध रूप : ईश्वर के अनेक नाम है।

मुझे केवल मात्र ₹ 5 चाहिए वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए?

शुद्ध वाक्यमुझे मात्र पाँच रूपये चाहिए। पाँच शब्द के ऊपर भी बिंदु प्रयुक्त हुआ है, जबकि 'पाँच' में चंद्र बिंदु (ँ) का प्रयोग होना चाहिए

मुझे केवल मात्र ₹ 20 दीजिए का शुद्ध वाक्य क्या होगा?

This is an Expert-Verified Answer शुद्ध वाक्य : मुझे केवल कुछ रुपए चाहिए। मुझे मात्र कुछ रुपए चाहिए।