बाजार दर्शन पाठ से आपको क्या सीख मिलती है? - baajaar darshan paath se aapako kya seekh milatee hai?

बाजार दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के जादू के बारे में बताया गया है। बाजार में एक जादू है और वह आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है और यह जादू तभी असर करता है जब जेब भरी हो और मन खाली हो। बाजार के जादू को रोकने का उपाय यही है कि बाजार जाते समय मन खाली न हो,मन में लक्ष्य भरा हो। बाजार की असली सार्थकता है- आवश्यकता के समय काम आना। जो लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार बाजार का उपभोग करते हैं वे ही बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। जो लोग अपने पैसों के घमंड में पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए खरीददारी करते हैं वे लोग बाजार का बाजारूपन ही बढ़ाते हैं। इस तरह के बाजार का पोषण करने वाला शास्त्र अनीतिशास्त्र है। इस पाठ में भगत जी के उदाहरण के माध्यम से अपने मन को नियंत्रण में करने और वास्तविक जीवन दर्शन पर बल दिया गया है।

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

पाठ के साथ

प्रश्न 1. बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?

उत्तर: बाजार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  • बाजार में आकर्षक वस्तुएँ देखकर मनुष्य उनके जादू में बँध जाता है।
  • उसे उन वस्तुओं की कमी खलने लगती है।
  • वह उन वस्तुओं को जरूरत न होने पर भी खरीदने के लिए विवश होता है।
  • वस्तुएँ खरीदने पर उसका अह संतुष्ट हो जाता है।
  • खरीदने के बाद उसे पता चलता है कि जो चीजें आराम के लिए खरीदी थीं वे खलल डालती हैं।
  • उसे खरीदी हुई वस्तुएँ अनावश्यक लगती हैं।

प्रश्न 2. बाजार में भगत जी के व्यक्तित्व का कौन-सा सशक्त पहलू उभरकर आता है? क्या आपकी नज़र में उनको आचरण समाज में शांति स्थापित करने में मददगार हो सकता है?

उत्तर: भगत जी समर्पण भी भावना से ओतप्रोत हैं। धन संचय में उनकी बिलकुल रुचि नहीं है। वे संतोषी स्वभाव के आदमी हैं। ऐसे व्यक्ति ही समाज में प्रेम और सौहार्द का संदेश फैलाते हैं। इसलिए ऐसे व्यक्ति समाज में शांति स्थापित करने में मददगार साबित होते हैं।

प्रश्न 3. ‘बाज़ारूपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं अथवा बाज़ार की सार्थकता किसमें हैं? 

उत्तर: ‘बाजारूपन’ से तात्पर्य है-दिखावे के लिए बाजार का उपयोग। बाजार छल व कपट से निरर्थक वस्तुओं की खरीदफ़रोख्त, दिखावे व ताकत के आधार पर होने लगती है तो बाजार का बाजारूपन बढ़ जाता है। क्रय-शक्ति से संपन्न की पुलेि व्यिक्त बाल्पिनक बताते हैं। इसप्रतिसे बारक सवा लधनाह मिलता। शणक प्रति बढ़ जाती है। वे व्यक्ति जो अपनी आवश्यकता के बारे में निश्चित होते हैं, बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। बाजार का कार्य मनुष्य कल कपू करता है जहातक सामान मल्नेप बार सार्थकह जाता है। यह पॉड” पावरक प्रर्शना नहीं होता।

प्रश्न 4. बाज़ार किसी का लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र नहीं देखता, वह देखता है सिर्फ उसकी क्रय शक्ति को। इसे रूप में वह एक प्रकार से सामाजिक समता की भी रचना कर रहा है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर: यह बात बिलकुल सत्य है कि बाजारवाद ने कभी किसी को लिंग, जाति, धर्म या क्षेत्र के आधार पर नहीं देखा। उसने केवल व्यक्ति के खरीदने की शक्ति को देखा है। जो व्यक्ति सामान खरीद सकता है वह बाजार में सर्वश्रेष्ठ है। कहने का आशय यही है कि उपभोक्तावादी संस्कृति ने सामाजिक समता स्थापित की है। यही आज का बाजारवाद है। 

प्रश्न 5. आप अपने समाज से कुछ ऐसे प्रसंग का उल्लेख करें-

(क) जब पैसा शक्ति के परिचायक के रूप में प्रतीत हुआ।

(ख) जब पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

उत्तर:

(क) एक बार एक कार वाले ने एक बच्चे को जख्मी कर दिया। बात थाने पर पहुँची लेकिन थानेदार ने पूरा दोष बच्चे के माता-पिता पर लगा दिया। वह रौब से कहने लगा कि तुम अपने बच्चे का ध्यान नहीं रखते। वास्तव में पैसों की चमक में थानेदार ने सच को झूठ में बदल दिया था। तब पैसा शक्ति का परिचायक नजर आया।

(ख) एक व्यक्ति ने अपने नौकर का कत्ल कर दिया। उसको बेकसूर मार दिया। पुलिस उसे थाने में ले गई। उसने पैसे ले-देकर मामले को सुलझाने का प्रयास किया लेकिन सब बेकार। अंत में उस पर मुकदमा चला। आखिरकार उसे 14 वर्ष की उम्रकैद हो गई। इस प्रकार पैसे की शक्ति काम नहीं आई।

पाठ के आसपास

प्रश्न 1. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में बाज़ार जाने या न जाने के संदर्भ में मन की कई स्थितियों का जिक्र आया है। आप इन स्थितियों से जुड़े अपने अनुभवों का वर्णन कीजिए।

मन खाली हो

मन खाली न हो

मन बंद हो

मन में नकार हो

उत्तर:

मनखाली हो –

जब मनुष्य का मन खाली होता है तो बाजार में अनाप–शनाप खरीददारी की जाती है । बजर का जादू सिर चढकर बोलता है । एक बार में मेले में घूमने गया । वहाँ चमक–दमक, आकर्षक वस्तुएँ मुझे न्योता देती प्रतीत हो रहीं थीं । रंग–बिरंगी लाइटों से प्रभावित होकर मैं एक महँगी ड्रेस खरीद लाया । लाने के खाद पता चला कि यह आधी कीमत में फुटपाथ पर मिलती है । 

मन खाली न हो–

मन खाली न होने पर मनुष्य अपनी इच्छित चीज खरीदता है । उसका ध्यान अन्य वस्तुओं पर नहीं जाता । में घर में जरूरी सामान की लिस्ट बनाकर बाजार जाता है और सिफ्रे उन्हें ही खरीदकर लाता हूँ । मैं अन्य चीजों को देखता जरूर हूँ, पर खरीददारी वहीं करता हूँजिसकौ मुझे जरूरत होती है । 

मन बंद हो–

मन ईद होने पर इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं । वैसे तो इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं, परंतु कभी–कभी पन:स्थिति ऐसी होती है कि किसी वस्तु में मन नहीं

लगता । एक दिन में उदास था और मुझे बाजार में किसी वस्तु में कोई दिलचस्पी नहीं थी । अत: में विना कहीं रुके बाजार से निकल आया ।

मन में नकार हो–

मन में नकारात्मक भाव होने से बाजार की हर वस्तु खराब दिखाई देने लगती है । इससे समाज इसका विकास रुक जाता है । ऐसा असर किसी के उपदेश या सिदूधति का पालन करने से होता है । एक दिन एक साम्यवादी ने इस तरह का पाठ पढाया कि बडी कंपनियों की वस्तुएँ मुझें शोषण का रूप दिखाई देने लगी।

प्रश्न 2. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ में किस प्रकार के ग्राहकों की बात हुई है? आप स्वयं को किस श्रेणी का ग्राहक मानते/मानती हैं?

उत्तर: इस पाठ में प्रमुख रूप से दो प्रकार के ग्राहकों का चित्रण निबंधकार ने किया है। एक तो वे ग्राहक, जो ज़रूरत के अनुसार चीजें खरीदते हैं। दूसरे वे ग्राहक जो केवल धन प्रदर्शन करने के लिए चीजें खरीदते हैं। ऐसे लोग बाज़ारवादी संस्कृति को ज्यादा बढ़ाते हैं। मैं स्वयं को पहले प्रकार का ग्राहक मानता/मानती हैं क्योंकि इसी में बाजार की सार्थकता है।

प्रश्न 3. आप बाज़ार की भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृति से अवश्य परिचित होंगे। मॉल की संस्कृति और सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति में आप क्या अंतर पाते हैं? पर्चेजिंग पावर आपको किस तरह के बाजार में नजर आती है?

उत्तर: मॉल को संस्कृति से बाजार को पर्चेजिग पावर को बढावा मिलता है । यह संस्कृति उच्च तथा उच्च मध्य वर्ग से संबंधित है । यहाँ एक ही छत के नीचे विभिन्न तरह के सामान मिलते हैं तथा चकाचौंध व लूट चरम सीमा पर होती है । यहाँ बाजारूपन भी पूरे उफान पर होता है । सामान्य बाजार में मनुष्य की जरूरत का सामान अधिक होता है । यहाँ शोषण कम होता है तथा आकर्षण भी कम होता है । यहाँ ग्राहक व दूकानदार में सदभाव होता है । यहाँ का ग्राहक मध्य वर्ग का होता है।

हाट – संस्कृति में निम्न वर्ग व ग्रमीण परिवेश का गाहक होता है । इसमें दिखावा नहीं होता तथा मोल-भाव भी नाम का होता है । ।पचेंजिग पावर’ मलि संस्कृति में नज़र आती है क्योंकि यहाँ अनावश्यक सामान अधिक खरीदे जाते है।

प्रश्न 4. लेखक ने पाठ में संकेत किया है कि कभी-कभी बाज़ार में आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। 

उत्तर:आवश्यकता पड़ने पर व्यक्ति अपेक्षित वस्तु हर कीमत पर खरीदना चाहता है। वह कोई भी कीमत देकर उस वस्तु को प्राप्त कर लेना चाहता है। इसलिए वह कई बार शोषण का शिकार हो जाता है। बेचने वाला तुरंत उस वस्तु की कीमत मूल कीमत से ज्यादा बता देता है। इसीलिए लेखक ने ठीक कहा है कि आवश्यकता ही शोषण का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 5. स्त्री माया न जोड़े यहाँ मया शब्द किस ओर संकेत कर रहा है? स्त्रियों द्वारा माया जोड़ना प्रकृति प्रदत्त नहीं, बल्कि परिस्थितिवश है। वे कौन-सी परिस्थितियाँ होंगी जो स्त्री को माया जोड़ने के लिए विवश कर देती हैं?

उत्तर: यहाँ ‘माया‘ शब्द का अर्थ है–धन–मगाती, जरूरत की वस्तुएँ । आमतौर पर स्तियों को माया जोड़ते देखा जाता है । इसका कारण उनकी परिस्थितियों है जो निम्नलिखित हैं –

  • आत्मनिर्भरता की पूर्ति ।
  • घर की जरूरतों क्रो पूरा करना ।
  • अनिश्चित भविष्य ।
  • अहंभाव की तुष्टि ।
  • बच्चों की शिक्षा ।
  • संतान–विवाह हेतु ।
  • आपसदारी

प्रश्न 1. ज़रूरत-भर जीरा वहाँ से लिया कि फिर सारा चौक उनके लिए आसानी से नहीं के बराबर हो जाता है-भगत जी की इस संतुष्ट निस्पृहता की कबीर की इस सूक्ति से तुलना कीजिए

" चाह गई चिंता गई मनुआ बेपरवाह जाको कुछ न चाहिए सोइ सहंसाह।  "                                                                                                                                                    – कबीर

उत्तर: कबीर का यह दोहा भगत जी की संतुष्ट निस्मृहता पर पूर्णतया लागूहोता है । कबीर का कहना था कि इच्छा समाप्त होने यर लता खत्म हो जाती है । शहंशाह वहीं होता है जिसे कुछ नहीं चाहिए । भगत जी भी ऐसे ही व्यक्ति हैं । इनकी जरूरतें भी सीमित हैं । वे बाजार के आकर्षण से दूर हैं । अपनी ज़रूरत पा होने पर वे संतुष्ट को जाते हैं ।

प्रश्न 2. विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ (जिस पर ‘पहेली’ फ़िल्म बनी है) के अंश को पढ़कर आप देखेंगे कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दृष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दृष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?

गड़रिया बगैर कहे ही उसके दिल की बात समझ गया, पर अँगूठी. कबूल नहीं की। काली दाढी के बीच पीले दाँतों की हँसी हँसते हुए बोला-‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय की कीमत वसूल करूं। मैंने तो अटका काम निकाल दिया। और यह अँगूठी मेरे किस काम की ! न यह अंगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़े भी मेरी तरह गॅवार हैं। घास तो खाती है, पर सोना सँघती तक नहीं। बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।

उत्तर: विजयदान देथा की ‘दुविधा’ कहानी का अंश पढ़कर मुझमें भी संतोषी वृत्ति के भाव जगते हैं। गड़रिया चाहता तो वह अपने न्याय की कीमत वसूल सकता था। सामाजिक दृष्टि से यही ठीक भी था क्योंकि अमीर व्यक्ति जो कुछ गड़रिये को दे रहा था वह उसका हक था। लेकिन गड़रिये और भगत जी की संतोषी भावना को देखकर मेरे मन में भी इसी प्रकार के भाव उत्पन्न हो जाते हैं। मन करता है कि जीवन में इस भावना को अपनाए रखें तो किसी प्रकार की चिंता नहीं रहेगी। जब कोई इच्छा या अपेक्षा नहीं होगी तो दुख नहीं होगा। तब हम भी कबीर की तरह शहंशाह होंगे।

प्रश्न 3. बाज़ार पर आधारित लेख ‘नकली सामान पर नकेल ज़रूरी’ का अंश पढ़िए और नीचे दिए गए बिंदुओं पर कक्षा में चर्चा कीजिए।

(क) नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?

(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है।

(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?

"नकली सामान पर नकेल जरूरी"

अपना क्रेता वर्ग बढ़ाने की होड़ में एफएमसीजी यानी तेजी से बिकने वाले उपभोक्ता उत्पाद बनाने वाली कंपनियाँ गाँव के बाजारों में नकली सामान भी उतार रही हैं। कई उत्पाद ऐसे होते हैं जिन पर न तो निर्माण तिथि होती है और न ही उस तारीख का जिक्र होता है जिससे पता चले कि अमुक सामान के इस्तेमाल की अवधि समाप्त हो चुकी है। आउटडेटेड या पुराना पड़ चुका सामान भी गाँव-देहात के बाजारों में खप रहा है। ऐसा उपभोक्ता मामलों के जानकारों का मानना है। नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्सल कमीशन के सदस्य की मानें तो जागरूकता अभियान में तेजी लाए बगैर इस गोरखधंधे पर लगाम कसना नामुमकिन है। उपभोक्ता मामलों की जानकार पुष्पा गिरि माँ जी का कहना है, इसमें दो राय नहीं है कि गाँव-देहात के बाजारों में नकली सामान बिक रहा है।

महानगरीय उपभोक्ताओं को अपने शिकंजे में कसकर बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, खासकर ज्यादा उत्पाद बेचने वाली कंपनियाँ, गाँव का रुख कर चुकी हैं। वे गाँववालों के अज्ञान और उनके बीच जागरुकता के अभाव का पूरा फायदा उठा रही हैं। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए कानून ज़रूर है लेकिन कितने लोग इनका सहारा लेते हैं यह बताने की ज़रूरत नहीं। गुणवत्ता के मामले में जब शहरी उपभोक्ता ही उतने सचेत नहीं हो पाए हैं तो गाँव वालों से कितनी उम्मीद की जा सकती है। इस बारे में नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन के सदस्य जस्टिस एस. एन. कपूर का कहना है, ‘टी.वी. ने दूरदराज के गाँवों तक में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ विज्ञापन पर तो बेतहाशा पैसा खर्च करती हैं। लेकिन उपभोक्ताओं में जागरूकता को लेकर वे चवन्नी खर्च करने को तैयार नहीं हैं।

नकली सामान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने में स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी मिलकर ठोस काम कर सकते हैं। ऐसा कि कोई प्रशासक भी न कर पाए।’ बेशक, इस कड़वे सच को स्वीकार कर लेना चाहिए कि गुणवत्ता के प्रति जागरुकता के लिहाज से शहरी समाज भी कोई ज्यादा सचेत नहीं है। यह खुली हुई बात है कि किसी बड़े ब्रांड का लोकल संस्करण शहर या महानगर का मध्य या निम्नमध्य वर्गीय उपभोक्ता भी खुशी-खुशी खरीदता है। यहाँ जागरुकता का कोई प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि वह ऐसा सोच-समझकर और अपनी जेब की हैसियत को जानकर ही कर रही है। फिर गाँववाला उपभोक्ता ऐसा क्यों न करे। पर फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि यदि समाज में कोई गलत काम हो रहा है तो उसे रोकने के जतन न किए जाएँ। यानी नकली सामान के इस गोरखधंधे पर विराम लगाने के लिए जो कदम या अभियान शुरू करने की ज़रूरत है वह तत्काल हो।

– हिंदुस्तान 6 अगस्त 2006, साभार

(क) नकली सामान के खिलाफ़ जागरूकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?

उत्तर: नकली सामान के खिलाफ लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है। सबसे पहले विज्ञापनों, पोस्टरों और होर्डिंग के माध्यम से यह बताया जाए कि किस तरह असली वस्तु की पहचान की जाए। लोगों को बताया जाए कि होलोग्राम और ISI मार्क वाली वस्तु ही खरीदें। उन्हें यह भी जानकारी दी जाए कि नकली वस्तुएँ खरीदने से क्या हानियाँ हो सकती हैं ?

(ख) उपभोक्ताओं के हित को मद्देनजर रखते हुए सामान बनाने वाली कंपनियों का क्या नैतिक दायित्व है।

उत्तर :  सामान बनाने वाली कंपनियों का सबसे पहले यही नैतिक दायित्व है कि अच्छा और बढ़िया सामान बनाए। वे ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करें जो आम आदमी को फायदा पहुँचायें। केवल अपना फायदा सोचकर ही समान न बेचें। वे मात्रा की अपेक्षा गुणवत्ता पर ध्यान रखें तभी ग्राहक खुश होगा। जो कंपनी जितनी ज्यादा गुणवत्ता देगी ग्राहक उसी कंपनी का सामान ज्यादा खरीदेंगे।

(ग) ब्रांडेड वस्तु को खरीदने के पीछे छिपी मानसिकता को उजागर कीजिए?

उत्तर :  भारतीय मध्य वर्ग पर आज का बाजार टिका हुआ है। वह दिन बीत गए जब लोकल कंपनी का माल खरीदा जाता। था। अब तो लोग ब्रांडेड कंपनी का ही सामान खरीदते हैं। चाहे वह कितना ही महँगा क्यों न हो। उन्हें तो केवल यही विश्वास होता है कि ब्रांडेड सामान अच्छा और बढ़िया होगा। उसमें किसी भी तरह से कोई खराबी न होगी लोग इन ब्रांडेड सामानों को खरीदने के लिए कोई भी कीमत चुकाते हैं। ब्रांडेड सामान चूँकि बड़ी-बड़ी हस्तियाँ इस्तेमाल करती हैं। इसलिए अन्य लोग भी ऐसा ही करते हैं।

प्रश्न 4. प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ के हामिद और उसके दोस्तों का बाजार से क्या संबंध बनता है? विचार करें।

उत्तर: प्रेमचंद की कहानी में हामिद और उसके दोस्त यानी सम्मी मोहसिन नूरे सभी मेला देखने जाते हैं। वे मेले में लगी दुकानों को देखकर बहुत प्रभावित होते हैं। वे हाट बाजार में लगी हुई सारी वस्तुएँ देखकर प्रसन्न होते हैं। उनका मन करता है कि सभी-वस्तुएँ खरीद ली जाएँ। किंतु किसी के पास पाँच पैसे थे तो किसी के पास दो पैसे। हाट वास्तव में बाजार का ही एक रूप है। बच्चे इनमें लगी दुकानों को देखकर आकर्षित हो जाते हैं। वे तरह-तरह की इच्छाएँ करने लगते हैं। बच्चों का संबंध बाजार से प्रत्यक्ष होता है। वे सीधे तौर पर बाजार में जाकर वहाँ रखी वस्तुओं को खरीद लेना चाहते हैं।

विज्ञापन की दुनिया

प्रश्न 1. आपने समाचार-पत्रों, टी.वी. आदि पर अनेक प्रकार के विज्ञापन देखे होंगे जिनमें ग्राहकों को हर तरीके से लुभाने का प्रयास किया जाता है। नीचे लिखे बिंदुओं के संदर्भ में किसी एक विज्ञापन की समीक्षा कीजिए और यह भी लिखिए कि आपको विज्ञापन की किस बात ने सामान खरीदने के लिए प्रेरित किया।

1. विज्ञापन में सम्मिलित चित्र और विषय-वस्तु

2. विज्ञापन में आए पात्र और उनका औचित्य

3. विज्ञापन की भाषा।

उत्तर: मैंने शाहरूख खान द्वारा अभिनीत सैंट्रो कार का विज्ञापन देखा। इस विज्ञापन में सैंट्रो कार का चित्र था और विषय वस्तु थी। वह कार, जिसे बेचने के लिए आज के सुपर स्टार शाहरूख खान को अनुबंधित किया गया। इसमें शाहरूख खान और उनकी पत्नी को विज्ञापन करते दिखाया गया है। साथ ही उनके एक पड़ोसी का भी जिक्र आया है। इन सभी पात्रों का स्वाभाविक चित्रण हुआ है। शाहरूख की पत्नी जब पड़ोसी पर आकर्षित होती है तो शाहरूख पूछता है क्यों? तब उसकी पत्नी जवाब देती है सैंट्रो वाले हैं न ।’ मुझे कार खरीदने के लिए इसी कैप्शन ने प्रेरित किया। इस पंक्ति में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का पता चलता है।

प्रश्न 2. अपने सामान की बिक्री को बढ़ाने के लिए आज किन-किन तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है? उदाहरण सहित उनका संक्षिप्त परिचय दीजिए। आप स्वयं किस तकनीक या तौर-तरीके का प्रयोग करना चाहेंगे जिससे बिक्री भी अच्छी हो और उपभोक्ता गुमराह भी न हो। 

उत्तर- सेल लगाकर, अपने सामान के साथ कुछ उपहार देकर, स्क्रैच कार्ड के द्वारा, विज्ञापन देकर या सामान की खूबियाँ बताकर। 

उदाहरण-

1. सेल-सेल-सेल कपड़ों पर भारी सेल।।

2. एक सूट के साथ कमीज फ्री। बिलकुल फ्री।

3. ये कपड़े त्वचा को नुकसान नहीं पहुँचाते, ये नरम और मुलायम कपड़े हैं। पूरी तरह से सूती । यदि मुझे सामान बेचना पड़े तो मैं बेची जाने वाली वस्तु के गुणों का प्रचार करूंगा/करूंगी ताकि ग्राहक अपनी समझ से

वस्तु खरीदे।।

भाषा की बात

प्रश्न 1. विभिन्न परिस्थितियों में भाषा का प्रयोग भी अपना रूप बदलता रहता है कभी औपचारिक रूप में आती है तो कभी अनौपचारिक रूप में। पाठ में से दोनों प्रकार के तीन-तीन उदाहरण छाँटकर लिखिए।

उत्तर: औपचारिक रूप

1. मैंने कहा – यह क्या?

बोले – यह जो साथ थी।

2. बोले – बाज़ार देखते रहे।

मैंने कहा – बाज़ार क्या देखते रहे।

3. यह दोपहर के पहले के गए गए बाजार से कहीं शाम को वापिस आए।

अनौपचारिक रूप

कुछ लेने का मतलब था शेष सबकुछ छोड़ देना।

बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो।

पैसे की व्यंग्य शक्ति भी सुनिए।

उत्तर:

1. बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है।

2. जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा।

3. यहाँ एक अंतर चिह्न लेना ज़रूरी है।

4. कहीं आप भूल नहीं कर बैठिएगा।

5. पैसे की व्यंग्य शक्ति सुनिए। वह दारूण है। अवश्य ऐसे संबोधनों के कारण पाठकों के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है। इसीलिए ऐसे संबोधन पाठक से रचना पढ़वा लेने में सहायक सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 3. नीचे दिए गए वाक्यों को पढ़िए।

(क) पैसा पावर है।

(ख) पैसे की उस पर्चेजिंग पावर के प्रयोग में ही पावर का रस है।

(ग) मित्र ने सामने मनीबैग फैला दिया।

(घ) पेशगी ऑर्डर कोई नहीं लेते।

ऊपर दिए गए इन वाक्यों की संरचना तो हिंदी भाषा की है लेकिन वाक्यों में एकाध शब्द अंग्रेजी भाषा के आए हैं। इस तरह के प्रयोग को कोड मिक्सिंग कहते हैं। एक भाषा के शब्दों के साथ दूसरी भाषा के शब्दों का मेलजोल ! अब तक। आपने जो पाठ पढ़े उसमें से ऐसे कोई पाँच उदाहरण चुनकर लिखिए। यह भी बताइए कि आगत शब्दों की जगह उनके हिंदी पर्यायों का ही प्रयोग किया जाए तो संप्रेषणीयता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

उत्तर:

1. पैसे की गरमी या एनर्जी।

2. वह तत्व है मनी बैग

3. अपनी पर्चेजिंग पावर के अनुपात में आया है।

4. तो एकदम बहुत से बंडल थे।

5. वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा का उन्हें दरकार नहीं है।

यदि इस वाक्य में एनर्जी की जगह उत्साह शब्द का प्रयोग किया जाता है तो वाक्य की प्रेषणीयता अधिक प्रभावी होती है। इसी प्रकार ‘मनी बैग’ की जगह नोटों से भरा थैला, पर्चेजिंग पावर की जगह खरीदने की शक्ति, बंडल की जगह गट्ठर और पावर की जगह ऊर्जा या उत्साह प्रभावी होगा क्योंकि हिंदी, पर्यायों के प्रयोग से संप्रेषणीयता ज्यादा बढ़ जाती है।

प्रश्न 4. नीचे दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश पर ध्यान देते हुए उन्हें पढ़िए।

(क) निर्बल ही धन की ओर झुकता है।

(ख) लोग संयमी भी होते हैं।

(ग) सभी कुछ तो लेने को जी होता था।

ऊपर दिए गए वाक्यों के रेखांकित अंश ‘ही’, ‘भी’, ‘तो’ निपात हैं जो अर्थ पर बल देने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। वाक्य में इनके होने-न-होने और स्थान क्रम बदल देने से वाक्य के अर्थ पर प्रभाव पड़ता है, जैसे

मुझे भी किताब चाहिए (मुझे महत्त्वपूर्ण है।)

मुझे किताब भी चाहिए। (किताब महत्त्वपूर्ण है।)

आप निपात (ही, भी, तो) का प्रयोग करते हुए तीन-तीन वाक्य बनाइए। साथ ही ऐसे दो वाक्यों का निर्माण कीजिए जिसमें ये तीनों निपात एक साथ आते हों।

उत्तर-

ही –

1. उसे ही यह टिकट दे दो।

2. मैं वैसे ही उससे मिला।

3. तुमने ही मुझे उसके बारे में बताया।

भी –

1. कुछ लोग दुष्ट भी होते हैं।

2. वह भी उनसे मिल गया।

3. उसने भी मेरा साथ छोड़ दिया।

तो –

1. रामलाल ने कुछ तो कहा होता।

2. तुम लोग कुछ तो शर्म किया करो।

3. तुम लोगों को तो फाँसी दे देनी चाहिए।

दो वाक्य

1. मैंने ही नारायण शंकर को वहाँ भेजा था लेकिर उसने भी वह किया, कृपा शंकर तो उसे पहले ही कर दिया था।

2. आर्यन तो दिल्ली जाना चाहता था लेकिन मैं तो उसे भेजना नहीं चाहता था। तभी तो वह नाराज हो गया।

चर्चा करें

प्रश्न 1. पर्चेजिंग पावर से क्या अभिप्राय है?

बाजार की चकाचौंध से दूर पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है? आपकी मदद के लिए संकेत दिया जा रहा है-

(क) सामाजिक विकास के कार्यों में

(ख) ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने में ……।

उत्तर: पर्चेजिंग पावर से अभिप्राय है कि खरीदने की क्षमता। कहने का भाव है कि खरीददारी करने का सामर्थ्य लेकिन पर्चेजिंग पावर का सकारात्मक प्रयोग किया जा सकता है। वह भी बाजार की चकाचौंध से कोसों दूर। इसका सकारात्मक प्रयोग सामाजिक कार्य करके और ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करके। सामाजिक विकास के कार्य जैसे स्कूल, अस्पताल, धर्मशालाएँ। खुलवाकर उस पैसे का उपयोग किया जा सकता है जो कि लोग फिजूल के सामान पर खर्च करते हैं। आज शॉपिंग माल्स में लगभग 30 प्रतिशत फिजूल पैसा लोग खर्चते हैं क्योंकि वे अपनी शानो शौकत रखने के लिए खरीददारी करते हैं। यदि इसी पैसे को सामाजिक विकास के कार्यों में लगा दिया जाए तो समाज न केवल उन्नति करेगा बल्कि वह अमीरी गरीबी के अंतर से भी बाहर निकलेगा। दूसरे इस पैसे का ग्रामीण आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। गाँवों को मूलभूत सुविधाएँ इसी पैसे से प्रदान की जा सकती हैं। यह पैसा गाँवों की तस्वीर बदल सकता है।

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. ‘बाज़ारे दर्शन’ निबंध की भाषा के बारे में बताइए।

उत्तर: बाजार दर्शन जैनेंद्र द्वारा लिखा गया एक सार्थक निबंध है। इसमें निबंधकार ने सहज, सरल और प्रभावी भाषा का प्रयोग किया है। शब्दावली में कुछेक अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं। लेकिन ये शब्द कठिन नहीं हैं। पाठक सहजता से इन्हें ग्रहण कर लेता है। भाषा की दृष्टि से यह एक सफल और प्रभावशाली निबंध है। वाक्य छोटे-छोटे हैं जो निबंध को अधिक संप्रेषणीय बनाते हैं।

प्रश्न 2. ‘बाज़ार दर्शन’ निबंध किस प्रकार का है?

उत्तर: निबंध प्रकार की दृष्टि से बाजार दर्शन को वर्णनात्मक निबंध कहा जा सकता है। निबंधकार ने हर स्थिति, घटाने का वर्णन किया है। प्रत्येक बात को विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किया है। वर्णनात्मकता के कारण निबंध में रोचकता और स्पष्टता दोनों आ गए हैं। वर्णनात्मक निबंध प्रायः उलझन पैदा करते हैं लेकिन इस निबंध में यह कमी नहीं है।

प्रश्न 3. इस निबंध में अन्य भाषाओं के शब्द भी आए हैं, उनका उल्लेख कीजिए।

उत्तर: निबंधकार ने हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, उर्दू, फारस भाषा के शब्दों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन शब्दों के प्रयोग से निबंध की रोचकता और सार्थकता बढ़ी है। अंग्रेज़ी के शब्द-एनर्जी, बैंक, पर्चेजिंग पावर, मनी बैग, रेल टिकट, फैंसी स्टोर, शॉपिंग मॉल, ऑर्डर आदि। उर्दू फारसी के शब्द-नाहक, पेशगी, कमज़ोर, बेहया, हरज, बाज़ार, खलल, कायल, दरकार, माल-असबाब।

प्रश्न 4. निबंध में किस प्रकार की शैली का प्रयोग किया गया है।

उत्तर: प्रस्तुत निबंध में जैनेंद्र जी ने मुख्य रूप से वर्णनात्मक, व्याख्यात्मक, उदाहरण आदि शैलियों का प्रयोग किया है। इन शैलियों के प्रयोग से निबंध की भाव संप्रेषणीयता बढ़ी है। साथ ही स्पष्टता और सरलता के गुण भी आ गए हैं। निबंधकार ने इन शैलियों का प्रयोग स्वाभाविक ढंग से किया है। इस कारण निबंध की रोचकता में वृद्धि हुई है। इनके कारण पाठक एक बैठक में निबंध को पढ़ लेना चाहता है।

प्रश्न 5. बाजार दर्शन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: बाजार दर्शन से लेखक का अभिप्राय है बाज़ार के दर्शन करवाना अर्थात् बाज़ार के बारे में बताना कि कौन-कौन सी चीजें मिलती हैं कि वस्तुओं की बिक्री ज्यादा होती है। यह बाज़ार किस तरह आकर्षित करता है। लोग क्यों बाज़ार से ही आकर्षित होते हैं।

प्रश्न 6. उपभोक्तावादी संस्कृति क्या है?

उत्तर: उपभोक्तावादी संस्कृति वास्तव में उपभोक्ताओं का समूह है। उपभोक्ता बाज़ार से सामान खरीदते हैं। यह वर्ग ही बाजार पैदा करता है। लोग अपने उपभोग की सारी वस्तुएँ बाज़ार से खरीदकर उनका उपभोग करते हैं। बाज़ार का सारा कारोबार इन्हीं पर निर्भर होता है।

प्रश्न 7. कौन-से लोग फिजूल खर्ची नहीं करते?

उत्तर: लेखक कहता है कि संयमी लोग फिजूल खर्ची नहीं करते। वे उसी वस्तु को खरीदते हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत होती है। बाजार के आकर्षण में ये कभी नहीं हँसते। उन्हें अपनी ज़रूरत से मतलब है न कि बाजारूपन से। जो चाहिए वही खरीदा नहीं तो छोड़ दिया।

प्रश्न 8. भगत जी के बारे में बताइए।

उत्तर: लेखक ने भगत जी पात्र का वर्णन इस निबंध में किया है। उसके माध्यम से लेखक ने संतोष का पाठ पढ़ाया है। भगत जी केवल उतना ही सामान बेचते हैं जितना की बेचकर खर्चा चलाया जा सके। जब खर्चे लायक पैसे आ गए तो सामान बेचना बंद कर दिया। कभी किसी गरीब बच्चे को मुफ्त चूरन दे दिया। लेकिन ज्यादा सामान बेचने का लालच नहीं था।

प्रश्न 9. किस तरह का बाज़ार आदमी को ज्यादा आकर्षित करता है?

उत्तर: लेखक के अनुसार ‘शॉपिंग मॉल’ व्यक्ति को ज्यादा आकर्षित करता है। उनकी सजावट देखकर व्यक्ति उनसे बहुत प्रभावित हो जाता है। वह उनके आकर्षण के जाल में फँस जाता है। इसी कारण वह उन चीजों को भी खरीद लेता है जिसकी उसे कोई जरूरत नहीं होती। वास्तव में, शॉपिंग मॉल ऊँचे रेटों पर सामान बेचते हैं।

प्रश्न 10. बाज़ार का जादू क्या है? उसके चढ़ने-उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर लिखिए।

उत्तर: बाजार की चमक-दमक व उसके आकर्षण में फँसकर व्यक्ति खरीददारी करता है तो यही बाजार का जादू है। बाजार का जादू मनुष्य पर तभी चलता है जब उसके पास धन होता है तथा वस्तुएँ खरीदने की निर्णय क्षमता नहीं होती। वह आराम वे अपनी शक्ति दिखाने के लिए निरर्थक चीजें खरीदता है। जब पैसे खत्म हो जाते हैं तब उसे पता चलता है कि आराम के नाम पर जो गैर जरूरी वस्तुएँ उसने खरीदी हैं, वे अशांति उत्पन्न करने वाली है। वह झल्लाता है, परंतु उसका अभिमान उसे तुष्ट करता है।

प्रश्न 11. भगत जी बाज़ार को सार्थक व समाज को शांत कैसे कर रहे हैं?

अथवा

‘बाज़ार दर्शन’ के लेखक ने भगत जी का उदाहरण क्यों दिया है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: लेखक ने इस निबंध में भगत जी का उदाहरण दिया है जो बाज़ार से काला नमक व जीरा लाकर वापस लौटते हैं। इन पर बाज़ार का आकर्षण काम नहीं करता क्योंकि इन्हें अपनी ज़रूरत का ज्ञान है। इससे पता चलता है कि मन पर नियंत्रण वाले व्यक्ति पर बाजार का कोई प्रभाव नहीं होता। ऐसे व्यक्ति बाजार को सही सार्थकता प्रदान करते हैं। दूसरे, उनका यह रुख समाज में शांति पैदा करता है क्योंकि यह पैसे की पावर नहीं दिखाता। यह प्रतिस्पर्धा नहीं उत्पन्न करता।

प्रश्न 12. खाली मन तथा भरी जेब से लेखक का क्या आशय है? ये बातें बाजार को कैसे प्रभावित करती हैं? 

उत्तर:

खाली मन तथा जेब भरी होने से लेखक का आशय है कि मन में किसी निश्चित वस्तु को खरीदने की निर्णय शक्ति का न होना तथा मनुष्य के पास धन होना। ऐसे व्यक्तियों पर बाज़ार अपने चमकदमक से कब्जा कर लेता है। वे गैर ज़रूरी चीजें खरीदते हैं।

प्रश्न 13. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर ‘पैसे की व्यंग्य शक्ति’ कथन को स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर: लेखक बताता है कि पैसे में व्यंग्य शक्ति होती है। यदि कोई समर्थ व्यक्ति दूसरे के सामने किसी महंगी वस्तु को खरीदे तो दूसरा व्यक्ति स्वयं को हीन महसूस करता है। पैदल या दोपहिया वाहन चालक के पास से धूल उड़ाती कार चली जाए तो वह परेशान हो उठता है। वह स्वयं को कोसता रहता है। वह भी कार खरीदने के पीछे लग जाता है। इसी कारण बाज़ार में माँग बढ़ती है।

प्रश्न 14. ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पैसे की पावर का रस किन दो रूपों में प्राप्त किया जाता है?

उत्तर: पैसे की पावर का रस फिजूल की वस्तुएँ खरीदने, माल असबाब, मकान-कोठी आदि के द्वारा लिया जाता है। यदि पैसा खर्च न भी किया जाए तो अधिक धन पास रहने से भी गर्व का अनुभव किया जा सकता है।

प्रश्न 15. ‘बाज़ार दर्शन’ निबंध उपभोक्तावाद एवं बाज़ारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है।’-उदाहरण देकर इस कथन पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर: यह निबंध उपभोक्तावाद एवं बाजारवाद की अंतर्वस्तु को समझाने में बेजोड़ है। लेखक बताता है कि बाजार का आकर्षण मानव मन को भटका देता है। वह उसे ऐशोआराम की वस्तुएँ खरीदने की तरह आकर्षित करता है। लेखक ने भगत जी के माध्यम से नियंत्रित खरीददारी का महत्त्व भी प्रतिपादित किया है। बाजार मनुष्य की ज़रूरतें पूरी करें। इसी में उसकी सार्थकता है, अन्यथा यह समाज में ईर्ष्या, तृष्णा, असंतोष, लूटखसोट को बढ़ावा देता है।

प्रश्न 16. बाज़ार जाते समय आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए। 

उत्तर: बाज़ार जाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  • हमें ज़रूरत के सामान की सूची बनानी चाहिए।
  • हमें बाजार के आकर्षण से बचना चाहिए।
  • हमारा मन निश्चित खरीददारी के लिए होना चाहिए।
  • बाज़ार में क्रयक्षमता का प्रदर्शन ने करके जरूरत का सामान लेना चाहिए।
  • बाजार में असंतोष व हीन भावना से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न-1. निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-

“यहां एक अंतर चीन्ह लेना जरूरी है | मन खाली नहीं रहना चाहिए इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए| जो बंद हो जाएगा वह शून्य हो जाएगा और शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है शेष सब अपूर्ण है इससे मन बंद नहीं रह सकता | सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोध्स्तप:’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तब झूठ है|”

उत्तर- यह कि मन के खाली नहीं रहने का अर्थ यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए |उसमें कुछ भी नहीं रहे|

उत्तर- वह इसलिए कि जो मन बंद हो जाता है वह शून्य हो जाता है जबकि शून्यहोने का अधिकार केवल परमात्मा का है|

उत्तर- शून्य होने का अधिकार केवल परमात्मा का है क्योंकि वह सनातन भाव से संपूर्ण है वह सत्य है शेष सब कुछ अपूर्ण है, नश्वर है|

प्रश्न-2 निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 60-70 शब्दों में लिखिए-

“यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाज़ार को सार्थकता वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वेक्या चाहते हैं, अपनी पर्चेजिंग पावर के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति- शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाज़ार को दे ते हैं। न तो वे बाज़ार का लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ- परस्पर में सदभाव की घटी ।इस सदभाव के ह्रास से आदमी आपस में भाई- भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं, और आपस में कोरे गाहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। मानो दोनों एक- दूसरे को ठगने की घात में हों ।एक की हानि में दूसरे का अपना लाभ दीखता है और यह बाज़ार का, बल्कि इतिहास का; सत्य माना जाता है| ऐसे बाज़ार को बीच में लेकर लोगों में आवश्यकताओं का आ दान- प्रदान नहीं होता; बल्कि शोषण होने लगता है तब कपट सफल होता है, निष्कपट शिकार होता है। ऐसे बाज़ार मानवता के लिए विडंवना हैं और जो ऐसे बाज़ार का पोषण करता है, जो उसका शस्त्र बना हुआ है; वह अर्थ शास्त्र सरासर औंधा है, वह मायावी शास्त्र है, वह अर्थशास्त्र अनीति- शास्त्र है।“

1. बाज़ार को सार्थकता देने का क्या आशय है?यह कौन कर सकता है?

2. ‘ऐसे बाज़ार ’प्रयोग का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट कीजिए।

3. बाज़ार का बाज़ारूपन क्या है? यह कैसे बढ़ाया जाता है?

1. बाजार का जादू क्या है ? उसके चढ़ने और उतरने का मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर- बाजार का जादू चढ़ने पर मनुष्य बाजार के आकर्षक चीजों के वश में हो जाता है | वह लालक में आकर अनावश्यक चीजों को खरीदता चला जाता है | इस जादू के प्रभाव में मनुष्य सोचने लगता है कि बाजार में बहुत कुछ है और उसके पास बहुत कम चीजें हैं| बाजार का जादू मनुष्य के सिर चढ़ कर बोलता है और उसे विकल बना देता है| ऐसी अवस्था में बाजार कहता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो|बाजार का जादू उतरने पर मनुष्य को पता चलता है कि फैंसी चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती है, बल्कि खलल ही डालती हैं | बाजार का जादू उतरने पर उसे खरीदी गई चीजें अनावश्यक ही लगाने लगती हैं|

2. बाजार की सार्थकता किसमे है?

बाजारूपन से क्या तात्पर्य है ? किस प्रकार के व्यक्ति बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं ?

उत्तर- बाजारुपन से तात्पर्य है- दिखावे के लिए बाजार का उपयोग करना | जब हम अपनी क्रय शक्ति के गर्व में अपने पैसे से केवल विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति और व्यंग्य शक्ति बाजार को देते हैं तब हम बाजार का बाजारुपन बढ़ाते हैं | इस प्रकार के प्रवृत्ति के कारण न हम बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न ही बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं |बाजार को सार्थकता वे ही लोग देते हैं जो यह जानते हैं कि वे क्या चाहते हैं |ऐसे व्यक्ति अपनी आवश्यकता की ही वस्तुएँ बाजार से खरीदते हैं | बाजार की सार्थकता इसी में है कि वह लोगो की आवश्यकताओं की पूर्ति करे |

3. लेखक ने अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र क्यों कहा है? उदाहरण देकर समझाइए |

उत्तर- इस पाठ में लेखक ने अर्थशास्त्र को अनीतिशास्त्र इसलिए कहा है क्योकि इसमें धन को अधिक से अधिक बढाने पर बल दिया गया है | धन बढ़ाने का तरीका भी गलत है और अनावश्यक गला काट प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है | इसे अनीतिशास्त्र कहने में निम्न कारण हैं-

बाजार का मूल दर्शन है- आवश्यकता की पूर्ती करना | यदि इस लक्ष्य को छोड़कर व्यापारी धन कमाने की होड़ में लग जाएगा तो बाजार का असली लक्ष्य ही नष्ट हो जाएगा | पैसा कमाने का लक्ष्य व्यापार में कपट बढाता है | व्यापारी ग्राहक की हानि करके भी अपना लाभ कमाना चाहते हैं | अतः ऐसे पूंजीवादी बाजार से मानवीय प्रेम, भाईचारा और सौहाद्र की भावना समाप्त हो जाती है| सभी लोग ग्राहक और विक्रेता बनकर रह जाते हैं| लोग बिना आवश्यकता के ही बाजार के जादू में फंसने लगते हैं | इसलिए लेखक ने ऐसे शास्त्र को अनीतिशास्त्र कहा है |

4. बाजार दर्शन में लेखक ने भगत जी का उदाहरण क्यों दिया है ?

उत्तर- बाजार दर्शन के लेखक ने भगत जी का उदाहरण देते हुए पाठकों को यह समझाने का प्रयास किया है कि किस तरह से बाजार के जादू से बचा जा सकता है | लेखक भगत जी के माध्यम से बाजार के नकारात्मक प्रभावों को बेअसर करने की शिक्षा देना चाहता है | बाजार की चकाचौंध भगत जी पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकी | भगत आँख खोलकर, भरे हुए मन से और मग्न भाव से चौक बाजार से चले जाते हैं और एक छोटी सी पंसारी की दूकान से अपनी आवश्यकता की चीजें खरीदते हैं| भगत जी की आवश्यकताएँ बिलकुल स्पष्ट हैं और वे बाजार में भटकते नहीं हैं |

बाज़ार दर्शन पाठ का क्या संदेश है?

बाजार दर्शन पाठ का उद्देश्य लेखक अपने दूसरे मित्र की बात बताते है कि वह बाज़ार जाता है और खाली हाथ वह वापिस आ जाता है। उसे समझ नहीं आता की कोन सी चीज़ खरीदूं और रहने दूँ । अपनी चाह का पता न हो तो ऐसे ही होता है कि क्या सामान खरीदें। यदि हम अपनी आवश्यकताओं को ठीक-ठीक समझकर बाजार का उपयोग करें तो उसका लाभ उठा सकते हैं।

बाजार दर्शन पाठ में लेखक ने किसका वर्णन किया है?

बाजार दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के जादू के बारे में बताया गया है। बाजार में एक जादू है और वह आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है और यह जादू तभी असर करता है जब जेब भरी हो और मन खाली हो। बाजार के जादू को रोकने का उपाय यही है कि बाजार जाते समय मन खाली न हो,मन में लक्ष्य भरा हो।

बाजार को सार्थकता कौन दे सकता है?

लेखक का मानना है कि बाजार को सार्थकता वह मनुष्य देता है जो अपनी जरूरत को पहचानता है। जो केवल पर्चेजिंग पॉवर के बल पर बाजार को व्यंग्य दे जाते हैं, वे न तो बाजार से लाभ उठा सकते हैं और न उस बाजार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। ये कपट को बढ़ाते हैं जिससे सद्भाव घटता है।

बाज़ार दर्शन पाठ के आधार पर धन की ओर कौन झुकता है?

बल्कि यदि उसी बल को सच्चा बल मानकर बात की जाए तो कहना होगा कि संचय की तृष्णा 2022-23 Page 8 बाज़ार दर्शन और वैभव की चाह में व्यक्ति की निर्बलता ही प्रमाणित होती है। निर्बल ही धन की ओर झुकता है।