हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत
हम शास्त्रीय संगीत की दो पद्धतियों को पहचानते हैं: हिंदुस्तानी एवं कर्नाटक। कर्नाटक संगीत कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल तक सीमित है। शेष देश के शास्त्रीय संगीत का नाम हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत है। नि:संदेह कर्नाटक और आंध्र में कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ हिंदुस्तानी शास्त्रीय पद्धति का भी अभ्यास किया जाता है। सामान्य रूप से ऐसा माना जाता है कि तेरहवीं शताब्दी से पूर्व भारत का संगीत कुल मिलाकर एकसमान है, बाद में जो दो पद्धतियों में विभाजित हो गया था। Show परिचयभारतीय संगीत के इतिहास में भरत का नाट्यशास्त्र एक महत्त्वपूर्ण सीमाचिह्न है। नाट्यशास्त्र एक व्यापक रचना या ग्रंथ है जो प्रमुख रूप से नाट्यकला के बारे में है लेकिन इसके कुछ अध्याय संगीत के बारे में हैं। इसमें हमें सरगम, रागात्मकता, रूपों और वाद्यों के बारे में जानकारी मिलती है। तत्कालीन समकालिक संगीत ने दो मानक सरगमों की पहचान की। इन्हें ग्राम कहते थे। ‘ग्राम’ शब्द संभवत: किसी समूह या संप्रदाय उदाहरणार्थ एक गाँव के विचार से लिया गया है। यही संभवत: स्वरों की ओर ले जाता है जिन्हें ग्राम कहा जा रहा है। इसका स्थूल रूप से सरगमों के रूप में अनुवाद किया जा सकता है।
लगभग ग्यारहवीं शताब्दी से मध्य और पश्चिम एशिया के संगीत ने भारत की संगीत की परंपरा को प्रभावित करना शुरू कर दिया था। धीरे-धीरे इस प्रभाव की जड़ गहरी होती चली गई और कई परिवर्तन हुए। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन था- ग्राम और मूर्छना का लुप्त होना। लगभग 15वीं शताब्दी के आसपास, परिवर्तन की यह प्रक्रिया सुस्पष्ट हो गई थी, ग्राम पद्धति अप्रचलित हो गई थी। मेल या थाट की संकल्पना ने इसका स्थान से लिया था। इसमें मात्र एक मानक सरगम है। सभी ज्ञात स्वर एक सामान्य स्वर ‘सा’ तक जाते हैं। लगभग अठारहवीं शताब्दी तक यहाँ तक कि हिंदुस्तानी संगीत के मानक या शुद्ध स्वर भिन्न हो गए थे। अठारहवीं शताब्दी से स्वीकृत, वर्तमान स्वर है: सा रे ग म प ध निवर्तमान में प्रचलित कुछ प्रमुख शैलियाँ ‘ध्रुपद', ‘धमर', ‘होरी', ‘ख्याल', ‘टप्पा', ‘चतुरंग', ‘रससागर', ‘तराना', ‘सरगम' और ‘ठुमरी' जैसी हिंदुस्तानी संगीत में गायन की दस मुख्य शैलियाँ हैं।
खयाल (ख्याल)
ठुमरी
टप्पा शैली
तराना शैली
धमर-होरी शैली
गजल
भारतीय शास्त्रीय संगीत से आप क्या समझते हैं?शास्त्रीय संगीत से तात्पर्य, भारत की प्राचीन गायन-वादन-गीत-नृत्य-अभिनय परंपरा से है, जिसका वर्णन वेदों में भी है। सामवेद, ऋग्वेद का ही एक अंश है, जो गेय है। ऋग्वेद में भी गायत्री मंत्र छंदबद्ध है और गेय है। इसमें स्वर महत्वपूर्ण हैं।
भारतीय शास्त्रीय संगीत क्या है संगीत की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए?भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई।
शास्त्रीय संगीत की कौन सी विशेषता?भारत में शास्त्रीय संगीत, संगीत का एक रूप या अंग है। शास्त्रीय संगीत की विशेषता यह है कि यह ध्वनि प्रधान होता है, शब्द प्रधान नहीं। इसमें ध्वनि या संगीत को शब्द या गीत के भावार्थ कि अपेक्षा अधिक महत्व दिया जाता है। भारत में शास्त्रीय संगीत का इतिहास वैदिक काल से शुरू होता है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का क्या नाम है?ठुमरी यह मिश्रित रागों पर आधारित है और इसे सामान्यतः अर्द्ध-शास्त्रीय भारतीय संगीत माना जाता है। इसकी रचनाएँ भक्ति आंदोलन से अधिक प्रेरित है कि इसके पाठों में सामान्यतः कृष्ण के प्रति गोपियों के प्रेम को दर्शाया जाता है।
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