भारत में भूमि क्षरण के क्या कारण हैं? - bhaarat mein bhoomi ksharan ke kya kaaran hain?

रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से मृदा संरचना नष्ट हो जाती है जिससे  भूमि क्षरण मृदा के कण एक दूसरे से अलग हो जाते हैं परिणामस्वरूप मृदा अपरदन की दर में तीव्र वृद्धि की सम्भावना बढ़ जाती है। कृषि में जल के अत्यधिक प्रयोग से जलजमाव के कारण मृदा की लवणता एवं क्षारीयता में वृद्धि होती है जिससे उपजाऊ भूमि उसर भूमि में परिवर्तित हो जाती है। सिंचाई जल के कुप्रबंधन के कारण देश की लगभग 6 मिलियन हेक्टर भूमि जल जमाव से प्रभावित है तथा तकरीबन 7 मिलियन हेक्टेयर भूमि लवणता एवं क्षारीयता से प्रभावित है।

भूमि क्षरण के कारण:

जनसंख्या विस्फोट, औद्योगीकरण, शहरीकरण, वनविनाश, अत्यधिक चराई, झूम कृषि तथा खनन गतिविधियां भूमि संसाधनों के क्षरण के प्रमुख कारण हैं। इनके अतिरिक्त रसायनिक उर्वरकों एवं नाशीजीवनाशकों (पेस्टीसाइड्स) पर आधारित पारम्परिक कृषि भी भूमि क्षरण का एक प्रमुख कारण है। हरित क्रान्ति के आगमन से कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए रसायनिक खादों, कीटनाशकों तथा शाकनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से न केवल वातावरण प्रदूषित हुआ है, अपितु भूमि की उर्वराशक्ति बढ़ाने वाले सूक्ष्मजीवों की जनसंख्या में भी लगातार गिरावट दर्ज की गयी है जिससे मृदा की पैदावार शक्ति में कमी आयी है।

अत्यधिक रसायनिक उर्वरकों विशेषकर यूरिया के प्रयोग से भूमि अम्लीय हो जाती है। अम्लीय मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों जैसे कापर तथा जिंक पौधों को उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। इसके अतिरिक्त इस प्रकार की मृदा में आमतौर से कैल्शियम तथा पोटेशियम तत्वों का अभाव होता है। इसलिए इस प्रकार की मृदा में फसल की पैदावार में गिरावट आ जाती है।

भूमि क्षरण का निवारण :

भूमि जैसे महत्वपूर्ण संसाधन का क्षरण देश के समक्ष एक गंभीर समस्या है। अत: इस समस्या का निराकरण समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो निकट भविष्य में देश में खाद्यान्न उत्पादन की दर में गिरावट होगी परिणामस्वरूप आर्थिक विकास अवरूद्ध होगा और 125 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में भूख और कुपोषण के चलते मृत्यु दर में अभूत पूर्व बढ़ोत्तरी होगी। यद्यपि 1950 की तुलना में (लगभग 51 मिलियन टन) आज देश की कुल खाद्यान्न उत्पादन क्षमता में पांच गुना से ज्यादा वृद्धि हुई है (लगभग 259 मिलियन टन)।

सत्येन्द्र कुमार गुप्ता फिर भी बढ़ती जनसंख्या एवं मांग को देखते हुए खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि देश की लगभग 42 करोड़ आबादी आज भी अत्यंत ही गरीब होने के कारण भुखमरी एवं कुपोषण की शिकार है। इसलिये उपजाऊ भूमि का संरक्षण तथा क्षरित भूमि का पुनरुत्थान अत्यंत ही आवश्यक है ताकि देश में खाद्यान्न उत्पादन को और बढ़ाया जा सके जिससे कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था को और सुदृढ़ किया जा सके।

भूमि क्षरण रोकने के लिए संपोषित कृषि को अपनाया जाये 

इसके लिए आवश्यक है कि पारम्परिक कृषि के स्थान पर संपोषित कृषि को अपनाया जाये जिसमें रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, शाकनाशकों आदि का प्रयोग केवल आवश्यकता पढऩे पर सीमित मात्रा में होता है। संपोषित कृषि में मृदा की उर्वरा शक्ति की वृद्धि के लिये हरी खाद, गोबर खाद, कम्पोस्ट, केंचुआ, केंचुआ खाद, जैविक खाद आदि का उपयोग होता है जिससे मिट्टी का स्वास्थ्य बना रहता है परिणामस्वरूप मृदा संरक्षण को बढ़ावा मिलता है।

जल अपरदन से प्रभावित कृषि भूमि का संरक्षण एवं पुनरुत्थान घास की प्रजातियों के रोपण से किया जा सकता है

जल अपरदन से प्रभावित कृषि भूमि का संरक्षण एवं पुनरुत्थान घास की प्रजातियों जैसे दूब (साइनोडान डेक्टिलान), अंजान (सिनक्रस सिलिएटस) तथा मुंज (सैक्रम मुंजा) के रोपण से किया जा सकता है। उक्त घास की प्रजातियां आमतौर से बहुवर्षीय एवं कठोर प्रवृत्ति की होती हैं। इनकी जड़ें मिट्टी के कड़ों को बांधकर मृदा अपरदन को रोकने में सहायक होती हैं। घासों के निरन्तर उगने से मृदा में जीवांश पदार्थ की वृद्धि होती हैं। जिससे मृदा संरचना में सुधार के साथ-साथ उसकी उपजाऊ क्षमता में भी वृद्धि होती है।

देश के शुष्क एवं अद्र्ध-शुष्क क्षेत्रों में वायु अपरदन एक गंभीर समस्या है। वायु अपरदन से प्रभावित भूमि को मेंहदी (लावसोनिया एल्बा), कनेर (थीबेटिया नेरीफोलिया), आक (कैलोट्राफिस प्रोसेरा), मदार (कैलोट्रापिस जाईजेण्टिया) अरण्ड, (रीसिनस कम्यूनिस), बेर (जीजीफस मारिसियाना), खैर (अकेसिया कटेचू), सफेद कीकर (अकेसिया ल्यूकाफिलया), शीशम (डेलबर्जिया शीशू), ईमली (टेमरिण्डस इण्डिका) तथा खेजरी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया) जैसे कठोर पौधों की प्रजातियों के रोपण के संरक्षण प्रदान किये जाने की तत्काल आवश्यकता है।

यद्यपि बीहड़ भूमि का पुनरूत्थान मुश्किल कार्य है बावजूद इसके खैर (अकेसिया कटेचू), खेजरी (प्रोसोपिस सिनेरेरिया), पलास (ब्यूटिया मोनोस्परमा), शिरीष (एल्बिजिया लिबेक), नीम (एजाडिराक्टा इण्डिका), शीशम (डेलबर्जिया शीशू), चिलबिल होलोप्टीलिया इन्ट्ग्रीफोलिया), करंज (पानगैमिया पिन्नेटा) तथा नरबास (डेण्ड्रोकेलैमस स्ट्रिक्ट्स) जैसी काष्ठीय प्रजातियों का रोपण कर बीहड़ भूमि को स्थिरता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है ताकि बीहड़ भूमि विस्तार को रोका जा सके।

यद्यपि खनन गतिविधियां पर्यावरण के दृष्टिकोण से हानिकारक होती हैं परंतु आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त ही आवश्यक होती हैं। खनन गतिविधियों के कारण भूमि में जबरदस्त उलटफेर होता है फलस्वरूप नीचे की मृदा जिसमें पोषक तत्वों तथा कार्बनिक पदार्थों का अभाव होता है ऊपर आ जाती है जबकि इसके विपरीत ऊपर की उपजाऊ मृदा की परत नीचे चली जाती है। इस प्रकार खनन कार्य से प्रभावित भूमि की उपजाऊ क्षमता शून्य हो जाती है।

  • बीना साहू
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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण

  • 21 Aug 2021
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये

मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण, संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन, एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम 

मेन्स के लिये

भूमि क्षरण का कारण एवं प्रभाव, मरुस्थलीकरण/भूमि क्षरण को रोकने के लिये भारत द्वारा किये गए उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा प्रकाशित एक दस्तावेज़ जिसका नाम मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस है, से पता चलता है कि हाल के वर्षों में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण में काफी वृद्धि हुई है।

  • यह एटलस 2018-19 की समयावधि के दौरान अपरदित भूमि का राज्यवार क्षेत्रीय आकलन दर्शाता है। इसके अतिरिक्त यह 2003-04 से लेकर 2018-19 तक यानी 15 वर्षों की अवधि के दौरान हुए परिवर्तन का विश्लेषण भी प्रदान करता है।
  • इससे पूर्व, प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र (UN) "मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर उच्च स्तरीय वार्ता" में मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण एटलस का संबोधन किया।

भारत में भूमि क्षरण के क्या कारण हैं? - bhaarat mein bhoomi ksharan ke kya kaaran hain?

प्रमुख बिंदु

परिचय :

  • भूमि क्षरण :
    • भूमि क्षरण कई कारणों से होता है, जिसमें चरम मौसम की स्थिति, विशेष रूप से सूखा आदि शामिल हैं। यह मानवीय गतिविधियों के कारण भी होता है जो मृदा और भूमि की गुणवत्ता में कमी लाता है तथा उन्हें प्रदूषित करता है।
  •  मरुस्‍थलीकरण :
    • शुष्क भूमि क्षेत्रों (शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र क्षेत्रों) के अंदर होने वाले भूमि क्षरण को 'मरुस्थलीकरण' कहा जाता है।
    • मरुस्थलीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें प्राकृतिक या मानव निर्मित कारकों के कारण शुष्क भूमि (शुष्क और अर्द्ध शुष्क भूमि) की जैविक उत्पादकता कम हो जाती है लेकिन इसका मतलब मौजूदा रेगिस्तानों का विस्तार नहीं है।

स्थिति:

  • भूमि क्षरण:
    • भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 328.72 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में से  लगभग 97.85 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र  (29.7%) में 2018-19 के दौरान भूमि क्षरण हुआ है।
    • 2003-05 में 94.53 मिलियन हेक्टेयर (कुल भौगोलिक क्षेत्र का 28.76%) क्षेत्र में भूमि क्षरण हुआ। 2011-13 में यह क्षरण  बढ़कर 96.40 मिलियन हेक्टेयर (कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.32%) हो गई है।
  • मरुस्थलीकरण:
    • 2018-19 में  लगभग 83.69 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र मरुस्थलीकरण से प्रभावित है । इस समयावधि में 2003-2005 में 81.48 मिलियन हेक्टेयर और 2011-13 में 82.64 मिलियन हेक्टेयर की तुलना में अत्यधिक मरुस्थलीकरण हुआ।
  • राज्यवार डेटा:
    • देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र के संबंध में मरुस्थलीकरण/भूमि क्षरण से प्रभावित होने वाला लगभग 23.79% क्षेत्र राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, लद्दाख, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना का था।
    • भारत ने 2011-13 और 2018-19 के बीच 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 28 में मरुस्थलीकरण के स्तर में वृद्धि देखी, जैसा कि एटलस में आँकड़ों द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

कारण:

  • मृदा आवरण का नुकसान:
    • वर्षा और सतही अपवाह के कारण मिट्टी के आवरण को होने वाला नुकसान मरुस्थलीकरण के सबसे बड़े कारणों में से एक है। यह देश में 11.01% मरुस्थलीकरण के लिये उत्तरदायी है।
    • निर्वनीकरण के कारण मिट्टी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और यह क्षरण का कारण बनता है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है, संसाधनों की मांग भी बढ़ती जा रही है।
  • वनस्पति क्षरण:
    • वनस्पति क्षरण को ‘वनस्पति आवरण के घनत्व, संरचना, प्रजातियों की संरचना या उत्पादकता में अस्थायी या स्थायी कमी’ के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • यह देश में 9.15% मरुस्थलीकरण के लिये उत्तरदायी है।
  • जल क्षरण:
    • यह ‘बैडलैंड’ स्थलाकृति को जन्म देता है, जो स्वयं मरुस्थलीकरण का प्रारंभिक चरण है।
      • ‘बैडलैंड’ एक प्रकार का सूखा क्षेत्र होता है, जहाँ सेडिमेंट्री चट्टानों और क्ले-युक्त मिट्टी का व्यापक पैमाने पर क्षरण होता है।
    • वर्ष 2011-13 में यह देश में 10.98% मरुस्थलीकरण के लिये उत्तरदायी था।
  • हवा का कटाव:
    • हवा के कारण आने वाली रेत मिट्टी की उर्वरता को कम कर देती है, जिससे भूमि मरुस्थलीकरण के प्रति अतिसंवेदनशील हो जाती है।
    • यह भारत में 5.46% मरुस्थलीकरण के लिये उत्तरदायी है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • यह तापमान, वर्षा, सौर विकिरण और हवाओं में स्थानिक व अस्थायी पैटर्न के परिवर्तन के माध्यम से मरुस्थलीकरण को बढ़ा सकता है।

प्रभाव:

  • आर्थिक प्रभाव:
    • भूमि क्षरण से कृषि उत्पादकता को खतरा है। यह मिट्टी के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाता है, इस प्रकार ग्रामीण लोगों की आजीविका को प्रभावित करता है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • यह जलवायु परिवर्तन की घटनाओं को बढ़ा रहा है, जो बदले में और भी अधिक गिरावट का कारण बन रहा है।
      • उदाहरण के लिये अपघटित भूमि कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2), ग्रीनहाउस गैस (GHG) को अवशोषित करने की अपनी क्षमता खो देती है जो ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि का सबसे बड़ा कारक है।
  • जल संकट
    • भूमि क्षरण के परिणामस्वरूप सतही और भूजल संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता दोनों में गिरावट आई है।
    • पानी के दबाव और सूखे की तीव्रता की चपेट में आने वाली शुष्क भूमि की आबादी वर्ष 2050 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग की सबसे आदर्श परिस्थितियों में 178 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
  • स्वदेशी लोगों के अधिकार:
    • असुरक्षित भूमि की समस्या लोगों और समुदायों की जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता को प्रभावित करती है, जो कि भूमि क्षरण से और अधिक खतरे में है।

मरुस्थलीकरण/भूमि क्षरण को रोकने के लिये भारत द्वारा किये गए उपाय:

  • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम:
    • इसका उद्देश्य ग्रामीण रोज़गार के सृजन के साथ प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण और विकास कर पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है। अब इसे प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है जिसे नीति आयोग द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • मरुस्थल विकास कार्यक्रम:
    • इसे वर्ष 1995 में सूखे के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और पहचाने गए रेगिस्तानी क्षेत्रों के प्राकृतिक संसाधन आधार को फिर से जीवंत करने हेतु शुरू किया गया था।
    • इसे राजस्थान, गुजरात, हरियाणा के गर्म रेगिस्तानी इलाकों और जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के ठंडे रेगिस्तानी इलाकों के लिये शुरू किया गया था।
  • संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन:
    • भारत वर्ष 1994 में इसका हस्ताक्षरकर्त्ता बना और वर्ष 1996 में इसकी पुष्टि की। भारत वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर खराब भूमि को पुनः उपजाऊ बनाने के लिये काम कर रहा है।
    • भारत भूमि क्षरण तटस्थता (LDN- सतत् विकास लक्ष्य 15.3) पर अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को प्राप्त करने के लिये कड़ी मेहनत कर रहा है।
      • LDN एक ऐसी स्थिति है जहाँ पारिस्थितिक तंत्र में कार्यों और सेवाओं का समर्थन करने तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता स्थिर रहती है या निर्दिष्ट अस्थायी व स्थानिक पैमाने और पारिस्थितिक तंत्र(Ecosystem) के भीतर बढ़ जाती है।
  • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम:
    • इसे वर्ष 2000 मे निम्नीकृत वन भूमि के वनीकरण के लिये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा शुरू किया था।
  • मरुस्थलीकरण का मुकाबला करने के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम:
    • इसे वर्ष 2001 में बढ़ते मरुस्थलीकरण के मुद्दों को संबोधित करने और उचित कार्रवाई करने के लिये तैयार किया गया था।
  • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन:
    • इसे वर्ष 2014 में 10 वर्ष की समय-सीमा के साथ भारत के घटते वन आवरण की रक्षा, पुनर्स्थापना और वनों को बढ़ाने के उद्देश्य से अनुमोदित किया गया था।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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भारत में भूमि क्षरण के क्या कारण हैं? - bhaarat mein bhoomi ksharan ke kya kaaran hain?

भूमि क्षरण का कारण क्या है?

भूमि क्षरण के कारण: जनसंख्या विस्फोट, औद्योगीकरण, शहरीकरण, वनविनाश, अत्यधिक चराई, झूम कृषि तथा खनन गतिविधियां भूमि संसाधनों के क्षरण के प्रमुख कारण हैं। इनके अतिरिक्त रसायनिक उर्वरकों एवं नाशीजीवनाशकों (पेस्टीसाइड्स) पर आधारित पारम्परिक कृषि भी भूमि क्षरण का एक प्रमुख कारण है।

भूमि क्षरण से क्या तात्पर्य है?

भूमि के कणों का अपने मूल स्थान से हटने एवं दूसरे स्थान पर एकत्र होने की क्रिया को भू-क्षरण या मृदा अपरदन कहते हैं!

भूमि क्षरण को रोकने के उपाय क्या है?

भू-क्षरण को नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित जैविक उपायों का प्रयोग किया जाता है:.
समोच्च जुताई (कंटूर कल्टीवेशन).
पट्टीदार खेती (स्ट्रिप क्रापिंग).
भू-परिष्करण प्रक्रियाएं (टिलेज प्रेक्टिसेज).
वायु अवरोधक व आश्रय आवरण (विंड ब्रेक तथा शेल्टर बेल्ट).

भू क्षरण क्या है इसके कारणों एवं क्षेत्रों का वर्णन कीजिए?

भू-क्षरण के कारण नदी, नालों व समुद्रों में रेत व मिट्टी जमा होने कारण वे उथली हो रही हैं जिसके फलस्वरूप बाढ एवं पर्यावरण की समस्या दिन प्रतिदिन बढती जा रही है ! भू-क्षरण के फलस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता घट जाती है जो देश की अर्थ व्यवस्था कमजोर करती है !