विषयसूची इसे सुनेंरोकेंईश्वर क्या कर सकते हैं? (c) रंक के सिर पर भी ताज रख सकते हैं। रैदास का ईश्वर क्या करता है?इसे सुनेंरोकेंवह अपने भक्तों पर दया करता है तथा उनका उद्धार कर देता है। उनका गोबिंद किसी से नहीं डरता। कवि ने प्रभु को नाम देकर भी उसके निराकार रूप की ही चर्चा की है। गरीबों के दु:ख-दर्द को समझनेवाला वही ईश्वर है। उपर्युक्त पद में कवि ने किसका चित्रण किया है?इसे सुनेंरोकेंकवि रैदास ने अपने पद ‘ऐसी लाल तुझ बिनु कउनु करै’ में सामाजिक छुआछूत एवं भेदभाव की तत्कालीन स्थिति का अत्यंत मार्मिक एवं यथार्य चित्र खींचा है। भगवान के माथे पर क्या शोभा दे रहा है? इसे सुनेंरोकेंAnswer: भगवान् के माथे पर (B) मुकुट शोभा दे रहा है। ईश्वर क्या कर सकते हैं? इसे सुनेंरोकेंपरमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का सृष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में ईश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना करने वाले से जुड़ी हुई है। ईश्वर कहाँ रहता है class 9?इसे सुनेंरोकेंप्रश्न 8 : मनुष्य ईश्वर को कहाँ-कहाँ ढूँढ़ता फिरता है? उत्तर : मनुष्य ईश्वर को देवालय (मंदिर), मस्जिद, काबा तथा कैलाश में ढूँढता फिरता है। रैदास ने भगवान की क्या महिमा बताई है?इसे सुनेंरोकेंव्याख्यात्मक हल: रैदास की आत्मा परमात्मा के प्रेम में उसी तरह एकाकार हो गई है जिस तरह चंदन-पानी, घनवन-मोर, चाँद-चकोर, दीपक-बाती, मोती-धागा, सुहागा-सोना आदि एक दूसरे के बिना अधूरे व महत्वहीन हो जाने के कारण एकाकार हो गए हैं। रैदास कौन सी भक्ति करते हैं?इसे सुनेंरोकेंयहाँ संत रैदास ने स्वयं को भगवान का दास माना है। इसे दास्य भाव की भक्ति कहते हैं। जहाँ भक्त अपना सर्वस्व अपने प्रभु को समर्पित कर देता है, वहाँ उसका कुछ भी नहीं रह जाता। वह अपने पास जो कुछ भी श्रेष्ठ और सुंदर पाता है, वह सब उसी ज्योतिमान का प्रकाश और प्रसाद है। उदार व्यक्ति की पहचान कैसे हो सकती है MCQ? Answer Key for CBSE Class 10 Hindi Chapter 4 Manushyta MCQs
रैदास अपने को क्या मानते है? इसे सुनेंरोकेंकवि ने स्वयं को पानी मानकर प्रभु को चंदन माना है। रैदास के स्वामी निराकार प्रभु हैं। वे अपनी असीम कृपा से नीच को भी ऊँच और अछूत को महान बना देते हैं। रैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है। भगवान के माथे पर क्या शोभा दे रहा है 1 Point पानी मुकुट पंख बत्ती?The Answer key has been provided at the end of the questions….प्रश्न 10 – दूसरे पद में कवि ने किसका गुणगान किया है?
रैदास ने अपने स्वामी को किन किन नामों से पुकारा है और क्यों स्पष्ट कीजिए?(घ) दूसरे पद में कवि ने अपने प्रभु को ‘गरीब निवाजु’ कहा है। इसका अर्थ है-दीन-दुखियों पर दया करने वाला। (घ) दूसरे पद में कवि ने अपने प्रभु को ‘गरीब निवाजु’ कहा है। इसका अर्थ है-दीन-दुखियों पर दया करने वाला। Category: 12th Hindi Aroh हैलो बच्चों! कवि परिचयः सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’जीवन परिचयः महाप्राण कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन 1899 में बंगाल राज्य के महिषादल नामक रियासत के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। इनके पिता रामसहाय त्रिपाठी मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला नामक गाँव के निवासी थे। जब निराला तीन वर्ष के थे, तब इनकी माता का देहांत हो गया। इन्होंने स्कूली शिक्षा अधिक नहीं प्राप्त की, परंतु स्वाध्याय
द्वारा इन्होंने अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। पिता की मृत्यु के बाद ये रियासत की पुलिस में भर्ती हो गए। 14 वर्ष की आयु में इनका विवाह मनोहरा देवी से हुआ। इन्हें एक पुत्री व एक पुत्र प्राप्त हुआ। 1918 में पत्नी के देहांत का इन पर गहरा प्रभाव पड़ा। आर्थिक संकटों, संघर्षों व जीवन की यथार्थ अनुभूतियों ने निराला जी के जीवन की दिशा ही मोड़ दी। ये रामकृष्ण मिशन, अद्वैत आश्रम, बैलूर मठ चले गए। वहाँ इन्होंने दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया तथा आश्रम के पत्र ‘समन्वय’ का संपादन किया। काव्यगत विशेषताएँः निराला जी छायावाद के आधार स्तंभ थे। इनके काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद तथा प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएँ मिलती हैं। ये एक ओर कबीर की परंपरा से जुड़े हैं तो दूसरी ओर समकालीन कवियों की प्रेरणा के स्रोत भी हैं। इनकी भाषा में उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्द इस तरह प्रयुक्त हुए हैं मानो हिंदी के ही हों। प्रश्न (ख) ‘यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से‘ का आशय स्पष्ट कीजिए। (ग) ‘अस्थिर सुख पर दुख की छाया-पंक्ति का अर्थ बताइए। (घ) पृथ्वी में सोए हुए अंकुरों पर किसका क्या प्रभाव पड़ता हैं? 2. सन्दर्भः प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2′ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से उद्धृत है। इसके रचयिता महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हैं। प्रश्न (ख) क्रांति की गर्जना पर कौन है? उत्तरः (ख) क्रांति की गर्जना से निम्न वर्ग के लोग हँसते हैं क्योंकि इस क्रांति से उन्हें कोई नुकसान नहीं होता, अपितु उनका शोषण समाप्त हो जाता है। उन्हें उनका खोया अधिकार मिल जाता है। (ग) गगन-स्पर्शी स्पद्र्धा -धीर- कौन है? (घ) लघुभार, शस्य अपार किनके प्रतीक हैं। वे बादलों का स्वागत किस प्रकार करते हैं? 3. (ख) शैशव का सुकुमार शरीर किसमें हँसता रहता हैं? (ग) धनिक वर्ण के
लोग किससे भयभीत हैं? वे भयभीत होने पर क्या कर रहे हैं? (घ) कवि ने भय को कैसे वर्णित किया है? 4. (ख) कवि ने किसकी दुर्दशा का वर्णन किया है? (ग) भारतीय कृषक की दुर्दशा के बारे में बताइए। (घ) ‘जीवन के पारावार’ किसे कहा गया हैं तथा क्यों? 1. निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- तुझे बुलाता कृषक अधीर, (क) कवि ने धनिकों के लिए रुद्ध, आतंक, त्रस्त आदि विशेषणों का प्रयोग किया है। ये उनकी घबराहट की दशा को बताते हैं। कृषकों के लिए जीर्ण, शीर्ण, अधीर आदि प्रयुक्त विशेषणों से किसानों की दीन-हीन दशा का चित्रण होता है। 2. अशानि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर, 3. अट्टालिका नहीं है रे 5. तिरती हैं समीर-सागर पर Watch Video: Badal Raag Class 12th Summary
4. बादलों के आगमन से प्रकृति में होने वाले किन-किन परिवर्तनों को कविता रेखांकित करती हैं?’ (ख) अट्टालिका नहीं है रे इस काव्यांश में छोटे-छोटे पौधों को शोषित वर्ग के रूप में बताया गया है। इनकी संख्या सर्वाधिक होती है। ये क्रांति की संभावना से प्रसन्न होते हैं। ये हाथ
हिला-हिलाकर क्रांति का आहवान करते हुए प्रतीत होते हैं। यह कल्पना अत्यंत सुंदर है। ● भेरीदृगर्जन से सजग सुप्त अंकुर 5. कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता हैं जैसे-अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया हैं। ऐसे अन्य विशेषणों को कविता से छाँटकर लिखें तथा बताएँ कि ऐसे शब्द-पदों के प्रयोग से कविता के अर्थ में क्या विशेष प्रभाव पैदा हुआ हैं? 2. क्रांति की गर्जना का शोषक वर्ग पर क्या प्रभाव पड़ता है? उनका मुख ढँकना किस मानसिकता का द्योतक है? ‘बादल राग‘ कविता के आधार पर उत्तर दीजिए। 3.”‘बादल राग ‘
जीवन-निर्माण के नए राग का सूचक है। ” स्पष्ट कीजिए। (क) कवि अट्टालिकाओं को आतंक-भवन क्यों मानता है? Rubaiya Gazal Class 12th Poem Summary, Explanation and Question Answersहैलो बच्चों आज हम कक्षा 12वीं की पाठ्यपुस्तक आरोह भाग- 2 का पाठ 9 पढ़ेंगे ‘रुबाइयां’ व ‘गज़ल’ Rubaiya & Gazal Class 12th Chapter 9 Hindi Aroh Part 2 कविताओं के रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। कविता के सार और व्याख्या समझने से पहले कवि का जीवन परिचय जानते हैं। कवि परिचय: फ़िराक गोरखपुरी Firaq Gorakhpuriजीवन परिचय: फ़िराक गोरखपुरी उर्दू-फ़ारसी के जाने-माने शायर थे। इनका जन्म 28 अगस्त, सन 1896 को गोरखपुर में हुआ था। इनका मूल नाम रघुपति सहाय ‘फ़िराक’ था। इन्होंने रामकृष्ण की कहानियों से अपनी शिक्षा की शुरुआत की। बाद में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण की। 1917 ई० में ये डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित हुए, परंतु स्वतंत्रता आंदोलन के कारण इन्होंने 1918 ई० में इस पद को त्याग दिया। आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण सन 1920 में इन्हें डेढ़ वर्ष की जेल हुई। ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विषय के अध्यापक भी रहे। इन्हें ‘गुले-नग्मा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड मिला। सन 1983 में इनका निधन हुआ। इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं: गुले-नग्मा, बज्में जिंदगी: रंगे-शायरी, उर्दू गजलगोई। काव्यगत विशेषताएँ: उर्दू शायरी साहित्य का बड़ा हिस्सा रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बँधा रहा है जिसमें लोकजीवन और प्रकृति के पक्ष बहुत कम उभरकर सामने आए हैं। नजीर अकबराबादी, इल्ताफ हुसैन हाली जैसे कुछ शायरों ने इस परंपरा को तोड़ा है, फिराक गोरखपुरी भी उनमें से एक हैं। फ़िराक ने परंपरागत भावबोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुजरती है, उसकी तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर उन्होंने अपनी शायरी का अनूठा महल खडा किया। भाषा-शैली: उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरेदारी के लिए प्रसिद्ध है। शेर लिखे नहीं, कहे जाते हैं। यह एक तरह का संवाद होता है। मीर, गालिब की तरह फिराक ने भी इस शैली को साधकर आम-आदमी या साधारण-जन से अपनी बात कही है। प्रतिपादय एवं सार: रुबाइयां (क) रुबाइयाँ प्रतिपादय: फ़िराक की रुबाइयाँ उनकी रचना ‘गुले-नग्मा’ से उद्धृत हैं। रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है। इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक मिलाया जाता है और तीसरी पंक्ति स्वतंत्र होती है। इन रुबाइयों में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है। इन्हें पढ़ने से सूरदास के वात्सल्य वर्णन की याद आती है। सार: इस रचना में कवि ने वात्सल्य वर्णन किया है। माँ अपने बच्चे को आँगन में खड़ी होकर अपने हाथों में प्यार से झुला रही है। वह उसे बार-बार हवा में उछाल देती है जिसके कारण बच्चा खिलखिलाकर हँस उठता है। वह उसे साफ़ पानी से नहलाती है तथा उसके उलझे हुए बालों में कंघी करती है। बच्चा भी उसे प्यार से देखता है जब वह उसे कपड़े पहनाती है। दीवाली के अवसर पर शाम होते ही पुते व सजे हुए घर सुंदर लगते हैं। चीनी-मिट्टी के खिलौने बच्चों को खुश कर देते हैं। वह बच्चों के छोटे घर में दीपक जलाती है जिससे बच्चों के सुंदर चेहरों पर दमक आ जाती है। आसमान में चाँद देखकर बच्चा उसे लेने की जिद पकड़ लेता है। माँ उसे दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाती है और उसे कहती है कि दर्पण में चाँद उतर आया है। रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वहीं संबंध भाई का बहन से है। व्याख्या: आंगन में लिये चांद के टुकड़े को खड़ी हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी रह-रह के हवा में जो लोका देती है गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हंसी संदर्भ: प्रस्तुत रुबाई आरोह पाठ्यपुस्तक से अवतरित की गयी है। इसके शायर फ़िराक गोरखपुरी हैं। प्रसंग: शायर ने यहां पर लोक-जीवन से जुड़े हुए कुछ पारंपरिक और धरेलु दृश्यों को अपनी शायरी में पेश किया है। व्याख्या: यहां पर एक माता और उसके नन्हे बच्चे के प्रेम और खेल के आनंद का चित्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें कि एक पुत्रवती महिला अपने घर के आंगन में अपने प्यारे और नन्हे से बच्चे को अपने दोनों हाथों में झूला झुला रही है। बीच-बीच में वह बच्चे को हवा में उछाल भी देती है। तब बच्चा खिलखिलाकर हंसता है। उसकी किलकारियों से आंगन गूंजने लगता है। पद विशेष: 1 वात्सल्य रस है। 2 दृश्य-बिंबों से शायरी भरी पड़ी है, जैसे – ‘हाथों पे झुलाती है’, ‘हवा में जो लोका देती है’, -खिलखिलाते बच्चे की हंसी’, 3 ‘आंगन में लिये चांद के टुकड़े को खड़ी’ – रूपक अलंकार। 4 ‘चांद के टुकडे़’ में मुहावरा प्रयोग। 5 लोक-भाषा का प्रयोग हुआ है। 6 रुबाई छंद का प्रयोग हुआ है। नहला के छलके-छलके निर्मल जल से उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके किस प्यार से देखता है बच्चा मुंह को जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े व्याख्या: शायर ने दूसरा चित्र प्रस्तुत किया है, जिसमें मां ने अपने बच्चे को साफ पानी से नहला दिया है। फिर उसके उलझे हुए बालों को कंघी से सुलझा दिया है। जब मां उसे अपने दोनों घुटनों के बीच में फंसा कर कपड़े पहनाती है, तब बच्चा अपनी माता को बेहद प्यार भरी आंखों से निहारता है। पद विशेष: 1 वात्सल्य रस है। 2 दृश्य बिंब – ‘उलझे हुए गेसुओं में’, ‘घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े’, 3 ‘नहला के छलके-छलके निर्मल जल से’- अनुप्रास अलंकार। 4 लोक-भाषा का प्रयोग हुआ है। 5 रुबाई छंद का प्रयोग हुआ है। दीवाली की शाम घर पुते और सजे चीनी के खिलौने जगमगाते लावे वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए व्याख्या: तीसरी रुबाई में दीपावली का बिंब है। दीपावली के त्योहार की शाम का समय है। सभी घर पुते और सजे हुए हैं। शक्कर के खिलौने बच्चों के लिये लाये गये हैं। दियों में लाई भरी हुई है। ऐसे में एक सुंदर माता, जिसका मुख कोमलता और स्नेह से चमक रहा है, अपने नन्हे बच्चे के बनाये हुए घरौंदे में भी दीपक जलाकर रख रही है। पद विशेष: 1 वात्सल्य रस है। 2 दृष्य बिंब – ‘घरौंदे में जलाती है दिए’। 3 लोक-भाषा का प्रयोग हुआ है। 4 रुबाई छंद का प्रयोग हुआ है। आंगन में ठुनक रहा है ज़िदयाया है बालक तो हई चांद पै ललचाया है दर्पण उसे दे के कह रही है मां देख आईने में चांद उतर आया है व्याख्या: यहां पर एक रूठे हुए बच्चे का बिंब है। एक हठी बच्चा घर के आंगन में रो रहा है। उसका रोना साधारण रोना नहीं है। ठुनकना है। जिसमें आग्रह है, प्रेम है, और अपनी इच्छा पूरी कराने का दबाव भी है। असल में वह आसमान में जगमगाने वाले चांद को पाने के लिये हठ ठाने हुए है। इसके उपाय में मां ने यह किया कि उसे आईना दिखाकर कहा कि लो चांद तुम्हारे आईने में उतर आया है। पद विशेष: 1 वात्सल्य रस। 2 दृश्य बिंब – ‘आंगन में ठुनक रहा है’, ‘आईने में चांद उतर आया है’। 3 ‘देख आईने में चांद उतर आया है’- मानवीकरण अलंकार। 4 लोक-भाषा का प्रयोग हुआ है। 5 रुबाई छंद का प्रयोग हुआ है। रक्षाबंधन की सुबह रस की पुतली छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे भाई के है बांधती चमकती राखी व्याख्या: इस रुबाई में रक्षाबंधन के त्यौहार का चित्रण है। भाद्र माह में आने वाले रक्षाबंधन के त्यौहार पर सबेरे से ही आनंद और मिठास का वातावरण बन गया है। जल की फुहारें बरस रही हैं। आकाश में हल्की घटाएं छायी हैं। राखी के धागे भी बिजली की तरह चमक रहे हैं। ऐसी चमकदार राखियां, बहनें अपने भाईयों की कलाई पर बांध रही हैं। पद विशेष: 1 शांत रस है। 2 दृश्य बिंब – ‘छायी है घटा’, ‘भाई के है बांधती चमकती राखी’ 3 ‘बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे’ – उपमा अलंकार। 4 लोकभाषा का प्रयोग हुआ है। 5 उर्दू-हिंदी से मिलकर बनी हिंदुस्तानी भाषा का प्रयोग हुआ है। 6 रुबाई छंद का प्रयोग हुआ है। प्रतिपाद्य और सार: गज़ल(ख) गजल प्रतिपादय: रुबाइयों की तरह फ़िराक की गजलों में भी हिंदी समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इस गजल में दर्द और पीड़ा के साथ-साथ शायर की ठसक भी अंतर्निहित है। सार- इस गजल के माध्यम से शायर कहता है कि लोगों ने हमेशा उस पर कटाक्ष किए हैं और साथ ही उसकी किस्मत ने भी कभी उसका साथ नहीं दिया। गम उसके साथ हमेशा रहा। उसे लगता है जैसे रात का सन्नाटा उसे बुला रहा है। शायर कहता है कि इश्क वही कर सकता है जो अपना सब कुछ खो देता है। जब शराबी शराब पिलाते हैं तो उसे अपनी प्रेमिका की याद आ जाती है। अंतिम शेर में वह यह स्वीकार करता है कि उसकी गजलों पर मीर की गजलों का प्रभाव है। नौरस गुंचे पंखडियों की नाजुक गिरहैं खोले हैं या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में बसंत ऋतु का वर्णन किया गया है। व्याख्या: कवि कहता है कि बसंत ऋतु में नए रस से भरी कलियों की कोमल पंखुड़ियों की गाँठे खुल रही हैं। वे धीरे-धीरे फूल बनने की ओर अग्रसर हैं। ऐसा लगता है मानो रंग और सुगंध-दोनों आकाश में उड़ जाने के लिए पंख फड़फड़ा रहे हों। दूसरे शब्दों में, बाग में कलियाँ खिलते ही सुगंध फैल जाती है। विशेष:
तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा–जर्रा सोये हैं तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में उद्धृत ‘गज़ल’ से संकलित है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने रात के तारों का सौंदर्य वर्णन किया है। व्याख्या: शायर कहता है कि रात ढल रही है। अब तारे भी आँखें झपका रहे हैं। इस समय सृष्टि का कण-कण सो रहा है, शांत है। वह कहता है कि हे मित्रो! रात में पसरा यह सन्नाटा भी कुछ कह रहा है। यह भी अपनी वेदना व्यक्त कर रहा है। विशेष:
Watch Video: Gazal हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गज़ल’ से लिया गया है। इसके रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने मनुष्य के दोषारोपण करने की प्रवृत्ति के विषय में बताया है। व्याख्या: शायर कहता है कि संसार में मेरी किस्मत और मैं खुद दोनों ही एक जैसे हैं। हम दोनों एक ही काम करते हैं। अभाव के लिए मैं अपनी किस्मत को दोषी मानता हूँ तथा इसलिए किस्मत पर रोता हूँ। किस्मत मेरी दशा को देखकर रोती है। वह शायद मेरी हीन कर्मनिष्ठा को देखकर झल्लाती है। विशेष:
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गज़ल’ से लिया गया है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने निंदकों पर प्रहार किया है। व्याख्या: शायर कहता है कि संसार में कुछ लोग उसे बदनाम करना चाहते हैं। ऐसे निंदकों के लिए कवि कामना करता है कि वे केवल यह बात समझ सकें कि वे मेरी जो बुराइयाँ संसार के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, उससे खुद उनकी कमियाँ उजागर हो रही हैं। वे मेरा परदा खोलने की बजाय अपना परदा खोल रहे हैं। विशेष:
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें कवि ने प्रेम की कीमत अदा करने के बारे में बताया है। व्याख्या: कवि कहता है कि हम पूरे विवेक के साथ तुम्हारे प्रेम के लिए पूरी कीमत अदा कर रहे हैं। हम तुम्हारे प्रेम का सौदा करने वाले हैं, इसके लिए हम दीवाना बनने को भी तैयार हैं। कवि कहता है कि जो प्रेमी है, वह समाज की नजरों में पागल होता है। विशेष:
तेरे गम का पासे-अदब हैं कुछ दुनिया का खयाल भी हैं सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गज़ल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने प्रेम की पीड़ा को व्यक्त किया है। व्याख्या: कवि अपनी प्रेमिका से कहता है कि मुझे तुम्हारे गम का पूरा ख्याल है। मैं तुम्हारी पीड़ा का सम्मान करता हूँ, परंतु मुझे संसार का भी ध्यान है। यदि मैं हर जगह तुम्हारे दिए दुख को सबके सामने गाता फिरूं तो दुनिया हमारे प्रेम को बदनाम करेगी। इसलिए मैं इस पीड़ा को अपने हृदय में छिपा लेता हूँ और चुपचाप अकेले में रो लेता हूँ। आशय यह है कि प्रेमी अपने दुख को संसार के सामने प्रकट नहीं करते। विशेष:
फितरत का कायम हैं तवाजुन आलमे हुस्नो-इश्क में भी उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में कवि ने प्रेम की प्राप्ति का उपाय बताया है। व्याख्या: कवि कहता है कि प्रेम और सौंदर्य के संसार में संतुलन कायम है। इसमें हम उतना ही प्रेम पा सकते हैं जितना हम स्वयं को खोते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रेम में पहले स्वयं को मिटाना पड़ता है। जो व्यक्ति जितना अधिक समर्पण करता है, वह उतना ही प्रेम पाता है। विशेष:
आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें कवि ने अपने काव्य-सृजन का आधार अपनी व्यथा बताया है। व्याख्या: कवि कहता है कि तुम्हें मेरी शायरी में जो चमक-दमक दिखाई देती है, उस पर फ़िदा मत होओ। तुम्हें अपनी आँखें खुली रखनी चाहिए अर्थात ध्यान से देखना चाहिए। मेरे शेरों में जो चमक है, वह मेरे आँसुओं की देन है। दूसरे शब्दों में, कवि की पीड़ा से उसके काव्य में दर्द उभरकर आया है। विशेष:
ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को रात गए गर्दूं पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले है| प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल” से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में कवि ने प्रियजन की यादों का बखान किया है। व्याख्या: कवि कहता है कि हे प्रिय! तुम वियोग के समय में इस तरीके से याद आते हो जैसे शराब की महफ़िल में शराबियों को शराब की याद आती है तथा जैसे आधी रात के समय देवदूत आकाश में संसार के पापों का अध्याय खोलते हैं। विशेष:
सदके फिराक एजाज-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गजलें बोले हैं। प्रसंग: प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में शायर अपनी शायरी पर ही मुग्ध है। व्याख्या: फिराक कहते हैं कि उसकी गजलों पर लोग मुग्ध होकर कहते हैं कि फिराक, तुमने इतनी अच्छी शायरी कहाँ से सीख ली? इन गजलों के शब्दों से हमें ‘मीर’ कवि की गजलों की-सी समानता दिखाई पड़ती है। भाव यह है कि कवि की शायरी प्रसिद्ध कवि ‘मीर’ के समान उत्कृष्ट है। विशेष:
बच्चों! टेक्स्ट और वीडियो के माध्यम से पढ़ाया गया पाठ ‘रुबाइयां’ व ‘गज़ल’आपको कैसा लगा? हमें कमेंट करके अवश्य बताएं। हमारे YOUTUBE CHANNEL BHASHA GYAN को सब्स्क्राइब करना न भूलें। Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Summary, Explanation & Question Answersहैलो बच्चो!
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Shram Vibhajan Aur
Jati Pratha Chapter 18 Summary रचनाएँ: बाबा साहब आंबेडकर बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति थे। हिंदी में इनका संपूर्ण साहित्य भारत सरकार के कल्याण मंत्रालय ने ‘बाबा साहब आंबेडकर-संपूर्ण वाङ्मय’ के नाम से 21 खंडों में प्रकाशित किया है। इनकी रचनाएँ
निम्नलिखित हैं – पत्रिका–संपादन: मूक नायक, बहिष्कृत भारत, जनता। साहित्यिकविशेषताएँ: बाबा साहब आधुनिक भारतीय चिंतकों में से एक थे। इन्होंने संस्कृत के धार्मिक, पौराणिक और वैदिक साहित्य का अध्ययन किया तथा ऐतिहासिक-सामाजिक क्षेत्र में अनेक मौलिक स्थापनाएँ प्रस्तुत कीं। ये इतिहास-मीमांसक, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् तथा धर्म-दर्शन के व्याख्याता बनकर उभरे। स्वदेश में कुछ समय इन्होंने वकालत भी की। इन्होंने अछूतों, स्त्रियों व मजदूरों को मानवीय अधिकार व सम्मान दिलाने के लिए अथक संघर्ष किया। डॉ० भीमराव आंबेडकर भारत संविधान के निर्माताओं में से एक हैं। उन्होंने जीवनभर दलितों की मुक्ति व सामाजिक समता के लिए संघर्ष किया। उनका पूरा लेखन इसी संघर्ष व सरोकार से जुड़ा हुआ है। स्वयं डॉ० आंबेडकर को बचपन से ही जाति आधारित उत्पीड़न, शोषण व अपमान से गुजरना पड़ा था। व्यापक अध्ययन एवं चिंतन-मनन के बल पर इन्होंने हिंदुस्तान के स्वाधीनता संग्राम में एक नई अंतर्वस्तु प्रस्तुत करने का काम किया। इनका मानना था कि दासता का सबसे व्यापक व गहन रूप सामाजिक दासता है और उसके उन्मूलन के बिना कोई भी स्वतंत्रता कुछ लोगों का विशेषाधिकार रहेगी, इसलिए अधूरी होगी। Watch Video: Shram Vibhajan Aur Jati Pratha Class 12 Summary 1: श्रम-विभाजन और जाति-प्रथापाठ का प्रतिपादय एवं सारांश श्रम-विभाजन सभ्य
समाज की आवश्यकता हो सकती है, परंतु यह श्रमिकों का विभिन्न वर्गों में अस्वाभाविक विभाजन नहीं करती। भारत की जाति-प्रथा श्रमिकों के अस्वाभाविक विभाजन के साथ-साथ विभाजित विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे की अपेक्षा ऊँच-नीच भी करार देती है। जाति-प्रथा को यदि श्रम-विभाजन मान लिया जाए तो यह भी मानव की रुचि पर आधारित नहीं है। सक्षम समाज को चाहिए कि वह लोगों को अपनी रुचि का पेशा करने के लिए सक्षम बनाए। जाति-प्रथा में यह दोष है कि इसमें मनुष्य का पेशा उसके प्रशिक्षण या उसकी निजी क्षमता के आधार पर न करके उसके
माता-पिता के सामाजिक स्तर से किया जाता है। यह मनुष्य को जीवन-भर के लिए एक पेशे में बाँध देती है। ऐसी दशा में उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में परिवर्तन से भूखों मरने की नौबत आ जाती है। हिंदू धर्म में पेशा बदलने की अनुमति न होने के कारण कई बार बेरोजगारी की समस्या उभर आती है। 2: मेरीकल्पनाकाआदर्शसमाजWatch Video: Meri Kalpana Ka Adarsh Samaj Class 12 Summary प्रतिपादय: इस पाठ में लेखक ने बताया है कि आदर्श समाज में तीन तत्व अनिवार्यत: होने चाहिए-समानता, स्वतंत्रता व बंधुता। इनसे लोकतंत्र सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के अर्थ तक पहुँच सकता है। सारांश: लेखक का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता व भ्रातृत्त पर आधारित होगा। समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए कि कोई भी परिवर्तन समाज में तुरंत प्रसारित हो जाए। ऐसे समाज में सबका सब कार्यों में भाग होना चाहिए तथा सबको सबकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सबको संपर्क के साधन व अवसर मिलने चाहिए। यही लोकतंत्र है। लोकतंत्र मूलत: सामाजिक जीवनचर्या की एक रीति व समाज के सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का नाम है। आवागमन, जीवन व शारीरिक सुरक्षा की स्वाधीनता, संपत्ति, जीविकोपार्जन के लिए जरूरी औजार व सामग्री रखने के अधिकार की स्वतंत्रता पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होती, परंतु मनुष्य के सक्षम व प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए लोग तैयार नहीं हैं। इसके लिए व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता देनी होती है। इस स्वतंत्रता के अभाव में व्यक्ति ‘दासता’ में जकड़ा रहेगा। ‘दासता’ केवल कानूनी नहीं होती। यह वहाँ भी है जहाँ कुछ लोगों को दूसरों द्वारा निर्धारित व्यवहार व कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। फ्रांसीसी क्रांति के नारे में ‘समता’ शब्द सदैव विवादित रहा है। समता के आलोचक कहते हैं
कि सभी मनुष्य बराबर नहीं होते। यह सत्य होते हुए भी महत्व नहीं रखता क्योंकि समता असंभव होते हुए भी नियामक सिद्धांत है।
इन तीनों दृष्टियों से मनुष्य समान नहीं होते, परंतु क्या इन तीनों कारणों से व्यक्ति से असमान व्यवहार करना चाहिए। असमान प्रयत्न के कारण असमान व्यवहार अनुचित नहीं है, परंतु हर व्यक्ति को विकास करने के अवसर मिलने चाहिए। लेखक का मानना है कि उच्च वर्ग के लोग उत्तम व्यवहार के मुकाबले में निश्चय ही जीतेंगे क्योंकि उत्तम व्यवहार का निर्णय भी संपन्नों को ही करना होगा। प्रयास मनुष्य के वश में है, परंतु वंश व सामाजिक प्रतिष्ठा उसके वश में नहीं है। अत: वंश और सामाजिकता के नाम पर असमानता अनुचित है। एक राजनेता को अनेक लोगों से मिलना होता है। उसके पास हर व्यक्ति के लिए अलग व्यवहार करने का समय नहीं होता। ऐसे में वह व्यवहार्य सिद्धांत का पालन करता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। वह सबसे व्यवहार इसलिए करता है क्योंकि वर्गीकरण व श्रेणीकरण संभव नहीं है। समता एक काल्पनिक वस्तु है, फिर भी राजनीतिज्ञों के लिए यही एकमात्र उपाय व मार्ग है। Important Question and Answersपाठ से जुड़े प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. जाति प्रथा को श्रम-विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे आंबेडकर के क्या तर्क हैं?
प्रश्न 2. जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है? प्रश्न 3. लेखक के मत से दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या है? प्रश्न
4. शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैं? इसके पीछे उनके क्या तर्क हैं? प्रश्न 5. सही में आंबेडकर ने
भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा है, जिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तर्क दिया है। क्या इससे आप सहमत हैं? प्रश्न 6. डॉ० आंबेडकर के
इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए – गर्भधारण के समय से ही मनुष्य का पेशा निर्धारित कर दिया जाता है। क्या आज भी यह स्थिति विद्यमान है। प्रश्न 7. डॉ० भीमराव की कल्पना के आदर्श समाज की आधारभूत बातें संक्षेप में समझाइए। आदर्श सामाज की स्थापना में डॉ० आंबेडकर के विचारों की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
प्रश्न 3. जाति और श्रम विभाजन में बुनियादी अंतर क्या है? ‘श्रम विभाजन और जातिप्रथा’ के आधार पर उत्तर दीजिए। प्रश्न 4. लोकतंत्र से लेखक को क्या अभिप्राय है? प्रश्न 5. लेखक ने मनुष्य की क्षमता के बारे में क्या बताया है।
लेखक का मानना है कि असमान प्रयत्न के कारण असमान व्यवहार को अनुचित नहीं कहा जा सकता। वे प्रथम दो बातों पर असमानता को अनुचित मानते हैं। Chapter 18: Meri Kalpana Ka Adarsh Samaj Watch Video Chapter हैलो बच्चो! आज हम कक्षा 12वीं की पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 की कविता पढ़ेंगे ‘उषा’ Usha Poem Class 12 Hindi Aroh Part 2 बच्चों, कविता के भवार्थ को पढ़ने से पहले कवि के जीवन परिचय को जानते हैं। उषा कविता का प्रतिपादय एवं सार कक्षा 12 कवि परिचय-शमशेर बहादुर सिंह जीवन परिचय: नई कविता के समर्थकों में शमशेर बहादुर सिंह की एक अलग छवि है। इनका जन्म 13 जनवरी, सन 1911 को देहरादून में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून में ही हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। चित्रकला में इनकी रुचि प्रारंभ से ही थी। इन्होंने सुमित्रानंदन पंत के पत्र ‘रूपाभ’ में कार्य किया। 1977 ई. में ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ काव्य-संग्रह पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इन्हें कबीर सम्मान सहित अनेक पुरस्कार मिले। सन 1993 में अहमदाबाद में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ: शमशेर बहादुर सिंह ने कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ, चुका भी हूँ नहीं मै, इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुझसे होड़ है मेरी, ‘ऊर्दू- हिंदी कोश’ का संपादन। काव्यगत विशेषताएँ: वैचारिक रूप से प्रगतिशील एवं शिल्पगत रूप से प्रयोगधर्मी कवि शमशेर को एक बिंबधर्मी कवि के रूप में जाना जाता है। इन्होंने अपनी कविताओं में समाज की यथार्थ स्थिति का भी चित्रण किया है। ये समाज में व्याप्त गरीबी का चित्रण करते हैं। कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का सुंदर वर्णन किया है। प्रकृति के नजदीक रहने के कारण इनके प्राकृतिक चित्र अत्यंत जीवंत लगते हैं। ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन वातावरण का सजीव चित्रण है। भाषा-शैली: शमशेर बहादुर सिंह ने साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है। कथा और शिल्प-दोनों ही स्तरों पर इनकी कविता का मिजाज अलग है। उर्दू शायरी के प्रभाव से संज्ञा और विशेषण से अधिक बल सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों को दिया है। कविता का प्रतिपादय एवं सार प्रतिपाद्य: प्रस्तुत कविता ‘उषा’ में कवि शमशेर बहादुर सिंह ने सूर्योदय से ठीक पहले के पल-पल परिवर्तित होने वाली प्रकृति का शब्द-चित्र उकेरा है। कवि ने प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने का अद्भुत प्रयास किया है। कवि भोर की आसमानी गति की धरती के हलचल भरे जीवन से तुलना कर रहा है। इसलिए वह सूर्योदय के साथ एक जीवंत परिवेश की कल्पना करता है जो गाँव की सुबह से जुड़ता है- वहाँ सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है और स्लेट की कालिमा पर चाक से रंग मलते अदृश्य बच्चों के नन्हे हाथ हैं। कवि ने नए बिंब, नए उपमान, नए प्रतीकों का प्रयोग किया है। सार: कवि कहता है कि सूर्योदय से पहले आकाश का रंग गहरे नीले रंग का होता है तथा वह सफेद शंख-सा दिखाई देता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है मानो किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप दिया हो। सूर्य के ऊपर उठने पर लाली फैलती है तो ऐसा लगता है जैसे काली सिल को किसी ने धो दिया हो या उस पर लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। नीले आकाश में सूर्य ऐसा लगता है मानो नीले जल में गोरी युवती का शरीर झिलमिला रहा है। सूर्योदय होते ही उषा का यह जादुई प्रभाव समाप्त हो जाता है। ‘उषा’ कविता प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। कविता में कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इस अंश में सूर्योदय का मनोहारी वर्णन किया गया है। व्याख्या: कवि बताता है कि सुबह का आकाश ऐसा लगता है मानो नीला शंख हो। दूसरे शब्दों में, इस समय आसमान शंख के समान गहरा नीला लगता है। वह पवित्र दिखाई देता है। वातावरण में नमी प्रतीत होती है। सुबह-सुबह आकाश ऐसा लगता है मानो राख से लीपा हुआ कोई चौका है। यह चौका नमी के कारण गीला लगता है। विशेष: (i) कवि ने प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया है। (ii) ‘शंख जैसे’ में उपमा अलंकार है। (iii) सहज व सरल शब्दों का प्रयोग किया है। (iv) ग्रामीण परिवेश सजीव हो उठता है। (v) नए उपमानों का प्रयोग है। 2. बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। इस कविता में कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। कविता के इस अंश में सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया गया है। व्याख्या: कवि प्रात:कालीन आकाश का वर्णन करते हुए कहता है कि सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो हलकी लालिमा की रोशनी फैल जाती है। ऐसा लगता है कि काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है। अँधेरा काली सिल तथा सूरज की लाली केसर के समान लगती है। इस समय आकाश ऐसा लगता है मानो काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो। अँधेरा काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा लाल खड़िया चाक के समान लगती है। विशेष: (i) कवि ने प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है। (ii) पूरे काव्यांश में उत्प्रेक्षा अलंकार है। (iii) मुक्तक छंद का प्रयोग है। (iv) नए बिंबों व उपमानों का प्रयोग है। (v) सरल, सहज खड़ी बोली में सुंदर अभिव्यक्ति है। 3. नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। और ……. जादू टूटता हैं इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा हैं। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2‘ में संकलित ‘उषा’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह हैं। कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इसमें सूर्योदय का मनोहारी चित्रण किया गया है। व्याख्या: कवि ने भोर के पल-पल। बदलते दृश्य का सुंदर वर्णन किया है। वह कहता है कि सूर्योदय के समय आकाश में गहरा नीला रंग छा जाता है। सूर्य की सफेद आभा दिखाई देने लगती है। ऐसा लगता है मानो नीले जल में किसी गोरी सुंदरी की देह हिल रही हो। धीमी हवा व नमी के कारण सूर्य का प्रतिबिंब हिलता-सा प्रतीत होता है। कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है तो उषा का पल-पल। बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है। ऐसा लगता है कि उषा का जादुई प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है। विशेष: (i) कवि ने उषा का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत किया है। (ii) माधुर्य गुण है। (iii) ‘नील जल ’ हिल रही हो।‘ -में उत्प्रेक्षा अलंकार है। (iv) सरल भाषा का प्रयोग है। (v) मुक्तक छंद है। Class 12th Usha chapter mcqs IMPORTANT MCQs (बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर) 1. ‘उषा’ कविता किस की रचना है ? (क) निराला (ख) पंत (ग) शमशेर बहादुर सिंह (घ) रघुवीर सहाय। उत्तर – (ग) शमशेर बहादुर सिंह। 2. ‘उपा’ दिन का कौन-सा समय होता है ? (क) प्रभात (ख) मध्याहन (ग) संध्या (घ) रात्रि। उत्तर- (क) प्रभात। 3. प्रात:कालीन नीला आकाश किसके जैसा बताया गया है? (क) केसर (ख) सिंदूर (ग) झील (घ) शंख। उत्तर – (घ) शंख। 4. कवि ने राख से लीपा हुआ गीला चौका किसे कहा है ? (क) भोर के तारे को (ख) भोर के नभ को (ग) भोर की वायु को (घ) भोर की किरण को! उत्तर – (क) भोर के तारे को। 5. लाल केसर से धुली हुई काली सिल क्या है ? (क) सूर्य (ख) आकाश (ग) चंद्रमा (घ) तारे। उत्तर – (ख) आकाश 6. उषा का जादू किसके उदय होने पर अथवा किससे टूटता है ? (क) चंद्रमा के (ख) कवि के (ग) सूर्य के (घ) भोर के तारे। उत्तर – (ग) सूर्य के। 7. राख से लीपा हुआ चौका’ किस भाव को व्यक्त करता है? (क) परंपरा (ख) पुरातनता (ग) पवित्रता (घ) आस्था । उत्तर – (ग) पवित्रता। 8. ‘बहुत नीला, राख जैसे’ में अलंकार है ? (क) अनुप्रास (ख) यमक (ग) श्लेष (घ) उपमा। उत्तर – (घ) उपमा। 9. ‘लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने स्लेट पर’ में ‘स्लेट’ क्या है ? (क) सूर्य (ख) तारे (ग) आकाश (घ) धरती। उत्तर – (घ) धरती। 10. ‘नील जल में किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो में कौन-सा भाव है? (क) सुगंध का (ख) निर्मलता का (ग) उज्ज्वलता का (घ) तरलता का। उत्तर – (ग) उज्ज्वलता का । 11. ‘बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुन गई हों में भाव है ? (क) निर्मलता का (ख) उज्ज्वलता का (ग) सहजता का (घ) सरलता का। उत्तर- (ग) सहजता का। 12. बहुत काली सिल किस लाल से धुली हुई लगती है ? (क) गुलाब (ख) कमल (ग) केसर (घ) सिंदूर। उत्तर – (ग) केसर। 13. नीले आकाश में उदय होता हुआ सूर्य किस जैसा प्रतीत हो रहा है ? (क) सिंदूर के समान (ख) शंख जैसा (ग) गौरवर्णीय सुंदरी जैसा (घ) झील के समान। उत्तर – (ग) गौरवर्णीय सुंदरी जैसा। 14. ‘उषा’ कविता में कवि ने ‘उषा’ का कौन-सा चित्र उपस्थित किया है? (क) छाया चित्र (ख) तैल चित्र (ग) शब्द चित्र (घ) रेखाचित्र। उत्तर – (ग) शब्द चित्र। 15. प्रातः आकाश का रंग कैसा था ? (क) नीला (ख) काला (ग) सुनहरा (घ) लाल। उत्तर – (क) नीला। Watch Video हैलो बच्चो! कवि परिचय- गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ जीवन परिचय: प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर 1917 ई० में हुआ था। इनके पिता पुलिस विभाग में थे। अत: निरंतर होने वाले स्थानांतरण के कारण इनकी पढ़ाई नियमित व व्यवस्थित रूप से नहीं हो पाई। 1954 ई. में इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० (हिंदी) करने के बाद राजनाद गाँव के डिग्री कॉलेज में अध्यापन कार्य आरंभ किया। इन्होंने अध्यापन, लेखन एवं पत्रकारिता सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता, प्रतिभा एवं कार्यक्षमता का परिचय दिया। मुक्तिबोध को जीवनपर्यत संघर्ष करना पड़ा और संघर्षशीलता ने इन्हें चिंतनशील एवं जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित किया। 1964 ई० में यह महान चिंतक, दार्शनिक, पत्रकार एवं सजग लेखक तथा कवि इस संसार से चल बसा। रचनाएँ: काव्यगत विशेषताएँ: मुक्तिबोध प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रमुख सूत्रधारों में थे। इनकी प्रतिभा का परिचय अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ से मिलता है।ये पत्रकार भी
थे। इन्होंने राजनीतिक विषयों, अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। कवि शमशेर बहादुर सिंह ने इनकी कविता के बारे में लिखा है- भाषा-शैली: इनकी भाषा उत्कृष्ट है। भावों के अनुरूप शब्द गढ़ना और उसका परिष्कार करके उसे भाषा में प्रयुक्त करना भाषा-सौंदर्य की अद्भुत विशेषता है। इन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, अरबी और फ़ारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है। कविता का प्रतिपादय एवं सार प्रतिपादय: मुक्तिबोध की कविताएँ आमतौर पर लंबी होती हैं। इन्होंने जो भी छोटी कविताएँ लिखी हैं उनमें एक है ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ जो ‘भूरी-भूरी खाक-धूल‘ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है-‘स्वीकारना’ और दूसरा होता है-‘सहर्ष स्वीकारना’ यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा देती है। सार: 1. शब्दार्थ: सहर्ष- खुशी के साथ। स्वीकारा- मन से माना। गरबीली– स्वाभिमानिनी। गंभीर – गहरा। अनुभव– व्यावहारिक ज्ञान। विचार-वैभव– भरे-पूरे विचार। दूढ़ता– मजबूती। सरिता– नदी। भीतर की सरिता – भावनाओं की नदी। अभिनव– नया। मौलिक– वास्तविक। जाग्रत– जागा हुआ। अपलक- निरंतर। संवेदन– अनुभूति। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ हैं। इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है। व्याख्या: कवि कहता है कि मेरी जिंदगी में जो कुछ है, जैसा भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी-ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है। विशेष: 2. शब्दार्थ: रिश्ता– रक्त संबंध। नाता– संबंध। ऊँड़ेलना- बाहर निकालना। सोता–झरना। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबध’ हैं। इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है। व्याख्या: कवि कहता है कि तुम्हारे साथ न जाने कौन-सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाये हुए तुम्हारे स्नेह रूपी जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह फिर-फिर चारों ओर से सिमटकर चला आता है और मेरे हृदय में भर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है। वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और उधर तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। कवि का आंतरिक व बाहय जगत-दोनों उसी स्नेह से युक्त स्वरूप से संचालित होते हैं। विशेष: 3. शब्दार्थ: दंड– सजा। दक्षिण ध्रुवी अंधकार- दक्षिण ध्रुव पर छाने वाला गहरा अँधेरा । अमावस्या- चंद्रमाविहीन काली रात। अंतर- हृदय, अंत:करण। परिवेष्टित- चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित- छाया हुआ, ढका हुआ। रमणीय- मनोरम। उजेला- प्रकाश। ममता- अपनापन, स्नेह। मंडराती- छाई हुई। पिराती- दर्द करना। अक्षम- अशक्त। भवितव्यता- भविष्य की आशंका। बहलाती- मन को प्रसन्न करती। सहलाती- दर्द को कम करती हुई। आत्मीयता- अपनापन। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबध’ हैं। इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है। व्याख्या: कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है। वह उस अंधकार को अपने शरीर, हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। यह उजाला अब उसके लिए असहनीय हो गया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव उसके भीतर मैंडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण उसकी आत्मा बहुत कमजोर और असमर्थ हो गई है। उसे भविष्य में होने वाली अनहोनी से डर लगने लगा है। उसे भीतर-ही-भीतर यह डर लगने लगा है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। विशेष: 4. शब्दार्थ: पाताली अँधेरे- धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध। गुहा- गुफा। विवर- बिल। लापता- गायब। कारण- मूल प्रेरणा। घेरा- फैलाव। वैभव-समृद्ध। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2‘ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन
माधव ‘मुक्तिबोध’ हैं। व्याख्या: कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है। वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगों में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपने सर्वाधिक प्रिय स्त्री का ही सहारा है। उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण हैं। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित हैं। कवि ने हर सुख-दुख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं। विशेष: saharsh swikara hai mcqs class 12th IMPORTANT MCQs (बहुविकल्पी प्रश्न उत्तर)
(क) गजाकर माधव मुक्तिबोध (ख) गजानन माधव मुक्तिबोध (ग) गिरधर माधव मुक्तिबोध (घ) गजमुख माधव मुक्तिबोध । उत्तर- (ख) गजानन माधव मुक्तिबोध।
(क) सहर्ष (ख) समवेत (ग) सहज (घ) सरोष। उत्तर-(क) सहर्ष।
(क) तुम्हारा है (ख) पराया है (ग) प्यारा है (घ) न्यारा है। उत्तर-(ग) प्यारा है।
(क) शर्मीली (ख) दुःख भरी (ग) सुखदायक (घ) गरबीली। उत्तर- (घ) गरबोली।
(क) स्मृतियों (ख) आत्मचिंतन (ग) मीठे पानी का झरना (घ) सांसारिक उलझनें। उत्तर- (ग) मीठे पानी का झरना।
(क) सूर्य से (ख) चाँद से (ग) आकाश से (घ) नक्षत्रों से। उत्तर-(ख) चाँद से। 7.कवि किस अपराध के लिए दंड माँगता है? (क) प्रभु को भूल जाने के (ख) कोई कार्य न करने के (ग) गलत कार्य करने के (घ) सबसे लड़ने के। उत्तर- (क) प्रभु को भूल जाने के।
(क) सशक्त (ख) भावशून्य (ग) कमजोर, अक्षम (घ) पीड़ा से भरी हुई। उत्तर- (ग) कमजोर, अक्षम।
(क) वर्तमान से (ख) अतीत से (ग) भविष्य से (घ) शासन से। उत्तर-(ग) भविष्य से।
(क) समझाने वाली (ख) संवेदनारहित (ग) संवेदना देने वाली (घ) विचारात्मक। उत्तर- (ग) संवेदना देने वाली।
(क) आकाश में (ख) अंधेरी गुफाओं में (ग) बादलों में (घ) वायु में। उत्तर- (ख) अंधेरी गुफाओं में।
(क) धन (ख) संपति (ग) प्राण (घ) सर्वस्व। उत्तर- (घ) सर्वस्व।
(क) हृदय की सरिता (ख) नगर के बीच से बहने वाली सरिता (ग) नगर के बाहर बहने वाली सरिता (घ) शरीर की सरिता। उत्तर- (क) हृदय की सरिता ।
(क) संदेशपूर्ण (ख) सांत्वना देने वाली (ग) दुःखद (घ) विचार प्रदान करने वाली। उत्तर- (ख) सांत्वना देने वाली ।
(क) वर्षा के (ख) ऑधी के (ग) प्रेम के (घ) गर्जना के उत्तर- (ग) प्रेम के
(क) 1916 (ख) 1917 (ग) 1918 (9) 1919 उत्तर- (ख) 19171
(क) श्यामपुर (ख) शेखपुर (ग) श्योपुर (घ) श्योहर। उत्तर- (ग) श्योपुर।
(6) 1961. (ख) 1962. (ग) 1963. (घ) 1964. उत्तर- (घ)
1964.
(क) नई दिल्ली (ख) इलाहाबाद (ग) ग्वालियर (घ) भोपाल। उत्तर- (क) नई दिल्ली।
(क) चाँद का मुँह टेढा (ख) भूरी-भूरी खाक धूल (ग) विपात्र (घ) काठ का सपना। उत्तर- (ख) भूरी-भूरी खाक धूल। Watch Video हैलो बच्चो आज हम कद्वाा 12वीं की पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 का कविता पढ़ेंगे ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ बच्चों, सबसे पहले कवि के जीवन परिचय को जानते हैं। जीवन परिचय- रघुवीर सहाय रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील कवि हैं। इनका जन्म लखनऊ (उ०प्र०) में सन् 1929 में हुआ था। इनकी संपूर्ण शिक्षा लखनऊ में ही हुई। वहीं से इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम०ए० किया। प्रारंभ में ये पेशे से पत्रकार थे। इन्होंने प्रतीक अखबार में सहायक संपादक के रूप में काम किया। फिर ये आकाशवाणी के समाचार विभाग में रहे। कुछ समय तक हैदराबाद से निकलने वाली पत्रिका कल्पना और उसके बाद दैनिक नवभारत टाइम्स तथा दिनमान से संबद्ध रहे। साहित्य-सेवा के कारण इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनका देहावसान सन 1990 में दिल्ली में हुआ। रचनाएँ- रघुवीर सहाय नई कविता के कवि हैं। इनकी कुछ आरंभिक कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक (1935) में प्रकाशित हुई। इनके महत्वपूर्ण काव्य-संकलन हैं:- सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसी, लोग भूल गए हैं आदि। काव्यगत विशेषताएँ: रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में आम आदमी की पीड़ा व्यक्त की है। ये साठोत्तरी काव्य-लेखन के सशक्त, प्रगतिशील व चेतना-संपन्न रचनाकार हैं। इन्होंने सड़क, चौराहा, दफ़्तर, अखबार, संसद, बस, रेल और बाजार की बेलौस भाषा में कविता लिखी। घर-मोहल्ले के चरित्रों पर कविता लिखकर उन्हें हमारी चेतना का स्थायी नागरिक बनाया। इन्होंने कविता को एक कहानीपन और नाटकीय वैभव दिया। रघुवीर सहाय ने बतौर पत्रकार और कवि घटनाओं में निहित विडंबना और त्रासदी को देखा। इन्होंने छोटे की महत्ता को स्वीकारा और उन लोगों व उनके अनुभवों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया जिन्हें समाज में हाशिए पर रखा जाता है। इन्होंने भारतीय समाज में ताकतवरों की बढ़ती हैसियत व सत्ता के खिलाफ़ भी साहित्य और पत्रकारिता के पाठकों का ध्यान खींचा। भाषा-शैली- रघुवीर सहाय ने अधिकतर बातचीत की शैली में लिखा। ये अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचते रहे हैं। कविता का प्रतिपादय एवं सार प्रतिपादय: ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ दूर-संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीड़ा को दर्शक वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए। आज विडंबना यह है कि जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियो के भीतर की दुनिया को समाज के सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द, यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते हैं। सार: इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं को शक्तिशाली बताते हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता है। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके। इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु ‘परदे पर वक्त की कीमत है’ वाक्य से उसके व्यापार की प्रोल खुल जाती है। व्याख्या 1. हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम् समर्थ शक्तिवान हम एक दुर्बल को लाएँगे एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? तो आप क्यों अपाहिज हैं? आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा देता है? (कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा) हाँ तो बताइए आपका दुख क्या हैं जल्दी बताइए वह दुख बताइए बता नहीं पाएगा। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है। कवि का मानना है कि मीडिया वाले दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं। व्याख्या: कवि मीडिया के लोगों की मानसिकता का वर्णन करता है। मीडिया के लोग स्वयं को समर्थ व शक्तिशाली मानते हैं। वे ही दूरदर्शन पर बोलते हैं। अब वे एक बंद कमरे अर्थात स्टूडियो में एक कमजोर व्यक्ति को बुलाएँगे तथा उससे प्रश्न पूछेगे। क्या आप अपाहिज हैं? यदि हैं तो आप क्यों अपाहिज हैं? क्या आपका अपाहिजपन आपको दुख देता है? ये प्रश्न इतने बेतुके हैं कि अपाहिज इनका उत्तर नहीं दे पाएगा, जिसकी वजह से वह चुप रहेगा। इस बीच प्रश्नकर्ता कैमरे वाले को निर्देश देता है कि इसको (अपाहिज को) स्क्रीन पर बड़ा-बड़ा दिखाओ। फिर उससे प्रश्न पूछा जाएगा कि आपको कष्ट क्या है? अपने दुख को जल्दी बताइए। अपाहिज इन प्रश्नों का उत्तर नहीं देगा क्योंकि ये प्रश्न उसका मजाक उड़ाते हैं। विशेष: 1. मीडिया की मानसिकता पर करारा व्यंग्य है। 2. काव्यांश में नाटकीयता है। 3. भाषा सहज व सरल है। 4. व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है। सोचिए बताइए थोड़ी कोशिश करिए (यह अवसर खो देंगे?) आप जानते हैं कि कायक्रम रोचक बनाने के वास्ते हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का करते हैं (यह प्रश्न पूछा नहीं जाएगा) प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है। कवि का कहना है कि मीडिया के लोग किसी-न-किसी तरह से दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं। व्याख्या: इस काव्यांश में कवि कहता है कि मीडिया के लोग अपाहिज से बेतुके सवाल करते हैं। वे अपाहिज से पूछते हैं कि-अपाहिज होकर आपको कैसा लगता है? यह बात सोचकर बताइए। यदि वह नहीं बता पाता तो वे स्वयं ही उत्तर देने की कोशिश करते हैं। वे इशारे करके बताते हैं कि क्या उन्हें ऐसा महसूस होता है। थोड़ा सोचकर और कोशिश करके बताइए। यदि आप इस समय नहीं बता पाएँगे तो सुनहरा अवसर खो देंगे। अपाहिज के पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता कि वह अपनी पीड़ा समाज के सामने रख सके। मीडिया वाले कहते हैं कि हमारा लक्ष्य अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है और इसके लिए हम ऐसे प्रश्न पूछेगे कि वह रोने लगेगा। वे समाज पर भी कटाक्ष करते हैं कि वे भी उसके रोने का इंतजार करते हैं। वह यह प्रश्न दर्शकों से नहीं पूछेगा। विशेष: 1. कवि ने क्षीण होती मानवीय संवेदना का चित्रण किया है। 2. दूरदर्शन के कार्यक्रम निर्माताओं पर करारा व्यंग्य है। 3. काव्य-रचना में नाटकीयता तथा व्यंग्य है। 4. सरल एवं भावानुकूल खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। 5. अनुप्रास व प्रश्न अलंकार हैं। 6. मुक्तक छंद है। फिर हम परदे पर दिखलाएंगे फुल हुई आँख काँ एक बडी तसवीर बहुत बड़ी तसवीर और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी (आशा हैं आप उसे उसकी अय-गता की पीड़ा मानेंगे) एक और कोशिश दर्शक धीरज रखिए देखिए हमें दोनों को एक सा रुलाने हैं आप और वह दोनों (कैमरा बस् करो नहीं हुआ रहने दो परदे पर वक्त की कीमत है) अब मुसकुराएँगे हम आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम (बस थोड़ी ही कसर रह गई) धन्यवाद। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है। उसने यह बताने का प्रयत्न किया है कि मीडिया के लोग किस प्रकार से दूसरे के दुख को भी व्यापार का माध्यम बना लेते हैं।” व्याख्या: कवि कहता है कि दूरदर्शन वाले अपाहिज का मानसिक शोषण करते हैं। वे उसकी फूली हुई आँखों की तसवीर को बड़ा करके परदे पर दिखाएँगे। वे उसके होंठों पर होने वाली बेचैनी और कुछ न बोल पाने की तड़प को भी दिखाएँगे। ऐसा करके वे दर्शकों को उसकी पीड़ा बताने की कोशिश करेंगे। वे कोशिश करते हैं कि वह रोने लगे। साक्षात्कार लेने वाले दर्शकों को धैर्य धारण करने के लिए कहते हैं। वे दर्शकों व अपाहिज दोनों को एक साथ रुलाने की कोशिश करते हैं। तभी वे निर्देश देते हैं कि अब कैमरा बंद कर दो। यदि अपाहिज अपना दर्द पूर्णत: व्यक्त न कर पाया तो कोई बात नहीं। परदे का समय बहुत महँगा है। इस कार्यक्रम के बंद होते ही दूरदर्शन में कार्यरत सभी लोग मुस्कराते हैं और यह घोषणा करते हैं कि आप सभी दर्शक सामाजिक उद्देश्य से भरपूर कार्यक्रम देख रहे थे। इसमें थोड़ी-सी कमी यह रह गई कि हम आप दोनों को एक साथ रुला नहीं पाए। फिर भी यह कार्यक्रम देखने के लिए आप सबका धन्यवाद! विशेष: 1. अपाहिज की बेचैनी तथा मीडिया व दर्शकों की संवेदनहीनता को दर्शाया गया है। 2. मुक्त छंद है। 3. उर्दू शब्दावली का सहज प्रयोग है। 4. ‘परदे पर’ में अनुप्रास अलंकार है। 5. व्यंग्यपूर्ण नाटकीयता है। IMPORTANT QUESTIONS (MCQs) 1- रघुवीर सहाय का जन्म कब हुआ ? A- 1980 B- 1970 C- 1933 D- 1929 Ans- D 2- रघुवीर सहाय का निधन कब हुआ ? A- 1980 B- 1988 C- 1971 D- 1990 Ans- D 3- कैमरे में बंद कविता में कवि ने किसका चित्रण किया है ? A- अपाहिज का B- रोगी का C- भगत जी का D- इनमे से कोई नहीं Ans- A 4- रघुवीर सहाय का निधन कहाँ हुआ ? A- कानपुर B- बनारस C- बिजनौर D- दिल्ली Ans- D 5- कैमरों में बंद अपाहिज कविता कवि के किस काव्य संग्रह से ली गई है ? A- लोग भूल गए हैं B- सीढ़ियों पर धूप C- A तथा B दोनों D- इनमे से कोई नहीं Ans- A 6- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में हम दूरदर्शन पर क्या बोलेंगे ? A- हम बलवान हैं B- हम समर्थ और शक्तिवान हैं C- हम कमज़ोर हैं D- हम दुर्बल हैं Ans- B 7- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में हम किस पर बोलेंगे ? A- दूरदर्शन पर B- मंच पर C- घर पर D- इनमे से कोई नहीं Ans- A 8- कैमरे में बंद अपाहिज किसकी रचना है ? A- रघुवीर सहाय B- सूर्यकांत त्रिपाठी निराला C- महादेवी वर्मा D- इनमे से कोई Ans- A 9- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में हम क्या है ? A- दुर्बल B- सशक्त C- समर्थ D- असमर्थ Ans- C 10- किसे कैमरे में बंद अपाहिज कविता में हम लाएंगे ? A- बलवान को B- दुर्बल को C- नेता को D- खिलाडी को Ans- B 11- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में दुर्बल को हम कहाँ ले जाएंगे ? A- अस्पताल B- स्टूडियो C- बंद कमरे में D- मैदान में Ans- C 12- रघुवीर सहाय का जन्म कहाँ हुआ ? A- दिल्ली B- कानपुर C- महाराष्ट्र D- लखनऊ Ans- D 13- अपाहिज से दूरदर्शन कार्यक्रम संचालक किस प्रकार के प्रश्न पूछता हैं ? A- कठिन B- अर्थहीन C- ज्ञान वर्धक D- उपरोक्त सभी Ans- B 14- अपाहिज क्या नहीं बता पाएगा ? A- अपनी कहानी B- अपना दुःख C- अपना सुख D- अपनी जानकारी Ans- B 15- कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए अपाहिज को क्या करते हैं ? A- नचा देते है B- हंसा देते है C- भगा देते हैं D- रुला देते हैं Ans- D 16- पर्दे पर किस की कीमत है ? A- मजाक की B- कहानी की C- अपाहिज की D- वक़्त की Ans- D 17- कैमरे वाले परदे पर अपाहिज की क्या दिखाना चाहते हैं ? A- मुस्कान B- दुःख C- जीभ D- रोने से फूली आँखें Ans- D 18- प्रस्तुतकर्ता दर्शकों को क्या रखने के लिए अनुरोध करता है ? A- धैर्य B- प्यार C- होंसला D- शांति Ans- A 19- दूरदर्शन वाले किसकी संवेदना से खिलवाड़ कर रहे हैं ? A- कैमरा वाले की B- अपाहिज की C- खुद की D- दर्शकों की Ans- B 20- दूरदर्शन पर किस उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम दिखाया जा रहा था ? A- प्रेम B- सामाजिक C- वैज्ञानिक D- आर्थिक Ans- B 21- प्रस्तुतकर्ता ‘बस करो नहीं हुआ रहने दो’ क्यों कहता है ? A- अपाहिज न रोए B- अपाहिज और दर्शक न रोए C- कैमरा खराब हो गया D- इनमे से कोई नहीं Ans- B 22- कैमरे में बंद अपाहिज कविता किस पर व्यंग्य है ? A- समाज पर B- दूरदर्शन वालों पर C- अमीरों पर D- इनमे से कोई नहीं Ans- B 23- कैमरे वाले एक और कोशिश क्यों करना चाहते हैं ? A- तस्वीर साफ़ दिखने के लिए B- अपाहिज की अपंगता को उभारने के लिए C- पैसे कमाने के लिए D- इनमे से कोई नहीं Ans- B 24- कार्यक्रम को समाप्त करते हुए प्रस्तुतकर्ता क्या करेगा ? A- रोते हुए धन्यवाद B- मुस्कुराकर धन्यवाद C- हंस कर धन्यवाद D- इनमे से कोई नहीं Ans- B 25- अब मुस्कुराएँगे हम – इस पंक्ति में हम कौन है ? A- दर्शक B- समाज C- अपाहिज D- दूरदर्शन वाले Ans- D 26- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में समर्थ शक्तिवान किसे कहा जाता है ? A- अपाहिज को B- कैमरा वाले को C- दर्शकों को D- दूरदर्शन वालों को Ans- D 27- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में फूली हुई आँख का क्या अर्थ है ? A- आँख सूजना B- आँख में चोट लगना C- रोना D- आंसुओं से भरी आँख Ans- D 28- कैमरे में बंद अपाहिज कविता में दूरदर्शन कर्मियों की किस मनोवृति को दर्शाया गया है ? A- चंचल B- अनुभवी C- संवेदनहीनता D- सहायक Ans- C 29- कैमरा वाला किन्हें साथ साथ रुलाना चाहता है ? A- भाई बहन B- दर्शक और अपाहिज C- कर्मचारियों को D- इनमे से कोई नहीं Ans- B 30- दूरदर्शन के लिए क्या आवश्यक है ? A- आलोचना B- हंसी C- संवेदना D- रोचक कार्यक्रम Ans- D बात सीधी थी पर प्रतिपादय: यह कविता ‘कोई दूसरा नहीं’ कविता-संग्रह से संकलित है। इसमें कथ्य के द्वंद्व उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की गई है। हर बात के लिए कुछ खास शब्द नियत होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हर पेंच के लिए एक निश्चित खाँचा होता है। अब तक जिन शब्दों को हम एक-दूसरे के पर्याय के रूप में जानते रहे हैं, उन सबके भी अपने अर्थ होते हैं। अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है और जब ऐसा होता है तो किसी दबाव या अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होती, वह सहूलियत के साथ हो जाता है। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है। सार: कवि का मानना है कि बात और भाषा स्वाभाविक रूप से जुड़े होते हैं। किंतु कभी-कभी भाषा के मोह में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। मनुष्य अपनी भाषा को टेढ़ी तब बना देता है जब वह आडंबरपूर्ण तथा चमत्कारपूर्ण शब्दों के माध्यम से कथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। अंतत: शब्दों के चक्कर में पड़कर वे कथ्य अपना अर्थ खो बैठते हैं। अत: अपनी बात सहज एवं व्यावहारिक भाषा में कहना चाहिए ताकि आम लोग कथ्य को भलीभाँति समझ सकें। बात सीधी थी पर… 1. शब्दार्थ: सीधी-सरल, सहज। चक्कर-प्रभाव। टेढ़ा फैसना-बुरा फँसना। येचीदा-कठिन, मुश्किल। व्याख्या: कवि कहता है कि वह अपने मन के भावों को सहज रूप से अभिव्यक्त करना चाहता था, परंतु समाज की प्रकृति को देखते हुए उसे प्रभावी भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहा। पर भाषा के चक्कर में भावों की सहजता नष्ट हो गई। कवि कहता है कि मैंने मूल बात को कहने के लिए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदला। फिर उसके रूप को बदला तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने कोशिश की कि या तो इस प्रयोग से उसका काम बच जाए या फिर वह भाषा के उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो सके, परंतु कवि को कोई भी सफलता नहीं मिली। उसकी भाषा के साथ-साथ कथ्य भी जटिल होता गया। विशेष:
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना शब्दार्थ: मुश्किल-कठिन। धैर्य-धीरज। पेंच-ऐसी कील जिसके आधे भाग पर चूड़ियाँ बनी होती हैं, उलझन। बेतरह-बुरी तरह। करतब-चमत्कार। तमाशवन-दर्शक, तमाशा देखने वाले। शाबाशी-प्रशंसा, प्रोत्साहन। व्याख्या: कवि कहता है कि जब उसकी बात पेचीदा हो गई तो उसने सारी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। हल ढूँढ़ने की बजाय वह और अधिक शब्दजाल में फैस गया। बात का पेंच खुलने के स्थान पर टेढ़ा होता गया और कवि उसे अनुचित रूप से कसता चला गया। इससे भाषा और कठिन हो गई। शब्दों के प्रयोग पर दर्शक उसे प्रोत्साहन दे रहे थे, उसकी प्रशंसा कर रहे थे। विशेष:
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था शब्दार्थ: जोर-बल । चूड़ी मरना-पेंच कसने के लिए बनी चूड़ी का नष्ट होना, कथ्य का मुख्य भाव समाप्त होना। कसाव-खिचाव, गहराई। सहूलियत-सहजता, सुविधा। बरतना-व्यवहार में लाना। प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर ’ से ली गई है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। इस कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है और बताया गया है कि चमत्कार के चक्कर में भाषा कैसे दुरूह और अप्रभावी हो जाती है। व्याख्या: कवि अपनी बात कहने
के लिए बनावटी भाषा का प्रयोग करने लगा। परिणाम वही हुआ जिसका कवि को डर था। जैसे पेंच के साथ जबरदस्ती करने से उसकी चूड़ियाँ समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार शब्दों के जाल में उलझकर कवि की बात का प्रभाव नष्ट हो गया और वह बनावटीपन में ही खो गई। उसकी अभिव्यंजना समाप्त हो गई। विशेष:
IMPORTANT QUESTIONS (अ) कविता एक खेल है बच्चों के बहाने CLICK HERE FOR PART 1:- KAVITE KE BAHANE… जीवन परिचय- कुंवर नारायण कुंवर नारायण आधुनिक हिंदी कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म 19 सितंबर, सन 1927 को फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी। विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की। इन्होंने अनेक देशों की यात्रा की है। कुंवर नारायण ने सन 1950 के आस-पास काव्य-लेखन की शुरुआत की। इन्होंने चिंतनपरक लेख, कहानियाँ सिनेमा और अन्य कलाओं पर समीक्षाएँ भी लिखी हैं। इन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया है; जैसे-कबीर सम्मान, व्यास सम्मान, लोहिया सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा केरल का कुमारन आशान पुरस्कार आदि। रचनाएँ- ये ‘तीसरे सप्तक’ के प्रमुख कवि हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्यगत विशेषताएँ: कवि ने कविता को अपने सृजन कर्म में हमेशा प्राथमिकता दी। आलोचकों का मानना है कि “उनकी कविता में व्यर्थ का उलझाव, अखबारी सतहीपन और वैचारिक धुंध की बजाय संयम, परिष्कार और साफ-सुथरापन है।” कुंवर जी नारायण नगरीय संवेदना के कवि हैं। भाषा-शैली: भाषा और विषय की विविधता इनकी कविताओं के विशेष गुण माने जाते हैं। इनमें यथार्थ का खुरदरापन भी मिलता है और उसका सहज सौंदर्य भी। सीधी घोषणाएँ और फैसले इनकी कविताओं में नहीं मिलते क्योंकि जीवन को मुकम्मल तौर पर समझने वाला एक खुलापन इनके कवि-स्वभाव की मूल विशेषता है। (क) कविता के बहाने सार: यह कविता एक यात्रा है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। एक ओर प्रकृति है दूसरी ओर भविष्य की ओर कदम बढ़ाता बच्चा। कवि कहता है कि चिड़िया की उड़ान की सीमा है, फूल के खिलने के साथ उसकी परिणति निश्चित है, लेकिन बच्चे के सपने असीम हैं। बच्चों के खेल में किसी प्रकार की सीमा का कोई स्थान नहीं होता। कविता भी शब्दों का खेल है और शब्दों के इस खेल में जड़, चेतन, अतीत, वर्तमान और भविष्य-सभी उपकरण मात्र हैं। इसीलिए जहाँ कहीं रचनात्मक ऊर्जा होगी, वहाँ सीमाओं के बंधन खुद-ब-खुद टूट जाते हैं। वह सीमा चाहे घर की हो, भाषा की हो या समय की ही क्यों न हो। कविता के बहाने प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। व्याख्या: कवि कहता है कि कविता कल्पना की उड़ान है। इसे सिद्ध करने के लिए वह चिड़िया का उदाहरण देता है। साथ ही चिड़िया की उड़ान के बारे में यह भी कहता है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है किंतु कविता की कल्पना का दायरा असीमित होता है। चिड़िया घर के अंदर-बाहर या एक घर से दूसरे घर तक ही उड़ती है, परंतु कविता की उड़ान व्यापक होती है। कवि के भावों की कोई सीमा नहीं है। कविता घर-घर की कहानी कहती है। वह पंख लगाकर हर जगह उड़ सकती है। उसकी उड़ान चिड़िया की उड़ान से कहीं आगे है। विशेष:
कविता एक खिलना हैं फूलों के बहाने प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। व्याख्या: कवि कहता है कि कविता की रचना फूलों के बहाने हो सकती है। फूलों को देखकर कवि का मन प्रफुल्लित रहता है। उसके मन में कविता फूल की भाँति विकसित होती है। फूल से कविता में रंग, भाव आदि आते हैं, परंतु कविता के खिलने के बारे में फूल कुछ नहीं जानते। विशेष:
कविता एक खेल हैं बच्चों के बहाने प्रसंग: प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से उद्धृत है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। कवि कविता की यात्रा के बारे में बताता है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक की है। व्याख्या: कवि कविता को बच्चों के खेल के समान मानता है। जिस प्रकार बच्चे कहीं भी किसी भी तरीके से खेलने लगते हैं, उसी प्रकार कवि के लिए कविता शब्दों की क्रीड़ा है। वह बच्चों के खेल की तरह कहीं भी, कभी भी तथा किसी भी स्थान
पर प्रकट हो सकती है। वह किसी भी समय अपने भावों को व्यक्त कर सकती है। विशेष:
Click Here For Part 2:- BAAT SEEDHI THI PAR… कवि परिचय – आलोक धन्वा रचनाएँ: काव्यगत विशेषताएँ: भाषा-शैली: कविता का प्रतिपादय एवं सार सार: 1. शब्दार्थ: प्रसंग: विशेष:
शब्दार्थ: व्याख्या: विशेष:
3. प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
IMPORTANT QUESTIONS
(a) छतों को भी नरम बनाते हुए (क) मृदग जैसी ध्वनि कहाँ से उत्पन्न हो रही हैं? उसका क्या प्रभाव पड़ रहा हैं? (b) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से (क) काव्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए। एक गीत सार- कवि कहता है कि साँझ घिरते ही पथिक लक्ष्य की ओर तेजी से कदम बढ़ाने लगता है। उसे रास्ते में रात होने का भय होता है। जीवन-पथ पर चलते हुए व्यक्ति जब अपने लक्ष्य के निकट होता है तो उसकी उत्सुकता और बढ़ जाती है। पक्षी भी बच्चों की चिंता करके तेजी से पंख फड़फड़ाने लगते हैं। अपनी संतान से मिलने की चाह में हर प्राणी आतुर हो जाता है। आशा व्यक्ति के जीवन में नई चेतना भर देती है। जिनके जीवन में कोई आशा नहीं होती, वे शिथिल हो जाते हैं। उनका जीवन नीरस हो जाता है। उनके भीतर उत्साह समाप्त हो जाता है। अतरू रात जीवन में निराशा नहीं, अपितु आशा का संचार भी करती है। दिन जल्दी-जल्दी ढलता है! शब्दार्थ- ढलता-समाप्त होता। यथ-रास्ता। मजिल-लक्ष्य। यथ-यात्री। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उद्धृत है। 8ईसा के रविता हरवंशराय बच्न हैं। इसगत में कवने एक जवना की कुंता तथा प्रेमा की व्याकुलता क वर्णना किया है।8 व्याख्या- कवि जीवन की व्याख्या करता है। वह कहता है कि शाम होते देखकर यात्री तेजी से चलता है कि कहीं रास्ते में रात न हो जाए। उसकी मंजिल समीप ही होती है इस कारण वह थकान होने के बावजूद भी जल्दी-जल्दी चलता है। लक्ष्य-प्राप्ति के लिए उसे दिन जल्दी ढलता प्रतीत होता है। रात होने पर पथिक को अपनी यात्रा बीच में ही समाप्त करनी पड़ेगी, इसलिए थकित शरीर में भी उसका उल्लसित, तरंगित और आशान्वित मन उसके पैरों की गति कम नहीं होने देता। विशेष-
शब्दार्थ- प्रत्याशा-आशा। नीड़-घोंसला। पर-पंख। चचलता-अस्थिरता। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित गीत ‘दिन
जल्दी-जल्दी ढलता है!’ से उद्धृत है। इस गीत के रचयिता हरिवंश राय बच्चन हैं। इस गीत में कवि ने एकाकी जीवन की कुंठा तथा प्रेम की व्याकुलता का वर्णन किया है। विशेष-
3. शब्दार्थ- विकल-व्याकुल। हित-लिए, वास्ते। चंचल-क्रियाशील। शिथिल-ढीला। यद-पैर। उर-हृदय। विह्वलता-बेचौनी, भाव आतुरता। प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित गीत ‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ से उद्धृत है। इस गीत के रचयिता हरिवंश राय बच्चन हैं। इस गीत में कवि ने एकाकी जीवन की कुंठा तथा प्रेम की व्याकुलता का वर्णन किया है। विशेष-
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