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Advertisement Remove all ads Short Note निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर दीजिए : Advertisement Remove all ads Solutionरहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य इसलिए कहा है क्योंकि उससे न जाने कितने लघु जीवों की प्यास बुझती है। कवि यह कहना चाहता है कि यदि छोटे लोग भी किसी के काम आते हैं तो वे भी महिमावान हैं। सागर की बड़ाई इसलिए नहीं की क्योंकि उसमें अथाह जल होने पर भी प्यास नहीं बुझती, इसमें परोपकार की भावना नहीं होती। Concept: पद्य (Poetry) (Class 9 B) Is there an error in this question or solution? Advertisement Remove all ads Chapter 8: रहीम - दोहे - प्रश्न अभ्यास [Page 80] Q 1.3Q 1.2Q 1.4 APPEARS INNCERT Class 9 Hindi - Sparsh Part 1 Chapter 8 रहीम - दोहे Advertisement Remove all ads NCERT Class 9 Hindi Sparsh book Chapter 8 “रहीम के दोहे Explanation, Video, Question Answerरहीम के दोहे Class 9 CBSE Hindi Sparsh Lesson 8 summary with a detailed explanation of the lesson ‘Rahim ke Dohe’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson. रहीम के दोहे कक्षा 9 स्पर्श भाग 1 पाठ 8यहाँ हम हिंदी कक्षा 9 ”स्पर्श – भाग 1” के काव्य खण्ड पाठ 8 “दोहे” के पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ, अतिरिक्त प्रश्न और NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर इन सभी बारे में जानेंगे – By Shiksha Sambra
कवि परिचयकवि – रहीम रहीम के दोहे पाठ प्रवेशप्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। यहाँ दिया गया हर एक दोहा हमारे जीवन की किसी न किसी स्थिति से जुड़ा हुआ है। ये दोहे जहाँ एक ओर इन्हें पढ़ने वालों को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय अर्थात करने योग्य और अकरणीय अर्थात न करने योग्य आचरण या व्यवहार की भी नसीहत यानि सीख देते हैं। इन दोहों को एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और हमारे जीवन की विभिन्न स्थितियों का सामना होते ही इनका किसी को भी याद आना लाज़िमी है, जिनका इनमें चित्रण है। Top “Dohe” Class 9 Video Explanationरहीम के दोहे पाठ सारप्रस्तुत पाठ में रहीम के ग्यारह दोहे दिए गए हैं, जो हमारे जीवन की किसी न किसी परिस्थिति से जुड़े हुए हैं। पहले दोहे में रहीम जी कहते हैं कि प्रेम का बंधन किसी धागे के समान होता है, जिसे कभी भी झटके से नहीं तोड़ना चाहिए क्योंकि जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। उसी प्रकार किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा पहले की तरह जोड़ा नहीं जा सकता। दूसरे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। क्योंकि जब आपका दर्द किसी अन्य व्यक्ति को पता चलता है तो वे लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं। तीसरे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य ही करना चाहिए। एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। यह वैसे ही है जैसे किसी पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब उस पौधे की जड़ में उसे तृप्त कर देने जितना पानी डाला जाता है। चौथे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। पाँचवे दोहे में रहीम जी का कहना है कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कह देने में समर्थ हैं। छठे दोहे में रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ में पाया जाने वाला वह थोडा सा पानी ही धन्य है क्योंकि उस पानी से न जाने कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन वह सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पता। सातवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि यदि कोई आपको कुछ दे रहा है तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि आप उसे बदले में कुछ न कुछ दें। आठवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि कोई बात जब एक बार बिग़ड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह वैसे ही है जैसे जब दूध एक बार फट जाये तो फिर उसको मथने से मक्खन नहीं निकलता। नवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि बड़ी चीज़ के होने पर किसी छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता। दसवें दोहे में रहीम जी कहते हैं कि आपका धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता। अंतिम दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका जीवन जीना व्यर्थ हो जाता है। Top रहीम के दोहे पाठ की व्याख्यारहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की पीड़ा या दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। क्योंकि जब आपका दर्द किसी अन्य व्यक्ति को पता चलता है तो वे लोग उसका मज़ाक ही उड़ाते हैं। कोई भी आपके दर्द को बाँट नहीं सकता। अर्थात कोई भी व्यक्ति आपके दर्द को कम नहीं कर सकता। एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि एक बार में केवल एक कार्य ही करना चाहिए। क्योंकि एक काम के पूरा होने से कई और काम अपने आप पूरे हो जाते हैं। यदि एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। क्योंकि आप एक साथ बहुत कार्यों में अपना शत-प्रतिशत नहीं दे सकते। रहीम कहते हैं कि यह वैसे ही है जैसे किसी पौधे में फूल और फल तभी आते हैं जब उस पौधे की जड़ में उसे तृप्त कर देने जितना पानी डाला जाता है। अर्थात जब पौधे में पर्याप्त पानी डाला जाएगा तभी पौधे में फल और फूल आएँगे। चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब राम को बनवास मिला था तो वे चित्रकूट में रहने गये थे। रहीम यह भी कहते हैं कि चित्रकूट बहुत घना व् अँधेरा वन होने के कारण रहने लायक जगह नहीं थी। परन्तु रहीम कहते हैं कि ऐसी जगह पर वही रहने जाता है जिस पर कोई भारी विपत्ति आती है। कहने का अभिप्राय यह है कि विपत्ति में व्यक्ति कोई भी कठिन-से-कठिन काम कर लेता है। दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी का कहना है कि उनके दोहों में भले ही कम अक्षर या शब्द हैं, परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कह देने में समर्थ हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कोई नट अपने करतब के दौरान अपने बड़े शरीर को सिमटा कर कुंडली मार लेने के बाद छोटा लगने लगने लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी के आकार को देख कर उसकी प्रतिभा का अंदाज़ा नहीं लगाना चाहिए। धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि कीचड़ में पाया जाने वाला वह थोडा सा पानी ही धन्य है क्योंकि उस पानी से न जाने कितने छोटे-छोटे जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन वह सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होते हुए भी व्यर्थ होता है क्योंकि उस जल से कोई भी जीव अपनी प्यास नहीं बुझा पता। कहने का तात्पर्य यह है कि बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं रह जाता यदि आप किसी की सहायता न कर सको। नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण किसी के संगीत की ध्वनि से खुश होकर अपना शरीर न्योछावर कर देता है अर्थात अपने शरीर को उसे सौंप देता है। इसी तरह से कुछ लोग दूसरे के प्रेम से खुश होकर अपना धन इत्यादि सब कुछ उन्हें दे देते हैं। लेकिन रहीम कहते हैं कि कुछ लोग पशु से भी बदतर होते हैं जो दूसरों से तो बहुत कुछ ले लेते हैं लेकिन बदले में कुछ भी नहीं देते। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि कोई आपको कुछ दे रहा है तो आपका भी फ़र्ज़ बनता है कि आप उसे बदले में कुछ न कुछ दें। बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि कोई बात जब एक बार बिग़ड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद उसे ठीक नहीं किया जा सकता। यह वैसे ही है जैसे जब दूध एक बार फट जाये तो फिर उसको मथने से मक्खन नहीं निकलता। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें किसी भी बात को करने से पहले सौ बार सोचना चाहिए क्योंकि एक बार कोई बात बिगड़ जाए तो उसे सुलझाना बहुत मुश्किल हो जाता है। रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि किसी बड़ी चीज को देखकर किसी छोटी चीज की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए अर्थात बड़ी चीज़ के होने पर किसी छोटी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए। क्योंकि जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता। कहने का अभिप्राय यह है कि किसी भी चीज़ को कम नहीं समझना चाहिए क्योंकि हर एक चीज़ का अपनी-अपनी जगह महत्त्व होता है। रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय। शब्दार्थ – व्याख्या – रहीम जी कहते हैं कि जब आपके पास धन नहीं होता है तो कोई भी विपत्ति में आपकी सहायता नहीं करता। यह वैसे ही है जैसे यदि तालाब सूख जाता है तो कमल को सूर्य जैसा प्रतापी भी नहीं बचा पाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि आपका धन ही आपको आपकी मुसीबतों से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत में कोई किसी का साथ नहीं देता। रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून। शब्दार्थ – व्याख्या – इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के के लिए लिया गया है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्र (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका जीवन जीना व्यर्थ हो जाता है। Top रहीम के दोहे प्रश्न अभ्यासनिम्नलिखित
प्रश्नों के उत्तर दीजिए उत्तर – जिस प्रकार जब कोई धागा टूट जाता है और उस टूटे हुए धागे को जोड़ने के लिए उसमें गाँठ लगानी पड़ती है। जिसके कारण वह पहले की तरह नहीं हो पाता, उसी तरह से जब कोई रिश्ता टूट जाता है और उस रिश्ते के टूटने के बाद रिश्तों को फिर जोड़कर पहले की तरह नहीं बनाया जा सकता। प्रश्न 2 – हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है? उत्तर – जब हम अपना दुख दूसरों को बताते हैं तो दूसरे हमारा दुख बाँटने की बजाय उसका मजाक ही उड़ाते हैं। इसलिए हमें अपना दुख दूसरों पर प्रकट नहीं करना चाहिए। अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार हमारे प्रति अच्छा नहीं रहता। प्रश्न 3 – रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है? उत्तर – कीचड़ में जल की कम मात्रा होती है फिर भी इस जल से कई जीवों की प्यास बुझती है। लेकिन सागर का जल बहुत अधिक मात्रा में होने के बावजूद भी किसी की प्यास नहीं बुझा पाता। इसलिए रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य कहा है। क्योंकि धन्य वही होता है जो दूसरों की सहायता करता है। प्रश्न 4 – एक को साधने से सब कैसे सध जाता है? उत्तर – जिस तरह से जड़ को सींचने से ही पेड़ में फूल और फल लगते हैं उसी तरह से एक को साधने से सब सध जाता है। अर्थात एक काम के पूरा होने से अन्य कार्यों के लिए रास्ता अपने आप खुल जाता है। अतः हमें एक साथ बहुत कार्यों को न करके किसी एक कार्य में ही अपना पूरा ध्यान लगाना चाहिए। प्रश्न 5 – जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता? उत्तर – कमल के लिए जल ही संपत्ति है। क्योंकि जल के बिना कमल को जरूरी पोषण नहीं मिलेगा। जल के बिना कमल का जीवन असंभव है। बिना जल के कमल की सूर्य भी उसकी रक्षा नहीं कर पाएगा, बल्कि कमल सूर्य की गर्मी के कारण झुलस कर मर जाएगा। प्रश्न 6 – अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा? उत्तर – अवध नरेश को उनके पिता ने बनवास की आज्ञा दी थी। इसलिए अवध नरेश को चित्रकूट जाना पड़ा था। अन्यथा कोई भी व्यक्ति बिना किसी मुसीबत के समय में चित्रकूट जैसे स्थान पर रहने के लिए नहीं जाता है। क्योंकि चित्रकूट बहुत ही घना वन है और किसी के रहने योग्य बिलकुल भी नहीं है। प्रश्न 7 – ‘नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है? उत्तर – नट को कुंडली मारने में महारत हासिल होती है। वह कुंडली मारकर अपने शरीर को किसी भी मुद्रा में मोड़ सकता है। इसी कारण वह आसानी से ऊपर चढ़ जाता है। प्रश्न 8 – ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए। उत्तर – पानी के अभाव में मोती का निर्माण संभव नहीं है। बिना पानी के आदमी एक सप्ताह से अधिक जीवित नहीं रह सकता। आटे को बिना पानी के नहीं गूँधा जा सकता। अतः ‘मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी का अत्यधिक महत्त्व है। निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए- उत्तर – जब कोई धागा एक बार टूट जाता है तो फिर उसे जोड़ा नहीं जा सकता। जोड़ने की कोशिश में उस धागे में गाँठ पड़ जाती है। किसी से रिश्ता जब एक बार टूट जाता है तो फिर उस रिश्ते को दोबारा जोड़ा नहीं जा सकता। उसमे पहले जैसा कुछ नहीं रहता। प्रश्न 2 – सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय। उत्तर – अपने दर्द को दूसरों से छुपा कर ही रखना चाहिए। जब आपका दर्द किसी अन्य को पता चलता है तो लोग उसका मजाक ही उड़ाते हैं। कोई भी आपके दर्द को बाँट नहीं सकता। सभी आपके दर्द में आपका मजाक ही बनाते हैं अतः सही है कि आप आपने दर्द को अपने मन में ही रखें। प्रश्न 3 – रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै, फलै अघाय। उत्तर – एक बार में कोई एक कार्य ही करना चाहिए। एक काम के पूरा होने से कई काम अपने आप हो जाते हैं। यदि एक ही साथ आप कई लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करेंगे तो कुछ भी हाथ नहीं आता। यह वैसे ही है जैसे जड़ में पानी डालने से ही किसी पौधे में फूल और फल आते हैं। प्रश्न 4 – दीरघ दोहा अरथ के, आखर धीरे आहिं। उत्तर – किसी भी दोहे में कम शब्दों में ही बहुत बड़ा अर्थ छिपा होता है। यह वैसे ही होता है जैसे नट की कुंडली होती है। नट अपनी कुंडली में सिमट कर तरह तरह के आश्चर्यजनक करतब दिखा देता है। प्रश्न 5 – नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत। उत्तर – हिरण किसी के संगीत से खुश होकर अपना शरीर न्योछावर कर देता है। इसी तरह से कुछ लोग दूसरे के प्रेम से खुश होकर अपना सब कुछ दे देते हैं। परन्तु कुछ लोग इतने स्वार्थी होते हैं कि वे दूसरों से तो बहुत कुछ ले लेते हैं लेकिन खुद बदले में कुछ भी नहीं देते। प्रश्न 6 – जहाँ काम आवे सुई, कहा करै तरवारि। उत्तर – जहाँ छोटी चीज की जरूरत होती है वहाँ पर बड़ी चीज बेकार हो जाती है। जैसे जहाँ सुई की जरूरत होती है वहाँ तलवार का कोई काम नहीं होता। अतः किसी को छोटा समझ कर उसका मजाक नहीं उड़ाना चाहिए। प्रश्न 7 – पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून। उत्तर – बिना पानी के न तो मोती बनता है, न आटा गूँधा जा सकता है और पानी के बिना मनुष्य जीवन भी असंभव है। निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है- उत्तर – जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस प्रश्न 2 – कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती। उत्तर – बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। प्रश्न 3 – पानी के बिना सब सूना है अत: पानी अवश्य रखना चाहिए। उत्तर – रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून। Check out – Class 9 Hindi Sparsh and Sanchayan Book Chapter-wise Explanation
7 सागर की बड़ाई क्यों नहीं होती रहीम के पद के आधार पर लिखिए?सागर के जल से किसी की प्यास न बुझने के कारण सागर की बड़ाई नहीं होती। अवध नरेश श्रीरामचंद्र सीता व लक्ष्मण के साथ कुछ समय के लिए चित्रकूट में तब रहे थे, जब उन्हें वनवास मिला था। विपत्ति के समय शान्ति पाने के उद्देश्य से वे यहाँ रहे थे। रहीम के अनुसार, वही जल स्रोत या साधन मनुष्य के लिए उपयोगी होता है जो उसके काम आता है।
लोग समुद्र की बड़ाई की क्यों नहीं करते?Answer. Answer: कवि यह कहना चाहता है कि यदि छोटे लोग भी किसी के काम आते हैं तो वे भी महिमावान हैं। सागर की बड़ाई इसलिए नहीं की क्योंकि उसमें अथाह जल होने पर भी प्यास नहीं बुझती, इसमें परोपकार की भावना नहीं होती।
सागर की प्रशंसा क्यों नहीं होती?सागर की बड़ाई क्यों नहीं होती? उत्तर: उसके जल से किसी की प्यास न बुझने के कारण सागर की बड़ाई नहीं होती।
रहीम के अनुसार मोती का मूल्य कब होता है?➲ रहीम के अनुसार मोती का मूल्य तब तक होता है, जब तक मोती में चमक बरकरार है। मोती एक ऐसा रत्न है, जिस की गुणवत्ता उसके बाहरी गुणों पर आधारित होती है। जब तक मोती में चमक है, तब तक उसका मूल्य है। चमक हीन होने पर मोदी का कोई मूल्य नहीं रहता।
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