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परमाणु अप्रसार सन्धि में देशों की सहभागिता
परमाणु अप्रसार संधि (अंग्रेज़ी:नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी) को एनपीटी के नाम से जाना जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के साथ-साथ परमाणु परीक्षण पर अंकुश लगाना है। १ जुलाई १९६८ से इस समझौते पर हस्ताक्षर होना शुरू हुआ। अभी इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों की संख्या १९0 है। जिसमें पांच के पास नाभिकीय हथियार हैं। ये देश हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन। सिर्फ पांच संप्रभुता संपन्न देश इसके सदस्य नहीं हैं। ये हैं- भारत, इजरायल, पाकिस्तान द.सुदान और उत्तरी कोरिया। एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है। जो इसके दोहरे मापदंड को प्रदर्शित करती है। इस संधि का प्रस्ताव आयरलैंड ने रखा था और सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला राष्ट्र है फिनलैंड। इस संधि के तहत परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र उसे ही माना गया है जिसने १ जनवरी १९६७ से पहले परमाणु हथियारों का निर्माण और परीक्षण कर लिया हो। इस आधार पर ही भारत को यह दर्जा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नहीं प्राप्त है। क्योंकि भारत ने पहला परमाणु परीक्षण १९७४ में किया था। उत्तरी कोरिया ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर किये, इसका उलंघन किया और फिर इससे बाहर आ गया। सन्धि के मुख्य स्तम्भ[संपादित करें]
इन्हें भी दखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]भारत में 1968 की परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से क्यों मना कर दिया था?दरअसल, एनपीटी के तहत भारत को परमाणु संपन्न देश की मान्यता नहीं दी गई है. संधि के अनुसार परमाणु संपन्न देश का दर्जा केवल उन्हीं देशों को दिया गया है, जिन्होंने 1967 से पहले परमाणु परीक्षण किया हो, जबकि भारत ने पहली बार परमाणु परीक्षण 1974 में किया था. इसी भेदभाव के कारण भारत ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए.
भारत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करता है?परमाणु अप्रसार संधि का मौजूदा ढाँचा भेदभावपूर्ण है और परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों के हितों का पोषण करता है। यह परमाणु खतरे के साए तले जी रहे भारत जैसे देशों के हितों की अनदेखी करता है। भारत के अनुसार, वे कारण आज भी बने हुए हैं जिनकी वज़ह से भारत ने अब तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कब हुआ?परिचय: NPT एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियार और हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना और निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है। इस पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किया गया था और यह वर्ष 1970 से प्रवर्तित हुआ।
भारत ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किया?मगर आशा के अनुरूप परिणाम नहीं आने पर भारत ने 1968 में नॉन प्रॉलिफरेशन ट्रीटी का बहिष्कार कर दिया। भारत का यह मानना है कि इस संधि के बिंदु परमाणु संपन्नता को लेकर देशों के बीच भेदभाव करने वाले हैं। यही वजह है कि भारत ने अभी तक सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है।
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