हमारे देश में जनसंख्या को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? - hamaare desh mein janasankhya ko kaise niyantrit kiya ja sakata hai?

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Title: Implementation of a stringent Population Control Policy.

श्री राघव लखनपाल (सहारनपुर) : मैं प्रस्ताव करता हूँ:

यह सभा हमारे देश में जनसंख्या विस्फोट पर अपनी गंभीर चिंता व्यक्त करती है जिसकी ओर यदि ध्यान नहीं दिया जाए तो इसके परिणामस्वरूप अगले 50 वऐााॉ में जनसांख्यिकीय विस्फोट होगा, और सरकार से आग्रह करती है कि वह जनसंख्या नियंत्रण के लक्ष्य से यथाशीघ्र कठोर नीति कार्यान्वित करे।

          सभापति महोदय, वऐाऩ 1976 में पहली राऐट्रीय जनसंख्या नीति इस संसद में प्रस्तुत हुई थी। तब इस पर न तो चर्चा हुई थी और न ही इसे पारित किया गया था। लेकिन, मेरा यह मानना है कि इस सदन में जितने भी माननीय सदस्य हैं, उन सब ने किसी-न-किसी समय इस विकराल समस्या के बारे में सोचा होगा, अध्ययन किया होगा, चिंता की होगी और कहीं-न-कहीं उनके मन में हमेशा यह बात रहती होगी कि क्यों न एक ऐसी जनसंख्या नीति हमारे इस भारत में लागू हो, जिसके चलते वास्तव में, यह जो एक समस्या बन कर हमारे सामने खड़ी है, उसका समाधान हो सके। वऐाऩ 1983 में राऐट्रीय स्वास्थ्य नीति आई। उसमें स्वैच्छिक प्रयासों पर बल दिया गया, जिनके माध्यम से जनसंख्या स्थिरीकरण का लक्ष्य रखा गया। ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ - इस नीति पर बल दिया गया। संसद ने इसे अपनाया और साथ ही साथ इस बात पर भी बल दिया कि एक राऐट्रीय जनसंख्या नीति होनी चाहिए।

वऐाऩ 2000 में हमारी ‘नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी - 2000’ प्रस्तुत की गई। यह सदन में आई। इसके पीछे मुख्य उद्देश्य था कि गर्भनिरोधकों की आवश्यकताओं को पूर्ण करना और स्वास्थ्य सेवाओं का जो बुनियादी ढाँचा है, उसको बेहतर करना, उसको सुदृढ़ करना। एक मध्य‑अवधि का जो लक्ष्य था कि हमारा जो रिप्लेसमेंट लेवल है, वह वऐाऩ 2010 तक 2.1 हो जाए तथा दीर्घकालीन लक्ष्य था कि वऐाऩ 2045 तक जनसंख्या में स्थिरता आ जाए। हम सभी इस बात के गवाह है कि हम इन लक्ष्यों से बहुत दूर हैं, कहीं आस‑पास भी नहीं है। पिछली जो शताब्दी थी, सन् 1900 से लेकर सन् 2000 तक, उसमें जो वैश्विक आबादी थी, वह सन् 1900 में 200 करोड़ थी और सन् 2000 में बढ़कर 600 करोड़ हुई, यानी उसमें तीन गुना वृद्धि हुई।        भारत की जनसंख्या तब लगभग 23 करोड़ थी और वह बढ़कर 100 करोड़ के आँकड़ें को पार कर गई यानी साढ़े चार से पाँच गुना वृद्धि भारत में जनसंख्या की हुई। अब, यदि जनसंख्या आवश्यकता से अधिक होगी तो निश्चित ही गरीबी होगी, भुखमरी होगी, कुपोऐाण होगा, संसाधन जो सीमित है, उनका विभाजन व विखंडन होगा। हम जानते हैं कि किस प्रकार से आज भारत के कई हिस्सों में एक‑एक तथा दो‑दो बीघा जमीन पर हमारे किसान भाई खेती कर रहे हैं; क्योंकि परिवार में पचास‑साठ बीघे की भूमि बंटते‑बंटते अब सबके हिस्से में एक‑दो बीघे आ गया है। यदि हम शहरी क्षेत्रों में देखें तो बड़े‑बड़े शोरूम हुआ करते थे, कई जगह मुझे देखने को मिलता है कि आगे बच्चे होते गए, पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार का इज़ाफा होता गया और वह शोरूम भी अब गली का रूप ले चुका है।

          निश्चित रूप से, बढ़ती जनसंख्या से जीवन की गुणवत्ता का जो स्तर होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है और अगर हम शायद पूरे विश्व की बात करें तो हम सबसे निम्न स्तर पर कहीं न कहीं उन देशों  के साथ खड़े होंगे। अब, यदि जनसंख्या स्थिरिकरण नहीं हुआ तो इसके ऐसे परिणाम होंगे, जो आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ेंगे। हमारा जो स्थायी आर्थिक विकास है, वह संभव नहीं हो पाएगा। सामाजिक विकास और संतुलन तो बिगड़ ही रहा है और निश्चित रूप से पर्यावरण पर जो इसका असर पड़ रहा है, उसके बारे में भी हम जितना कहें, शायद कम होगा।

          सभापति महोदय, संयुक्त राऐट्र द्वारा एक रिपोर्ट हाल ही में प्रस्तुत की गई है, the UN Report World Population Prospects: the 2017 Revision Report, इसके अनुसार  आज भारत की जनसंख्या लगभग 131 करोड़ है और उनका अनुमान है कि वऐाऩ 2024 में यह संख्या 144 करोड़ पर आकर पहुँच जाएगी। उन्होंने इस रिपोर्ट में यह भी अनुमान प्रस्तुत किया है कि वऐाऩ 2030 में यह संख्या 150 करोड़ पर पहुँच जाएगी और वऐाऩ 2050 में तो यह कहीं न कहीं 166 करोड़ के आस‑पास जाकर पहुँचेगी। इसी रिपोर्ट में चीन के बारे में भी लिखा है और उसकी जनसंख्या आज अनुमानित लगभग 141 करोड़ बतायी गई है। इस रिपोर्ट के माध्यम से यह बताया गया है कि वऐाऩ 2024 में चीन की जनसंख्या भी 144 करोड़ हो जाएगी यानी वऐाऩ 2024 में भारत और चीन की जनसंख्या बराबर हो जाएगी। अब चीन की जनसंख्या बराबर हो जाएगी; लेकिन उनका क्षेत्रफल हमसे तीन गुना से भी ज्यादा है। रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि वऐाऩ 2030 के दशक में चीन की जनसंख्या स्थिरता की ओर आएगी और उसके बाद से लगातार धीरे‑धीरे घटती जाएगी। 

अब चीन की जो जनसंख्या नियंत्रण नीति रही है, मैं उसमें बहुत ज्यादा विस्तार में नहीं जाऊँगा; लेकिन कुछ ऐसे पहलू जरूर छूना चाहूँगा। यह केवल कठोर ही नहीं, बल्कि एक बहुत ही क्रूर नीति रही। उन्होंने भले ही अपना लक्ष्य पूर्ण कर लिया हो, चाहे वह जनसंख्या के आंकड़ों को प्राप्त करने की बात हो, चाहे वह बात हो आर्थिक विकास की उस दर को छूना, जिस पर वे आज पहुंचे हैं। वन चाइल्ड पॉलिसी की इस नीति का मुख्य नारा था - शाओ शेंग क्वाये फू, जिसका अर्थ है कि Fewer births, quickly richer. यानी कि कहीं न कहीं लोगों को यह स्वप्न दिखाया कि आप कम बच्चे पैदा करेंगे और बहुत जल्दी अमीर हो जाएंंगे। अमीर तो वे हो गए, लेकिन चीन ने मानवीय मापदण्डों को तार-तार करके रख दिया। ऐसे आंकड़े और ऐसी बातें उनकी नीति से सामने आई हैं कि वह महिला जिसका एक बच्चा हो जाता था, उसको अनिवार्य रूप से आई.यू.डी. प्रयोग करना होता था यानी कि इन्ट्रा यूट्रिन डिवाइस का प्रयोग उसके लिए अनिवार्य था। ऐसे कपल्स जिनके दो बच्चे हो जाते थे, उनका जबरन स्टर्लाइजेशन किया जाता था। इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि वहां गर्भवती होने के लिए भी महिला को पहले ऑथराइज होना पड़ता था, सरकार से ऑथराइजेशन लेना पड़ता था। जो अनाधिकृत प्रेगनेंसी होती थी, उसका जबरन गर्भपात कराया जाता था। वहां बच्चों की तो जान गई ही, लेकिन कितनी ही महिलाओं की मृत्यु हुई है, यह अनुमान लगा पाना भी शायद मुश्किल होगा। कितना सामाजिक कऐट उस देश की जनता ने झेला है, इस पर हम जितनी भी चर्चा करें, कम होगी।

          भारत जैसे स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश में ऐसी नीति की कल्पना भी हम नहीं कर सकते हैं। कहीं न कहीं हम सोचने पर विवश हो चुके हैं और अब वह समय आ चुका है कि वह विस्फोटक रूप हमारी यह अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि ले चुकी है, इस पर कोई कार्य किया जाए, इस पर कोई नीति सामने लाई जाए।

          प्रति वऐाऩ हमारे देश की आबादी एक और डेढ़ करोड़ के बीच में बढ़ रही है। सरकार द्वारा नेशनल पापुलेशन, 2000 के माध्यम से अनेकों सकारात्मक कार्य किए जा रहे हैं, जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, धरातल पर बहुत से कार्यक्रम हो रहे हैं, गर्भ निरोधक वस्तुओं की बेहतर पैकेजिंग और डिस्ट्रीब्यूशन, चाहे वह डीएमपीए हो, चाहे वह छाया के नाम से हो, पीओपी के नाम से हो। परिवार नियोजन कार्यक्रम में श्रीमान् अमिताभ बच्चन जी का सहयोग लिया जा रहा है, बहुत से आर्थिक प्रोत्साहन दिए जा रहे हैं। प्रेरणा स्ट्रेटजी, संतुऐिट स्ट्रेटजी के माध्यम से एक नेशनल हेल्पलाइन प्रारम्भ की गई है। निश्चित रूप से अशिक्षा के कारण भी जनसंख्या में वृद्धि है तो बेहतर शिक्षा पर भी बल दिया जा रहा है। परिवार नियोजन में पुरूऐााो की भूमिका और अधिक हो, इसके लिए भी सरकार कार्य कर रही है, लेकिन क्या ये कदम पर्याप्त हैं? मुझे लगता है कि हम सब यह प्रश्न अपने आप से निश्चित रूप से पूछते होंगे कि all this is very good. But is it really enough?

          एक जानी-मानी स्कॉलर वन्दना शिवा हैं। उन्होंने कहा है, Population control is not an issue involving contraceptives for third world women. It is an issue of ecological justice. हमारी इस लोक सभा की ही सम्मानित अध्यक्ष, आदरणीय सुमित्रा महाजन जी ने भी पिछली लोक सभा में इसी विऐाय पर चर्चा में यह कहा था कि Development is the best contraceptive. निश्चित ही हम विकास की राह पर चल रहे हैं। आदरणीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में हम उस ओर अग्रसर हैं, जहां भारत सही मायने में आने वाले समय में दुनिया में विश्व गुरू के रूप में उभरेगा।   

          सुमित्रा महाजन जी ने यह भी कहा था कि A large population can be a huge asset, but can be a dangerous liability as well. यानी भारत की जवान जनसंख्या निश्चित रूप से एक डेमोग्रेफिक डिविडेंट का काम कर सकती है। यदि ऐसा हो जाए कि वह अनियंत्रित बढ़ जाए और उसके अनुरूप रोजगार न दे पाएंं तो फिर यह वास्तव विकराल समस्या का रूप धारण कर सकती है। आज आवश्यकता है कि नेशनल पॉपुलेशन  पॉलिसी वऐाऩ, 2000 को संशोधित किया जाए, इसे रिवाइज किया जाए, एक नई एंंटी नेटलिस्ट पॉलिसी लाई जाए, जिसमें यूज ऑफ इन्सेन्टिव एंंड डेटरेंस हो, इसमें दोनों का प्रयोग किया जाए यानी प्रोत्साहन और निवारकों का प्रयोग किया जाए। इसे नेशनल पोपुलेशन पॉलिसी, 2018  का नाम दिया जा सकता है। इसके पीछे जो लक्ष्य होगा। यह टोटल फर्टिलिटी का ही होगा, जिसे हम टीएफआर कहते हैं। भारत का टारगेट रेट 2.1 है, उसके आधार पर पॉपुलेशन पॉलिसी को डिवाइज किया जा सकता है। हमें सोच बदलनी होगी, हम सख्त कदम उठाने से कई बार पीछे हट जाते हैं। संसद सदस्य होने के नाते हम सोचते हैं कि कि जनता के बीच क्या संदेश जाएगा? इसका क्या रिएक्शन मिलेगा? मुझे लगता है कि सरकार ने राऐट्रहित को सर्वोपरि रखते हुए ऐसे ऐतिहासिक कदम उठाए हैं चाहे वह विमुद्रीकरण हो या जीएसटी को लागू करना हो। चुनावों के परिणाम अपने आप में इस बात का सबूत हैं कि जनता ने इन कदमों को सराहा है, पसंद किया है। क्यों न विधान के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि पर काबू करने का काम किया जाए। यह सोच कि इससे जनता में आक्रोश होगा या उनके अधिकारों का किसी प्रकार से उल्लंघन होगा, अपने आप में गलत सोच है। देश की अधिकतम जनता यह चाहती है कि एक कारगर और प्रभावशाली कारगर जनसंख्या नियंत्रण नीति सामने आए और उसका क्रियान्वयन हो। इस नीति के माध्यम से टीएफआर का जो मापदंड है उसको रीप्लेसमेंट लेवल पर लाने का प्रयास किया जाए।

          भारत का टीएफआर औसत वऐाऩ 1991 में 3.6 था। वऐाऩ 2013 में घटकर 2.3 पर आ गया। देश में कुछ प्रदेश ऐसे हैं विशेऐा रूप से उत्तर प्रदेश का जिक्र करूंगा जहां का मैं स्वयं रहने वाला हूं और प्रतिनिधित्व करता हूं। बिहार और उत्तर प्रदेश का टीएफआर  रेट 3 से ऊपर है। उत्तर प्रदेश की टीएफआर 3.1 है और बिहार का उससे भी ज्यादा है। कुछ ऐसे प्रदेश हैं जैसे झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ इनकी भी टीएफआर 2.6 से 2.9 तक है जोकि बहुत अधिक है। हमें अपनी इस नीति को क्षेत्रवार समझना होगा, प्रदेशवार देखना होगा। ऐसे प्रदेश जिन्होंने इस टीएफआर को प्राप्त कर लिया है और इस लेबल पर आ गए हैं उन प्रदेशों को इसमें छोड़ा जा सकता है। यह देखने की आवश्यकता है कि क्या यूपी और बिहार जैसे राज्यों में कोई डेमोग्रेफिक चेंजेज तो नहीं हो रहे हैं। कोई बहुत बड़ा सामाजिक संतुलन तो बिगड़ नहीं रहा है। उत्तर प्रदेश और बिहार की टीएफआर रेट देश के बाकी प्रदेशों से ज्यादा है, इनका जनसंख्या घनत्व भी ज्यादा है।   संसाधनों की कमी होने के कारण गरीबी भी अधिक है और विकास का अभाव भी है। पीईडब्लयू रिसर्च सैंटर दुनिया का प्रसिद्ध रिसर्च सैंटर द्वारा शोध किया गया, स्टडी की गई, इसमें कुछ ऐसी बातें उजागर हुई हैं जो वास्तव में आश्चर्यचकित करने वाली हैं। इस शोध में कहा गया है कि घटते जन्म स्तर के कारण भारत में वऐाऩ 2055 और 2060 के बीच हिंदू समुदाय की आबादी के जन्म स्तर में भारी गिरावट आएगी। शोध में यह भी कहा गया है कि वऐाऩ 2050 तक दुनिया में भारत सबसे बड़ी मुस्लिम समुदाय की आबादी वाला देश बन जाएगा यानी यह इंडोनेशिया को पछाड़ देगा।

          मैं जिस प्रकार के डेमोग्राफिक बदलाव की बात कर रहा हूं, इसका अनुभव हम सबसे ज्यादा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कर सकते हैं। मैं जिस विस्फोट की बात कर रहा हूं, यह वही क्षेत्र है, जो जनसंख्या विस्फोट की कगार पर खड़ा है। एक स्टडी के तहत यह पाया गया है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आठ ऐसे जनपद हैं जहां ऐसी स्थिति बनी हुई है। इनमें सर्वप्रथम मैं जिस जनपद से आता हूं सहारनपुर है, उसके बाद मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, ज्योतिबाफूले नगर, मेरठ और बरेली आते हैं। पूरे उत्तर प्रदेश में भारत के लगभग 22 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में ये लोग 19.26 प्रतिशत हैं, जबकि समूचे भारत की जनसंख्या में मुस्लिम समुदाय 14.23 प्रतिशत है। हम यदि केवल इन आठ जनपदों की बात करें तो उत्तर प्रदेश के 30 प्रतिशत मुस्लिम समुदाय के लोग यहां रहते हैं। इसमें मेरा जनपद भी है। इनमें छः ऐसे हैं, यदि हम जनपदों की जनसंख्या  देखें तो इस समुदाय का प्रतिशत जनपदीय जनसंख्या का 40 या 40 से अधिक हो चुका है। इसमें मेरा जनपद सहारनपुर सम्मिलित है। रामपुर जनपद में ये बहुसंख्यक हो चुके हैं।

          अब मैं जनपदवार प्रतिशत आपके सामने रखना चाहता हूं क्योंकि यह आवश्यक है कि सदन इन आंकड़ों को जाने, सहारनपुर में जनपदीय जनसंख्या का 41.95, मुजफ्फरनगर में 41.3, बिजनौर में 43.04, मुरादाबाद में 47.12 प्रतिशत है। जैसा कि मैंने बताया है कि रामपुर में मुस्लिम समुदाय का बहुसंख्यक वर्ग हो चुका है जो कि 50.57 प्रतिशत है। ज्योतिबाफूले नगर में 40.78 प्रतिशत, मेरठ में 34 प्रतिशत और बरेली में भी 34 प्रतिशत के आसपास मुस्लिम समुदाय है। ये आंकड़े बताना इसलिए आवश्यक है ताकि हम समझ सकें कि किस प्रकार से बहुत बड़ा बदलाव इन क्षेत्रों में आ रहा है।

          यदि हम वऐाऩ 2001 से 2011 तक की बात करें तो देखने को मिलता है कि इन क्षेत्रों में इस समुदाय के लोग 39.5 प्रतिशत 41.5 प्रतिशत पर पहुंच गए हैं। दो परसेंट की एक दशक में वृद्धि हुई है। आजादी के बाद जब वऐाऩ 1951 में सेंसस हुआ था, तब यह आंकड़ा 30 प्रतिशत था, लेकिन आज हम 41 प्रतिशत की बात कर रहे हैं। अगर हमने समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया, तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं, यह हम सब सोच सकते हैं।

          इसके साथ-साथ यह बताना आवश्यक है कि प्रति सौ व्यक्तियों में कितने बच्चे अलग-अलग समुदाय के हैं। मैं इसमें विशेऐा रूप से हिन्दू और मुस्लिम समुदाय की ही चर्चा करूंगा। मेरे सामने मुजफ्फरनगर का आंकड़ा सामना आया। मुजफ्फरनगर में प्रति सौ व्यक्तियों में हिन्दुओं के 13 बच्चे हैं और मुस्लिम समुदाय के 19 बच्चे हैं। मुजफ्फरनगर में 6 का गेप है। यह गेप सहारनपुर में 4.6, मेरठ में 5.6 और बागपत में 7.5 है। अब नेगेटिव गेप कहीं नहीं आ रहा है। यह गेप आ रहा है, जिसमें आपको वहां प्रति सौ व्यक्ति मुस्लिम समुदाय के ज्यादा बच्चे मिलेंगे।

          हम भारत के इतिहास की चर्चा करने लगें, तो वऐाऩ 1947 में हमारे पूर्वजों ने देश के विभाजन को सहा है। हमारे राऐट्र के तीन टुकड़े हुए थे। कभी भी कोई ऐसा न सोचे कि ऐसी स्थिति दोबारा उत्पन्न हो सके। इसलिए आवश्यक है कि केवल एक ही समुदाय की अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि क्यों हो रही है, इस पर भी कहीं न कहीं हम सबको और सरकार को चिंता करने की आवश्यकता है। कश्मीर का उदाहरण हमारे सामने है। हम जानते हैं कि वहां एक ही समुदाय की जनसंख्या अधिक होने और उनके दबदबे के चलते वहां से लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना सबकुछ छोड़ कर पलायन करना पड़ा। यह पलायन एक कड़वा सच है, एक सत्य है। भले ही कुछ राजनीतिक दलों के नेता इसे नकारते हों और यह सोचते हों कि नहीं, यह मनगढ़त कहानी है, कल्पना का विऐाय है। कैराना में जो पलायन हुआ, उसे नैशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन ने भी अपनी जांच में सही पाया कि हां, वहां से ढाई सौ हिन्दू परिवार इसलिए पलायन कर गये, क्योंकि वे एक समुदाय विशेऐा के लोगों के भय और आतंक से घबरा गये थे। अपने परिवार और बच्चों की सुरक्षा के नाते कोई देहरादून चला गया तो कोई किसी और शहर में जाकर बस गया। सांसदों का प्रतिनिधि मंडल जब जांच करने के लिए वहां गया, तो मैं स्वयं उसमें गया था। मेरी वहां इस विऐाय को लेकर बहुत से लोगों से बातचीत हुई थी। वे लोग तब भी बहुत घबराये हुए थे और बताने से डर रहे थे। लेकिन हमें भी बहुत से लोगों ने बताया, मेरे साथ संसद के और भी माननीय सदस्य थे, कि हां, हर वक्त यहां एक भय का वातावरण रहता है और बहुत से लोग कैराना को छोड़कर चले गये हैं।

16.33 hrs

(Shri Arjun Charan Sethi in the Chair)

          जहां भी जनसंख्या वृद्धि हो रही है, अगर हम सहारनपुर की बात करें, तो सहारनपुर में पुल के इस तरफ और उस तरफ एक क्षेत्र बन गया है, यानी पुल के उस पार एक समुदाय विशेऐा का घनत्व बढ़ता जा रहा है और वहां से हिन्दू आबादी के लोग अपनी सुरक्षा को देखते हुए पलायन करके पुल के इस पार आकर रहने लग गये हैं। आपको समुदाय विशेऐा के गांव के गांव सहारनपुर जनपद और पश्चिम में देखने को मिलेंगे। मां शाकुम्भरी देवी का मंदिर, सिद्धपीठ जो सहारनपुर में है, उसके आसपास के सब गांव एक विशेऐा समुदाय के हो गये हैं। कहीं न कहीं बस्तियां बनती जा रही हैं, जिसे अंग्रेजी में गेटोआइजेशन कहते हैं। भारत जैसे लोकतंत्र के लिए is this ghettoization really healthy for a diverse democracy like India?

          क्या यह आवश्यक नहीं है कि अलग समुदाय आपस में रहें, पास-पास रहें, एक-दूसरे को जानें और समझें, इसके बनिस्बत कि उनको अलग-अलग करके बसा दिया जाये और वे इतना बंद समाज और समुदाय बन जायें कि आपस में कहीं कोई आदान-प्रदान ही न हो, कहीं कोई विचार-विमर्श, बातचीत ही न हो और कहीं न कहीं फिर ऐसा वातावरण बने कि आपस में एक साथ रह भी न पायें। पाकिस्तान के बारे में अभी हम ने हाल ही में पढ़ा है कि खाइबर पख्तुन के हांगू जनपद में जबरन कुछ सिख बंधुओं को धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया गया। केरल और पश्चिम बंगाल में लगातार गिरती हिन्दू आबादी जनसंख्या के परिणामस्वरूप बहुत गंभीर कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम बंगाल में दुर्गा पूजा करना चाहते हैं तो हमें माननीय न्यायालय से उसकी अनुमति लेनी पड़ती है और केरल जो कि आदि-शंकराचार्य जी की जन्मभूमि है, आज किस प्रकार से वहां बेगुनाह हिन्दुओं का नरसंहार हो रहा है, यह भी जग जाहिर है, सब जानते हैं। 

          महोदय, इन सब के परिप्रेक्ष्य में मैं प्रस्ताव करता हूं और इस बात को पुनः आपके समक्ष रखता हूं कि नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी, 2018 बनाई जाये। यह टू चाइल्ड पॉलिसी हो। इसके अंतर्गत कोई भी महिला या कोई भी पुरुऐा भारत में रहता हो, वह दो से अधिक बच्चे पैदा न करे, भले ही उसका एक से अधिक विवाह हुआ हो। यदि कोई व्यक्ति दो से अधिक बच्चे पैदा करता है तो ऐसे परिवार को सरकारी सब्सिडियों और स्कीम्स के अंतर्गत लाभ नहीं मिलना चाहिए, ऐसा कानून हमें लाना चाहिए। अगर तीसरा बच्चा परिवार में पैदा होता है तो उस तीसरे बच्चे को न ही सरकारी सेवा, सरकारी नौकरी मिले और न ही वह भारत में किसी भी निर्वाचित पद के लिए चुनाव लड़ सके, इस प्रकार की एक पॉलिसी हमें लानी पड़ेगी।

          महोदय, दो बच्चे पर्याप्त हैं। भारत में होड़ लगी रहती है कि वंश कैसे आगे बढ़ेगा, वंश कैसे बढ़ेगा। क्या वंश आगे बढ़ाने के लिए दो बच्चे पर्याप्त नहीं हैं? मुझे लगता है कि बहुत हैं। इससे सभी समुदायों को लाभ होगा। यह केवल एक समुदाय के लिए नहीं है बल्कि सभी के लिए है। विशेऐा रूप से मैं सहारनपुर की बात करूं तो वहां वूड कारविंग इंडस्ट्री है, उसमें ज्यादातर एक समुदाय के लोग ही कार्य करते हैं, वह हस्तशिल्प का काम है। अगर उस सामान की मांग उतनी ही है लेकिन अभी परिवार में चार लोग काम कर रहे हैं, उसमें पांच लोग और जुड़ जायेंगे तो भी मांग उतनी ही है। हमारी सरकार जीवन स्तर बढ़ाना चाह रही है। अगर जनसंख्या बढ़ती जायेगी तो वह कैसे बढ़ेगा?

          मैं स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा जी के प्रयासों की सराहना करता हूं। उनके द्वारा इस समस्या को समझा गया है और मिशन परिवार विकास के माध्यम से भारत के ऐसे जनपदों को आइडैंटीफाई किया जा रहा है, जहां टोटल फर्टिलिटी रेट तीन या तीन से अधिक हो। निश्चित ही ऐसे जनपदों में और जागरूकता का कार्य करने का उनका संकल्प है लेकिन मैं इस नीति के माध्यम से यह भी प्रस्ताव करता हूं कि आप एक पायलेट प्रोजैक्ट करें। आप पायलेट प्रोजैक्ट पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उन आठ जनपदों में करें, जिनकी अभी मैंने चर्चा की थी। हमने पॉलिसी के तहत जो प्वाइंट्स दिये हैं उनको वहां इम्प्लिमेंट करके देखिए। भारत में इम्प्लिमेंट करने की आवश्यकता नहीं है। मैं कहता हूं कि इस पापुलेशन पालिसी को आप मेरे गृह जनपद से प्रारम्भ कीजिए, तब आपका फूलों से स्वागत करेंगे, जब आप ऐसा क़दम उठाएंंगे। ऐसे परिवार जो केवल एक या दो बच्चों को ही जन्म देते हैं, उन्हें हमें प्रोत्साहन देने की भी आवश्यकता है। हमने इनसेंटिव्स और डेटरेंट्स की बात कही थी। डेटरेंट्स की तो बात हो गई, अब इनसेंटिव्स की बात भी होनी चाहिए। ऐसे परिवार जो केवल एक या दो बच्चे पैदा करते हों, ऐसे परिवारों को कहीं न कहीं आर्थिक प्रोत्साहन या पेंशन आदि देना चाहिए। ऐसे परिवारों को धन लाभ दिया जाए। आदरणीया सुमित्रा महाजन जी ने सदन में यह भी कहा था कि जिन अभिभावकों के कम बच्चे हैं, उन्हें ज्यादा बेनिफिट्स मिलने चाहिए। हम स्पीकर महोदया के विचार को इम्प्लीमेंट करें, तो बहुत अच्छा होगा। मैं तो यह कहूंगा कि क्यों न एक नए मंत्रालय का गठन किया जाए। अभी डिपार्टमेंट आफ फैमिली प्लानिंग एंंड वैलफेयर हैल्थ मिनिस्टरी के साथ जुड़ा हुआ है। नया मंत्रालय बनाया जाए और उसे मिनिस्टरी आफ पापुलेशन रेग्यूलेशन कहा जाए। एक ऐसा मंत्रालय जो नेशनल पापुलेशन पालिसी 2018 का ग्राउंड पर कार्यान्वयन करे।

          महोदय, सदन इसमें कुछ बातें और भी जोड़ना चाहता है। हमें इस टाइम बम के फटने से बचाने हेतु जो भी सकारात्मक सुझाव सामने आते हैं, उन पर भी हमें चर्चा करके इम्प्लीमेंट करना चाहिए। हमारी सरकार विश्वास रखती है कि Justice and development for all but appeasement of none. ूसबका साथ, सबका विकासू का हमारा संकल्प है। हैलेन केल्लर ने कहा था कि Once it was necessary that the people should multiply and be fruitful if the race was to survive. But, now ,to preserve the race, it is necessary that people hold back the power of propagation.

          महोदय, इसी के साथ मैं निवेदन करता हूं कि हमारे द्वारा पेश किये गये प्रस्ताव पर सदन सकारात्मक कार्रवाई करते हुए इसे अपनाने का काम करेगा और इसे पारित करने का काम करेगा।

HON. CHAIRPERSON : Motion moved:

This House expresses its grave concern over the population explosion in our country, which, if not taken care of, would lead to demographic catastrophe in the next fifty years, and urges upon the Government to implement a stringent policy aiming at population control at the earliest.


श्री रवीद्र कुमार राय (कोडरमा) : सभापति महोदय, मैं आपका आभारी हूं कि आपने मुझे आज इस महत्वपूर्ण विऐाय जनसंख्या के नियंत्रण पर विचार करने के लिए लाए गए प्रस्ताव पर अपने विचार सदन में प्रस्तुत करने का अवसर दिया है। मैं समझता हूं कि भारतवऐाऩ के लिए आज यह प्रश्न ज्वलंत मुद्दा बनकर सामने आया है। राजनीतिक कारणों से इसके बारे में चर्चा करने से परहेज करने की कोशिश जरूर कुछ लोग कर रहे हैं। लोकतंत्र में जिम्मेदारी इस सदन की है, जिस सदन के माध्यम से देश के भविऐय का विचार होगा। देश का भविऐय किस तरफ जाएगा और किसके आधार पर जाएगा, इसका विचार करने के लिए यह सदन सबसे उपयुक्त स्थान है और यह इसलिए है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में यह सदन सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व करता है। इस सदन में पूरे देश के प्रतिनिधि बैठते है और सारे देश की परिस्थितियों का ध्यान रखते हैं। पूरे देश के कोने-कोन में अनेक प्रकार की परिस्थितियां जनसंख्या की दृऐिट से उत्पन्न होती हैं।  

          मैं समझता हूँ कि जब सदन में पूरे देश के प्रतिनिधि बैठते हैं, देश के कोने-कोने में जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं, खासकरके जनसंख्या की दृऐिट से भारत के सामाजिक जीवन पर, भारत के राऐट्रीय जीवन पर, भारत के आर्थिक जीवन पर, भारत के सांस्कृतिक जीवन पर इसके विभिन्न पहलू आज किसी न किसी रूप में प्रभावित हो रहे हैं, उनमें जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। इसलिए इसे अनदेखा छोड़ना या इस पर विचार न करना, मैं समझता हूँ कि कहीं न कहीं हमारी हालात उस शुतुरमुर्ग की तरह होगी, जो शिकारी को देखकर अपने मस्तिऐक को बालू के अंदर घुंसा लेता है और यह मान लेता है कि शत्रु दिखायी नहीं देता, तो शत्रु तो है ही नहीं। लेकिन, शिकारी आता है, शुतुरमुर्ग का मस्तिऐक बालू में घुंसा होता है, लेकिन उसका तन बाहर होता है, इसलिए उसे पकड़ लिया जाता है और उसका शिकार हो जाता है।

          मुझे लगता है कि जनसंख्या के मामले में हमने अनदेखी की या उससे आँख मूँदने की कोशिश की, तो हमारी हालत भविऐय में उसी शुतुरमुर्ग की तरह हो जाएगी कि देश कोहराम में फंस जाएगा और हम बाद में कुछ करने लायक नहीं रहेंगे। जब इतनी बड़ी संख्या में सोचने वाले सदस्यगण सदन में हों, जब राजतंत्र था, तो एक मात्र राजा ही सभी नीतियों का निर्धारण करता था, तब भी कई कठोर निर्णय लिये जाते थे। भले ही कार्य मंत्रिपरिऐाद् करती होगी, लेकिन जिम्मेदारी राजा की होती थी। जब देश में संविधान के तहत लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई है, तो आज सामूहिक जिम्मेदारी लेते हुए, हिन्दुस्तान के प्रत्येक जनप्रतिनिधि को, खासकरके संसद में में आने वाले जनप्रतिनिधियों को, देश में भविऐय के इस आने वाले खतरे से मुकाबला करने का और समय रहते उसे समाप्त कर देने का निर्णय लेने का समय आ गया है।

          एक बड़ी विचित्र स्थिति है। जैसा कि मैंने कहा कि जनसंख्या-वृद्धि पर विचार करने के अनेक आयाम हैं। किन्तु दुखद स्थिति इसलिए होती है क्योंकि इस पर विचार करने का प्रारम्भ इसलिए नहीं होता है क्योंकि हिन्दुस्तान की जनसंख्या को साप्रदायिक नज़रिये से देखा जाता है। जब राऐट्रीय समस्याओं को साप्रदायिक नज़रिये से देखा जाएगा, तो उसके यथार्थ तक पहुँचने में ईमानदारी नहीं बरती जा सकती है। यदि ईमानदारी से राऐट्रीय समस्याओं पर विचार करना, विशेऐाकर जनसंख्या-वृद्धि से आने वाले संकटों पर विचार करना है, तो हमें साप्रदायिक नज़रिये से नहीं, बल्कि ‘एक देश एक जन’, पूरा हिन्दुस्तान एक परिवार है, के रूप में और इस नज़रिये से इस पर विचार करने की जरूरत है और मैं उसी रूप में इसको रखना चाहता हूँ।

          हमारी संस्कृति विविधताओं की है। हमारी संस्कृति में सभी प्रकार के सप्रदायों का, सभी प्रकार के जीवन जीने वाले लोगों का, आस्तिक का, नास्तिक का समावेश है, इसमें सबको स्थान मिला है। इसलिए जब भारत में जनसंख्या पर विचार होता है, तो उसे साप्रदायिक नज़रिये से न देखा जाए। यह मेरी विनम्र प्रार्थना इस सदन के माध्यम से सदन के सदस्यों से है और देश की जनता से भी है।

          अभी हमारे प्रस्तावक महोदय ने अनेक आँकड़े दिये। मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि हमने उस दर्शन को और उस सिद्धांत को स्वीकार किया है, जिसमें काल और परिस्थिति के अनुसार विचारों में परिवर्तन होता है। जो विदेशी चीज़ें देशानुकूल न हों, उनका त्याग करना चाहिए। हमें उन चीज़ों को स्वीकार नहीं करना चाहिए। कई विदेशी चीज़ें ऐसी हैं, जो देशानुकूल हैं। हमें उन पर विचार कर के उन्हें अपनाना चाहिए। अपने देश में भी ऐसे नियम-कानून और परंपरायें होनी चाहिए। जो चीज़ें काल-परिस्थिति के अनुसार पुरानी हो गई हैं और उपयोग में नहीं हैं, उनको छोड़ देना चाहिए। अपने देश की परंपराओं में नये और युगानुकूल विचार लाने चाहिए। इस प्रकार हमें विदेशों से देशानुकूल और अपने देश से युगानुकूल विचार अपनाने चाहिए।

          मुझे लगता है कि ये सभी विचार और यह पूरा विऐाय बहुत ही गंभीर है। हम सब इस पर आज विचार करने के लिए इस सदन में उपस्थित हैं। इसको इसी रूप में देखा जाना चाहिए। भारत कृऐिा प्रधान देश है। कृऐिा प्रधान देश में जनसंख्या बढ़ सकती है, लेकिन भूमि नहीं बढ़ सकती है। कृऐिा के लिए भूमि की आवश्यकता होती है।

          देश की जनसंख्या में लगातार हो रही वृद्धि के अनुसार भूमि का विस्तार नहीं किया जा सकता है। अब शायद वह राजतंत्र भी नहीं है कि यदि कभी हमें जमीन की आवश्यकता पड़ जाए, तो हम किसी दूसरे राज्य पर आक्रमण कर के वहाँ की ज़मीन पर कब्जा कर लें।

          राऐट्रीय संविधान के साथ-साथ अंतर्राऐट्रीय प्रावधान भी अब हमारे सामने आए हैं। दुनिया के अंदर अंतर्राऐट्रीय कानूनों, अंतर्राऐट्रीय परंपराओं और संबंधों के बीच हमें चलना पड़ रहा है। कुछ ऐसे देश हैं, जहाँ के शासक अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरे देशों पर आक्रमण करने की कोशिश करते रहते हैं, भले ही वे इन कोशिशों में कामयाब न हो पाएंं। जैसे कभी-कभी पाकिस्तान हिन्दुस्तान की ओर नज़रिया रखता है।

          चीन कभी-कभी अपने देशवासियों को अपनी मौलिक समस्याओं से बरगलाने के लिए हिन्दुस्तान की तरफ कदम बढ़ाता है।  आज की तारीख में यह संभव नहीं है कि किसी देश को कोई दूसरा देश या किसी राज्य को कोई दूसरा राज्य हड़प कर अपनी जनसंख्या का भार वहन करने के लिए अपनी भूमि का विस्तार कर ले।

          सभापति महोदय, मैं आपके समक्ष इस दुनिया के कुछ देशों में भूमि के भार का एक छोटा सा उदाहरण रखना चाहूँगा। पोलैण्ड ऐसा देश है, जहाँ 100 एकड़ जमीन पर 31 व्यक्तियों का भार है। इसी प्रकार चेकोस्लोवाकिया में 100 एकड़ जमीन पर 24 व्यक्तियों का भार है। हंगरी और रोमानिया में 100 एकड़ जमीन पर 30 व्यक्तियों का भार है। युगोस्लाविया में व्यक्तियों की संख्या 42 है और इंग्लैण्ड में 100 एकड़ जमीन पर 6 व्यक्तियों का भार है। इन पूरे आंकड़ों के हिसाब से भारत की क्या हालत है? भारत की हालत यह है कि यहाँ 100 एकड़ जमीन पर 148 व्यक्तियों का भार है, यानी हमारे यहाँ एक व्यक्ति को एक एकड़ ज़मीन भी उपलब्ध नहीं है। यदि जनसंख्या में इसी प्रकार से वृद्धि होती रही, तो भविऐय में भी एक व्यक्ति को एक एकड़ ज़मीन भी उपलब्ध नहीं हो सकेगी, जिसका आँकड़ा हमारे प्रस्तावक महोदय यहाँ दे रहे थे। शायद किसी व्यक्ति के हिस्से में 20-25 डिसमिल ज़मीन भी नहीं पड़ेगी।

          यह स्थिति तब है जब जनसंख्या के आधार पर भारत के पूरे क्षेत्रफल को विभाजित कर के देखा गया है। कृऐिा योग्य ज़मीन अलग है। उसमें शायद प्रति व्यक्ति इससे कम हिस्सा निकलेगा। ऐसी हालत में भारत की अर्थव्यवस्था का क्या होगा? जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। खेती योग्य ज़मीन जहाँ की तहाँ है। कम ज़मीन पर अधिक उत्पादन के लिए रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है। आज खेती में अधिक उत्पादन वाले बीज इस्तेमाल किए जा रहे हैं। हमारे जितने पारंपरिक बीज हैं, वे समाप्त कर दिए गए हैं। रासायनिक खाद्य और दवाओं का उपयोग कर के फसलों और सब्जियों के उत्पादन को जिस प्रकार बढ़ाया जा रहा है, उसके बाद उस अनाज और सब्जी को खाने के बाद जैसे असाध्य रोगों की भरमार आज हमारे देश में आई है, हम पहले उसकी कल्पना नहीं कर सकते थे। 

          बचपन में हम लोग सुनते थे कि कभी कोई कैंसर का रोगी हो गया है। लेकिन आज हर गांव में दो-चार कैंसर के रोगी मिल रहे हैं। यह गाथा कभी पंजाब में बहुत ज्यादा थी, लेकिन अब झारखण्ड जैसे जंगल वाले प्रदेश में भी इस प्रकार की परिस्थिति देखी जा रही है। आखिर जनसंख्या का नियंत्रण क्यों नहीं हो सकता है? हम जनसंख्या नियंत्रण क्यों नहीं कर सकते? भारत की धरती पर रहने वाले व्यक्ति को समान नज़रिए से क्यों नहीं देखा जा सकता है? यह प्रश्न कई बार शायद इसीलिए सामने आता है कि समान अधिकार कानून भारतवऐाऩ में क्यों लागू नहीं हो सकता है? भारत के सभी नागरिकों को समान अधिकार क्यों नहीं मिल सकते हैं? हिन्दुस्तान में पहले यदि कभी युद्ध होता था और उसमें सैनिक मारे जाते थे तो विधवाएंं बढ़ जाती थीं, बहनों को सहारा चाहिए होता था तो किसी ने यह फतवा दे दिया, कानून बना दिया  कि कोई आदमी तीन शादी कर सकता है, लेकिन आज वैसी परिस्थिति नहीं है। आज यह परिस्थिति है कि जितने बेटे जन्म लें, उतनी बेटियां भी हों। दो-चार परसेंट का रेश्यो भी गड़बड़ होता है तो हम यह कहते हैं कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। यह हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी का आह्वान है। फिर किसी के जिम्मे चार-चार बेटियां क्यों लगा दी जाएंं, इसलिए कि वह उनका शारीरिक शोऐाण करे। भारत की संस्कृति है कि हम नारी को मातृ स्वरूप में देखते हैं। हम नारी को शक्ति स्वरूप देखते हैं, वह जननी है, वह भोग की वस्तु नहीं है। हम उसके साथ दरिंदों का व्यवहार नहीं कर सकते हैं, उनके साथ अमानवीय व्यवहार नहीं कर सकते हैं। माता का स्थान कोई नहीं ले सकता है, इसलिए नारी को माता रहने दो। उसके साथ हमारा नजरिया गलत हो जाए, यह गलत होगा।

          महोदय, मैं आपके माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि आज इस प्रकार की धारणा भी किसी समाज या धर्म में है तो वह काल और परिस्थिति के अनुसार पुराना पड़ चुका है, जिसे अब बदलना चाहिए। पाकिस्तान में यदि जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बन सकता है, चेकोस्लोवाकिया में यदि जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बन सकता है, ईरान में जनसंख्या नियंत्रण पर यदि कानून बन सकता है और ये सभी इस्लामिक देश हैं। लेकिन हिन्दुस्तान में ऐसी बातों को साप्रदायिक नजरों से क्यों देखा जाता है? ऐसा नहीं होना चाहिए और यदि ऐसा होता है तो इसकी कोई न कोई वजह होगी। वजह यह है कि जनसंख्या बढ़ोतरी के पीछे कोई गलत नीयत तो नहीं है। नीयत यदि गलत है तो नीति के माध्यम से उस नीयत को रोकना पड़ेगा। नीति कमजोर भी हो जाए, लेकिन नीयत यदि साफ हो तो समस्या उत्पन्न नहीं होती है। लेकिन यदि नीयत खराब हो तो नीति को भी तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है। इसलिए सख्त नीति ही गलत नीयत को ठीक कर सकती है। मुझे लगता है कि भारत में जनसंख्या नियंत्रण पर रोक लगाने की सोच में जो ढीलापन है, उसमें जो कमजोरियां हैं, लोगों को मुंह चुराने की जो आदत है, स्पऐट बोलने की या सच बोलने की जो हिम्मत नहीं हो रही है, उसके पीछे राजनैतिक कारण हैं। मुझे नीयत पर शक है। इसलिए मैं इस सभा से दरख्वास्त करना चाहूंगा कि इस देश को ऐसी नीयत से बचाएंं जो हिन्दुस्तान के भविऐय को खतरे में डाल सकता है, हिन्दुस्तान के भविऐय को चिंतनीय बना सकता है।

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हम गांवों में जाते हैं, क्या बेरोजगारी का आलम है। बच्चे पैदा किये, रोड पर छोड़ दिये। क्या यह मानवीय व्यवहार है? मैं यह मानता हूं कि बच्चे किसी व्यक्ति की औलाद नहीं होते, जो बच्चे पैदा होते हैं, वह ऊपर वाले की मेहरबानी होती है। हर मां-बाप, शादीशुदा जोड़ा चाहे जितने बच्चे पैदा कर ले, वह ऐसा नहीं कर सकता। बहुत से लोग शादी करने के बाद दर-दर की ठोकरें खाते हैं, मंदिरों में माथा टेकते हैं, लेकिन ऊपर वाले के नियम को यदि तुम गलत तरीके से पेश करोगे, ऊपर वाले के वरदान को, ऊपर वाले की देन को, उसके वरदान को यदि अभिशाप बनाने की कोशिश इंसान करेगा तो वह अभिशाप जानलेवा हो सकता है, जैसे रावण का हुआ, कौरवों का हुआ। हम नियंत्रित परिवार नहीं, संतुलित परिवार चाहते थे, संयमित परिवार चाहते थे। जो सोचने-समझने वाले होते थे, हमारे देश के समाज का विचार करने वाले देश की संस्कृति और इतिहास में होते थे, वे अपना परिवार संतुलित रखते थे, संयमित रखते थे। चूंकि वे जानते थे कि यदि हम परिवार के अंदर अत्यधिक जनसंख्या बढ़ायेंगे तो कलह बढ़ेगी और वह परिवार के नाश का कारण बनेगा। कौरवों के साथ यही था, माता-पिता ने विचार नहीं किया, संख्या बढ़ा दी, उन्हें लगा कि हमारा राज्य छोटा है, अब भाई का राज छीन लो, यही उनके नाश का कारण बना। भारतीय दर्शन, भारतीय संस्कृति और भारतीय मान्यताओं को जो लोग समझ नहीं सकते, ऊपर वाले के वरदान को जो अभिशाप बनाना चाहते हैं, वैसे खतरनाक इरादों को हम जनता-जनार्दन का प्रतिनिधित्व करने वाला, अर्थात् हम जनता को जनार्दन मानते हैं और जनार्दन का जो प्रतिनिधित्व करता है, वह किसी न किसी रूप में देववंशी होता है। यहां जो लोग बैठे हैं, सदन में जो विचार होता है, वह उसी उच्च मानसिकता के साथ, उसी गंभीरता के साथ, उसी संवेदनशीलता के साथ होना चाहिए।

          मैं आपसे इतनी ही प्रार्थना करना चाहता हूं कि यह जो प्रस्ताव आया है, मेरे मन में भी बहुत दिनों से ऐसी इच्छा थी। मैं प्रस्तावक महोदय का बहुत अभिनंदन करता हूं कि उन्होंने भारत के ऐसे ज्वलंत मुद्दे को सामने रखा है और मुझे पूरा विश्वास है कि सरकार इस पर बहुत संजीदा होकर विचार करेगी। हम सिर्फ तकनीकी कारणों में नहीं जायेंगे। गर्भ निरोधक दवाएंं, गर्भ निरोधक उपकरण लोगों को शिक्षा देकर उनके अंदर जागृति लाने का प्रचलन एक कोशिश हो सकती है। सोये हुए आदमी को जगाया जा सकता है, लेकिन जो जगा हुआ आदमी सोने का नाटक करे, उसे आप कैसे जगायेंगे। जनसंख्या वृद्धि के लिए ही अपने व्यक्तिगत जीवन में हमसे भूल न हो जाए, यदि यह एहसास उसके मन में होगा, तब वह इन उपकरणों का उपयोग करेगा। लेकिन यदि नीयत ही खराब है, यदि किसी ने नारी को प्रजनन की मशीन समझ रखा है, किसी ने नारी को अपने इरादों की पूर्ति के लिए साधन मात्र समझ लिया है, सृऐिट के रचयिता के जो दो माध्यम स्त्राळ और पुरुऐा हैं, उन्हें मानवीय मूल्यों से दरकिनार करके अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए अपने इरादों की पूर्ति के लिए यदि कोई उसे संसाधन बनाने की कोशिश करता है तो इन उपकरणों से उसकी मानसिकता को रोका नहीं जा सकता।

गलत मानसिकता से जनसंख्या वृद्धि करने वाले इस देश में अधिक हैं। कोई दूसरा बच्चा पैदा करने जा रहा है और अचानक प्रभू ने एक साथ ही जुड़वां बेटा दे दिया तो वह कुछ नहीं कर सकता है तो कठिनाई हो जाएगी, जो प्रस्तावक महोदय ने हमारे लिए यह विऐाय रखा है, उसके सामने हो जाएगी। परंतु इसका सर्टिफिकेट मिलेगा। लेकिन जिसके इरादे ही गलत हों, भीख माँग कर के भी समस्या पैदा करने की जिसकी मानसिकता हो जाए, और खास कर इस देश की अर्थव्यवस्था हमें ठीक करनी है सदन को ठीक करनी है तो हमें कठोर नीति की ओर अपने को आगे बढ़ाना चाहिए। क्योंकि इस देश की अर्थव्यवस्था, अभी अमरीका की जनसंख्या कम है, वह दुनिया का सबसे अधिक ताकतवर देश है और क्षेत्रफल हमसे नौ गुना अधिक है। किसी भी देश की सामरिक शक्ति के लिए आज जनसंख्या जरूरी नहीं है। आधुनिक तकनीक में जिस प्रकार से अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग हो रहा है, जमीनी युद्ध से ले कर आसमानी युद्ध तक, परमाणु युद्ध तक जिस प्रकार के अविऐकार हो रहे हैं, हमारे देश में आदरणीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने अपने शासन काल में पोखरण में परमाणु परीक्षण कर के यह सिद्ध कर दिया कि हिन्दुस्तान की ओर अब कोई अंगुली उठा कर देख नहीं सकता है। उसकी आँखें देखने लायक नहीं रहने दी जाएंंगी यदि भारत की तरफ कोशिश की तो अब भारत को जनसंख्या की जरूरत, जरूरत से ज्यादा नहीं है। हम सामरिक रूप से इतने ताकतवर हैं कि थोड़ी संख्या कम कर के भी भारत की सामरिक शक्ति को बढ़ा सकते हैं, बल्कि अभी यदि आर्थिक प्रगति होगी और हमारी जनसंख्या पर उसके खर्च कम होंगे तो उसको बचा कर हम सामरिक शक्ति बढ़ा सकते हैं, हम अपने दैनिक जीवन के उपयोग की क्षमता को बढ़ा सकते हैं। उससे इस देश में जो सम्पन्नता आएगी, जो खुशहाली आएगी, लोगों में सोचने और विचारने का जो विकास होगा, उस पर हमें भरोसा करना चाहिए।

          सभापति महोदय, मैं एक आग्रह और करना चाहता हूँ। हर देश की अपनी भौगोलिक और जो प्राकृतिक संरचना है, उसका एक गुण होता है, भारत की जो भौगोलिक संरचना है और भारत की जिस प्रकार की रचना सृऐिट ने की है, उसमें ठण्डा भी है, गर्मी भी है, समशीतोऐण जलवायु भी है, पहाड़ भी है, समुद्र भी है, अलग-अलग क्षेत्रों में उत्पादन के लिए अलग-अलग प्रकार की जमीनें भी हैं। हमारा पूरा भारतवऐाऩ भौगोलिक दृऐिट से भी विभिन्नताओं का कुंज है और इसलिए इसको उसी रूप में विकसित करने की जरूरत है। हम आज भारत की जो रचना है, उसके अनुसार इसके विकास की चिंता नहीं कर के अलग-अलग क्षेत्रों में जनसंख्या के दबाव और प्रभाव के अनुसार विचार करने की कोशिश कर रहे हैं। मेरा अनुरोध होगा कि हम भारत के जो सांस्कृतिक मूल्य हैं, उन पर विचार करें। यहां पर शरीर की और शरीर की गिनती पर विचार करने वाले लोग जनसंख्या को देख रहे हैं। इसलिए लगता है कि अधिक जनसंख्या होगी, तभी हमारी ताकत अधिक दिखेगी। लेकिन कहीं न कहीं हमारे देश का जो आत्मिक विकास होना चाहिए था, मानसिक विकास होना चाहिए था, जो हमारे दर्शन और संस्कृति में हैं, उसका सही प्रचार नहीं होने के कारण लोग मानसिक विकृति का शिकार हो रहे हैं।    

इस देश के सांस्कृतिक मूल्यों का सही अध्ययन/अध्यापन, पारिवारिक जीवन के प्रति सोच की दिशा, राऐट्र जीवन के प्रति सोच की दिशा, सामाजिक सम्बन्धों के ऊपर सोच की दिशा, जिसने कभी जन्म से मातृ रूप नारी का सुना ही नहीं, वह स्वीकार कैसे करेगा। यदि हम बताएंंगे नहीं, तो कोई जानेगा कैसे, तो कहीं न कहीं एक ऐसी अज्ञानता है, मैं फिजिक्स, कैमेस्ट्री, मैथमैटिक्स की अज्ञानता की बात नहीं कर रहा हूँ, सोच और शोध की अज्ञानता, दिशा की अज्ञानता, जो दर्शन है, उसकी अज्ञानता के कारण भी भारत में रहकर भी हम भारत को पहचानने की कोशिश नहीं कर पाते हैं। मेरी आपसे प्रार्थना है, आने वाले दिनों में माननीय मंत्री जी और सरकार से भी प्रार्थना है कि जिस प्रकार से विकृत सोच देश में आगे बढ़ रही है, उसमें सही सोच आगे बढ़े, इसके लिए भारतीय सोच, भारतीय दर्शन का प्रचार हो। उसमें स्त्राळ-पुरूऐा के सम्बन्ध का, स्त्राळ-पुरूऐा का सामाजिक, पारिवारिक जो जीवन है, उसके दायित्वों से भी कहीं न कहीं व्यापक रूप से प्रशिक्षित करने की जरूरत है। इस बात का असर दूरगामी साबित होगा।

तत्काल के लिए तो मैं यह जरूर कहना चाहूँगा कि भारत को इस ज्वलंत समस्या से बचाने के लिए, इस देश की अर्थव्यवस्था और पंगु न हो, हम सबका साथ-सबका विकास चाहते हैं। इस लक्ष्य की पूर्ति करने के लिए जो अनियत्रित जनसंख्या की वृद्धि है, उसे संयमित करने की सोच यदि विकसित नहीं होती है, तो कठोर नियम बनाकर के सभी की बाध्यता होनी चाहिए। जो दो बच्चे से अधिक उत्पन्न करता है, उसे सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं से वंचित करना चाहिए। उत्पन्न करने वाले व्यक्ति को, परिवार को, पति-पत्नी को और जो उत्पन्न होने वाला है, उसे सरकारी सुविधाओं से वंचित करना चाहिए, हालांकि उसका दोऐा नहीं होगा, लेकिन उसको यह अहसास होना चाहिए कि मेरे गैर जिम्मेदार पिता ने हमारे जीवन के भविऐय के बारे में विचार नहीं किया। उसके बाद यदि वह संयमित रास्ते पर चलता है तो उसके बच्चे को लाभ मिले, लेकिन एक पुश्त को तो सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देना चाहिए। जो जनसंख्या वृद्धि के नियम को तोड़ता है और उस तोड़े हुए नियम से जो उत्पन्न होता है, इन दो पीढ़िओं को इस बात का अहसास होना चाहिए। उसके साथ मानवीय दृऐिटकोण से विचार हो, यह अलग बात है, लेकिन सरकारी सुविधाओं से उनको वंचित किए बिना शायद उन्हें यह अहसास नहीं होगा कि हम गलत कर रहे हैं। यह देश हित में आवश्यक है और हम देश को सबसे आगे मानते हैं, व्यक्ति को सबसे पीछे। देश के लिए जब हम विचार करते हैं, उसको प्राथमिकता में रखकर हम विचार करें और जनसंख्या नियंत्रण को, जिसको हमारे प्रस्तावक महोदय ने विस्फोट कहा है, वास्तव में यह खतरे का शायद सही प्रयोग है, उसे हम जरूर विस्फोट होने से पहले रोकने का काम करें। मैं यह समझता हूँ कि आज जो हमारी सरकार है, वह राऐट्रीय सोच के साथ चलने वाली सरकार है। यह सरकार, जो सदन के माध्यम से पूरे देश भर में एक सहमति बनने का रास्ता खुलने वाला है, उसका उपयोग करेगी और जनसंख्या नियंत्रण पर एक सकारात्मक कठोर कदम उठाएगी। बहुत-बहुत धन्यवाद। भारत माता की जय।


श्री निशिकान्त दुबे (गोड्डा) : सभापति महोदय, धन्यवाद।

          महोदय, मैं अपने सहयोगी श्री राघव लखनपाल द्वारा लाए गए प्रस्ताव ‘जनसंख्या विस्फोट’ पर और उससे होने वाली घटनाओं पर उनके सुझाव के समर्थन में बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं।

          सभापति महोदय, लखनपाल साहब ने जो कहा, उसमें उन्होंने कई बातों का ज़िक्र किया। खासकर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जो उनका इलाका है और सहारनपुर, जहां से वे सांसद बन कर आए हैं और उसके आस-पास मुज़फ्फ़रनगर में क्या हो रहा है, बागपत में क्या हो रहा है, या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जो और भी जिले हैं, उनके बारे में उन्होंने एक दृऐिट डाली है। दूसरी दृऐिट, जो इस देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है कि असम में क्या हो रहा है, बंगाल में क्या हो रहा है, बिहार में क्या हो रहा है और मेरे राज्य झारखण्ड में क्या हो रहा है। यह जो जनसंख्या विस्फोट है, इसके कई प्रकार हैं। इसके बहुत आयाम हैं। एक आयाम यह है, जिसके बारे में राघव लखनपाल साहब ने कहा कि एक समुदाय विशेऐा इन चीज़ों को नहीं मान रहा है। वह यह सोचता है कि जनसंख्या आगे बढ़ाना उनका परम कर्तव्य है। इसको रोकने के लिए क्या हो सकता है? दूसरा, पूरे देश में यह कहीं-न-कहीं भावना है कि लोगों की बेटों के प्रति जो ललक है, सेक्स डिटर्मिनेशन की जो ललक है, वह भी जनसंख्या को बढ़ाता है कि यदि बेटा नहीं होगा तो खानदान कैसे बढ़ेगा। इसका मतलब कि दो बच्चों का कॉन्सेप्ट यहां धराशायी हो जाता है। तीसरा, पूरी-की-पूरी डेमोग्राफी को आपके यहां कम, लेकिन जो पूरे देश की डेमोग्राफी को बदल रहा है, वह है माइग्रेशन। बांग्लादेश से घुसपैठिए आ रहे हैं, इल्लीगल इम्मीग्रैंट्स हैं। इस तरह, तीन प्रकार की समस्याएंं हैं, जो जनसंख्या को बढ़ावा दे रही हैं और उसके लिए भारत सरकार को एक कॉप्रीहैन्सिव नीति बनाने की आवश्यकता है।

          यह जो पूरा प्रस्ताव है और उस प्रस्ताव में जो चीजें हैं कि जैसे ही जनसंख्या बढ़ती है तो एक बात यह होती है, जिसमें हम कहते हैं कि भारत एक ऐसे देश के रूप में बन रहा है, जिसमें युवा बहुत ज्यादा बढ़ रहे हैं। जिसे हम डेमोग्राफिक डिविडेंड कहते हैं। हम कहते हैं कि हमारे यहां यूथ्स की इतनी फोर्स पैदा हो रही है कि दुनिया में हम कैसे आगे बढ़ेंगे, अपने देश को कैसे आगे बढ़ाएंंगे, वह एक सवाल उठता है। दूसरा सवाल यह है कि उसके साथ जो दूसरा रिपरकशन है कि जितने यूथ बढ़ रहे हैं, उतने ही लोग बूढ़े हो रहे हैं तो बूढ़ों के प्रति हम क्या करें? तीसरा सवाल यह है कि हम बच्चों के प्रति क्या करें? इस पॉपुलेशन ग्रोथ से जो मायने निकलते हैं, वे तीन तरह के हैं।

          सभापति महोदय, मैं आपके माध्यम से माननीय मंत्री जी को इतिहास में ले जाना चाहता हूं। भारत में वऐाऩ 1920-30 में पूना और बैंगलोर में एक प्रोसेस स्टार्ट हुआ कि पॉपुलेशन की सर्वे की जाए और पॉपुलेशन को कैसे स्थायी बनाएंंगे, इस बारे में आज़ादी के पहले, वऐाऩ 1920-30 में पूना और बैंगलोर, इन दो शहरों का चुनाव किया गया। जब उसकी रिपोर्ट आ गई तो तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने वऐाऩ 1940 में एक कमेटी बनाई। उस कमेटी का नाम था ‘भोर कमेटी।’ एक सर्वे करने के बाद भोर कमेटी ने एक सब कमेटी बनाई -‘नेशनल प्लानिंग कमेटी ऑफ पॉपुलेशन।’ लेडी धनवती रामा राव पॉपुलेशन के क्षेत्र में काम करने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी थीं। उन्होंने वऐाऩ 1949 में भारत सरकार को एक सजेशन दिया कि अब यह भारत देश आज़ाद हो गया है और हमें किस तरह से इस पॉपुलेशन के बारे में चिंता करनी चाहिए और किस तरह की कमेटी होनी चाहिए। मैं इस बात का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं कि यह देश बड़ा खूबसूरत देश है और यहां हम और आप मंत्री बन जाते हैं, लेकिन मान लीजिए कि अगर किसी पॉलिटीशियन को कहीं कोई रोज़गार नहीं मिल रहा है, तो वह एक कमेटी का चेयरमैन बन जाता है, अगर किसी ब्यूरोक्रैट को रिटायरमेंट के बाद कोई रोज़गार नहीं मिल रहा हो तो वह एक कमेटी का चेयरमैन बन जाता है। कमेटी पर कमेटी बनती रहती है; जैसे हम कोर्ट केस के बारे में कहते हैं कि तारीख पर तारीख, तारीख पर तारीख और वह तारीख कभी खत्म नहीं होती है। मंत्री महोदय, मैं उसकी पूरी लिस्ट बताना चाहता हूँ कि इसके बाद हम क्या कर सकते हैं।

जैसा मैंने बताया कि वऐाऩ 1940 की जो सब‑कमेटी थी, उसने इंडियन नेशनल काँग्रेस को एक रिपोर्ट दी और रिपोर्ट के बाद उस वक्त जो काँग्रेस कमेटी थी, मैं इसलिए ज़िक्र करता हूँ कि उस वक्त कोई पोलिटिकल पार्टी नहीं थी। सारे लोग आज़ादी के मूवमेंट में थे, चाहे वे नेशनलिस्ट फोर्सेस थे, चाहे कम्युनिस्ट फोर्सेस थे, चाहे वे सेकुलर फोर्सेस थे, चाहे वह गरम दल था, नरम दल था और चाहे वह विश्व हिन्दू परिऐाद की फोर्सेस थी, वे सारी फोर्सेस जो हैं; वे आज़ादी के आंदोलन में एक साथ काम करती थी। इसलिए, काँग्रेस एक पार्टी थी और उन्होंने जो एक रेज़ोलूशन लिया कि जब हमारी सरकारी बनेगी तो हम इस तरह से सब‑कमेटी के आधार पर काम करेंगे, जो कभी इम्प्लिमेंट नहीं था। इसके बाद, एक नई कमेटी वऐाऩ 1951 में बनी, जब पंचवऐाावय योजना स्टार्ट हुई थी, तो Population policy is essential to planning and family planning. वऐाऩ 1951 में एक ड्रॉफ्ट रिपोर्ट बनी। मैं केवल यह बता रहा हूँ कि कमेटियाँ बनती रहीं और उसका जो रीपर्कशन है, जब देश आजादी हुआ, तब हम 33 करोड़ पर थे, आज 130 करोड़ पर पहुँच गए हैं। यदि एक कमेटी का कोई भी चीज इम्प्लिमेंट होता तो शायद ऐसी स्थिति नहीं होती। इसके बाद, वऐाऩ 1952 में एक दूसरी कमेटी बनी, उसे फिर से प्लानिंग कमीशन ने ही बनाई और वह कमेटी थी, urgency of the problems of family planning and population control , उसके बाद वऐाऩ 1956 में प्लानिंग कमीशन ने इसी से जुड़ी हुई एक अन्य कमेटी भी बना दी  और उन्होंने कहा कि the Second Five Year Plan proposes expansion of family planning clinics in both rural and urban areas and recommended a more or less autonomous Central Family Planning Board with similar State level Boards.  यह वऐाऩ 1956 में हुआ। अभी यहाँ श्री राघव जी, श्री कमलेश पासवान साहब एवं श्री राकेश सिंह साहब बैठे हुए हैं, क्या हम लोगों के क्षेत्र में इस तरह का कोई बोर्ड है या किसी तरह की फैमिली प्लानिंग ट्रेनिंग है, जो अर्बन एरिया या रूरल एरिया में काम कर रहा है? यह वऐाऩ 1956 का है। इसके बाद, वऐाऩ 1959 में तमिलनाडु ने कैश ग्राँट स्टार्ट किया। यहाँ तमिलनाडु के भी हमारे सांसद बैठे हुए हैं। They gave compensation to poor persons for undergoing sterilisation.  तमिलनाडु के उस एक्सपेरिमेंट को आगे बढ़ाते हुए, भारत सरकार ने वऐाऩ 1959 में थर्ड फाइव ईयर प्लान में कंपन्सेशन देना स्टार्ट किया। वऐाऩ 1961 से लेकर अब वऐाऩ 2017 में, लगभग 56 साल के बाद क्या लगता है कि कंपन्सेशन देने से कोई फायदा हो पाएगा?

          मैं केवल सदन, देश और मंत्री जी के संज्ञान में इन चीजों को लाना चाहता हूँ। इसके बाद, वऐाऩ 1963 में the Director of Family Planning proposed a shift from the clinic approach to a community extension approach to be implemented by auxiliary nurses, mid-wives at a ratio of one per 10,000 persons located in PHCs. Other proposals included a goal of lowering the birth rate from an estimated 40 to 25 by 1973 and to 10 by 1980.  यह वऐाऩ 1963 का रिपोर्ट है, क्या यह हो पाया? इसके बाद, वऐाऩ 1965 में हम लोगों ने एक अन्य एक्शन स्टार्ट किया, उसका था; Uterine device was devised in the Indian family planning programme.  मंत्री जी, उस प्रोग्राम की क्या हालत है?  मेरे कहने का मतलब है कि जब आप जवाब देंगे तो उस समय इन सारे चीजों का यदि उत्तर मिल जाएगा, तो सही रहेगा। इसके बाद, वऐाऩ 1966 में a full fledged Department of Family Planning was set up in the Ministry of Health, and condoms began to be distributed through the established channels of leading distributors of consumer goods.  यह वऐाऩ 1966 में स्टार्ट हुआ, क्या आज भी हम ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को इन चीजों के लिए जागरूक कर पाए हैं? 51 साल हो गए, वऐाऩ 1966 से। इसके बाद वऐाऩ 1972 में एक लॉ आया; डॉ. महेश शर्मा साहब, चूँकि आपको इन सारी चीजों के बारे में जानकारी है, एक लिबरल लॉ permitting abortion on grounds of health, humanitarian and eugenic considerations came into force.      क्या यह हो पाता है? कितने लोग आते हैं? आपका तो पूरा एस्टैब्लिशमेंट ही है। यह 1972 से लागू है। गांव के लोगों को आज भी यह पता है। हम उनको शिक्षा दे पाए हैं, उनको अवेयरनेस दे पाए हैं।

कानून पर कानून बना रहे हैं, ड्राफ्ट बना रहे हैं, पॉलिसी बना रहे हैं और इस तरह की विस्फोटक स्थिति हो गई है। 1976 में एक नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ ने 1971 के सेन्सस के बाद स्टार्ट की। उसमें कोई काम नहीं हुआ। 1977 में जब फिर से जनता पार्टी की सरकार आई तो उसने जो उसके लूप होल्स थे, उनको खत्म करके फिर से एक नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी 1977 में स्टार्ट की। इसके बाद 1982 में एक वर्किंग ग्रुप प्लानिंग कमीशन ने बनाया। वर्किंग ग्रुप ऑन पॉपुलेशन सेट अप बाई दि प्लानिंग कमीशन, 1978 का जो था, उसके आधार पर उन्होंने मार्टेलिटी रेट और एक्सपेक्टेंसी ऑफ बर्थ एंंड कपल प्रोटेक्शन रेट के बारे में एक वर्किंग ग्रुप बनाया और एक पॉलिसी देश में बनाई कि किस तरह से हम पॉपुलेशन कंट्रोल करेंगे। मैं केवल कह रहा हूं कि अभी तक कितने मीजर्स भारत सरकार ने लिए हैं और कितने फेल हुए हैं। उसके बाद 1983 में नेशनल हेल्थ पॉलिसी, 1993 में नेशनल डेवलपमेंट काउंसिल ने फिर से एक नेशनल हेल्थ पॉलिसी बनाई, 1994 में एक एक्सपर्ट कमेटी बनी और 1999 में जीओएम ने जो पॉलिसी बनाई, जिसका जिक्र मेरे मित्र राघव लखनपाल जी कर रहे थे कि वऐाऩ 2000 में वह नेशनल पॉपुलेशन पॉलिसी एडॉप्ट हुई, जो फरवरी, 2000 में एनाउंस हुई, जिसके बारे में आपने जिक्र किया। इतना सब होने के बाद आज क्या सिचुएशन है? हम इस तरह के सिस्टम में, इस तरह की चीजों में भारत सरकार से क्या अपेक्षा करते हैं या भारत सरकार क्या करेगी, इसके बारे में राघव लखनपाल साहब हमें यदि जवाब मिलेगा, तो हमें लगता है कि आप जो रेजोल्यूशन लेकर आए हैं, उसका एक बेनेफिट इस देश को मिलेगा।

          इसके कान्सिक्वेंसेज क्या हैं? आज क्वैश्चन था कि कई इनडैंजर्ड प्राणी हैं, स्पीसीज़ हैं, जो खत्म हो गईं। सबसे पहला जो प्रभाव पड़ता है किसी भी पॉपुलेशन का, वह एन्वायर्नमेंटल एंंड इकोलॉजिकल कान्सिक्वेंसेज है। आज पूरा का पूरा फॉरेस्ट, एक झारखण्ड राज्य को छोड़ दीजिए, तो सारे राज्य ऐसे हैं, जिनके फॉरेस्ट खत्म हो रहे हैं।

          वी.के. सिंह साहब बैठे हुए हैं। अभी मैंने सुखना का जिक्र किया कि इस देश में यदि सबसे ज्यादा यदि लैंड है तो वह डिफेंस के पास है। डिफेंस की लैंड पर एनक्रोचमेंट भी सबसे ज्यादा है। यदि 17 लाख एकड़ लैंड उनके पास है तो लगभग 6 हजार एकड़ लैंड ऐसी है, जो कि एनक्रोच्ड है। यह एनक्रोच्ड क्यों है, क्योंकि डिफेंस एस्टैब्लिशमेंट जब बने थे, तो वे शहर के बाहर बने थे। अब जब वे शहर के अन्दर आ गए तो सभी लोगों ने उनकी बैरेन लैंड को, क्योंकि कहीं डिमार्केशन नहीं है, कई चीजें हैं, जिनको हम सीएजी में लगातार देखते रहते हैं कि कई लैंड इनके पास ऐसी हैं, जिनका कोई कागज ही नहीं है, इनको पता ही नहीं है कि हमारी लैंड है और कब इन्होंने लैंड एक्वायर की थी। इस कारण से इल्लीगल आक्युपेशन होता है।

          यदि हम लोग शाम के समय में मुंबई जाएंं, तो हम वहां लैंड नहीं कर सकते हैं। वहां कम से कम एक-डेढ़ घंटे की वेटिंग है। यह वेटिंग किसलिए है, क्योंकि फ्लाइट की संख्या बढ़ गई, लोगों के जाने की संख्या बढ़ गई, लेकिन उनके पास एक ही रनवे है। दूसरा रनवे मुंबई के एयरपोर्ट पर नहीं बन सकता है। यह क्यों नहीं बन सकता, क्योंकि उनकी जो लैंड थी, उस लैंड को किन्हीं लोगों ने इल्लीगल कॉलोनी बना लिया। पॉलिटिक्स के कारण, हमारी-आपकी राजनीति के कारण, वोट बैंक की राजनीति के कारण हम उस झुग्गी-झोपड़ी को तोड़ना नहीं चाहते हैं, उसको डिसलोकेट नहीं करना चाहते हैं, इस कारण से यह समस्या यह हो रही है।

          दूसरा, जैसे डॉल्फिन मर रही हैं, तो डॉल्फिन क्यों मर रही है? मैं जिस इलाके से आता हूं और जो मेरा गांव है, बटेश्वर कहलगांव में जो डॉल्फिन है, वह संरक्षित है। गंगा की जो डॉल्फिन है, वह मेरे गांव में है। मैं प्रत्येक बार जब जाता हूं, तो एक, दो या तीन डॉल्फिन मुझे किनारे पर मरी हुई दिखाई देती हैं। ये इसलिए दिखाई देती हैं कि लोगों ने बिना प्लान के घर बना लिया है। जो एग्रीकल्चरल लैंड है, वह शिफ्ट हो गया है, कामर्शियल लैंड हो गए या मान लीजिए रेसीडेंशियल लैंड हो गए। यदि रेसीडेंशियल लैंड हो गए तो उनका सीवेज का पानी कहां जाएगा? चीजें कहां जाएंंगी, डीजल कहां जाएगा, पेट्रोल कहां जाएगा, गाड़ी धोएंंगे या क्या करेंगे? उनको किसी चीज के बारे में नहीं पता है। उसी तरह से पूरा फॉरेस्ट एरिया आप देखिए, पहले पक्षी साइबेरिया से आते थे, अब उनका आना कम हो गया, कई स्पेसिज हैं।

एक जमाने में उल्लू बहुत दिखाई देता था, आज आपको उल्लू नहीं दिखाई देगा। लोगों के पास रोजगार के साधन नहीं है तो वीरप्पन जैसे लोग पैदा हो जाते हैं, लोगों के पास रोजगार न होने से चम्बल घाटी जैसा एरिया डेवलप हो जाता है। जहां के लोग इस तरह की बातें करते हैं। बस्तर का पूरा एरिया नक्सलाइट का हो गया है, तिरूपति से लेकर पशुपति तक कॉरीडोर है। मेरा पूरा  इलाका नक्सल प्रभावित है। आपको पता है, यह फॉरेस्ट है, लेकिन वह फॉरेस्ट नहीं है, आज फॉरेस्ट के अंदर गांव है, गांव में लोग इलिगल रह रहे हैं, हमको अंदाजा नहीं है, इस कारण से समस्याएंं सामने आ रही हैं। सबसे बड़ा सवाल अरबनाइजेश का है, एक समय था, जब लोग शहर में नहीं रहना चाहते थे क्योंकि उनको लगता था कि उनको शुद्ध खाना नहीं मिलेगा, तेल, सब्जी और हरी सब्जी नहीं मिलेगी लेकिन आज पोपुलेशन ग्रोथ के कारण अरबनाइजेशन हो गया। अरबनाइजेशन की स्थिति क्या है? दस-दस के एक कमरे में कम से कम 20-20 लोग रहते हैं। गाजियाबाद में जनरल वी.के.िंसह इस समस्या को फेस करते होंगे। उनके पास बाथरूम नहीं है, उनको पीने का पानी हम नहीं दे पा रहे हैं, पोपुलेशन ग्रोथ के बाद जो दूसरी समस्या है वह अरबनाइजेशन है।

          मैं माननीय प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने अरबन इफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर खर्च करने का विचार किया और 100 स्मार्ट सिटी डेवलप करना है। इसके लिए पूरा का पूरा पैसा दे रहे हैं, प्लॉन दे रहे हैं। 100 सिटी से क्या होगा,  कुल 625 जिले हैं, हम लोग जितने भी सांसद हैं 625 जिले को रिप्रेजेंट करते हैं। आप अपने जिले में यह बताइए कि शहर में जो मकान बन रहा है वह लीगल है या इलीगल है। हम और आप उसे सपोर्ट करते हैं कि नहीं करते हैं। गांव के गांव शहर की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। उसके लिए न हम बिजली दे पा रहे हैं और न पानी दे पा रहे हैं, न रोड दे पा रहे हैं, न रोजगार की व्यवस्था कर पा रहे हैं न स्कूल खोल पा रहे हैं। यदि नहीं खोल पा रहे हैं तो जनसंख्या कंट्रोल कीजिए कि हम इतने लोगों का ही कर सकते हैं। तीसरा रूरल पोपुलेशन का विकास है। हमें समझ में आता है कि अरबन पोपुलेशन है और इस पॉकेट में ज्यादा वोट है या रूरल इफ्रास्ट्रक्चर को खर्च करने में ज्यादा पैसा लगता है।

          माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी के कारण प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का एक चेहरा दिखाई देता है, आज 500 की आबादी का रोड कनेक्ट हो गया है। मेरे यहां यह 100 से ऊपर की आबादी का है क्योंकि नक्सल प्रभावित जिले हैं। कल वित्त मंत्री जी ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि वऐाऩ 2025 में 500 की आबादी को सड़क से कनेक्ट करना है उसे 2019 में ही करना है इस कारण से मैक्सिमम पैसा दे रहे हैं। लेकिन रूरल पोपुलेशन के लिए हम क्या सिच्युएशन क्रिएट कर रहे हैं। वहां रोजगार के साधन नहीं हैं, वहां बढ़िया रोड नहीं है, हमने स्कूल की बिल्डिंग बढ़िया बना दी लेकिन वहां टीचर नहीं है, सीएससी और पीएससी हॉस्पीटल हैं लेकिन वहां डॉक्टर नहीं हैं। कई बिल्डिंग ऐसी हैं जहां आपने मदर चाइल्ड केयर का हॉस्पीटल बना दिया है। ऐसा कई स्टेटों में है। स्टेट के पास संसाधन की कमी है, पैसे की भी कमी है। मैं यह नहीं कहता कि उनका कोई दोऐा है, वह काम करना चाहते हैं। इस देश में कोई भी पोलिटिशिएन या पॉलिटीकल पार्टी ऐसा नहीं होगा जो आम जनता की चीजों को नहीं करना चाहता हो। इसके कारण क्या  है, आज रूरल एरिया नेगलेक्टेड हो गया है। शहर में किसी हद तक नल से पानी दे रहे हैं, लेकिन गांव में आज भी चापाकल और कुंए के अलावा कोई दूसरा अल्टरनेटिव नहीं दिखाई देता है।  यदि उनको पानी देना है तो बड़े इफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है ताकि उनको टंकी से पानी मिले। कुछ राज्यों ने अच्छा प्रयास किया है कि वहीं बोर वैल बना देते हैं या रिवर बैड पर पानी दे देते हैं। वाटर कन्जर्वेशन की पालिसी नहीं है, हमने उसे प्रिजर्व करके नहीं रख रहे हैं, डैम नहीं बन रहे हैं या इन्टर स्टेट डिस्पयूट है, उस कारण रिवर बैड पर वाटर सप्लाई का प्रोजेक्ट बना रहे हैं, तो वह भी पांच-दस साल बाद फेल हो रहा है। आप समझ लें कि हम उनको शुद्ध पानी नहीं दे पा रहे हैं। यदि माननीय प्रधान मंत्री जी वऐाऩ 2022 तक सबको शुद्ध पीने का पानी देंगे तो इसके लिए सबसे पहले पापुलेशन पालिसी की आवश्यकता है। राघव लखनपाल जी कह रहे थे कि दो बच्चों के बाद बच्चा पैदा करेंगे तो इन्सेन्टिव काटेंगे। चीन में भी यही है।

          अब फूड सिक्योरिटी की बात आती है। इसकी सबसे बड़ी समस्या है कि हमारे यहां संसाधन बहुत सीमित हैं। सबको खाना खिलाना सब सरकारों का काम है, चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार हो। फूड सिक्योरिटी एक्ट लागू हो गया, 67 परसेंट से ज्यादा लोगों को फूड सिक्योरिटी के अंडर लाना ही है। राज्य सरकार गेहूं या चावल देती है, उसमें 22 रुपए केंद्र सरकार की सब्सिडी है और राज्य सरकार की सब्सिडी एक या डेढ़ रुपए की है। राज्य भले ही पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन के माध्यम से पूरे देश में फैलाता है कि राज्य सरकार यह काम करती है लेकिन फैक्ट यह है कि केंद्र सरकार भारत के सभी नागरिकों को सब्सिडी के माध्यम से खाना देती है, खाना पहुंचाने का काम करती है। इसका क्या होगा? मान लीजिए कि आज एक लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी है, डेढ़ लाख या दो लाख करोड़ रुपए हो जाएगी, हमारे पास संसाधन कहां हैं कि हम और पैसे लाकर फूड सिक्योरिटी दे सकें?

          इसके साथ न्यूट्रिशन का रिपर्कशन है। यहां अन्जु बाला जी और रीति जी बैठी हुई हैं, इस देश में 70 परसेंट महिलाएंं एनीमिक हैं और चाहे कोई भी राज्य हो, लगभग 62 से 63 परसेंट बच्चे मालन्युट्रिशन के शिकार हैं। यहां बैठे पुरुऐा अपना टैस्ट करा लें, मैक्सिमम में विटामिन-डी और विटामिन-बी12 की कमी है। न्युट्रिशन में शुद्ध और अच्छा खाने से बच्चों को स्वस्थ रखना है, इसके लिए क्या करेंगे? इसके लिए क्या पालिसी है? मिड-डे-मील स्कीम में जो पैसा हम दे रहे हैं या सीमित साधन दे पा रहे हैं, उसमें ही हम अच्छा खाना खिलाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह नहीं हो पा रहा है। चाहे कोई भी हो, हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या ईसाई हो, इसका सवाल नहीं है सभी महिलाएंं एनीमिया और बच्चे मालन्युट्रिशन का शिकार हो रहे हैं।

          इकोनामिक इम्पलीकेशन और इन्टर स्टेट डिफरेंसिस, दो चीजें पापुलेशन में दिखाई देती हैं। अभी माननीय प्रधानमंत्री जी ने सर्वे कराया। इसी पापुलेशन को मद्देनजर रखते हुए कहा कि हम इतनी ग्रोथ कर रहे हैं तो हो क्या रहा है। इसमें 115 बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट्स चुने हैं। इस देश में ऐसा पहली बार हुआ कि प्रत्येक बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट में एक सीनियर अफसर, ज्वाइंट सैक्रेट्री या एडीशनल सैक्रेट्री उस डिस्ट्रिक्ट का इंचार्ज होगा। वे डिस्ट्रिक्ट्स कौन से हैं? झारखंड में 24 जिले हैं और 19 जिले बैकवर्ड हैं। इसमें बिहार, बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान है, मैक्सिमम 15 डिस्ट्रिक्ट्स हैं। उन्होंने पैमाना बनाया कि स्वास्थ्य के आधार पर ये जिले कैसे हैं। शिक्षा और रोजगार के आधार पर ये जिले कैसे हैं और इलैक्ट्रिसिटी के आधार पर ये जिले कैसे हैं। इस पापुलेशन ग्रोथ का, जहां डेमोग्राफिक डिविडेंड और सलीम साहब, जिस इलाके से हम आते हैं, मैं हमेशा कहता हूं कि यह जो माइग्रेशन है, इल्लीगल इमिग्रेंट्स हैं, ये हिन्दू और मुसलमान का प्रश्न नहीं है। यह देश जितना हमारा है, उतना ही सलीम साहब आपका है। मैं आपको आपकी ही पार्टी के सदस्य श्री इद्रजीत गुप्ता की रिपोर्ट पढ़कर सुनाना चाहता हूं।  इद्रजीत गुप्ता साहब ने पार्लियामैंट में जो कहा था, वह मैं आपको कह रहा हूं--

The then Home Minister, Shri Inderjeet Gupta, stated in Parliament on 6th May, 1997 that there were ten million illegal migrants residing in India from Bangladesh. उन्होंने गृह मंत्री के नाते वऐाऩ 1997 में यह कहा।...(व्यवधान)

श्री मोहम्मद सलीम (रायगंज) :  आप उन्हें भी सिटिजनशिप दे रहे हैं।

श्री निशिकान्त दुबे :   हम सिटिजनशिप नहीं दे रहे हैं। यह कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए। मै आपको तीन-चार चीजें क्लेरिफाई कर देना चाहता हूं। जब आधार यूपीए सरकार लेकर आयी, तो वह यशवंत सिन्हा जी की कमेटी में गया। उस समय वे स्टैंडिंग कमेटी ऑफ फाइनेंस के चेयरमैन थे और संयोग से मैं भी उसका एक मैम्बर था। मैं, मिस्टर महताब और आपके गुरुदास दासगुप्ता साहब उसके लिए अलग से बैठे और नंदन नीलकेणी साहब हमारी कमेटी के सामने तीन बार आये। हमने उस आधार बिल को रिजैक्ट किया। उसके बाद नंदन नीलकेणी साहब ने एक बहुत अच्छी चिट्ठी लिखी कि जब तक मैं मैम्बर ऑफ पार्लियामैंट से नहीं मिला था, यह सबके लिए बड़े फख्र और गौरव की बात होनी चाहिए, तो मेरी पार्लियामैंट और पार्लियामैंट में बैठे हुए सब मैम्बर ऑफ पार्लियामैंट्स के बारे में यह सोच थी कि यह पढ़ते-लिखते नहीं हैं, ये केवल भाऐाण-बाजी करते हैं। इन्हें डेवलपमैंट, ग्रोथ, आदि चीजों  से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन मैंने अपने जीवन में इतने जीनियस लोगों को एक साथ नहीं देखा है। जब हमने यूआईडी बिल रिजैक्ट कर दिया, तो उन्होंने हमारी कमेटी को यह चिट्ठी लिखी है। अब हमने वह किस आधार पर रिजैक्ट किया है? आप जो कह रहे हैं, उसी सिटिजनशिप के आधार पर रिजैक्ट किया। आज जो भी आधार कार्ड मिल रहा है, वह सिटिजनशिप की गारंटी नहीं है। हमारी सरकार बिल लेकर आयी है, माननीय मोदी जी ने इसे पास कराया है और जिसके कारण, आप समझिये कि डायरेक्ट बेनिफिट ट्रंसफर स्कीम से अभी लगभग 60 हजार करोड़ रुपये का फायदा हुआ है। आप यह समझें कि वह एक रेजिडेंट कार्ड है। रेजिडेंट कार्ड यह है कि जो भी आदमी हमारे यहां घूमने के लिए आएगा और यदि वह छः महीने हमारे यहां रहता है तो हम उसे रेजिडेंट कार्ड देते हैं। जैसे अमेरिका के कोई राजदूत होंगे, तो वे भी रेजिडेंट होंगे। यदि पाकिस्तान का कोई राजदूत रहता होगा और वह यदि आधार कार्ड बनाना चाहता होगा, तो भी रेजिडेंट होंगे। यह उसी तरह का है, जैसे अमेरिका का सोशल सिक्योरिटी नम्बर है। अभी यूआईडी को मिस्टर पाण्डे हैड कर रहे हैं। आपको आश्चर्य होगा कि जब वे अमेरिका में भारत सरकार की तरफ से पोस्टिंग में गये थे, तब से लेकर आज तक उनके पास सोशल सिक्योरिटी नम्बर हैं। यदि वे अमेरिका जायें, तो सोशल सिक्योरिटी नम्बर का यूज कर सकते हैं। इसलिए आधार कार्ड सिटीजनशिप की गारंटी नहीं है और हमारी सरकार एनसीआर बनाकर और नैशनल पापुलेशन रजिस्टर बनाकर, जितने इल्लीगल इमिग्रेंट्स हैं, उन्हें बाहर करने का काम करेगी। यह देश से माननीय मोदी जी का वायदा है और यह पूरा हो कर रहेगा। इसलिए सलीम साहब, आपको इसके लिए बहुत परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। ...(व्यवधान)

श्री मोहम्मद सलीम:  हम परेशान नहीं हैं। आप परेशान हैं। ...(व्यवधान)

श्री निशिकान्त दुबे: मैं परेशान नहीं हूं। मैं यह कह रहा हूं कि जो बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट्स थे, आप आज समझिये कि 625 जिलों में से 115 जिले इन सारे क्राइटीरिया में पिछड़ रहे हैं। ये 115 जिले ऐसे हैं, जहां डेमोग्राफिक बदलाव हमेशा प्रत्येक साल होता है, जिसके बारे में लखनपाल जी कह रहे थे कि यह वेस्टर्न उत्तर प्रदेश का ही मामला नहीं है, यह हमारे यहां का भी मामला है। जब यह बदलेगा, तो नक्स्लाइट एक्टिविटी, टैरेरिस्ट एक्टिविटी और साइबर क्राइम बढ़ेगा। आपको आश्चर्य होगा कि जिस तरह से डिजिटल टेक्नोलॉजी की तरफ भारत सरकार बढ़ रही है, माननीय मोदी जी बढ़ रहे हैं, उसमें से साइबर क्राइम का सबसे बड़ा अड्डा हमारा संथाल परगना है। हमारे जो छः जिले हैं--देवगढ़, दुमका, गोड्डा, साहेबगंज, पाकुड़ आदि पूरे देश के साइबर क्राइम के सबसे बड़े अड्डे हो रहे हैं। मैं इसलिए आपसे कह रहा था कि यह हिन्दू और मुसलमान का सवाल नहीं है।सवाल यह है कि इस देश में वे लोग हमारा रोजगार खा रहे हैं। हमारे बच्चों को जो सुविधायें चाहिए, पढ़ने के लिए सुविधा चाहिए, हमारे लोगों को छोटे रोजगार चाहिए, ड्राइवर, खलासी, कंडक्टर एवं अन्य चीजों का रोजगार चाहिए, उस पर बांग्लादेश से आकर लोग कब्जा कर रहे हैं। मैं पार्लियामेंट की ही रिपोर्ट को कोट करना चाहता हूं।

Shri L.K. Advani, the then Union Home Minister addressing a Conference of Chief Secretaries and DGPs in January, 2002 put the figure of Bangladeshi immigrants per year at five lakhs.

          यह आंकड़ा भारत सरकार का है लेकिन यह संख्या इससे ज्यादा है क्योंकि पूरा का पूरा बॉर्डर खुला हुआ है। यदि बांग्लदेश के बॉर्डर की फेंसिंग भी हो रही है तो उसमें जो नदियां हैं, उनकी फेंसिंग नहीं हो सकती है। जैसे पाकुड़ जिला इस तरफ है और धुलियान पार करेंगे तो सीधा बांग्लादेश पहुंच जायेंगे। यह सिचुएशन डेवेलप हो रही है और 115 जिलों में मैक्सिमम स्थितियां हैं, वह बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए है। उसके लिए भी एक पालिसी बनाने की आवश्यकता है।

          दूसरा, जो राघव लखनपाल साहब ने कहा है, वह और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। पॉपुलेशन ग्रोथ का एक बड़ा इम्प्लिकैशन माइग्रेशन होता है। माइग्रेशन में वे माइग्रेट हो रहे हैं जिनको रोजगार नहीं मिल रहा है। जब वे मुंबई में जाते हैं तो वहां बिहारी कह कर मार खाता है, उनमें चाहे कोई हिन्दू हो या मुसलमान हो। उसके पीछे कारण यह है कि आप उनको रोजगार नहीं दे पा रहे हैं। मान लीजिए कि जो पंक्चर बनाने वाले हैं, साइकिल पंक्चर बनाने वाले हैं या मोटर साइकिल या कार ठीक करने वाले लोग हैं, उसमें अधिकांश मुस्लिम कम्यूनिटी के लोग और बच्चे काम करते हैं। वे छोटे-छोटे बच्चे हैं। आप छोटे लेबरर्स की बात करते हैं। कैलाश सत्यार्थी से अन्य लोग बड़ा एवार्ड लेकर आ जाते हैं, वे क्यों काम करते हैं, क्योंकि उनके माता-पिता के पास मनरेगा के बावजूद भी, इस देश में गारंटी के बाद भी खिलाने-पिलाने के लिए कोई सामान नहीं है। इसलिए जैसे ही बच्चे पांच-सात साल के होते हैं, वे उन्हें पंक्चर की दुकान पर या मिस्त्राळगिरी करवाना या किसी दुकान में काम करवाना शुरू कर देते हैं। वे पढ़ाई-लिखाई नहीं करते हैं। जब वे पढ़ाई-लिखाई नहीं करते हैं और इस तरह का काम करते हैं तो क्या यह देश के लिए उचित है। यदि यह उचित नहीं है तो इस देश को यूनिफॉर्म सिविल कोड की तरफ बढ़ना है। आज भारत सरकार एक बढ़िया काम कर रही है। ट्रिपल तलाक बिल महिलाओं के अधिकार के लिए ला रही है। उसके लिए वह एक क्रिमिनल ऑफेंस साबित करना चाहती है, क्योंकि महिलायें, महिलायें हैं।

कोई भी धर्म ऐसा नहीं है, चाहे वह कुरान हो, बाइबिल हो, हमारा रामायण या महाभारत हो, सभी ने महिलाओं की इज्जत को सर्वोपरि माना है। कुरान भी इन्हीं बातों को कहता है। जो मिसइंटरप्रेटशन लॉ का है और कुरान का भी मिसइंटरप्रेटेशन है, उसको ठीक करने की बात हो रही है तो मैं यह कह रहा हूं कि इलीगल इमीग्रेंट्स के बाद यहां के जो लीगल लोग हैं, जो यहां के नागरिक हैं, इस देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई जिनका अधिकार बराबर है, जिसके कारण माइग्रेशन हो रहा है, जिसके कारण शहरों में ज्यादा लोग आ रहे हैं, जिसके कारण पॉपुलेशन इतनी बढ़ रही है, इसके लिए दो बच्चों की पॉलिसी बनानी ही चाहिए। इसके लिए मैं आपका समर्थन करता हूं कि दो बच्चों की पॉलिसी नहीं तो हम उनकी सारी सुविधायें कट कर देंगे।

          हरियाणा जैसे राज्यों में सेक्स रेश्यो कम हो रहा है या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कम हो रहा है। हमें सेक्स रेश्यो एक बार रिलीजन के आधार पर निकालना चाहिए। जैसे हमने कास्ट सेन्सस कर लिया, उसी प्रकार लखनपाल साहब सेक्स रेश्यो को हमें रिलीजन के आधार पर भी देखना चाहिए। उससे लोगों की मानसिकता पता चलेगी। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट बहुत महत्वपूर्ण है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट यह कह रही है कि आजादी के 70-75 साल के बाद भी यदि कोई कम्यूनिटी सबसे ज्यादा पिछड़ी है, जिसको रोजगार नहीं है, जिसको अन्य चीजों की सुविधायें नहीं है, वह मुस्लिम कम्यूनिटी है। वोट बैंक की राजनीति में सारी पॉलिटकल पार्टियां मुसलमानों से वोट ले रही हैं, लेकिन मुसलमानों को जो सुविधायें देनी चाहिए, जो रोजगार देनी चाहिए, उसके पीछे क्या रीजन है? यह इसलिए नहीं हो पाता है, क्योंकि वहां अनपढ़ लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। उनमें शिक्षा की कमी इसलिए है, क्योंकि बाहर पढ़ने के लिए जो पैसा चाहिए, वह उनके पास नहीं होता है। वे अपने बच्चों को खाना नहीं खिला पाएंंगे, तो पढ़ाएंंगे कहां से। पापुलेशन ग्रोथ में सैक्स रेश्यो बहुत बड़ा कारण है, इसके लिए रिलीजन के आधार पर सैक्स रेश्यो देखना चाहिए कि हिंदुओं के परिवारों में लड़के और लड़कियों का क्या प्रतिशत है, मुसलमानों में, सिक्खों में और ईसाइयों के परिवारों में सैक्स रेश्यो कितना है। साइंस के डेवलप होने बाद जो लोंगिविटी बढ़ रही है, इसके कारण हम कितने दिनों तक पापुलेशन को अस्थिर रख सकते हैं, इसका प्लान भारत सरकार को बनाने का प्रयास करना चाहिए।

          फैमिली वेलफेयर प्रोग्राम्स के लिए मेरे तीन-चार सुझाव हैं। यूनिवर्सल अवेयरनेस कैसे बढ़ाई जाए? आप यह कहते हैं कि हमारा काम केवल इंफ्रास्ट्रक्चर क्रिएट करना है और बाकी काम राज्य सरकार करेगी। नेशनल रूरल हैल्थ मिशन या नेशनल हैल्थ मिशन के तहत सभी सांसद दिशा कमेटी में इस विऐाय को देखते हैं, लेकिन पचास चीजें देखते-देखते उनके पास इतनी फुर्सत न्हीं होती है कि वे चीजों को डिस्कस कर सकें। दूसरा प्लानिंग में वे छोटी-छोटी जानकारियां लेकर इस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं। मेरा कहना है कि पापुलेशन कंट्रोल करने के लिए जो अवेयरनेस होनी चाहिए, उसके बारे में मॉनीटरिंग करने के लिए भारत सरकार के पास क्या योजना है। इसके बाद फाइनेंस की बात है। माननीय मोदी जी के आने के बाद भारत सरकार ने पहली बार हैल्थ के बारे में बजट को बढ़ाया है, लेकिन हैल्थ का बजट अमरीका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया की बात करें या सिंगापुर की बात करें तो उनके हिसाब से हैल्थ का बजट अभी भी कम है। हैल्थ का बजट बढ़ना चाहिए। हैल्थ का एक बजट अलग है, जिसमें हम बड़े अस्पताल बना रहे हैं या इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा कर रहे हैं, यह अलग बजट है। मैं फैमिली प्लानिंग के लिए खर्च करने वाले बजट की बात कह रहा हूं। उस बजट के आधार पर हम क्या करेंगे, जिसमें शार्ट टर्म गोल हो सकता है, मीडियम टर्म गोल हो सकता है और लाँग टर्म गोल हो सकता है। यह भी भारत सरकार को बताना चाहिए। इसके बाद कैपेबिलिटी और इफेक्टिवनेस आफ इंफ्रास्ट्रक्चर एंंड मैन पॉवर है। इस प्रोग्राम के लिए यह देखने की जरूरत है कि आपके पास कितनी वैकेंसी होगी, कितने लोग यहां स्किल्ड हैं। मोदी जी ने इस तरफ बहुत ज्यादा ध्यान दिया है। स्किल्ड डेवलपमेंट में जैसे नर्सेस नहीं मिलती हैं, कम्पाउंडर नहीं मिलते हैं, रेडियोलोजिस्ट नहीं मिलते हैं, पैथोलोजिस्ट की कमी है।

          महोदय, द्विभाऐाा के तहत तमिल में तमिल भाऐाा बोलने वालों के लिए आपने क्या किया? केरल में मलयालम बोलने वाले लोगों के लिए आपने क्या किया? हमारे यहां अंगिका लोकल भाऐाा है, कहीं भोजपुरी भाऐाा बोली जाती है, कहीं वंजिका भाऐाा बोली जाती है, कहीं अवधी भाऐाा बोली जाती है। इस तरह की स्किल्ड मैन पॉवर को डेवलप करने के लिए भारत सरकार के पास क्या प्लान हैं? इसके बाद जो लिट्रेसी और इकोनोमिक स्टेटस आफ फैमिलीज हैं, विशेऐाकर महिलाओं की बात है, यदि केरल को छोड़ दीजिए तो हम जिन राज्यों से आते हैं जैसे वैस्टर्न उत्तर प्रदेश से लखनपाल जी आते हैं, मेघवाल जी राजस्थान से आते हैं या मैं झारखंड से आता हूं। इसलिए जो सबसे बड़ी समस्या है, वह यह है, मान लीजिए कि यदि मेरे राज्य में लिटरेसी रेट 60 पर्सेंट है, तो उनमें महिलाओं की लिटरेसी रेट केवल 30-32 पर्सेंट होगी। पॉपुलेशन ग्रोथ के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब तक महिलाएँ साक्षर नहीं होंगी, महिलाएँ जब तक अपने हेल्थ के बारे में नहीं सोचेंगी, माननीय सभापति महोदय जी, मैं आपके माध्यम से मंत्री जी को बताना चाहता हूँ कि आज से 10-15 साल पहले भारत सरकार ने मोबाइल वैन का कांसेप्ट शुरू किया। चूँकि सभी स्थानों पर डॉक्टर्स मौजूद नहीं रहते हैं, इसीलिए प्रत्येक पंचायत के प्रत्येक गाँव में ये मोबाइल वैन जाएंंगे और महिलाओं, बच्चों, बुज़ुर्गों को हेल्थ की फैसिलिटी देंगे।

            ‘दिशा’ के नाते या मॉनिटरिंग कमेटी के चेयरमैन के नाते इन सब चीजों को सांसदों को देखने का मौका मिलता है। मेरे संसदीय क्षेत्र में तीन जिले हैं। तीनों जिलों में तीन-तीन मोबाइल वैन हैं। इसके बारे में आपको जानकार आश्चर्य होगा, मोबाइल वैन के लिए यह क्राइटेरिया है कि एक महिला गायनिकोलॉजिस्ट आवश्यक रूप से होनी चाहिए। लेकिन, पिछले दस वऐााॉ में किसी भी मोबाइल वैन में मैंने कोई महिला गायनिकोलॉजिस्ट नहीं देखा। प्रत्येक वैन को हम लोग पौने दो लाख से दो लाख रुपये तक देते हैं। भारत सरकार के पैसे एनजीओज़ के माध्यम से कैसे बर्बाद होते हैं, एनजीओज़ क्या काम करते हैं, उसका मैं यह सबसे बड़ा उदाहरण दे रहा हूँ।

          मैं पिछले लगभग दस वऐााॉ से सांसद होने के नाते ये सारी बातें कह रहा हूँ। इसलिए पॉपुलेशन ग्रोथ में महिलाओं, खासकर मुस्लिम महिलाओं को बताने की आवश्यकता है कि आपके बच्चे पढ़ेंगे-लिखेंगे नहीं, तो हो सकता है कि एक दिन वे बेरोज़गार होकर दाऊद इब्राहिम की तरह इस देश के खिलाफ काम करने लगेंगे। उसके पीछे कारण तो यही था, शिक्षा की कमी थी। इसलिए आप मुस्लिम महिलाओं के अवेयरनेस के लिए क्या काम कर रहे हैं?

          ओपिनियन लीडर्स ऑफ सोसाइटी का पॉलिसी सपोर्ट होना चाहिए। हम लोग यहाँ 545 सांसद हैं। आप यह बताएँ कि भारत सरकार का फैमिली प्लानिंग का क्या कार्यक्रम चल रहा है। इसकी शुरुआत यहीं से करते हैं। माननीय मंत्री जी, आप तो लगातार इस बात की मीटिंग लेते रहते हैं, यह एक बार शुरू हो। पहले केवल लोक सभा और राज्य सभा के सांसदों को ही बताएंंगे कि पॉपुलेशन कंट्रोल करने के लिए भारत सरकार के क्या-क्या उपाय हैं, हमको कौन-सा अवेयरनेस करना है, कौन-सा प्रोग्राम करना है। उसके बाद दूसरा रास्ता यह हो सकता है कि जो दूसरे ओपिनियन मेकर्स हैं, टीवी चैनलों के मालिकों से बात कर सकते हैं, टीवी चैनलों के जो एडिटर्स हैं, उनसे बात कर सकते हैं, जो पत्रकार हैं, उनसे बात कर सकते हैं, जिन पत्रकारों का हेल्थ के बारे में इंट्रेस्ट है, उनसे बात कर सकते हैं। रीजनल लोगों में से जो ओपिनियन मेकर्स हैं, जो एनजीओज हैं, जो सोसायटीज चलाते हैं, उनके लिए हम क्या काम कर पा रहे हैं, इसके लिए हम कितना बजट दे पा रहे हैं।

          समाज में महिलाओं का एक कंप्लीट आइसोलेशन है। आइसोलेशन यह है कि महिलाओं की बहुत शह नहीं है। घर में बच्चे कितने होने चाहिए, वह लड़का होना चाहिए या लड़की होनी चाहिए, यह जो आइसोलेशन है, उसके लिए धारा 498 के तहत भारत सरकार ने गलती से एक कानून बना दिया। जिन महिलाओं को बचाने के लिए यह कानून बनाया गया, वे महिलाएँ ही सबसे ज्यादा इसकी शिकार हुईं। मान लीजिए कि किसी महिला की गोतनी फंस गयी, किसी की सास फंस गयी, किसी की ननद फंस गयी। मैं यह कह रहा हूँ कि आपने डाउरी के लिए जो कानून बनाया, उसी प्रकार से क्या हम इसमें कानून बना सकते हैं? यदि महिलाएँ चाहती हैं कि वे ज्यादा बच्चे पैदा न करें, ज्यादा बच्चे पैदा करके इस देश पर बोझ डालना नहीं चाहते हैं, तो जो आइसोलेटेड महिलाएँ हैं, उनके लिए धारा 498 में, हेल्थ सेक्टर में या पॉपुलेशन रजिस्टर करते हुए कोई कानून बना सकते हैं? यदि महिलाओं को पति, सास, ननद या समाज टॉर्चर करता हो, इस कारण से कि किसी महिला को केवल बेटी है या उसे कोई बच्चा ही नहीं है, ऐसा किसी महिला ने तय कर दिया कि उसका बच्चा ही पैदा नहीं होना है, जैसे हमारे श्री राघव लखनपाल जी, जो इस बिल को लेकर आये हैं, उन्होंने तय कर लिया है कि उनको शादी नहीं करनी है।

18.00 hrs

          जैसे हमारे राघव लखनपाल साहब, जो बिल लेकर आए हैं, उन्होंने यह तय कर लिया है कि उनको शादी नहीं करनी है। यह उनका अप्ना मत है कि उन्हें शादी नहीं करनी है। उन्होंने पॉप्युलेशन ग्रोथ के लिए सब से पहले यही काम स्टार्ट किया है। ...(व्यवधान) उन्होंने यह फैसला किया है। ...(व्यवधान) वे शादी करेंगे या नहीं करेंगे, मुझे नहीं पता।...(व्यवधान) हमारे भूतपूर्व प्रधान मंत्री भी ऐसे रह चुके हैं। इस पार्टी का यह इतिहास रहा है। माननीय अटल विहारी वाजपेयी जी ने शादी नहीं की थी। वे इस देश के प्रधान मंत्री थे।

माननीय सभापति :क्या आप नेक्स्ट टाइम कंटिन्यू करेंगे?

SHRI NISHIKANT DUBEY : Thank you, Sir.

HON. CHAIRPERSON: Now, the House stands adjourned to meet again on Wednesday, the 27th December, 2017 at 11.00 a.m.

18.01 hrs

The Lok Sabha then adjourned till Eleven of the Clock

on Wednesday, the 27th December, 2017 / Pausha 6, 1939 (Saka).

हमारे देश में जनसंख्या को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? - hamaare desh mein janasankhya ko kaise niyantrit kiya ja sakata hai?
 

जनसंख्या को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है?

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के उपाय.
1- शिक्षा का प्रसार- भारत की 80 प्रतिशत जनसंख्या गॉंवों में निवास करती है। ... .
2- परिवार नियोजन- ... .
3- विवाह की आयु में वृद्धि करना- ... .
4- संतानोत्पत्ति की सीमा निर्धारण- ... .
5- सामाजिक सुरक्षा- ... .
6- सन्तति सुधार कार्यक्रम- ... .
7- जीवन-स्तर को ऊॅंचा उठाने का प्रयास- ... .
8- स्वास्थ्य सेवा व मनोरजन के साधन-.

जनसंख्या नियंत्रण के लिए सर्वोत्तम उपाय क्या है?

Solution : जागरूकता, छोटे परिवार का महत्व, गर्भ निरोधक गोलियां कण्डोम का उपयोग समाज लिए वैसेक्टोमी, टयूवेक्टोमी आदि।

जनसंख्या नियंत्रण से आप क्या समझते हैं?

प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण के विपरीत, जो मुख्य रूप से एक व्यक्तिगत स्तर का निर्णय है, सरकार जनसँख्या नियंत्रण करने के कई प्रयास कर सकती है जैसे गर्भनिरोधक साधनों तक लोगों की पहुँच बढ़ाकर या अन्य जनसंख्या नीतियों और कार्यक्रमों के द्वारा.

भारत में जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

जनसंख्या वृद्धि नियंत्रित करने के लिए अधिक सकारात्मक कदमों की जरूरत है। ऐसा करने के लिए बेहतरीन रास्ता जागरूकता पैदा करना, समाज के निम्र वर्ग को शिक्षा उपलब्ध करवाना तथा स्वैच्छिक परिवार नियोजन के लिए अधिक प्रोत्साहन देना होना चाहिए। यह किसी भी कीमत पर बाध्य नहीं होना चाहिए अन्यथा यह 1975 की पुनरावृत्ति होगी।