क्या उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत का प्रावधान है? - kya uttar pradesh mein agrim jamaanat ka praavadhaan hai?

2019 में उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत को फिर से पेश करने के बाद, अब यूपी सरकार का लक्ष्य महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराधों में अग्रिम जमानत के प्रावधान को और अधिक सख्त बनाना है।

गुरुवार को, सरकार ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक 2022 विधानसभा में पेश किया, जिसके तहत महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के आरोपी अग्रिम जमानत लेने के हकदार नहीं होंगे। 

प्रस्तावित संशोधन के अनुसार यौन उत्पीड़न से जुड़े अपराधों के अलावा, गैंगस्टर एक्ट, नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट, ऑफिशियल सीक्रेट्स एक्ट और मृत्युदंड से जुड़े मामले अदालतों से अंतरिम राहत के रूप में अग्रिम जमानत के लिए पात्र नहीं होंगे। 

संशोधन बच्चों के यौन अपराधों से संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012 और सभी बलात्कार धाराओं पर भी लागू होगा।

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क्या उत्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत का प्रावधान है? - kya uttar pradesh mein agrim jamaanat ka praavadhaan hai?

विधेयक के अनुसार, संशोधन का उद्देश्य 

  • बलात्कार और यौन अपराधों में डीएनए और जैविक साक्ष्य का त्वरित संग्रह सुनिश्चित करना और 
  • ऐसे जैविक साक्ष्य को नष्ट होने से बचाना
  • प्रासंगिक सबूतों के विनाश की संभावना को कम करना और
  • पीड़ित और गवाहों को डर या जबरदस्ती रोकना है।। 

संशोधन ने अग्रिम जमानत के प्रावधान के अपवाद के रूप में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO) और बलात्कार अपराधों के तहत अपराधों को शामिल करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश) की धारा 438 को संशोधित करने का प्रस्ताव दिया।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि 2019 में, उत्तर प्रदेश राज्य ने 1973 की आपराधिक प्रक्रिया संहिता में संशोधन किया, जैसा कि यह राज्य पर लागू होता है, धारा 438 को फिर से पेश करता है, जो अग्रिम जमानत का प्रावधान करता है। 

यह मूल संशोधन के 43 साल बाद हुआ, दंड प्रक्रिया संहिता (उत्तर प्रदेश संशोधन) अधिनियम 1976 की धारा 9, जिसने धारा 438 को हटा दिया।

लखनऊ, जेएनएन। अब उत्तर प्रदेश में गैर जमानतीय अपराध के मुकदमे में गिरफ्तारी पर अग्रिम जमानत मिल सकेगी। मंगलवार को प्रमुख सचिव गृह अरविंद कुमार ने बताया कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में अग्रिम जमानत संबंधित धारा-438 को फिर से लागू करने के विधेयक का राष्ट्रपति से मंजूरी मिल गई है।

इस व्यवस्था को वर्ष 1976 में आपातकाल के दौरान खत्म कर दिया गया था। बाद में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर अन्य राज्यों में अग्रिम जमानत की व्यवस्था बहाल कर दी गई थी।  उत्तर प्रदेश में भी इस व्यवस्था को फिर से लागू करने की मांग हो रही थी, जिसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में समिति का गठन किया।

समिति की रिपोर्ट में की गई सिफारिश के आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक-2018 विधानमंडल में पारित कराकर राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा गया था, जिसे राष्ट्रपति ने एक जून, 2019 को अनुमति प्रदान कर दी। संशोधन अधिनियम छह जून, 2019 से लागू हो गया है।

अब अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अभियुक्त का उपस्थित रहना जरूरी नहीं होगा। संबंधित मुकदमे में पूछताछ के लिए जब बुलाया जाएगा तब पुलिस अधिकारी या विवेचक के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा। इसके अलावा मामले से जुड़े गवाहों व अन्य व्यक्तियों को न धमका सकेंगे और न ही किसी तरह का आश्वासन देंगे।

आपातकाल के दौरान प्रदेश सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता (उप्र संशोधन) अधिनियम, 1973 के तहत अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया था। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-438 (अग्रिम जमानत का प्रावधान जिसमें व्यक्ति गिरफ्तारी की आशंका में पहले ही न्यायालय से जमानत ले लेता है) में अग्रिम जमानत की व्यवस्था का प्रावधान है।

एससीएसटी एक्ट में नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत

अग्रिम जमानत की व्यवस्था एससीएसटी एक्ट समेत अन्य गंभीर अपराध के मामलों में लागू नहीं होगी। आतंकी गतिविधियों से जुड़े मामलों (अनलाफुल एक्टिविटी एक्ट 1967), आफिशियल एक्ट, नारकोटिक्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट व मौत की सजा से जुड़े मुकदमों में अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी।

30 दिन में करना होगा निस्तारण

विधेयक के तहत अग्रिम जमानत के लिए जो भी आवेदन आएंगे उनका 30 दिन के अंदर निस्तारण करना होगा। कोर्ट को अंतिम सुनवाई से सात दिन पहले नोटिस भेजना भी अनिवार्य होगा। अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में कोर्ट अभियोग की प्रकृति, गंभीरता, आवेदक के इतिहास, उसकी न्याय से भागने की प्रवृत्ति आदि पर विचार करके फैसला दिया जाएगा।

इसे कहते हैं अग्रिम जमानत

अग्रिम जमानत से मतलब है कि अगर किसी आरोपी को पहले से आभास है कि वो किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वो गिरफ्तारी से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की अर्जी कोर्ट में लगा सकता है। कोर्ट अगर अग्रिम जमानत दे देता है तो अगले आदेश तक आरोपी व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

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महिलाओं के खिलाफ अपराधों में जीरो टॉलरन्स की नीति अपनाते हुए योगी सरकार ने एक बड़ी पहल की है. महिला के खिलाफ गंभीर अपराधों में अग्रिम जमानत (anticipatory bail) नहीं हो इसके लिए यूपी सरकार ने ठोस पहल की है. मानसून सत्र के अंतिम दिन ‘दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक 2022 पारित किया गया. इस संशोधन के बाद महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध में आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिल सकेगी.

गृह मंत्रालय की मंजूरी जरूरी

योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपी विधानसभा ने आज एक ऐतिहासिक संशोधन बिल पास कराया. CRPC में बदलाव के जरिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले घृणित और गंभीर अपराध में अग्रिम जमानत को खत्म कर दिया जाएगा. हालांकि इसपर गेंद केंद्र सरकार के पाले में होगी क्योंकि गृह मंत्रालय की मंजूरी जरूरी हैं लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर ये विधेयक यूपी विधानसभा में पेश किया गया. ये बिल एक दिन पहले 22 सितंबर को पेश किया गया था, जब यूपी विधानसभा महिला सशक्तिकरण के मुद्दे पर चर्चा कर रही थी.

गंभीर अपराध में नहीं मिलेगी अग्रिम जमानत 

जानकारी के अनुसार इस बिल में संशोधन के बाद ये प्रावधान होगा कि महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध रेप, गैंगरेप, यौन दुराचार में आरोपी को अग्रिम जमानत न मिले. इसके साथ ही बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए POCSO एक्ट लगने पर भी अग्रिम जमानत का प्रावधान खत्म कर दिया जाएगा. इसके लिए CRPC की धारा 438 में संशोधन इस बिल में प्रस्तावित किया गया है. इसके बाद महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले इन अपराधों में आरोपी की अग्रिम जमानत नहीं मिल पाएगी.

संशोधन विधेयक में Code of Criminal Procedure की धारा 438 में बदलाव के साथ ही POCSO ACT और 376, 376-A, 376 -AB, 376 -B, 376-C, 376-D,376-DA, 376-DB, 386-E की धाराओं में आरोपी को अग्रिम जमानत (anticipatory bail) नहीं मिल सकेगी. इससे साफ है कि इसमें न सिर्फ रेप बल्कि यौन अपराध, बदसलूकी और यौन अपशब्द को भी शामिल किया गया है. यानि अब महिलाओं के खिलाफ गंभीर अपराध होने पर इन धाराओं में मुकदमा दर्ज होने पर भी अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी.

सरकार की जीरो टॉलरेन्स पॉलिसी

संशोधन विधेयक को प्रस्तावित करते हुए सरकार ने कहा है कि महिलाओं और बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों में जीरो टॉलरेन्स पॉलिसी के तहत ये किया गया है. साथ ही आरोपी किसी तरह साक्ष्यों को प्रभावित या नष्ट न करे इसके लिए ये किया गया है.

‘in order to pursuance of zero tolerance policy towards crimes against women and children , to ensure prompt collection of Biological evidence in sexual offences, to prevent such biological evidence from annihilated, to minimize the possibility of destruction of evidences and to restrain the accused from causing fear and coercion to the victim /witnesses, it has been decided to amend the section 438 of Code of Criminal Procedure 1973.’ 

जाहिर है गवाहों और पीड़ित को धमकाने और साक्ष्यों को प्रभावित करने से आरोपियों को रोकने के लिए ये संशोधन मील का पत्थर साबित हो सकता है. इस मामले पर कांग्रेस और सपा ने संशोधन प्रस्तुत किया था लेकिन ध्वनि मत से विधेयक पारित हो गया. अब उच्च सदन विधान परिषद में इस विधेयक को पारित करना होगा. इसके बाद केंद्र सरकार को भेजना होगा.

क्या यूपी में अग्रिम जमानत उपलब्ध है?

हाइलाइट्स लखनऊः उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने महिलाओं के विरूद्ध बलात्कार और बच्चों के विरूद्ध यौन हमलों के घृणित अपराधों के प्रति वर्तमान कानून को और अधिक कठोर करते हुए अब दुष्कर्म एवं पॉक्सो एक्ट से सम्बन्धित अपराध की धाराओं में संशोधन कर अपराधियों की अग्रिम जमानत की व्यवस्था को समाप्त कर दिया है।

अग्रिम जमानत कब दी जाती है?

भारतीय कानून में गिरफ्तारी के बाद ही नहीं अपितु गिरफ्तारी के पहले भी जमानत दिए जाने के प्रावधान है। दंड प्रक्रिया संहिता में ऐसी जमानत देने की शक्ति सेशन न्यायालय और उच्च न्यायालय को दी गई है। यह दोनों न्यायालय किसी अपराध में आरोपी को गिरफ्तारी के पूर्व ही जमानत दे सकते हैं।

अग्रिम जमानत कौन जारी करता है?

अदालत सुनवाई के बाद सशर्त अग्रिम जमानत दे सकती है। यह जमानत पुलिस की जांच होने तक जारी रहती है। अग्रिम जमानत का यह प्रावधान भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा ४३८ में दिया गया है। भारतीय विधि आयोग ने अपने ४१वें प्रतिवेदन में इस प्राविधान को दण्ड प्रक्रिया संहिता में सम्मिलित करने की अनुशंसा की थी।

अग्रिम जमानत कैसे होती है?

भारत में अग्रिम जमानत याचिका के लिए प्रक्रिया.
सरकारी अभियोजक संबंधित पुलिस अधिकारी से बात करेंगे।.
चूंकि कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी है, इसलिए सरकारी अभियोजक यह मानेगा कि अग्रिम जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं है।.
न्यायाधीश इस पर सहमत होगा और आपके वकील को मौखिक रूप से अग्रिम जमानत वापस लेने के लिए कहा जाएगा।.