भारत में सार्वजनिक व्यय के वृद्धि के क्या कारण है विस्तार से समझाइए? - bhaarat mein saarvajanik vyay ke vrddhi ke kya kaaran hai vistaar se samajhaie?

भारत में सार्वजनिक व्यय के वृद्धि के क्या कारण है विस्तार से समझाइए? - bhaarat mein saarvajanik vyay ke vrddhi ke kya kaaran hai vistaar se samajhaie?

भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के प्रमुख कारण | The main reasons for the increase in public expenditure in India are in Hindi

  • भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण-
    • सुरक्षा व्यय में वृद्धि-
    • (1) मूल्यों में वृद्धि-
    • (2) जनसंख्या में वृद्धि-
    • (3) राज्यों की बढ़ती हुई कार्यशीलता-
    • (4) कल्याणकारी क्रियायें-
    • (5) आर्थिक नियोजन-
    • (6) राज्यों के कार्यों में वृद्धि-
    • (7) ब्याज भुगतान-
    • (8) उत्पादकों की आर्थिक सहायता –
    • (9) आवश्यकताओं की सामूहिक संतुष्टि पर बल-
    • (10) अविकसित देशों की सहायता-
    • (11) आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य-
    • (12) अनुदान राशि-
    • (13) स्थानीय व सामाजिक समस्यायें-
      • अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

भारत में सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण-

सुरक्षा व्यय में वृद्धि-

आधुनिक भारत में सुरक्षा अभियान में बहुत अधिक वृद्धि होता जा रहा है। अणु शक्ति के विकास, जल तथा वायु सेना के उपयोग और युद्ध की विशलता के कारण युद्ध का काल्पनिक हो गया है। सरकार द्वारा कुछ पीड़ित व्यक्तियों व उनके परिवारों की देखभाल करना तथा उनकी शिक्षा पुनर्वासन आदि का उत्तरदायित्व स्वीकार कर लेने के कारण सरकार की युद्ध सम्बन्धी लागतें बढ़ गई हैं।

गत वर्षों में पाकिस्तान तथा चीन के आक्रमणों के कारण भारत को भी अपनी प्रतिरक्षा व्यय बढ़ाना पड़ा है। स्वतन्त्रता प्राप्त के पश्चात् भारत में जहाँ 1950-51 में केवल 169 करोड़ रुपये खर्च हुए वहीं 1980-81 में सुरक्षा व्यय बढ़कर 3800 करोड़ रुपये, 1991-92 में 16,350 रुपये तथा 1998-99 के बजट में इस मद पर 41,200 करोड़ रुपये खर्च करने की व्यवस्था की गयी।

(1) मूल्यों में वृद्धि-

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् से लगभग प्रत्येक देश के मूल्य स्तर में बहुत वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के फलस्वरूप भी सरकारी व्यय में बढ़ोत्तरी हो गई है, क्योंकि राज्य को भी व्यक्तियों के समान वस्तुओं व सेवाओं का क्रय करना पड़ता है। वर्ष 1981-82 को आधार वर्ष मानकर मार्च 1994 में सूचकांक बढ़कर 255 हो गया। वर्ष 1989-90 से मँहगा की दर 6.6 प्रतिशत थी जो 1990-91 में बढ़कर 10 प्रतिशत से अधिक हो गयी थी।

(2) जनसंख्या में वृद्धि-

संसार के लगभग सभी देशों में जनसंख्या में वृद्धि होती जा रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान, संसार की जनसंख्या 50 वर्षों में 150 करोड़ से बढ़कर 400 करोड़ से भी अधिक पैदा हो गई है। जनसंख्या में वृद्धि का प्रभाव राजकीय व्यय पर पड़ता ह और प्रत्येक मद पर सरकारी व्यय में वृद्धि होती जाती है। भारतवर्ष की जनसंख्या का तीव्र वृद्धि का सीधा प्रभाव राजकीय व्यय पर पड़ता है और प्रत्येक मद पर सरकारी व्यय में वृद्धि होती जाती है।

(3) राज्यों की बढ़ती हुई कार्यशीलता-

व्यक्तिगत संस्थाओं की अपेक्षा सरकारी अधिकारी की कार्यकुशलता में अधिक वृद्धि हो गई है। निजी संस्थायें लाभ को अधिक महत्व देती हैं, जबकि संस्थाओं में समाज-कल्याण व समाज सेवा का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।

(4) कल्याणकारी क्रियायें-

आधुनिक राज्य कल्याणकारी होते हैं। सरकार अपनी क्रियाओं में अल्प आय वाले व्यक्तियों के रहन-सहन के स्तर में वृद्धि करने का सदैव प्रयत्न करती है। इस प्रकार के कार्यों में बेकारी, सीमा, स्वास्थ्य बीमा, प्रसव और पेंशन आदि सामाजिक सुरक्षा, सम्बन्धित कार्य सम्मिलित हैं। इन सबसे सरकार के उत्तरदायित्व में वृद्धि हुई है और सार्वजनिक व्यय में भी पर्याप्त वृद्धि हुयी है।

(5) आर्थिक नियोजन-

आधुनिक युग में प्रायः सभी अर्द्ध-विकसित राष्ट्र नागरिकों के जीवन-स्तर और देश की आर्थिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए आर्थिक नियोजन का सहारा ले रहे हैं। आर्थिक नियोजन की प्रक्रिया अपना लेने पर सरकारी व्यय की मात्रा का बढ़ जाना स्वाभाविक है।

(6) राज्यों के कार्यों में वृद्धि-

19वीं शताब्दी के अन्त में राज्य की क्रियाओं में वृद्धि का नियम बनाया गया था, जिसके अनुसार विकासशील व्यक्तियों के समाज में, सरकारो के कार्यों में निरन्तर वृद्धि होती रहती है। यह वृद्धि विस्तृत तथा गहन दोनों ही प्रकार से होती है। केन्द्रीय व स्थानीय सरकारें निरन्तर नये कार्यों को अपने हाथों में लेती हैं और वे पुराने व नये दोनों ही प्रकार के कार्यों को पूर्ण रूप से सम्पन्न करती हैं।

(7) ब्याज भुगतान-

भारत के आर्थिक विकास के लिए केन्द्र सरकार को विदेशों  से भारी मात्रा में ऋण लेना पड़ा। यह ऋण निरन्तर बढ़ता ही जा रहा है। इस ऋण पर सरका को भारी मात्रा में ब्याज चुकाना पड़ता है। बढ़ते प्रक्षण के साथ ब्याज के भुगतान की यह राशि भी निरन्तर बढ़ रही है।

(8) उत्पादकों की आर्थिक सहायता –

कृषि और औद्योगिक विकास के लिए आज लगभग प्रत्येक राज्य को काफी मात्रा में धन (कृषकों व उद्योगपतियों को ऋण, अनुदान, यान्त्रिक सहायता आदि के रूप में व्यय) करना पड़ रहा है, जिससे सार्वजनिक व्यय में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।

(9) आवश्यकताओं की सामूहिक संतुष्टि पर बल-

आजकल आवश्यकताओं की सामूहिक दृष्टि को अधिक महत्व दिया जाता है, पहले अधिकांश कार्य विभिन्न व्यक्तियों द्वारा किये जाते थे, परन्तु आज के कार्य सामूहिक रूप में किये जाते हैं। ऐसा करने से व्यय भी कम होता है तथा जनता को सुविध भी अधिक होती है। पानी, बिजली, यातायात आदि कार्य विभिन्न व्यक्तियों को करने के लिए दे दिये जाते हैं तो बड़े पैमाने की उत्पत्ति को लाभ प्राप्त नहीं हो सकते हैं। अतः राज्यों के कार्यों में वृद्धि हुई है और सार्वजनिक व्यय भी अधिक बढ़ गया है।

(10) अविकसित देशों की सहायता-

विगत कुछ वर्षों में उन्नत राष्ट्रों ने अपनी आय का एक भाग अविकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास में लाना आरम्भ कर दिया है। उदाहरण के लिए रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा आदि देश अपनी आय का कुछ भाग अविकसित देशों को आर्थिक सहायता देने में लगाते हैं। इस कारण से भी राष्ट्रों के सरकारी व्यय में वृद्धि हुई है।

(11) आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य-

पूँजवादी देशों की एक मुख्य विशेषता यह है कि वहाँ समय-समय पर तेजी व मन्दी होने के कारण आर्थिक स्थिरता की दशा बनी रहती है। सरकारी व्यय में वृद्धि के कारण सरकार द्वारा इस आर्थिक अस्थिरता को दूर करने प्रयत्न भी है।

(12) अनुदान राशि-

केन्द्र सरकार राज्यों एवं केन्द्रशासित प्रदेशों को अनुदान देती है। अनुदान की इस राशि में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

(13) स्थानीय व सामाजिक समस्यायें-

कभी-कभी किसी देश के सामने कुछ स्थानीय व सामाजिक समस्यायें आ जाती हैं जिनका तत्कालीन समाधान आवश्यक हो जाता है और उनके समाधान के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए शरणार्थियों के पुनर्वास की समस्या।

उपरोक्त सभी कारणों से सार्वजनिक व्यय में वृद्धि होती जा रही है और वर्तमान विचारधारा अनुसार इसे समाज के लिए अच्छा समझा जाता है परन्तु फिर भी सार्वजनिक व्ययं की अनिश्चित सीमा तक बढ़ाना उचित नहीं होगा। सार्वजकि व्यय की क्या सीमा होनी चाहिए अर्थात् राष्ट्रीय आय का अधिक से अधिक कितना प्रतिशत व्यय किया जाये, इसका उत्तर देना सरल कार्य नहीं है। किसी देश के सार्वजनिक व्यय की मात्रा उस देश की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। अर्थात् देश की जनसंख्या, आर्थिक विकास की दशायें, सरकार के प्रति जनता का विश्वास, लोगों की करदान- क्षमता, सरकार के उद्देश्य तथा कर्तव्य, लोगों में देश भक्ति की भावना आदि अनेक कारण हैं जो सार्वजनिक व्यय की मात्रा को प्रभावित करते हैं।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक
  • अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त | अधिकतम सामाजिक लाभ के सिद्धान्त के मुख्य तत्त्व
  • सार्वजनिक व्यय का अर्थ | सार्वजनिक व्यय या लोकव्यय के विभिन्न सिद्धान्त | भारत में लोक व्यय के सिद्धान्तों का पालन
  • भारत में सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्त | Principles of Public Expenditure in India in Hindi
  • सार्वजनिक व्यय के वर्गीकरण का अर्थ | अच्छे वर्गीकरण की विशेषताएँ | लोक-व्यय का वर्गीकरण
  • सार्वजनिक व्यय के प्रभाव | सार्वजनिक व्यय के उत्पादन एवं वितरण पर पड़ने वाले आर्थिक प्रभाव
  • डॉ० डाल्टन का सार्वजनिक व्यय के प्रभावों का वर्गीकरण | Dr. Dalton’s Classification of Effects of Public Expenditure in Hind

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भारत में सार्वजनिक व्यय के वृद्धि के क्या कारण हैं विस्तार से समझाइए?

किसी देश के सार्वजनिक व्यय की मात्रा उस देश की परिस्थितियों पर निर्भर करती है। अर्थात् देश की जनसंख्या, आर्थिक विकास की दशायें, सरकार के प्रति जनता का विश्वास, लोगों की करदान- क्षमता, सरकार के उद्देश्य तथा कर्तव्य, लोगों में देश भक्ति की भावना आदि अनेक कारण हैं जो सार्वजनिक व्यय की मात्रा को प्रभावित करते हैं

सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के कारण क्या है?

सरकारी व्यय के विस्तार का एक प्रमुख कारण जनसंख्या का बढ़ना है। देश की जनसंख्या के बढ़ने के साथ-साथ सरकार के कार्यों तथा उत्तरदायित्वों में वृद्धि होना भी स्वाभाविक है। सरकार को बढ़ती हुई जनसंख्या के लिये और अधिक शिक्षा, चिकित्सा, नागरिक सुविधा, कृशि व औद्योगिक विकास तथा रोजगार की व्यवस्था का भार उठाना पड़ता है।

भारत में सार्वजनिक व्यय क्यों बढ़ रहा है?

वर्तमान युग में सार्वजनिक व्यय में तीव्र वृद्धि का मूल कारण आर्थिक स्थायित्व हेतु उत्पादन, वितरण एवं रोजगार के स्तर में मानक प्राप्त करना हो चुका है। फलतः औद्योगिक इकाइयों की स्थापना, खनिज एवं कृषि क्षेत्र पर सार्वजनिक व्यय बढ़ता जा रहा है।

सार्वजनिक व्यय क्या है भारतीय अर्थव्यवस्था पर सार्वजनिक व्यय का क्या प्रभाव पड़ रहा है?

सार्वजनिक व्यय से लोगों के स्वास्थ्य व कार्य क्षमता में वृद्धि होती हे, उससे उत्पादन में वृद्धि होती है। जब सरकार व्यय के फलस्वरूप लोगों को सुविधाएं प्रदान करती है तो उससे उत्पादन भी बढ़ता हे। जैसे परिवहन, विद्युत, प्रशिक्षण आदि सुविधाओं के विस्तार से उत्पादन बढ़ता है।