हिमाचल पर्वतमाला (Himachal Range), जिन्हें लघु हिमालय (Lower Himalaya, Lesser Himalaya) या मध्य हिमालय (Middle Himalaya) भी कहा जाता है, हिमालय की मध्यवर्ती क्षेणी है। यह शिवालिक पर्वतमाला से उत्तर में है और उस से ऊँची है, लेकिन हिमाद्रि पर्वतमाला से दक्षिण में है और उस से कम ऊँचाई रखती है। हिमाचल पर्वतमाला के शिखर 3,700 से 4,500 मीटर (12,000 से 14,500 फुट) ऊँचे हैं। यह पर्वत श्रेणी पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में भूटान तक चलती है। इस से आगे पूर्व में हिमाचल और हिमाद्री की शृंखलाएँ आपस में मिल जाती है और इन्हें अलग बताना कठिन है। यहाँ से यह संयुक्त पर्वतमाला पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी तक जाती है। पीर पंजाल हिमाचल पर्वतमाला की सबसे बड़ी शृंखला है।[1][2] विवरण[संपादित करें]हिमाचल पर्वतमाला को क्षेत्रीय रूप से कई नामों से जाना जाता है जैसे कुमाऊँ में धौलाधार श्रेणी, अरूणाचल प्रदेश व सिक्किम में महाभारत श्रेणी इत्यादि। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून नमक घाटियाँ पायी जाती है। मध्य हिमालय और महान हिमालय के बीच दो प्रमुख घाटियाँ स्थित हैं, पश्चिम में कश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। इसमे निम्न उपशृंखलाएँ पाई जाती हैं -
इस हिमालय के में पर्वतीय ढालो में छोटे-छोटे घास के मैदान पाए जाते है जिन्हें कश्मीर में मर्ग कहा जाता है जैसे - सोनमर्ग,गुलमर्ग,आदि। जबकि उत्तराखंड के इन्हें पयार कहा जाता है। यहाँ पर पूर्णतः सहित कटिबंधीय कोणधारी वनस्पति पाई जाती है। यह श्रेणी महान हिमालय के दक्षिण तथा शिवालिक हिमालय के उत्तर में उसके समानांतर पहली है। यहां 80 से 100 किलोमीटर चौड़ी है। इस श्रेणी की ऊंचाई 3700 से 4500 मीटर है। पीर पंजाल श्रेणी इसका पश्चिमी विस्तार है; जिसका जम्मू कश्मीर एवं हिमाचल राज्य में पहला मिलता है। यह इस श्रेणी की सबसे लंबी व प्रमुख श्रेणी है । झेलम और व्यास नदियों के बीच लगभग 400 किलोमीटर की लंबाई में लगातार फेल कर आगे यह श्रेणी दक्षिण पूर्व दिशा में मुड़ जाती है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
हिमालय पर्वत की अवस्थिति का एक सरलीकृत निरूपण हिमालय भारत में स्थित एक प्राचीन पर्वत श्रृंखला है | हिमालय को पर्वतराज भी कहते हैं जिसका अर्थ है पर्वतों का राजा |। कालिदास तो हिमालय को पृथ्वी का मानदंड मानते हैं। हिमालय की पर्वतश्रंखलाएँ शिवालिक कहलाती हैं। सदियों से हिमालय की कन्दराओं (गुफाओं) में ऋषि-मुनियों का वास रहा है और वे यहाँ समाधिस्थ होकर तपस्या करते हैं । हिमालय आध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र है। उत्तराखंड को श्रेय जाता है इस "हिमालयानाम् नगाधिराजः पर्वतः" का हृदय कहाने का। ईश्वर अपने सारे ऐश्वर्य- खूबसूरती के साथ वहाँ विद्यमान है। 'हिमालय अनेक रत्नों का जन्मदाता है ( अनन्तरत्न प्रभवस्य यस्य), उसकी पर्वत-श्रंखलाओं में जीवन औषधियाँ उत्पन्न होती हैं ( भवन्ति यत्रौषधयो रजन्याय तैल पुरत सुरत प्रदीपः), वह पृथ्वी में रहकर भी स्वर्ग है।( भूमिर्दिवभि वारूढं)। हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।[2] इस चाप का उभार दक्षिण की ओर अर्थात उत्तरी भारत के मैदान की ओर है और केन्द्र तिब्बत के पठार की ओर है। इन तीन मुख्य श्रेणियों के आलावा चौथी और सबसे उत्तरी श्रेणी को परा हिमालय या ट्रांस हिमालय कहा जाता है जिसमें कराकोरम तथा कैलाश श्रेणियाँ शामिल है। हिमालय पर्वत 7 देशों की सीमाओं में फैला हैं। ये देश हैं- पाकिस्तान,अफगानिस्तान , भारत, नेपाल, भूटान, चीन और म्यांमार। अन्तरिक्ष से लिया गया हिमालय का चित्र संसार की अधिकांश ऊँची पर्वत चोटियाँ हिमालय में ही स्थित हैं। विश्व के 100 सर्वोच्च शिखरों में हिमालय की अनेक चोटियाँ हैं। विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय का ही एक शिखर है। हिमालय में 100 से ज्यादा पर्वत शिखर हैं जो 8848.86 मीटर से ऊँचे हैं। हिमालय के कुछ प्रमुख शिखरों में सबसे महत्वपूर्ण सागरमाथा हिमाल, अन्नपूर्णा, शिवशंकर, गणेय, लांगतंग, मानसलू, रॊलवालिंग, जुगल, गौरीशंकर, कुंभू, धौलागिरी और कंचनजंघा है।[3] हिमालय श्रेणी में 15 हजार से ज्यादा हिमनद हैं जो 12 हजार वर्ग किलॊमीटर में फैले हुए हैं। 72 किलोमीटर लंबा सियाचिन हिमनद विश्व का दूसरा सबसे लंबा हिमनद है। हिमालय की कुछ प्रमुख नदियों में शामिल हैं - सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र और यांगतेज। भू-निर्माण के सिद्धांतों के अनुसार यह भारत-आस्ट्रेलिया प्लेटों से एशियाई प्लेट को टकराने से बना है। हिमालय के निर्माण में प्रथम उत्थान 650 लाख वर्ष पूर्व हुआ था और मध्य हिमालय का उत्थान 450 लाख वर्ष पूर्व[4] हिमालय में कुछ महत्त्वपूर्ण धार्मिक स्थल भी है। इनमें हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, गोमुख, देव प्रयाग, ऋषिकेश, कैलाश, मानसरोवर तथा अमरनाथ,शाकम्भरी प्रमुख हैं। भारतीय ग्रंथ गीता में भी इसका उल्लेख मिलता है (गीता:10.25)।[5] हिमालय का निर्माण जहाँ आज हिमालय है वहां कभी टेथिस नाम का सागर लहराता था। यह एक लम्बा और उथला सागर था। यह दो विशाल भू - खन्डो से घिरा हुआ था। इसके उत्तर में अंगारालैन्ड और दक्षिण में गोन्ड्वानालैन्ड नाम के दो भू - खन्ड थे । लाखों वर्षों इन दोनों भू - खन्डो का अपरदन होता रहा और अपरदित पदार्थ (मिट्टी, कन्कड, बजरी, गाद आदि) टेथिस सागर में जमा होने लगे । ये दो विशाल भू - खन्ड एक - दुसरे की ओर खिसकते भी रहे। दो विरोधी दिशाओ में पड़ने वाले दबाव के कारण सागर में जमी मिट्टी आदि की परतो में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में पानी की सतह् से ऊपर आ गए। यह क्रिया निरंतर चलती रही और कलान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियो के निर्माण हुआ जिन्हे आज हम हिमालय के नाम से जाना जाता हैं।[6] लघु हिमालय[संपादित करें]हिमालय पर्वत का वह भाग जो महान हिमालय के दक्षिण सामानान्तर तक फैला हुआ है, लघु हिमालय कहलाता है। यह अंचल मध्य हिमालय या हिमाचल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन वास्तव में यह मध्य हिमालय ही है। लघु हिमालय 80 से 100 किलोमीटर चौड़ाई में फैला हुआ है। इसकी औसत ऊँचाई 1628 मीटर से लेकर 3000 मीटर है। इसकी अधिकतम ऊँचाई 4500 मीटर है।[7] नामकरण[संपादित करें]भारतीय प्लेट की गति और हिमालय की उत्पत्ति हिमालय संस्कृत के दो शब्दों - हिम तथा आलय से मिल कर बना है, जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा हिमआवरण वाला क्षेत्र है। हिमालय और विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को भी कई नामों से जाना जाता है। नेपाल में इसे सगरमाथा (आकाश या स्वर्ग का भाल), संस्कृत में देवगिरी और तिब्बती में चोमोलुंगमा (पर्वतों की रानी) कहते हैं। हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम 'बन्दरपुंछ' है। यह चोटी उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले में स्थित है। इसकी ऊँचाई 13,731 फुट है। इसे सुमेरु भी कहते हैं।[7] हिमालय की प्रकृति[संपादित करें]उत्तरी भारत के मैदानी गंगा - ब्रह्मपुत्र के मैदान हिमालय से लाई गई नदियों के मैदान है। हिमालय की श्रेणियां मानसूनी हवा के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करके भारत के राज्यों में वर्षा करवाती है। प्रातः काल जब सूर्य उदय होता है तब सूर्य की किरणों से हिमालय की शोभा निखर आती है हिमालय पर्वत ऊंचे ऊंचे देवदार, चीड़ के पेड़ों से भरा है यहां पर कई प्रकार के जंगली जीव भी पाएं जाते है जैसे भालू, हाथी, चीता, गेंडा, बंदर, हिरन,आदि यह पशु यहां पर सुरक्षित अपना जीवन व्यापन करते हैं।[8] हिमालय की उत्पत्ति[संपादित करें]हिमालय की उत्पत्ति की व्याख्या कोबर के भूसन्नति सिद्धांत और प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत द्वारा की जाती है। पहले भारतीय प्लेट और इस पर स्थित भारतीय भूखण्ड गोंडवानालैण्ड नामक विशाल महाद्वीप का हिस्सा था और अफ्रीका से सटा हुआ था जिसके विभाजन के बाद भारतीय प्लेट की गति के परिणामस्वरूप भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का भूखण्ड उत्तर की ओर बढ़ा[9]. ऊपरी क्रीटैशियस काल में (840 लाख वर्ष पूर्व) भारतीय प्लेट ने तेजी से उत्तर की ओर गति प्रारंभ की और तकरीबन 6000 कि॰मी॰ की दूरी तय की।[10] यूरेशियाई और भारतीय प्लेटों के बीच यह टकराव समुद्री प्लेट के निमज्जित हो जाने के बाद यह समुद्री-समुद्री अब महाद्वीपीय-महाद्वीपीय टकराव में बदल गया और (650 लाख वर्ष पूर्व) केन्द्रीय हिमालय की रचना हुई।[11] तब से लेकर अब तक तकरीबन 2500 किमी की भूपर्पटीय लघुकरण की घटना हो चुकी है।[12][13][14][15] साथ ही भारतीय प्लेट का उत्तरी पूर्वी हिस्सा 45 अंश के आसपास घड़ी की सुइयों के विपरीत दिशा में घूम चुका है।[16] इस टकराव के कारण हिमालय की तीन श्रेणियों की रचना अलग-अलग काल में हुई जिसका क्रम उत्तर से दक्षिण की ओर है। अर्थात पहले महान हिमालय, फिर मध्य हिमालय और सबसे अंत में शिवालिक की रचना हुई।[17] हिमालय की भूगर्भिक संरचना[18] भूआकृतिक विभाजन[संपादित करें]हिमालय पर्वत तन्त्र को तीन मुख्य श्रेणियों के रूप में विभाजित किया जाता है जो पाकिस्तान में सिन्धु नदी के मोड़ से लेकर अरुणाचल के ब्रह्मपुत्र के मोड़ तक एक दूसरे के समानांतर पायी जाती हैं।[19] चौथी गौड़ श्रेणी असतत है और पूरी लम्बाई तक नहीं पायी जाती है। ये चार श्रेणियाँ हैं- [20]
परा हिमालय जिसे ट्रांस हिमालय या टेथीज हिमालय भी कहते हैं, यह हिमालय की सबसे प्राचीन श्रेणी है। यह कराकोरम श्रेणी, लद्दाख श्रेणी और कैलाश श्रेणी के रूप में हिमालय की मुख्य श्रेणियों और तिब्बत के बीच स्थित है। इसका निर्माण टेथीज सागर के अवसादों से हुआ है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग 40 किमी है। यह श्रेणी इण्डस-सांपू-शटर-ज़ोन नामक भ्रंश द्वारा तिब्बत के पठार से अलग है।[21] महान हिमालय जिसे हिमाद्रि भी कहा जाता है हिमालय की सबसे ऊँची श्रेणी है। इसके क्रोड में आग्नेय शैलें पायी जाती है जो ग्रेनाइट तथा गैब्रो नामक चट्टानों के रूप में हैं। पार्श्वों और शिखरों पर अवसादी शैलों का विस्तार है। कश्मीर की जांस्कर श्रेणी भी इसी का हिस्सा मानी जाती है। हिमालय की सर्वोच्च चोटियाँ मकालू, कंचनजंघा, एवरेस्ट, अन्नपूर्ण और नामचा बरवा इत्यादि इसी श्रेणी का हिस्सा हैं। यह श्रेणी मुख्य केन्द्रीय क्षेप द्वारा मध्य हिमालय से अलग है। हालांकि पूर्वी नेपाल में हिमालय की तीनों श्रेणियाँ एक दूसरे से सटी हुई हैं।[7] मध्य हिमालय हिमालय के दक्षिण में स्थित है। महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है - पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार,उत्तराखंड में मस्सोरी या नागटिब्बा तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है। शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं। यहाँ सबसे नयी और कम ऊँची चोटी है। पश्चिम बंगाल और भूटान के बीच यह विलुप्त है बाकी पूरे हिमालय के साथ समानांतर पायी जाती है। अरुणाचल में मिरी, मिश्मी और अभोर पहाड़ियां शिवालिक का ही रूप हैं। शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच दून घाटियाँ पायी जाती हैं।[22] प्रादेशिक विभाजन[संपादित करें]सर सिडनी बुराड ने हिमालय को चार क्षैतिज प्रदेशों में बाँटा है[19]:-
हिमालय का महत्व[संपादित करें]हिमालय पर्वत विविध प्राकृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारणों से महत्वपूर्ण है।[23][24] हिमालय पर्वत का महत्व न केवल इसके आसपास के देशों के लिये हैं बल्कि पूरे विश्व के लिये हैं क्योंकि यह ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद पृथ्वी पर सबसे बड़ा हिमाच्छादित क्षेत्र है जो विश्व जलवायु को भी प्रभावित करता है। इसके महत्व को निम्नवत वर्गीकृत किया जा सकता है: प्राकृतिक महत्व[संपादित करें]
आर्थिक महत्व[संपादित करें]हिमाचल प्रदेश में खज्जियार मर्ग
पर्यावरणीय महत्व[संपादित करें]
सामरिक महत्व[संपादित करें]
पर्यावरण[संपादित करें]हिमालय में उगने वाले पेड़ो और वहां रहने वाले जीव-जंतुओं की विविधता जलवायु, वर्षा, ऊंचाई और मिट्टी के अनुसार बदलती हैं। जहाँ नीचे जलवायु उष्णकटिबंधीय होती है, वहीं चोटी के पास स्थायी रूप से बर्फ जमी रहती है। कर्क रेखा के निकट स्थित होने के कारण स्थायी बर्फ का स्तर आमतौर पर लगभग 5500 मीटर (18,000 फीट) का होता है, जो की दुनिया में सबसे अधिक है। तुलना के लिए, न्यू गिनी के भूमध्य पहाड़ों में बर्फ का स्तर कुछ 900 मीटर (2950 फीट) नीचे है। वार्षिक वर्षा की मात्रा (पहाड़ों की दक्षिणी तरफ़) पश्चिम से पूर्व बढती चली जाती है। छवि दीर्घा[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
मध्य हिमालय को क्या कहा जाता है?हिमाचल पर्वतमाला (Himachal Range), जिन्हें लघु हिमालय (Lower Himalaya, Lesser Himalaya) या मध्य हिमालय (Middle Himalaya) भी कहा जाता है, हिमालय की मध्यवर्ती क्षेणी है। यह शिवालिक पर्वतमाला से उत्तर में है और उस से ऊँची है, लेकिन हिमाद्रि पर्वतमाला से दक्षिण में है और उस से कम ऊँचाई रखती है।
हिमालय के उत्तरी भाग को क्या कहते हैं?उत्तरी मैदान जलोढ़ निक्षेपों से बने हैं। प्रायद्वीपीय पठार आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों वाली कम ऊँची पहाड़ियों एवं चौड़ी घाटियों से बना है। जिसमें 6,000 मीटर की औसत ऊँचाई वाले सर्वाधिक ऊँचे शिखर हैं। इसमें हिमालय के सभी मुख्य शिखर हैं।
मध्य हिमालय और महान हिमालय के बीच की घाटी को क्या कहते हैं?महान हिमालय और मध्य हिमालय के बीच दो बड़ी और खुली घाटियाँ पायी जाती है – पश्चिम में काश्मीर घाटी और पूर्व में काठमाण्डू घाटी। जम्मू-कश्मीर में इसे पीर पंजाल, हिमाचल में धौलाधार तथा नेपाल में महाभारत श्रेणी के रूप में जाना जाता है। (घ)शिवालिक:- शिवालिक श्रेणी को बाह्य हिमालय या उप हिमालय भी कहते हैं।
हिमालय को कितने भागों में?हिमालय पर्वत श्रंखला का विभाजन या वर्गीकरण
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