बुटाटी धाम कौन सा जिला में पड़ता है? - butaatee dhaam kaun sa jila mein padata hai?

न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, नागौर Published by: उदित दीक्षित Updated Thu, 13 Oct 2022 06:02 PM IST

राजस्थान के नागौर जिले से 50 किलो मीटर दूर अजमेर-नागौर मार्ग पर कुचेरा के पास बुटाटी धाम है। इस गांव में करीब 600 साल पहले संत चतुरदास जी महाराज का जन्म हुआ था। चारण कुल में जन्मे वह एक महान सिद्ध योगी थे। वह अपनी सिद्धियों से लकवा के रोगियों को रोगमुक्त कर देते थे। इस मंदिर में आज भी इसका उदाहरण देखने को मिलता है। आज भी यहां पर लोग लकवे से मुक्त होने के लिए संत की समाधी पर सात फेरे लगाते हैं। एकादशी और द्वादशी के दिन बुटाटी धाम में लकवा मरीजों और अन्य श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

मान्यता है कि इस मंदिर में सात दिन तक आरती-परिक्रमा करने से लकवा की बीमारी से परेशान मरीज ठीक हो जाता है। जनआस्था के इस केंद्र की ख्याति देश ही नहीं विदेशों तक हैं। लकवे से ग्रस्ति मरीजों को उनके परिजन धाम लेकर आते हैं। लोगों का दावा है कि 7 दिन फेरे (परिक्रमा) देने के बाद लकवे का असर खत्म हो जाता है। साथ ही कुछ लोगों को 90 फीसदी तक लाभ मिलता है।

कहां है बुटाटी धाम? 
बुटाटी धाम मंदिर नागौर जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर नागौर-अजमेर हाइवे पर डेगाना तहसील में स्थित है। धाम के सबसे निकट रेलवे स्टेशन मेड़ता रोड़ है जो करीब 45 किलोमीटर दूरी पर है। मरीजों और उनके परिजनों को रुकने के लिए धाम में व्यवस्था की गई है। यहां आने वाले हजारों लोग और मरीज धाम परिसर में ही ठहरते हैं।

क्या हैं लकवा ग्रस्त मरीजों के नियम?  
बुटाटी धाम में लकवे के मरीजों और उनके परिजनों को केवल सात दिन और रात रुकने की अनुमति होती है। ज्यादा दिन रुकने पर मंदिर प्रबंधक समिति जाने के लिए कह देती है। इसका कारण जानने के लिए अमर उजाला की टीम ने मंदिर प्रबंधक समिति के अध्यक्ष शिव सिंह से बात की तो उन्होंने बताया कि यहां पर नए लोग आते रहते हैं। पुराने लोग अगर समय पर नहीं जाएंगे तो नए मरीजों को जगह मिलने में समस्या होगी। हमारी कोशिश रहती है कि यहां आने वाले मरीजों और उनके परिजनों को किसी तरह की परेशानी न हो। इसलिए सात दिन बाद मरीजों को जाने के लिए कह देते हैं। उन्होंने बताया कि यहां आने वाले मरीजों का सबसे पहले रजिस्ट्रेशन किया जाता है। उसके बाद उसे निशुल्क राशन सामग्री दी जाती है और दर्ज तारीख के अनुसार 7 दिन में जगह खाली करनी होती है। ऐसा नहीं करने वालो से जाने का आग्रह भी करते हैं।

विदेशों से भी आते हैं मरीज
प्रबंधक समिति के अध्यक्ष शिव सिंह ने बताया कि धाम में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया अफगानिस्तान सहित अन्य देशों से भी लकवे की बीमारी से परेशान मरीज आते हैं। मंदिर समिति द्वारा किसी तरह का प्रचार प्रसार नहीं किया जाता है। लोगों के जरिए ही एक दूसरे को पता चलता है। पिछले कई साल से लोग अपनी आस्था के कारण यहां आ रहे हैं।

  धाम की धार्मिक कहानी
बुटाटी धाम मंदिर को लेकर एक कहानी प्रचलित है। बताया जाता है कि करीब 600 साल पहले यहां चतुरदास जी नाम के संत थे। उनके पास 500 से अधिक बीघा जमीन थी जो उन्होंने दान कर दी और आरोग्य की तपस्या करने चले गए। सिद्धि प्राप्त करने के बाद वह यहां वापस आए और समाधि ले ली। उस स्थल पर ही यह मंदिर बना हुआ है।

मंदिर कमेटी की ओर से की गईं हैं यह व्यवस्थाएं

  • मरीजों को मंदिर की ओर से भोजन और आवास की नि:शुल्क व्यवस्था की जाती है।
  • मंदिर में लोग सात दिन रुक सकते हैं। उनसे रहने-खाने का शुल्क नहीं लिया जाता।
  • करीब 90 प्रतिशत लोग अपने ठिकाने पर ही गैस या चूल्हे पर भोजन आदि बनाते हैं।
  • प्रतिदिन सुबह साढ़े पांच बजे और शाम को साढ़े छह बजे आरती होती है, जिसमें मरीजों-परिजनों का आना अनिवार्य है।
  • परिसर में लकवा ग्रस्त मरीजों के 300 व्हील चेयर की व्यवस्था है।  
  • एकादशी पर यहां सर्वाधिक भीड़ उमड़ती है। इस दिन की आरती का भी विशेष महत्व माना जाता है। 

दर्द की कहानी, मरीजों की जुबानी

  • राजस्थान के जयपुर जिले के रहने वाले मोनू सिंह ने बताया की उसे 10 साल पहले पैरालिसिस हुआ था। उसके आधे शरीर ने काम करना बंद कर दिया था। परिवार के लोग उसे बुटाटी धाम लेकर गए। चार दिन वहां रहने के बाद वह 95 फीसदी ठीक हो गया था। 
  • पुणे के रहने वाले फतुफ मास्टर ने बताया की वह अपने घर में बैठे थे। अचानक शरीर ने काम करना बंद कर दिया। बेटे उन्हें अस्पताल लेकर गए जहां डॉक्टरों ने पैरालिसिस होने की जानकारी दी। इस दौरान उनके बेटे ने यह बात अपने दोस्त को बताई तो उसने बुटाटी धाम के बारे में बताया, पहले तो परिवार के लोगों ने विश्वास नहीं किया, लेकिन बाद में हम वहां चले गए। परिक्रमा करने के बाद पांच दिन मे ही काफी आराम मिल गया। जिसके बाद हम वापस आ गए।  
  • राजस्थान के जोधपुर के रहने वाले ओम प्रकाश ने बताया कि वह लगवा ग्रस्त हो गया था। परिवार के साथ बुटाटी धाम गया। 7 दिन तक सुबह और शाम परिक्रमा लगाने के बाद ठीक हो गया।  

बुटाटी धाम , राजस्थान में से 50 किलोमीटर दूर अजमेर नागौर मार्ग पर कुचेरा क़स्बे के पास स्थित है। इसे यहाँ ‘चतुरदास जी महाराज के मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर वस्तुतः संत श्री चतुरदास जी महाराज की समाधि है।

इतिहास

मान्यता है कि लगभग पांच सौ साल पहले संत चतुरदास जी का यहाँ पर निवास था। चारण कुल में जन्में वे एक महान सिद्ध योगी थे और अपनी सिद्धियों से लकवा के रोगियों को रोगमुक्त कर देते थे। आज भी लोग लकवा से मुक्त होने के लिए इनकी समाधी पर सात फेरी लगाते हैं। यहाँ पर देश भर से प्रतिवर्ष लाखों लकवा मरीज एवं अन्य श्रद्धालु विशेष रूप से एकादशी एवं द्वादशी के दिन आते है।

जेनिफर क्राफ्ट अमेरिकन मीडिया और सोशल मीडिया से बुटाटी धाम की जानकारी मिली

बुटाटी धाम के चमत्कार की बात सुनकर विश्व की महाशक्ति अमरीका के शिकागो से लकवाग्रस्त ! (पैरालिसिस) से पीडि़त जेनिफर क्राफ्ट भी परिक्रमा लगाने बुटाटी मन्दिर आई !

जेनिफर क्राफ्ट ने बताया कि मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें बुटाटी धाम के चमत्कार के बारे में पता चला ! और बिना कोई देरी किये अमेरीका से भारत चली आई ! जेनिफर क्राफ्ट “के साथ दिल्ली से आए आशुतोष शर्मा ने बताया कि क्राफ्ट का 2014 में मोटरसाइकिल से एक्सीडेंट हो गया था ! तब से रीढ की हड्डी में चोट लगने के कारण इनका कमर से नीचे का भाग बिल्कुल हिल ही नहीं पा रहा !

बुटाटी धाम के बारे में सुनने के बाद से ही वह यहां आने की जिद कर रही थी इसलिए उन्हें यहां बुटाटी धाम लाया गया ! और जेनिफर क्राफ्ट चतुर दास जी के चमत्कार के परिणाम स्वरूप यहां से तैयार होकर गई ! इस चमत्कार को देखकर अमेरिका के भी लोग मानने लगे हैं कि भारत में एक ऐसा मंदिर है ! जहां पैरालाइसिस यानी लकवा रोग का इलाज होता है !

बुटाटी धाम में  हर वर्ष एकादशी को वैशाख, भादवा और माघ महीने में मेला लगता जहां लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रहती है या देश विदेश से अनेक श्रद्धालु आते हैं और चतुरदास जी महाराज के सामने नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं

उत्सव

यहाँ हर माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मेला लगता है। इसके अतिरिक्त वैशाख , भादो और माघ महीने में पूरे महीने के विशेष मेलों का आयोजन होता है।

बुटाटी धाम, नागौर (राजस्थान) की सम्पूर्ण जानकारी एवं इतिहास / Complete information and history of Butati Dham, Nagaur (Rajasthan) –

देश में अन्य बीमारियों के साथ लकवा (Paralysis) रोग भी बड़ा रूप लेता जा रहा है। भारत में लाखों-करोड़ों की संख्या में लोग लकवा से पीड़ित हैं। वहीं रोग के आगे चिकित्सा विज्ञान भी कम असरदार है क्योंकि कुछ लोग चिकित्सा पद्धति के ज़रिए ठीक हो जाते हैं तो कुछ लोगों पर इसका कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन राजस्थान में इस बीमारी के इलाज के लिए एक मंदिर बेहद प्रसिद्ध है। जहां लोगों का मानना है कि केवल परिक्रमा करने से लकवाग्रस्त व्यक्ति ठीक हो जाता है।

ऐसे लगानी होती है परिक्रमा

बुटाटी धाम की मान्यता ऐसी है कि यहां पूरे देश लकवाग्रस्त पीड़ित आते हैं। मंदिर 7 परिक्रमा से लकवा के रोग से मुक्त कराने के लिए प्रसिद्ध है। यहां लकवा के मरीजों को सात दिन का प्रवास करते हुए रोज एक परिक्रमा लगानी होती है। सुबह की आरती के बाद पहली परिक्रमा मंदिर के बाहर तथा शाम की आरती के बाद दूसरी परिक्रमा मंदिर के अन्दर लगानी होती है। ये दोनों परिक्रमा मिलकर पूरी एक परिक्रमा कहलाती है। सात दिन तक मरीज को इसी प्रकार परिक्रमा लगानी होती है। बूटाटी धाम अपनी चमत्कारी शक्तियों से लकवा सही करने के लिए काफी मशहूर है।

भक्तों में मान्यता है कि परिक्रमा लगाने और हवन कुण्ड की भभूत लगाने से बीमारी धीरे-धीरे अपना प्रभाव कम कर देती है। शरीर के अंग जो हिलते डुलते नहीं हैं वह धीरे-धीरे काम करने लगते हैं।

बुटाटी धाम की जानकारी / Information about Butati dham

हां होता है लकवे का 100 फीसदी इलाज, वह भी नि:शुल्क / 100 percent treatment of paralysis is done here, that too free of cost

बुटाटी धाम का सत्य / Butati Dham truth

बुटाटी धाम का रहस्य / Mystery of Butati Dham

बुटाटी धाम का चमत्कार / Butati Dham famous for

बुटाटी धाम लकवा का इलाज / Butati Dham paralysis treatment

राजस्थान में बुटाटी धाम कहां है / Butati dham address

बुटाटी धाम का फोन नंबर / Butati dham contact number – 09694005178/ 9001631204

बुटाटी धाम की आरती / Butati dham aarti time

बुटाटी धाम मंदिर कब खुलेगा / when will butati dham temple open

चतुरदास जी महाराज की जन्म कथा / birth story of chaturdas ji maharaj

चतुरदास जी महाराज का जीवन परिचय / Biography of Chaturdas Ji Maharaj

चतुरदास जी महाराज का भजन / Bhajan of Chaturdas Ji Maharaj

बुटाटी धाम जाने का रास्ता / way to butati dham

बुटाटी धाम के पास कौन सा रेलवे स्टेशन है / Which railway station is near Butati Dham

कहां स्थित है, कैसे जाएं / Where is it located, how to go

बुटाटी धाम मंदिर राजस्‍थान के नागौर जिले की देगाना तहसील में स्थित है। यहां से निकटतम रेलवे स्‍टेशन मेढ़ता रोड़ है जो करीब 45 किमी दूर है। जयपुर एवं जोधपुर रूट पर यह स्‍टेशन आता है। स्‍टेशन से मंदिर आने के लिए जीप मिलती है। अधिकांश लोग स्‍वयं की फोर-व्‍हीलर से भी आते हैं। ठहरने के लिए मंदिर परिसर से आधा किमी दूर गेस्‍ट हाउस है। अजमेर-कोटा रोड पर भी गेस्‍ट हाउस बना है लेकिन अधिकांश लोग मंदिर परिसर में ही ठहरते हैं। ऑटो सेवा है लेकिन बहुत सीमित।

बुटाटी धाम कौन से जिले में पड़ता है / Butati Dham falls in which district?

बुटाटी धाम की क्या विशेषता है / What is the specialty of Butati Dham

लकवा मरीजों का शर्तियां इलाज का केन्द्र है बुटाटी धाम / Butati Dham is the center of treatment of paralysis patients

लकवा मरीजों का शर्तियां इलाज का केन्द्र है बुटाटी धाम / Butati Dham is the center of treatment of paralysis patients

मात्र 7 दिन में लकवे का मरीज इस मंदिर में आने से हो जाता है ठीक / In just 7 days, a patient of paralysis gets cured by coming to this temple.

बुटाटी धाम में कौन सा मंदिर है?

बुटाटी धाम , राजस्थान में नागौर से 50 किलोमीटर दूर अजमेर-नागौर मार्ग पर कुचेरा क़स्बे के पास स्थित है। इसे यहाँ 'चतुरदास जी महाराज के मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर वस्तुतः चतुरदास जी की समाधि है।

राजस्थान में कौन सा मंदिर है जहां लकवा ठीक होता है?

राजस्थान के टोंक जिले में बिजासन माता का चमत्कारी मंदिर स्थित है. माना जाता है कि इस मंदिर में लकवा ग्रस्त मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं.

बुटाटी कौन से जिले में पड़ता है?

कहां स्थित है, कैसे जाएं बुटाटी धाम मंदिर राजस्‍थान के नागौर जिले की देगाना तहसील में स्थित है। यहां से निकटतम रेलवे स्‍टेशन मेढ़ता रोड़ है जो करीब 45 किमी दूर है। जयपुर एवं जोधपुर रूट पर यह स्‍टेशन आता है। स्‍टेशन से मंदिर आने के लिए जीप मिलती है।

चतुरदास जी महाराज कौन थे?

संत चतुरदास जी महाराज , का लगभग पांच सौ साल पहले यहां पर निवास था। चारण कुल में जन्मे वे एक महान सिद्ध योगी थे और अपनी सिद्धियों से लकवा के रोगियों को रोगमुक्त कर देते थे। बुटाटी गांव के चारण कुल में जन्मे संत चतुरदास जी महाराज आजीवन ब्रह्मचारी रहे।