बिहारीदोहेसोहत ओढ़ैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात। Show इस दोहे में कवि ने कृष्ण के साँवले शरीर की सुंदरता का बखान किया है। कवि का कहना है कि कृष्ण के साँवले शरीर पर पीला वस्त्र ऐसी शोभा दे रहा है, जैसे नीलमणि पहाड़ पर सुबह की सूरज की किरणें पड़ रही हैं। कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ। इस दोहे में कवि ने भरी दोपहरी से बेहाल जंगली जानवरों की हालत का चित्रण किया है। भीषण गर्मी से बेहाल जानवर एक ही स्थान पर बैठे हैं। मोर और सांप एक साथ बैठे हैं। हिरण और बाघ एक साथ बैठे हैं। कवि को लगता है कि गर्मी के कारण जंगल किसी तपोवन की तरह हो गया है। जैसे तपोवन में विभिन्न इंसान आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठते हैं, उसी तरह गर्मी से बेहाल ये पशु भी आपसी द्वेषों को भुलाकर एक साथ बैठे हैं। Chapter List
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाइ। इस दोहे में कवि ने गोपियों द्वारा कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन किया है। कवि कहते हैं कि गोपियों ने कृष्ण की मुरली इस लिए छुपा दी है ताकि इसी बहाने उन्हें कृष्ण से बातें करने का मौका मिल जाए। साथ में गोपियाँ कृष्ण के सामने नखरे भी दिखा रही हैं। वे अपनी भौहों से तो कसमे खा रही हैं लेकिन उनके मुँह से ना ही निकलता है। कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात। इस दोहे में कवि ने उस स्थिति को दर्शाया है जब भरी भीड़ में भी दो प्रेमी बातें करते हैं और उसका किसी को पता तक नहीं चलता है। ऐसी स्थिति में नायक और नायिका आँखों ही आँखों में रूठते हैं, मनाते हैं, मिलते हैं, खिल जाते हैं और कभी कभी शरमाते भी हैं। बैठि रही अति सघन बन, पैठि सदन तन
माँह। इस दोहे में कवि ने जेठ महीने की गर्मी का चित्रण किया है। कवि का कहना है कि जेठ की गरमी इतनी तेज होती है की छाया भी छाँह ढ़ूँढ़ने लगती है। ऐसी गर्मी में छाया भी कहीं नजर नहीं आती। वह या तो कहीं घने जंगल में बैठी होती है या फिर किसी घर के अंदर। कागद पर लिखत न बनत, कहत सँदेसु लजात। इस दोहे में कवि ने उस नायिका की मन:स्थिति का चित्रण किया है जो अपने प्रेमी के लिए संदेश भेजना चाहती है। नायिका को इतना लम्बा संदेश भेजना है कि वह कागज पर समा नहीं पाएगा। लेकिन अपने संदेशवाहक के सामने उसे वह सब कहने में शर्म भी आ रही है। नायिका संदेशवाहक से कहती है कि तुम मेरे अत्यंत करीबी हो इसलिए अपने दिल से तुम मेरे दिल की बात कह देना। प्रगट भए द्विजराज कुल, सुबस बसे ब्रज आइ। कवि का कहना है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं ही ब्रज में चंद्रवंश में जन्म लिया था मतलब अवतार लिया था। बिहारी के पिता का नाम केसवराय था। इसलिए वे कहते हैं कि हे कृष्ण आप तो मेरे पिता समान हैं इसलिए मेरे सारे कष्ट को दूर कीजिए। जपमाला, छापैं, तिलक सरै न एकौ कामु। आडम्बर और ढ़ोंग किसी काम के नहीं होते हैं। मन तो काँच की तरह क्षण भंगुर होता है जो व्यर्थ में ही नाचता रहता है। माला जपने से, माथे पर तिलक लगाने से या हजार बार राम राम लिखने से कुछ नहीं होता है। इन सबके बदले यदि सच्चे मन से प्रभु की आराधना की जाए तो वह ज्यादा सार्थक होता है।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय सौंह करे भौंहनि हंसे देन कहे नटी जाय उपर्युक्त पंक्ति में कौन सा रस है?अतः सही विकल्प 2 'श्रृंगार रस' है। "बतरस लालच लाल की, मुरली धरि लुकाय। सौंह करे, भौंहनि हँसे, दैन कहै, नटि जाय।" इन पंक्तियों में शृंगार रस है, इस दोहे में कवि ने गोपियों द्वारा कृष्ण की बाँसुरी चुराए जाने का वर्णन किया है।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय में कौन सा छंद है?बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय । सौंह करैं, भौंहनु हँसे, दैन कहै नटि जाय । । बौराता है, पागल हो जाता है । कब को टेरत दीन रट, होत न स्याम सहाय ।
बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय का स्थायी भाव क्या होगा?बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय। सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नटि जाय। (1) स्थायी भाव–रति।
अहि मयूर मृग बाघ में क्या संबंध होता है?2. कहलाने एकत बसत अहि मयूर, मृग बाघ। जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ-दाघ निदाघ।। शब्दार्थ: एकत = एक होकर, बसत = रह रहे हैं, अहि = साँप, मयूर = मोर, मृग = हिरण, बाघ = शेर, जगतु = संसार, कियौ = करना, दीरघ = दीर्घ, दाघ = गर्मी 'दाह'।
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