किसी भाषा या बोली में, स्वनिम (phoneme) उच्चारित ध्वनि की सबसे छोटी ईकाई है। स्वनिम के लिए ध्वनिग्राम, स्वनग्राम आदि शब्द भी प्रयुक्त होते हैं। अंग्रेजी में इसका पर्यायी शब्द फोनीम (phoneme) है। Phoneme के लिए प्रयुक्त होने वाला ‘स्वनिम’ शब्द ‘ध्वनिग्राम’ की अपेक्षा कहीं अधिक नया है, किन्तु आजकल इसका ही प्रयोग चल रहा है। Show
स्वरूप[संपादित करें]स्वनिम के स्वरूप के संदर्भ में विद्वानों में मतैक्य नहीं है। विभिन्न विद्वानों ने इसे भिन्न-भिन्न विषयों से सम्बन्धित माना है। ब्लूमफील्ड और डैनियल जोन्सने ने इसे भौतिक इकाई के रूप में स्वीकार किया है। एडवर्ड सापीर इसे मनोवैज्ञानिक इकाई मानते हैं। डब्ल्यू. एफ. ट्वोडल स्वनिम को अमूर्त काल्पनिक इकाई मानते हैं। स्वन या ध्वनि-परिवर्तन से सदा अर्थ-परिवर्तन नहीं होता है, जबकि स्वनिम-परिवर्तन से अर्थ-परिवर्तन निश्चित है। स्वनिम उच्चारित भाषा की ऐसी लघुत्तम इकाई है, जिससे दो ध्वनियों का अन्तर स्पष्ट होता है। इस प्रकार यह भी स्पष्ट है कि स्वनिम का सम्बन्ध ध्वनि से है। ध्वनि का सम्बन्ध यदि उच्चारण से होता है, तो श्रवण से भी इसका अटूट सम्बन्ध होता है। यदि ध्वनि सुनी नहीं जाएगी तो उसका अस्तित्व भी संदिग्ध होगा। ध्वनि के उच्चारण तथा श्रवण-सम्बन्धों के ही कारण स्वनिम को शरीर-विज्ञान तथा भौतिक विज्ञान से सम्बन्धित कहा गया है, क्योंकि उच्चारण और श्रवण-प्रक्रिया यदि शरीर विज्ञान से सम्बन्धित होती है, तो संवहन-प्रक्रिया पूर्णतः भौतिक विज्ञान से। किसी भी भाषा की मूलभूत ध्वनियाँ लगभग पन्द्रह से पचास तक होती हैं। इन्हीं ध्वनियों के निर्धारण पर स्वनिम का निर्धारण होता है। स्वनिम के ही माध्यम से ध्वनियों के मध्य अन्तर प्रदर्शित होता है। ज, न, प भिन्न-भिन्न स्वनिम हैं। इसलिए इनमें भिन्नता है। 'जान' तथा 'पान' का अन्तर स्वनिम की भिन्नता के ही आधार पर होता है। यहाँ ‘ज’ तथा ‘प’ दो भिन्न सार्थक ध्वनियाँ हैं। इन्हीं भिन्न सार्थक ध्वनियों के आधार पर ‘ज्ञान’ तथा ‘पान’ में अर्थ भिन्नता भी है। इन्हीं सार्थक ध्वनियां को ध्वनि विज्ञान में स्वनिम कहते हैं। उन दो शब्दो की 'न' ध्वनियों में सूक्ष्म अन्तर है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति यदि एक ध्वनि को दो बार उच्चारण करेगा, तो उनमें सूक्ष्म अन्तर होना स्वाभाविक है; यथा- पान, जान, पानी, मनु, मीनू, माने, मानो आदि शब्दों की विभिन्न ‘न’ ध्वनियों में सामान्य रूप से कोई अन्तर नहीं लगता है, किन्तु सूक्ष्म चिन्तन पर इन ध्वनियों में सूक्ष्म भिन्नता का ज्ञान होता है। स्वनिक रूप से यदि इनमें भिन्नता है, तो उच्चारण के स्थान, प्रयत्न तथा कारण आदि आधारों पर इनमें पर्याप्त समानता ही स्वनिम की अवधारणा का आधार है।[1] स्वनिम रेखांकन के लिए इस प्रकार का आधार अपनाते हैं - कमल को - क / म / ल स्वनिम व्यवस्था[संपादित करें]किसी भी भाषा के स्वनिम अपने वितरण में व्यतिरेकी (contranstive) होते हैं। इसका आशय यह है कि जहाँ एक की उपस्थिति होगी वहाँ दूसरा नहीं आ सकता। जैसे - कमल में म और ल के वितरण को ल और म से बदल दें तो वह कलम हो जाएगा, इस प्रकार स्वनिम परिवर्तन से अर्थ परिवर्तन भी घटित होता है। इसका आशय यह है कि जहाँ एक की उपस्थिति होगी वहाँ दूसरा नहीं आ सकता। जैसे - कमल में म और ल के वितरण को ल और म से बदल दें तो वह कलम हो जाएगा, इस प्रकार स्वनिम परिवर्तन से अर्थ परिवर्तन भी घटित होता है। हालांकि किसी स्वनिम के सहस्वन या उपस्वन (Allophone) का वितरण व्यतिरेकी न होकर परिपूरक (Complementary) होता है। वितरण की एक ऐसी भी अवस्था है जब ध्वनि में अन्तर होने पर भी अर्थ-परिवर्तन नहीं होता, इसको मुक्त वितरण (Free Distribution) कहते हैं। हिन्दी में स्वनिम के ऐसे प्रयोग मिल जाते हैं; यथा- दीवार > दीवाlल, ग़म > गम। यहाँ प्रथम शब्द में / र / - / ल और द्वितीय में / ग / - / ग / ध्वनियों के अतिरिक्त पूरा परिवेश समान है। इसके लिए ~ चिन्ह का प्रयोग करते हैं; यथा- दीवार > दीवाल / र / ~ / ल।[2] किसी शब्द के आदि, मध्य और अन्त में प्रयुक्त होने पर यदि अर्थ-परिवर्तन हो, तो स्वनिम रूप निश्चित हो जाता है; यथा - 'आप' शब्द के आदि और अन्त में 'ज' प्रयोग से अर्थ-परिवर्तित रूप इस प्रकार मिलते हैं - ज > आज, जापइस प्रकार 'ज' स्वनिम है। 'ल' स्वनिम को इस प्रकार दिखा सकते हैं - आदि मध्य अन्त्यल- -ल- -ललखन कलम कमलविशेषताएँ[संपादित करें]
आदि मध्य अन्य Ph -p- -p th -t- -t kh -k- -k प्रवर्तित ध्वनि केवल आदि में है, इसके अर्थ में परिवर्तन भी नहीं होता। अन्त में स्वनिम नहीं है। मध्य तथा अन्त स्थिति में अधिक परिवेश में प्रयुक्त होने से p.t.k. स्वनिम हैं। ये ध्वनियाँ आपस में संस्वन हैं।[3] उपयोगिता[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
स्वनिम क्या है विस्तार से समझाइए?स्वनिम विभिन्न समान ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करता है। यदि एक ध्वनि का एक से अधिक या अनेक तरह से उच्चारण किया जाए, तो उसके लिए एक ही स्वनिम होगा। यथा- 'क' ध्वनि को दस व्यक्ति बोले या एक ही व्यक्ति दस बार बोले तो इसके दस रूप होंगे, किन्तु इन दसों ध्वनि-रूपों के लिए एक ही स्वनिम होगा।
हिंदी में स्वनिम कितने प्रकार के होते हैं?स्वनिम के भेद (प्रकार). स्वर -अ आ इ ई ए ऐ ओ औ उ ऊ. व्यंजन. बलाघात. शब्द के उच्चारण में होने वाले सुर परिवर्तन को क्या कहते हैं?ऐतिहासिक भाषाविज्ञान के सन्दर्भ में, किसी भाषा की ध्वनि का कोई भी परिवर्तन जो उस भाषा के स्वनिमों की संख्या या उनका वितरण बदल दे, स्वनिक परिवर्तन या ध्वनि परिवर्तन (phonological change) कहलाता है। भाषा को गतिशील और परिवर्तनशील माना जाता है।
एक ध्वनि या एकाधिक ध्वनियों की इकाई को जिसका उच्चारण एक झटके में होता है क्या कहते हैं?वर्ण भाषा का लघुत्तम खंड, जिसके टुकड़े नहीं होते हैं; वर्ण भाषिक ध्वनियों के लिखित रूप होते हैं; जैसे - अ, आ, क, ख, ग आदि। अक्षर - वाक्- स्वन की बड़ी इकाई है। एक या एक से अधिक स्वनों की वह इकाई जिसका उच्चारण श्वास के एक झटके (स्पंदन) से होता है।
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