भारत में निम्न स्वास्थ्य के क्या कारण है समझाइए? - bhaarat mein nimn svaasthy ke kya kaaran hai samajhaie?

हमारे देश में स्वास्थ्य सेवा की दशा संसाधनों के अभाव में बहुत बुरी है। स्वास्थ्य सेवा पर खर्च भी मात्रात्मक एवं गुणात्मक दृष्टि से विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक से काफी नीचे है। मसलन, डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्रति हजार लोगों पर अस्पतालों में बिस्तर की संख्या 3.5 होनी चाहिए, जबकि हमारे यहां 1.5 से भी कम है, उसी तरह प्रति हजार लोगों पर 2.5 डॉक्टर होने चाहिए, जबकि हमारे यहां तकरीबन 1.8 डॉक्टर हैं और निम्न आय वाले देशों में लोगों को स्वास्थ्य पर जहां अपनी जेब से औसतन 40 फीसदी के करीब खर्च करना पड़ता है, वहीं हमारे यहां 60 फीसदी खर्च होता है। ग्रामीण भारत की स्थिति तो और भी खराब है, तकरीबन 30 फीसदी ग्रामीण आबादी को इलाज के लिए 30 किलोमीटर दूर तक जाना पड़ता है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़ी चुनौतियां सामने हैं। स्वास्थ्य संकेतकों की खाई लगातार बढ़ रही है और जीडीपी के मुकाबले स्वास्थ्य खर्च धीमी गति से बढ़ रहा है। स्वास्थ्य पर व्यक्तिगत खर्च बढ़ता जा रहा है और बुनियादी ढांचों की कमी बहुत ज्यादा है। स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में असमानता तो है ही, इस क्षेत्र में कर्मियों की संख्या अपर्याप्त है और उनका सही तरीके से उपयोग भी नहीं हो पा रहा है। कम वेतन, अपर्याप्त प्रोत्साहन, करियर में बढ़ोतरी का अभाव, अपर्याप्त प्रशिक्षण एवं असंगत नीतियों के चलते अधिकतर चिकित्सा सेवाकर्मी सरकारी स्वास्थ्य क्षेत्र में नहीं आना चाहते। हमारे यहां विविध तरह के डॉक्टर हैं, पर नियामक तंत्र पुराने ढर्रे पर चल रहा है, जिससे सार्वजनिक-निजी सहयोग बहुत कमजोर स्थिति में है। नतीजतन संक्रामक एवं पुराने रोग बदस्तूर कायम हैं। खाद्य सुरक्षा, स्वच्छता, कूड़ा निष्पादन एवं स्वास्थ्य बंदोबस्त से संबंधित एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का अभाव भारत में बीमारियों के बोझ का प्रमुख कारण है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के जरिये जहां तक संभव हो सके, लोगों को न्यूनतम मानकों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना इसका एक समाधान है। पूर्व सोवियत संघ में इसे 1937 में लागू किया गया था, जिसे करीब एक दशक बाद ब्रिटेन ने भी अपनाया। ज्यादातर देशों में इसे विशिष्ट शुल्क, निजी भुगतान के पूरक और सामान्य कर से चलाया जाता है। थाईलैंड का उदाहरण देखिए, वहां उपलब्ध सभी स्वास्थ्य कार्यक्रमों को मिलाकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए वित्त उपलब्ध कराया गया, इससे नवजात मृत्यु दर (प्रति हजार पर 11) में कमी और जीवन प्रत्याशा (75 वर्ष से अधिक) में वृद्धि देखी गई। इससे वहां अमीरों और गरीबों के बीच की खाई कम करने में मदद मिली।

हमारे यहां सरकार को जवाबदेह भूमिका निभाने की जरूरत है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान केंद्रित करते हुए राजनीतिक समर्थन एवं कठिन विकल्पों पर आम सहमति के साथ सुरक्षित दीर्घकालीन निवेश से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धि हासिल की जा सकती है। एक प्रभावी नियामक ढांचा तैयार करके और केंद्र व राज्यों में सुसंगत नीति बनाकर स्वास्थ्यकर्मियों की कमी दूर की जा सकती है, और साथ ही, गांव, शहर एवं जिला स्तर पर एकीकृत स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में सुधार करते वक्त मरीजों के हित ध्यान में रखे जाने चाहिए।

भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने में निजी क्षेत्र मदद कर सकता है। हमारे यहां स्वास्थ्य शिक्षा से संबंधित सुविधा शहर-केंद्रित है, जिसके विस्तार की जरूरत है। लेकिन तेजी से मान्यता नहीं दिए जाने पर निजी क्षेत्र के कुछ लोग ही इसका फायदा उठाएंगे, जिसके फलस्वरूप वहां पढ़ने वाले छात्र संतुष्ट नहीं होंगे, उन्हें लंबे समय तक अस्पतालों में रुकने को कहा जाएगा एवं कुप्रबंधन जैसी समस्याएं उत्पन्न होंगी।

अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को मान्यता प्रदान करने वाले राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड को मान्यता लेने के लिए प्रोत्साहित करने एवं इसे अनिवार्य प्रक्रिया बनाने के लिए कुछ उत्साहजनक कदम उठाने की जरूरत है। पीपीपी या बीओटी या ओ ऐंड एम करार योजनाओं के जरिये स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में निजी पूंजी को आमंत्रित किया जा सकता है। आबादी बढ़ने के साथ गैर संक्रामक बीमारियां एवं जीवन-शैली से संबंधित रोग बढ़ेंगे। निजी-सार्वजनिक भागीदारी के तहत सस्ते इलाज की पेशकश से महत्वपूर्ण फायदा होगा। नैनीताल में आयुष ग्राहम बहावली परियोजना बीओटी के तहत चल रही है, जो वैकल्पिक दवा एवं किफायती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करा रही है। इस योजना के लिए सरकार ने भूमि उपलब्ध कराई है।

निजी क्षेत्र के जरिये स्वास्थ्य बीमा को आदर्श बनाना चाहिए। हालांकि स्वास्थ्य बीमा बाजार प्रतिकूल चयन एवं नैतिक आपदा जैसे मुद्दों के चलते बदहाल है। बीमा प्रीमियम लगातार बढ़ता जाता है, क्योंकि उसे खरीदने वाले कुछेक उच्च जोखिम ही बीमा के लिए चुनते हैं। लोग वैसी पॉलिसी चुनते हैं, जिनमें उन्हें कम प्रीमियम देना पड़े। यही वजह है कि बहुत से लोग बीमा से वंचित रहते हैं। स्वास्थ्य बीमा का विस्तार कर स्वास्थ्य पर लोगों के खर्च को घटाया जा सकता है। इसमें सरकार सेवा प्रदान करने के बजाय गारंटर या प्रीमियम भुगतान करने वाले की भूमिका निभा सकती है।

सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के लिए सस्ती दवा जरूरी है। दवा उपलब्ध कराने वाली कंपनियों को मूल्यों में कमी करनी चाहिए और स्वास्थ्य सेवा विस्तार का लाभ उठाना चाहिए। सार्वजनिक हित से निजी हित भी सध सकते हैं। सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य आश्वासन मिशन की घोषणा की है, उम्मीद करनी चाहिए कि सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा और सस्ती दवाओं को बढ़ावा दिया जाएगा।

-लेखक भाजपा के लोकसभा सदस्य हैं

भारत में निम्न स्वास्थ्य के क्या कारण है समझाइये?

खाद्य सुरक्षा, स्वच्छता, कूड़ा निष्पादन एवं स्वास्थ्य बंदोबस्त से संबंधित एकीकृत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का अभाव भारत में बीमारियों के बोझ का प्रमुख कारण है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल के जरिये जहां तक संभव हो सके, लोगों को न्यूनतम मानकों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना इसका एक समाधान है।

भारत में स्वास्थ्य की समस्या क्या है?

भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ: स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित सबसे प्रमुख चुनौती है आबादी के अनुपात में अस्पतालों और डॉक्टरों की कमी। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं, आधारभूत संरचना, दवाइयों, कुशल व प्रशिक्षित नर्सिंग स्टाफ एवं अन्य सुविधाओं की भारी कमी है।

निजी स्वास्थ्य सेवाओं से आप क्या समझते हैं?

निजी या स्वतंत्र स्वास्थ्य सेवा केंद्र उन अस्पतालों और क्लीनिकों से बना है, जो राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा मिशन से सीधे तौर पर संचालित नहीं होते है । इस तरह के हॉस्पिटल समान्यता किसी बड़ी प्राइवेट कंपनी द्वारा संचालित होते है , और कुछ दान या अन्य गैर-लाभकारी संगठनों द्वारा भी चलाए जा सकते हैं।

भारत में आमतौर पर स्वास्थ्य सेवाएँ कौन कौन से स्तर की होती है?

भारत में उपचार की विभिन्न पद्धतियों में स्वास्थ्य सेवाओं के अलग-अलग स्तर हैं : सामुदायिक स्वास्थ्य कर्मचारी, पारम्परिक उपचारक, स्वास्थ्य केन्द्र तथा अस्पताल। इन सभी को एक साथ “ स्वास्थ्य सेवा तंत्र “ कहा जाता है। स्वास्थ्य सेवा तंत्र में स्वास्थ्य कर्मचारी, डॉक्टर, नर्सें तथा अन्य सम्मिलित होते हैं।