भारतीय इतिहास में स्त्रियों का योगदान प्राचीन काल में - bhaarateey itihaas mein striyon ka yogadaan praacheen kaal mein

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Year: Mar, 2019
Volume: 16 / Issue: 4
Pages: 1166 - 1169 (4)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/211062
Published On: Mar, 2019

Article Details

भारतीय इतिहास में महिलाओं की स्थिति का अध्ययन | Original Article


भारतीय इतिहास में स्त्रियों का योगदान प्राचीन काल में - bhaarateey itihaas mein striyon ka yogadaan praacheen kaal mein

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Published in Journal

Journal of Advances and Scholarly Researches in Allied Education [JASRAE] (Vol:15/ Issue: 1)
DOI: 10.29070/JASRAE
Authors:
Bala Devi*,
Subjects:
Multidisciplinary Academic Research

Year: Apr, 2018
Volume: 15 / Issue: 1
Pages: 137 - 142 (6)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/a/57110
Published On: Apr, 2018

Article Details

भारत में महिलाओं की वर्तमान स्थिति की, वैदिक तथा मध्यकाल की स्थिति की तुलनात्मक सामाजिक विवेचना | Original Article

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प्राचीन भारत में महिलाएं काफी उन्नत व सुदृढ़ थीं। समाज में पुत्र का महत्व था, पर पुत्रियों को समान अधिकार और सम्मान मिलता था। मनु ने भी बेटी के लिए संपति में चौथे हिस्से का विधान किया। उपनिषद काल में पुरुषों के साथ ‍स्त्रियों को भी शिक्षित किया जाता था। सहशिक्षा व्यापक रूप से दिखती है, लव-कुश के साथ आत्रेयी पढ़ती थी। नारी भी सैनिक शिक्षा लेती थी। महाभारत काल से नारी का पतन होना शुरू हुआ तो मध्यकाल आते-आते नारी पूरी तरह से पुरुषों की गुलाम, दासी और भोग्या बन गई।
इतिहास में अमिट रहेंगी पांच पत्नियां

हजारों भारतीय महिलाओं ने अपने कर्म, व्यवहार और बलिदान से विश्व में आदर्श प्रस्तुत किया है। प्राचीनकाल से ही भारत में पुरुषों के साथ महिलाओं को भी समान अधिकार और सम्मान मिला है इसीलिए भारतीय संस्कृति और धर्म में नारियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इन भारतीय महिलाओं ने जहां हिंदू धर्म को प्रभावित किया वहीं इन्होंने संस्कृति, समाज और सभ्यता को नया मोड़ दिया। भारतीय इतिहास में इन महिलाओं के योगदान को कभी भी भूला नहीं जा सकता।

आगे पढ़ें, पहली महान महिला...

Posted on March 20th, 2020 | Create PDF File

ऐतिहासिक संदर्भों में देखें तो हम पाते हैं कि वैदिक काल में महिलाओं को अध्ययन का अवसर मिलता था और उन्हें कई प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। प्राचीन भारत के अध्ययन से जुड़े विद्वानों का मानना है कि
उस काल में महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरूषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था। पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। ऋग्वैदिक ऋचाएँ यह बताती हैं कि महिलाओं को शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवत: उन्हें अपना पति चुनने की भी स्वतंत्रता थी। ऋग्वेद और उपनिपद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं। अध्ययनों के अनुसार वैदिक काल में महिलाओं को बराबरी का दर्ज़ा और अधिकार मिलता था। हालाँकि बाद में लगभग 500 ईसा पूर्व (विशेषकर मनुस्मृतिकाल) में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरू हो गई। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि विदेशी आक्रांताओं की वजह से भी महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों में गिरावट आई और भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा होने पर विधवा के रूप में ही पूरा जीवन व्यतीत करना आदि सामाजिक जीवन का एक हिस्सा बन गई थी। राजस्थान के राजपूतों में जौहर की प्रथा थी। भारत के कुछ हिस्सों में देवदासियों या मंदिरों की महिलाओं को यौन शोषण का शिकार होना पड़ता था। बहुविवाह की प्रथा हिन्दू क्षत्रिय शासकों में व्यापक रूप से प्रचलित थी।

इन परिस्थतियों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की। रज़िया सुल्तान दिल्‍ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं। गोंड की महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खान से लड़कर अपनी जान गँवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। चाँद बीबी ने 1590 के दशक में अकबर की शक्तिशाली मुगल सेना के खिलाफ अहमदनगर की रक्षा की। जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्‌दी की वास्तविक शक्ति के रूप में पहचान हासिल की। मराठा योद्धा शिवाजी की माँ जीजाबाई को एक योद्धा और एक प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण सम्मान दिया जाता है। दक्षिण भारत में कई महिलाओं ने गाँवों शहरों और जिलों पर शासन किया तथा सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों की शुरूआत की।

मध्यकाल में कई महिला संत भी हुईं जिनमें मीराबाई और सूफी लाल देद भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं। कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया। तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का रानी ने 46वीं सदी में हमलावर यूरोपीय सेनाओं, उल्लेखनीय रूप से पुर्तगाली सेना के खिलाफ सुरक्षा का नेतृत्व किया। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह का झंडा बुलंद किया। आज उन्हें एक राष्ठीय नायिका के रूप में माना जाता है। अवध की सह-शासिका बेगम हज़रत महल एक अन्य शासिका थी जिसने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्होंने अंग्रेजों के साथ सौदेबाजी से इनकार कर दिया और बाद में नेपाल चली गईं। भोपाल की बेगमें भी इस अवधि की कुछ उल्लेखनीय महिला शासिकाओं में शामिल थीं। उन्होंने पर्दा प्रथा को नहीं अपनाया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण भी लिया।

अंग्रेज़ी शासन के दौरान सावित्रीबाई फुले, ताराबाई शिंदे, पंडिता रमाबाई आदि ने महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य को हासिल करने में मदद की। चंद्रमुखी बसु. कादंबिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी कुछ
शुरूआती भारतीय महिलाओं में शामिल थीं जिन्होंने शैक्षणिक डिग्रियाँ हासिल कीं। भारत की आजादी के संघर्ष में महिलाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मैडम भीकाजी कामा एनी बेसेंट, प्रतिलता वाडेकर, विजयालक्ष्मी पंडित, राजकुमारी अमृत कौर, मुथुलक्ष्मी रेड्डी, दुर्गाबाई देशमुख, अरूणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी और कस्तूरबा गांधी कुछ प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं। सुभाष चंद्र बोस की इंडियन नेशनल आर्मी की झाँसी की रानी रेजीमेंट में कैप्टन लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में एक महिला बटालियन ही मौजूद थी।


प्राचीन भारतीय समाज में महिलाओं की क्या स्थिति थी?

समाज में भारतीय महिलाओं की स्थिति में मध्ययुगीन काल के दौरान और अधिक गिरावट आयी जब भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक, सामाजिक जिंदगी का एक हिस्सा बन गयी थीभारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की जीत ने परदा प्रथा को भारतीय समाज में ला दिया।

प्राचीन भारत में महिलाओं का क्या महत्व था?

हिन्दू सभ्यता में स्त्रियों को अत्यन्त आदरपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है । भारत की प्राचीनतम सभ्यता, सैन्धव सभ्यता के धर्म में माता देवी को सर्वोच्च पद प्रदान किया जाना उसके समाज में उन्नत स्त्री-दशा का सूचक माना जा सकता है । ऋग्वैदिक काल में समाज ने उसे आदरपूर्ण स्थान दिया ।

इतिहास में महिलाओं की भूमिका क्या थी?

आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी कहा गया है जो उस समय की नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है।

प्राचीन काल में भारतीय नारी के स्वरूप के अनुसार इसमे से क्या उपयुक्त नहीं है?

- समाज सुधार - ब्रिटिश प्रशासन भारतीय समाज में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल- विवाह, दहेज प्रथा, महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित रखना, उत्तराधिकार से वंचित रखना, अनुसूचित जातियों का मंदिर में प्रवेश वर्जित आदि से परिचित थे इसलिए ब्रिटिश प्रशासन ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने हेतु शारदा कानून 1929 आदि का निर्माण ...