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Published in JournalYear: Mar, 2019 Article Details
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Year: Apr, 2018 Article Details
Download PDF View PDF प्राचीन भारत में महिलाएं काफी उन्नत व सुदृढ़ थीं। समाज में पुत्र का महत्व था, पर पुत्रियों को समान अधिकार और सम्मान मिलता था। मनु ने भी बेटी के लिए संपति में चौथे हिस्से का विधान किया। उपनिषद काल में पुरुषों के साथ स्त्रियों को भी शिक्षित किया जाता था। सहशिक्षा व्यापक रूप से दिखती है, लव-कुश के साथ आत्रेयी पढ़ती थी। नारी भी सैनिक शिक्षा लेती थी। महाभारत काल से नारी का पतन होना शुरू हुआ तो मध्यकाल आते-आते नारी पूरी तरह से पुरुषों की गुलाम, दासी और
भोग्या बन गई। हजारों भारतीय महिलाओं ने अपने कर्म, व्यवहार और बलिदान से विश्व में आदर्श प्रस्तुत किया है। प्राचीनकाल से ही भारत में पुरुषों के साथ महिलाओं को भी समान अधिकार और सम्मान मिला है इसीलिए भारतीय संस्कृति और धर्म में नारियों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इन भारतीय महिलाओं ने जहां हिंदू धर्म को प्रभावित किया वहीं इन्होंने संस्कृति, समाज और सभ्यता को नया मोड़ दिया। भारतीय इतिहास में इन महिलाओं के योगदान को कभी भी भूला नहीं जा सकता। आगे पढ़ें, पहली महान महिला... Posted on March 20th, 2020 | Create PDF File ऐतिहासिक संदर्भों में देखें तो हम पाते हैं कि वैदिक काल में महिलाओं को अध्ययन का अवसर मिलता था और उन्हें कई प्रकार के अधिकार प्राप्त थे। प्राचीन भारत के अध्ययन से जुड़े विद्वानों का मानना है कि इन परिस्थतियों के बावजूद भी कुछ महिलाओं ने राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्रों में सफलता हासिल की। रज़िया सुल्तान दिल्ली पर शासन करने वाली एकमात्र महिला सम्राज्ञी बनीं। गोंड की महारानी दुर्गावती ने 1564 में मुगल सम्राट अकबर के सेनापति आसफ खान से लड़कर अपनी जान गँवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। चाँद बीबी ने 1590 के दशक में अकबर की शक्तिशाली मुगल सेना के खिलाफ अहमदनगर की रक्षा की। जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ ने राजशाही शक्ति का प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल किया और मुगल राजगद्दी की वास्तविक शक्ति के रूप में पहचान हासिल की। मराठा योद्धा शिवाजी की माँ जीजाबाई को एक योद्धा और एक प्रशासक के रूप में उनकी क्षमता के कारण सम्मान दिया जाता है। दक्षिण भारत में कई महिलाओं ने गाँवों शहरों और जिलों पर शासन किया तथा सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों की शुरूआत की। मध्यकाल में कई महिला संत भी हुईं जिनमें मीराबाई और सूफी लाल देद भक्ति आंदोलन के सबसे महत्वपूर्ण चेहरों में से एक थीं। कर्नाटक में कित्तूर रियासत की रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया। तटीय कर्नाटक की महारानी अब्बक्का रानी ने 46वीं सदी में हमलावर यूरोपीय सेनाओं, उल्लेखनीय रूप से पुर्तगाली सेना के खिलाफ सुरक्षा का नेतृत्व किया। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 के विद्रोह का झंडा बुलंद किया। आज उन्हें एक राष्ठीय नायिका के रूप में माना जाता है। अवध की सह-शासिका बेगम हज़रत महल एक अन्य शासिका थी जिसने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्होंने अंग्रेजों के साथ सौदेबाजी से इनकार कर दिया और बाद में नेपाल चली गईं। भोपाल की बेगमें भी इस अवधि की कुछ उल्लेखनीय महिला शासिकाओं में शामिल थीं। उन्होंने पर्दा प्रथा को नहीं अपनाया और मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण भी लिया। अंग्रेज़ी शासन के दौरान सावित्रीबाई फुले, ताराबाई शिंदे, पंडिता रमाबाई आदि ने महिला सशक्तीकरण के उद्देश्य को हासिल करने में मदद की। चंद्रमुखी बसु. कादंबिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी कुछ प्राचीन भारतीय समाज में महिलाओं की क्या स्थिति थी?समाज में भारतीय महिलाओं की स्थिति में मध्ययुगीन काल के दौरान और अधिक गिरावट आयी जब भारत के कुछ समुदायों में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह पर रोक, सामाजिक जिंदगी का एक हिस्सा बन गयी थी। भारतीय उपमहाद्वीप में मुसलमानों की जीत ने परदा प्रथा को भारतीय समाज में ला दिया।
प्राचीन भारत में महिलाओं का क्या महत्व था?हिन्दू सभ्यता में स्त्रियों को अत्यन्त आदरपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है । भारत की प्राचीनतम सभ्यता, सैन्धव सभ्यता के धर्म में माता देवी को सर्वोच्च पद प्रदान किया जाना उसके समाज में उन्नत स्त्री-दशा का सूचक माना जा सकता है । ऋग्वैदिक काल में समाज ने उसे आदरपूर्ण स्थान दिया ।
इतिहास में महिलाओं की भूमिका क्या थी?आर्यों की सभ्यता और संस्कृति के प्रारम्भिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत सुदृढ़ थी। ऋग्वेद काल में स्त्रियां उस समय की सर्वोच्च शिक्षा अर्थात् बृह्मज्ञान प्राप्त कर सकतीं थीं। ऋग्वेद में सरस्वती को वाणी की देवी कहा गया है जो उस समय की नारी की शास्त्र एवं कला के क्षेत्र में निपुणता का परिचायक है।
प्राचीन काल में भारतीय नारी के स्वरूप के अनुसार इसमे से क्या उपयुक्त नहीं है?- समाज सुधार - ब्रिटिश प्रशासन भारतीय समाज में प्रचलित सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल- विवाह, दहेज प्रथा, महिलाओं को उत्तराधिकार से वंचित रखना, उत्तराधिकार से वंचित रखना, अनुसूचित जातियों का मंदिर में प्रवेश वर्जित आदि से परिचित थे इसलिए ब्रिटिश प्रशासन ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने हेतु शारदा कानून 1929 आदि का निर्माण ...
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