चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन था। यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य (तब उत्तर प्रदेश का भाग) में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था। वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे।[1] Show
यह आन्दोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में सन 1973 में प्रारम्भ हुआ। एक दशक के अन्दर यह पूरे उत्तराखण्ड क्षेत्र में फैल गया था। चिपको आन्दोलन की एक मुख्य बात थी कि इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। इस आन्दोलन की शुरुवात 1973 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।[1] यह भी कहा जाता है कि कामरेड गोविन्द सिंह रावत ही चिपको आन्दोलन के व्यावहारिक पक्ष थे, जब चिपको की मार व्यापक प्रतिबंधों के रूप में स्वयं चिपको की जन्मस्थली की घाटी पर पड़ी तब कामरेड गोविन्द सिंह रावत ने झपटो-छीनो आन्दोलन को दिशा प्रदान की। चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था रेणी में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।[2]
'चिपको आन्दोलन' का घोषवाक्य है[1]- क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार। सन 1987 में इस आन्दोलन को सम्यक जीविका पुरस्कार (Right Livelihood Award) से सम्मानित किया गया था।[3] आन्दोलन का प्रभाव[संपादित करें]इस आंदोलन की मुख्य उपलब्धि ये रही कि इसने केंद्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक सघन मुद्दा बना दिया चिपको के सहभागी तथा कुमाऊँ विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ.शेखर पाठक के अनुसार, “भारत में 1980 का वन संरक्षण अधिनियम और यहाँ तक कि केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन भी चिपको की वजह से ही संभव हो पाया।” उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड) में इस आन्दोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आन्दोलन पूर्व में बिहार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य तक फैल गया था। उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आन्दोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।[4] इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
चिपको आंदोलन जानिए क्या है, जिसने उड़ा दी थी इंदिरा गांधी की भी नींदचिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगांठ को गूगल ने डूडल बनाकर याद किया है। चिपको आन्दोलन (Chipko Andolan In Hindi) की शुरूआत 1973 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा गौरा देवी के नेतृत्व में हुई थी। आंदोलन की शुरुआत... नेशनल डेस्कः चिपको आंदोलन की 45वीं वर्षगांठ को गूगल ने डूडल बनाकर याद किया है। चिपको आन्दोलन (Chipko Andolan In Hindi) की शुरूआत 1973 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा गौरा देवी के नेतृत्व में हुई थी।चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले से हुई थी। उस समय उत्तर प्रदेश में पड़ने वाली अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में लोगों ने चिपको आंदोलन शुरू किया। 1973 में वन विभाग के ठेकेदारों ने जंगलों के पेड़ों की कटाई शुरू कर दी थी। वनों को इस तरह कटते देख किसानों ने बड़ी संख्या में इसका विरोध किया और चिपको आंदोलन की शुरुआत (Chipko Movement Started)हुई। चिपको आंदोलन था क्याचिपको आंदोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आंदोलन था। किसानों ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए इसे शुरू किया था। इस आंदोलन की सबसे बड़ी बात यह थी कि उस समय पुरुषों के मुकाबले इसमें स्त्रियों ने भारी संख्या में भाग लिया था। यह आंदोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले में प्रारंभ हुआ। एक दशक के अंदर यह पूरे उत्तराखंड क्षेत्र में फैल गया। उत्तराखंड पहले यूपी का ही हिस्सा था। चिपको आंदोलन के नाम से ही स्पष्ट है कि तब जब भी कोई पेड़ों को काटने आता था तो आंदोलनकारी पेड़ों से चिपक जाते थे। और ये भी पढ़े
चिपको आंदोलन से खुली सरकार की आंखइस आंदोलन की मुख्य उपलब्धि ये रही कि इसने केंद्रीय राजनीति के एजेंडे में पर्यावरण को एक सघन मुद्दा बना दिया था। उत्तर प्रदेश (वर्तमान उत्तराखण्ड) में इस आंदोलन ने 1980 में तब एक बड़ी जीत हासिल की, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने प्रदेश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी। बाद के वर्षों में यह आंदोलन पूर्व में बिहार, पश्चिम में राजस्थान, उत्तर में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में कर्नाटक और मध्य भारत में विंध्य तक फैला गया था। उत्तर प्रदेश में प्रतिबंध के अलावा यह आंदोलन पश्चिमी घाट और विंध्य पर्वतमाला में वृक्षों की कटाई को रोकने में सफल रहा। साथ ही यह लोगों की आवश्यकताओं और पर्यावरण के प्रति अधिक सचेत प्राकृतिक संसाधन नीति के लिए दबाब बनाने में भी सफल रहा।
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चिपको आंदोलन किसने शुरू किया था और कब?इससे जाहिर है कि रेणी में महिलाओं द्वारा पेड़ों से चिपक कर कर पेड़ बचाने से पहले ही 12 मार्च को गोविन्द सिंह रावत ने चिपको आन्दोलन शुरू कर दिया था।
चिपको आंदोलन का नारा क्या है?BBCHindi. तीस साल पहले उत्तरांचल के पर्वतीय इलाक़ों में पेड़ों से चिपककर महिलाओं ने एक नारा दिया था – पहले हमें काटो तब जंगल और पेड़ काटने गये ठेकेदारों को उनके सामने हथियार डालने पड़े थे. ये चिपको आंदोलन था.
चिपको आंदोलन का दूसरा नाम क्या है?चिपको आंदोलन को चिपको मूवमेंट, अहिंसक, सामाजिक और पारिस्थितिक आंदोलन भी कहा जाता है।
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