हमारे शरीर का कौन सा अंग पचे हुए भोजन को अवशोषित करता है? - hamaare shareer ka kaun sa ang pache hue bhojan ko avashoshit karata hai?

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UP Police SI (दरोगा) 2020: Full Mock Test

160 Questions 400 Marks 120 Mins

Latest UP Police Sub Inspector Updates

Last updated on Sep 22, 2022

The Uttar Pradesh Police Recruitment and Promotion Board (UPPRPB) has released the final result and category-wise cut-off for UP Police SI (Sub Inspector). The result is declared on 12th June 2022. A total of 9534 candidates were recruited for the post of UP Police SI in this exam cycle of 2020-21. Candidates can check UP Police SI Cut Off from here. The official notification for the next recruitment cycle is expected to be out very soon. So the candidates should continue with their preparation.

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हमारे शरीर का कौन सा अंग पचे हुए भोजन को अवशोषित करता है? - hamaare shareer ka kaun sa ang pache hue bhojan ko avashoshit karata hai?

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पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार ना...

पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल के किस भाग में होता है?

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Video Solution: पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल के किस भाग में होता है?

लिखित उत्तर

Solution : पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल की क्षुद्रांत्र (Small intestine) में होता है।

उत्तर

Step by step video & image solution for [object Object] by Biology experts to help you in doubts & scoring excellent marks in Class 12 exams.

Question Details till 18/12/2022

Question

पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल के किस भाग में होता है?

Chapter Name मानव का पाचन तंत्र
Subject Biology (more Questions)
Class 12th
Type of Answer Video & Image
Question Language

In Video - Hindi

In Text - Hindi
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Question Video Duration 2m35s

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हमारे शरीर का कौन सा अंग पचे हुए भोजन को अवशोषित करता है? - hamaare shareer ka kaun sa ang pache hue bhojan ko avashoshit karata hai?

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"आंत" यहाँ पुनर्प्रेषित होता है। आंत को पढ़ने का अभ्यास के लिए, एक्सटीस inपीसी देखें।

पाचन वह क्रिया है जिसमें भोजन को यांत्रि‍कीय और रासायनिक रूप से छोटे छोटे घटकों में विभाजित कर दिया जाता है ताकि उन्हें रक्तधारा में अवशोषित किया जा सके. पाचन एक प्रकार की अपचय क्रिया है: जिसमें आहार के बड़े अणुओं को छोटे-छोटे अणुओं में बदल दिया जाता है।

स्तनपायी प्राणियों द्वारा भोजन को मुंह में लेकर उसे दांतों से चबाने के दौरान लार ग्रंथियों से निकलने वाले लार में मौजूद रसायनों के साथ रासायनिक प्रक्रिया होने लगती है। यह भोजन फिर ग्रासनली से होता हुआ उदर में जाता है, जहां हाइड्रोक्लोरिक अम्ल सर्वाधिक दूषित करने वाले सूक्ष्माणुओं को मारकर भोजन के कुछ हिस्से का यांत्रि‍क विभाजन (जैसे, प्रोटीन का विकृतिकरण) और कुछ हिस्से का रासायनिक परिवर्तन आरंभ करता है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का पीएच (pH) मान कम होता है, जो कि किण्वकों के लिये उत्तम होता है। कुछ समय (आम तौर पर मनुष्यों में एक या दो घंटे, कुत्तों में 5-6 घंटे और बिल्लियों में इससे कुछ कम अवधि) के बाद भोजन के अवशेष छोटी आंत और बड़ी आंत से गुज़रते हैं और मलत्याग के दौरान बाहर निकाल दिए जाते हैं।[1]

अन्य जीवों में भोजन के पाचन की अलग-अलग प्रक्रियाएं होती हैं।

पाचन तंत्र[संपादित करें]

पाचन तंत्र कई प्रकार के होते हैं। आंतरिक और बाह्य पाचन में एक बुनियादी अंतर होता है। बाह्य पाचन का क्रम विकास सबसे पहले हुआ और अधिकांश कवक अब भी उस पर निर्भर हैं।[2] इस प्रक्रिया में एंजाइमों को जीव के आसपास के वातावरण में स्रावित किया जाता है, जहां वे किसी कार्बनिक पदार्थ को विभाजित कर देते हैं और उसके शेष पदार्थों में से कुछ हिस्सा उस जीव में विसरित हो जाता है। बाद में जानवरों का क्रम विकास हुआ और उनमें आंतरिक पाचन विकसित हुआ, जो कि अधिक कारगर है क्योंकि विभाजित पदार्थों का अधिक हिस्सा खाया जा सकता है और रासायनिक वातावरण को अधिक प्रभावी रूप से नियंत्रि‍त किया जा सकता है।[3]

लगभग सभी प्रकार की मकड़ियों सहित कुछ जीव केवल जैव-विष और पाचक रसायनों (उदाहरण के लिए, एंजाइम) को बहिर्कोशिकीय वातावरण में स्रावित कर देते हैं और फिर उस प्रक्रिया से उत्पन्न "शोरबे" को गटक लेते हैं। कुछ अन्य जीवों में, संभावित पोषक तत्वों या भोजन के जीव के भीतर जाने के बाद एक पुटिका या एक थैलीनुमा संरचना में, एक नली, या पोषक तत्वों के अवशोषण को अधिक कारगर बनाने वाले विशिष्ट अवयवों के द्वारा पाचन क्रिया चलती रहती है।

स्रावण प्रणालियां[संपादित करें]

जीवाणु पर्यावरण में मौजूद अन्य जीवों से पोषक तत्व प्राप्त करने के लिए कई प्रणालियों का उपयोग करते हैं।

चैनल परिवहन प्रणाली[संपादित करें]

चैनल परिवहन प्रणाली में कई प्रोटीन जीवाणु की आंतरिक और बाह्य झिल्लियों में से गुजरने वाली एक संस्पर्शी वाहिका बना लेते हैं। यह एक सरल प्रणाली है, जिसमें केवल तीन प्रोटीन उपइकाइयां होती है: एबीसी (ABC) प्रोटीन, मेम्ब्रेन फ़्यूज़न प्रोटीन एमएफपी (MFP) और आउटर मेम्ब्रेन प्रोटीन ओएमपी (OMP). यह स्रावण प्रणाली आयनों, औषधियों से लेकर विभिन्न आकारों के प्रोटीन्स (20 - 900 kDa) तक, विभिन्न अणुओं की वाहक होती है। स्रावित किए गए अणुओं का आकार अलग-अलग होता है और इनका आकार छोटे एस्चेरिचिया कोलाई पेप्टाइड कोलिसिन वी, (10 केडीए/10 kDa) से लेकर 900 केडीए (kDa) की लैपए (LapA) आसंजन प्रोटीन कोशिका स्युडोमोनॉस फ्युरोसेंस (Pseudomonas fluorescens) तक का हो सकता है।[4]

आणविक सीरिंज[संपादित करें]

एक आणविक सीरिंज का उपयोग किया जाता है जिससे होकर जीवाणु (उदाहरण के लिए, कुछ प्रकार के सैल्मोनेला (salmonella), शिगेला (Shigella), येर्सिनिया (Yersinia)) यूकेरियॉटिक कोशिकाओं में प्रोटीन प्रविष्ट कर सकता है। ऐसा ही एक तंत्र सबसे पहले वाय. पेस्टिस (Y. pestis) में खोजा गया था और उसने दर्शाया कि जीवविष या टॉक्सिन्स को बस बहिर्कोशिकीय माध्यम में स्रावित करने के बजाए सीधे जीवाणु के कोशिकाद्रव्य से उसके परपोषी की कोशिकाओं के कोशिकाद्रव्य में प्रविष्ट किया जा सकता है।[5]

संयुग्मन तंत्र[संपादित करें]

हमारे शरीर का कौन सा अंग पचे हुए भोजन को अवशोषित करता है? - hamaare shareer ka kaun sa ang pache hue bhojan ko avashoshit karata hai?

बैक्टीरियल विकार की योजनाबद्ध ड्राइंग.विकार चित्रकला1- दानकर्त्ता सेल बाल पैदा करता है। 2- पाइलस जो प्राप्तकर्ता सेल के साथ जुड़ा है, वह दो कोशिकाओं को एक साथ लाता है। 3- मोबाइल प्लाज्मिड निच्केड है और डीएनए के एक एकल भूग्रस्त तो प्राप्तकर्ता सेल करने के लिए स्थानांतरित कर रहा है। 4- दोनों कक्षों उनके प्लास्मिड्स रीसर्कुलराइज़ करता है, दूसरी संश्‍लेषण और पुन: पेश पिली, दोनों कक्षों अब व्यवहार्य दाताएं हैं।

कुछ जीवाणुओं (और आर्चियल फ्लैजेला (archaeal flagella)) के संयुग्मन तंत्र डीएनए (DNA) और प्रोटीन दोनों के वाहक होने की क्षमता रखते हैं। इसकी खोज एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफ़ेशियन्स (Agrobacterium tumefaciens) में की गई थी, जो इस प्रणाली का उपयोग करके परपोषी में Ti प्लास्मिड और प्रोटीनों का समावेश करता है जिससे क्राउन गॉल (गठान) पनप जाता है।[6]. एग्रोबैक्टीरियम ट्यूमीफ़ेशियन्स (Agrobacterium tumefaciens) का VirB complex इसकी आदिरूपी प्रणाली है।[7]

नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करने वाले रिज़ोबिया (Rhizobia) का मामला दिलचस्प है, जहां संयुग्मी तत्व प्राकृतिक रूप से इंटर-किंग्डम संयुग्मन करते हैं। इन तत्वों, जैसे ' एग्रोबैक्टीरियम (Agrobacterium)0} टीआई (Ti) या आरआई (Ri) प्लास्मिड, में वे तत्व होते हैं जो पौधे की कोशिकाओं में स्थानांतरित हो सकते हैं। स्थानांतरित जीन्स पौधे की कोष्ठिका के केन्द्रक में प्रवेश करते हैं और पौधे की कोष्ठिकाओं को प्रभावी रूप से ओपाइन के उत्पादन के कारखानों में रूपांतरित कर देते हैं और जीवाणु उनका उपयोग कार्बन और ऊर्जा के स्रोतों के रूप में करते हैं। पौधे की संक्रमित कोष्ठिकाएं क्राउन गॉल या वृक्ष व्रण का निर्माण करती हैं। इस तरह टीआई (Ti) और आरआई (Ri) प्लास्मिड के एंडोसिम्बॉएंट होते हैं और फिर वे संक्रमित पौधे के एंडोसिम्बॉएंट (या परजीवी) होते हैं।

टीआई (Ti) और आरआई (Ri) प्लास्मिड स्वयं संयुग्मी होते हैं। जीवाणुओं के बीच टीआई (Ti) और आरआई (Ri) हस्तांतरण में इंटर-किंग्डम हस्तांतरण की प्रणाली (vir, या विरुलेंस (virulence), ऑपरान) से स्वतंत्र एक प्रणाली (tra, या ट्रांसफ़र (transfer), ऑपरान) का उपयोग किया जाता है। ऐसे हस्तांतरण से पहले से अविषाक्त एग्रोबैक्टीरिया (Agrobacteria) से विषाक्त प्रभेदों का निर्माण करते हैं।

बाह्य झिल्ली पुटिकाओं का स्रावण[संपादित करें]

ऊपर सूचीबद्ध मल्टीप्रोटीन कॉम्प्लेक्स के उपयोग के अलावा ग्राम-नकारात्मक जीवाणुओं द्वारा एक और विधि से पदार्थ का स्रावण किया जाता है: बाह्य झिल्ली पुटिकाओं का निर्माण.[8] बाह्य झिल्ली के कुछ हिस्से अलग हो जाते हैं और पेरिप्लास्मिक पदार्थों को आवरित करते हुए वसा की दोहरी परत से निर्मित गोल संरचनाएं बना लेते हैं। यह पाया गया है कि जीवाणुओं की कई प्रजातियों की पुटिकाओं में विषाक्तता के तत्व होते हैं, कुछ का इम्यूनोमॉड्यूलेटरी असर होता है और कुछ परपोषी कोष्ठिकाओं से जुड़ कर उन्हें विषण्ण बना देती हैं। जहां पुटिकाओं के स्रावण को तनाव की स्थिति के प्रति सामान्य प्रतिक्रिया के तौर पर दर्शाया गया है, वहीं कार्गो प्रोटीन भारित करने की प्रक्रिया चयनात्मक प्रतीत होती है।[9]

फ़ैगोसोम[संपादित करें]

फ़ैगोसोम जीवाणुभक्षण द्वारा अवशोषित किसी कण के इर्द गिर्द निर्मित रिक्तिका को कहते हैं। यह रिक्तिका उस कण के इर्द गिर्द मौजूद कोष्ठिका झिल्ली के पिघलाव से बनती है। फ़ैगोसोम एक कोष्ठिकीय कक्ष होता है जिसमें रोगजनक सूक्ष्मजीवों को मार कर उनका पाचन किया जा सकता है। फ़ैगोसोम अपनी परिपक्वता की प्रक्रिया में लाइसोसोम के साथ मिल कर फ़ैगोलाइसोसोम्स का निर्माण करते हैं। मनुष्यों में, एंटामीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba histolytica) लाल रक्त कोशिकाओं का जीवाणुभक्षण कर सकते हैं।[10]

इंजेस्टेड एरीथ्रोसाइट्स के साथ एंटामोएबा के ट्रोफोज़ोइट्स हिस्टोलिटिका

जठरवाहिकीय गुहा[संपादित करें]

जठरवाहिकीय गुहा पाचन और शरीर के सभी भागों में पोषक तत्वों के वितरण दोनों प्रक्रियाओं में उदर की तरह कार्य करती है। बर्हिकोशिकीय पाचन इसी केंद्रीय गुहा में होता है जिसमें गैस्ट्रोडर्मिस की परत लगी होती है, जो एपिथीलियम की आंतरिक परत होती है। इस गुहा में बाहर की ओर केवल एक छिद्र होता है जो मुख और गुदा दोनों का कार्य करता है: अपशिष्ट और अपाचित पदार्थ इस मुख/गुदा से उत्सर्जित कर दिया जाता है। इसे अपूर्ण आंत के रूप में वर्णित किया जा सकता है।

वीनस फ़्लाईट्रैप जैसा एक पौधा प्रकाश संश्लेषण के द्वारा अपना भोजन स्वयं बना सकता है। यह पौधा ऊर्जा और कार्बन प्राप्त करने के पारंपरिक उद्देश्य से अपने शिकार को खाता और पचाता नहीं है, लेकिन अपने शिकार में प्राथमिक रूप से उन आवश्यक पोषक तत्वों (विशेषकर नाइट्रोजन और फास्फोरस) की तलाश करता है जिनकी उसके दलदली, अम्लीय आवास में अत्यधिक कमी होती है।[11]

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वीनस फ्लाईट्रैप (डायोनिया मस्किपुला) की पत्तियां

विशेषीकृत अवयव व व्यवहार[संपादित करें]

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कैटलीना एक प्रकार का तोता है जिसके चोंच कर्तन दर्शाती है।

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आकार तुलना के लिए विद्रूप चोंच और शासक.

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एक कारचरोडोन मेगालोडोन के दांत

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एक जुगाली करनेवाला पाचन प्रणाली के किसी न किसी चित्रण.

अपने आहार के पाचन में सहायता के लिए प्राणियों में तरह-तरह के अवयवों का क्रम विकास हुआ, जैसे चोंच, जीभ, दांत, पोटा, पेषणी और अन्य.

चोंच[संपादित करें]

मकाऊ तोते मुख्यतः बीज, गिरीदार फल और फल खाते हैं और अपनी शानदार चोंच का उपयोग करके कड़े से कड़े बीज को खोलते हैं। सबसे पहले वे अपनी चोंच के नुकीले सिरे से खुरच कर एक पतली रेखा बनाते हैं और फिर चोंच के बगल के भाग से वे बीज को फाड़ देते हैं।

स्क्विड या कालिकाक्षेपी मछली के मुंह में एक नुकीली सींग जैसी चोंच होती है जो मुख्यतः किटिन[12] और क्रॉस लिंक्ड प्रोटीन से बनी होती है। इसका उपयोग शिकार को मार कर उसे खाने योग्य टुकड़ों में फाड़ने के लिए किया जाता है। चोंच बेहत मज़बूत होती है, लेकिन उसमें समुद्री प्रजातियों सहित अन्य कई जीवों के दांतों और जबड़ों के समान कोई खनिज पदार्थ नहीं होते.[13] चोंच स्क्विड का एकमात्र हिस्सा है जिसे पचाया नहीं जा सकता.

जिह्वा[संपादित करें]

जिह्वा मुख के तल पर स्थित ढांचागत मांसपेशी होती है जो आहार को चबाने और निगलने में सहायक होती है। यह संवेदनशील होती है और इसे लार के द्वारा नम रखा जाता है। जीभ का निचला हिस्सा चिकनी श्लैष्मिक झिल्ली से ढंका होता है। जिह्वा का उपयोग भोजन के कणों को घुमा कर एक ग्रास बनाने में किया जाता है जिसके बाद वह ग्रास क्रमांकुचन की मदद से ग्रासनली में उतार दिया जाता है। जीभ के अग्रभाग के निचले हिस्से में स्थित अवजिह्वी क्षेत्र वह स्थान होता है जहां मुख श्लैष्मिक झिल्ली बहुत पतली होती है और जिसके नीचे शिराओं का एक तंतुजाल होता है। अवजिह्वी मार्ग यह स्थान शरीर में कुछ औषधियां प्रविष्ट कराने के लिए एक आदर्श स्थान होता है। अवजिह्वी मार्ग मुखीय गुहा के वाहिकीय गुणों का लाभ उठाता है और इसकी मदद से जठरांत्रपरक नली को बाइपास करते हुए औषधि को तेज़ी से हृदवाहिका तंत्र में भेजा जा सकता है।

दांत[संपादित करें]

दांत कई पृष्ठवंशियों के जबड़ों (या मुख) में पाई जाने वाली छोटी सफ़ेद संरचना होती है जिनका उपयोग आहार को चीरने, छीलने, दूध निकालने और चबाने के लिए किया जाता है। दांत हड्डियों के नहीं बने होते, बल्कि अलग-अलग घनत्व और कठोरता के ऊतकों के बने होते हैं। किसी जानवर के दांत का आकार उसके आहार से जुड़ा होता है। उदाहरण के लिए, वनस्पति पदार्थों का पाचन बेहत कठिन होता है, इसलिए शाकभक्षियों के मुंह में चबाने के लिए कई दाढ़ें होती हैं।

मांसभक्षियों के दांतों का आकार प्राणियों को मारने और मांस को चीरने के लिए उपयुक्त होता है, इसके लिए वे खास आकार वाले भेदक दांतों का उपयोग करते हैं। शाकभक्षियों के दांत भोजन, यानी वनस्वति पदार्थों को चबाकर पीसने के लिए बने होते हैं।

पोटा[संपादित करें]

पोटा पाचन नली का एक पतली दीवार वाला विस्तारित भाग होता है जिसका उपयोग पाचन से पहले आहार के संचयन के लिए किया जाता है। कुछ पक्षियों में यह अन्न नली या गले के पास उभरी हुई एक मांसल थैली होती है। वयस्क कबूतरों में यह पोटा दूध बना सकता है जिससे नवजात पक्षियों को दूध पिलाया जाता है।[14]

कुछ कीटों में एक पोटा या बढ़ी हुई ग्रास नली हो सकती है।

चतुर्थ आमाशय[संपादित करें]

शाकभक्षियों में अन्धांत्र (या जुगाली करने वाले चतुष्पदी पशुओं में जठरांत) विकसित हुए हैं। जुगाली करने वाले पशुओं में अग्रोदर होता है जिसमें चार कक्ष होते हैं। ये कक्ष हैं प्रथम आमाशय, द्वितीय आमाशय, तृतीय आमाशय एवं जठरांत. पहले दो कक्षों, अर्थात प्रथम व द्वितीय आमाशय में भोजन लार में मिश्रित होकर ठोस और द्रव पदार्थ की परतों में विभाजित हो जाता है। ठोस पदार्थ एकत्र होकर पागुर (या ग्रास) बना लेते हैं। इस पागुर को फिर वापस मुंह में लाया जाता है और जुगाली करके यानी उसे धीरे-धीरे चबा कर पूरी तरह लार के साथ मिला दिया जाता है आहार कणों को छोटा कर दिया जाता है।

रेशों, विशेष रूप से सेल्यूलोज़ और हेमी-सेल्यूलोज़, को माइक्रोब यानी सूक्ष्माणुओं (जीवाणु, प्रोटोज़ोआ और फ़ंगस) द्वारा इन कक्षों (reticulo-rumen) में पहले वाष्पशील वसीय अम्लों, एसिटिक अम्ल, प्रॉपियॉनिक अम्ल और ब्यूटायरिक अम्ल विभाजित किया जाता है। तृतीय आमाशय में पानी और कई अकार्बनिक खनिज तत्व रक्त धारा मंब अवशोषित हो जाते हैं।

जठरांत जुगाली करने वाले पशुओं में उदर का चौथा और अंतिम कक्ष होता है। यह एकल आमाशय उदर (जैसा मनुष्यों या शूकरों में होता है) का एक करीबी समतुल्य है और इसमें पाच्य आहार को लगभग समान विधि से संसाधित किया जाता है। प्राथमिक रूप से यह माइक्रोबायल और आहारीय प्रोटीन के एसिड हाइड्रोलाइसिस के स्थान के रूप में कार्य करता है और इन प्रोटीन स्रोतों को छोटी आंत में और अधिक पाचन और अवशोषण के लिए तैयार करता है। अंततः पाच्य पदार्थों को छोटी आंत में ले जाया जाता है जहां पोषक तत्वों का पाचन और अवशोषण होता है। प्रथम व द्वितीय आमाशय में उत्पन्न हुए सूक्ष्माणुओं का भी छोटी आंत में पाचन होता है।

विशेषीकृत व्यवहार[संपादित करें]

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एक मांस का टुकड़ा "एक उड़ता हुआ बुलबुला".इस व्यवहार का एक कारण यह है कि अतिरिक्त जल को वाष्पित करके अपने भोजन की सान्द्रता बढ़ाने के लिए मक्खी जुगाली करके अपने भोजन को एक बुलबुले में बदल देती है

ऊपर जठरांत और पोटे के अंतर्गत जुगाली की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है और साथ ही पोटे के दूध का उल्लेख है, जो कबूतरों के पोटे की दीवार से निकलने वाला स्त्राव होता है जिसे वयस्क जुगाली करके अपने नवजात पक्षियों को दूध पिलाते हैं।[15].

कई शार्कों में अपने उदर को उल्टा करके उदर को अपने मुंह से बाहर निकालने की क्षमता होती है जिससे वे अनचाहे पदार्थों से छुटकारा पा सकते हैं। (इसका विकास शायद जैवविषों से संपर्क को घटाने के लिए हुआ होगा).

अन्य प्राणी, जैसे खरगोश और कृन्तक, मलभक्षण करते हैं, वे अपने भोजन, विशेषकर मोटा चारा खाने पर, विशेषीकृत मल खाते हैं। कैपीबारा, खरगोश हैम्सटर चूहे और अन्य संबंधित प्रजातियों की एक जटिल पाचन प्रणाली नहीं होती जैसे कि, उदाहरण के लिए, जुगाली करने वाले प्राणियों की होती है। इसके बजाय वे अपने भोजन को दोबारा अपनी आंतों में से गुज़ार कर घास से और अधिक पोषक तत्व प्राप्त कर लेते हैं। आंशिक रूप से हज़म हो चुके भोजन की मुलायम गोलियों का मल के रूप में त्याग किया जाता है और ये प्राणी उन्हें आम तौर पर तुरंत खा लेते हैं। वे सामान्य मल त्याग भी करते हैं, जिसे वे नहीं खाते हैं।

छोटे हाथी, पंडा, कोआला और गैंडे अपनी मां का मल खाते हैं। ऐसा वे शायद खाए गए वनस्पति को पचाने में आवश्यक जीवाणु प्राप्त करने के लिए करते हैं। जब वे जन्म लेते हैं, तो उनकी आंतों मे ये जीवाणु नहीं होते (वे पूरी तरह जीवाणुहीन होते हैं). इन जीवाणुओं के बिना वे कई वनस्पति तत्वों से कोई पोषक मूल्य प्राप्त नहीं कर सकेंगे.

केंचुओं में[संपादित करें]

एक केंचुए के पाचन तंत्र में मुंह, गलकोष, आहार नली, पोटा, पेषणी और आंत होते हैं। मुं‍ह मज़बूत होंठों से घिरा होता है जो मृत घास, पत्तियों और खरपतवार के टुकड़ों और चबाने में मदद के लिए मिट्टी के कणों को लपकने के लिए एक हाथ की तरह कार्य करता है। होंठ आहार को छोटे छोटे टुकड़ों में विभाजित कर देते हैं। आहार को आगे बढ़ने में आसानी के लिए गलकोष में आहार को श्लेष्मा के स्रावण से चिकना बना दिया जाता है। भोजन पदार्थों की सड़न से पैदा हुए अम्लों को निष्प्रभावी करने के लिए आहार नली उसमें कैल्शियम कार्बोनेट मिला देती है। पोटे में अस्थायी संचय होता ह जहां भोजन और कैल्शियम कार्बोनेट को मिलाया जाता है। पेषणी की शक्तिशाली मांसपेशियां भोजन और धूल को मथ कर मिश्रित कर देती हैं। जब मथना पूर्ण हो जाता है, तो पेषणी की दीवारों की ग्रंथियां इस गाढ़े लसदार मिश्रण में एंजाइम मिलाती है जो कार्बनिक पदार्थों के विभाजन में सहायक होते हैं। क्रमाकुंचन के द्वारा इस मिश्रण को आंत में भेजा जाता है जहां उपयोगी बैक्टीरिया रासायनिक विभाजन की प्रक्रिया को जारी रखते हैं। इस प्रक्रिया से कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और विभिन्न विटामिन और खनिज निकलते हैं जो शरीर में अवशोषित कर लिए जाते हैं।

पृष्ठवंशियों के पाचन तंत्र का अवलोकन[संपादित करें]

अधिकतर पृष्ठवंशियों में, पाचन की क्रिया पाचन प्रणाली में कई चरणों की प्रक्रिया होती है। यह प्रक्रिया कच्चे पदार्थों, अक्सर अन्य जीवों, के अन्तर्ग्रहण से आरंभ होती है। अन्तर्ग्रहण में सामान्यतः कुछ प्रकार के यांत्रि‍कीय और रासायनिक संसाधन शामिल होते हैं। पाचन क्रिया को चार चरणों में बांटा गया है:

  1. अन्तर्ग्रहण: भोजन को मुख में डालना (पाचन तंत्र में आहार का प्रवेश),
  2. यांत्रि‍कीय व रासायनिक विभाजन: परिणामी ग्रास को चबाना और उदर व आंतों में उसका पानी, अम्लों, पित्त और एंजाइमों के साथ मिश्रण बनाना ताकि जटिल अणुओं को आसान संरचनाओं में विभाजित किया जा सके.
  3. अवशोषण: परासरण, सक्रिय परिवहन और विसरण के द्वारा पाचन प्रणाली से पोषक तत्वों का परिसंचारी और लसीका केशिकाओं में अवशोषण और
  4. इजेस्शन (मलत्याग): मलत्याग के द्वारा पाचन नली से अपाचित पदार्थों का निकाला जाना.

इस प्रक्रिया में निगलने और क्रमाकुंचन के द्वारा सारी प्रणाली में मांसपेशियों की हलचल अंतर्निहित होती है। पाचन के प्रत्येक चरण के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और यह ऊर्जा अवशोषित पदार्थों से उपलब्ध कराई गई ऊर्जा से "ओवरहेड शुल्क" के रूप में वसूल की जाती है। इस ओवरहेड लागत में मौजूद अंतरों के जीवनशैली, व्यवहार और यहां तक कि शारीरिक ढांचों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होते हैं। इसके उदाहरण मनुष्यों में देखे जा सकते हैं, जो अन्य होमिनिड मानवों (बालों का अभाव, छोटे जबड़े और पेशीविन्यास, भिन्न डेंटिशन या दंतोद्भेदन, आंतों की लंबाई, भोजन पकाना आदि) से काफ़ी भिन्नता रखते हैं।

पाचन प्रक्रिया का प्रमुख भाग छोटी आंत में संपन्न होता है। बड़ी आंत प्राथमिक रूप से आंतों के बैक्टीरिया द्वारा अपाच्य पदार्थों के किण्वन (फ़रमेंटेशन) के लिए और मलत्याग से पहले पाचन किए जा रहे पदार्थ से पानी के पुनःशोषण के लिए एक स्थान के रूप में इस्तेमाल होती है।

स्तनधारियों में, पाचन क्रिया की तैयारी कपालीय चरण से आरंभ होती है जिसमें मुख में लार का उत्पादन होता है और उदर में पाचक एंजाइम बनाए जाते हैं। यांत्रि‍कीय और रासायनिक पाचन मुं‍ह में आरंभ होता है, जहां भोजन को चबा कर लार के साथ अच्छी तरह मिलाया जाता है जिससे स्टार्च का एंजाइमैटिक संसाधन आरंभ होता है। उदर चबाने और अम्लों और एंजाइमों के साथ मिलाने की प्रक्रिया के द्वारा यांत्रि‍कीय और रासायनिक रूप से भोजन को छोटे छोटे कणों में बदलने का कार्य जारी रखता है। अवशोषण उदर और आमाशय व आंतों के मार्ग में होता है और मलत्याग के द्वारा यह प्रक्रिया पूरी होती है।

मनुष्यों में पाचन प्रक्रिया[संपादित करें]

संपूर्ण पाचन प्रणाली लगभग 9 मीटर लंबी होती है। एक स्वस्थ मनुष्य में इस प्रक्रिया में 24 से 72 घंटे लग सकते हैं।

आमाशयी स्रावण के चरण[संपादित करें]

  • कपालीय चरण – यह चरण आहार के उदर में प्रवेश करने से पहले होता है और इसमें खाने और पाचन के लिए शरीर द्वारा की गई तैयारियां शामिल होती हैं। दृश्य और विचार सेरेब्रल कॉर्टेक्स (प्रमस्तिष्क-प्रान्तस्था) अर्थात मस्तिष्क की सतह को उत्तेजित करते हैं। स्वाद और गंध के उद्दीपन को अधःश्वेतक (hypothalamus) और मेरु-रज्जा (medulla oblongata) में भेजा जाता है। इसके बाद उसे वेगस तंत्रि‍का और एसिटाइलकोलाइन के स्रावण से गुज़ारा जाता है। इस चरण में आमाशयी स्रावण अधिकतम दर का 40% तक बढ़ जाता है। उदर की अम्लीयता इस बिंदु पर आहार के द्वारा बफ़र नहीं की जाती और इस प्रकार सॉमेटोस्टैटिन के D सेल स्रावण के द्वारा भित्तीय (अम्ल स्रावण) और G सेल (गैस्ट्रिन स्रावण) गतिविधि रोकने का कार्य करती है।
  • आमाशय चरण – इस चरण में 3 से 4 घंटे लगते हैं। यह उदर के फुलाव, उदर में आहार की मौजूदगी और पीएच (pH) में कमी द्वारा उद्दीप्त किया जाता है। फुलाव से लंबी और आंत्रपेशी-अस्तर की परावर्तित क्रियाएं सक्रिय करती है। इससे एसिटाइलकोलाइन का स्रावण सक्रिय होता है जिससे और अधिक आमाशयी यूष का स्रावण होता है। जैसे ही प्रोटीन उदर में प्रवेश करता है, तो वह हाइड्रोजन आयन्स के साथ जुड़ जाता है, जिससे उदर का pH लगभग पीएच (pH) 1-3 तक गिर जाता है। गैस्ट्रिन और एचसीएल (HCl) स्रावण का अवरोधन हटा दिया जाता है। इससे G सेल गैस्ट्रिन का स्रावण करने के लिए ट्रिगर हो जाता है और फिर वह भित्तीय कोशिकाओं को HCl का स्रावण करने के लिए उद्दीप्त करता है। HCl का स्रावण एसिटाइलकोलाइन और हिस्टामाइन द्वारा भी ट्रिगर किया जाता है।
  • आंत्र चरण – इस चरण के दो भाग होते हैं, उद्दीपक और अवरोधक. आंशिक रूप से पचा हुआ आहार पाचनान्त्र में भर जाता है। इससे आंतों का गैस्ट्रिन स्रावित होने के लिए ट्रिगर हो जाता है। एंटेरोगैस्ट्रिक परावर्तित क्रिया वेगल नाभिक का अवरोधन करती है और संवेदी फ़ाइबर सक्रिय करती है जिसके कारण पायलॉरिक स्फिंक्टर कस जाता है ताकि और आहार प्रवेश न कर सके और स्थानीय परावर्तित क्रिया को अवरोधित करता है।

मुखद्वार[संपादित करें]

मनुष्यों में पाचन क्रिया मुखद्वार से आरंभ होती है जहां पर आहार को चबाया जाता है। मुख द्वार में एक्ज़ॉक्रिन लार ग्रंथियों की तीन जोड़ि‍यों (पैरॉटिड, सबमैंडिब्यूलर और अवजिह्वी) द्वारा बड़ी मात्रा में (1-1.5 लीटर/दिन) लार स्रावित की जाती है और उसे जीभ की मदद से चबाए गए भोजन में मिलाया जाता है। लार दो प्रकार की होती है। एक होती है तरल, पानी जैसा स्रावण और उसका काम भोजन को गीला करना होता है। दूसरी होती है गाढ़ा, श्लैष्मिक स्रावण और यह लुब्रिकेंट का काम करके भोजन के कणों को एक दूसरे से जोड़ कर ग्रास बनाती है। लार मुख द्वार को साफ़ करके भोजन को नम कर देती है और इसमें पाचक एंजाइम जैसे सैलीवरी एमिलेज़ होते हैं, जो पालीसैकेराइड जैसे स्टार्च का रासायनिक विभाजन करके उसे डिस्सैकेराइड जैसे माल्टोज़ में बदलने में सहायक होता है। इसमें श्लेष्मा भी होता है, यह एक ग्लाइकोप्रोटीन है जो भोजन को नर्म करके उसे ग्रास में बदलने में सहायक होता है।

निगलने पर चबाया गया आहार ग्रासनली में ले जाया जाता है और ओरोफ़ैरिंक्ज़ और हाइपोफ़ैरिंक्ज़ से गुज़रता है। निगलने के तंत्र का समन्वयन मेरु-रज्जा (medulla oblongata) में स्थित निगलने के केन्द्र और संयोजक अंगों में किया जाता है। जब भोजन का ग्रास मुख में पीछे की ओर धकेल दिया जाता है, तो यह परावर्तित क्रिया गलकोष (pharynx) में मौजूद स्पर्श ग्राहियों द्वारा आरंभ की जाती है।

गलकोष या ग्रसनी (pharynx)[संपादित करें]

गलकोष गर्दन और गले का हिस्सा है जो मुंह और नासिका द्वार के ठीक पीछे स्थित होता है और ग्रासनली के ऊपर स्थित होता है। यह पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र का हिस्सा होता है। चूंकि भोजन और वायु दोनों गलकोष से होकर जाते हैं, इसलिए भोजन के‍ निगले जाने पर संयोजी ऊतकों का एक पल्ला एपिग्लॉटिस श्वासनली के ऊपर बंद हो जाता है जिससे गला घुटने या श्वासावरोधन को रोका जा सके.

ओरोफ़ैरिंक्ज़ गलकोष का वह भाग होता है जो मुखद्वार के पीछे स्थित होता है और उसकी दीवार पर स्तरीकृत स्क्वैमस एपिथेलियम की परत होती है। नैसोफ़ैरिंक्ज़ नासिका द्वार के पीछे स्थित होता है और उसकी दीवार पर सिलिएटेड कॉल्म्नर स्यूडोस्ट्रैटिफ़ाइड एपिथेलियम की परत होती है।

ऊपर स्थित ओरोफ़ैरिंक्ज़ की तरह हाइपोफ़ैरिंक्ज़ (लैरिंगोफ़ैरिंक्ज़) भोजन और वायु के लिए एक मार्ग के रूप में कार्य करता है उसकी दीवार पर स्तरीकृत स्क्वैमस एपिथेलियम की परत होती है। यह सीधे खड़े एपिग्लॉटिस के नीचे होती है और कंठनली तक जाती है, जहां आवश्यक श्वासतंत्रीय और पाचनतंत्रीय मार्ग विभाजित होते हैं। इस बिंदु पर स्वरयंत्रग्रसनी (laryngopharynx) ग्रासनली के साथ चलती है। निगलते समय भोजन को प्राथमिकता दी जाती है और वायु मार्ग अस्थायी रूप से बंद हो जाता है।

ग्रासनली[संपादित करें]

ग्रासनली लगभग 25 सेंटीमीटर लंबी, संकरी, पेशीय, श्लेष्म ग्रंथियों युक्त स्तरीकृत स्क्वैमस एपिथेलियम द्वारा रेखांकित सीधी ट्यूब होती है जो मुख के पीछे गलकोष से आरंभ होती है, सीने से थोरेसिक डायफ़्राम से गुज़रती है और उदर स्थित हृदय द्वार पर जाकर समाप्त होती है। ग्रासनली की दीवार महीन मांसपेशियों की दो परतों की बनी होती है जो ग्रासनली से बाहर तक एक सतत परत बनाती हैं और लंबे समय तक धीरे धीरे संकुचित होती हैं। इन मांसपेशियों की आंतरिक परत नीचे जाते छल्लों के रूप में घुमावदार मार्ग में होती है, जबकि बाहरी परत लंबवत होती है। ग्रासनली के शीर्ष पर ऊतकों का एक पल्ला होता है जिसे एपिग्लॉटिस कहते हैं जो निगलने के दौरान के ऊपर बंद हो जाता है जिससे भोजन श्वासनली में प्रवेश न कर सके. चबाया गया भोजन इन्हीं पेशियों के क्रमाकुंचन के द्वारा ग्रासनली से होकर उदर तक धकेल दिया जाता है। ग्रासनली से भोजन को गुज़रने में केवल सात सेकंड लगते हैं और इस दौरान पाचन क्रिया नहीं होती.

उदर[संपादित करें]

मुख्य लेख: उदर

उदर एक छोटी, अंग्रेज़ी के 'J' अक्षर के आकार की थैली होती है जिसकी दीवारें मोटी, लचीली मांसपेशियों की बनी होती है जो भोजन का भंडारण करती हैं और उसे छोटे छोटे कणों में बदलने में मदद करती हैं। भोजन यदि छोटे-छोटे कणों में विभाजित कर दिया जाए, तो छोटी आंत में उसका पूरी तरह पाचन होने की संभावना अधिक होती है और उदर में होने वाला मंथन मुंह में आरंभ हुई भोजन के विभाजन की प्रक्रिया में सहायक होता है। जुगाली करने वाले चतुष्पदी प्राणी जो रेशेदार पदार्थों (मुख्य रूप से सेल्यूलोज़) को पचा सकते हैं, वे अग्रोदर और जुगाली का उपयोग करके इस विभाजन को और आगे बढ़ाते हैं। खरगोश और अन्य कुछ प्राणी पदार्थों को अपने सारे पाचन तंत्र से दो बार गुज़ारते हैं। अधिकतर पक्षी छोटे कंकड़ खाकर अपनी पेषणी में होने वाली यांत्रि‍कीय प्रक्रिया में सहायता करते हैं।

भोजन उदर स्थित हृदय द्वार से उदर में आता है जहां उसे और अधिक छोटे-छोटे कणों में तोड़ा जाता है और प्रोटीन के विभाजन के लिए गैस्ट्रिक अम्ल, पेप्सिन और अन्य पाचक एंजाइमों के साथ अच्छी तरह मिलाया जाता है। उदर के एंजाइमों का एक अनुकूलतम बिंदु भी होता है, अर्थात वे किसी खास पीएच (pH) और तापमान पर सबसे बेहता कार्य करते हैं। अम्ल स्वयं भोजन को चूर्ण में नहीं बदलता, वह केवल पेप्सिन एंजाइम की क्रिया के लिए अनुकूलतम पीएच (pH) उपलब्ध कराता है और भोजन के साथ भीतर आने वाले सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर देता है। वह प्रोटीनों को विकृत भी कर सकता है। यह पॉलीपेप्टाइड बॉन्ड को घटाने और नमक सेतुओं को भंग करने की प्रक्रिया है जो द्वितीयक, तृतीयक और चतुर्थ प्रोटीन संरचना की क्षति का कारण बनती है। उदर की भित्तीय कोशिकाएं एक ग्लाइकोप्रोटीन भी स्रावित करती हैं, जिसे इंट्रिंसिक फ़ैक्टर कहा जाता है और जो विटामिन बी-12 के अवशोषण को सक्षम बनाता है। अन्य छोटे कण, जैसे अल्कोहल, उदर में अवशोषित कर लिए जाते हैं, वे उदर की झिल्ली से गुज़रते हुए सीधे रक्तवाही तंत्र में प्रवेश कर जाते हैं। उदर में भोजन अर्ध-द्रव स्वरूप में होता है जो पूर्ण होने पर काइम के नाम से जाना जाता है।

अन्न नली का अनुप्रस्थ भाग उदर के भीतर चार (या पांच, श्लैष्मिक झिल्ली के तहत वर्णन देखें) स्पष्ट और सुविकसित परतों को उजागर करता है।

  • मध्यकला (Mesothelial) को‍शिकाओं की एक पतली परत सीरमी झिल्ली, जो उदर की सबसे बाहरी दीवार होंती है।
  • मांसपेशीय परत, भीतर लिए गए भोजन को मिलाने के लिए उपयोग की जाने वाली मांसपेशियों की एक सुविकसित परत होती है, जो अलग-अलग संरेखणों में चलने वाले तीन सेट से मिल कर बनी होती है। सबसे बाहरी परत उदर के लंबवत अक्ष (ऊपर से नीचे) के समानांतर चलती है, बीच की परत अक्ष से समकेंद्री (उदर का क्षैतिज रूप से चक्कर लगाते हुए) होती है और सबसे भीतर की तिरछी परत, जो अंतर्ग्रहित भोजन को मिलाने और उसे छोटे कणों में बदलने के लिए उत्तरदायी होती है और लंबवत अक्ष से कोणीय रूप में चलती है। आंतरिक परत केवल उदर में ही होती है, अन्य सभी पाचक प्रणालियों में केवल पहली दो परतें होती हैं।
  • सबम्यूकोसा, यह आंतरिक पेशीय परत को श्लैष्मिक झिल्ली जोड़ने वाले संयोजी ऊतक से बना होता है और इसमें शिराएं, रक्त और लसीका धमनियां होती हैं।
  • श्लैष्मिक झिल्ली बहुत बार मुड़ी हुई सबसे अंदरूनी परत होती है। इसे एपिथीलियम (epithelium), लैमिना प्रोप्रिया (lamina propria) और मस्क्यूलैरिस म्यूकोसा (muscularis mucosae) में विभाजित किया जा सकता है, हालांकि कुछ लोग सबसे बाहरी मस्क्यूलैरिस म्यूकोसा (muscularis mucosae) को एक अलग परत मानते हैं क्योंकि यह अंतःजनस्तर या एंडोडर्म के बजाए पूर्वमध्यजनस्तर या मेसोडर्न से विकसित होती है (और इस तरह कुल 5 परतें होती हैं). एपिथीलियम और लैमिना संयोजी ऊतकों से भरी होती है और आमाशयी ग्रंथियों से ढंकी होती है जो सरल या नलीदार शाखाओं वाली हो सकती हैं और श्लेष्मा, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, पेप्सिनोजेन और रेनिन का स्रावण करती है। श्लेष्मा भोजन को चिकना बनाती है और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल को उदर की दीवारों को प्रभावित करने से रोकती है।

छोटी आंत[संपादित करें]

उदर में संसाधित किए जाने के बाद भोजन जठरनिर्गमीय संकोची पेशी से होकर छोटी आंत में भेज दिया जाता है। दूधिया काइम के पाचनान्त्र में प्रवेश करने के बाद पाचन और अवशोषण प्रक्रियाओं का एक बड़ा भाग यहीं पर संपन्न होता है। यहां उसे तीन अलग अलग द्रवों से मिलाया जाता है:

  • पित्त, जो अवशोषण करने के लिए वसा का इमल्सीकरण करता है, काइम को निष्प्रभावी करता है और इसका उपयोग बिलिन और पित्ताम्ल जैसे अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालने के लिए किया जाता है। पित्त का उत्पादन यकृत द्वारा किया जाता है और फिर उसे पित्ताशय में भंडारित किया जाता है। पित्ताशय में मौजूद पित्त बहुत अधिक सान्द्र होता है।
  • अग्न्याशय द्वारा बनाया गया पाचक रस.
  • क्षारीय श्लैष्मिक झिल्लियों के आन्त्र एंजाइम. इन एंजाइमों में माल्टेज़, लैक्टेज़ और सुक्रेज़ (ये तीनों केवल शकरों को संसाधित करते हैं), ट्रिप्सिन और काइमोट्रिप्सिन शामिल होते हैं।

जब छोटी आंत में पीएच (pH) स्तर बदलता है और धीरे-धीरे समाक्षारीय हो जाता है, तो और अधिक एंजाइम सक्रिय हो जाते हैं जो रासायनिक रूप से विभिन्न पोषक तत्वों को और छोटे अणुओं में विभाजित कर देते हैं ताकि वे रक्तवाहिकीय या लसीकीय तंत्रों में अवशोषित किए जा सकें. विली नामक छोटी, उंगली जैसी संरचनाएं, जिनमें से प्रत्येक माइक्रोविली नामक और भी छोटी, बालों जैसी संरचनाओं से घिरी होती है, आंत का सतही क्षेत्रफल बढ़ा कर और पोषक तत्वों के अवशोषित होने की गति बढ़ा कर पोषक तत्वों के अवशोषण को बेहतर बनाती हैं। अवशोषित पोषक तत्वों से भरा रक्त हेपाटिक पोर्टल शिरा से होकर छोटी आंत से बाहर ले जाया जाता है और यकृत में पहुंचाया जाता है जहां उसे छाना जाता है, उसमें से टॉक्सिन निकाले जाते हैं और पोषक तत्वों को संसाधित किया जाता है।

छोटी आंत और पाचक प्रणाली का शेष भाग क्रमाकुंचन करता है जिससे भोजन को उदर से मलाशय तक ले जाया जाता है और भोजन को पाचक रसों से मिला कर अवशोषित किया जाता है। वृत्ताकार और लंबवत मांसपेशियां परस्पर विरोधी होती है, जब एक सिकुड़ती है तो दूसरी शिथिल हो जाती है। जब वृत्ताकार मांसपेशियां सिकुड़ती हैं, तो कोटर और अधिक संकरा और लंबा हो जाता है और इससे भोजन को दबा कर आगे की ओर धकेल दिया जाता है। जब लंबवत मांसपेशियां सिकुडती हैं, तो वृत्ताकार मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं और आहार नली और अधिक चौड़ी और छोटी होकर भोजन को प्रवेश करने में सहायक होती है। manusyo me choti aant ki lambai 7mitar hoti hai

बड़ी आंत[संपादित करें]

छोटी आंत से होकर गुज़रने के बाद भोजन बड़ी आंत में प्रवेश करता है। बड़ी आंत में पाचन की क्रिया इतनी अवधि तक जाती है जिससे आहार नली के बैक्टीरिया क्रिया करके किण्वन कर सकें, जिसमें छोटी आंत में संसाधन के बावजूद बचे रह गए कुछ पदार्थों को विभाजित किया जाता है। विभाजन के कुछ उत्पाद अवशोषित कर लिए जाते हैं। मनुष्यों में, इन पदार्थों में सबसे जटिल सैकेराइड (मनुष्यों में अधिकतम तीन डाइसैकेराइड पचाए जा सकते हैं) शामिल होते हैं। इसके अलावा, कई पृष्ठवंशियों में बड़ी आंत द्रव को पुनः अवशोषित कर लेती है; रेगिस्तानी जीवनशैली वाले कुछ पृष्ठवंशियों में इस पुनर्शोषण के कारण सतत अस्तित्व संभव होता है।

मनुष्यों में बड़ी आंत लगभग 1.5 मीटर लंबी होती है और इसके तीन भाग होते हैं: छोटी आंत से मिलने वाले बिंदु पर स्थित अंधान्त्र, बृहदान्त्र और मलाशय. बृहदान्त्र के भी चार भाग होते हैं: आरोही बृहदान्त्र, अनुप्रस्थ बृहदान्त्र, अवरोही बृहदान्त्र और अवग्रह बृहदान्त्र. बड़ी आंत ग्रास से पानी सोख लेती है और मल को तक तक जमा रखती है जब तक कि उसे बाहर निकाल नहीं दिया जाता. जो आहार उत्पाद विली से होकर नहीं निकल सकते, जैसे सेल्यूलोज़ (आहार फ़ाइबर), उन्हें शरीर के अन्य अपशिष्ट पदार्थों में मिला दिया जाता है और वे कड़ा और सान्द्र मल बन जाते हैं। यह मल एक निश्चित अवधि के लिए मलाशय में रहता है और फिर आकुंचन और शिथिलन के कारण गुदा द्वार के ज़रिए शरीर से निकाल दिया जाता है। इस अपशिष्ट पदार्थ का बाहर निकलना गुदा की संकोचक पेशी द्वारा नियंत्रि‍त किया जाता है।

स्काई पाचन[संपादित करें]

छोटी आंत में वसा की मौजूदगी ऐसे हार्मोन पैदा करती है जो अग्न्याशय से पाचक रस लाइपेज़ के स्रावण को उद्दीप्त करती है, जो सामान्यतः आगे की प्रक्रिया के लिए यकृत में, या भंडारण के लिए वसीय ऊतक में जाता है।

पाचक हार्मोन[संपादित करें]

हमारे शरीर का कौन सा अंग पचे हुए भोजन को अवशोषित करता है? - hamaare shareer ka kaun sa ang pache hue bhojan ko avashoshit karata hai?

प्रमुख पाचन हार्मोन की लड़ाई

स्तनधारियों में पांच हार्मोन होते हैं जो पाचक प्रणाली में सहायक होते हैं और उसे नियंत्रि‍त करते हैं। पृष्ठवंशियों में इसमें कई परिवर्तन होते हैं, उदा‍हरण के लिए पक्षियों में. ये प्रक्रियाएं जटिल होती हैं और इनके अतिरिक्त विवरण लगातार खोजे जाते रहे हैं। उदाहरण के लिए, हाल के वर्षों में चयापचयी या मेटाबोलिक नियंत्रण (मुख्यतः ग्लूकोज़-इंसुलिन तंत्र) के कई संबंध खोजे गए हैं।

  • गैस्ट्रिन – यह उदर में होता है और गैस्ट्रिक ग्रंथियों को पेप्सिनोजेन (पेप्सिन एंजाइन का एक अक्रिय स्वरूप) और हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के स्रावण के लिए उद्दीप्त करता है। गैस्ट्रिन का स्रावण उदर में भोजन के पहुंचने से आरंभ होता है। न्यून pH इस स्रावण में रुकावट लाता है।
  • सीक्रेटिन – यह पाचनान्त्र में होता है और अग्न्याशय में सोड़ि‍यम बाइकार्बोनेट के स्रावण की शुरूआत करता है और यकृत में पित्त के स्रावण का उद्दीपन करता है। यह हार्मोन काइम की अम्लीयता पर प्रतिसाद देता है।
  • कॉलसिस्टकाइनिन (CCK) - यह पाचनान्त्र में होता है और अग्न्याशय में पाचक एंजाइमों के स्रावण की शुरूआत करता है और पित्ताशय में पित्त के स्रावण का उद्दीपन करता है। यह हार्मोन काइम में वसा होने पर स्रावित होता है।
  • गैस्ट्रिक इनहिबि‍टरी पेप्टाइड जीआईपी (GIP) - यह पाचनान्त्र में होता है और उदर में मंथन कम करता है जिससे उदर में उदर में खाली होने की प्रक्रिया को धीमा करता है। इसका एक अन्य कार्य है इंसुलिन का स्रावण प्रेरित करता है।
  • मोटिलिन - यह पाचनान्त्र में होता है और गैस्ट्रोइंटेस्टिनल मोटिलिटी के स्थानांतरित होते मायोइलेक्ट्रिक जटिल घटक को बढ़ाता है और पेप्सिन उत्पादन का उद्दीपन करता है।

पाचन में पीएच (pH) का महत्व[संपादित करें]

पाचन एक जटिल प्रक्रिया है जो कई कारकों द्वारा नियंत्रि‍त की जाती है। सामान्य रूप से कार्य करने वाली पाचक नली में पीएच (pH) एक अहम भूमिका निभाता है। मुख, गलकोष और ग्रास नली में पीएच (pH) सामान्यतः 6.8 होता है, जो कि अत्यंत क्षीण अम्लीय है। पाचक नली के इस क्षेत्र में लार पीएच (pH) का नियंत्रण करती है। लार में सैलिवरी एमिलेज़ होता है और यह कार्बोहाइड्रेट का मोनोसैकेराइड्स में विभाजन आरंभ करता है। अधिकांश पाचक एंजाइम pH के प्रति संवेदनशील होते हैं और ये किसी न्यून पीएच (pH) वाले परिवेश, जैसे उदर, में कार्य नहीं करेंगे. 7 से कम pH अम्लीयता इंगित करता है, जबकि 7 से अधिक पीएच (pH) क्षार का संकेत देता है; हालांकि अम्ल या क्षार की सान्द्रता की भी एक भूमिका होती है।

उदर में पीएच (pH) अत्यधिक अम्लीय होता है और वहां होने के दौरान कार्बोहाइड्रेट के‍ विभाजन को अवरोधित करता है। उदर के इन तीव्र अम्लीय पदार्थों के दो लाभ होते हैं, छोटी आंत में पाचन की क्रिया आगे बढ़ाने के लिए प्रोटीन का विकृतिकरण करना और साथ ही गैर-विशिष्ट प्रतिरक्षा प्रदान करना, जिससे विभिन्न रोगाणु धीमे या नष्ट हो जाते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

छोटी आंत में पाचक किण्वकों (enzymes) को सक्रिय करने के लिए पाचनान्त्र महत्वपूर्ण संतुलन प्रदान करता है। उदर की अम्लीय स्थिति को प्रभावहीन करने के लिए यकृत पाचनान्त्र में पित्त का स्रावण करता है। साथ ही अग्न्याशय वाहिनी पाचनान्त्र में खाली होती है और बाइकार्बोनेट मिला कर अम्लीय काइम को निष्प्रभावी करती है और इस प्रकार एक उदासीन परिवेश का निर्माण करती है। छोटी आंत का श्लैष्मिक ऊतक क्षारीय होता है, जो लगभग 8.5 के पीएच (pH) का निर्माण करता है और इस प्रकार मंद क्षारीय परिवेश में अवशोषण सक्षम करता है।

मनुष्यों द्वारा पशुओं की आहार नली के उपयोग[संपादित करें]

  • बछड़ों के उदर आम तौर पर चीज़ बनाने के लिए वसातंच के स्रोत के रूप में उपयोग किए जाते रहे हैं।
  • संगीतकारों द्वारा प्राणी आंत के तारों का उपयोग मिस्र के तीसरे राजवंश के काल से किया जाता रहा है। हाल में मेमने की आंत से तार बनाए जाते थे। आधुनिक युग का उद्भव के साथ संगीतकारों ने रेशम, या सिंथेटिक सामग्री, जैसे नाइलॉन या स्टील के तारों का उपयोग किया है। हालांकि कुछ यंत्रवादक आज भी पुरानी धुनें पैदा करने के लिए आंत के बने तारों का उपयोग करते हैं। यद्यपि ये तार सामान्यतः “कैटगट” के नाम से जाने जाते हैं, लेकिन आंतों के तार बनाने के लिए बिल्लियों का कभी उपयोग नहीं किया गया।
  • रैकेट्स, जैसे टेनिस के रैकेट्स, में उपयोग किए जाने वाले आंतों के प्राकृतिक तारों के लिए भेड़ की आंतें मूल स्रोत थीं। आज सिंथेटिक तार बहुत आम हैं, लेकिन बेहतरीन गुणवत्ता के आंत के तार गाय की आंत के बनाए जाते हैं।
  • स्नेयर ड्रम की विशिष्ट ध्वनि देने वाले जाल बनाने के लिए भी आंतों की रस्सी का उपयोग किया जाता है। हालांकि वर्तमान में स्नेयर ड्रम में लगभग हर जगह धातु के तारों का उपयोग किया जाता है, लेकिन उत्तरी अमेरिका बेंडिर फ़्रेम ड्रम अब भी इसके लिए आंतों के तार का उपयोग करते हैं।
  • "नैचुरल (Natural)" सॉसेज हल्स (या केसिंग) प्राणियों, खास कर शूकर, गाय और मेमने की आंतों के बनाए जाते हैं। इसी प्रकार, हैगीज़ नामक डिश पारंपरिक रूप से भेड़ के उदर में उबाली और परोसी जाती है।
  • एक प्रकार का आहार, चिटरलिंग्स अच्छी तरह से धोई गई शूकर की आंत से बना होता है।
  • दीवाल घड़ि‍यों के तारों के लिए और पुरानी शैली की ब्रैकेट घड़ि‍यों की फ़्यूज़ी गति के लिए प्राणी आंतों का उपयोग किया जाता था, लेकिन अब उनकी जगह धातु के तारों ने ले ली है।
  • प्राचीनतम ज्ञात निरोध, लगभग ईस्वी सन 1640 से, प्राणियों की आंतों से बनाए जाते थे।[16]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • पोषण
  • मानव जठरांत्र संबंधी मार्ग

सन्दर्भ[संपादित करें]

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बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • मानव फिजियोलॉजी - पाचन
  • पाचन तंत्र के लिए NIH गाइड

पचे भोजन का अवशोषण कहाँ होता है?

Solution : पचे हुए भोजन का अवशोषण आहार नाल की क्षुद्रांत्र (Small intestine) में होता है।

कौन सा अंग पचे हुए भोजन को अवशोषित करता है?

Detailed Solution. सही उत्‍तर बड़ी आंत है। बड़ी आंत जल को अवशोषित करती है और तरल से मल में अपशिष्ट को बदल देती है। बड़ी आंत हमारे पाचन तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है; यह बिना पचे हुए भोजन से अधिकांश जल को अवशोषित कर सकती है।

शरीर का कौन सा अंग भोजन को पचाता है?

छोटी आंत: यह अत्यधिक कुंडलित है और लगभग 6-8 मीटर लम्बी है। यह यकृत और अग्न्याशय से स्राव प्राप्त करती है। पचा हुआ भोजन अब आंत की दीवार में रक्त वाहिकाओं में जा सकता है।