लोकतंत्र को 'बहस' की सरकार क्यों कहते हैं?
लोकतंत्र को 'बहस' की सरकार इसलिए कहते हैं क्योंकि लोकतंत्र पूर्ण रूप से सुझाव एवं वाद-विवाद पर आधारित है। लोकतंत्र में कोई भी निर्णय या परामर्श, वाद-विवाद एवं सुझाव के द्वारा लिए जाते हैं।
जब कई लोग एक साथ सोचते हैं तो गलतियों की संभावना कम होती है। इसमे समय अवश्य लगता है, परन्तु ज्यादा समय लगने का भी फायदा है, कि जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिए जाते। किसी दबाब में निर्णय नहीं लिया जाता बल्कि शांतिपूर्ण ढंग
से निर्णय लिए जाते हैं।
सभी सरकार जो चुनाव के द्वारा चुनी जाती है, वह लोकतांत्रिक नहीं होती? कैसे?
यह सत्य है कि सभी सरकार जो चुनाव द्वारा चुनी जाती है, वह लोकतांत्रिक नहीं होती। वह सरकार राजशाही, तानाशाही तथा एकदलीय शासन हो सकती है। कुछ देश ऐसे हैं जहाँ संसद एवम चुने हुए प्रतिनिधि हैं परन्तु वास्तविक शक्ति दूसरे लोगों के हाथों में है। उदाहरण- पाकिस्तान।
'लोकतंत्र निर्णय लेने की गुणवत्ता' को बढ़ाता है, कैसे ?
लोकतंत्र मतभेदों एवं भेदभाव को सुलझाने की एक विधि देता है। हर समाज में बहुत तरह की सोच एवं विचारों वाले लोग रहते हैं।
यह मतभेद एवं विविधता किसी भी देश को मजबूती प्रदान करते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोग अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, अलग-अलग धर्म के मानने वाले हैं तथा विमिन्न जातियों के हैं। एक समूह की महत्वाकांक्षाएँ दूसरे समूह की महत्वाकांक्षाओं से टकराती रहती है। लोकतंत्र ऐसी स्थिति में शांतिपूर्ण समाधान प्रस्तुत करता है। लोकतंत्र में कोई
स्थायी विजेता नहीं होता। भारत जैसे देश में जहाँ बहुत विविधता है, लोकतंत्र सबको बांध कर रखता है।
किसी व्यक्ति को मतदान के समान अधिकार से वंचित करने के उदाहरण दीजिए।
- सउदी अरब में महिलाओं को मत देने का अधिकार नहीं हैं।
- फिजी की चुनाव प्रणाली में फिजी मूल के लोगों के मत का मूल्य भारतीय मूल के फिजी नागरिकों से कम है।
चीन में हर पाँच साल बाद चुनाव होते हैं, परन्तु चीन एक लोकतंत्र नहीं है। कैसे?
चीन में हर पाँच साल बाद चुनाव होते हैं परन्तु वहाँ लोकतंत्र नहीं है क्योंकि:
- चीन में हर 5 साल पर संसद का चुनाव होता है।
- संसद राष्ट्रपति का चुनाव करती है।
- संसद के 3000 सदस्य हैं।
- कुछ सदस्य सेना द्वारा चुने जाते हैं।
- चुनाव में लड़ने के लिए चीनी कम्यूनिष्ट पार्टी का समर्थन आवश्यक है।
- सरकार हमेशा कम्युनिस्ट पार्टी की बनती है।
चीन कैसे चुनता है अपना राष्ट्रपति?
15 अक्टूबर 2017
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चीन में पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य ग्रेट हॉल में
हर पांच साल पर दुनिया की नज़र चीन में होने वाली सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस पर जाती है.
इसी कांग्रेस में तय किया जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व कौन करेगा. जिसके हाथ में कम्युनिस्ट पार्टी की कमान होती है, वो चीन के एक अरब 30 करोड़ लोगों पर शासन करता है. इसके साथ ही वो शख्स दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का संचालन करता है.
चीन में कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं कांग्रेस की बैठक 18 अक्टूबर से शुरू होने जा रही है. इसी कांग्रेस में कम्युनिस्ट पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन की उम्मीद की जाती है. हालांकि इस बार व्यापक पैमाने पर कहा जा रहा है कि शी जिनपिंग राष्ट्रपति के पद पर बने रहेंगे.
कांग्रेस करती क्या है?
मध्य अक्टूबर में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) देश भर से प्रतिनिधियों को नियुक्त करती है. इसके बाद बीजिंग के ग्रेट हॉल में बैठक होती है.
पार्टी के 2,300 प्रतिनिधि हैं, हालांकि 2,287 प्रतिनिधि ही इस बैठक में शामिल होंगे. रिपोर्टों के मुताबिक़ 13 प्रतिनिधियों को अनुचित व्यवहार के कारण अयोग्य ठहरा दिया गया है.
बंद दरवाज़े के भीतर सीपीसी शक्तिशाली सेंट्रल कमेटी का चुनाव करेगी. सेंट्रल कमेटी में क़रीब 200 सदस्य होते हैं. यही कमेटी पोलित ब्यूरो का चयन करती है और पोलित ब्यूरो के ज़रिए स्थायी समिति का चयन किया जाता है. ये दोनों कमेटियां चीन में निर्णय लेने वाले असली निकाय हैं. पोलित ब्यूरो में अभी 24 सदस्य हैं जबकि स्टैंडिंग कमेटी के सात सदस्य हैं. हालांकि सदस्यों की संख्या में आने वाले सालों में परिवर्तन होता रहता है.
कहने के लिए तो एक मतदान होता है, लेकिन असल में वर्तमान नेतृत्व में ज़्यादातर लोग पहले से ही तय होते हैं और कमेटी सिर्फ़ फ़रमानों का पालन करती है. सेंट्रल कमेटी पार्टी के शीर्ष नेता का भी चुनाव करती है जिसे कम्युनिस्ट पार्टी का महासचिव कहा जाता है. जो सीपीसी का महासचिव होता है वही देश का राष्ट्रपति बनता है. इस बार कहा जा रहा है कि शी जिनपिंग राष्ट्रपति बने रहेंगे.
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चीन में भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी के प्रमुख वॉन्ग किशान
इस बार क्या होने जा रहा है?
19वीं कांग्रेस का ध्यान इस बार मुख्य रूप से दो चीज़ों पर है. पहला यह कि शी जिनपिंग अगले पांच सालों के लिए चीनी की नीति की दिशा को लेकर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करेंगे और विश्लेषक इस रिपोर्ट को परखेंगे. दूसरी बात यह है कि पोलित ब्यूरो स्टैंडिंग कमिटी को पूरी तरह से बदलाव की उम्मीद है.
हाल के वर्षों में पार्टी ने कुछ ख़ास पदों पर अनौपचारिक कार्यकाल और उम्र सीमा को तय किया है. उम्मीद है कि ज़्यादातर पोलित ब्यूरो सदस्य हट जाएंगे क्योंकि वो रिटायरमेंट की उम्र 68 साल को पार कर चुके हैं.
इसमें भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसी के प्रमुख वॉन्ग किशान भी शामिल हैं. हालांकि वॉन्ग, शी जिनपिंग अहम सहयोगी हैं और उन्हें पद पर बने रहने दिया जा सकता है. राष्ट्रपति शी और प्रीमियर ली किकियांग की उम्र 65 के आसपास है.
उम्मीद की जाती है कि कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस में चीन के भविष्य के नए नेताओं को आगे किया जाता है. संभव है कि शी का कोई उत्तराधिकारी चुना जाए जो देश को अगले पांच सालों तक चलाएगा. हालांकि ऐसी अटकलें हैं कि शी इस बार परंपरा को तोड़ सकते हैं.
शी जिनपिंग की ताक़त
2012 में जब शी जिनपिंग सत्ता में आए तब से उन्होंने अपनी ताक़त में बेशुमार बढ़ोतरी की है. शी जिनपिंग को कई टाइटलों से नवाजा गया. उन्हें 'कोर लीडर ऑफ चाइना' का भी टाइटल दिया गया. इस टाइटल के ज़रिए वो माओत्से तुंग जैसे नेताओं की पंक्ति में खड़े हो गए. कहा जा रहा है कि कांग्रेस में शी जिनपिंग के सहयोगियों की संख्या काफ़ी है. ऐसे में पार्टी चार्टर में शी जिनपिंग की नीतियों को स्थापित करना आसान होगा.
अगर ऐसा होता है तो चीन के राजनीतिक इतिहास में शी जिनपिंग माओ के स्तर तक पहुंच जाएंगे. कुछ लोगों का मानना है कि वो परंपरागत रूप से राष्ट्रपति के दो कार्यकाल की सीमा को बढ़ाने की भी घोषणा कर सकते हैं. 2012 में राष्ट्रपति बनने के बाद से शी ने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को प्रभावी तरीक़े से चलाया. 10 लाख से ज़्यादा अधिकारियों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई हुई. हालांकि कई लोग इसे विरोधियों के ख़िलाफ़ क़दम के रूप में भी देखते हैं.
शी के नाम से भी एक आंदोलन चला. इन वजहों से वहां के मीडिया में शी की छवि भी चमकी. इन्हीं कारणों से शी को प्यार से 'शी दादा' उपनाम भी दिया गया.
बाक़ी दुनिया के लिए इसका मतलब क्या है?
विश्लेषकों मानना है कि स्टैंडिंग कमेटी में बड़े फेरबदल से कुछ बड़ा नीतिगत बदलाव आ सकता है. हालांकि दुनिया के लिए चीन के रुख़ में कोई परिवर्तन नहीं आएगा. शी के फिर से चुने जाने पर स्थिरता बनी रहेगी. चीन में आर्थिक सुधार का कार्यक्रम अभी जारी है. इसमें शी का भ्रष्टाचार विरोधी अभियान और अधिनायकवादी शासन भी शामिल है.
शी के नेतृत्व में चीन वैश्विक स्तर पर कई मामलों में मुखर रूप से सामने आया है. इसमें ख़ासकर दक्षिण चीन सागर का विस्तार और 'वन बेल्ट वन रोड' अहम हैं. डोनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमरीका की जो स्थिति है, उसमें चीन ख़ुद को एक वैकल्पिक सुपर पावर के रूप में पेश कर रहा है. हालांकि एक सवाल अब भी बाक़ी है- उत्तर कोरिया और उसका परमाणु संकट.
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