भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या - bharatamuni ke ras sootr kee vyaakhya

भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र नामक ग्रंथ लिखा । इनका समय विवादास्पद है। इन्हें 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। भरत बड़े प्रतिभाशाली थे। इतना स्पष्ट है कि भरतमुनि नाट्यशास्त्र के गहन जानकार और विद्वान थे । इनके द्वारा रचित ग्रंथ 'नाट्यशास्त्र' भारतीय नाट्य और काव्यशास्त्र का आदिग्रन्थ है। इसमें सर्वप्रथम रस सिद्धांत की चर्चा तथा इसके प्रसिद्ध सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है| इसमें नाट्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, छंदशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था । देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरतमुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योंकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियों को काव्यशास्त्र का उपदेश दिया। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं भरतमुनि का नाट्यशास्त्र नाट्य कला से संबंधि प्राचीनतम् ग्रंथ है। इसके प्रसिद्ध सूत्र -'विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:" की स्थापना की गयी है। इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छन्दशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है। भरतमुनि का नाट्यशास्त्र अपने विषय का आधारभूत ग्रन्थ माना जाता है। कहा गया है कि भरतमुनि रचित प्रथम नाटक का अभिनय, जिसका कथानक 'देवासुर संग्राम' था, देवों की विजय के बाद इन्द्र की सभा में हुआ था। आचार्य भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र की उत्पत्ति ब्रह्मा से मानी है क्योंकि शंकर ने ब्रह्मा को तथा ब्रह्मा ने अन्य ऋषियों को काव्यशास्त्र का उपदेश दिया। विद्वानों का मत है कि भरतमुनि रचित पूरा नाट्यशास्त्र अब उपलब्ध नहीं है। जिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफी क्षेपक बताते हैं।

स्थायी भाव विभाव अनुभाव व्यभिचारी भाव

Solution : भरत मुनि ने रस का उल्लेख अपने प्रसिद्ध ग्रंथ नाट्यशास्त्र में किया था। उनका रस सूत्र यह है की विभवानुभवतयभिचारी संयोगाद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

इसे सुनेंरोकेंभरतमुनि के अनुसार रस की परिभाषा, “विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की उत्पत्ति होती है।” इनके अतिरिक्त काव्यप्रकाश के रचयिता मम्मट भट्ट के अनुसार, “आलम्बन विभाव से उद्बुद्ध, उद्दीपन से उद्दीपित, व्यभिचारी भावों से परिपुष्ट तथा अनुभाव द्वारा व्यक्त ह्रदय का स्थाई भाव ही रस दशा को प्राप्त होता है।”

भारत का रस सूत्र क्या है?

इसे सुनेंरोकेंभरतमुनि के रस सूत्र के अनुसार, “विभावानुभावव्यभिचारि संयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अथार्त विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों (स्थायीभाव) के संयोग से रस निष्पति होती है। ‘निष्पत्ति’ शब्द का प्रथम प्रयोग भरत मुनि ने रस सूत्र में किया। शंकुक के अनुसार भरतमुनि के रस-सूत्र में आये ‘संयोग’ शब्द का अर्थ अनुमान है।

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भरतमुनि के रस सूत्र के प्रमुख व्याख्याकार आचार्य कितने हैं?

इसे सुनेंरोकेंआचार्य भट्ट नायक रस सूत्र के तीसरे व्याख्याता है। इन्होंने सांख्य दर्शन के आधार पर भरतमुनि के रस सूत्र को विश्लेषित किया है। इनका सिद्धांत भुक्तिवाद कहलाता है। इनके अनुसार रस की न तो उत्पत्ति होती है और न अनुमिति होती है अपितु रस की भुक्ति होती है।

भरत मुनि ने कितने रस माने हैं?

इसे सुनेंरोकें’नाट्यशास्त्र’ में भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है- श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत।

भक्ति रस के प्रतिष्ठापक आचार्य कौन है?

इसे सुनेंरोकेंदूसरे शब्दों में, विभाव, अनुभाव व व्यभिचारी (संचारी) भाव को परिधीय स्थिति और स्थायी भाव को केन्द्रीय स्थिति प्राप्त है। (4) रस-संप्रदाय के प्रतिष्ठापक आचार्य, मम्मट (11 वी० सदी) ने काव्यानंद को ‘ब्रह्मानंद सहोदर’ (ब्रह्मानंद- योगी द्वारा अनुभूत आनंद) कहा है।

रस सूत्र के जनक कौन है?

इसे सुनेंरोकेंजिस रूप में वह उपलब्ध है, उसमें लोग काफ़ी क्षेपक बताते हैं भरतमुनि का नाट्यशास्त्र नाट्य कला से संबंधि प्राचीनतम् ग्रंथ है। इसके प्रसिद्ध सूत्र -‘विभावानुभाव संचारीभाव संयोगद्रस निष्पति:” की स्थापना की गयी है। इसमें नाट्यशास्त्र, संगीत-शास्त्र, छन्दशास्त्र, अलंकार, रस आदि सभी का सांगोपांग प्रतिपादन किया गया है।

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भरतमुनि के रस सूत्र में किसका उल्लेख है?

इसे सुनेंरोकेंभरत मुनि ने रस का उल्लेख अपने प्रसिद्ध ग्रंथ नाट्यशास्त्र में किया था। उनका रस सूत्र यह है की विभवानुभवतयभिचारी संयोगाद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभव, अनुभाव और व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।

भट्ट लोल्लट के रस निष्पत्ति सिद्धांत का नाम क्या है?

इसे सुनेंरोकेंभट्टलोल्लट : उत्पत्तिवाद (आरोपवाद) इस सिध्दांत को ‘आरोपवाद’ अथवा ‘उत्पत्तिवाद’ कहा जाता है। आझेप शंकुक ने कहा कि भट्ट लोल्लट का यह सिध्दांत कि ‘सामाजिक नायक-नायिका द्वारा अनुभूत रस का आस्वादन नट-नटी के माध्यम से प्राप्त करता है।

भरतमुनि का रस सूत्र क्या है?

इसे सुनेंरोकेंरस का शाब्दिक अर्थ है आनंद । काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है। काव्यप्रकाश के रचयिता मम्मटभट्ट ने कहा है कि आलम्बनविभाव से उदबुद्ध, उद्यीप्त, व्यभिचारी भावों से परिपुष्ट तथा अनुभाव द्वारा व्यक्त हृदय का स्थायी भाव ही रस-दशा को प्राप्त होता है।

भरतमुनि का रस सूत्र क्या है?

भरतमुनि के रस सूत्र के अनुसार, “विभावानुभावव्यभिचारि संयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अथार्त विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी भावों (स्थायीभाव) के संयोग से रस निष्पति होती है। 'निष्पत्ति' शब्द का प्रथम प्रयोग भरत मुनि ने रस सूत्र में किया।

भरत मुनि ने कितने रस माने हैं?

'नाट्यशास्त्र' में भरतमुनि ने रसों की संख्या आठ मानी है- श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत।

भरत मुनि के रस सूत्र में निम्नलिखित में से किसका उल्लेख नहीं है?

Detailed Solution. अत: स्थायी भाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव तीनो भरत के सिद्धांतो में सम्मिलित है, इसलिए यह सही विकल्प नही है।

भारत प्रणित रास सूत्र के प्रथम व्याख्या कर कौन थे?

1. आचार्य भट्ट लोल्लट | Acharya Bhatt Lollat. भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या करने वाले पहले आचार्य हैं।