रावण ने धनुष क्यों नहीं उठाया? - raavan ne dhanush kyon nahin uthaaya?

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल आता है कि जब रावण कैलाश पर्वत उठा सकता है तो शिव का धनुष कैसे नहीं उठा पाया और भगवान राम ने कैसे उस धनुष को उठाकर तोड़ दिया? आओ इस सवाल का जवाब जानते हैं।


ऐसा था धनुष : भगवान शिव का धनुष बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कारिक था। शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। यह धनुष बहुत ही शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी और देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज इन्द्र को सौंप दिया गया था।

देवताओं ने राजा जनक के पूर्वज देवराज को दे दिया। राजा जनक के पूर्वजों में निमि के ज्येष्ठ पुत्र देवराज थे। शिव-धनुष उन्हीं की धरोहरस्वरूप राजा जनक के पास सुरक्षित था। उनके इस विशालकाय धनुष को कोई भी उठाने की क्षमता नहीं रखता था, लेकिन भगवान राम ने इसे उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और इसे एक झटके में तोड़ दिया।

श्रीराम चरितमानस में एक चौपाई आती है:-

"उठहु राम भंजहु भव चापा, मेटहु तात जनक परितापाI"

भावार्थ- गुरु विश्वामित्र जनकजी को बेहद परेशान और निराश देखकर श्री रामजी से कहते हैं कि हे पुत्र श्रीराम उठो और "भव सागर रुपी" इस धनुष को तोड़कर, जनक की पीड़ा का हरण करो।"

इस चौपाई में एक शब्द है 'भव चापा' अर्थात इस धनुष को उठाने के लिए शक्ति की नहीं बल्कि प्रेम और निरंकार की जरूरत थी। यह मायावी और दिव्य धनुष था। उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की जरूरत थी। कोई अहंकारी उसे नहीं उठा सकता था।

रावण एक अहंकारी मनुष्‍य था। वह कैलाश पर्वत तो उठा सकता था लेकिन धनुष नहीं। धनुष को तो वह हिला भी नहीं सकता था। वन धनुष के पास एक अहंकारी और शक्तिशाली व्यक्ति का घमंड लेकर गया था। रावण जितनी उस धनुष में शक्ति लगाता वह धनुष और भारी हो जाता था। वहां सभी राजा अपनी शक्ति और अहंकार से हारे थे।

जब प्रभु श्रीराम की बारी आई तो वे समझते थे कि यह कोई साधारण धनुष नहीं बल्की भगवान शिव का धनुष है। इसीलिए सबसे पहले उन्हों धनुष को प्रणाम किया। फिर उन्होंने धनुष की परिक्रमा की और उसे संपूर्ण सम्मान दिया। प्रभु श्रीराम की विनयशीलता और निर्मलता के समक्ष धनुष का भारीपन स्वत: ही तिरोहित हो गया और उन्होंने उस धनुष को प्रेम पूर्वक उठाया और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे झुकाते ही धनुष खुद ब खुद टूट गया।

कहते हैं कि जिस प्रकार सीता शिवजी का ध्यान कर सहज भाव बिना बल लगाए धनुष उठा लेती थी, उसी प्रकार श्रीराम ने भी धनुष को उठाने का प्रयास किया और सफल हुए।

रावण ने धनुष क्यों नहीं उठाया था?

उसे उठाने के लिए दैवीय गुणों की आवश्यकता थी… एक रावण जैसा अहंकारी जिसने भगवान शिव सहित कैलाश तक उठा लिया था वह भी उसे हिला तक न सका.. क्यूंकि अहंकार ही तो था जो धनुष को भारी बना रहा था..

भगवान राम के धनुष का वजन कितना था?

इसका रूप कुछ भी हो सकता है परंतु इसका वजन 2,000 पल (100 किलो) होता है। शास्त्रों में इस धनुष की लंबाई 7 पर्व भी बताई गई है। इसे देवताओं का धनुष कहा जाता है जिस से छोड़ा गया वहां कभी निष्फल नहीं जाता।

रावण ने कैलाश पर्वत को कैसे उठाया?

उसने भगवान शिव को युद्ध के लिए ललकारा। लेकिन जब शिवशंभू ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया और ध्यान मग्न बैठे रहे तो रावण ने उन्हें कैलाश सहित उठाकर फेंकने का मन बनाया और वह पर्वत उखाड़ने लगा। रावण की इस धूर्तता पर भगवान शिव ने केवल अपने अंगूठे के बल से कैलाश को स्थिर कर दिया और रावण का हाथ पर्वत के नीचे दब गया।

राम से धनुष क्यों टूटा?

प्रभु श्रीराम ने राजा जनक के पुत्री सीता जी के स्वयंबर में शर्तो के अनुसार ही भगवान शिव का वह धनुष जो ऋषि परशुराम जी ने राजा जनक के पास रखवाया था उस धनुष को प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए जैसे ही उठाया तब वह धनुष टूट गया। भगवान शिव का उस धनुष का नाम पिनाक था।