ग्रामीण बस्तियों की समस्या क्या है? - graameen bastiyon kee samasya kya hai?

ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ ग्रामीण बस्तियों की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं

1. पेयजल का अभाव – संसार के अधिकतर गाँवों में पेयजल की गम्भीर समस्या है। महिलाओं व बच्चों को कई-कई किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। रेगिस्तानी और पर्वतीय भागों में पेयजल की समस्या अत्यधिक गम्भीर है।

2. जलवाहित रोग – पेयजल की गुणवत्ता ठीक न होने से जलवाहित रोग जैसे हैजा, पीलिया आदि फैलते हैं।

3. बाढ़ और सूखा – दक्षिण एशिया के देशों के गाँव बाढ़ और सूखे दोनों की ही मार सहने को अभिशप्त हैं। सिंचाई के अभाव में सूखा पड़ने पर फसलों को भारी हानि होती है।

4.शौचालयों और कचरे की समस्या – गाँव में शौचालयों के न होने से महिलाओं को अधिक कठिनाई उठानी पड़ती है। वे इसी कारण अनेक रोगों का शिकार हो जाती हैं। गाँवों में कचरे की निपटान की कोई सुचारु व्यवस्था नहीं है।

5. मानव और पशु एक साथ – पशुओं को और उनके चारे को अपने घर में या घर के अति निकट घेर में रखना किसान की मजबूरी है, लेकिन इससे अनेक रोगों के फैलने का खतरा बना रहता है।

6. परिवहन और संचार साधनों का अभाव – गाँव में पक्की सड़कों का अभाव है। टेलीफोन सविधा सभी गाँवों में नहीं है, अत: आपातकाल में गाँव शेष दुनिया से कट जाते हैं। अनेक गाँव वर्षा ऋतु में सम्पर्कविहीन बने रहते हैं।

7.स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव – गाँवों में स्वास्थ्य और शिक्षा का अभाव है। यदि कहीं सुविधा है भी तो उसका स्तर बहुत घटिया है।

उत्तर :

उत्तर की रूपरेखा

  • प्रभावी भूमिका में ग्रामीण बस्तियों को स्पष्ट करें।
  • तार्किक एवं संतुलित विषय-वस्तु में ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप तथा इनसे संबंधित समस्याओं के बारे में लिखें।
  • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

ग्रामीण बस्ती का तात्पर्य एक ऐसे प्रदेश से है जहाँ सामान्यतः प्राथमिक क्रियाकलापों में संलग्न अपेक्षाकृत छोटे जनसंख्या समूह एक साथ निवास करते हैं। ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप इन क्षेत्रों में मकानों की स्थिति तथा उनके अंतर्संबंध को दर्शाता है। यह गाँव की आकृति तथा वहाँ की पर्यावरणीय एवं भौगोलिक स्थिति पर निर्भर करता है। ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप को निम्नलिखित प्रकार से देखा जा सकता है-

  • रैखिक प्रतिरूप- इसमें मानव बस्तियों का निर्माण सड़कों, रेल लाइनों तथा  नदियों आदि के किनारे होता है।
  • आयताकार प्रतिरूप- इनका निर्माण समतल क्षेत्रों में होता है यहाँ सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।
  • वृत्ताकार प्रतिरूप- इसमें किसी तालाब अथवा झील के चारों ओर बस्तियों का निर्माण होता है।
  • तारे के आकार का प्रतिरूप- इनका निर्माण उन प्रदेशों में होता है जहाँ बहुत सारी सड़कें एक साथ एक स्थान पर मिलती हैं। इस प्रकार इन सड़कों के किनारे मकानों के निर्माण होने से ये तारे की आकृति के प्रतीत होते हैं।
  • टी अथवा वाई आकार के प्रतिरूप-  टी आकार की बस्तियाँ सड़कों के तिराहे पर विकसित होती हैं, जबकि वाई आकार की बस्तियों का निर्माण उन क्षेत्रों में होता है जहाँ दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं।
  • दोहरे ग्राम- नदी अथवा पुल के दोनों किनारों पर बस्तियों के निर्माण से दोहरे ग्राम प्रतिरूप का निर्माण होता है।

ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ

अपेक्षाकृत कम जनसंख्या के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो पाती। साथ ही यहाँ रोज़गार के साधनों का अभाव होता है जिससे अधिकांश जनसंख्या कृषि से संबंधित कुछ सीमित कार्यों में ही लगी रहती है। इससे यहाँ छिपी बेरोज़गारी, गरीबी तथा प्रवास की समस्या उभरती है। इसका प्रत्यक्ष परिणाम खाद्य सुरक्षा तथा कुपोषण की समस्या के रूप में दिखाई देता है। कुपोषण के कारण लोगों की प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है और वे बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। साथ ही शौचालय एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण की सुविधाओं के अभाव के कारण इन  क्षेत्रों में हैजा, पीलिया जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ और भी बढ़ जाती हैं। स्वास्थ्य के कमज़ोर होने से लोग आर्थिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो पाते जिससे गरीबी के कुचक्र का निर्माण होता है।

सड़क, चिकित्सा तथा शिक्षा से संबंधित अवसंरचना का अभाव इन समस्याओं को और भी बढ़ा देता है। शिक्षा के अभाव के कारण यहाँ अंधविश्वास तथा सामाजिक रूढ़ियों की समस्याओं को देखा जा सकता है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था, डायन प्रथा, विधवा महिला से विभेद तथा जाति के नाम पर छुआछूत जैसी सामाजिक समस्याएँ ग्रामीण बस्तियों में देखी जा सकती हैं। अंधविश्वास जैसी समस्याओं से स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अपने रोगों के इलाज के लिये डॉक्टर के स्थान पर ये ओझाओं पर अधिक विश्वास करते हैं जिससे समय पर इलाज न हो पाने के कारण कई बार लोगों की मृत्यु भी हो जाती है। उदाहरण के लिये, 2017 में उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में 9 लोगों की मृत्यु साँप के काटने से हुई, जबकि इस स्थान से ज़िला अस्पताल या सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 1 घंटे से अधिक की दूरी पर नहीं है। ध्यातव्य है कि भारत में पाया जाने वाला कोई भी साँप इतना विषैला नहीं होता कि 1 घंटे से कम समय में व्यक्ति की मृत्यु हो जाए।

स्पष्ट है कि गरीबी, बेरोज़गारी तथा आर्थिक एवं सामाजिक संरचना का अभाव ग्रामीण बस्तियों की सबसे बड़ी समस्याओं में शामिल है। इसमें सुधार के लिये जनभागीदारी से युक्त एक समन्वित नीति की आवश्यकता है।

ग्रामीण बस्ती अधिक निकटता से तथा प्रत्यक्ष रूप से भूमि से नज़दीकी संबंध रखती हैं। यहाँ के निवासी अधिकतर प्राथमिक गतिविधियों में लगे होते हैं। जैसे- कृषि, पशुपालन एवं मछली पकड़ना आदि इनके प्रमुख व्यवसाय होते हैं। बस्तियों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है।

ग्रामीण बस्तियों के प्रतिरूप

ग्रामीण बस्तियों का प्रतिरूप यह दर्शाता है कि मकानों की स्थिति किस प्रकार एक दूसरे से संबंधित है। गाँव की आकृति एवं प्रसार को प्रभावित करने वाले कारकों में गाँव की स्थिति, समीपवर्ती स्थलाकृति एवं क्षेत्र का भूभाग प्रमुख स्थान रखते हैं। ग्रामीण बस्तियों का वर्गीकरण कई मापदंडों के आधार पर किया जा सकता है -

विन्यास के आधार पर

  • इनके मुख्य प्रकार हैं-
  1. मैदानी ग्राम,
  2. पठारी ग्राम,
  3. तटीय ग्राम,
  4. वन ग्राम
  5. मरुस्थलीय ग्राम।

कार्य के आधार पर

  • इसमें कृषि ग्राम, मछुवारों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम, पशुपालक ग्राम आदि आते हैं-

बस्तियों की आकृति के आधार पर

  • इसमें कई प्रकार की ज्यामितिक आकृतियाँ हो सकती हैं जैसे कि रेखीय, आयताकार, वृत्ताकार, तारे के आकार की, 'टी' के आकार की, चौक पट्टी, दोहरे ग्राम इत्यादि।
रैखिक प्रतिरूप

उस प्रकार की बस्तियों में मकान सड़कों, रेल लाइनों, नदियों, नहरों, घाटी के किनारे अथवा तटबंधों पर स्थित होते हैं।

आयताकार प्रतिरूप

ग्रामीण बस्तियों का यह प्रतिरूप समतल क्षेत्रों अथवा चौड़ी अंतरा पर्वतीय घाटियों में पाया जाता है। इसमें सड़कें आयताकार होती हैं जो एक दूसरे को समकोण पर काटती हैं।

वृत्ताकार प्रतिरूप

इस प्रकार के गाँव झीलों व तालाबों आदि क्षेत्रों के चारों ओर बस्ती बस जाने से विकसित होते हैं। कभी-कभी ग्राम को इस योजना से बसाया जाता है कि उसका मध्य भाग खुला रहे जिसमें पशुओं को रखा जाए ताकि वे जंगली जानवरों से सुरक्षित रहें।

तारे के आकार का प्रतिरूप

जहाँ कई मार्ग आकर एक स्थान पर मिलते हैं और उन मार्गों के सहारे मकान बन जाते हैं। वहाँ तारे के आकार की बस्तियाँ विकसित होती हैं।

'टी' आकार, 'वाई' आकार, क्रॉस आकार

टी के आकार की बस्तियाँ सड़क के तिराहे पर विकसित होती हैं। जबकि वाई आकार की बस्तियाँ उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ पर दो मार्ग आकर तीसरे मार्ग से मिलते हैं। क्रॉस आकार की बस्तियाँ चौराहों पर प्रारंभ होती हैं जहाँ चौराहे से चारों दिशा में बसाव आरंभ हो जाता है।

दोहरे ग्राम

नदी पर पुल या फेरी के दोनों ओर इन बस्तियों का विस्तार होता है।

ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ

विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों की संख्या अधिक है एवं इनका आधारभूत ढाँचा भी अविकसित है। ये नियोजकों के सम्मुख बड़ी चुनौती और सुअवसर प्रस्तुत करते हैं।

जल की आपूर्ति और बीमारियाँ

विकासशील देशों में ग्रामीण बस्तियों में जल की आपूर्ति भी पर्याप्त नहीं है। पर्वतीय एवं शुष्क क्षेत्रों में निवासियों को पेय जल हेतु लंबी दूरियाँ तय करनी पड़ती हैं। जल जनित बीमारियाँ जैसे हैजा, पीलिया आदि सामान्य समस्या है। दक्षिणी एशिया के देश प्राय: बाढ़ एवं सूखे से ग्रस्त रहते हैं।

सिंचाई सुविधाएँ और सफ़ाई

सिंचाई सुविधाएँ कम होने से कृषि कार्य पर भी प्रभाव पड़ता है। शौचघर एवं कूड़ा-कचरा निस्तारण की सुविधाएँ नगण्य हैं। जिससे इन क्षेत्रों में स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएँ रहती हैं। मकानों की रूपरेखा एवं उनके लिए प्रयुक्त होने वाली गृह निर्माण सामग्री हर पारिस्थितिक प्रदेश में भिन्न होती है।

भारी वर्षा एवं बाढ़

जो मकान मिट्टी, लकड़ी एवं छप्पर के बनाए जाते हैं उन्हें भारी वर्षा एवं बाढ़ के समय काफ़ी नुकसान पहुँचता है एवं हर वर्ष उनके उचित रख-रखाव की आवश्यकता पड़ती है। अधिकतर मकानों की रूपरेखा भी ऐसी होती है जिसमें उपयुक्त संवातन नहीं होता है। एक ही मकान में मनुष्यों के साथ पशु भी रहते हैं। इसी मकान में पशु शेड और उनके चारा रखने की जगह भी होती है।

कच्ची सड़क एवं आधुनिक संचार के साधनों की कमी

ऐसा इसलिए किया जाता है कि जंगली जानवरों से पालतू पशुओं और उनके चारे की रक्षा उचित ढंग से हो सके। कच्ची सड़क एवं आधुनिक संचार के साधनों की कमी भी यहाँ की प्रमुख समस्या है। वर्षा ऋतु में इन क्षेत्रों का संपर्क आसपास के क्षेत्र से कट जाता है जिससे आपतकालीन सेवाएँ प्रदान करने में भी गंभीर कठिनाइयाँ उपलब्ध हो जाती है।

स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी

विशाल ग्रामीण जनसंख्या के लिए स्वास्थ्य एवं शिक्षा संबंधी पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करना भी कठिन हो जाता है। यह समस्या उस समय और विकट हो जाती है जब ग्रामीणीकरण उचित प्रकार से नहीं हुआ है और विशाल क्षेत्र में मकान दूर तक विकसित होते हैं।

ग्रामीण बस्तियों के प्रकार

बस्तियों के प्रकार निर्मित क्षेत्र के विस्तार और अंतर्वास दूरी द्वारा निर्धारित होता है। भारत में कुछ सौ घरों से युक्त संहत अथवा गुच्छित गाँव विशेष रूप से उत्तरी मैदानों में एक सार्वत्रिक लक्षण है। फिर भी अनेक क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अन्य प्रकार की ग्रामीण बस्तियाँ पाई जाती हैं। ग्रामीण बस्तियों के विभिन्न प्रकारों के लिए अनेक कारक और दशाएँ उत्तरदायी हैं। इनके अंतर्गत-

भौतिक लक्षण -

भू-भाग की प्रकृति, ऊँचाई, जलवायु और जल की उपलब्धता,

सांस्कृतिक और मानवजातीय कारक -

सामाजिक संरचना, जाति और धर्म,

सुरक्षा संबंधी कारक -

चोरियों और डकैतियों से सुरक्षा करते हैं।

  • बृहत तौर पर भारत की ग्रामीण बस्तियों को चार प्रकारों में रखा जा सकता है -
  1. गुच्छित, संकुलित अथवा आकेंद्रित
  2. अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित
  3. पल्लीकृत और
  4. परिक्षिप्त अथवा एकाकी

गुच्छित बस्तियाँ

गुच्छित ग्रामीण बस्ती घरों का एक संहत अथवा संकुलित रूप से निर्मित क्षेत्र होता है। इस प्रकार के गाँव में रहन-सहन का सामान्य क्षेत्र स्पष्ट और चारों ओर फैले खेतों, खलिहानों और चरागाहों से पृथक् होता है। संकुलित निर्मित क्षेत्र और इसकी मध्यवर्ती गलियाँ कुछ जाने-पहचाने प्रारूप अथवा ज्यामितीय आकृतियाँ प्रस्तुत करते हैं जैसे कि आयताकार, अरीय, रैखिक इत्यादि। ऐसी बस्तियाँ प्राय: उपजाउ जलोढ़ मैदानों और उत्तर-पूर्वी राज्यों में पाई जाती है। कई बार लोग सुरक्षा अथवा प्रतिरक्षा कारणों से संहत गाँवों में रहते हैं, जैसे कि मध्य भारत के बुंदेलखंड प्रदेश और नागालैंड में। राजस्थान में जल के अभाव में उपलब्ध जल संसाधनों के अधिकतम उपयोग ने संहत बस्तियों को अनिवार्य बना दिया है।

अर्ध-गुच्छित बस्तियाँ

अर्ध-गुच्छित अथवा विखंडित बस्तियाँ परिक्षिप्त बस्ती के किसी सीमित क्षेत्र में गुच्छित होने की प्रवृत्ति का परिणाम है। अधिकतर ऐसा प्रारूप किसी बड़े संहत गाँव के संपृथकन अथवा विखंडन के परिणामस्वरूप भी उत्पन्न हो सकता है। ऐसी स्थिति में ग्रामीण समाज के एक अथवा अधिक वर्ग स्वेच्छा से अथवा बलपूर्वक मुख्य गुच्छ अथवा गाँव से थोड़ी दूरी पर रहने लगते हैं। ऐसी स्थितियों में, आमतौर पर ज़मींदार और अन्य प्रमुख समुदाय मुख्य गाँव के केंद्रीय भाग पर आधिपत्य कर लेते हैं जबकि समाज के निचले तबके के लोग और निम्न कार्यों में संलग्न लोग गाँव के बाहरी हिस्सों में बसते हैं। ऐसी बस्तियाँ गुजरात के मैदान और राजस्थान के कुछ भागों में व्यापक रूप से पाई जाती हैं।

पल्ली बस्तियाँ

कई बार बस्ती भौतिक रूप से एक-दूसरे से पृथक् अनेक इकाइयों में बँट जाती है किंतु उन सबका नाम एक रहता है। इन इकाइयों को देश के विभिन्न भागों में स्थानीय स्तर पर पान्ना, पाड़ा, पाली, नगला, ढाँणी इत्यादि कहा जाता है। किसी विशाल गाँव का ऐसा खंडीभवन प्राय: सामाजिक एवं मानवजातीय कारकों द्वारा अभिप्रेरित होता है। ऐसे गाँव मध्य और निम्न गंगा के मैदान, छत्तीसगढ़ और हिमालय की निचली घाटियों में बहुतायत में पाए जाते हैं।

परिक्षिप्त बस्तियाँ

भारत में परिक्षिप्त अथवा एकाकी बस्ती प्रारूप सुदूर जंगलों में एकाकी झोंपडि़यों अथवा कुछ झोंपडि़यों की पल्ली अथवा छोटी पहाडि़यों की ढालों पर खेतों अथवा चरागाहों के रूप में दिखाई पड़ता है। बस्ती का चरम विक्षेपण प्राय: भू-भाग और विकसित किए। अंग्रेज़ों ने बाद में तीन मुख्य नोडों मुंबई, चेन्नई और कोलकाता पर अपनी पकड़ मज़बूत की और उनका अंग्रेज़ी शैली में निर्माण निवास योग्य क्षेत्रों के भूमि संसाधन आधार की अत्यधिक विखंडित प्रकृति के कारण होता है। मेघालय, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश और केरल के अनेक भागों में बस्ती का यह प्रकार पाया जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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मानव का आवासीय भूगोल

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ग्रामीण बस्तियों की क्या समस्या है?

ग्रामीण बस्तियों की समस्याएँ अपेक्षाकृत कम जनसंख्या के कारण ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित नहीं हो पाती। साथ ही यहाँ रोज़गार के साधनों का अभाव होता है जिससे अधिकांश जनसंख्या कृषि से संबंधित कुछ सीमित कार्यों में ही लगी रहती है। इससे यहाँ छिपी बेरोज़गारी, गरीबी तथा प्रवास की समस्या उभरती है।

नगरीय बस्तियों की समस्या क्या है?

बेरोजगारी एवं शिक्षा की कमी के कारण अपराध अधिक होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से स्थानांतरित जनसंख्या में पुरुषों की अधिकता के कारण इन नगरों में जनसंख्या का लिंग अनुपात असंतुलित हो जाता है। पर्यावरण सबंधी समस्याएँ: नगरीय क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या के कारण पर्यावरण संबंधी समस्याएँ भी विकराल रूप धारण कर लेती हैं।

ग्रामीण बस्तियों कितने प्रकार की होती है?

विन्यास के आधार पर : इनके मुख्य प्रकार हैं- मैदानी ग्राम, पठारी ग्राम, तटीय ग्राम, वन ग्राम एवं मरुस्थलीय ग्राम। कार्य के आधार पर : इसमें कृषि ग्राम, मछुवारों के ग्राम, लकड़हारों के ग्राम, पशुपालक ग्राम आदि आते हैं।

ग्रामीण बस्तियाँ क्या है?

Solution : ग्रामीण बस्ती से आशय-गाँव ग्रामीण बस्ती होते हैं, जहाँ लोग कृषि, मत्स्य पालन, वानिकी, दस्तकारी एवं पशुपालन सम्बन्धी कार्य करते हैं। ग्रामीण बस्तियों के प्रकार-ग्रामीण बस्तियाँ दो प्रकार की होती हैं—(1) सघन और (2) प्रकीर्ण। यथा <br> (i) सघन बस्ती-सघन बस्तियों में घर पास-पास होते हैं।