सनातन धर्मावलंबियों में सत्यनारायण व्रत कथा सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में मानी जाती है। मान्यता के अनुसार यह भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की कथा है। वैसे तो भगवान विष्णु की पूजा कई रूपों में की जाती है, लेकिन उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। Show हिंदू धर्म शास्त्रों में सत्यनारायण कथा का विशेष महत्व है। चाहे गृह शांति की बात हो या सुख-समृद्धि की। या फिर सुखद दांपत्य जीवन की। प्रत्येक शुभ कार्य से पहले सत्यनारायण कथा का आयोजन होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मृतक संस्कार की समाप्ति के बाद भी सत्यनारायण कथा करवाई जाती है। यानी कि शुभ कार्य हो या मृतक संस्कार की समाप्ति दोनों ही समय पर इस कथा का विशेष विधान है। आइए जानते हैं क्यों की जाती है यह कथा और क्या है इसकी विधि और इसका महत्व? यह है सत्यनारायण कथा की पूजा विधिज्योतिषियों के मुताबिक जो जातक सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हैं उन्हें दिन भर व्रत करना चाहिए। पूजा विधि के अनुसार सबसे पहले पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाई जाती है। इसके बाद उसी के ऊपर पूजा की चौकी रखकर उसके चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाते हैं। इस चौकी पर शालिग्राम या ठाकुरजी या श्रीसत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा करें फिर इंद्रादि, दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, श्रीराधाकृष्ण की। इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्माजी की पूजा करें। पूजा के बाद सभी देवों की आरती करें और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करें। पुरोहित जी को दक्षिणा एवं वस्त्र का दान करें साथ ही भोजन भी कराएं। पुराहित जी के भोजन के पश्चात उनसे आशीर्वाद लेकर ही जातक को भोजन करना चाहिए। लाइफ में बढ़ रही बेवजह की टेंशन, आजमाएं ये आसान उपाय कथा सत्यनारायण का महत्वकलिकाल में सत्य की पूजा विशेष रूप से फलदायी होती है सत्य के अनेक नाम हैं, यथा-सत्यनारायण, सत्यदेव। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि सनातन सत्यरूपी विष्णु भगवान कलियुग में अनेक रूप धारण करके लोगों को मनोवांछित फल देंगे। सत्यनारायण के रूप में व्रत-पूजा का अनुष्ठान करने मनुष्य के सभी दु:खों का अंत हो जाता है। इसलिए विवाह के पहले ओर बाद में, आयु रक्षा और सेहत से जुड़ी समस्याओं से राहत पाने के लिए और संतान के जन्म और उसकी सफलताओं पर सत्यनारायण कथा करवाई जाती है। सत्यनारायण कथा का मुहूर्तयूं तो कभी भी भगवान सत्यनारायण की पूजा करवाई जा सकती है। लेकिन पूर्णिमा, संक्रांति, बृहस्पतिवार, अथवा किसी भी बड़े संकट के आने पर यह पूजा करवाई जा सकती है। कथा के दिन स्नान करके धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएं और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस कार्य हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके सत्यनारायण भगवान की उपासना करें। इसके बाद सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। मृतक संस्कार के बाद कथा का विधानधर्म शास्त्रों के मुताबिक किसी की मृत्यु के बाद घर में सूतक लग जाता है। किसी भी तरह की पूजा-पाठ भी नहीं की जाती है। ऐसे में जब सभी मृतक संस्कार संपन्न हो जाते हैं। तब भगवान विष्णु की पूजा यानी कि सत्यनारायण कथा करवाई जाती है। मान्यता है कि इस कथा के आयोजन से घर पुन: शुद्ध हो जाता है और पूजा-पाठ नियमित रूप से शुरू हो जाता है। साथ ही शुभ कार्यों का आयोजन भी किया जा सकता है। यही वजह है कि मृतक संस्कारों के बाद सत्यनारायण कथा का विधान है। नई दिल्ली: आज सत्य व्रत है. सत्य ही भगवान हैं और नारायण सबसे बड़े आराध्य हैं. सत्यनारायण का व्रत उत्तर भारत में कई घरों में किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के नारायण रूप की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि हर महीने की पूर्णिमा को सत्यनारायण की पूजा करने का विधान है. सनातनी हिंदुओं के यहां कोई भी पुण्य कार्य का अवसर होने पर सबसे पहले घरो में सत्यनारायण की कथा करने की परंपरा पिछले कई सालों से चली आ रही है. जो लोग रामायण या भागवत कथा जैसे लंबे आयोजन करने में समर्थ नहीं होते हैं, वे सत्यनारायण की कथा कर लेते हैं. स्कंद पुराण में कहा गया है कि सत्यनारायण भगवान विष्णु के ही रूप हैं. ऐसे में सत्यनारायण कथा कराने और सुनने से भक्त पर विष्णु जी की भी कृपा बरसने की मान्यता है. इससे जीवन में सुख-शांति आने की बात कही गई है. बता दें कि पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण कथा कराना काफी शुभ माना गया है. इस सत्यव्रत को कोई मानव यदि अपने जीवन और आचरण को स्थापित करता है तो वह अपने भीतर भगवन के गुड़ों का आधान करता है और संपूर्ण सुख समृद्धि व ऐश्वर्यों को प्राप्त होता हुआ जीवन के चार पुरुषार्थ धर्म-अर्थ काम-मोक्ष को सिद्ध कर लेता है. घर में हो रहे क्लेशों से मुक्ति प्राप्ति का यह एक अद्वितीय व्रत है. यह व्रत मनोकामना पूर्ति के लिए भी किया जाता है, इस व्रत की सबसे खास बात यह कि इस व्रत को करने का कोई भी दिन निर्धारित नहीं है. इस लिए सत्यनारायण की पूजा चैत्र (मार्च-अप्रैल), वैशाख (अप्रैल-मई), श्रावण (जुलाई-अगस्त) और कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) के महीने में की जा सकती है. मूल उद्देश्य श्री सत्यनारायण व्रत कथा एक बार ऋषि नारद ने भगवान विष्णु से पूछा कि भगवन, इस मृत्युलोक में हर मानव दुखी प्रतीत होता है. क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे इन मनुष्यों के सभी कष्ट दूर हो जाएं. भगवान नारायण ने नारद से कहा कि वत्स, न केवल मृत्युलोक में अपितु स्वर्ग लोक में भी एक ऐसा व्रत है जिससे सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं. नारायण ने बताया कि श्री सत्यनारायण का व्रत विधि विधान के साथ करने से सुख की प्राप्ति होती है और मनुष्य को सद्गति मिलती है. सत्य को जो भी उपासक भगवान समझकर व्रत के रूप में इसका पालन करता है, उसे सभी लौकिक सुखों की अनुभूति होती है. सत्यनारायण व्रत विधि और संकल्प इस व्रत को करने के लिए यजमान को सबसे पहले पवित्र और शुद्ध मन से सत्यनारायण व्रत का संकल्प लेना चाहिए. यह व्रत दो तरह से किया जा सकता है. पहला तो यदि आपकी कोई मनोकामना पूरी हो गई है या कोई शुभ कार्य घर-परिवार में है तो किया जाता है. दूसरा यह कि आप अपने किसी विशेष कार्य को पूरा करवाना चाहते हैं तो यह व्रत करें. व्रत का संकल्प करने के बाद इसकी पूजा दोपहर में 12 बजे से पूर्व की जाती है. अपने पूजा स्थान या जिस जगह सत्यनारायण पूजा करना है उस जगह को गंगाजल, गौमूत्र से साफ-स्वच्छ कर लें. फिर आटे से स्वस्तिक बनाकर उस पर लकड़ी की चौकी रखें. चौकी पर लाल और सफेद कपड़े आधे-आधे जगह पर बिछाएं. भगवान सत्यनारायण का प्रसाद प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें. सत्यनारायण व्रत करने से जीवन में मिलते हैं कई लाभ- भगवान श्री हरि विष्णु के स्वरूप भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा से लगभग प्रत्येक हिंदू जनमानस परिचित है. शायद ही ऐसा कोई परिवार होगा जिसने कभी न कभी सत्यनारायण पूजा घर में नहीं करवाई होगी. कोई भी शुभ कार्य हो, ग्रह प्रवेश हो, विवाह आदि का आयोजन हो या कोई और प्रसन्नता का कार्य हो सत्यनारायण पूजा अवश्य की जाती है. दरिद्रता का होता है नाश ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन के सभी दुख और दरिद्रता का नाश होता है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है. क्यों किया जाता है सत्यनारायण व्रत घर-परिवार की सुख-समृद्धि, आर्थिक प्रगति, दुखों के नाश, संकटों से छुटकारा और कन्या के विवाह में आ रही बाधाएं दूर करने के लिए सत्यनारायण व्रत किया जाता है. कार्यों या उद्देश्यों की पूर्ति की कामना से यदि सत्यनारायण व्रत-पूजा का संकल्प लिया जाए तो वह कामना अवश्य पूरी होती है और उसके पूरे होने के पश्चात यह पूजा जरूर करवाएं. श्रद्धानुसार ब्राह्ण दंपति को भोजन करवाएं चौकी के आसपास केले के पत्ते का मंडप बनाएं और चौकी पर सत्यनारायण भगवान का चित्र या मूर्ति स्थापित करें. लाल कपड़े पर गेहूं से सोलह ढेरी बनाकर षोड़श मात्रिका स्थापित करें और सफेद कपड़े पर चावल से नवग्रहों की 9 ढेरियां बनाएं. मध्य में एक कलश स्थापित करें और कलश में आम के पत्ते डालकर श्रीफल स्थापित करें. इसके बाद सबसे पहले भगवान श्री गणेश का आह्वान और पूजन करें. कलश की पूजा करें और भगवान सत्यनारायण की पूजा करें. फिर सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करें. कथा के बाद हवन किया जाता है तथा नैवेद्य में पंचामृत, केले सहित पांच फल और हलवे का भोग लगाएं. यह पूजा आप नहीं कर सकते तो किसी पंडित से करवाएं. पूजन पूर्ण होने के बाद अपनी श्रद्धानुसार ब्राह्ण दंपती को भोजन करवाएं. गरीबों को दान दें. व्रत के लाभ
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सत्यनारायण की पूजा करने से क्या लाभ होता है?इस कथा से वंशजों को सुख, समृद्धि, संतान, यश, कीर्ति, वैभव, पराक्रम, संपत्ति, ऐश्वर्य, सौभाग्य और शुभता का वरदान मिलता है। यह कथा घर में कराने से पूर्वजों को भी शांति और मुक्ति मिलती है। वे प्रसन्न होकर आशीष देते हैं।
सत्यनारायण की कथा कौन से दिन करनी चाहिए?श्री सत्यनारायण की कथा को एकादशी या पूर्णिमा के दिन किया जाता है। इस व्रत के पीछे मूल उद्देश्य सत्य की पूजा करना है। इस व्रत में भगवान शालिग्राम का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाले उपासक को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान सत्यनारायण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
सत्यनारायण की कथा सुनने से क्या फल मिलता है?श्री सत्यनारायण व्रत गुरुवार को भी किया जाता है। महत्व- सत्य को ईश्वर मानकर, निष्ठा के साथ समाज के किसी भी वर्ग का व्यक्ति यदि इस व्रत व कथा का श्रवण करता है, तो उसे इससे निश्चित ही मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि सत्यनारायण कथा कराने से हजारों साल तक किए गए यज्ञ के बराबर फल मिलता है।
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