भारत में कुल कितने स्तूप है? - bhaarat mein kul kitane stoop hai?

सांची एक ऐसी जगह है जो इतिहास के प्रेमियों के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी है। सांची केवल बौद्ध धर्म को समर्पित नहीं है यहां जैन और हिन्दु धर्म से सम्बंधित साक्ष्य मौजूद हैं। मौर्य और गुप्तों के समय के व्यापारिक मार्ग में स्थित होने के कारण इसकी महत्ता बहुत थी और आज भी है। सांची अपने आंचल में बहुत सारा इतिहास समेटे हुए है।



विदिशा जिले से मात्र दस किमी दूर स्थित सांची अपने बौद्ध स्तूपों के लिए प्रसिद्ध है। यह यूनेस्को के विश्व विरासत स्थल में शामिल है। यूनेस्को ने सांची स्तूप को 1989 में विश्व विरासत स्थल घोषित किया था। सांची में स्तूपों का निर्माण तीसरी ईसा पूर्व से बारहवी शताब्दी तक चलता रहा। सांची को काकनाय, बेदिसगिरि, चैतियागिरि आदि नामों से जाना जाता था। सांची में एक पहाड़ी पर स्थित यह एक कॉम्पलेक्स है जहां चैत्य, विहार, स्तूप और मंदिरों को देखा जा सकता है।

यह हैरानी का विषय है कि भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से कुछ मंदिर यहां है।

इन स्तूपों का निर्माण सांची में ही क्यों? इसके पीछे कुछ कारण है, जिसमें एक कारण सम्राट अशोक की पत्नी महादेवी सांची से ही थी और उनकी इच्छानुसार यह स्तूप सांची में बनाए गए। एक कारण यह हो सकता है कि मौर्यकाल में विदिशा एक समृद्ध और व्यापारिक नगर था और उसके निकट यह स्थान बौद्ध भिक्षुओं की साधना के लिए अनुकूल थी। इन सबसे अलग सर्वमान्य तथ्य यह है कि कलिंग युद्ध की भयानक मारकाट के बाद अशोक ने कभी न युद्ध करने का निर्णय लिया। इस युद्ध अशोक ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया। उसने पूरे भारत में स्तूपों का निर्माण कराया जिनमें से सांची भी एक था।

सांची स्तूप में स्तूप क्रमांक एक सबसे बड़ा स्तूप है। इस स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था। इस स्तूप का आकार उल्टे कटोरे की जैसा है। इसके शिखर पर तीन छत्र लगे हुए है जो कि महानता को दर्शाता है। यह स्तूप गौतम बुद्ध के सम्मान में बनाया गया। इस स्तूप में प्रस्तर की परत और रेलिंग लगाने का कार्य शुंग वंश के राजाओं ने किया। इस स्तूप में चार द्वार बने हुए है जिनका निर्माण सातवाहन राजाओं ने करवाया था। इन द्वारों पर जातक और अलबेसंतर की कथाएं को दर्शाया गया है। इस स्तूप की पूर्व दिशा में स्तूप क्रमांक तीन है जो बिल्कुल साधारण है। सांची में कुल मिलाकर बड़े छोटे 40 स्तूप हैं।

स्तूप क्रमांक एक की पश्चिम दिशा में मंदिर क्रमांक 17 है जिसके अब केवल पिलर ही बचे है। इस मंदिर का आधार सम्राट अशोक के द्वारा तैयार किया था। मंदिर क्रं 17 के बाई ओर एक मंदिर है जो कि पूर्ण विकसित है। इस मंदिर में जैन तीर्थंकर की मूर्ति भी स्थापित है। यह दोनों मंदिर गुप्तकालीन है। स्तूप क्रं एक के पश्चिमी द्वार के पास कभी पिलर पर अशोक स्तंभ स्थापित था। जिसका अब खंड़न हो चका है, इसका निचला सिरा पिलर मौजूद है जबकि अशोक स्तंभ सांची संग्रहालय में रखा हुआ है। यह पिलर बहुत चिकना है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इस पर पॉलिश की गई है जो शुंगवंश के शासकों ने करवाई थी।

स्तूप क्रं एक से थोड़ी दूर मंदिर क्रंमाक 40 स्थित है। इस मंदिर का अब अवशेष मात्र ही रह गया है। इस जगह पर केवल पिलर ही दिखाई देते हैं। यह मंदिर आग से जलने के कारण बर्बाद हो गया। इस मंदिर के थोड़ी आगे नागर शैली में मंदिर दिखाई देते है जो कि जैन को समर्पित है।

स्तूप क्रमांक एक की उत्तर दिशा में सीढ़ियों से नीचे उतरकर स्तूप क्रमांक दो में पहुंचा जा सकता है। यह स्तूप उल्टे कटोरे के आकार का बना हुआ है। इस स्तूप के शिखर पर केवल एक छत्र लगा हुआ है। स्तूप क्रमांक दो से ही गौतम बुद्ध के दो सारिपुत्त और महामोदगलायन शिष्यों की अस्थियां मिली थी। इन अस्थियों को अब महाबोधि सोसाइटी के चैत्य में रखा गया है। प्रत्येक वैशाख पूर्णिमा को इन अस्थियों को दर्शनार्थ रखा जाता है। स्तूप क्रमांक दो जाने के मार्ग में एक विशाल विहार मिलता है जो की सांची का सबसे विशाल विहार है।

जिस अवस्था में आज स्तूप दिखाई दे रहे है वास्तव में ऐसे नहीं थे। 13 वीं शताब्दी से 17 वीं शताब्दी तक इनकी देखरेख न होने से और आक्रमणकर्त्ताओँ के आक्रमण से स्तूप खंड़हर में बदल गए। 1818 में जनरल टेलर ने इस जगह की खोज की तथा सर्वें किया। 1851 में अलेक्जेण्डर कनिंघम ने उत्खनन कार्य किया। सर जॉन मार्शल ने 1912-19 तक उत्खनन किया तथा सांची को आज के स्वरूप में लाने का श्रेय सर जॉन मार्शल को जाता है। उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों को सांची के संग्रहालय में रखा गया है जिसका नाम जॉन मार्शल के नाम पर रखा गया है।

भारत में कुल कितने स्तूप है? - bhaarat mein kul kitane stoop hai?

भगवान बुद्ध जी द्वारा दिए गए बौद्ध धर्म ने समाज के निम्न वर्ग को अपना बनाने का कार्य किया था।

उस समय यह धर्म इतना लोकप्रिय हुआ, जिसका अनुसरण खुद राजे-महाराजे किया करते थे।

ऐसी स्थित में राजसंरक्षण मिलने पर बौद्ध धर्म खूब फला-फुला।

कुछ राजाओं ने तो इस धर्म से इतना प्रभावित हुए की ना सिर्फ अपना धर्म बदला बल्कि इस धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए कई दूतों को सुदूर देशों की यात्रा पर भेजा ताकि इस धर्म की महानता को लोगों के सामने प्रस्तुत किया जा सके तथा लोगों को इस धर्म की शिक्षाओं से अवगत किया जा सके।

ऐसे ही एक राजा जिसे हम अशोक सम्राट के नाम से जानते है, उन्होंने यह कार्य किया।

इस धर्म की मुलभुत शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचने के लिए अपने पुत्र एवं पुत्री दोनों को ही विभिन्न देशों की यात्रा पर भेजा ताकि इस धर्म का प्रचार प्रसार हो सके।

इस धर्म से सम्राट अशोक इतने प्रभावित हुए थे की इन्होने भगवान बुद्ध जी के सम्मान में तीसरी बौद्ध संगीति का आयोजन भी किया।

जिसका प्रतिनिधित्व उनके मंत्री तिस्स द्वारा करवाया गया था। आगे चलकर इन्होने ही प्रसिद्ध साँची स्तूप का निर्माण करवाया था।

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम बौद्ध धर्म के इतिहास के साथ साथ बौद्ध स्तूपों के बारें में भी चर्चा करेंगे।

इस दौरान इसमें महात्मा बुद्ध जी की शिक्षाओं की भी चर्चा रहेगी।

तो आइये चलते है भरहुत बौद्ध स्तूप के दर्शन करने।

  • 1. भरहुत स्तूप का इतिहास [Bharhut stupa in hindi]
    • 1.1 मौर्य वंश [Mauryan Empire]
    • 1.1 कौन थे अशोक महान ? [who was king Ashoka]
  • 2. भरहुत स्तूप की वास्तुकला [Bharhut ka stup]
    • 2.1 स्तूप क्या होता है ? [Harmika in stupa]
  • 3. भारत में स्थित अन्य बौद्ध स्तूप [Buddha stupas in india]
  • 4. मध्य प्रदेश के अन्य पर्यटन स्थल [Tourist place in Madhya Pradesh ]
  • 5. परिवहन सुविधा [How to reach Bharhut stupa]
  • 6. भरहुत स्तूप की लोकेशन [Bharhut stupa location]
  • 6. सवाल जवाब [FAQ]
  • 7. भरहुत स्तूप की तस्वीरें [Bharhut stup images]
  • 8. निष्कर्ष [conclusion]
  • 9. सबसे जरुरी बात [Most important thing]

1. भरहुत स्तूप का इतिहास [Bharhut stupa in hindi]

भरहुत स्तूप मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है। यह मध्य प्रदेश का पूर्वी जिला है जिसका एक हिस्सा उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से लगता है।

यह बौद्ध धर्म की एक पवित्र धर्मस्थली है जहां पर बौद्ध भिक्षु अपने आराध्य की पूजा और ध्यान लगाते है।

भरहुत स्तूप के लिए यूँ तो कई राजाओं ने दान दिया था लेकिन उनमे सब में प्रमुख रूप से राजा धनभूति का नाम आता है।

यह स्तूप तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की है जिसका निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था।

इस प्राचीन स्तूप की देखरेख का कार्य कई राजवंशों ने प्रमुख रूप से किया जिसमे अशोक महान का नाम आता है।

भारत में कुल कितने स्तूप है? - bhaarat mein kul kitane stoop hai?

कलिंग युद्ध के भीषण रक्तपात के पश्चात् उनका हृदय परिवर्तन हो गया

उन्होंने हिन्दू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया और गौतम बुद्ध के सम्मान में कई स्तूपों का निर्माण करवाया।

उन्होंने बौद्ध धर्म को राजसंरक्षण भी दिया ताकि इस धर्म का विकास हो सके।

ऐसा कहा जाता है की उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान लगभग 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था, भरहुत बौद्ध स्तूप उन्ही में से एक था।

शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग थे। उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म को पूरी तरह से नष्ट करने की कोशिश की ।

लेकिन अपने जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने बौद्ध धर्म की महानता को समझा और जितने भी उन्होंने स्तूपों को नष्ट करवाया था उन्हें फिर से पुनर्निर्माण करवाया।

कई इतिहासकार ऐसा मानते है की यह बौद्ध स्तूप पहले लकड़ी का बना हुआ था।

जिसे पुष्यमित्र शुंग ने अपने शासनकाल के दौरान कई हिस्सों को नष्ट कर दिया था लेकिन फिर बाद में उन्होंने इसे पत्थर से निर्माण करवाया।

वर्त्तमान में हम जिस भरहुत बौद्ध स्तूप को देखते है वह पुष्यमित्र शुंग के काल के दौरान हुए निर्माण को दर्शाता है।

1.1 मौर्य वंश [Mauryan Empire]

उत्तर भारत पर जब सिकंदर के आक्रमण का खतरा मंडरा रहा था तब ऐसी स्थित में सभी बुद्धिजीवियों ने महाराजा घनानंद को इससे अवगत कराया लेकिन घनान्द ने इस खतरे को हलके में लिया।

उन्ही बुद्धिजीवियों में से एक थे चाणक्य। यह वही चाणक्य थे जिन्होंने भारत पर बढ़ते खतरे को देखते हुए चन्द्रगुप्त को एक साधारण नागरिक से देश का सर्वोच्च राजा बना दिया था।

यह वही चाणक्य थे जिन्होंने अपने बुद्धिमत्ता और चन्द्रगुप्त जैसे शिष्य के बल पर नन्द वंश का खात्मा कर दिया था। आगे चलकर यही चन्द्रगुप्त भारतवर्ष को एक धागे में पीरों दिया।

1.1 कौन थे अशोक महान ? [who was king Ashoka]

चन्द्रगुप्त मौर्य अपने शासनकाल के अंतिम दिनों में जैन धर्म की और आकर्षित हो गये थे। ऐसी स्थिति में जैन धर्म अहिंसा की निति का समर्थन करता है।

इसलिए उन्होंने अपने शासनकाल के अंतिम दिनों में श्रवणबेलगोला पहाड़ी पर जाकर संलेखना विधि से अपना जीवन खत्म कर लिया।

इस प्रकार उन्होंने जैन धर्म में स्थित परमभागवत की सिद्धि के लिए इस प्रकरण को किया।

चन्द्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात बिन्दुसार राजगद्दी पर बैठे। लेकिन उन्होंने वह सम्मान हासिल नहीं किया जितना की सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक ने किया था।

बिन्दुसार के बारे में हमें आर्यमंजुश्रीकलप के माध्यम से उनके शासनकाल के बारे में पता चलता है।

उनके पश्चात उनके बेटे अशोक मौर्य साम्राज्य के सबसे वीर और प्रतापी शासक में से एक उभर कर निकले।

अशोक की नीति और सोच को देखकर उनके पिता बिन्दुसार ने उन्हें 18 वर्ष की आयु में ही अवन्तिराष्ट्र का राजा बना दिया था जिसका उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता के बल पर उसका सुचारु रूप से सञ्चालन करके पिता की भावी चिंताओं से मुक्त कर दिया।

अपने शासनकाल के दौरान अशोक ने सर्वाधिक प्रसिद्ध युद्ध कलिंग का युद्ध लड़ा था।

ऐसा कहा जाता है इस युद्ध में भीषण मार-काट के बाद अशोक का मन द्रवित हो गया और उन्होंने बुद्ध धर्म की शरण ली।

ऐसी स्थिति में उन्होंने बौद्ध धर्म को राजसंरक्षण में फैलने और फूलने का मौका दिया।

उन्होंने ने ही अपने शासनकाल के दौरान 840000 स्तूपों का निर्माण करवाया था।

2. भरहुत स्तूप की वास्तुकला [Bharhut ka stup]

भरहुत बौद्ध स्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान हुआ था।

कई इतिहासकार ऐसा मानते है की इस स्तूप का प्रवेश द्वार और इसकी अन्य संरचनाएं जैसे की इसका घेराव, रेलिंग इत्यादि शुंग वंश के राजा पुष्यमित्र शुंग ने इसका निर्माण करवाया था।

भरहुत का सबसे मध्य केंद्र जिसे स्तूप कहा जाता है उसे एक पत्थर की रेलिंग और चार तोरण द्वारा एक खूबसूरत संरचना या आकार दिया गया था।

ऐसी ही संरचना हमें साँची बौद्ध स्तूप में भी दिखती है।

समय के साथ साथ इस स्तूप के रखरखाव का सही ढंग न हो पाने से यह काफी जर्जर अवस्था में चला गया था।

जब इसे पुरातत्विदों द्वारा खोजा गया तब उस समय रेलिंग का एक बड़ा हिस्सा ही बरामद कर लिया गया था और उसे वापस से स्तूप का एक अंग बना दिया गया।

यह कार्य प्रसिद्ध पुरातत्वेत्ता एलेक्सेंडर कनिंघम द्वारा किया गया था।

आज के समय की बात की जाये तो इन चार तोरणों में से केवल एक ही तोरण अपने अस्तित्व में बचा हुआ है।

इन रेलिंग में जातक कथाओं यानी की भगवान बुद्ध जी के जीवन कथा को इनपर उकेरा गया था। जो आज भी अपने अस्तित्व में है।

भरहुत बौद्ध स्तूप के प्रवेश द्वार पर ही एक शिलालेख स्थापित है जिसपर पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल के दौरान हुए पुनर्निर्माण के बारे में बतलाता है।

लेकिन कुछ पुरातत्विद ऐसा मानते है की इसका निर्माण धनभूति नामक शासक ने करवाया था। शिलापत्रों पर खरोष्ठी भाषा में अनेक बाते लिखी हुयी है ।

प्रसिद्ध पुरातत्विद कनिघम ने अपने शोध पत्रों में इन भाषाओं का उल्लेख गांधार से जोड़कर किया है। उनका मानना था की ये लोग उत्तर दिशा की तरफ से आये थे।

असल में बौद्ध धर्म से संबधित मूर्तियां की इन्ही दो जगहों से बरामद हुयी थी या यु कहें की इस प्रकार की शैली का विकास हुआ था –

  1. गांधार कला शैली
  2. मथुरा कला शैली
गांधार कला शैलीमथुरा कला शैली
यह कला शैली गांधार पेशावर तक्षशिला बामियान और जलालबाद में फैला हुआ था यह मथुरा और उसके आस पास फैली हुयी कला शैली थी
इसमें काले स्लेटी पत्थरों का प्रयोग किया गया था इसमें लाल पत्थरों का प्रयोग किया गया था
यही पर महात्मा बुद्ध जी की प्रतिमा सर्वाधिक मात्रा में बानी थी। यहाँ पर सबसे पहले बुद्ध जी की मूर्ति बानी थी।
अपोलो देवता के सामान दिखाया गया था। यहाँ पर उनका आध्यात्मिक रूप दिखया गया था।

2.1 स्तूप क्या होता है ? [Harmika in stupa]

स्तूप शब्द पाली और संस्कृत के शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है – ढेर

बौद्ध धर्म में पवित्र बौद्ध अवशेषों को जिस जगह पर सुरक्षित रूप से रखा जाता है, उस जगह जो हम स्तूप के नाम से जानते है।

यह एक गोलाकार छतरीनुमा संरचना होती है जिसम यह अवशेष रखे जाते है।

इसके आलावा इसमें बौद्ध भिक्षु बैठकर प्रार्थन या ध्यान लगते है। स्तूप के ऊपर एक चौकोर संरचना वाले आकृति को हर्मिका के नाम से जानते है।

3. भारत में स्थित अन्य बौद्ध स्तूप [Buddha stupas in india]

पुरे भारतवर्ष में यूँ तो कई स्तूप स्थित है लेकिन आज हम उन लोकप्रिय स्तूपों के बारे में चर्चा करेंगे जो हमेशा किसी ना किसी कारणवश चर्चा का विषय बने रहते है।

ये स्तूप इस प्रकार है-

4. मध्य प्रदेश के अन्य पर्यटन स्थल [Tourist place in Madhya Pradesh ]

दोस्तों मध्य प्रदेश राज्य कई ऐतिहासिक इमारतों की स्थली रही है जहाँ पर एक से बढ़कर एक पर्यटन स्थल है जो आपको मनोरंजन के साथ-साथ आपके ज्ञान में वृद्धि भी करेंगी।

मध्य प्रदेश के कुछ पर्यटन स्थल इस प्रकार है –

  • कान्हा टाइगर रिजर्व
  • भीमबेटका पुरास्थल
  • ग्वालियर का किला
  • कंदारिया महादेव मंदिर
  • साँची का बौद्ध स्तूप
  • सास बहु मंदिर या सहस्त्रबाहु मंदिर ग्वालियर
  • उदयगिरि गुफाएं
  • चित्रगुप्त मंदिर
  • खजुराहो मंदिर
  • कीर्ति स्तंभ

5. परिवहन सुविधा [How to reach Bharhut stupa]

सड़क परिवहन राज्य सरकारों द्वारा बसों का संचालन किया जाता है।
नजदीकी रेलवे स्टेशन सतना रेलवे स्टेशन
नजदीकी हवाई अड्डा भरहुत हवाई अड्डा सतना

6. भरहुत स्तूप की लोकेशन [Bharhut stupa location]

6. सवाल जवाब [FAQ]

दोस्तों आप सभी के द्वारा भरहुत स्तूप के बारे में कुछ सवाल पूछे गए है। जिनमे से कुछ को हमने इस आर्टिकल में सबमिट किया है।

उम्मीद है हमारे द्वारा दिए गए जवाबों से आप सभी संतुष्ट हो पाएंगे।

यदि फिर भी आपके मन में भरहुत स्तूप के बारे में कोई भी क़्वेरी हो तो कमेंट सेक्शन में जरूर पूछें।

1. भरहुत बौद्ध स्तूप की स्थापना किसने की थी ?

भरहुत बौद्ध स्तूप को मौर्य वंश के सबसे प्रतापी शासक अशोक महान ने की थी।

2. भरहुत बौद्ध स्तूप कहाँ है ?

भरहुत बौद्ध स्तूप मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है।

3. सतना में कौन कौन से पर्यटन स्थल है ?

मध्य प्रदेश के सतना जिले में पर्यटन के लिए सीता रसोई, पन्ना राष्ट्रीय पार्क, मैहर देवी मंदिर यदि स्थल है।

4. क्या यहां पर फोटोग्राफी के लिए कोई प्रतिबन्ध तो नहीं है ना ?

आप निश्चिन्त रहें यहाँ पर आप इस स्तूप की फोटो ले सकते है। यहांपर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

5. स्तूप क्या होता है ?

स्तूप शब्द पाली और संस्कृत के शब्दों से मिलकर बना है जिसका अर्थ होता है – ढेर।

बौद्ध धर्म में पवित्र बौद्ध अवशेषों को जिस जगह पर सुरक्षित रूप से रखा जाता है, उस जगह जो हम स्तूप के नाम से जानते है। यह एक गोलाकार छतरीनुमा संरचना होती है जिसम यह अवशेष रखे जाते है।

6. भरहुत बौद्ध स्तूप की खोज किसने की थी ?

भरहुत स्तूप की खोज कनिघम द्वारा की गयी थी।

7. भारत में कुल कितने बौद्ध स्तूप है ?

पुरे भारतवर्ष में यूँ तो कई स्तूप स्थित है इनमे सबसे ज्यादा प्रसिद्ध स्तूप है – भरहुत, साँची, महाबोधि, अमरावती, धमेख इत्यादि।

8. क्या भरहुत बौद्ध स्तूप एक यूनेस्को साइट है ?

नहीं भरहुत स्तूप नहीं है लेकिन साँची का बौद्ध स्तूप एक यूनेस्को साइट है।

9. क्या यहाँ पर टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध है ?

हाँ बिलकुल यहाँ पर टॉयलेट की सुविधा उपलब्ध है लेकिन आप सफाई के बारे में ज्यादा उम्मीद ना करें।

10. क्या इस जगह पर गाइड मिलेंगे जो हमें इस स्थल के बारे में बताएँगे ?

हां बिलकुल यहाँ पर कई गाइड मिल जायेंगे जो आपको इस स्थल के बारे में बताएँगे।

7. भरहुत स्तूप की तस्वीरें [Bharhut stup images]

भारत में कुल कितने स्तूप है? - bhaarat mein kul kitane stoop hai?
भारत में कुल कितने स्तूप है? - bhaarat mein kul kitane stoop hai?
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8. निष्कर्ष [conclusion]

दोस्तों महात्मा बुद्ध जी ने अपने द्वारा दिए गए बौद्ध धर्म के द्वारा समाज के सबसे नीचले वर्ग के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित कर दिया था जिसका प्रमुख कारण था उनके धर्म में सभी वर्गों के लिए खुला था चाहे वह किसी भी धर्म का हो।

वह खुद एक राजा के बेटे थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपना राजधर्म त्यागकर अपना जीवन लोगों के लिए न्यौछावर कर दिया था।

दोस्तों भरहुत का स्तूप, काफी शांत और समृद्ध है। यहाँ पर आने पर आपको एक अलग ही दुनिया का अनुभव प्राप्त होगा।

गौतम बुद्ध जी एवं बौद्ध धर्म के सम्मान में बनाया गया यह भरहुत स्तूप अपने इतिहास को अनोखे ढंग से बतलाता है। दोस्तों आपको कैसा लगा भरहुत स्तूप, इसके बारें में अपने विचार जरूर लिखे।

इसे जरूर पढ़ें – महाबोधि मंदिर का इतिहास और उसकी वास्तुकला

9. सबसे जरुरी बात [Most important thing]

दोस्तों इन ऐतिहासिक इमारतों या पर्यटन स्थलों पर टिकट के पैसा, यात्रा अवधी जैसे छोटी चीज़ें बदलती रहती है।

इसलिए यदि आपको इनके बारे में पता है तो जरूर कमेंट में जरूर बताएं हम जल्द ही आपके द्वारा दी गयी जानकारी को अपडेट कर देंगे।

यदि इस पोस्ट में कुछ गलती रह गयी हो तो उसे कमेंट में जरूर बताएं।

धन्यवाद !

भारत में कुल कितने बौद्ध स्तूप हैं?

इस प्रकार कुल दस स्तूप बने। आठ मुख्य स्तूप- कुशीनगर, पावागढ़, वैशाली, कपिलवस्तु, रामग्राम, अल्लकल्प, राजगृह तथा बेटद्वीप में बने।

भारत में कितने स्तूप है?

सम्राट अशोक ने ही लगभग 84000 स्तूपों का निर्माण करा कर बौद्ध धर्म के प्रति अपनी असीम श्रद्धा का प्रदर्शन किया।

स्तूप कितने प्रकार के होते थे?

स्तूप 4 प्रकार के होते हैं 1. शारीरिक स्तूप 2. पारिभोगिक स्तूप 3. उद्देशिका स्तूप 4.

स्तूप की संख्या कितनी है?

शारीरिक स्तूप 2. पारिभोगिक स्तूप 3. उद्देशिका स्तूप 4. पूजार्थक स्तूप स्तूप एक गुम्दाकार भवन होता था, जो बुद्ध से संबंधित सामग्री या स्मारक के रूप में स्थापित किया जाता था।